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  • भोपाल में गोविंदपुरा और उत्तर सीट को लेकर कलह, महापौर आलोक ने की सुहास से मुलाकात, संघ खेमे में घूमे वीडी शर्मा

भोपाल . उम्मीदवारों का ऐलान होते ही भाजपा में अंदरूनी कलह खुलकर सामने आ गई है। दस बार के विधायक व पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने अपनी बहू कृष्णा को टिकट दिलवाने के लिए संगठन से लेकर दिल्ली तक जोर लगा दिया है। भाजपा बाबूलाल गौर का टिकट काट चुकी है और उनकी बहू को भी टिकट देने में आना-कानी कर रही है।

 

गौर इससे नाराज हैं। बहू ने साफ कर दिया है कि पार्टी उन्हें टिकट दे या नहीं, वे इस्तीफा देकर हर हाल में गोविंदपुरा से ही चुनाव लड़ेंगी। टिकट कटने की संभावनाओं के मद्देनजर गौर समर्थकों ने आनन-फानन में शनिवार को गोविंदपुरा में बैठक की। इसके बाद गौर के निवास पर विधानसभा प्रभारी बारेलाल अहिरवार समेत क्षेत्र के तमाम पार्षदों ने कृष्णा से मुलाकात कर चुनाव लड़ने के लिए कहा। इस बीच, कृष्णा ने परिवारवाद को लेकर सवाल उठाए और कहा कि उनके मन में पीड़ा है।  

संगठन में काम किया। बरसों से परिवार का गोविंदपुरा से नाता है। कई दूसरे नेताओं के बेटे-बेटी को टिकट मिला है तो मेरे साथ ऐसा क्यों? उन्होंने आशा व्यक्त की कि आरएसएस और संगठन का उनपर भरोसा है। यह भी इस बीच कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ और वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गौर परिवार से संपर्क कर लिया है।

कांग्रेस नेता गोविंद गोयल भी गौर से मिलने उनके निवास पर पहुंचे। देर शाम को गौर ने पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय से कृष्णा के लिए बात की।  दूसरी ओर गोविंदपुरा सीट से दावेदारी कर रहे महापौर आलोक शर्मा ने संगठन महामंत्री सुहास भगत से मिलकर अपना पक्ष रखा। भाजपा के प्रदेश महामंत्री व दावेदार वीडी शर्मा भी लगातार संघ के संपर्क में हैं। 
 इधर, गौर के घर पहुंचे पार्षदों में सीमा यादव, नारायणी अहिरवार, रामबाबू पाटीदार, अर्चना परमार, रश्मि द्विवेदी, लक्ष्मी ठाकुर और संजय वर्मा समेत अन्य शामिल थे। कृष्णा गौर ने मुख्यमंत्री से मिलकर यह भी स्पष्ट कर दिया कि जब वरिष्ठ नेताओं के सीट छोड़ने पर बेटों, पत्नियों और भाइयों को टिकट मिल सकती है तो उन्हें क्यों नहीं। सुदीप, विक्रम तो वर्तमान में और कई पूर्व उदाहरण हैं।
पार्टी दफ्तर में सहस्त्रबुद्धे को घेरा
मुंगावली में भाजपा प्रत्याशी केपी यादव के विरोध में बाईसाहब यादव के पुत्र ने समर्थकों के साथ भोपाल में पार्टी दफ्तर में शक्ति प्रदर्शन कर दिया। साथ ही पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा, प्रदेश प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे की गाड़ी को घेर लिया। दोनों नेता कार से नहीं निकले तो समर्थकों ने नारेबाजी करते हुए कहा कि-‘क्या कार्यकर्ताओं की भी नहीं सुनी जाएगी’।
25 गाड़ियों के साथ सीएम हाउस पहुंचे वेल सिंह
धार की सरदारपुर सीट से भाजपा विधायक वेलसिंह भूरिया का टिकट कट गया। वे शनिवार को 25 गाड़ियों में समर्थक लेकर सीएम हाउस पहुंचे और मुख्यमंत्री से बात की। मुख्यमंत्री ने उन्हें समझाने का प्रयास किया। भूरिया ने अभी अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं की है।

अब इतना तय हो गया है कि लोकसभा चुनाव के पहले अयोध्या के विवादित स्थल पर राममंदिर का निर्माण शुरू नहीं हो सकता। अब जनवरी महीने में इस विवाद से जुड़े मुकदमे की सुनवाई की रूपरेखा तय की जाएगी। इस मुकदमे में एक से ज्यादा पक्ष हैं और अनेक किस्म की सत्य और काल्पनिक उलझनें हैं, जिनके कारण इस पर सुनवाई तुरंत समाप्त नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मसले पर अविलंब सुनवाई शुरू करने की अपील अस्वीकार करने के बाद मंदिर समर्थकों की नींद हराम हो रही हैं और उनमें हताशा का भाव बढ़ता जा रहा है। और जब हताशा बढ़ती है, तो उसका शिकार विवेक हो जाता है, जिसके कारण विवेकहीन बातें शुरू हो जाती हैं।
 
वैसी ही एक विवेकहीन बात यह है कि कानून बनाकर या अध्यादेश लाकर केन्द्र सरकार या राज्य सरकार उस विवादित भूमि का अधिग्रहण कर सकती है और उस अधिगृहित जमीन को राम मंदिर बनाने के लिए हिन्दू संगठनों को सौंपा जा सकता है। इस तरह की मांग जोर पकड़ रही है। भारतीय जनता पार्टी के अनेक नेता इस तरह की मांग कर रहे हैं। विश्व हिन्दू परिषद ने तो औपचारिक रूप से इस तरह की मांग कर दी है कि राममंदिर के निर्माण को शुरू करने के लिए सरकार अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार नहीं करे, बल्कि कानून बनाकर उस भूखंड को मंदिर निर्माण के लिए तैयार संगठन को सुपुर्द कर दे।
 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत भी सरकार से कानून बनाने की मांग कर चुके हैं। सच तो यह है कि मंदिर निर्माण के लिए तैयार बैठे लोगों को लग रहा था कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला कुछ भी हो मंदिर बनकर रहेगा। इसके पीछे उनकी सोच यह थी कि मंदिर के पक्षधर मुकदमा हार जाने के बावजूद कानून की सहायता से वह भूखंड पा लेंगे। केन्द्र ही नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश में भी भाजपा की सरकार है और सरकार के पास यह अधिकार होता है कि उचित मुआवजा देकर वह कोई भी भूखंड अधिकृत कर ले। अब वहां मस्जिद तो है नहीं, इसलिए उसे अधिगृहित करने में सरकार को कोई दिक्कत नहीं होगी।
 
लेकिन इस तरह के विचार रखने वाले यह भूल जाते हैं कि विवादित भूखंड पहले से ही तकनीकी रूप से केन्द्र सरकार द्वारा अधिगृहित संपत्ति है। यह अधिग्रहण नरसिंह राव सरकार ने 1993 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद किया था। विवादित 2 दशमलव 7 एकड़ जमीन के साथ-साथ आसपास के 66 दशमलव 7 एकड़ जमीन नरसिंह राव सरकार ने एक अध्यादेश के द्वारा अधिगृहित कर ली थी। बाद में अध्यादेश का स्थान एक अधिनियम ने ले लिया। उस अधिनियम के तहत विवादित भूमि पर दाखिल सारी याचिकाओं को भी खारिज कर दिया गया था।
 
लेकिन भूमि अधिग्रहण के उस निर्णय को अदालत में चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट को सरकार ने बताया कि अधिग्रहण यह भूमि किसी को देने के लिए नहीं किया गया है, बल्कि केन्द्र सरकार अपनी कस्टडी में उसे रखना चाहती है, ताकि उसके कारण सांप्रदायिक तनाव को नियंत्रण में रखा जा सके। केन्द्र की उस दलील को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अधिग्रहण से संबंधित उस कानून को निरस्त नहीं किया। उसका सिर्फ एक हिस्सा, जिसमें सभी याचिकाओं को समाप्त माना गया था, उसे कोर्ट ने निरस्त कर दिया और आदेश जारी किया कि केन्द्र उस भूमि की कस्टडी अपने पास रखे और याचिकाओं का निस्तारण होने के बाद जिसकी जीत होती है, भूमि उसे सौंप दे। 
 
यानी कानून बनने और उस पर कोर्ट के दिए गए फैसले के अनुसार वह विवादित भूखंड अभी भी अधिगृहित भूखंड है, जो केन्द्र सरकार की कस्टडी में है। उसे केन्द्र को तब तक अपनी कस्टडी में रखना है, जब तक अदालत उस पर अपना अंतिम फैसला नहीं सुना दे। उसके पहले केन्द्र को यथास्थिति बनाए रखनी है। वह किसी को वह भूखंड नहीं दे सकता और जहां तक अधिग्रहण करने के लिए अध्यादेश और अधिनियम बनाने का सवाल है, तो जो जमीन एक बार अधिगृहित हो चुकी है, उसका अधिग्रहण वही सरकार दुबारा कैसे कर सकती है?
 
लिहाजा केन्द्र सरकार के पास सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। मंदिर बनाने के लिए उतावले हो रहे लोग मोदी सरकार पर दबाव बनाते हुए कह रहे हैं कि जब तीन तलाक और एससी/एसटी एक्ट पर सरकार अध्यादेश और विधेयक ला सकती है, तो फिर राममंदिर के निर्माण के लिए वैसा क्यो नहीं कर सकती। लेकिन वे यह भूल रहे हैं कि तीन तलाक का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित नहीं है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत ही उस पर अध्यादेश लाया गया है और एससी/एसटी एक्ट में पुनर्विचार याचिका तो केन्द्र ने ही कर रखी थी और सुप्रीम कोर्ट ने उस पर कोई वैधानिक कार्रवाई आगे करने के लिए रोक नहीं लगा रखी है। 
 
विवादित भूखंड को लेकर सुप्रीम कोर्ट का केन्द्र सरकार को आदेश है कि वह वहां यथास्थिति बनाए रखे और वह अपने आपको उस जमीन को कस्टोडियन समझे न कि मालिक। अब जब सरकार उस जमीन की मालिक ही नहीं है, तो फिर वह उसे किसी को कैसे दे सकती है और वह भी तब, जब उस जमीन के एक से ज्यादा दावेदार मौजूद हैं और उनके दावों की जांच सुप्रीम कोर्ट कर रहा है।
 
यही नहीं भारतीय राज्य एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है। धर्मनिरपेक्षता भारतीय संविधान का बेसिक स्ट्रक्चर है, इसके साथ सरकार क्या संसद भी छेड़छाड़ नहीं कर सकती। सुप्रीम कोर्ट ने अपने अनेक फैसले में स्पष्ट किया है कि सेक्युलर होने के कारण सरकार अपने आपको किसी धर्म विशेष से जोड़कर फैसला नहीं ले सकती। भारतीय धर्मनिरपेक्षता को कोर्ट ने पारिभाषित करते हुए कहा है कि यह सर्वधर्म समभाव पर आधारित है और सरकार को निर्णय लेते समय सर्वधर्म समभाव की भावना से ही काम करना होगा। इस भावना से विचलित होकर किया गया कोई फैसला या कानून सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज कर दिया जाएगा। जाहिर है, सुब्रह्मण्यम स्वामी जैसे भाजपा सांसदों की कानून बनाकर मंदिर निर्माण का सपना, एक ऐसा दिवास्वप्न है, जो पूरा होता दिखाई नहीं पड़ता। इसका निर्माण तभी होगा, जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला इसके पक्ष में हो या विपक्ष में फैसला आने के बाद भूखंड का मालिक अपनी मर्जी से उसे मंदिर निर्माण के लिए दे दे।
 
-उपेन्द्र प्रसाद

यी दिल्ली। 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर देश की जनता अब अपना मन बनाने लगी है। इसी को लेकर एक सर्वे सामने आया है। बता दें कि यह सर्वे राजनैतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर की संस्था आई-पैक (I-PAC) द्वारा कराया गया है। इस सर्वे में बताया गया है कि देश की पहली पसंद आज भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं, जबकि दूसरे पायदान पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, तीसरे पायदान पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हैं।

 
I-PAC ने चुनावी माहौल जानने के लिए 57 लाख लोगों को साथ लेकर एक ऑनलाइन सर्वे किया, इस सर्वे को पूरा करने में प्रशांत किशोर की संस्था को 55 दिनों का वक्त लगा। जिसके बाद यह निष्कर्ष निकला कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सबसे ज्यादा 48 फीसदी लोगों ने पसंद किया है, वहीं सबसे कम पसंद किए जाने वालों में दलित नेता मायावती हैं, जिन्हें महज 3 फीसदी लोग प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं।
 
जब बात प्रधानमंत्री बनने की हो और राहुल गांधी का नाम न आए, ऐसा भला कहां हुआ है। इस सर्वे के मुताबिक दूसरे सबसे लोकप्रिय नेताओं में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी शामिल हैं, जिन्हें महज 11 फीसदी लोग प्रधानमंत्री देखना चाहते हैं। नरेंद्र मोदी से अगर राहुल गांधी की तुलना की जाए तो इस आंकड़े में 400 फीसदी ज्यादा आगे हैं प्रधानमंत्री मोदी।
 
वहीं, केजरीवाल को 9 फीसदी, अखिलेश को 7 फीसदी और 4 फीसदी लोगों ने ममता बनर्जी को अपना वोट दिया है। इसके पहले भी आए सर्वे में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही जनता की पहली पसंद थे, सर्वे ने तो अपना मूड बना लिया है- अबकी बार फिर से मोदी सरकार... अब देखना यह दिलचस्प होगा कि चुनावों के जब नतीजे आते हैं तो यह सर्वे कितना सटीक साबित होता है।  
बात अगर सोशल मीडिया की हो तो ये जागरूकता के मामले में तो अव्वल है लेकिन प्राइवेसी के लिए दिन पर दिन खतरा बनती जा रही है। बॉलीवुड के कई सितारों के साथ ऐसा हो चुका है जब उनकी प्राइवेट चीजें सोशल मीडिया पर लीक हो चुकी है। इसी नाम में एक और नाम शामिल हो गया है कमल हासन की बेटी अक्षरा हासन का । जी हां सोशल मीडिया पर अक्षरा हासन की कुछ प्राइवेट तस्वीरें लीक हुई है। इन तस्वीरों में अक्षरा हासन बिकनी में नजर आ रही है और अंडरगारमेंट्स में सेल्फी लेती दिखाई दे रही हैं। अक्षरा को इनर-वेअर में देखकर उनके फैंस शॉक में हैं। ये बेहर ही प्राइवेट तस्वीरें है जिसे अक्षरा हासन ने सोशल मीडिया पर शेयर नही किया लेकिन अक्षरा हासन की ये तस्वीरें वायरल हो गई हैं। मामला काफी पेंचीदा हैं। अब अक्षरा साइबर क्राइम की विक्टिम बन गई हैं। 
अभी पूरी तरह से ये नहीं कहा जा सकता की तस्वीरें अक्षरा की ही हैं या किसी ने फोटोज से छेड़छाड़ की है। लेकिन सोशल मीडिया पर इन्हें कमल हासन की बेटी अक्षरा हासन की प्राइवेट तस्वीरें कहकर लीक किया जा रहा हैं। बता दें कि वह पहली ऐक्ट्रेस नहीं हैं जिनकी प्राइवेट तस्वीरें इस तरह से वायरल हो रही हैं। कुछ दिनों पहले एमी जैक्सन का फोन भी हैक कर लिया गया था और उनकी पर्सनल तस्वीरें भी इंटरनेट पर वायरल हुई थीं। 

अक्षय कुमार और रजनीकांत की मोस्ट अवेटेड फिल्म 2.0 का दमदार ट्रेलर रिलीज हो चुका है। फिल्म 2.0 काफी धमाकेदार है और फिल्म का कॉनसेप्ट एक दम नया। जी हा सिनेमा जगत की सबसे मंहगी फिल्म का ट्रेलर रिलीज हो चुका हैं। 

ट्रेलर देखने के लिए यहां क्लिक करें-

 
ट्रेलर के हिसाब से फिल्म के हर सीन को जबरदस्त तरीके से दिखाया गया है फिल्म के लिए गहरी रिसर्च की गई हैं। फिल्म में रजनीकांत के साथ अक्षय कुमार नजर आएंगे। फिल्म अक्षय कुमार ने खुंखार सेल फोन से बने शैतान का नेगेटिव रोल निभाया हैं। ट्रेलर में रजनीकांत से ज्यादा अक्षय ही नदर आ रहे है अक्षय का लुक काफी बेहतरीन है जाहिर से ये फिल्म अक्षय कुमार के फैंस को काफी पसंद आयेगी। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि 2.0 के साथ अक्षय कुमार ने 2018 अपने नाम कर लिया है। वहीं अक्षय के अलावा इस फिल्म में पहले ही तरह ही रजनीकांत का भी धमाकेदार अंदाज देखने को मिलेगा। 
 
फिल्म के प्रोड्यूसर का दावा है कि ये भारतीय सिनेमा जगत की सबसे महंगी फिल्म है रिपोर्स की माने तो फिल्म का बजट 400 करोड़ के आस-पास जाकर बैठा है। वो भी VFX के मंहगे खर्चे मिला कर। बता दें कि फिल्म का बजट इतना तगड़ा इसलिए है क्योंकि इसे 3D फॉर्मेट में शूट किया गया है। बताया जा रहा है कि फिल्म में ऐसे कई सीन्स देखने को मिलेंगे जो ऑडिएंस के होश उड़ा देंगे। इस फिल्म का टीजर रिलीज के बाद इस फिल्म को जबरदस्त क्रेज देखने को मिला थी लेकिन फैंस को ये शिकायत थी अक्षय कुमार बहुत कम दिखे हालांकि ट्रेलर में फैंस की सारी शिकायतें दूर हो गईं। 
 
फिल्म का ट्रेलर इतना शानदार है कि हो सकता है ये फिल्म अबतक की सबसे हिट फिल्म साबित हो। अभी तक सबसे हिट फिल्म का खिताब प्रभास की फिल्म बाहुबली2 के नाम है। 

बेंगलुरु। क्रिकेट के मैदान पर लगातार नये कीर्तिमान स्थापित कर रहे विराट कोहली के प्रशंसको में दिग्गज क्रिकेटर ब्रायन लारा भी शामिल हो गये हैं जिन्होंने शनिवार को यहां भारतीय कप्तान को इस समय खेल का नेतृत्वकर्ता करार दिया। लारा ने शनिवार को कहा, ‘‘ कोहली आज के दौर में जो भी कर रहा है वह असाधारण है। इसमें उसके रन बनाने की गति, फिटनेस का ध्यान रखना और कई अलग-अलग चीजों को महत्व देना शामिल है। मौजूदा समय में खेल के इस नेतृत्वकर्ता को देखना अच्छा है।’’ 

कृष्णपत्तनम पोर्ट गोल्डन ईगल्स गोल्फ चैंपियनशिप के लिए यहां पहुंचे लारा ने कोहली और सचिन तेंदुलकर की तुलना पर चर्चा करने से इनकार कर दिया। लारा ने कहा, ‘‘ अगर आप सचिन और मेरी बात करेंगे तो आपने हमारे बारे में काफी पढ़ा होगा और आप कई बार दोनों की तुलना के बारे में सुनते थे लेकिन हमारे लिये कभी भी यह महत्वपूर्ण नहीं रहा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ मैं इस बात को लेकर आश्वस्त हूं कि कोहली भी ऐसी चीजों पर ध्यान नहीं देता है। हर कोई अलग-अलग दौर में खेला और आपको सबका सम्मान करना चाहिये।’’ 

पेरिस। नोवाक जोकोविच ने शनिवार को पेरिस मास्टर्स टेनिस टूर्नामेंट के रोमांचक सेमीफाइनल में रोजर फेडरर को हराकर अगले सप्ताह विश्व का नंबर एक खिलाड़ी बनने से पहले अपने विजय क्रम को 22 जीत तक पहुंचा दिया। सर्बियाई खिलाड़ी जोकोविच ने स्विट्जरलैंड के दिग्गज फेडरर को तीन घंटे तक चले मैच में 7-6 (8/6), 5-7, 7-6 (7/3) से पराजित किया। फाइनल में उनका मुकाबला रूस के कारेन खाचनोव से होगा। अगर वह खिताब जीतने में सफल रहते हैं तो राफेल नडाल के 33 मास्टर्स की खिताब की बराबरी भी कर लेंगे। 

एटीपी की सोमवार को जब नयी विश्व रैंकिंग जारी होगी तो जोकोविच चोटों से जूझ रहे नडाल की जगह नंबर एक खिलाड़ी बन जाएंगे। जोकोविच ने फेडरर के खिलाफ अपना रिकार्ड अब 25-22 कर दिया है। उन्होंने 2015 से स्विस खिलाड़ी से कोई मैच नहीं गंवाया है। 
 
इस हार से फेडरर का 100वां खिताब जीतने का इंतजार भी बढ़ गया। इससे पहले 22 वर्षीय खाचनोव ने आस्ट्रिया के छठी वरीयता प्राप्त डोमिनिक थीम को 6-4, 6-1 से हराकर पहली बार मास्टर्स फाइनल में प्रवेश किया।

नयी दिल्ली। भाजपा के वरिष्ठ नेता शाहनवाज हुसैन ने रविवार को कहा कि नरेंद्र मोदी अगले लोकसभा चुनाव के लिए मुसलमानों के पसंदीदा उम्मीदवार हैं क्योंकि प्रधानमंत्री ने उस डर को दूर कर दिया है, जिसे कई पार्टियों ने उनके नाम का इस्तेमाल कर इस समुदाय के लोगों के मन में बिठा दिया था।  हुसैन ने कहा कि मोदी पर मुसलमानों में, खासतौर पर महिलाओं के बीच विश्वास बढ़ा है। उन्होंने कहा, ‘‘2019 के चुनाव के लिए प्रधानमंत्री पद के पसंदीदा उम्मीदवार नरेंद्र मोदी हैं क्योंकि वह देश के सभी 132 करोड़ लोगों को सिर्फ भारतीय के रूप में देखते हैं। जबकि अन्य पार्टियां उन्हें वोट बैंक के रूप में देखती हैं।’’ 

गौरतलब है कि भारत की 130 करोड़ की आबादी में मुसलमान करीब 14 फीसदी हैं। यह समुदाय उत्तर प्रदेश, बिहार झारखंड, असम, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, केरल और जम्मू कश्मीर में लोकसभा सीटों में अच्छी खासी संख्या में सीटों पर चुनाव नतीजे में अहम भूमिका निभाता है। हुसैन ने देश के मुसलमानों में गरीबी और उनके पिछड़ेपन के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि पार्टी ने समुदाय के साथ अन्याय किया है जबकि मोदी ने उन्हें न्याय प्रदान किया है। उन्होंने कहा कि 2014 में कुछ लोग नरेंद्र मोदी का नाम लेकर दूसरों को डराया करते थे। आज, मुस्लिम समुदाय में बड़ी संख्या में लोग यह महसूस कर रहे हैं कि वह (मोदी) दिन रात काम करने वाले व्यक्ति हैं। मोदी ने सभी 132 करोड़ भारतीयों के साथ समान व्यवहार किया है। 
 
हुसैन ने कहा कि अन्य पार्टियां मोदी और भाजपा की दहशत फैला कर मुसलमानों के वोट लिया करती हैं लेकिन प्रधानमंत्री ने उस डर को दूर कर दिया है। भाजपा नेता ने कहा कि अब वे लोग देख रहे हैं कि मोदी सत्ता में हैं लेकिन इससे उन्हें कोई समस्या नहीं है। उन्होंने कहा कि मोदी ने मुसलमानों के खिलाफ एक भी वाक्य नहीं कहा है। पिछले साल उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री के ‘श्मशान - कब्रिस्तान’ बयान की गलत व्याख्या की गई, जबकि उन्होंने दोनों का ध्यान रखने की हिमायत की थी। 
 
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि हमारी पार्टी में कुछ लोग भले ही बयानबाजी (कुछ खास) कर रहे हों, लेकिन भाजपा प्रमुख अमित शाह और प्रधानमंत्री के दिए बयानों पर मुसलमानों को पूरा भरोसा है।  हुसैन ने कहा कि इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज किया गया है क्योंकि अतीत में अन्याय किया गया था और अब न्याय बहाल हुआ है। उन्होंने कहा, ‘‘इसका पहले का नाम प्रयागराज बदल दिया गया था। उस गलती को ठीक करने के लिए क्या यह गलत (कदम) है? ’’ 
 
हुसैन ने राम मंदिर मुद्दे पर कहा कि भाजपा के लिए यह आस्था का विषय है, ना कि कोई चुनावी मुद्दा। उन्होंने कहा कि 29 अक्टूबर से (उच्चतम न्यायलय में) रोजाना सुनवाई होगी। हमे उम्मीद है कि इस मुद्दे का शीघ्र हल हो जाएगा और यह देश के सभी लोगों को स्वीकार्य होगा। हुसैन ने कहा कि कुछ लोग राम मंदिर के निर्माण के लिए एक कानून बनाए जाने की भी मांग कर रहे हैं। हर किसी को मांग करने का अधिकार है, उसे कोई कैसे रोक सकता है? सरकार के पास फैसला करने का अधिकार है और इसने इस बारे में कोई फैसला नहीं किया है। 
 
उन्होंने पांच राज्यों में आगामी विधानसभा चुनावों के बारे में बात करते हुए भरोसा जताया कि भाजपा मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जीत हासिल करेगी। उन्होंने कहा, ‘‘मिजोरम में हमारे समर्थन के बगैर सरकार नहीं बनेगी जबकि तेलंगाना में हम सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरेंगे।’’ बिहार से पूर्व सांसद हुसैन ने कहा कि भाजपा, जदयू, लोजपा और रालोसपा उनके राज्य में साथ मिल कर चुनाव लड़ेगी। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार नीत जदयू के साथ गठबंधन से बिहार में राजग की संभावनाएं मजबूत हुई हैं और गठबंधन राज्य में ‘‘मिशन 40’’ यानी सभी लोकसभा सीटें जीतने पर ध्यान केंद्रित कर रहा। 
 
हुसैन ने यह भी दावा किया कि पेट्रोल और डीजल के बढ़ते दाम भाजपा की चुनावी संभावनाओं पर असर नहीं डालेंगे क्योंकि लोग जानते हैं कि ईंधन की समस्या वैश्विक है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार 2019 में ज्यादा बड़े जनादेश के साथ सत्ता में आएगी।
मोदी सरकार के कार्यकाल के साढ़े चार साल लगभग पूरे हो चुके हैं। वैसे तो किसी भी चुनी हुई सरकार के लिए हिसाब देने का वक्त 5वें साल में होता है। लेकिन, सच यही है कि, चौथे साल के रिकॉर्ड से ही करीब साल भर बाद होने वाले चुनावों में जनता फैसला लेगी, और, यह भी सही है कि, पांचवें साल में सरकार अगले 5 साल के लिए चुनाव की नजर से माहौल बनाना शुरू कर देती है। भाजपा अपनी सरकार को जबरदस्त कामयाब बताते हुए कई उपलब्धियां गिना रही है। ऐसा करते वक्त उसका सबसे ज्यादा जोर आर्थिक मोर्चे पर दिख रहा है। इसके लिए वह कई आंकड़े भी पेश कर रही है। लेकिन मुद्रा योजना के तहत बांटे गए लोन को छोड़कर रोजगार के मामले में खुद मोदी सरकार ही ज्यादा दावे नहीं कर रही है।
 
यह भी कहा जा सकता है कि अपनी तमाम उपलब्धियों के बीच बड़ी सफाई से मोदी सरकार रोजगार सृजन के ‘कमजोर आंकड़ों’ को ढक रही है। एक अनुमान के अनुसार देश के करीब 34 करोड़ युवा बेहतर रोजगार की तलाश में हैं। जिस देश में रेलवे की 90 हजार नौकरियों के लिए दो करोड़ 37 लाख अभ्यर्थियों के प्रार्थना पत्र आते हों उस देश के आर्थिक विकास के दावों की असलियत को समझने में किसी सामान्य नागरिक को भी ज्यादा दिमाग लड़ाना नहीं पड़ेगा। अर्थशास्त्रियों का भी दावा है कि रोजगार के मामले में मोदी सरकार को कामयाब नहीं कहा जा सकता। 
 
खासकर तब जब आगरा में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए 22 नवंबर, 2013 को नरेंद्र मोदी ने दावा किया था कि यदि भाजपा की सरकार बनी तो हर साल दो करोड़ लोगों को रोजगार दिया जाएगा। उन्होंने मनमोहन सरकार पर ‘जॉबलेस ग्रोथ’ का आरोप जड़ा था। 2014 में यूपीए सरकार की हार के पीछे अहम कारणों में बढ़ती बेरोजगारी शुमार थी। लेकिन सच्चाई ठीक इसके उलट नजर आ रही है। बीते चार साल के दौरान मोदी सरकार के कार्यकाल में बेरोजगारी के आंकड़ों में सुधार का इंतजार जारी रहा। सरकार प्रॉविडेंट फंड के आंकड़े के जरिये साबित करना चाहती थी कि सितंबर 2017 और फरवरी 2018 के बीच ही 31 लाख नई नौकरियां पैदा की गई हैं, लेकिन सरकार के इस दलील लोगों को सहमत नहीं कर पाई। 
 
जब त्रिपुरा के मुख्यमन्त्री यह कहते हैं कि किसी स्नातक युवक को गाय पालकर उसका दूध बेचकर कुछ कमाना चाहिए, न कि नौकरी की तलाश करने में समय गंवाना चाहिए, तो वह अनजाने में ही इस सत्य को उजागर कर देता है कि सरकार तो खुद नौकरियां कम कर रही है। पूरे देश में सभी राज्यों में कम से कम पचास लाख से अधिक नौकरियों को जाम कर दिया गया है। इनमें महाराष्ट्र का नम्बर सबसे ऊपर है। यदि सभी राज्यों का ब्यौरा दिया जाए तो मध्य प्रदेश ऐसा दूसरा राज्य है जिसमें पिछले 15 साल में सरकारी नौकरी के नाम पर पूरी युवा पीढ़ी को जमकर दिग्भ्रमित किया गया है। उत्तर प्रदेश में तो रोडवेज से लेकर बिजली के दफ्तरों में भर्ती इस तरह बन्द है जैसे किसी बर्फ की दुकान पर गर्मी पड़ने से वह पानी हो जाती है। 
 
इस स्थिति की तरफ पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बहुत ही संजीदगी के साथ अपने अन्तिम कार्यकाल वर्ष में बेंगलुरु विश्वविद्यालय के दीक्षान्त समारोह को सम्बोधित करते हुए चेताया था। उन्होंने कहा था कि यदि हमने जनसांख्यिकी लाभ (डैमोग्रेफिक डिवीडेंड) को समय रहते सही दिशा में नहीं लगाया तो यह बहुत बड़ी देनदारी या बोझ (लाइबिलिटी) बन जाएगा। प्रणब दा का आशय यही था कि 65 प्रतिशत युवा जनसंख्या वाले देश की इस पीढ़ी को रोजगार के व्यापक साधन सुलभ कराने की कोशिशें पूरी मुस्तैदी के साथ शुरू की जानी चाहिएं मगर हम तो पकौड़े बेच कर रोजगार पाने के गुर बांट रहे हैं और अपनी पीठ थपथपा रहे हैं और ऐसे आंकड़े पेश करने से बाज नहीं आ रहे हैं जो किसी जासूसी उपन्यास का हिस्सा नजर आते हों। बेरोजगारी के इस विस्फोट को रोकने का कोई जादुई तरीका निश्चित रूप से नहीं हो सकता है।
 
एक तरफ मोदी सरकार देश में रोजगार बढ़ने का दावा कर रही है और दूसरी तरफ देश में बेरोजगारी की दर बढ़ती जा रही है। भारतीय अर्थव्यवस्था पर नजर रखने वाली निजी एजेंसी सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनॉमी (सीएमआईई) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, देश में पिछले एक साल में बेरोजगारी दर 70 प्रतिशत बढ़ चुकी है। रिपोर्ट के मुताबिक, जून 2018 में देश की बेरोजगारी दर 5.67 प्रतिशत हो चुकी है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार 2014 में देश में बेरोजगारी की दर 3.41 फीसदी थी जो अगले तीन सालों में बढ़ते हुए 3.49, 3.51 और 3.52 फीसदी हो गई। वैसे अर्थशास्त्रियों का मानना है कि किसी भी अच्छी अर्थव्यवस्था में चार फीसदी से ज्यादा बेरोजगारी ठीक नहीं होती है।
 
श्रम मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक भी अप्रैल 2018 आते-आते भारत दुनिया में सर्वाधिक बेरोजगारों वाला देश बन चुका है। हाल ही में आए आरबीआई के कंज्यूमर कांफिडेंस सर्वे के मुताबिक, 31.5 प्रतिशत लोगों को लगता है कि रोजगार के मौके बेहतर हुए हैं जबकि 24.4 प्रतिशत को लगता है कि इस मोर्चे पर कोई सुधार नहीं हुआ है और 44.1 प्रतिशत लोगों का मानना है कि रोजगार के मौके खत्म हुए हैं। हालांकि भारत में रोजगार पर किसी विश्वस्त और विस्तृत सर्वेक्षण के अभाव में इसकी सही स्थिति का आकलन कर पाना हमेशा से एक मुश्किल काम रहा है। लेकिन कुछ महीने पहले आई एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बीते चार सालों में केवल 36 लाख सालाना की दर से ही रोजगार पैदा हो पाए हैं। वहीं लेबर ब्यूरो के अनुसार अर्थव्यवस्था में आठ फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाले संगठित क्षेत्र में 2014 से 2016 के बीच तीन लाख से भी कम की औसत से रोजगार पैदा हुए हैं। हालांकि संगठित क्षेत्र के आकार और प्रधानमंत्री के वादे को देखते हुए इससे हर साल करीब 16 लाख रोजगार पैदा करने की जरूरत थी।
 
सरकार अकेले ही सारे रोजगार पैदा नहीं कर सकती। इसलिए सरकार उद्यमिता की भावना सुनिश्चित करने के लिए भी काम कर रहे हैं। स्टैंड अप, स्टार्ट अप इंडिया और मुद्रा योजनाओं को इसी दिशा में उठाए गए कदम के रूप में देखा जा सकता है। स्टार्ट अप इंडिया के अच्छे नतीजे देखने को मिल रहे हैं। आज हमारे देश में आइडिया और इनोवेशन की कोई कमी नहीं है। मौजूद समय में भारत दुनिया के टॉप पांच देशों की सूची में दूसरे नंबर पर है जहां करीब 9,500 से लेकर 10,500 स्टार्टअप कंपनियां मौजूद हैं और इस नए कैंपेन की घोषणा से सरकार आने वाले वर्षों र्में 30,000 स्टार्टअप्स बनाने का लक्ष्य तय कर रही है। उदाहरण के तौर पर ‘ओला कैब’ जो चार साल पुरानी स्टार्टअप कंपनी है पर यह आज छोटे-बड़े शहरों में कैब की सुविधा प्रदान कर रही है और इसने अब तक करीब दो लाख ड्राइवरों को रोजगार दिया है। विशेषज्ञों की राय है कि स्टैंड अप इंडिया जैसी पहल को अभी महज एक साल ही हुआ है इसलिये इसका आकलन फिलहाल जल्दबाजी होगा लेकिन इससे स्टार्टअप इकोसिस्टम को प्रोत्साहन जरूर मिला है।
 
यह तस्वीर का एक रूख है। रोजगार के मसले पर विपक्ष मोदी सरकार पर हमलावर मुद्रा में है। विपक्ष का आरोप है कि मेक इन इंडिया से लेकर डिजिटल इंडिया सिर्फ योजनाओं का नाम भर रहा, जमीन पर कुछ देखने को नहीं मिला। लेकिन मेक इन इंडिया का बेहतर परिणाम समझने के लिए इस आंकड़ों को जरूर जानना चाहिए। जब नरेंद्र मोदी की सरकार आई थी तो, भारत में दो मोबाइल बनाने की कम्पनी थीं, आज देश में 120 मोबाइल मैन्यूफैक्चरिंग इकाईयां लगी हुई हैं। अभी हाल ही में दुनिया की बड़ी मोबाइल निर्माता कंपनी सैमसंग ने उत्तर प्रदेश में विश्व की सबसे बड़ी उत्पादन इकाई की स्थापना की घोषणा की है। वहीं यूपी ने इंवेस्टर्स समिट का सफल आयोजन कर नयी आशा का संचार किया है।
 
रोजगार के मोर्चे पर चौतरफा वार झेल रही मोदी सरकार अब स्वरोजगार पाए लोगों का आंकड़ा भी रोजगार पाए लोगों की सूची में शामिल करने पर विचार कर रही है। ऐसा करने के पीछे सरकार की होशियारी देखिए कि इससे अगर ऐसा होता है तो पिछले चार साल में नौकरी पाने वालों की संख्या में आश्चर्यजनक इजाफा हो सकता है। इसके लिए केंद्रीय श्रम मंत्रालय द्वारा प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के जरिए ऋण लेकर स्वरोजगार करने वालों का आंकड़ा जोड़ने पर विचार किया जा रहा है। असल में श्रम ब्यूरो जो रोजगार पर आंकड़े जारी करता है, श्रम मंत्रालय के अधीन काम करता है। माना जा रहा है कि अगले साल यानी 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले मोदी सरकार श्रम ब्यूरो के आंकड़ों को लोगों के सामने रखकर अपनी पीठ थपथपाएगी।
 
जानकारों के मुताबिक बेरोजगारी दूर करने के लिए जरूरी है कि सबसे पहले सरकारी नौकरियों पर पड़े तालों को खोला जाए। आर्थिक मोर्चे पर तमाम अहम फैसलों व उपलब्धियों के बावजूद रोजगार के आंकड़े इस बात की चुगली करते हैं कि बीते चार सालों में कुल मिलाकर भी दो करोड़ रोजगार सृजित नहीं हो सके हैं। यही वजह है कि आलोचकों का मानना है कि केंद्र सरकार यदि दोबारा सत्ता में आना चाहती है तो उसे रोजगार बढ़ाने के लिए जल्द ही कुछ ठोस उपाय करने होंगे और ऐसा न हुआ तो नाराज युवा केंद्र की सत्ता में उसकी वापसी पर ग्रहण लगा सकते हैं।
 
-आशीष वशिष्ठ

नयी दिल्ली। भाजपा के पूर्व नेता और विचारक के एन गोविंदाचार्य ने शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मांग की है कि 1993 के कानून में सरकार अध्यादेश के द्वारा संशोधन करके राम जन्मभूमि परिसर की पूरी जमीन का अधिग्रहण करे जिससे अयोध्या में रामलला के भव्य मंदिर का निर्माण हो सके। पत्र में गोविंदाचार्य ने कहा है कि "राम जन्मभूमि की 2.77 एकड़ जमीन समेत पूरे परिसर की 67 एकड़ भूमि का स्वामित्व 1993 से केंद्र सरकार के पास है। केंद्र ने इसके लिए कानून बनाया था जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने 1994 के फैसले में मान्यता भी दे दी थी। भूमि के मिल्कियत विवाद में सरकार को भूमि अधिग्रहण का पूरा अधिकार है।"

गोविंदाचार्य ने कहा है कि "तत्कालीन नरसिंहा राव सरकार द्वारा बनाए गए उपरोक्त कानून में भूमि के इस्तेमाल पर लगाई गई पाबंदियों को भी उच्चतम न्यायालय ने सही ठहराया था। इसी वजह से मंदिर निर्माण में संवैधानिक अड़चन आ रही है।" उन्होंने मांग की है कि 1993 के कानून में सरकार अध्यादेश के द्वारा संशोधन करके राम जन्मभूमि परिसर की पूरी जमीन का अधिग्रहण करे जिससे रामलला के भव्य मंदिर का निर्माण हो सके। भाजपा के पूर्व नेता ने सरदार वल्लभभाई पटेल की मूर्ति के रिकॉर्ड समय में निर्माण के लिए देशवासियों की ओर से प्रधानमंत्री का आभार जताते हुए कहा कि "इसी तेजी के साथ अयोध्या में श्री राम मंदिर जन्म भूमि पर मंदिर का निर्माण भी हो जाए तो जनता द्वारा आपके लिए दिया गया ऐतिहासिक जनादेश सार्थक होगा।" 
 
गोविंदाचार्य ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले पर उच्चतम न्यायालय द्वारा वर्ष 2011 में लगाई गई रोक और इस मामले में अंतिम सुनवाई शुरू नहीं होने का उल्लेख करते हुए सरकार से इस मामले में औपचारिक पक्षकार बनकर पूरा पक्ष प्रस्तुत करने की मांग की है। गोविंदाचार्य ने कहा है कि सिविल प्रोसिजर कोड कानून के तहत जमीन की मिल्कियत के मुकदमे में भू स्वामी का पक्षकार होना जरूरी है तो फिर इस मुकदमे में केंद्र सरकार पार्टी बनकर राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त क्यों नहीं करती।गोविंदाचार्य ने कहा है कि राम की ऐतिहासिकता को अदालतों ने माना है और वर्तमान मामला सिर्फ भूमि की मिल्कियत का है। गर्भगृह के समीप स्थानों की पुरातत्व विभाग द्वारा की गई खुदाई में रामलला के प्राचीन मंदिर के अनेक अवशेष और प्रमाण मिले हैं। 

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