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इंदौर. मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बुधवार को इंदौर पहुंचे। यहां रेसीडेंसी कोठी पर मीडिया से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, 'मैं सब पदों से ऊपर हूं, यदि मुझे मप्र का मुख्यमंत्री बनना होता तो विधानसभा चुनाव के बाद ही जोड़-तोड़ कर लेता।'  
उन्होंने कहा, 'मैं नैतिक व्यक्ति हूं, मुझे पद की कोई लालसा नहीं। मप्र विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव के बयान को उचित ठहराते हुए शिवराज ने कहा कि उन्होंने कोई गलत बयान नहीं दिया, जनता के बीच जन भावना देखकर बोला जाता है।'
चौहान ने कहा, 'युवा सम्मेलन था, बच्चे मामा-मामा कह रहे थे, उन्होंने पूछ लिया कि मुख्यमंत्री बनाना चाहते हो...बच्चों ने हां कहा तो उन्होंने कहा बन जाएंगे। इसमें नेता की क्या गलती और यह पहली बार नहीं है यह तो लोकसभा चुनाव में भी कई लोग कहते रहे हैं।'

गौरतलब है कि मंगलवार को झाबुआ में गोपाल भार्गव ने कहा था कि मप्र सरकार ठीक से काम नहीं कर रही है। अगर वे जनता की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते हैं तो जनता खुद अपना फैसला सुना देगी। झाबुआ सीट जीतते हैं तो फिर से शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बन सकते हैं।
कांग्रेस के मंत्रियों पर साधा निशाना
पूर्व मुख्यमंत्री ने कमलनाथ सरकार के मंत्रियों पर भी निशाना साधा। उन्होंने जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा और लोक निर्माण मंत्री सज्जन सिंह वर्मा के बयानों पर कहा कि उन्हें मंत्री पद पर रहने का कोई अधिकार नहीं है...प्रदेश की सड़काें की तुलना किसी के गालों से की जा रही है...वहीं कोई ट्रांस्फर के रेट बता रहा है। शिवराज ने कहा कि मप्र की कांग्रेस सरकार सबसे भ्रष्ट सरकार है

तथ्य सामने आया कि हिंसा का बढ़ता प्रभाव मानवीय चेतना से खिलवाड़ करता है और व्यक्ति स्वयं को निरीह अनुभव करता है। इन स्थितियों में संवेदनहीनता बढ़ जाती है और जिन्दगी सिसकती हुई प्रतीत होती है।

 

आज देश ही नहीं, दुनिया में हिंसा, युद्ध एवं आक्रामकता का बोलबाला है। जब इस तरह की अमानवीय एवं क्रूर स्थितियां समग्रता से होती हैं तो उसका समाधान भी समग्रता से ही खोजना पड़ता है। हिंसक परिस्थितियां एवं मानसिकताएं जब प्रबल हैं तो अहिंसा का मूल्य स्वयं बढ़ जाता है। हिंसा किसी भी तरह की हो, अच्छी नहीं होती। मगर हैरानी की बात यह है कि आज हिंसा के कारण लोग सामाजिक अलगाव एवं अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं। शिकागो विश्वविद्यालय के द्वारा हाल ही में किये गये अध्ययन में भी यह बात सामने आई है। यह अध्ययन शिकागो के ऐसे 500 वयस्क लोगों के सर्वे पर आधारित है जो हिंसक अपराध के उच्च स्तर वाली जगह पर रहते हैं। तथ्य सामने आया कि हिंसा का बढ़ता प्रभाव मानवीय चेतना से खिलवाड़ करता है और व्यक्ति स्वयं को निरीह अनुभव करता है। इन स्थितियों में संवेदनहीनता बढ़ जाती है और जिन्दगी सिसकती हुई प्रतीत होती है।

शिकागो विश्वविद्यालय के मेडिसिन के सामाजिक महामारी विशेषज्ञ एलिजाबेथ एल तुंग का कहना है कि हिंसा व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डालती है। शहरी वयस्कों में हिंसा की वजह से सामाजिक अलगाव और अकेलापन पाया गया। अकेलापन कुछ सीमित शारीरिक गतिविधियों से जुड़ा है, जैसे सही तरह से दवाएं न लेना, खानपान, धूम्रपान व मदिरापान आदि। व्यक्ति अपने ही समुदाय में जितनी अधिक हिंसा का शिकार होता है, अकेलापन उसे उतना ही ज्यादा घेर लेता है। सबसे ज्यादा अकेलापन उन लोगों में पाया गया जो सामुदायिक हिंसा का शिकार हुए। पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्ड में वह पॉजिटिव आए। एलिजाबेथ एल तुंग का कहना है कि अध्ययन के नतीजे उन वृद्ध लोगों के लिए विशेष रूप से परेशान करने वाले हैं, जो हिंसात्मक पड़ोस में रहते हैं। उनमें अकेलेपन की अधिक संभावना होती है और वे तनाव से जुड़ी बीमारियों से अधिक ग्रस्त हो जाते हैं। अकेलापन एक बढ़ती गंभीर स्वास्थ्य समस्या है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि अमेरिका में यह मृत्यु दर में इजाफे का बड़ा कारण बन सकता है। अध्ययन में हिस्सा लेने वाले 77 प्रतिशत लोग 50 से अधिक उम्र के थे।
एक शोधकर्ता ने कहा, सामाजिक अलगाव और अकेलेपन से जूझ रहे व्यक्ति को हृदय रोग का खतरा सबसे ज्यादा होता है। ठीक उस तरह जिस तरह धूम्रपान करने वाले को होता है। कहा जा सकता है कि अकेलापन धूम्रपान के बराबर घातक है। बढ़ती हिंसक मानसिकता एवं परिस्थितियों के बीच न जिन्दगी सुरक्षित रही, न इंसान का स्वास्थ्य और न जीवन-मूल्यों की विरासत। अहिंसा की प्रासंगिकता के बीच हिंसा के तरह-तरह के पौधे उग आये हैं। हिंसक विकृतियां एक महामारी है, उसे नकारा नहीं जा सकता। अहिंसक मूल्यों के आधार पर ही मनुष्य उच्चता का अनुभव कर सकता है और मानवीय प्रकाश पा सकता है। क्योंकि अहिंसा का प्रकाश सर्वकालिक, सार्वदेशिक और सार्वजनिक है। इस प्रकाश का जितना व्यापकता से विस्तार होगा, मानव समाज का उतना ही भला होगा, वह सुरक्षित महसूस करेगा एवं जिन्दगी के प्रति धन्यता का अनुभव करेगा। इसके लिये तात्कालिक और बहुकालिक योजनाओं का निर्माण कर उसकी क्रियान्विति से प्रतिबद्ध रहना जरूरी है। क्योंकि देश एवं दुनिया में सब वर्गों के लोग हिंसा से संत्रस्त हैं। कोई भी संत्रास स्थायी नहीं होता, यदि उसे निरस्त करने का उपक्रम चालू रहता है। हिंसक लोगों एवं परिस्थितियों के बीच रह कर जो हिंसा के प्रभाव को निस्तेज कर दे, वही शासन व्यवस्था एवं व्यक्ति की जीवनशैली अपेक्षित है। जो हिंसक परिस्थितियां एवं विवशताएं व्यक्ति की चेतना को तोड़ती एवं बिखेरती है, उन त्रासद स्थितियों से मनुष्य को अनाहत करना एवं बचाना वर्तमान की सबसे बड़ी चुनौती है। ‘अहिंसा सव्व भूय खेमंकरी’- अहिंसा सब प्राणियों के लिए क्षेमंकर है, आरोग्यदायिनी और संरक्षक-संपोषक है। भारत में होने वाले अहिंसक प्रयोगों से सम्पूर्ण मानवता आप्लावित होती रही है और अब उन प्रयोगों की अधिक प्रासंगिकता है। तथागत बुद्ध द्वारा प्रतिपादित अहिंसा का सार है करुणा। गीता के अहिंसा सिद्धांत की फलश्रुति है अनासक्ति। ईसा मसीह ने जिस विचार को प्रतिष्ठित किया, वह है प्रेम और मैत्री। इसी प्रकार मुहम्मद साहब के उपदेशों का सार है भाईचारा।
भगवान महावीर ने संयम प्रधान जीवनशैली के विकास हेतु व्रती-समाज का निर्माण किया। उस व्रती समाज ने अनावश्यक और आक्रामक हिंसा का बहिष्कार किया। बुद्ध की करुणा के आधार पर सामाजिक विषमता का उन्मूलन हुआ। जातिवाद की दीवारें भरभरा कर ढह पड़ीं। गीता के अनासक्त योग ने निष्काम कर्म की अभिप्रेरणा दी। इसमें आचार-विचारगत पवित्रता की मूल्य-प्रतिष्ठा हुई। ईसा मसीह के प्रेम से आप्लावित सेवा भावना ने मानवीय संबंधों को प्रगाढ़ता प्रदान की। मुहम्मद साहब के भाईचारे ने संगठन को मजबूती दी। संगठित समाज शक्ति संपन्न होता है। महात्मा गांधी ने राजनीति के मंच से अहिंसा की एक ऐसी गूंज पैदा की थी कि अहिंसा की शक्तिशाली ध्वनि तरंगों ने विदेशी शासन और सत्ता के आसन को अपदस्थ कर दिया। उन्होंने सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा आंदोलन, स्वदेशी आंदोलन आदि अनेक रूपों में अहिंसा के प्रयोग किए। सशक्त प्रस्तुति एवं अभिव्यक्ति द्वारा विश्व मानव को अहिंसा की शक्ति से परिचित कराया। इंसान की मनःस्थिति को स्वस्थ बनाने के लिये आज अहिंसक जीवनशैली को प्रतिष्ठापित करना जरूरी है।
वर्तमान के संदर्भ में देखा जाए तो लगता है, महापुरुषों के स्वर कहीं शून्य में खो गए हैं। जीवन के श्रेष्ठ मूल्य व्यवहार के धरातल पर अर्थहीन से हो रहे हैं। तभी विश्व मानव में सामाजिक अलगाव एवं अकेलेपन की त्रासद स्थितियां देखने को मिल रही हैं। विश्व अणु-परमाणु हथियारों के ढेर पर खड़ा है। दुनिया हिंसा की लपटों से झुलस रही है। अर्थ प्रधान दृष्टिकोण, सुविधावादी मनोवृत्ति, उपभोक्ता संस्कृति, सांप्रदायिक कट्टरता, जातीय विद्वेष आदि हथियारों ने मानवता की काया में न जाने कितने गहरे घाव दिये हैं। क्रूरता के बीज, सामाजिक अलगाव एवं अकेलेपन के दंश इंसान के जीने पर ही प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं। महान दार्शनिक आचार्य श्री महाप्रज्ञ कहते हैं- बढ़ती हुई क्रूरता, हिंसा और अपराधों का कारण है अहिंसा, मैत्री, करुणा, सौहार्द, सद्भावना आदि जीवन-मूल्यों के प्रशिक्षण का अभाव। आज हिंसा के प्रशिक्षण की व्यापक व्यवस्थाएं हैं। वे चाहें सैनिक/सामरिक प्रतिष्ठानों के रूप में हो या आतंकवाद के प्रशिक्षण के रूप में। हिंसक शक्तियां संगठित होकर नेटवर्क के लक्ष्य से सक्रिय हैं। अहिंसक शक्तियां न संगठित हैं, न सक्रिय। यह सर्वाधिक चिंतनीय पक्ष है।
ताजा अध्ययन के सन्दर्भ में व्यक्ति की जीवनशैली को उन्नत बनाने, आदर्श एवं शांत जीवन पद्धति को निरूपित करने के लिये अहिंसा को व्यापक बनाने एवं संगठित करने की जरूरत है। जिस व्यक्ति के अंतःकरण में अहिंसा की प्रतिष्ठा होती है, उसकी सन्निधि में शत्रु भी शत्रुता त्याग देता है और परम मित्र बन जाता है। अपेक्षा है, प्रत्येक व्यक्ति अपने चित्त को मैत्री की भावना, सह-जीवन एवं संवेदनशीलता से भावित करे। इनकी शक्तिशाली तरंगें हिंसक, अपराधी और आतंकवादी लोगों की दुर्भावनाओं को भी प्रक्षालित कर सकती हैं। वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में धर्म के प्रवक्ताओं, विचारकों एवं धर्म के नेताओं का विशेष दायित्व है कि वे अपने अनुयायियों में अहिंसक मानसिकता, सहिष्णुता तथा सद्भावना के संस्कार पुष्ट करें। उनमें धार्मिक विद्वेष व घृणा के भाव न पनपने पायें। अपनी-अपनी मान्यताओं, परंपराओं तथा पूजा-उपासना की विधियों का सम्मान व पालन करते हुए भी वे आपसी सौहार्द और भाईचारे को बनाए रखें। इसी में सबका सुख, सबका हित निहित है। इसी से व्यक्ति का अकेलापन दूर हो सकता है। अहिंसा का शाश्वत मूल्य वर्तमान में टीसती हुई मानवता और कराहती मानव-जाति को त्राण दे सकता है।
 
-ललित गर्ग

नई दिल्ली-रायपुर। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी ने स्टार प्रचारकों की सूची जारी कर दी है। भाजपा की यह सूची काफी चौंकाने वाली है।
सूत्रों ने बताया कि इस सूची में छत्तीसगढ़ से तीन बार मुख्यमंत्री रहे चुके डा. रमन सिंह का नाम काट दिया गया है। भाजपा की ओर से जारी 40 स्टार प्रचारकों की सूची में पूरे छत्तीसगढ़ से केवल सरोज पाण्डेय का नाम शामिल किया गया है।
स्टार प्रचारकों की सूची में पहले नंबर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम है। पीएम मोदी के बाद दूसरे नंबर पर केन्द्र की सरकार में भी नंबर दो माने जाने वाले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष्ज्ञ अमित शाह का नाम हैं, वहीं इस लिस्ट में सरोज पांडेय का नाम 13वें पायदान पर रखा गया है। इधर भाजपा के स्टार प्रचारकों की सूची जारी होने तथा पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह का नाम काटे जाने के बाद से ही तरह-तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं।
दिनेश सोनी-12.00
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महाबलीपुरम बंगाल की खाड़ी के किनारे बसा एक प्राचीन शहर है जो कभी व्यापार का केंद्र हुआ करता था। यहां से पूर्वी देशों के साथ सीधे तौर पर व्यापार होता था। यहां के बंदरगाह से चीन से सामान आयात और निर्यात किया जाता था। इसी के आधार पर कहा जाता है कि भारत और चीन के व्यापारिक रिश्ते 1700 साल पुराने है।

 

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग 11 और 12 अक्टूबर को भारत दौरे पर रहेंगे। इस दौरान वह भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अनौपचारिक शिखर वार्ता करेंगे। यह ऐसा दूसरा मौका होगा जब चीन के राष्ट्रपति अनौपचारिक शिखर वार्ता के लिए वह भारत आएंगे। इससे पहले वे सितंबर 2014 में भारत दौरे पर आएं थे। उस समय प्रधानमंत्री मोदी ने शी जिनपिंग की आगवानी अपने गृह राज्य गुजरात के अहमदाबाद में किया था। एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के राष्ट्रपति को भारत की विविधताओं से अवगत कराने वाले हैं जब वह शी जिनपिंग का स्वागत तमिलनाडु के महाबलीपुरम में करेंगे। पर सवाल ये उठता है कि आखिर महाबलीपुरम को ही क्यों चुना गया है? तो ऐसे में आज हम आपको महाबलीपुरम से चीन के क्या संबंध है इस बारे में बताते हैं। 
 
महाबलीपुरम को चुनना कोई इत्तेफाक नहीं है बल्कि एक सोची-समझी रणनीति के तहत हो रहा है। भारत के तमिलनाडु में समंदर किनारे बसे इस शहर की खूबसूरती इसके प्राचीन मंदिरों की वजह से पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। जानकारों की मानें तो यह दावा किया जाता है कि इस शहर को हिंदू राजा नरसिंह देव बर्मन ने स्थापित किया था। इसे मामल्लपुरम भी कहा जाता है। महाबलीपुरम चेन्नई से करीब 60 किलोमीटर दूर है। शहर में कुछ समय पहले चीन और रोम के प्राचीन सिक्के मिले थे। इसके बाद से दावा किया जाने लगा कि भारत का संबंध चीन से बहुत पुराना रहा है और पुराने समय में भी दोनों देशों के बीच में व्यापारिक संबंध थे। शायद इसी संबंध को एक बार फिर से नरेंद्र मोदी शी जिनपिंग को याद दिलाना चाहते है। शी जिनपिंग और नरेंद्र मोदी इस शहर के पुराने मंदिरों और स्थलों को भी देखने जा सकते हैं।
 
महाबलीपुरम बंगाल की खाड़ी के किनारे बसा एक प्राचीन शहर है जो कभी व्यापार का केंद्र हुआ करता था। यहां से पूर्वी देशों के साथ सीधे तौर पर व्यापार होता था। यहां के बंदरगाह से चीन से सामान आयात और निर्यात किया जाता था। इसी के आधार पर कहा जाता है कि भारत और चीन के व्यापारिक रिश्ते 1700 साल पुराने है। माना जाता है कि 1700 साल पहले यहां पल्लव वंश का शासन हुआ करता था। राजा नरसिंह द्वितीय के शासन के दौरान उन्होंने चीन के साथ व्यपारिक रिश्ते को बढ़ाने के लिए कई अहम काम किया। उन्होंने अपने दूत को भी चीन भेजा था। तिब्बत को लेकर चीन और पल्लव वंश के बीच स्ट्रैटजिक पैक्ट हुआ था।   
इसके अलावा चीन के साथ हमारे धार्मिक संबंध भी काफी पुराने है। माना जाता है कि पल्लव राजा के तीसरे राजकुमार बौद्ध भिक्षु बन गए थे और चीन में उनकी खूब लोकप्रियता थी। उन्होंने चीन की भी यात्रा की थी। कहा जाता है कि चीनी दार्शनिक भी महाबलीपुरम का दौरा किया करते थे। 7वीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेन सांग भारत आया था तो वह महाबलीपुरम भी पहंचा था। इसके अलावा भारत के किसी कोने में जाने के लिए चीनी नागरिक महाबलीपुरम का ही रास्ता अपनाते थे। अब यह देखना होगा कि मोदी अपने इस कूटनीतिक दांव से चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को कितना प्रभावित कर पाते हैं।
 
- अंकित सिंह
*एक निष्पक्ष आकलन  :-*
 
*बीएसएनएल एमटीएनएल भी जाएंगी अब निजी हाथों की गिरफ्त में, इनकी दुर्दशा का जिम्मेदार कौन?*
 
*गजब का गणित,,? बीएसएनएल एमटीएनएल को पुनर्जीवित करने का खर्चा 75 हजार करोड़, जबकि इन्हें समाप्त करने पर लगेंगे 95 हजार करोड़?*
 
*1.16 लाख करोड़ कैप की सरकारी इंडियन ऑयल भी नीलाम होगी कौड़ियों के मोल,?*
 
* 5 से 10 दस गुना फीस लेकर भी निजी संस्थान आईआईटीयंस से बेहतर इंजीनियर क्यों नहीं बना पाते*
 
*एम्स आज भी है बेजोड़, निजी अस्पतालों की तुलना में आज भी सरकारी अस्पतालों का चेहरा है ज्यादा मानवीय?
*सरकारें इस मलाईदार गोरखधंधे में इतनी उलझी  हैं कि, रसातल की ओर जा रही  देश की किसानी तथा किसानों की दुर्दशा की ओर देखने की फुर्सत ही नहीं*
 
आज हम निष्पक्ष तथा तथ्यपरक तरीके से विवेजना कर रहे हैं सरकारी उपक्रमों के निजीकरण के बारे में , और इन सरकारी उपक्रमों की वर्तमान तथा दूरगामी उपादेयताओं के बारे में। 
कुछ ही महीने पहले हमने सुना कि भारतीय रेलवे की कुछ चुनिंदा रेलों को बेहतर प्रबंधन हेतु निजी हाथों में दिया गया है।  पिछले कुछ महीनों से यह चर्चा भी हवा में तैर रही है कि बीएसएनएल, एमटीएनएल जैसे कई घाटे में चल रहे उपक्रमों को लाभकारी बनाने के लिए इसे निजी हाथों में सौंपा जाएगा। यानी कि सरकार घाटे में चल रहे BSNL और MTNL को बेचने के पक्ष में है। अब बेहद ही हैरतअंगेज जानकारी, गजब का गणित आपसे साझा करना चाहूंगा  कि डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्यूनिकेशंस (DoT) ने बीएसएनएल और एमटीएनएल को फिर से पुनर्जीवित करने के लिए 74,000 करोड़ रुपए के निवेश का प्रस्ताव दिया था, जिसे वित्त मंत्रालय ने  ठुकरा दिया , और दोनों पीएसयू  कंपनियों को बंद करने की सलाह दी है। जबकि  विशेषज्ञों का मानना है कि दोनों सरकारी कंपनियों को बंद करने की स्थिति में 95 हजार करोड़ रुपए की लागत आने वाली है। यह लागत इन उपक्रमों के 1.65 लाख कर्मचारियों  रिटायरमेंट प्लान देने के और कंपनी  का कर्ज लौटाने में लगने वाली है। यानी कि इस सरकारी कंपनी को समाप्त करने  में होने वाला खर्च, की तुलना में कंपनी का  इलाज करके पुनर्जीवित करने का कुल खर्चा कम है ,,,बावजूद इसके मरीज को बचाने के बजाय समाप्त करने का निर्णय लिया जा रहा है।और यह क्यों किया जा रहा है या इसी लेख में आगे स्पष्ट हो जाएगा।
 
  दूसरी बानगी देखिए, एक लाख सोलह हजार करोड़ की केप वाले सार्वजनिक उपक्रम  इंडियन ऑयल की नीलामी लगभग तय है, इसके 52% शेयर पर केंद्र का हक था, माना जा रहा है कि यह सार्वजनिक उपक्रम  भी एक खास चहेती निजी कंपनी  के खाते में जाएगा। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि एक समय जिस कंपनी के 1000 पेट्रोल पंप बंद पड़े रहे  हों तथा जिसके 3000 पेट्रोल पंपों के आवेदनको लाइसेंस ही प्रदान नहीं किया गया हो, जिसे कभी ब्लैक लिस्टेड किया गया हो, वही आज इसके अधिग्रहण का सबसे मजबूत, महत्वपूर्ण, व सर्वश्रेष्ठ चहेता उम्मीदवार माना जा रहा है । इधर एनएमडीसी राष्ट्रीय खनिज विकास निगम के हाथों से धीरे-धीरे खदानें सरकती जा रही है ,और वे देश की चुनिंदा चहेती बड़ी कंपनियों के शिकंजे में एक-एक करके जा रही हैं,, और यह सब सरकार जनता के हित के नाम पर  डंके की चोट पर कर रही है। यह भी चर्चाएं आम हैं कि बस्तर का एनएमडीसी का लोहे का कारखाना भी निजी हाथों में सुचारू संचालन हेतु दिया जाएगा।
अब मैं सबसे पहले  चाहूंगा कि हम आज की तारीख पर देश में कुछ चुनिंदा उपक्रमों के बारे में निष्पक्ष ढंग से विचार करें। आप देखेंगे और पाएंगे  कि, आज की तारीख पर देश का सबसे अच्छे अस्पताल का नाम मेदांता, इस्कार्ट अथवा कोई प्राइवेट अस्पताल नहीं है बल्कि  एम्स है जो सरकारी हैं , निजी क्षेत्रों के ज्यादातर अस्पताल अपनी विश्वसनीयता खोते जा रहे हैं, लूट-खसोट के केंद्र बन गए हैं।
 सबसे अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेजों की लिस्ट उठाएं तो आप पाएंगे कि सर्वश्रेष्ठ इंजीनियरिंग के संस्थानों में ज्यादातर  आईआईटी  हैं, जो कि सरकारी हैं , 7 अंकों में डोनेशन लेकर तथा आईआईटी से चार से 10 गुना तक ज्यादा फीस लेने के बावजूद यह निजी कालेज आईआईटीयंस से बेहतर इंजीनियर नहीं गढ़ पा रहे हैं। यही हाल व्यावसायिक शिक्षा के अन्य क्षेत्रों का भी है,  यथा आज भी सबसे अच्छे मैनेजमेंट कॉलेज  आईआईएम माने जाते हैं, जो कि सरकारी हैं ,देश के सबसे अच्छे विद्यालय आज भी  केन्द्रीय विद्यालय हैं, जो सरकारी हैं ।देश के एक करोड़ लोग सदैव अपने गंतव्य तक पहुँचने के लिए सरकारी रेलों में बैठते हैं...,, अंतरिक्ष विज्ञान में नासा को टक्कर देने वाला संस्थान किसी निजी कंपनी   का नहीं है ,,बल्कि आईएसआरओ है, जिसे सरकार  चलाती है.*
तो हमारा मानना है कि  सरकारी संस्थाओं में खामियां हो सकती हैं, जिन्हें समुचित प्रबंधन तथा अनुशासन के जरिए ठीक किया जा सकता है। किंतु विडंबना है,  इन्हें ठीक करने के ठोस प्रयास करने के बजाय इन्हें सप्रयास योजनाबद्ध तरीके से बदनाम किया जा रहा है , अगर इन सारे उपक्रमों को  प्राइवेट हाथों में सौंप दिया जाए तो तात्कालिक तौर पर भले हमें ऐसा प्रतीत हो कि, निजी करण से इन संस्थाओं में आमूलचूल परिवर्तन तथा सुधार आ जाएगा, पर हकीकत तो यही है कि, यह मृग मरीचिका मात्र है, अंततः  ये उपक्रम  सिर्फ़ लूट खसोट का अड्डा बन जाएँगे। इस तरह किए जा रहे निजीकरण को दरअसल एक व्यवस्था नहीं , बल्कि नव रियासतीकरण  माना जा सकता है।
ध्यान रहे कि, सरकारी जनता की कीमत पर लाभ कमाने के लिए नहीं चुनी जाती,और समाज में हर कार्य केवल लाभ कमाने के लिए नहीं किया जाता। अगर हर काम में मात्र लाभकेन्द्रित  सियासत होगी तो आम जनता का क्या होगा। कुछ दिन बाद नवरियासतीकरण वाले यही लोग कहेगें कि देश के उद्यानों, खेलकूद के मैदानों, स्टेडियम, वाचनालय ओं बाल गृहों,  सरकारी स्कूलों, कालेजों, अस्पतालों से कोई लाभ नहीं है अत: इनको भी या तो बंद कर दिया जाए अथवा निजी हाथों में दे दिया जाय तो जनता का क्या होगा।
अब हम एक नजर डालें प्राइवेट स्कूलों में डोनेशन,भारी फीस ,हॉस्टल ड्रेस पुस्तक कापी,आदि के नाम पर हो रही भारी लूट के पर,, और एक बार हम प्राइवेट अस्पतालों में जांच तथ इलाज के नाम पर हो रही धांधली तथा अमानवीय लूट के बारे में भी सोचे जहां की संवेदनहीनता का आलम यह है कि जब तक भारी फीस का एक-एक पैसा वसूल नहीं कर लिया जाता तब तक मरे हुए मरीज के लाश को भी परिजनों को नहीं दिया जाता बल्कि लाश को बंधक बनाकर भी पैसे वसूले जाते हैं। अब अगर देश की आम जनता प्राइवेट स्कूलों और हास्पिटलों के लूटतंत्र से संतुष्ट है,औ तो रेलवे, बैंकों एंव अन्य सरकारी संस्थाओं को भी निजी हाथों में जाने का स्वागत करें।
हमने बेहतर व्यवस्था बनाने के लिए सरकार बनाई है न कि इन अनमोल  सरकारी संपत्तियों को मुनाफाखोरों को बेचने के लिए। अगर प्रबंधन सही नहीं तो सरकार प्रबंधन को सख्ती के साथ सही करे, यह सरकार की जिम्मेदारी है। इन समस्याओं से मुंह मोड़ने और जिम्मेदारियों से भागने से  काम नही चलेगा।
हमें यह समझना होगा की यह घटनाक्रम दरअसल सोची समझी साजिश के हिस्से हैं, कि पहले सरकारी संस्थानों को ठीक से काम न करने दो, फिर इनके वित्तीय खातों तथा कुप्रबंधन को लेकर इन्हें लगातार बदनाम करो,  जिससे निजीकरण करने पर कोई  बोल ना पाए , फिर धीरे से अपने चहेते आकाओं को बेच दो। जिन्होंने चुनाव के भारी भरकम खर्च की फंडिंग की है। इसलिए कि शुरुआत में जो हमने बीएसएनएल, एमटीएनएल के निजीकरण की चर्चा की है इस संदर्भ में में एक विशेष तथ्य रेखांकित करना चाहूंगा वह यह है कि वर्तमान में इस संस्था के कार्यालय पूरे देश में राजधानियों, हर जिला मुख्यालयों सहित हर छोटी-छोटी जगहों पर भी मौजूद हैं, आज इनकी कार्यालय सरकारी जमीनों पर  इन शहरों की प्रमुख व्यावसायिक जगहों पर है और यह जमीने आज की तारीख में अकूत खजाने में बदल गई हैं। बीएसएनएल, एमटीएनएल की  इन सभी जमीनों का मूल्य यदि निष्पक्ष रुप से आकलित किया जाए तो आप यकीन करिए इस राशि से इन निजी समूची कंपनियों को  खरीदा जा सकता है, जो की व्यवस्था सुधारने के नाम पर बीएसएनएल, एमटीएनएल के अधिग्रहण करने में सरकार के सहयोग और प्रयासों से लगी हुई है, और निश्चित रूप से सफल भी हो जाएंगी। यह ढर्रा अगर आगे भी जारी रहा तो आप  ताम्रपत्र पर लिख लीजिए , आज नहीं तो कल,,, जल्द ही, सरकारी  पोस्ट ऑफिसों का भी निजी करण होना तय है और उसकी जमीन जमीने तो और भी अधिक फायदे देने का सौदा साबित होने वाली है। *दरअसल यह तो  सरकारी खजाने की ऐलानिया लूट है,, और यह भी ध्यान रखें यह खजाना सरकार का नहीं है जनता का है।*
याद रखिये पार्टी फण्ड में गरीब मज़दूर, किसान पैसा नही देता। पूंजीपति देते हैं। और ये पूंजीपति यह भारी भरकम राशि  दान में नहीं देता, वह भली-भांति सोच समझकर और इन राजनीतिज्ञों से बाकायदा सौदा करके, निवेश करता है। और चुनाव के बाद  मुनाफे की फसल काटता है। ध्यान रखिए किसी सरकारी संस्था में अव्यवस्था अनुशासनहीनता अथवा अलाभकारी होने का   इलाज निजी करण मात्र नहीं है, जैसा कि प्रचारित किया जा रहा है। उचित नेतृत्व,कुशल प्रबंधन सकारात्मक नीतियों के क्रियान्वयन के ठोस प्रयासों के जरिए इन संस्थानों को समुचित तरीके से चलाया जा सकता है तथा इससे पूरे देश को लाभ मिलेगा।क्या ध्यान रखें यह कोई असंभव कार्य नहीं है ऐसे सैकड़ों उदाहरण मौजूद हैं जब इस तरह के छोटे बड़े सरकारी उपक्रमों को कुशल प्रबंधन तंत्र, समुचित वित्तीय सहायता व समुचित दूरगामी नीति के जरिए घाटे के गर्भ से निकाल कर फिर से लाभकारी तथा जनहितकारी बनाया गया है। सबसे बुरा हाल तो इस देश में देश की कृषि व्यवस्था तथा किसानों की है। सरकार का किसानों की भूमि कारपोरेट घरानों  को देने के लिए निरंकुश भूमि अधिग्रहण का कानून आ ही गया था, वह तो भला हो कि, सही समय पर कुछ किसान संगठन चेत गए,  और किसानों की नाराजगी को देखते हुए सरकार ने कदम वापस खींच लिये, वरना देश के किसानों की बहुमूल्य जमीनें कंपनियों के साथ हो जाते देर न लगती। आज की खतरा टला नहीं है बड़ी सी होशियारी से केंद्र ने भूमि अधिग्रहण के मुद्दे को राज्यों के पाले में ढकेल दिया है और राज्यों के स्तर पर इसमें भी सरकारों को मनमानी की पूरी छूट  है ।
दरअसल सरकारें इस मलाईदार गोरखधंधे में इतनी ज्यादा उलझी हुई हैं कि, रसातल की ओर जा रही  देश की किसानी तथा किसानों की दशा दुर्दशा की ओर देखने समझने तथा इसे सुधारने की इमानदारी से कोशिश करने की फुर्सत ही नहीं है।
*हमें यह समझना होगा कि निजीकरण कोई रामबाण इलाज नहीं है सरकारी संस्थानों की अव्यवस्था और हो रहे घाटों  का, बल्कि यह समस्या के हल की बजाय समस्या से पलायन है।  इसलिए इस अविवेक कारी निजी करण का विरोध किया जाना देश तथा समाज के हित में है । सरकारों को यह समझना ही होगा कि इन सरकारी उपक्रमों को सही तरीके से चलाना उनकी जिम्मेदारी है, इस जिम्मेदारी से भागने से काम नहीं चलेगा। और इन सरकारी उपक्रमों को इन सरकारी संपत्तियों को जो कि सीधे सीधे जनता की संपत्ति है इन्हें  बेचने की सोचना भी राष्ट्रद्रोह है। और जो भी इन सरकारी उपक्रमों को सरकारी संपत्तियों को हाथ लगाएगा उसे इस देश की जनता तथा हमारा यह  लोकतंत्र उसे माफ नहीं करेगा।
 
डॉ राजाराम त्रिपाठी
राष्ट्रीय संयोजक अखिल भारतीय किसान महासंघ  (आईफा)
९४२५२५८१०५

लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने अयोध्या में रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले को लेकर सोमवार को ट्वीट करके कहा कि सभी को सुनवाई के बाद जो भी फैसला आए, उसका सम्मान करना चाहिए और देश में हर जगह साम्प्रदायिक सौहार्द का वातावरण कायम रखना चाहिए। यही व्यापक जनहित व देशहित में सर्वोत्तम होगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में संबंधित पक्षों को 17 अक्टूबर तक बहस खत्म करने को कहा है। इससे पहले कोर्ट ने बहस पूरी करने के लिए 18 अक्टूबर की तारीख तय की थी। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली संवैधानिक पीठ कर रही है। सीजेआई गोगोई का कार्यकाल 17 नवम्बर को खत्म हो रहा है। अब 17 अक्टूबर तक सभी पक्षों की दलील पूरी हो जाएगी, जिसके बाद जजों को फैसला लिखने के लिए चार हफ्ते का वक्त मिल सकेगा। बहस खत्म होने की तारीख करीब आने से पहले प्रतिक्रियाओं का दौर भी तेज हो गया है। गोरक्षपीठाधीश्वर व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में गोरखपुर में कथावाचक मोरारी बापू के मंच से कहा कि मुझे विश्वास है कि भगवान राम की शक्ति देश, समाज को आगे बढ़ाती है। आने वाले कुछ समय में हम लोगों को बहुत अच्छी खुशखबरी सुनने को मिल सकती है। मुख्यमंत्री के इस बयान को अयोध्या में मंदिर निर्माण से जोडकऱ देखा जा रहा है। मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद उन्नाव से भाजपा सांसद साक्षी महराज ने भी कहा कि अयोध्या मामले में अच्छी खबर मिलने वाली है। छह दिसम्बर तक अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण प्रारंभ हो जाएगा।
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खुर्शीद के बयान पर बीजेपी का तंज
नईदिल्ली। पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने अपनी पार्टी कांग्रेस और राहुल गांधी पर निशाना साधा है. जिसके बाद बीजेपी ने उनके बयान पर प्रतिक्रिया दी है. बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने सलमान खुर्शीद के बयान को महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले हार मानने के रूप में पेश किया है. पात्रा ने कहा, आखिरकार कांग्रेस ने मान ही लिया कि उसके पास न तो नेता है और न ही नीति और नीयत.
ज्ञात हो कि सलमान खुर्शीद ने पत्रकारों से बात करते हुए कांग्रेस पार्टी की मौजूदा हालत पर चिंता जाहिर की थी. उन्होंने कहा, हमारी सबसे बड़ी समस्या ये है कि हमारे नेता ने हमें छोड़ दिया. पार्टी इस समय ऐसी जगह पर संघर्ष कर रही है कि जिसे देखकर कहा जा सकता है कि वह आने वाले विधानसभा चुनावों में जीत हासिल नहीं कर सकती.
कांग्रेस नेता के इस बयान पर बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने ट्वीट किया, खुर्शीद मानते हैं कि राहुल गांधी छोड़ गए और सोनिया गांधी सिर्फ फौरी इंतजाम देख रही हैं. इसका मतलब है कि कांग्रेस में कोई नेता, नीति और नीयत नहीं बचा है.
संबित पात्रा ने सलमान खुर्शीद के बयान को महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की पस्त हालत से जोड़ दिया. उन्होंने कहा- दोनों राज्यों में 21 अक्टूबर को होने वाले मतदान से पहले आखिरकार कांग्रेस ने दोनों राज्यों में अपनी पराजय स्वीकार कर ली है.
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दशहरा बुराइयों से संघर्ष का प्रतीक पर्व है, आज भी अंधेरों से संघर्ष करने के लिये इस प्रेरक एवं प्रेरणादायी पर्व की संस्कृति को जीवंत बनाने की जरूरत है। प्रश्न है कौन इस संस्कृति को सुरक्षा दे? कौन आदर्शों के अभ्युदय की अगवानी करे? कौन जीवन-मूल्यों की प्रतिष्ठापना में अपना पहला नाम लिखवाये? बहुत कठिन है यह बुराइयों से संघर्ष करने का सफर। बहुत कठिन है तेजस्विता की यह साधना। आखिर कैसे संघर्ष करें घर में छिपी बुराइयों से, जब घर आंगन में रावण-ही-रावण पैदा हो रहे हों, चाहे भ्रष्टाचार के रूप में हो, चाहे राजनीतिक अपराधीकरण के रूप में, चाहे साम्प्रदायिक विद्वेष फैलाने वालों के रूप में हो, चाहे शिक्षा, चिकित्सा एवं न्याय को व्यापार बनाने वालों के रूप में।
 
 
विजयादशमी-दशहरा आश्विन शुक्ल दशमी को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह हर साल दिपावली के पर्व से 20 दिन पहले आता है। लंका के असुर राजा रावण पर भगवान राम की जीत को दर्शाता है दशहरा। भगवान राम सच्चाई के प्रतीक हैं और रावण बुराई की शक्ति का। देवी दुर्गा की पूजा के साथ हिन्दू लोगों के द्वारा यह महान धार्मिक उत्सव और दस्तूर मनाया जाता है। इस पर्व को पूरे देश में मनाने की परंपरा और प्रक्रिया अलग-अलग है। भगवान राम युद्ध की देवी मां दुर्गा के भक्त थे, उन्होंने युद्ध के दौरान पहले नौ दिनों तक मां दुर्गा की पूजा की और दसवें दिन दुष्ट रावण का वध किया। इसके बाद राम ने भाई लक्ष्मण, भक्त हनुमान और बंदरों की सेना के साथ एक बड़ा युद्ध लड़कर सीता को छुड़ाया। इसलिए विजयादशमी बुराई पर अच्छाई, असत्य पर सत्य और अंधकार पर प्रकाश का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण दिन है। इस दिन रावण, उसके भाई कुम्भकर्ण और पुत्र मेघनाद के पुतले खुली जगह में जलाए जाते हैं।
 
दशहरे का सांस्कृतिक पहलू भी है। यह देश की सांस्कृतिक एकता और अखण्डता को जोड़ने का पर्व भी है। देश के अलग-अलग भागों में वहां की संस्कृति के अनुरूप यह पर्व मनाया जाता है, इस पर्व के माध्यम से सभी का स्वर एवं उद्देश्य यही होता है कि बुराई का नाश किया जाये और अच्छाई को प्रोत्साहन दिया जाये। नवरात्रि के बाद दशहरा का अंतिम यानी दसवां दिन है- विजयदशमी, जिसका मतलब है कि आपने तमस, रजस या सत्व तीनों ही गुणों को जीत लिया है, उन पर विजय पा ली है। आप इन तीनों गुणों से होकर गुजरे, तीनों को देखा, तीनों में भागीदारी की, लेकिन आप इन तीनों में से किसी से भी, किसी भी तरह जुड़े या बंधे नहीं, आपने इन पर विजय पा ली। यही विजयदशमी है- आपकी विजय का दिन।
 
इस तरह से नवरात्रि के नौ दिनों के प्रति या जीवन के हर पहलू के प्रति एक उत्सव और उमंग का नजरिया रखना और उसे उत्सव की तरह मनाना सबसे महत्वपूर्ण है। अगर आप जीवन में हर चीज को एक उत्सव के रूप में लेंगे तो आप बिना गंभीर हुए जीवन में पूरी तरह शामिल होना सीख जाएंगे। दरअसल ज्यादातर लोगों के साथ दिक्कत यह है कि जिस चीज को वो बहुत महत्वपूर्ण समझते हैं उसे लेकर हद से ज्यादा गंभीर हो जाते हैं। अगर उन्हें लगे कि वह चीज महत्वपूर्ण नहीं है तो फिर उसके प्रति बिल्कुल लापरवाह हो जाएंगे- उसमें जरूरी भागीदारी भी नहीं दिखाएंगे। जीवन का रहस्य यही है कि हर चीज को बिना गंभीरता के देखा जाए, लेकिन उसमें पूरी तरह से भाग लिया जाए- बिल्कुल एक खेल की तरह। अज्ञान मिटे, इस बात का प्रयत्न बहुत जरूरी है। आदमी बुराई को बुराई समझते हुए भी करता है, बार-बार करता है। यह एक समस्या है। छोटी-मोटी बुराई तो अनजाने में हो जाती है, किन्तु बड़ी बुराई कभी अनजाने में नहीं होती। बड़ी बुराई आदमी जानबूझ कर करता है। इस दुनिया में हर बड़ा पाप जानबूझ कर किया जा रहा है। आप रास्ते पर चल रहे हैं। पैरों के नीचे दबकर चींटी मर जाए तो यह अनजाने में हुआ पाप है। किन्तु किसी का गला तो अनजाने में नहीं काटा जा सकता। उसे तो बहुत सोच-समझकर योजनाबद्ध ढंग से किया जा रहा है। हम जानते भी हैं कि बुराई क्यों कर रहे हैं- इस बात का उत्तर खोजा जाना चाहिए और शायद इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए ही दशहरा जैसे पर्व मनाये जाते हैं।
 
दशहरा शक्ति की साधना, कर्म एवं पूजा का भी पर्व है। इसी दिन लोग नया कार्य प्रारम्भ करते हैं, शस्त्र-पूजा की जाती है। प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण-यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे। भारतीय संस्कृति वीरता की पूजक है, शौर्य की उपासक है। व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता प्रकट हो इसलिए दशहरे का उत्सव रखा गया है। दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है। आज दशहरा का पर्व मनाते हुए सबसे बड़ी जरूरत भीतर के रावण को जलाने की है। क्योंकि ईमानदार प्रयत्नों का सफर कैसे बढ़े आगे जब शुरूआत में ही लगने लगे कि जो काम मैं अब तक नहीं कर सका, भला दूसरों को भी हम कैसे करने दें? कितना बौना चिन्तन है आदमी के मन का कि मैं तो बुरा हूं ही पर दूसरा भी कोई अच्छा न बने। इस बौने चिन्तन के रावण को जलाना जरूरी है।
 
भारतीय संस्कृति सदा से ही वीरता व शौर्य की समर्थक रही है। प्रत्येक व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता का प्रादुर्भाव हो, इसी उद्देश्य से भी दशहरे का उत्सव मनाया जाता है। यदि कभी युद्ध अनिवार्य ही हो तब शत्रु के आक्रमण की प्रतीक्षा ना कर उस पर हमला कर उसका पराभव करना ही कुशल राजनीति है। भगवान राम के समय से यह दिन विजय प्रस्थान का प्रतीक निश्चित है। भगवान राम ने रावण से युद्ध हेतु इसी दिन प्रस्थान किया था। मराठा रत्न शिवाजी ने भी औरंगजेब के विरुद्ध इसी दिन प्रस्थान करके हिन्दू धर्म का रक्षण किया था। भारतीय इतिहास में अनेक उदाहरण हैं जब हिन्दू राजा इस दिन विजय-प्रस्थान करते थे।
 
आज पर्यावरण प्रदूषण की समस्या भयावह रूप ले रही है। इस पर भी प्रश्न हो सकता है कि आदमी गंदगी बढ़ा रहा है जानबूझ कर या अनजाने में? यह निर्विवाद सत्य है कि अगर स्वच्छता की चेतना जाग जाए तो गंदगी हो नहीं सकती। स्वच्छता की चेतना अगर नहीं है तो दुनिया की कोई भी नगरपालिका किसी नगर को साफ-सुथरा नहीं रख सकती। दशहरे पर स्वयं के पापों को धोने के साथ-साथ जरूरत जन-जन के मनों को भी मांजने की है। जरूरत उन अंधेरी गलियों को बुहारने की है ताकि बाद में आने वाली पीढ़ी कभी अपने लक्ष्य से न भटक जाये। जरूरत है सत्य की तलाश शुरू करने की जहां न तर्क हो, न सन्देह हो, न जल्दबाजी हो, न ऊहापोह हो, न स्वार्थों का सौदा हो और न दिमागी बैसाखियों का सहारा हो। वहां हम स्वयं सत्य खोजें। मनुष्य मनुष्य को जोड़ें। दशहरा एक चुनौती बनना चाहिए उन लोगों के लिये जो अकर्मण्य, आलसी, निठल्ले, हताश, सत्वहीन बनकर सिर्फ सफलता की ऊंचाइयों के सपने देखते हैं पर अपनी दुर्बलताओं को मिटाकर नयी जीवनशैली की शुरूआत का संकल्प नहीं स्वीकारते।
 
-ललित गर्ग

बसपा सुप्रीमो मायावती के करीबी माने जाने वाले पूर्व नौकरशाह नेतराम पर जब आयकर विभाग ने शिकंजा कसना शुरू कर दिया तो इसे मोदी−योगी सरकार की बदले की कार्रवाई समझा गया, लेकिन नेतराम की हकीकत कुछ और ही निकली।

 

केन्द्र की मोदी और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति के साथ आगे बढ़ रही है। सरकारी रूख के चलते कई दशकों से भ्रष्टचार की गंगा में डुबकी लगाने और प्रदेश को दीमक की तरह खोखला करने वाले उत्तर प्रदेश के नौकरशाह (ब्यूरोक्रेसी) लगातार जांच एजेंसियों के 'रडार' पर आते जा रहे हैं। कई ऐसे आईएएस अधिकारियों की भी पोल खुल रही है जो अरोबों रूपए की काली कमाई करने के बाद भी ईमानदारी का चोला ओढ़े घूम रहे थे। रिटायर्ड आईएएस नेतराम इसकी सबसे बड़ी मिसाल हैं।
  
बसपा सुप्रीमो मायावती के करीबी माने जाने वाले पूर्व नौकरशाह नेतराम पर जब आयकर विभाग ने शिकंजा कसना शुरू कर दिया तो इसे मोदी−योगी सरकार की बदले की कार्रवाई समझा गया, लेकिन नेतराम की हकीकत कुछ और ही निकली। आयकर विभाग ने नेतराम के ठिकानों पर छापे मारकर 230 करोड़ रुपए की बेनामी संपत्ति जब्त की। नेतराम 2003−05 के दौरान उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री के सचिव थे। नेतराम उत्तर प्रदेश में आबकारी, गन्ना उद्योग विभाग, डाक एवं पंजीकरण, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभागों के प्रमुख रह चुके हैं। इससे पहले आयकर विभाग ने नेतराम के दिल्ली, कोलकाता, लखनऊ समेत 12 ठिकानों पर छापे मारे थे, जिसमें करोड़ों की प्रॉपर्टी होने का खुलासा हुआ था। सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी नेतराम के परिसरों पर आयकर विभाग के छापों में 1.64 करोड़ रुपये की नकदी, 50 लाख रुपये मूल्य के कीमती पेन, चार आलीशान कारें और 300 करोड़ रुपये की बेनामी संपत्तियों के दस्तावेज जब्त किये गये।
 
पूर्व नौकरशाह नेतराम पर आयकर विभाग का शक तब गहराया जब उसे नेतराम के उत्तर प्रदेश की एक पार्टी से लोकसभा चुनाव की टिकट पाने की बातचीत के बारे में अहम सुराग हाथ लगे थे। आयकर विभाग की जांच के दायरे में आए नेतराम के ठिकानों से 30 'मुखौटा कंपनियों' से संबंधित दस्तावेज भी बरामद हुए। इन कंपनियों में नेतराम के परिजनों और ससुराल के लोगों की हिस्सेदारी है। इससे पहले मारे गए छापों में आईएएस नेतराम के ठिकानों से 300 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति, कोलकाता की शेल कंपनियों के जरिए लेनदेन के दस्तावेज सहित दिल्ली के ग्रेटर कैलाश, कस्तूरबा गांधी मार्ग सहित तीन जायदादों का खुलासा हुआ था। नेताराम के यहां से अब तक कुल 2 करोड़ रुपये से ज्यादा नकदी के अलावा दिल्ली, कोलकाता और लखनऊ में जायदादों का खुलासा हो चुका है। पूर्व नौकरशाह के लग्जरी घर में प्राइवेट थिएटर से लेकर जिम तक सब सुविधा है। नेतराम के पास से तीन कंपनियों और इलाहाबाद के एक आरटीओ के नाम पर कारें मिलीं।
 
बात नेतराम से आगे की कि जाए तो कड़वा सच यह है कि उत्तर प्रदेश में नौकरशाहों के भ्रष्टाचार का इतिहास काफी पुराना है। यूपी के दो आईएएस अधिकारियों पूर्व मुख्य सचिव नीरा यादव और प्रमुख सचिव (नियुक्ति) राजीव कुमार को तो सुप्रीम कोर्ट भ्रष्टाचार का दोषी मानते हुए दो साल की सजा भी सुना चुका है। इन दोनों को सजा मिलने के बाद भ्रष्ट आईएएस अफसरों ने कोई सबक नहीं लिया। यह अधिकारी एक तरफ भ्रष्टाचार की गंगा में गोते लगाकर खूब फले−फूले तो दूसरी तरफ सरकारी संरक्षण हासिल करके अपने आप को बचाते रहे, लेकिन यह सिलसिला अब थम गया है। केंद्र की मोदी सरकार की तर्ज पर सूबे की योगी सरकार ने भी भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश के तमाम भ्रष्ट अफसरों का ब्यौरा सीएम कार्यालय मंगवा लिया गया है। ये वो अफसर हैं, जिनके खिलाफ बड़े−बड़े मामले होने के बाद भी शासन की तरफ से अभियोजन की स्वीकृति नहीं दी जा रही थी।
 
खैर, बात नीरा यादव और राजीव कुमार से आगे बढ़ाई जाए तो अखंड प्रताप सिंह का नाम सामने आता है। 1967 बैच के आईएएस और मुख्य सचिव रह चुके अखंड प्रताप सिंह यूपी के भ्रष्ट अधिकारियों की उस सूची में शामिल थे, जिसे आईएएस एसोसिएशन द्वारा ही जारी किया गया था। आय से अधिक सम्पत्ति मामले में अखंड प्रताप सिंह भी जेल की हवा भी खा चुके हैं। इनका नाम बीज घोटाले में भी आया था। 1981 बैच के आईएएस टॉपर प्रदीप शुक्ला एनआरएचएम घोटाले के मुख्य आरोपियों में से एक हैं। फिलहाल मामले की जांच सीबीआई के पास है। जेल जाने के बाद अभी वे जमानत पर बाहर हैं।
 
1984 बैच के आईएएस टॉपर ललित वर्मा का नाम आईएएस एसोसिएशन की लिस्ट में भ्रष्ट अधिकारियों में शामिल रहा था। ललित पर यूपीएससी की गोपनीय फाइल में उम्र में हेराफेरी का आरोप लगा था। सीबीआई ने मामले में चार्जशीट दाखिल की थी, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। फिलहाल सरकार से अनुमति न मिलने की वजह से सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में मामले को चुनौती नहीं दी है। 2000 बैच की आईएएस अफसर के. धनलक्ष्मी के घर से सीबीआई ने करीब सवा तीन करोड़ रूपये की संपत्ति के दस्तावेज जब्त किए थे। इनके ऊपर आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज किया गया है। आईएएस सदाकांत को लेह में सड़क निर्माण की गलत तरीके से मंजूरी देने के बाद केंद्र ने उन्हें रिलीव कर दिया था। देहरादून में इनके खिलाफ मुकदमा भी दर्ज हुआ है।
 
1971 बैच के इस आईएएस बलजीत सिंह लाली पर प्रसार भारती का सीईओ रहते हुए भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे। इस मामले में सीवीसी जांच भी हुई थी। संजीव सरन (आईएएस) पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे। नोएडा में तैनाती के दौरान इन्होंने किसानों की जमीन औने−पौने दाम पर बिल्डरों को बेच दी। सरन को हाईकोर्ट के आदेश के बाद हटा दिया गया था। सपा सरकार में ये महत्वपूर्ण पदों पर रहे। योगी सरकार में भी वह प्रमुख सचिव आईटी के पद पर तैनात हुए। धन कुबेर के नाम से मशहूर यादव सिंह इंजीनियर ने अपनी काली कमाई की वजह से मीडिया में खूब सुर्खियां बटोरीं। यादव सिंह अब भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में बंद है।
 
उत्तर प्रदेश में खनन घोटालों ने भी खूब नाम कमाया है। इसके चलते भी कई ब्यूरोक्रेट्स शिकंजे में हैं। छह जिलों के तत्कालीन डीएम खनन के अवैध पट्टे देने के आरोप में कार्रवाई की जद में हैं। हमीरपुर, फतेहपुर और देवरिया जिलों के तत्कालीन डीएम पर सीबीआई केस दर्ज कर चुकी है। इसी प्रकार 2013 में शामली, कौशांबी और सिद्धार्थनगर जिलों में डीएम रहे अधिकारी भी सीबीआई की रडार पर हैं। यूपी के अलग−अलग जिलों में छापेमारी के दौरान सीबीआई को अहम सुबूत मिले थे। खनन घोटाले में सीबीआई की छापेमारी के बाद प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भी सक्रिय हो गया था। खनन घोटाले में सीबीआई के कदम बढ़ाने के बाद ईडी भी कार्रवाई कर सकती है। उक्त अधिकारियों के खिलाफ ईडी की लखनऊ यूनिट मनी लांन्ड्रिग का केस दर्ज कर सकती है। खनन घोटाले में फंसे आईएएस अफसर अभय सिंह और विवेक के अलावा सीनियर पीसीएस अधिकारी देवीशरण उपाध्याय भी मनी लांन्ड्रिग के केस में फंसते नजर आ रहे हैं।
 
कुछ माह पूर्व सीबीआई ने छापेमारी के दौरान बुलंदशहर के जिलाधिकारी रहे आईएएस अभय सिंह के आवास से 49 लाख रुपये बरामद किए थे। 10 लाख रुपये आजमगढ़ के मुख्य विकास अधिकारी रहे 2011 बैच के आईएएस देवीशरण उपाध्याय के पास से बरामद हुए थे। आईएएस अफसर विवेक के पास से भी अहम दस्तावेज बरामद हुए थे। खनन घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय आईएएस अफसर बी. चंद्रकला के खिलाफ पहले ही मनी लांन्ड्रिग का केस दर्ज कर चुका है। खनन घोटाले में नामजद अभय सिंह पर हाल ही में मामा से मारपीट करने का आरोप लगा है।
 
सूत्र बताते हैं कि हमीरपुर, कौशांबी, शामली, फतेहपुर, देवरिया और सहारनपुर के बाद बांदा और चित्रकूट में हुए खनन घोटाले को लेकर जल्द सीबीआई का शिकंजा कसेगा। सीबीआई ने छह जिलों की एफआईआर दर्ज करने के बाद इन दोनों जिलों में हुए घोटाले को लेकर अपनी पड़ताल शुरू कर दी है। जरूरी साक्ष्य जुटाने के बाद सीबीआई इनमें केस दर्ज करेगी। 
 
गौरतलब है कि बसपा और सपा सरकार के दौरान वर्ष 2007 से 2012 के बीच चित्रकूट और बांदा में अवैध खनन होने की तमाम शिकायतें मिली थीं। जांच के दायरे में सत्तारूढ़ दलों के नेता थे, इसलिए किसी भी एजेंसी ने हाथ डालने की कोशिश नहीं की। अब सीबीआई एक−एक करके अवैध खनन प्रभावित सभी जिलों की जांच कर रही है। ऐसे में इन दोनों जिलों के तत्कालीन डीएम और नेताओं की गर्दन फंसना तय माना जा रहा है।
 
इसी क्रम में सहारनपुर खनन घोटाले में केस दर्ज करने के लिए ईडी ने अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं। ईडी हमीरपुर, कौशांबी, शामली, फतेहपुर और देवरिया के खनन घोटाले में केस दर्ज कर पहले से ही जांच कर रही है। वहीं ईडी बाबू सिंह कुशवाहा और मोहम्मद इकबाल के खिलाफ मनी लांन्ड्रिग के मामले की भी पड़ताल कर रही है, जबकि एनआरएचएम घोटाले में बाबू सिंह की कई संपत्तियों को अटैच कर चुकी है। ऐसे में माना जा रहा है कि ईडी और सीबीआई को तीनों घोटालों की कड़ियां जोड़ने में दिक्कत नहीं आएगी।
 
खनन घोटाले में फंसे आईएएस अधिकारियों की लिस्ट यहीं खत्म नहीं होती है। समाजवादी पार्टी की सरकार में विशेष सचिव (खनन) रहे संतोष राय अवैध खनन घोटाले में सीबीआई की एफआईआर में नामजद हैं। एसपी सरकार में प्रमुख सचिव रहे जीवेश नंदन फतेहपुर खनन घोटाले में सीबीआई की एफआईआर में नामजद हैं
    
सिक्के का यह पहलू यह भी है कि एक तरफ तो योगी सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त नजर आ रही है, लेकिन कहीं−कहीं उसकी कार्यशैली पर भी प्रश्न चिन्ह लग रहा है। पिछले साल तीन आईएएस अफसर हृदय शंकर तिवारी, सतेंद्र कुमार सिंह और विमल कुमार वर्मा के यहां आयकर के छापे पड़े और लाखों की नगदी बरामद हुई, लेकिन तीनों के खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं की गई। बुलंदशहर में गोकशी को लेकर हुई हिंसा के मामले में एसएसपी समेत तमाम पुलिस अफसरों पर कार्रवाई हुई, लेकिन डीएम अनुज झा को सरकार ने बख्श दिया।
 
उत्तर प्रदेश में भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ सरकार ने कड़े कदम उठाते हुए 600 अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की है। इनमें 200 अधिकारी ऐसे हैं, जिन्हें पिछले दो साल में जबरन रिटायरमेंट दे दिया गया। उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री एवं प्रदेश सरकार के प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा ने हाल ही में कहा था, ''हमारी सरकार की भ्रष्ट और ढीले−ढाले अफसरों के खिलाफ 'जीरो टॉलरेंस' की नीति है, पिछले दो साल के दौरान अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की गई है, उन्हें वीआरएस दिया गया है और कई अधिकारियों को चेतावनी दी गई है और उनके प्रमोशन रोक दिए गए हैं। उन्होंने बताया कि सरकार ने 200 से ज्यादा अधिकारियों और कर्मचारियों को जबरन वीआरएस दिया है, जबकि 400 से ज्यादा अधिकारियों और कर्मचारियों को दंड दिया गया है यानी अब उनका प्रमोशन नहीं होगा, साथ ही उनका तबादला किया गया है।
 
सूत्रों के अनुसार पिछले दो साल में 600 के लगभग अधिकारियों पर कार्रवाई की गयी है। इनमें 169 बिजली विभाग के अधिकारी हैं, 25 अधिकारी पंचायती राज, 26 बेसिक शिक्षा, 18 पीडब्ल्यूडी विभाग के और बाकी अन्य विभागों के हैं। करीब 200 अधिकारियों को वीआरएस दिया गया है। प्रशासनिक सूत्रों की मानें तो इस कार्रवाई के अलावा 150 से ज्यादा अधिकारी अब भी सरकार के रडार पर हैं। इनमें ज्यादातर आईएएस और आईपीएस अफसर हैं। इन सभी पर फैसला केंद्र सरकार लेगी। इन अधिकारियों की सूची तैयार कर केंद्र सरकार को भेजी गई है।
 
बता दें कि 20 जून को सचिवालय प्रशासन विभाग की समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बेईमान और भ्रष्ट अधिकारियों को आड़े हाथ लिया था। उन्होंने कहा था कि बेईमान−भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए सरकार में कोई जगह नहीं है। इन्हें तत्काल वीआरएस दे दीजिए। 1996 में आईएएस एसोसिएशन ने अपने बीच के तीन महाभ्रष्ट आईएएस अधिकारियों का खुलासा किया था, जिमसें से नीरा यादव और अखण्ड प्रताप सिंह जेल जा चुके हैं और ब्रजेन्द्र यादव दिवंगत हो चुके हैं।
 
-अजय कुमार

आजम के काले कारनामों का सच जानकर लोग हैरान हैं तो ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं है जो इसे (आजम पर मुकदमे) योगी सरकार की साजिश बताकर आजम का बचाव कर रहे हैं। यहां तक कि समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव भी ऐसा ही सोचते हैं।

 योगी सरकार द्वारा भूमाफिया घोषित किए गए बदजुबान नेता और सांसद आजम खान आजकल कोर्ट−कचहरी से लेकर थाने तक के चक्कर लगा रहे हैं। आम चुनाव के समय अपनी प्रतिद्वंद्वी और पूर्व सिने तारिका जयाप्रदा के वस्त्रों पर टिप्पणी करने वाले आजम, भारत माता से लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, लोकसभा की कार्यवाही का संचालन कर रहीं रमा देवी, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक, भारतीय सेना, ब्यूरोक्रेसी, संजय और राजीव गांधी की असामयिक मृत्यु सहित तमाम मसलों पर विवादित बयानबाजी के चलते खूब सुर्खियां बटोरते रहे हैं। कुछ मामलों में जब 'पानी सिर से ऊपर' चला गया तो आजम को माफी मांग कर पीछा छुड़ाना पड़ा। सत्ता में रहते और सत्ता से बाहर रहने के दौरान भी आजम कभी डरे नहीं, डिगे नहीं। उन्हें अपनी कही बातों पर कभी पछतावा भी नहीं हुआ, लेकिन योगी राज में नजारा काफी बदल गया है। बड़बोले आजम घुटने के बल आ गए हैं। आजम ने न केवल समाजवादी सरकार के समय वाला 'इकबाल' खो दिया है, बल्कि सत्ता में रहते उनके द्वारा जो काले कारनामे किए गए थे उसकी भी परत−दर−परत खुलने लगी है। अब आजम की हनक−धमक वाली बातें बेमानी हो गई हैं। आजम ही नहीं उनकी पत्नी, बेटा और कुछ करीबी भी अदालतों से लेकर थाना−पुलिस के चक्कर में फंसे हुए हैं। जांच एजेंसी एसआईटी लगातार आजम परिवार से पूछताछ कर रही है। आजम को एसआईटी के सवालों का जवाब देने में पसीने छूट रहे हैं।

आजम के काले कारनामों का सच जानकर लोग हैरान हैं तो ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं है जो इसे (आजम पर मुकदमे) योगी सरकार की साजिश बताकर आजम का बचाव कर रहे हैं। यहां तक कि समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव भी ऐसा ही सोचते हैं। इसीलिए पिछले माह उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस करके कार्यकर्ताओं से आजम के समर्थन में आंदोलन चलाने तक का आह्वान किया था। यह और बात थी कि नेताजी की बात को न तो पार्टी कार्यकर्ताओं ने और न ही अखिलेश यादव ने गंभीरता से लिया। हाँ, एक बार आजम के समर्थन में जरूर अखिलेश रामपुर पहुंचे थे, परंतु उनके कार्यक्रम में वह धार नहीं दिखाई दी जो सपा के आंदोलन में देखने को मिलती है। सब तरफ से निराशा−हताश आजम खान के लिए अंतिम सहारा अदालत थी। योगी सरकार की कथित 'साजिश' को आधार बनाकर आजम कोर्ट पहुंच गए, लेकिन कोर्ट भी इस बात से सहमत नहीं दिखी कि आजम 'दूध के धुले' हैं। हालांकि कुछ समय के लिए आजम को अग्रिम जमानत जरूर मिल गई। यह जमानत आजम के लिए 'डूबते को तिनके का सहारा' जैसी रही। आजम खान सबसे अधिक जौहर विश्वविद्यालय के लिए अनाप−शनाप तरीके से जमीन का जुगाड़ करने के अलावा समाजवादी सरकार में मंत्री रहते अपने अधीनस्थ जल निगम में कानून कायदे ताक पर रख कर अपने चहेतों को नियुक्तियां दिलाने के कारण फंसे हुए हैं।
 
आपराधिक, भ्रष्टाचार और जबरन जमीन कब्जाने के 85 से अधिक मामलों में मुकदमों में फंसे सपा सांसद आजम खान को एक अक्टूबर 2019 को जल निगम भर्ती घोटाले में पूछताछ के लिए एसआईटी के कहने पर लखनऊ आना पड़ा। अखिलेश यादव सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे आजम जल निगम भर्ती घोटाले में प्रमुख आरोपी हैं। एसआईटी ने आजम के साथ इस मामले में रिटायर्ड आईएएस अफसर एसपी सिंह तथा तीन अन्य अफसरों को भी नामजद किया है। सूत्रों का कहना है कि फर्जी भर्ती घोटाले में एसआईटी ने काफी पुख्ता सुबूत इकट्ठा कर लिए हैं। फॉरेंसिक रिपोर्ट आने के बाद जांच और तेजी के साथ आगे बढ़ना तय है। मालूम हो कि सपा के शासनकाल में 2016 के अंत में हुई जल निगम में 1300 पदों पर भर्तियां निकली थीं। इसमें 122 सहायक अभियंता, 853 अवर अभियंता, 335 नैतिक लिपिक और 32 आशुलिपिकों की भर्ती हुई थी। जल निगम विभाग के ही कुछ अधिकारियों ने इस संबंध में धांधली की शिकायत की थी, जिसके बाद जांच शुरू हुई। सरकार इस मामले में 122 सहायक अभियंताओं को पहले ही बर्खास्त कर चुकी है।
     
जल निगम में भर्ती घोटाला के साथ−साथ आजम के तमाम काले कारनामों और उसमें बेटा और पत्नी की भी भागीदारी खुलकर सामने आ रही है। वहीं आजम का बेटा अब्दुल्ला दो पैन कार्ड रखने का भी आरोपी है। दो पैन कार्ड रखने का मामला साबित हो गया तो अब्दुल्ला की विधायकी भी जा सकती है। हालात यह हैं कि आजम खान की पत्नी और राज्यसभा सांसद तंजीन फातिमा जो पति आजम खान के सांसद बनने के बाद उनकी खाली हुई रामपुर सदर विधान सभा सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं वह तब अपना नामांकन दाखिल कर पाईं जब उन्होंने बिजली विभाग के खाते में 30 लाख रुपए के जुर्माने की राशि जमा करा दी।
दरअसल, आजम खान के हमसफर रिजॉर्ट में रेड के दौरान 5 केवी के मीटर पर लगभग 33 केवी का लोड पाया गया। बिजली का कनेक्शन तंजीन के नाम था। रिजॉर्ट में बिजली सप्लाई के लिए अलग से एक पावर लाइन लगाई गई थी। बिजली विभाग ने जानकारी मिलने के बाद जब छापा मारा तो बिजली चोरी का खुलासा हुआ। छापे के बाद बिजली विभाग ने आजम खान के रिजॉर्ट का कनेक्शन काट दिया था और आजम खान की पत्नी तंजीम फातिमा पर बिजली चोरी अधिनियम के तहत 30 लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया था। यह रकम जमा करे बिना तंजीन नामांकन करने पहुंच गई थीं, लेकिन नियम यह है कि कोई भी सरकारी बकाया होने पर प्रत्याशी का नामांकन स्वीकार नहीं किया जाता है। इसलिए तंजीन को पहले 30 लाख रुपए जमा करने पड़े, इसके बाद उनका नामांकन स्वीकार हुआ।
 
रामपुर सदर विधान सभा उप−चुनाव आजम परिवार के लिए नाक का सवाल बन गया है। अगर यह सीट बच गई तो आजम को इससे काफी राहत मिलेगी। इस सीट की अहमियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि रामपुर से दूरी बना कर चल रहे आजम को पत्नी तंजीन फातिमा के नामांकन के समय उनके साथ देखा गया। भू−माफिया घोषित होने और 85 मुकदमे दर्ज होने के दो महीने बाद सपा सांसद आजम खान 30 सितंबर 2019 को पहली बार रामपुर पहुंचे थे। बता दें कि 13 सितंबर को जब समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव रामपुर पहुंचे थे, तब भी आजम खान नहीं आए थे। अखिलेश यादव, आजम के समर्थन में ही रामपुर गए थे। आजम को अपने बीच देखकर सपा कार्यकर्ताओं में भी जोश भर गया। इस दौरान आजम खान जिंदाबाद के नारे भी लगे।
 
समाजवादी पार्टी ने अपने मजबूत किले रामपुर सदर की विधान सभा सीट को बचाने की जिम्मेदारी आजम खान को सौंपी है। आजम खान इस सीट से 9 बार विधायक रहे हैं। इतना ही नहीं 1993 के बाद से समाजवादी पार्टी यह सीट कभी नहीं हारी। लेकिन इस बार परिस्थितियां अलग हैं। 85 से ज्यादा मुकदमों में फंसे आजम खान और उनके परिवार के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का भी विषय बन गई है। जहां एक ओर पार्टी को लगता है कि मुस्लिम बाहुल्य इस सीट पर आजम के खिलाफ हो रही कार्रवाई से सपा प्रत्याशी को सहानुभूति का लाभ मिलेगा, वहीं वह बीजेपी के साथ−साथ बसपा व कांग्रेस को भी करारा जवाब देने में सफल होगी।
खैर, यहां भू−माफिया घोषित किए जा चुके और 85 से अधिक मामलों में फंसे आजम खान के प्रति अखिलेश की नरमी और उनकी पत्नी तंजीन फातिमा को रामपुर सदर विधान सभा सीट से मैदान में उतारे जाने की समाजवादी पार्टी की रणनीति को भी समझना जरूरी है। रामपुर सदर सीट से तंजीन फातिमा सपा प्रत्याशी जरूर हैं, लेकिन उनके नाम पर फैसला काफी बाद में लिया गया। पहले यहां से डिंपल यादव और धमेन्द्र यादव के भी चुनाव लड़ने की चर्चा चली थी। मगर हमीरपुर विधान सभा उप चुनाव के नतीजों के बाद सब कुछ बदल गया। अखिलेश ने अंतिम समय में तंजीन फातिमा के नाम पर मोहर लगा दी। इसकी वजह थी, हमीरपुर चुनाव में बड़ी संख्या में सपा को मिले मुस्लिम वोट। हमीरपुर विधान सभा चुनाव से पूर्व तक समाजवादी पार्टी को काफी कमजोर माना जा रहा था, लेकिन हमीरपुर से सपा के लिए उम्मीद की नई किरण निकली। नतीजों ने साफ कर दिया है कि मुसलमान वोटर का समाजवादी पार्टी से विश्वास कम नहीं हुआ है। सपा से गठबंधन तोड़ने के बाद बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती मुस्लिम वोटरों का साथ मिलने का जो भरोसा लगाए बैठीं थी, उनका वह भरोसा पूरी तरह से टूट गया। ऐसा लगता है कि मुस्लिम वोटरों को मायावती की हालिया राजनीति जिसमें चाहे कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने का समर्थन की बात हो या फिर अन्य मुद्दों पर बीजेपी के साथ खड़ा दिखना हो, यह सब रास नहीं आया। ताजा घटनाक्रमों में आजम खान के खिलाफ जो आपराधिक मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं, उन पर भी अखिलेश यादव साफ कह चुके हैं कि उनकी सरकार बनते ही इन तमाम मुकदमों को वापस लिया जाएगा। जिसके बाद समझा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश और सपा की राजनीति में रामपुर के 'फन्ने खाँ' की क्या हैसियत है। इसीलिए तो तमाम किन्तु−परंतुओं और कई मामलों में जांच के दायरे में फंसे आजम खान की सियासी शख्सियत को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। आजम आज योगी सरकार की आंख की किरकिरी बने हैं तो पूर्व में भी उन पर कई बार आरोपों की बौछार होती रही है।
 
आजम का सियासी सफरनामा
 
1970 के दशक में आजम ने विश्वविद्यालय की राजनीति से सियासत में कदम रखा था। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में महासचिव का चुनाव जीतने के बाद आजम अक्सर तमाम राजनैतिक मंचों पर नजर आने लगे थे। 1980 से 1992 के बीच आजम ने चार विधानसभा चुनावों के लिए जनता पार्टी सेक्युलर, लोकदल, जनता दल और जनता पार्टी का सहारा लिया था। हालांकि वह हर बार चुनाव हार गए। समाजवादी पार्टी के शीर्ष स्तर के नेताओं में शुमार आजम खान ने 1993 में मुलायम सिंह से प्रभावित होकर समाजवादी पार्टी का दामन थामा। राजनीति में आने से पहले आजम ने वकालत भी की थी। इमरजेंसी के दौरान महीनों तक आजम को जेल में रहना पड़ा था। जेल में एकान्त कारावास या कालकोठरी में रखे जाने वाले चुनिंदा कैदियों में आजम का भी नाम शामिल था।
 
नेताजी के लिए भी आसान नहीं था आजम को संभालना
 
पूर्व सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के करीबी माने जाने वाले आजम ने अपनी आदत के अनुसार सपा के भीतर भी बागी तेवरों से परहेज नहीं किया। अमर सिंह को तवज्जो, जया प्रदा की उम्मीदवारी और कल्याण सिंह के पार्टी में आने की चर्चाओं जैसे मुद्दों पर आजम ने पार्टी से सीधा टकराव मोल लिया था, जिसके चलते उन्हें सपा से बाहर का भी रास्ता देखना पड़ा। आजम की अहमियत जानने वाले मुलायम ने जरूरत पड़ने पर आजम को वापस लेने में भी गुरेज नहीं किया।
 
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासत को जो लोग समझते हैं, उन्हें पता है कि कोई यों ही नहीं आजम खान बन जाता है। आजम ने रामपुर को उत्तर प्रदेश का सबसे खूबसूरत शहर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। दबंग सियासी छवि के साथ ही लगातार जीतने और नामी उम्मीदवारों को हराने जैसी कई वजहों से आजम को एक बड़ा वर्ग 'रामपुर की सरकार' की उपाधि से नवाजता है। आजम खान अपने सियासी कॅरियर में नामचीनों से लोहा लेने में कभी पीछे नहीं रहे। कांग्रेस ने जब रामपुर के नवाब खानदान के वारिसों को टिकट दिया तब भी खान ने बाजी मारी और बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जब सेलिब्रेटी और पूर्व सांसद जयाप्रदा को चुनाव मैदान में उतारा तो भी आजम ने एक लाख से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की। स्थानीय स्तर हो या प्रदेश स्तर, आजम खान अपनी ताकत और रसूख साबित करने में कभी कतराए नहीं। आजम के करीबियों का कहना है कि वह (आजम) एक बार फिर हीरे की तरह चमकते हुए नजर आएंगे। वर्ष 2013 में मुजफ्फरनगर कांड के समय आजम के रवैये के चलते अखिलेश सरकार को काफी बदनामी झेलनी पड़ी थी।
 
-संजय सक्सेना

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