मुस्लिम जिसके वोटबैंक बने रहे वो पार्टी उन्हें गटर में ही रखना चाहती थी ! Featured

सबका विश्वास जीतने में जुटी मोदी सरकार ने अल्पसंख्यकों के प्रति कांग्रेस की सोच को एक बार फिर उजागर कर दिया है जिससे नया राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है। संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण की चर्चा का जवाब देते हुए कहा था कि राजीव गांधी के कार्यकाल में हुए शाहबानो केस के दौरान एक तत्कालीन मंत्री से कांग्रेस नेताओं ने मुस्लिमों को गटर में रहने देने की बात कही थी। हालांकि प्रधानमंत्री ने उस तत्कालीन केंद्रीय मंत्री का नाम नहीं लिया था लेकिन हम आपको बता दें कि वह मंत्री थे आरिफ मोहम्मद खान जोकि राजीव गांधी सरकार में गृह राज्यमंत्री थे।
दरअसल मामला यह था कि 23 अप्रैल 1985 को तीन तलाक के केस में उच्चतम न्यायालय ने एक मुस्लिम महिला शाह बानो के पक्ष में फैसला सुनाया था, जिसके पति ने उसे तीन तलाक दे दिया था। उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद उस समय की कांग्रेस सरकार को अपने मुस्लिम वोट बैंक के खिसकने का डर पैदा हो गया और प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अदालत के फैसले को संसद में अपने बहुमत की मदद से पलट दिया। इससे नाराज होकर आरिफ मोहम्मद खान ने गृह राज्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा देने वाले दिन तो आरिफ मोहम्मद खान ने किसी से संपर्क नहीं किया लेकिन इसके अगले दिन जब वह संसद भवन पहुँचे तो उन्हें मनाने के लिए अरुण सिंह, अरुण नेहरू और तत्कालीन गृहमंत्री पीवी नरसिम्हा राव भी आये। नरसिम्हा राव ने कथित रूप से आरिफ मोहम्मद खान से कहा, 'तुम इतनी जिद्द क्यों करते हो। कांग्रेस पार्टी मुसलमानों का सामाजिक सुधार करने के लिए नहीं है और न ही तुम हो इसलिए तुम ऐसा क्यों कर रहे हो।' आरिफ मोहम्मद खान ने अपने इस साक्षात्कार में बताया था कि इसके बाद नरसिम्हा राव ने कहा कि उनसे कहा था कि 'अगर कोई गटर में पड़े रहना चाहता है तो रहने दो।' इसी बात को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में बताया और अब आरिफ मोहम्मद खान ने इस बात की पुष्टि भी कर दी है कि एक टीवी समाचार चैनल के कार्यक्रम 'प्रधानमंत्री' में उन्होंने वह बात कही थी जिसका जिक्र प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में किया है। 
 
मोदी सरकार कर रही है अल्पसंख्यकों का भी विकास
 
छात्रवृत्ति
 
जहाँ तक कांग्रेस की ओर से मोदी सरकार पर यह आरोप लगाये जाते हैं कि उसके राज में अल्पसंख्यकों के साथ नाइंसाफी हो रही है तो यह जान लेना जरूरी है कि दोबारा सरकार बनाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो शुरुआती फैसले लिये उनमें एक प्रमुख फैसला यह है कि अल्पसंख्यक वर्ग के पांच करोड़ विद्यार्थियों को अगले पांच साल में 'प्रधानमंत्री छात्रवृत्ति' दी जायेगी। इन पांच करोड़ विद्यार्थियों में आधी संख्या यानि ढाई करोड़ छात्रवृत्तियां छात्राओं को दी जायेंगी। इस योजना का लाभ लेने की प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी भी बनाया गया है।
 
हज सब्सिडी का छल खत्म
 
यही नहीं मोदी सरकार ने हज सब्सिडी के छल को ख़त्म कर दिया है। खास बात यह है कि हज सब्सिडी खत्म होने से किसी भी हज यात्री की जेब पर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ा है। इस साल देश भर के 21 हवाई अड्डों से 500 से ज्यादा उड़ानों के जरिये रिकॉर्ड दो लाख भारतीय मुसलमान बिना किसी सब्सिडी के हज पर जा सकेंगे। यह सऊदी अरब सरकार के साथ सुधारे गये संबंधों का ही नतीजा है कि भारत का हज कोटा दो लाख कर दिया गया है और आजादी के बाद पहली बार उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, बिहार सहित देश के सभी बड़े प्रमुख राज्यों से सभी हज आवेदक हज 2019 पर जा रहे हैं।
तीन तलाक से मुक्ति दिलाने के प्रयास
 
इसके अलावा मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक के अभिशाप से मुक्ति दिलाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कितने प्रतिबद्ध हैं यह इसी बात से पता लग जाता है कि 17वीं लोकसभा के गठन के बाद मोदी सरकार द्वारा जो पहला विधेयक पेश किया गया है वह है तीन तलाक पर रोक का प्रावधान करने वाला मुस्लिम महिला विवाद अधिकार संरक्षण विधेयक। यदि इस बार यह विधेयक दोनों सदनों में पारित हो जाता है तो वर्तमान में लागू अध्यादेश का स्थान लेगा। प्रधानमंत्री ने हमला करते हुए कहा भी है कि महिला सशक्तिकरण के लिए कांग्रेस को कई बड़े मौके मिले, लेकिन हर बार वो चूक गए। 1950 में समान नागरिक संहिता के दौरान वह पहला मौका चूके और उसके 35 साल बाद शाहबानो मामले के दौरान एक और मौका गंवा दिया। अब तीन तलाक विरोधी विधेयक के रूप में इनके पास एक और मौका है। देखना होगा कि कांग्रेस अब क्या फैसला लेती है क्योंकि कई राज्यों में खासकर केरल और तमिलनाडु में उसे मुस्लिमों के अच्छे वोट मिले हैं।
 
कांग्रेस के आरोप
 
जहाँ तक कांग्रेस की बात है तो उसने मोदी सरकार को उसके दूसरे कार्यकाल में भी घेरना शुरू कर दिया है। पार्टी का कहना है कि अगर देश में भीड़ की हिंसा जारी रही तो उनके भरोसे को कैसे जीता जा सकता है। राष्ट्रपति अभिभाषण पर पेश धन्यवाद प्रस्ताव पर उच्च सदन में हुयी चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस सदस्य दिग्विजय सिंह ने भाजपा पर सांप्रदायिकता फैलाने का आरोप भी लगाया और कहा कि देश में सांप्रदायिकता का जहर कूट कूट कर भर दिया गया है जिसे हटाना आसान नहीं होगा। उन्होंने कहा कि सांप्रदायिकता का असर यह है कि लोकसभा तक में धार्मिक नारे लग रहे हैं।
 
दूसरी ओर असद्दुदीन ओवैसी कह रहे हैं कि आपको शाहबानो याद रही लेकिन अखलाक को भूल गये। लेकिन यहां यह ध्यान दिलाने की जरूरत है कि जब अखलाक की हत्या हुई उस समय उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का शासन था। साल 2015 में अखलाक के साथ जो हुआ उसे किसी भी तर्क से सही नहीं ठहराया जा सकता। यह ध्यान रखना चाहिए कि अखलाक के आरोपी इस समय कानून की गिरफ्त में हैं और इस तरह के मामले रुकें इसके लिए सरकारों की ओर से पर्याप्त कानूनी प्रबंध किये गये हैं।
 
बहरहाल, हाल ही में झारखंड में जो जबरन नारे लगवाने की घटना सामने आई थी वह सचमुच सभ्य समाज के माथे पर बड़ा कलंक है। अल्पसंख्यकों का उत्थान करना है तो उनके लिए मात्र सरकारी योजनाओं की ही नहीं बल्कि उनके संरक्षण की भी जरूरत है। उम्मीद की जा सकती है कि भारत की 20 करोड़ की मुस्लिम आबादी सम्मान के साथ उन्मुक्त होकर जी सकेगी क्योंकि यह सरकार किसी के तुष्टिकरण में नहीं बल्कि 'सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास' के मूलमंत्र के पालन की बात करती है। जहाँ तक कांग्रेस की बात है तो एक बात तो दिख रही है कि मुस्लिमों को वोट बैंक के रूप में उपयोग करती रही इस पार्टी ने उनके उत्थान में कभी भी ज्यादा रुचि नहीं दिखाई।
 
-नीरज कुमार दुबे
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