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मुंबई। उच्चतम न्यायालय ने इस बार दिवाली में प्रदूषण को कम करने के मकसद से सिर्फ ‘ग्रीन पटाखे’ या आतिशबाजी जलाने की अनुमति दी है। मंगलवार को न्यायालय के इस फैसले के बाद पटाखा विनिर्माताओं ने कहा कि ग्रीन आतिशबाजी जैसी कोई चीज नहीं हे, वहीं पर्यावरणविदों ने कहा कि प्रशासन को शीर्ष अदालत के फैसले का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए। दूसरी ओर सोशल मीडिया पर इस फैसले के बाद ‘मजाक‘ शुरू हो गया। कई लोग ने सोशल मीडिया पर पटाखों को हरा रंग में पोस्ट किया।

पुलिस अधिकारियों का कहना है कि उनके पास पटाखों के शोर या डेसिबल का स्तर तथा धुएं का स्तर पता करने का कोई उपकरण नहीं है। इसके अलावा उन्हें खुद अपने हिसाब से देखना होगा कि पटाखा अधिक प्रदूषण तो नहीं कर रहा या बहुत तेज शोर वाला तो नहीं है। दिल्ली के एक पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘‘इस बात की निगरानी करना काफी मुश्किल होगा कि दुकानदार दिशानिर्देशों का पालन कर रहे हैं या नहीं क्योंकि दिवाली पर पटाखे थोक में बिकते हैं। बीट अधिकारियों को इस बारे में बताना होगा जिससे नियमों का उल्लंघन नहीं हो। न्यायालय के फैसले के अनुसार यदि किसी इलाके में प्रतिबंधित आतिशबाजी बिकती है तो इसकी जिम्मेदारी क्षेत्र के थाना प्रभारी या एसएचओ की होगी।

उद्योग संगठनों का कहना है कि दिवाली से पहले उच्चतम न्यायालय द्वारा आतिशबाजी या पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल के लिए कड़े नियम लागू करने के फैसले से बिक्री पर असर पड़ने का अंदेशा है। पटाखा कारोबार ज्यादातर असंगठित क्षेत्र में होता है और पटाखों की सालाना बिक्री करीब 20,000 करोड़ रुपये है। वहीं पर्यावरणविदों तथा स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि अब समय आ गया है जब समाज को अधिक जिम्मेदारी वाले तरीके से त्योहार मनाने चाहिए। पर्यावरण वैज्ञानिक डी साहा ने कहा कि प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इन नियमों का अनुपालन कड़ाई से हो। साहा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) में भी रह चुके हैं। उन्होंने पीटीआई भाषा से कहा कि एक समाज के रूप में हम त्योहारों, शादी ब्याह या अन्य आयोजनों पर पटाखे फोड़ते हैं, लेकिन इसकी बड़ी कीमत होती हैं इससे पर्यावरण और स्वास्थ्य को नुकसान होता है। ऐसे में हमें अधिक जिम्मेदारी वाला व्यवहार करना चाहिए। शोर के जोर के संबंधी नियमों के बारे में साहा ने कहा कि पेट्रोलियम एवं विस्फोटक सुरक्षा संगठन (पीसो) विस्फोटक पदार्थों के संदर्भ में जन सुरक्षा पहलू से संबंधित नियमनों पर काम करता है। 

तमिलनाडु फायरवर्क्स एंड एमोरकेस मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ने कहा कि वे पहले ही आतिशबाजी का विनिर्माण पीसो की अनुमति के बाद कर रहे हैं। एसोसिएशन के महासचिव के मरियप्पन ने कहा कि सिर्फ ग्रीन पटाखों के इस्तेमाल से बात नहीं बनेगी क्योंकि ऐसी कोई चीज नहीं है। एसोसिएशन ने अदालत के फैसले पर पुनर्रीक्षा याचिका दायर करने का फैसला किया है। मरियप्पन ने कहा कि तमिलनाडु के शिवकासी और आसपास आठ लाख लोग पटाखा उद्योग से जुड़े हैं और मौजूदा साल का उत्पादन पहले ही पूरा हो चुका है। उन्होंने कहा कि हम न्यायालय को बताना चाहते हैं कि हम ग्रीन आतिशबाजी का उत्पादन नहीं कर सकते। हम विनिर्माण में रसायन का इस्तेमाल कम कर सकते हैं लेकिन इसमें अधिक समय लगेगा। 
 
सिस्टम आफ द एयर क्वालिटी एंड वेदर फॉरकास्टिंग एंड रिसर्च (सफर) के गुफरान बेग ने कहा कि ग्रीन पटाखों का इस्तेमाल और आतिशबाजी के लिए समय सीमित करना सही कदम हैं। उन्होंने कम प्रदूषण तथा कम भभक वाले पटाखों को हरित या ग्रीन आतिशबाजी कहा जा सकता है। सोशल मीडिया पर हालांकि ग्रीन पटाखों को लेकर मजाक और मीम्स का सिलसिला चला। कुछ लोगों ने हरे रंग को कुछ राजनीतिक दलों से जोड़ा। वहीं बहुत से लोगों ने पटाखों को हरा कर तस्वीरें पोस्ट की हैं। वहीं कई अन्य से प्रसिद्ध हस्तियों तथा अभिनेताआों की हरे रंग के कपड़े पहने तस्वीरें डालीं। 
 
इस बीच, कनफेडरेशन आफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने कहा कि पटाखों की सालाना बिक्री 15,000 से 20,000 करोड़ रुपये है। इसमें 5,000 करोड़ रुपये चीन से आयातित पटाखों का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय के फैसले से पटाखों की बिक्री निश्चित रूप से प्रभावित होगी। हालांकि इसका ज्यादा कारोबार असंगठित क्षेत्र में होता है ऐसे में बिक्री में नुकसान का अनुमान लगाना मुश्किल है। खंडेलवाल ने कहा कि स्थायी कारोबारियों के अलावा पटाखों की बिक्री अस्थायी लाइसेंस के जरिये की जाती है। उन्होंने कहा, ‘‘हम सरकार से अपील करते हैं कि वह अस्थायी लाइसेंस तेजी से जारी करे, जिससे कारोबारी अपना स्टॉक निकाल सकें।’’ 
 
उन्होंने कहा कि चीन से आयातित पटाखे ज्यादा हानिकारक है। त्योहारी सीजन में वायु की गुणवत्ता में सुधार के लिए शीर्ष न्यायालय का फैसला स्वागतयोग्य है। रिटेलर्स एसोसिएशन आफ इंडिया के कुमार राजगोपालन ने कहा कि पर्यावरण की दृष्टि से उच्चतम न्यायालय का फैसला सही है। इससे पटाखों की बिक्री पर अंकुश लगेगा और साथ बेहतर गुणवत्ता वाले पटाखों की बिक्री हो सकेगी।

बासेल। दुनिया के पूर्व नंबर एक खिलाड़ी रोजर फेडरर ने कड़े मुकाबले में मंगलवार को यहां सर्बिया के फिलिप क्राजिनोविच को हराकर स्विस इंडोर टेनिस टूर्नामेंट के दूसरे दौर में जगह बनाई। आठ बार के चैंपियन फेडरर ने तीन सेट तक चले मुकाबले में 6-2 4-6 6-4 से जीत दर्ज की।

 
फेडरर पर 1998 में किशोर खिलाड़ी के रूप में यहां पदार्पण के बाद से टूर्नामेंट में सबसे जल्दी बाहर होने का खतरा मंडरा रहा था लेकिन वह तीसरे और निर्णायक सेट में दमदार खेल दिखाकर जीत दर्ज करने में सफल रहे।
 
दूसरे दौर में फेडरर का सामना येन लेनार्ड स्ट्रफ से होगा जिन्होंने आस्ट्रेलिया के जान मिलमैन को 7-6 (7/3), 6-2 से हराया। मिलमैन ने ही अमेरिकी ओपन में फेडरर को हराया था।
वॉशिंगटन। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि सऊदी अरब के अधिकारियों ने पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या मामले को ‘‘छिपाने की सबसे बदतर कोशिश’’ की। चौतरफा घिरने के बाद आखिरकार सऊदी अरब ने कबूल किया है कि वॉशिंगटन पोस्ट के लिए लिखने वाले 59 वर्षीय खशोगी की हत्या इस्तांबुल स्थित उसके वाणिज्य दूतावास में की गई थी। ओवल ऑफिस में मंगलवार को ट्रंप ने संवाददाताओं को बताया, ‘‘उनकी (सऊदी अरब) बहुत ही खराब मंशा थी। इस मामले को और बदतर बनाया गया। और यह मामले को दबाने की इतिहास की सबसे बदतर कोशिश है। बहुत ही आसानी से। बेहद घटिया करतूत। इसकी कभी कल्पना नहीं की जा सकती थी।
किसी ने वास्तव में गड़बड़ी की। और उन्होंने अब तक के सबसे बदतर ढंग से मामले को छिपाने की कोशिश की।’’ कभी शाही परिवार के करीबी रहे खशोगी बाद में सऊदी अरब के वली अहद (क्राउन प्रिंस) मोहम्मद बिन सलमान के धुर आलोचक बन गए थे। खशोगी अपनी होनेवाली शादी के लिए दस्तावेज लेने 2 अक्टूबर को इस्तांबुल स्थित सऊदी सरकार के वाणिज्य दूतावास गए थे, जिसके बाद वह लापता हो गए थे। इस घटना से सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की अंतरराष्ट्रीय छवि को बहुत ही गंभीर नुकसान पहुंचा है। तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोआन ने इस मामले में पूरी जांच करने की बात कही है। सीआईए निदेशक जीना हास्पेल अभी तुर्की में हैं और उनके जल्द अमेरिका लौटने की संभावना है।

नयी दिल्ली। सीबीआई घूसकांड मामले में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि यह जांच सरकार के अदंर नहीं आती और सरकार इसकी जांच नहीं करेगी। हम नहीं जानते कौन सही है और कौन गलत। हालांकि, इसकी जांच के सीबीआई और सीवीसी का अधिकार क्षेत्र है। 

 

नयी दिल्ली। विपक्षी पार्टियों ने सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को पद से हटाए जाने के लिए भाजपा सरकार की निंदा की है। वर्मा और सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच टकराव चल रहा है और केंद्र ने दोनों ही अधिकारियों को छुट्टी पर भेज दिया है। इस बीच झालावाड़ में एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि CBI चीफ आलोक वर्मा राफेल सौदे के पेपर इकट्ठा कर रहे थे, इसलिए उनकी छुट्टी की गई है। राहुल गांधी ने कहा कि कल रात को चौकीदार ने CBI निदेशक को हटा दिया। 

 
इसके अलावा कांग्रेस ने वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने को एजेंसी की स्वतंत्रता खत्म करने की अंतिम कवायद बताया है जबकि माकपा ने सरकार के इस फैसले को गैरकानूनी करार दिया। वहीं आम आदमी पार्टी ने केंद्र सरकार से सीबीआई निदेशक को छुट्टी पर भेजे जाने के पीछे की वजह की बताने को कहा है। कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने हैरत जाहिर करते हुए सवाल किया कि क्या वर्मा को, राफेल घोटाले में भ्रष्टाचार की जांच करने की उत्सुकता की वजह से ‘हटाया’ गया। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस संबंध में जवाब भी मांगा। 
 
( ईश्वर दुबे)  भिलाई। भिलाईनगर विधानसभा क्षेत्र से युवा नेता एवं महापौर देवेंद्र यादव की टिकट फाइनल होने से यह बात तो साफ है कि कांग्रेस इस बार सत्ता की बागडोर अपने हाथ मे लेने के लिए केवल योग्यता और जीत का माद्दा रखने वाले प्रत्याशियों को ही टिकट दे रही है। भिलाईनगर से देवेंद्र यादव की दावेदारी का विरोध करने वाले कांग्रेसियों की राहुल गांधी के आगे नहीं चली और टिकट लगभग फाइनल हो चुका है। भिलाईनगर की सीट में परंपरागत रूप से प्रेमप्रकाश और बदरूद्दीन कुरैशी ही चुनाव मैदान में आमने सामने होते थे इस बार चुनावी खेल युवा नेता और दिग्गज मंत्री के बीच खेला जाएगा। देवेंद्र यादव के पास युवा जोश और मंत्री प्रेमप्रकाश के पास विकास की गाथा है। देवेंद्र यादव महापौर रहते हुए जनता के बीच अब नया चेहरा भी नहीं रहे, जनमानस तक उनकी पहुँच बन चुकी है। सर्वसुलभ उपलब्धता, व्यवहार कुशलता के परिचय के बल पर वे मंत्री प्रेमप्रकाश को कड़ी टक्कर देंगे इस बात में कोई दोमत नहीं है। बहरहाल भिलाईनगर के चुनाव में भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशी की बीच कड़ा मुकाबला होने के आसार हैं युवा नेता देवेंद्र यादव हर प्रकार से मजबूत प्रत्याशी हैं युवाओं की फौज उनके साथ है। भिलाईनगर का चुनावी महासंग्राम इस बार रोचक और 19- 20 से जीत के अंतर वाला परिणाम सामने आएगा।

नयी दिल्ली। मोदी सरकार में सीबीआई का “राजनीतिक प्रतिशोध के हथियार” के तौर पर इस्तेमाल किये जाने का आरोप लगाते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सोमवार को यह भी कहा कि प्रमुख जांच एजेंसी का पतन हो रहा है और वह “खुद से ही जंग लड़ रही है।’’ सरकार पर हमला बोलने के लिए ट्विटर पर उन्होंने एक मीडिया रिपोर्ट का हवाला दिया जिसमें केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) में दूसरे नंबर की हैसियत रखने वाले अधिकारी राकेश अस्थाना को रिश्वत मामले में आरोपी बताया गया है। 

ट्वीट किया, “प्रधानमंत्री का चहेता व्यक्ति, गोधरा एसआईटी का चर्चित चेहरा, सीबीआई में दूसरे नंबर की हैसियत पाने वाला गुजरात कैडर का अधिकारी, अब रिश्वत लेते हुए पकड़ा गया।”उन्होंने कहा, “इन प्रधानमंत्री के शासन में सीबीआई राजनीतिक प्रतिशोध लेने का हथियार बन गई है। एक संस्थान जो पतन की ओर बढ़ रहा है वह खुद से ही जंग लड़ रहा है।” कांग्रेस अध्यक्ष और उनकी पार्टी अस्थाना को सीबीआई का विशेष निदेशक नियुक्त किए जाने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लगातार हमलावर रही है। 
 

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नयी दिल्ली। भाजपा महासचिव सरोज पाण्डेय ने मंगलवार को दावा किया कि अजीत जोगी और बसपा के बीच गठबंधन होने से छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को नुकसान होगा। उन्होंने जोर दिया कि उनकी पार्टी राज्य में चौथी बार सत्ता में आयेगी। राज्यसभा सदस्य और छत्तीसगढ़ से पार्टी की वरिष्ठ नेता पाण्डेय ने यह भी कहा कि विपक्षी कांग्रेस की प्रदेश में स्थिति ठीक नहीं है और उसके प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल के फर्जी सेक्स सीडी मामले में कथित तौर पर शामिल होने के कारण वह बचाव की मुद्रा में है।

उन्होंने आरोप लगाया कि यह घटना राज्य की महिलाओं का अपमान है। उल्लेखनीय है कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो ने इस मामले में पिछले महीने आरोप पत्र दायर किया था और बघेल एवं कुछ अन्य को विवादास्पद सीडी से जुड़े मामले में आरोपी बनाया था। इस मामले में कांग्रेस नेता को तीन दिन की न्यायिक हिरासत के बाद जमानत पर रिहा कर दिया गया था। पाण्डेय ने कहा, ‘छत्तीसगढ़ में हम (भाजपा) काफी मजबूत स्थिति में है। हम राज्य में लगातार चौथी बार सरकार बनायेंगे।’

उन्होंने कहा कि भाजपा राज्य की 90 सदस्यीय विधानसभा में 65 प्लस सीट हासिल करने के पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के लक्ष्य को प्राप्त करेगी। उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ में दो चरणों में 12 नवंबर एवं 20 नवंबर को विधानसभा चुनाव होने हैं। यह पूछे जाने पर कि जोगी की पार्टी और बसपा के बीच गठबंधन का चुनाव में क्या प्रभाव पड़ेगा, भाजपा महासचिव ने कहा कि चुनावी राजनीति में किसी पार्टी के असर को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है और अजीत जोगी निश्चित तौर पर उस पार्टी के वोट को काटेंगे जिससे वह पहले जुड़े थे।

चुनाव आयोग ने पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की तारीखें घोषित कर दीं, लेकिन एक हद तक मिजोरम और राजस्थान को छोड़ दें तो कहीं भी यह साफ नहीं है कि लड़ाई का स्वरूप क्या होगा? फिर भी ये चुनाव केन्द्र में सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के लिए काफी महत्वपूर्ण होने वाले हैं, इन्हीं चुनावों के परिणाम से आगामी आम चुनाव की तस्वीर भी काफी-कुछ स्पष्ट होने वाली है। क्योंकि ये चुनाव अगले आम चुनाव का माहौल बनाने में अहम भूमिका निभाएंगे। इन चुनावों को एक तरह से अगले आम चुनावों का सेमीफाइनल माना जा रहा है।

 
मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम इन पांच विधानसभा चुनावों में तीन प्रमुख प्रांत हैं, जिनमें मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा ने लगातार पिछले चुनाव जीते हैं। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान 14 वर्षों से मुख्यमंत्री हैं और छत्तीसगढ़ में डॉ. रमन सिंह लगातार 2003 से मुख्यमंत्री हैं। इन पांच राज्यों में से सिर्फ मिजोरम में कांग्रेस की सरकार है। आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद बने तेलंगाना में दूसरी बार विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। मिजोरम में मुख्य लड़ाई कांग्रेस और मिजो नेशनल फ्रंट की अगुआई वाले मिजोरम डेमोक्रैटिक अलायंस के बीच है जबकि राजस्थान में सीधी लड़ाई बीजेपी और कांग्रेस के बीच होनी है। राजस्थान में श्रीमती वसुंधरा राजे सिंधिया मुख्यमंत्री हैं, लेकिन वहां उन्हें कड़े संघर्ष का सामना करना पड़ रहा है।
 
छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के चुनावों को सबसे ज्यादा दिलचस्पी से देखा जाएगा, दोनों ही प्रांतों में भाजपा को कांटे की टक्कर झेलनी पड़ सकती है। छत्तीसगढ़ में यह पहला मौका है जब बीजेपी और कांग्रेस के अलावा कोई तीसरा पक्ष भी मैदान में है। अजित जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस ने बीएसपी से गठबंधन किया है। यह पार्टी पहली बार ही विधानसभा चुनाव का सामना कर रही है, इसलिए इसके वास्तविक प्रभाव के बारे में अभी से कुछ कहना मुश्किल है। बीएसपी की ताकत यहां सीमित ही है, लेकिन उसकी बातचीत पहले कांग्रेस से चल रही थी। इन दोनों पार्टियों का साथ आना कांग्रेस के लिए झटका तो है, पर यह गठबंधन चुनाव नतीजों को किस हद तक प्रभावित करेगा, इस बारे में फिलहाल अटकलें ही लगाई जा सकती हैं। इन पांचों ही राज्यों में कांग्रेस की स्थिति मजबूत हो सकती है, लेकिन सशक्त केन्द्रीय नेतृत्व के अभाव में मतदाता कौन-सी करवट लेगा, कहा नहीं जा सकता। कांग्रेस भाजपा शासित राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सत्ता विरोधी रुझान का फायदा उठाने की पुरजोर कोशिश में है। अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस अगर इन तीनों बड़े राज्यों में कामयाब होती है तो वह भाजपा की अजेय छवि पर गहरा प्रहार होगा। इन तीनों राज्यों में भाजपा को कांग्रेस से गंभीर चुनौती मिलने के आसार दिख रहे हैं। यही वजह है कि इन चुनावों को 2019 के चुनावी महासमर का सेमीफाईनल माना रहा है।
 
इन पांचों ही राज्यों में अपने अलग-अलग चुनावी मुद्दे हैं लेकिन इन मुद्दों में अब केन्द्रीय मुद्दे भी जगह बना रहे हैं। लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनावों में लोगों की राय अलग-अलग रहती आई है। ऐसा जनता पार्टी की सरकार के समय, इन्दिरा गांधी के शासनकाल में और राजीव गांधी शासनकाल में देखने को मिल चुका है। लेकिन इस बार एक तरफ बिजली, पानी, सड़क, महंगाई, बेरोजगारी जैसे बुनियादी मुद्दों के साथ-साथ रुपए की गिरती कीमत, पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दाम, अर्थव्यवस्था की धीमी गति, साम्प्रदायिक-धार्मिकता के मुद्दे भी अहम हो चुके हैं। राज्यस्तरीय घोटालों के मुद्दे भी अहम बन रहे हैं। राजनीतिक दलों की चादर इतनी मैली है कि लोगों ने उसका रंग ही काला मान लिया है। अगर कहीं कोई एक प्रतिशत ईमानदारी दिखती है तो आश्चर्य होता है कि यह कौन है? पर हल्दी की एक गांठ लेकर थोक व्यापार नहीं किया जा सकता है। भ्रष्टाचार, राजनीतिक अपराधीकरण क्यों नहीं सशक्त चुनावी मुद्दे बनते ? 
 
इस बार के विधानसभा चुनावों में देखने को मिल रहा है कि राजनीतिक दल धार्मिक प्रतीकों का सहारा भी पहले की तुलना में कहीं अधिक लेने लगे हैं। शायद भाजपा को शिकस्त देने के लिये हिन्दुत्व का मुद्दा भी प्रमुखता से उछल रहा है। यही कारण है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को कभी शिवभक्त, कभी नर्मदा भक्त के रूप में पेश किया जा रहा है। राहुल गांधी राज्यस्तरीय मुद्दों को अपने भाषणों में बहुत कम छूते हैं बल्कि उनका सारा जोर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर प्रहार करने का रहता है। एक तरह से ये चुनाव नरेन्द्र मोदी को पछड़ाने की ही सारी जद्दोजहद दिखाई दे रहे हैं। यह विडम्बना ही है कि हर दल एक बड़ी रेखा को मिटाने की बात तो करता है, लेकिन एक बड़ी रेखा खींचने का प्रयास कोई नहीं कर रहा है।
 
भाजपा अपनी अजेय छवि को बरकरार रखने के लिए पूरा प्रचार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ही केंद्रित रखने की योजना बना रहा है। सत्ता विरोधी लहर से निबटने के लिए इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों को किनारे ही रखा जा सकता है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह इसी रणनीति पर काम कर रहे हैं। दूसरी ओर कांग्रेस अपनी और अपने अध्यक्ष राहुल गांधी की स्थिति को सुदृढ़ बनाने के लिये हरसंभव प्रयास करती हुई दिख रही है। कांग्रेस के लिये यह अग्निपरीक्षा का दौर है कि वह इन चुनावों में कैसा प्रदर्शन करती है। अगर कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन करती है तो अगले लोकसभा चुनावों में महागठबंधन की दिशा तय होगी और तभी नरेन्द्र मोदी रूपी किले को ध्वस्त करने की बात सोची जा सकती है। नरेन्द्र मोदी एक करिश्मा है और वह आज भी बरकरार है, जब तक प्रधानमंत्री की छवि को प्रभावित नहीं किया जाता तब तक भाजपा को हराने की बात सोचना ही नासमझी होगी। अनेक विरोधी आंधियों के बावजूद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की व्यक्तिगत छवि पर कोई आंच नहीं आई है बल्कि देशवासी उन पर पूरा भरोसा कर रहे हैं। कांग्रेस के जीतने की स्थिति में राहुल गांधी की स्वीकार्यता बढ़ेगी और क्षेत्रीय दलों का दबाव कम होगा। लेकिन यह दिवास्वप्न जैसा प्रतीत हो रहा है।
 
विपक्ष के गठबंधन में कांग्रेस की भागीदारी कितनी होगी, इसका अनुमान भी पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में हो जाएगा। अगर कांग्रेस कमजोर साबित हुई तो उसे क्षेत्रीय दलों के आगे अपनी शर्तें मनवाने में दिक्कतों को सामना करना पड़ेगा। कांग्रेस को आज जैसा केन्द्रीय नेतृत्व चाहिए, वह उसे नहीं मिल पा रहा है, शायद यही कारण है कि जनता चाहकर भी उसे स्वीकार नहीं कर पा रही है। ‘वंश परंपरा की सत्ता’ से लड़कर मुक्त हुई जनता इतनी जल्दी उसे कैसे भूल सकती है? कुछ मायनों में यह अच्छा है कि राजनीति में वंश की परंपरा का महत्व घटता जा रहा है, अस्वीकार किया जा रहा है। इससे कुछ लोगों को दिक्कत होगी जो परिवार की भूमिका को भुनाना चाहते हैं। लेकिन लोकतंत्र की सेहत के लिए अच्छा ही होगा। जनता अब जान गई है कि राजा अब किसी के पेट से नहीं, ‘मतपेटी’ से निकलता है।
 
नरेन्द्र मोदी अपने या भाजपा के पक्ष में जिस तरह के तथ्य प्रस्तुत करते हैं, उनका जवाब न कांग्रेस के पास है और न अन्य दलों के पास। कांग्रेस पर निशाना साधते हुए मोदी ने कहा, वे नामदार हैं, हम कामदार हैं। उनका मकसद एक परिवार का कल्याण है, हमारा लक्ष्य राष्ट्र निर्माण है। बीजेपी विरोधी दलों की कमजोरी पर नहीं बल्कि सवा सौ करोड़ लोगों की ताकत पर चलती है। यह विश्वास, यह दृढ़ता एवं यह दिशा भाजपा के सामने खड़े किये जा रहे धुंधलकों को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। भले ही भारतीय राजनीति का इतिहास रहा है कि आम चुनावों में कोई एक पार्टी जीतकर सत्तारूढ़ हो जाती है लेकिन उसके बाद हुए विधानसभा चुनावों में विपक्ष की सरकारें बनती रही हैं। इस बार ऊंट किस करवट बैठेगा, भविष्य के गर्भ में हैं।
 
-ललित गर्ग

रायपुर। छत्तीसगढ़ में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने मुख्यमंत्री रमन सिंह के खिलाफ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला को उम्मीदवार बनाया है। छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मीडिया विभाग के अध्यक्ष शैलेष नितिन त्रिवेदी ने रविवार को यहां बताया कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने प्रथम चरण के लिए छह उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी है।

सूची के अनुसार राजनांदगांव से करुणा शुक्ला, खैरागढ़ से गिरवर जंघेल, डोंगरगढ़ से भुवनेश्वर सिंह बघेल, डोंगरगांव से दलेश्वर साहू, खुज्जी से चन्नी साहू और मोहला मानपुर से इंदरा शाह मंडावी को उम्मीदवार बनाया गया है। प्रथम चरण में बस्तर क्षेत्र के जिलों और राजनांदगांव जिले के 18 विधानसभा सीटों के लिए 12 नवंबर को मतदान होगा। प्रथम चरण में मुख्यमंत्री रमन सिंह राजनांदगांव विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में हैं। जिसके विरूद्ध कांग्रेस ने करुणा शुक्ला को अपना उम्मीदवार बनाया है।
 
कौन हैं करुणा शुक्ला
करुणा शुक्ला जांजगीर लोकसभा क्षेत्र से भाजपा से सांसद रह चुकी हैं। वर्ष 2013 में विधानसभा चुनाव के बाद शुक्ला ने भाजपा से इस्तीफा दे कर कांग्रेस का दामन थाम लिया था। उन्होंने भाजपा पर उपेक्षा का आरोप लगाया था। मुख्यमंत्री के खिलाफ शुक्ला को उम्मीदवार बनाए जाने को लेकर त्रिवेदी ने कहा कि वह (शुक्ला) कांग्रेस से जुड़ने के बाद राजनांदगांव क्षेत्र में लगातार सक्रिय हैं। वह पार्टी की मजबूत उम्मीदवार हैं तथा वह सिर्फ मुख्यमंत्री को चुनौती नहीं देंगीं बल्कि उनके खिलाफ जीत भी हासिल करेंगी।
 

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