newscreation

newscreation

जम्मू-कश्मीर विधानसभा को भंग करने की राज्यपाल सत्यपाल मलिक की कार्रवाई ने पीडीपी, नेकां और कांग्रेस को तो इतना नहीं चौंकाया जितना उसने भाजपा को चौंकाया है क्योंकि सही मायनों में उन्होंने केंद्र में स्थापित भाजपा सरकार के उन कदमों को रोक दिया है जिसके तहत भाजपा सज्जाद गनी लोन के कांधों पर बंदूक रख कर सरकार बनाना चाहती थी और मात्र दो विधायक होने के बावजूद वे सरकार बनाने का दावा कर स्थिति को हास्यास्पद बना रहे थे।
 
इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि राज्यपाल के कदम से भाजपा का गणित गड़बड़ा गया है। जिस राज्यपाल को भाजपा ‘अपना आदमी’ बताती रही थी उनकी मदद से भाजपा का अप्रत्यक्ष सरकार बनाने का सपना इसलिए टूट गया क्योंकि विपक्ष ने ऐसा जाल फंसाया कि उसमें मलिक फंस कर रह गए। कुछ दिन पहले ही पीपुल्स कांफ्रेंस के सज्जाद लोन के नेतृत्व में सरकार गठन के लिए पीडीपी में बड़े विभाजन की रणनीति बन चुकी थी। तय योजना के तहत लोन शुक्रवार को सरकार बनाने का दावा पेश करने वाले थे। इसी योजना के तहत एक दिन पहले पीडीपी के कद्दावर नेता मुजफ्फर हुसैन बेग का बागी तेवर सामने आया, लेकिन बदल रहे समीकरणों को भांपते हुए उमर ने महबूबा से फोन पर संपर्क साधा और पासा पलट गया।
 
उमर-महबूबा संवाद से महागठबंधन सरकार की संभावना बढ़ी और पीडीपी के विभाजन की कोशिशें फेल होती दिखने लगीं। फिर दोनों पक्षों द्वारा सरकार बनाने के परस्पर दावों के बाद गवर्नर के लिए विधानसभा भंग करने का रास्ता साफ हो गया। राज्यपाल नई सरकार के गठन के संदर्भ में ही विचार विमर्श के लिए दिल्ली भी गए थे। तब सज्जाद लोन के नेतृत्व में भाजपा और पीडीपी के बंटे धड़े को मिलाकर नई सरकार के गठन का ब्लू प्रिंट तैयार हो चुका था, लेकिन उमर और महबूबा के बीच साझा सरकार पर सहमति को कांग्रेस आलाकमान की हरी झंडी के बाद समीकरण उलट पुलट हो गए। दरअसल मलिक भाजपा को लाभ पहुंचाना चाहते थे।
 
पर जब भाजपा को आभास हो गया कि इस हालात में उसके लिए सरकार बनाना संभव नहीं रह गया है तो उसने महबूबा द्वारा सरकार बनाने के दावे के ठीक बाद सज्जाद लोन से दावा पेश कराया। इससे राज्यपाल को विधानसभा भंग करने का पुख्ता आधार मिल गया। राजभवन के पास अब यह तर्क है कि मौजूदा हालात में विधायकों की खरीद फरोख्त की संभावना बढ़ सकती थी, लिहाजा विधानसभा भंग करने का कदम उठाया गया। वैसे राजनीतिक पंडित कहते थे कि सज्जाद लोन का दावा इस खरीद फरोख्त की पुष्टि करता था क्योंकि पीडीपी द्वारा लिखे गए पत्र में स्पष्ट था कि तीन राजनीतिक दल मिलकर सरकार बना रहे हैं और सज्जाद लोन के पत्र में स्पष्ट लिखा था कि उनके साथ पीडीपी के 18 विधायक हैं। इसे समझना कोई मुश्किल नहीं था कि विधायकों को कौन खरीदना चाहता था।
 
उमर ने मंगलवार रात को ही पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती से बातचीत की। उमर ने महबूबा को बताया कि अगर अब चुप रहीं तो उनकी पार्टी तो टूटेगी ही, साथ ही प्रदेश में भाजपा की सरकार काबिज हो जाएगी। उन्होंने अनुच्छेद 370 और 35 ए को बचाने के लिए महागठबंधन की सरकार के पक्ष में तर्क दिए। पार्टी में बगावत झेल रहीं महबूबा ने इससे सहमत होकर अल्ताफ बुखारी को बातचीत के लिए उमर के पास भेजा। इससे महागठबंधन सरकार की संभावना बढ़ी थी।
 
नई सरकार के गठन की कवायद में पीडीपी ही मुख्य धुरी थी। पीडीपी के बिना महागठबंधन की सरकार संभव नहीं थी। दूसरी ओर भाजपा भी पीडीपी के विभाजन के बाद बंटे धड़े के साथ मिलकर सरकार बनाने का सपना पाल रही थी। यही कारण है कि सरकार के गठन के मुद्दे पर महबूबा ने चुप्पी तोड़ी और दावा पेश किया, लेकिन यह प्रयास विफल हो गया।
 
आंकड़ों का गणित महागठबंधन के पक्ष में दिख रहा था। जम्मू-कश्मीर की 89 सीटों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए 44 का आंकड़ा चाहिए जबकि भाजपा के पास सिर्फ 25 विधायक थे। सज्जाद लोन के दो और एक निर्दलीय को मिलाकर भाजपा 28 के आंकड़े तक पहुंच रही थी। भाजपा की आस पीडीपी के विभाजन पर टिकी थी। दूसरी ओर पीडीपी के 28, कांग्रेस के 12 और नेकां के 15 विधायक थे। तीन निर्दलीय भी इसी महागठबंधन के करीब थे। इस तरह आकंड़ा आसानी से 58 तक पहुंच रहा था।
 
याद रहे पहली बार वर्ष 2014 के विधानसभा में भाजपा को 25 सीटें मिली थीं। उसकी सहयोगी पीपुल्स कांफ्रेंस को दो सीटें मिलीं। भाजपा का पूरा जनाधार सिर्फ जम्मू में ही है। कांग्रेस ने कभी भी कश्मीर केंद्रित सियासत का विरोध नहीं किया था। इसके अलावा कश्मीर में नेकां के विकल्प के तौर पर उभर कर सामने आई पीडीपी ने 28 सीटें प्राप्त कीं। नेकां और कांग्रेस की सियासत के खिलाफ यह जनादेश था। बेशक पीडीपी और भाजपा के राजनीतिक एजेंडे परस्पर विरोधी थे, लेकिन प्रयोग के तौर पर दोनों के बीच एजेंडा ऑफ एलांयस के आधार पर पहली मार्च 2015 में सरकार बनाई गयी। हालांकि चुनाव परिणाम 28 दिसंबर 2014 को घोषित हो चुके थे।
 
खैर, सरकार बनी और इसे दो ध्रुवों का मेल कहा गया जो 7 जनवरी 2016 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ्ती सईद के निधन के बाद भंग हो गया। लेकिन 4 अप्रैल को फिर भाजपा-पीडीपी में समझौते के बाद महबूबा मुफ्ती ने गठबंधन सरकार संभाली। महबूबा की नीतियां पूरी तरह कश्मीर केंद्रित होने लगीं और राज्य में हालात सामान्य बनाए रखने की मजबूरी में भाजपा उसके पीछे चलती नजर आ रही थी। कश्मीरी पंडितों की वापसी, सैनिक कालोनी का निर्माण, पत्थरबाजों की माफी, बुरहान वानी की मौत के बाद वादी में पैदा हालात और उसके बाद रमजान सीज फायर। हरेक जगह महबूबा मुफ्ती नाकाम नजर आईं। खुद उनकी पार्टी पीडीपी में लोग उनकी नीतियों से नाखुश थे जो इसी साल जून में भाजपा गठबंधन सरकार के भंग होने के साथ खुलकर सामने आए। रही सही कसर धारा 35-ए और धारा 370 पर अदालत में जारी विवाद को लेकर कश्मीर में शुरु हुई सियासत ने पूरी कर दी। निकाय व पंचायत चुनावों से दोनों दलों की दूरियां बढ़ गईं।
 
इसी बीच, राज्य में तीसरे मोर्चे के गठन की प्रक्रिया शुरु हुई। ऐसे में पीडीपी एकदम सरकार बनाने के लिए सक्रिय हुई। उसने नेकां और कांग्रेस को साथ मिलाकर सरकार बनाने के लिए राजी भी कर लिया। हालांकि खुद गुलाम नबी आजाद ने कहा कि कांग्रेस ने कोई समर्थन नहीं दिया है। अगर यह दल मिलकर सरकार बनाते तो जम्मू संभाग में एक वर्ग विशेष ही नहीं लद्दाख में भी बहुत से लोग उपेक्षित रहते। ऐसे में आशंका थी कि अलगाववादी ताकतें मुनाफे में रहतीं।
 
-सुरेश डुग्गर

 

जम्मू। भाजपा की जम्मू कश्मीर इकाई ने बृहस्पतिवार को दोहराया कि कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) और पीडीपी के साथ राष्ट्र विरोधी ताकतों के हाथों में खेल रही है। भाजपा ने कहा कि राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने राज्य विधानसभा भंग करके उनके ‘‘कुटिल मंसूबों’’ को विफल कर दिया है।

 
पीडीपी ने प्रतिद्वंद्वी नेकां और कांग्रेस के समर्थन से राज्य में सरकार बनाने का दावा पेश किया था और इसके बाद बुधवार की रात राज्यपाल ने विधानसभा भंग कर दी। भाजपा की राज्य इकाई के अध्यक्ष रवीन्द्र रैना ने यहां पत्रकारों से कहा,‘‘कांग्रेस राष्ट्र विरोधी ताकतों के हाथों में खेल रही है। कांग्रेस, नेकां और पीडीपी के साथ मिलकर लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ साजिश कर रहे है। राज्यपाल ने उनके कुटिल मंसूबों को विफल कर दिया है।’’ 
 

पणजी। बीमार चल रहे गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर पद से त्यागपत्र देना चाहते थे लेकिन भाजपा आला कमान ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। गोवा फारवर्ड पार्टी के प्रमुख और राज्य के कृषि मंत्री विजय सरदेसाई ने गुरूवार को यह जानकारी दी। 

 
उन्होंने कहा, ‘‘ वह (पर्रिकर) मुख्यमंत्री पद छोड़ना चाहते थे। जब वह गणेश चतुर्थी पर्व पर अस्पताल में भर्ती हुये तो उन्होंने अपने सभी मंत्रालय अन्य मंत्रियों को सौंपने की इच्छा जाहिर की थी। लेकिन उसके बाद कई चीजें हुईं। भाजपा आलाकमान ने इसमें हस्तक्षेप किया। त्यागपत्र देना या न देना पूरी तरह से उनके (पर्रिकर) के हाथ में नहीं था।’’ 
 
गौरतलब है कि पर्रिकर अग्नेयाशय की बीमारी से पीडि़त हैं और नई दिल्ली के एम्स से उन्हें 14 अक्टूबर को छुट्टी दी गई थी तब से वे घर पर स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं। एक सवाल के जबाव में उन्होंने स्वीकार किया कि सरकार के कामकाज पर पर्रिकर की खराब सेहत का असर पड़ा है।

नयी दिल्ली। सोहराबुद्दीन शेख और तुलसीराम प्रजापति की कथित फर्जी मुठभेड़ के संदर्भ में सीबीआई के एक प्रमुख जांच अधिकारी के इकबालिया बयान संबंधी खबर को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने बृहस्पतिवार को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पर हमला बोला और कहा कि शाह सच से नहीं भाग सकते। इस पर पलटवार करते हुए केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि क्या‘झूठ की मशीन’ और ‘बेल धारक’ को याद नहीं है कि शाह बरी किए जा चुके हैं।

गांधी ने एक खबर शेयर करते हुए ट्वीट किया, ‘‘गीता में कहा गया है कि आप सच से कभी नहीं भा सकते और यह हमेशा से रहा है। संदीप तमगादगे ने अपने इकबालिया बयान में अमित शाह को मुख्य षड़यंत्रकारी बताया है। इस तरह के व्यक्ति का अध्यक्ष होना भाजपा के लिए पूरी तरह अनुचित है।’’ उन्होंने जो खबर शेयर की है उसमें एक सीबीआई जांच अधिकारी के हवाले से कहा गया है कि प्रजापति की मुठभेड़ में अमित शाह ‘मुख्य षड़यंत्रकारी’ हैं।
 
गांधी पर पलटवार करते हुए स्मृति ईरानी ने कहा, ‘‘झूठ की मशीन राहुल गांधी फिर से ऐक्शन में आ गए हैं। वह जानते हैं कि अदालत श्री अमित शाह को 2014 में बरी कर चुकी है। अदालत ने यह भी कहा था कि राजनीतिक कारणों से सीबीआई ने अमित शाह को फंसाया था। राहुल बताएंगे कि संप्रग सरकार में किसके आदेश पर यह हुआ था?’’ उन्होंने पूछा , ‘‘क्या नेशनल हेराल्ड लूट ‘बेल धारक’ राहुल गांधी को यह याद नहीं है कि उन्होंने अमित भाई को बरी किए जाने को चुनौती देने के लिए (कपिल) सिब्बल को भेजा था और याचिका खारिज हो गई?’’ 
 
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे पूरा विश्वास है कि अगर राहुल गांधी ने जिंदगी में एक बार भी गीता खोली होती तो वह इस तरह के कोरे झूठ में नहीं पड़ते।’’ गौरतलब है कि इस मामले में अमित शाह और कुछ अन्य लोग बरी हो चुके हैं।

पटना। सीट बंटवारे के मुद्दे पर पिछले सप्ताह राजग को 30 नवंबर तक का समय देने वाले केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने बृहस्पतिवार को कहा कि वह अंत तक चुप्पी बनाए रखेंगे और जवाब मिलने पर उस तारीख के बाद अपना जवाब देंगे। उन्होंने दिल्ली जाते समय हवाई अड्डा पहुंचे पत्रकारों के सवालों पर टिप्पणी करने से मना कर दिया।

 
उन्होंने कहा, ‘‘30 नवंबर तक मैं चुप रहूंगा। मैं जवाब मिलने के बाद उस तारीख के बाद ही बोलूंगा।’’ काराकाट लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में उनकी पत्नी के दौरे के बारे में सवाल पूछे जाने पर कुशवाहा ने मजाक में कहा ‘‘आप मुझे वहां से क्यों हटवाना चाहते हैं।’’
 
उनकी पत्नी के काराकाट के दौरे के बाद अटकलें लगायी जा रही थी कि वह 2019 में वहां से चुनाव लड़ सकती हैं।बहरहाल, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के बागी सांसद अरूण कुमार ने बृहस्पतिवार को पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी से मुलाकात की। 

नयी दिल्ली। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं केंद्रीय मंत्री उमा भारती के संदर्भ पार्टी के वरिष्ठ नेता सीपी जोशी के कथित विवादित बयान को खारिज करते हुए शुक्रवार को कहा कि जोशी को खेद प्रकट करना चाहिए। उन्होंने जोशी के कथित बयान को कांग्रेस के आदर्शों के विरुद्ध करार दिया।

गांधी ने ट्वीट कर कहा, 'सी पी जोशी जी का बयान कांग्रेस पार्टी के आदर्शों के विपरीत है। पार्टी के नेता ऐसा कोई बयान न दें जिससे समाज के किसी भी वर्ग को दुःख पहुँचे।' उन्होंने कहा, 'कांग्रेस के सिद्धांतों, कार्यकर्ताओं की भावना का आदर करते हुए जोशीजी को जरूर गलती का अहसास होगा। उन्हें अपने बयान पर खेद प्रकट करना चाहिए।' 
 
सोशल मीडिया एवं कुछ चैनलों पर प्रसारित वीडियो में के मुताबिक जोशी प्रधानमंत्री मोदी एवं उमा भारती की जाति पर कथित तौर पर सवाल करते हुए कह रहे हैं कि धर्म पर केवल ब्राह्मण ही बात कर सकते हैं। कहा जा रहा है कि यह जोशी ने यह कथित बयान राजस्थान के नाथद्वारा में दिया है जहाँ से वह विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं।
 
विवाद बढ़ने पर सीपी जोशी ने ट्वीट कर भाजपा पर उनके बयान को तोड़-मोड़कर पेश करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि बीजेपी ने उनके बयान को गलत तरीके से पेश किया है, वो इसकी कड़ी निंदा करते हैं।
नई दिल्ली। (इंडिया साइंस वायर): योग हृदय रोगियों को दोबारा सामान्य जीवन जीने में मदद कर सकता है। लंबे समय तक किए गए क्लीनिकल ट्रायल के बाद भारतीय शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे हैं। इस ट्रायल के दौरान हृदय रोगों से ग्रस्त मरीजों में योग आधारित पुनर्वास (योगा-केयर) की तुलना देखभाल की उन्नत मानक प्रक्रियाओं से की गई है। हृदय रोगों से ग्रस्त मरीजों में योगा-केयर के प्रभाव का आकलन करने के लिए देशभर के 24 स्थानों पर यह अध्ययन किया गया है।
 
लगातार 48 महीनों तक चले इस अध्ययन में अस्पताल में दाखिल अथवा डिस्चार्ज हो चुके चार हजार हृदय रोगियों को शामिल किया गया है। ट्रायल के दौरान तीन महीने तक अस्पतालों और मरीजों के घर पर योगा-केयर से जुड़े प्रशिक्षण सत्र आयोजित किए गए थे। दस या उससे अधिक योगा-केयर प्रशिक्षण सत्रों में उपस्थित रहने वाले मरीजों के स्वास्थ्य में अन्य मरीजों की अपेक्षा अधिक सुधार देखा गया। अध्ययन के दौरान मरीजों के अस्पताल में दाखिल होने की दर और मृत्यु दर में कमी को इसके प्रभावों के रूप में देखा जा रहा है।
 
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डॉ. दोरईराज प्रभाकरन के अनुसार, “योगा-केयर हृदय रोगियों के रिहेब्लिटेशन का एक सुरक्षित और कम खर्चीला विकल्प हो सकता है। इसमें प्रशिक्षक को छोड़कर किसी तरह के संसाधन की जरूरत भी नहीं पड़ती।” योगा-केयर योग आधारित थेरेपी है, जिसे हृदय रोग विशेषज्ञों और अनुभवी योग प्रशिक्षकों की मदद से हृदय रोगियों को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया है। ध्यान, श्वास अभ्यास, हृदय अनुकूल चुनिंदा योगासन और जीवन शैली से संबंधित सलाह इसमें शामिल हैं। इस अध्ययन में शामिल नियंत्रित समूहों को सामान्य जीवन शैली अपनाये जाने की सलाह दी गई थी।
 
यह अध्ययन पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है। इससे संबंधित शोधपत्र रविवार को शिकागो में आयोजित अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के साइंटिफिक सेशन में पेश किया गया है। अध्ययनकर्ताओं के अनुसार, जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने में सहायक योगा-केयर की मदद से मरीज फिर से उन्हीं गतिविधियों को कर सकते हैं, जो हार्टअटैक से पूर्व करने में वे सक्षम थे। यह अध्ययन भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद द्वारा दिए गए अनुदान पर आधारित है।
 
भारत में हृदय रोगियों की संख्या वर्ष 1990 में एक करोड़ थी। वर्ष 2016 के आंकड़ों के मुताबिक यह संख्या 2.4 करोड़ हो गई है। लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन ऐंड ट्रॉपिकल मेडिसिन से जुड़े इस अध्ययन से जुड़े एक अन्य शोधकर्ता प्रोफेसर संजय किनरा के मुताबिक, “हृदय संबंधी रोगों से संबंधित चिकित्सा देखभाल में सुधार के कारण हार्टअटैक के मरीजों को समय रहते उपचार मिल जाए तो ज्यादातर लोग मरने से बच जाते हैं। इसीलिए, अब हार्टअटैक से उबर चुके मरीजों के गुणवत्तापूर्ण जीवन की ओर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।”
नई दिल्ली। (इंडिया साइंस वायर): भारतीय वैज्ञानिकों ने रोगों एवं कीटों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता रखने वाली अरहर की कई जंगली प्रजातियों का पता लगाया है। इन प्रजातियों के अनुवांशिक गुणों का उपयोग कीट तथा रोगों से लड़ने में सक्षम और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल अरहर की नयी प्रजातियां विकसित करने में किया जा सकता है। दलहन उत्पादन में बढ़ोत्तरी और पोषण सुरक्षा में सुधार के लिए ये प्रजातियां उपयोगी हो सकती हैं।
 
अरहर की इन प्रजातियों में दस संकरण योग्य प्रजातियों के अलावा कुछ ऐसी प्रजातियां भी शामिल हैं, जिनका संकरण नहीं किया जा सकता। हैदराबाद स्थित इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टिट्यूट फॉर द सेमी एरिड ट्रॉपिक्स (इक्रीसैट) के वैज्ञानिक कैजनस वंश के पौधों के गुणों का अनुवांशिक अध्ययन करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं। पौधों का कैजनस वंश फैबेसीए पादप परिवार का सदस्य है। इसकी प्रजातियों में अरहर (कैजनस कैजन) भी शामिल है। कैजनस कैजन एकमात्र अरहर की प्रजाति है जिसकी खेती दुनिया भर में की जाती है।
 
इक्रीसेट की प्रमुख शोधकर्ता डॉ. शिवाली शर्मा के अनुसार, “किसानों द्वारा आमतौर पर उगायी जाने वाली अरहर की किस्मों में बार-बार होने वाले रोगों, नयी बीमारियों तथा कीटों के लिए बहुत लचीलापन होता है। अरहर की जो जंगली प्रजातियां अब मिली हैं, वे विभिन्न बीमारियों और कीटों से लड़ने की क्षमता रखती हैं। इन प्रजातियों के गुणों का उपयोग करके नयी नस्लों का विकास किया जा सकता है। इस तरह किसानों के जीवन यापन में सुधार, पोषण सुरक्षा और उत्पादन में बढ़ोत्तरी की जा सकती है।”
 
अरहर अनुसंधान से जुड़ी यह पहल भारत-म्यांमार अरहर कार्यक्रम का हिस्सा है। ग्लोबल क्रॉप डाइवर्सिटी ट्रस्ट (जीसीडीटी) के सहयोग से संचालित इस परियोजना के अंतर्गत भारत और म्यांमार के विभिन्न कृषि क्षेत्रों और सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों में पौधों की प्री-ब्रीडिंग गतिविधियों का मूल्यांकन किया गया है। अगले दो वर्षों में भारत और म्यांमार के विभिन्न स्थानों पर इन प्रजातियों के अनुकूलन का परीक्षण किया जाएगा।
 
किसी जंगली पौधे के गुणों और उसकी अनुवांशिक विशेषताओं की पहचान के लिए अपनायी जाने वाली गतिविधियों को प्री-ब्रीडिंग कहा जाता है। प्लांट ब्रीडर जंगली पौधों में मिले वांछित गुणों अथवा अनुवांशिक विशेषताओं को प्रचलित पौधों की प्रजातियों में स्थानांतरित करके पौधों की नयी किस्मों का विकास करते हैं।
 
डॉ. शर्मा के मुताबिक, “वैज्ञानिक पौधों के विशिष्ट जर्म प्लाज्म के संग्रह का उपयोग पौधों की नयी नस्लों के विकास के लिए करते हैं। नयी नस्लों के विकास के लिए इनका उपयोग बार-बार होने से विकसित फसल की नस्लों का अनुवांशिक आधार सीमित हो जाता है। इस तरह फसलों के सीमित अनुवांशिक आधार के कारण वे आपदाओं के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। अरहर के साथ भी इसी तरह की समस्या रही है। फसलों की अनुवांशिक विविधता और उसके आधार पर नयी किस्मों का विकास इस तरह की चुनौतियों से लड़ने में मददगार हो सकता है।”
 
इस अध्ययन में इक्रीसैट के वैज्ञानिकों के अलावा तेलंगाना स्टेट यूनिवर्सिटी, आचार्य एनजी रंगा एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी और म्यांमार के डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च के शोधकर्ता शामिल हैं।

 

 
अभी ज्यादा दिन नहीं हुए थे जब सेना प्रमुख जनरल विपिन रावत ने एक कार्यक्रम के दौरान पंजाब में खालिस्तान लहर के दोबारा उभरने के संकेत दिए थे। उनका यह बयान बेवजह नहीं था क्योंकि अगर हम पंजाब में अभी कुछ ही महीनों में घटित होने वाली घटनाओं पर नजर डालेंगे तो समझ में आने लगेगा कि पंजाब में सब कुछ ठीक नहीं है। बरसों पहले जिस आग को बुझा दिया गया था उसकी राख में फिर से शायद किसी चिंगारी को हवा देने की कोशिशें शुरू हो गईं हैं।
 
जी हाँ पंजाब की खुशहाली और भारत की अखंडता आज एक बार फिर कुछ लोगों की आँखों में खटकने लगी है। 1931 में पहली बार अंग्रेजों ने सिक्खों को अपनी हिंदुओं से अलग पहचान बनाने के लिए उकसाया था। 1940 में पहली बार वीर सिंह भट्टी ने "खालिस्तान" शब्द को गढ़ा था। इस सबके बावजूद 1947 में भी ये लोग अपने अलगाववादी इरादों में कामयाब नहीं हो पाए थे। लेकिन 80 के दशक में पंजाब अलगाववाद की आग में ऐसा झुलसा कि देश लहूलुहान हो गया। आज एक बार फिर उसी आतंक के पुनः जीवित होने की आहट सुनाई दे रही है।
 
क्योंकि हाल ही में कश्मीर के कुख्यात आतंकी जाकिर मूसा समेत जैश ए महोम्मद के 6-7 आतंकवादियों के पंजाब में दाखिल होकर छुपे होने की खुफिया जानकारी मिली थी। इसके कुछ ही दिन बाद 2016 के पठानकोठ हमले की तर्ज पर चार संदिग्ध एक बार फिर पठानकोठ के पास माधोपुर से एक इनोवा कार लूट लेते हैं। इसके अलावा पंजाब पुलिस के हाथ भीड़ भाड़ वाले स्थानों पर हमले और कुछ खास नेताओं की टारगेट किलिंग की तैयारी कर रहे खालिस्तान गदर फ़ोर्स के आतंकी शबनम दीप सिंह लगता है जो कि पाकिस्तान खुफिया अधिकारी जावेद वज़ीर खान के संपर्क में भी था।
 
इतना ही नहीं पंजाब पुलिस की काउंटर इनटेलीजेंस विंग भी आईएसआई के एक एजेंट इंद्रजीत सिंह को मोहाली से गिरफ्तार करती है। अभी ज्यादा दिन नहीं हुए थे जब पंजाब और जम्मू-कश्मीर पुलिस की संयुक्त कार्यवाही में जालंधर के एक कॉलेज के हॉस्टल से तीन "कश्मीरी छात्रों" को ए के 47 और विस्फोटक सामग्री के साथ गिरफ्तार किया जाता है। इनमें से एक यूसुफ रफ़ीक़ भट्ट, ज़ाकिर मूसा का भतीजा है। जी हाँ  वही मूसा जो कि भारतीय सुरक्षा बलों का "मोस्ट वांटेड" है और भारतीय सेना ने उस पर 12 लाख का ईनाम घोषित किया है। और आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस घटना के बाद पंजाब के अन्य कई कॉलेजों से कश्मीरी छात्र भूमिगत हो जाते हैं।
 
और अब अमृतसर में निरंकारी सत्संग पर आतंकवादी हमला होता है जिसमें तीन लोगों की मौत जाती है और 20 घायल। अगर आपको लगता है कि ये कड़ियाँ आपस में नहीं मिल रहीं तो कुछ और जानकारियाँ भी हैं। इसी साल 12 अगस्त को लंदन में एक खालिस्तान समर्थक रैली का आयोजन होता है। और सबसे महत्वपूर्ण बात कि, इन घटनाओं के समानांतर सिख फ़ॉर जस्टिस नाम का एक अलगाववादी संगठन रेफरेंडम 2020 यानी खालिस्तान के समर्थन में जनमत संग्रह कराने की मांग जोर शोर से उठाने लगता है। कहने की आवश्यकता नहीं कि इसे आईएसआई का समर्थन प्राप्त है, जो इसे 6 जून 2020 को लान्च करने की योजना बना रहा है। जानकर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि यह तारीख कोई संयोग नहीं, ऑपरेशन ब्लू स्टार की 30वीं बरसी है। इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि कनाडा, अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों में रहने वाले सिखों को एकजुट करके पाकिस्तान अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने की कोशिशों में लगा है।
 
इसी साल के आरंभ में जब कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रुडो भारत आए थे तो पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने उन्हें कनाडा में खालिस्तान आंदोलन फैलाने वाले लोगों के नाम की सूची सौंपी थी। दरअसल घाटी में आतंकी संगठनों पर सेना के बढ़ते दबाव के कारण वे अब पंजाब में अपने पैर जमाने की कोशिश कर रहे हैं। पंजाब के कॉलेजों से कश्मीरी युवकों का आधुनिक हथियारों के साथ पकड़ा जाना इस बात का सबूत हैं।
और अब आतंकवादी घटना को अंजाम देने के लिए निरंकारी भवन जैसे स्थान को चुनना इत्तेफाक नहीं एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। इस बहाने ये लोग सिख समुदाय और निरंकारी मिशन के बीच मतभेद का फायदा उठाकर पंजाब को एक बार फिर आतंकवाद की आग में झुलसने की कोशिश कर रहे हैं।
 
असल में घाटी से पलायन करने के लिए मजबूर आतंकी अब पंजाब में पनाह तलाश रहे हैं। घाटी में उनकी दयनीय स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जो कल तक "कश्मीर की आज़ादी" की दुहाई देकर आतंक फैलाने के लिए, सैनिकों का अपहरण और हत्या करते थे आज कश्मीर के ही बच्चों का अपहरण और हत्याएं कर रहे हैं (मुखबिरी के शक में)। यह स्थिति भारतीय सेना के समक्ष उनके द्वारा अपनी हार को स्वीकार करने और उससे उपजी निराशा को व्यक्त करने जैसा है।
 
कश्मीर का युवा अब बंदूक छोड़ कर अपने हाथों में लैपटॉप लेकर इन्हें अपना जवाब दे चुका है अब बारी पंजाब के लोगों की है। सरकार और सुरक्षा एजेंसियाँ अपना काम कर रही हैं लेकिन जवाब पंजाब के लोगों को देना है। और ये जवाब लड़कर नहीं, शांत रह कर देना है। अपने खेतों को हरा भरा रख कर देना है। उनकी हर साजिश को अपनी समझदारी से नाकाम कर देना है। जो पंजाब आतंक की गलियों को, खून से सने खेतों को, हथियारों के जखीरों को, बारूद की चिंगारियों को, घर घर जलती लाशों को, टूटती चूड़ियों की आवाजों को, उजड़ती मांगों को, अनाथ होते बच्चों के आंसूओं को बहुत पीछे छोड़ आया है, निस्संदेह आज उसे भूला नहीं है।
 
आज पंजाब भले ही खुशहाल है लेकिन जो सिसकियाँ खिलखिलाहट में बदल चुकी हैं उन्हें वो भूला नहीं है और भूलना भी नहीं चाहिए। तभी शायद वो उसकी आहट को बहुत दूर से ही पहचान चुका है। इसलिए आतंकवाद को जवाब देश का आवाम देगा, पंजाब का बच्चा बच्चा देगा।
 
डॉ. नीलम महेंद्र

Ads

फेसबुक