ईश्वर दुबे
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News Creation : कर्नाटक में आये राजनैतिक संकट के के लिए हमारा संविधान क्या कहता है, कर्नाटक में अगर बिना इस्तीफा स्वीकार किए बहुमत साबित करने की स्थिति बनती है, तो उन बागी विधायकों को पार्टी व्हिप की अवहेलना करने पर विधानसभा में उनकी सदस्यता रद्द की जा सकती है.
भारत का संविधान
आइये आज जानते हैं कि किन परिस्थितियों में एक विधायक या सांसद अपने पद से इस्तीफा दे सकता है, और उसे किन स्थितियों में स्वीकार किया जा सकता है.
संविधान के आर्टिकल 190 में विधायकों या सांसदों के इस्तीफे पर दिशानिर्देश दिए गए हैं. इसी आर्टिकल में स्पीकर या किसी दूसरे प्रिजाइडिंग ऑफिसर को ये अधिकार दिया गया है, आइये जानतें हैं कि विधायकों और सांसदों के इस्तीफों के लिए हमारे संविधान में क्या कहा गया है-
इसकारण कर्नाटक में जिन विधायकों नें इस्तिफें दियें हैं, उनपर स्पीकर कड़ी कार्यवाही भी कर सकतें हैं.
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पेशी में राहुल अहमदाबाद पहुंचे कहा- ‘डराने की हो रही कोशिश’
नई दिल्ली : देश में हुई नोटबंदी के दौरान मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी और रणदीप सुरजेवाला ने ए.डी.सी.बी. पर 745 करोड़ रुपये की ब्लैक मनी को व्हाइट करने का आरोप लगाया था. इसके खिलाफ बैंक के चेयरमैन अजय पटेल ने राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया था.
अहमदाबाद में समर्थकों के साथ राहुल गाँधी
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और लगातार कोर्ट के चक्कर लगा रहे राहुल गांधी शुक्रवार को अहमदाबाद कोर्ट पहुंचे थे. नोटबंदी के वक्त उन्होंने अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक पर करीब 745 करोड़ ब्लैकमनी को व्हाइट मनी में बदलने का आरोप लगाया था. राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया गया था. उसी की पेशी में राहुल अहमदाबाद पहुंचे थे.
अहमदाबाद कोर्ट में पेश होने के बाद राहुल गांधी ने नाम लिए बिना भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर जमकर हमला बोला.
राहुल ने आरोप लगाया कि “उन्हें दबाने और डराने की कोशिश हो रही है.” उन्होंने कहा कि “मैं इससे नहीं डरता हूँ.” राहुल ने कहा कि “यह संविधान की लड़ाई है. देश के भविष्य की लड़ार्ई है, भ्रष्टाचार और अत्याचार के खिलाफ लड़ाई है.” उन्होंने कहा कि मैं खड़ा रहूंगा, लड़ता रहूंगा.
इसी मामले की सुनवाई के दौरान राहुल गांधी शुक्रवार को कोर्ट में पेश हुए. राहुल गांधी ने कोर्ट में जमानत अर्जी दायर की. इसे स्वीकार करते हुए अदालत ने उन्हें 15 हजार रुपये के मुचलके पर जमानत दे दी. मामले की अगली सुनवाई सात सितंबर को होनी है.
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छत्तीसगढ़ में मंत्रियों के अलावा इन नेताओं को मिलेगी लालबत्ती
दिल्ली : पिछले 18 सालों में पहली बार ऐसा हुआ जब लोकसभा में आधी रात तक चर्चा हुई. रेलवे की अनुदान मांगों पर चर्चा रात में करीब 12 बजे तक चली. इस चर्चा के दौरान विपक्ष के संसद सदस्य भी मौजूद रहे.
लोकसभा ने गुरुवार को वर्ष 2019-20 के लिए रेल मंत्रालय के नियंत्रणाधीन अनुदानों की मांगों पर देर रात तक बैठकर चर्चा पूरी की. निचले सदन में रात्रि 11 बजकर 58 मिनट तक चर्चा हुई और करीब 100 सदस्यों ने इसमें हिस्सा लिया तथा अपने अपने क्षेत्रों से जुड़े विषयों को उठाया .
मध्यरात्रि तक संसद में कामकाज चलने के बाद रेल राज्यमंत्री सुरेश चन्नबसप्पा अंगदी ने कहा कि 'रेलवे एक परिवार की तरह है जो सभी को एक साथ लेकर चलता है और सभी को संतुष्ट करता है. सभी सदस्यों के अच्छे सुझाव मिलते हैं. पीएम मोदी के आने के बाद से रेलवे बदल गया है. वाजपेयी जी ने सड़कों के लिए बहुत कुछ किया, मोदी जी रेलवे के लिए कर रहे हैं.'
विडियो- टी.एम्.सी.सांसद नें फूटबाल खेलते हुए, प्रधानमंत्री से की गुज़ारिश विडियो देखें
S Angadi, MoS Railways on Parliament functioning till midnight: Railways is like a family that takes everyone together & satisfies everyone, all members gave good suggestions. Railways has changed since PM Modi came, what Vajpayee ji did for roads, Modi ji is doing for railways. pic.twitter.com/9QkiHX1sqg
— ANI (@ANI) July 11, 2019
संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने देर रात तक सदन की कार्यवाही चलाने की पहल के लिए लोकसभा अध्यक्ष के प्रति आभार प्रकट किया. उन्होंने कहा कि यह करीब 18 वर्षों में पहली बार ऐसी घटना है कि सदन ने देर रात तक इस तरह से बैठकर चर्चा की.
चर्चा के दौरान कांग्रेस सहित विभिन्न विपक्षी दलों ने सरकार पर आरोप लगाया कि आम बजट में रेलवे में सार्वजनिक-निजी साझेदारी (पीपीपी), निगमीकरण और विनिवेश पर जोर देने की आड़ में इसे निजीकरण के रास्ते पर ले जाया जा रहा है. विपक्ष ने सरकार को घेरते हुए कहा कि सरकार को बड़े वादे करने की बजाय रेलवे की वित्तीय स्थिति सुधारना चाहिए तथा सुविधा, सुरक्षा एवं सामाजिक जवाबदेही का निर्वहन सुनिश्चित करना चाहिए.
सत्तारूढ़ बीजेपी ने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि रेलवे रोजाना नए प्रतिमान और कीर्तिमान गढ़ रहा है तथा पिछले पांच वर्षों में सफाई, सुगमता, सुविधाएं, समय की बचत और सुरक्षा आदि हर क्षेत्र में सुधार हुआ है. अब सरकार का जोर रेलवे में वित्तीय अनुशासन लाने पर है.
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छत्तीसगढ़ में मंत्रियों के अलावा इन नेताओं को मिलेगी लालबत्ती
मुंबई : बागी विधायकों से मिलने पर अड़े कर्नाटक सरकार के संकटमोचक डी. के. शिवकुमार को मुंबई पुलिस ने हिरासत में ले लिया. बता दें कि शिवकुमार बागी कांग्रेसी विधायकों से मिलनें की जिद पर अड़े हुए थे, लेकिन उन्हें नहीं मिलने दिया गया, उनके खिलाफ कार्यकर्ताओं नें शिवकुमार वापिस जाओ के नारे भी लगातार लगते रहे, उन्होंने कहा, 'मैं अपने खिलाफ नारेबाजी से नहीं डरता. सुरक्षा के खतरे के कारण अंदर जाने नहीं दिया जा रहा। मैं महाराष्ट्र सरकार का बहुत सम्मान करता हूं. मेरे पास हथियार नहीं हैं।' वह भारी बारिश के बीच होटल के बाहर विधायकों से मिलने का इंतजार कर रहे थे. लेकिन, बागी विधायकों ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया.
Mumbai: Rebel Congress MLAs reach Chhatrapati Shivaji Maharaj International Airport. They have been directed by the Supreme Court to meet the Karnataka Assembly Speaker at 6 pm today and submit their resignations if they so wish. pic.twitter.com/1gUDE7lzCD
— ANI (@ANI) July 11, 2019
वहीं, कर्नाटक राजभवन के बाहर प्रदर्शन कर रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद को भी पुलिस ने हिरासत में ले लिया. कांग्रेस नेता के.सी. वेणुगोपाल ने कहा कि कल सुप्रीम कोर्ट में बागी विधायकों की याचिका पर कांग्रेस की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी वकील होंगे.
ऐसा भी होता है-
जहां एक तरफ कर्नाटक गठबंधन की सरकार में जे.डी.एस. और कांग्रेस में नए नए नाटक हो रहे हैं वहीँ दूसरी ओर भाजपा भी रोज़ नए नये आरोप प्रत्यारोप लगा रही है. बता दें की मुंबई के एक आलिशान होटल में जहां सभी बागी विधायक रुके हुए हैं, उस होटल के बाहर कर्नाटक के वरिष्ट कांग्रेसी नेता, डी. के. शिवकुमार को विधायकों से मिलने के लिए भारी बारिश में होटल के बाहर ही बहुत देर तक इंतज़ार करना पड़ा, उन्हें होटल के बाहर ही रोक दिया गया था.
जे.डी.एस. के वरिष्ट नेता डी.के. शिवकुमार नें बताया की उन्होनें उस होटल में अपने और जे. डी. एस. के अन्य विधायकों के लिए होटल बुक करवाया था, मगर उन्हें अन्दर जानें नहीं दिया गया. शिवकुमार ने कहा कि पुलिस उन्हें कह रही है कि उनके नाम से कोई कमरा बुक नहीं है लेकिन मंत्री ने जोर दिया कि उन्होंने होटल में अपने नाम से एक कमरा बुक कराया था। वहीँ दूसरी ओर मंगलवार आधी रात में 12 बागी कांग्रेसी विधायकों में से 10 नें पुलिस को पत्र लिखकर मुम्बई पुलिस से सुरक्षा मांगी है. उन्होनें अपने पत्र में जान का खतरा होनें की बात कही है और डी. के. शिवकुमार को होटल में न आने देने की दरख्वास्त की बात लिखी है.
अब सुप्रीम कार्ट के आदेश के बाद सारे विधायकों को शाम 6 बजे विधानसभा अध्यक्ष रमेश कुमार से मिलना है ।
बंगलुरु * कर्नाटक एच. डी. कुमारस्वामी की सरकार गिरता देख, सोनिया गांधी नें कमर कास ली है. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सोनिया गाँधी नें मामले की गंभीरता को देखते हुए, कांग्रेस के दो केन्द्रीय नेताओं को बेंगलुरु भेजा है.
कर्नाटक में जे.डी.एस. और कांग्रेस की गठबंधन पर संकट आ गया, जब वह लगातार विधायकों नें इस्तीफों का दौर शुरू कर दिया. हालाँकि विधानसभा के अध्यक्ष रमेश कुमार नें अब तक विधायकों द्वारा दिए इस्तीफे पर कोई फैसला नहीं लिया है, पर कांग्रेस पार्टी नें अपनी तरफ से मामले को गंभीरता से लेते हुए, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) चेयरपर्सन सोनिया गाँधी नें पार्टी के दो बड़े नेता गुलाम नबी आज़ाद और बी. के. हरिप्रसाद को कर्णाटक तलब किया है.
कांग्रेस की तरफ से ये दोनों नेता कर्णाटक में इस्तीफे का मसला हल करेंगे. के. सी. वेणुगोपाल नें गुलाम नबी आज़ाद के आने के बारे में जानकारी दी कि ‘मैंने ही उन्हें यहाँ बुलाया है, क्योकि यहाँ उनकी बहुत ज़रूरत है. इस मसले को वे सम्हाल सकते है”
मामला दरअसल ये था कि मंगलवार को कर्नाटक के 13 विधायकों नें विधानसभा अध्यक्ष रमेश कुमार के समक्ष अचानक ही इस्तीफा भेजा, उन 13 बागी विधायकों में से 10 कांग्रेसी विधायक थे. विधायकों के इस्तीफे के कारण कर्नाटक में कांग्रेस और जे. डी. एस. का गठबंधन तुत्नें के कयास लगाए जा रहे हैं. अगर औसा होता है, तो सीटों के आधार पर वहां भाजपा की सरकार बनना तय माना जा रहा है.
मंगलवार को ही कांग्रेस नें विधायक दल की बैठक बुलाई थी इसमें कांग्रेस के 10 विधायक नहीं पहुंचे थे. एनी सभी विधायक वहां मौजूद थे. अनुपस्थित 10 विधायकों नें ही इस्तीफा देने की पेशकश की थी.
लेकिन अब तक विधानसभा अध्यक्ष रमेश कुमार नें यही कहा है कि उनके पास अब तक एक बी विधायक का इस्तीफा नहीं पहुंचा है.
इस मामले में शुरू से ही कांग्रेस की तरफ से बयान दिया जा रहा है कि बागी विधायकों की वजह से कर्नाटक सरकार को कोई नुक्सान नहीं होगा.
जब कोई राजा युद्ध पर निकलता है तो युद्ध के पहले मैदान में आनेवाले छोटे-बड़े सभी राज्यों को अपने साथ मिला लेता है। अपनी ताकत बढ़ाता है, अपनी सेना की शक्ति बढ़ाता है और घोड़े की लगाम कसकर मैदान मारता है उसके बाद उसी मजबूती से सिंहासन पर बैठकर राजपाट चलाता है। मोदी सरकार का कामकाज भी ऐसे ही विजयी सम्राट की तरह शुरू है। देशवासियों को इसका अनुभव वित्तमंत्री निर्मला सीतारामन द्वारा शुक्रवार को पेश किए गए पहले बजट से आ गया होगा। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का यह पहला बजट है। किसी भी सरकार द्वारा जीत के बाद जिस गंभीरता से बजट पेश किया जाना चाहिए उसी वास्तविक पद्धति से और आगामी ५ सालों की दिशा तय करनेवाला यह बजट है। पहली महिला वित्तमंत्री निर्मला सीतारामन के सवा दो घंटे के बजटीय भाषण का स्वागत करते हुए आय और व्यय के विवरण में जो कड़ी मेहनत की उसकी भी तारीफ की जानी चाहिए। हालांकि ऐसी मेहनत करते हुए पेट्रोल, डीजल और एक्साइज ड्यूटी में एक रुपए की बढ़ोत्तरी कर महंगाई की आग में तेल डालना आवश्यक था क्या? ऐसा सवाल उठ सकता है। लेकिन पेट्रोल और डीजल पर १०-२० प्रकार के भारी-भरकम टैक्स से तिजोरी में आनेवाले पैसों पर से सरकार अधिकार छोड़ने को तैयार नहीं। मतलब जनता को चुनाव के पहले और चुनाव के बाद के बजट का फर्क समझ लेना चाहिए। चुनाव के पहले मतों का विचार करना अपरिहार्य होता है और चुनाव के बाद बजट में देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने का प्रयास किया जाता है। चुनाव के दौरान की गई असंख्य घोषणाओं की पूर्ति के लिए जो प्रचंड राशि की आवश्यकता होती है उसका इंतजाम पहले बजट के माध्यम से ही किया जाता है। वित्तमंत्री ने मध्यमवर्गीय परिवारों को नई सहूलियतें भले ही न दी हों लेकिन दो से सात करोड़ की वार्षिक आयवाले पूंजीपतियों पर अधिभार लगाकर तिजोरी भरने का चालाकी भरा काम किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा समय-समय पर घोषित कई महत्वाकांक्षी योजनाएं, खेती और उद्योग क्षेत्र के साथ ही मूलभूत सुविधाओं की परियोजनाएं और अन्य आश्वासनों को पूर्ण करने के लिए जो प्रचंड राशि लगनी है, उसके लिए वित्त मंत्री ने आर्थिक व्यवस्था कर ही ली। लेकिन उसके लिए आवश्यक राजस्व सरकार की तिजोरी में वैâसे आएगा, इसका भी खयाल रखा। आईटी रिटर्न भरने के लिए पैन कार्ड की आवश्यकता को वित्तमंत्री ने रद्द कर दिया है। उसके बदले आधार कार्ड के माध्यम से आईटी रिटर्न भरा जा सकेगा। करदाताओं के लिए ये आसान काम हुआ है। पानी और गैस के लिए नेशनल ग्रिड, २०२२ तक देश के हर गांव में बिजली और निचले स्तर तक हर बेघर को घर की घोषणा कर वित्तमंत्री थमी नहीं बल्कि उसके लिए बड़ी राशि की व्यवस्था भी की। ‘स्वच्छ भारत’ योजना के अंतर्गत विगत ५ वर्षों में सरकार ने ९.६० करोड़ शौचालय बनाए और कार्यों की गति को देखते हुए अक्टूबर, २०१९ के बाद देश में कोई भी खुले में शौच नहीं करेगा, ऐसा भी वित्तमंत्री ने कहा है। देश की महिलाओं के लिए ये बहुत बड़ी राहत की बात है। प्रधानमंत्री मोदी ने २०१६ में देश के किसानों की आय दोगुनी करने की घोषणा की थी। उसी को जोड़ते हुए वित्तमंत्री ने किसानों को ऊर्जा दाता बनाने का संकल्प व्यक्त किया है। आय पर आधारित संकल्प से लेकर तमाम योजनाओं का लाभ किसानों को मिलेगा। इसके बावजूद किसानों की आत्महत्याओं का दौर आज भी क्यों नहीं थमा इसका कारण भी सरकार को ढूंढ़ना ही पड़ेगा। ‘जलशक्ति मंत्रालय’ द्वारा २०२४ तक देश के हर गांव तक पाइप लाइन द्वारा शुद्ध पानी पहुंचाने की घोषणा इस बजट की सबसे बड़ी विशेषता है। इसे अमल में लाया गया तो पानी के लिए ग्रामीण जनता में मची हाहाकार हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी। १६ नवंबर, १९४७ से लेकर आज तक कुल ८८ बजट देश के विविध वित्त मंत्रियों ने पेश किए हैं। उसमें इस बार का नया ‘बहीखाता’ बढ़ गया है। बजट का नाम बदलने में कोई आपत्ति नहीं लेकिन देश के ८९वें बजट में भी बिजली, सड़क और पानी जैसी मूलभूत आवश्यकताओं के आसपास बजट के घूमने को क्या कहेंगे? सरकार की योजना २०२५ तक देश की अर्थव्यवस्था को ५ ट्रिलियन डॉलर्स तक ले जाने की है। तब तक ये मूलभूत समस्याएं हमेशा के लिए समाप्त हो चुकी होंगी, ऐसी आशा की किरण अवश्य दिखाई दे रही है।
देश की पहली पूर्णकालिक महिला वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 5 जुलाई को संसद में नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला बजट पेश किया। इस बजट में सरकार के आगामी पांच सालों का विजन साफ दिखा। इस बजट में उच्च आय वर्ग के लोगों पर अतिरिक्त टैक्स का बोझ लगाया गया तो वहीं आयकर नियमों में कई बड़े बदलाव किए गए। हालांकि मध्यम आय वर्ग के लोगों को इस बजट से थोड़ी निराशा हाथ लग सकती है, क्योंकि इनकम टैक्स स्लैब में कोई बदलाव नहीं किया गया है। इस बजट में प्रधानमंत्री के डिजिटल और न्यू इंडिया के सपने पर फोकस किया गया है। आइए जानते हैं कि इस बजट में इनकम टैक्स समेत अन्य क्षेत्रों में क्या बड़े बदलाव हुए हैं। साथ ही आम जनता को किस तरह से राहत दी गई है।
नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले बजट के महत्वपूर्ण बिंदू-
- पिछले पांच सालों में प्रत्यक्ष कर संग्रह 6 लाख करोड़ से बढ़कर 11 लाख करोड़ रुपये हो गया।
- 400 करोड़ रुपये के सालाना टर्नओवर वाली कंपनियों पर कॉर्पोरेट टैक्स दर 25 प्रतिशत कर दी गई है। पहले यह दर 250 करोड़ रुपये के टर्नओवर वाली कंपनियों पर ही लागू थी। देश की करीब 99 फीसदी कंपनियों का टर्नओवर 400 करोड़ रुपये से कम हैं और उन्हें इसका फायदा मिलेगा।
- इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने के लिए लिए गए कर्ज के ब्याज पर 1.5 लाख रुपये तक की अतिरिक्त टैक्स छूट मिलेगी।
- स्टार्टअप कंपनियों के मूल्यांकन नियमों को आसान बनाया गया है और स्क्रूटनी प्रक्रिया को भी उदार किया गया है।
- 45 लाख रुपये तक के अफोर्डेबल हाउसिंग लोन के ब्याज पर 1.5 लाख रुपये तक की अतिरिक्त टैक्स छूट दी गई है। वर्तमान में इस तरह के लोन के ब्याज पर 2 लाख रुपये की टैक्स छूट पहले से मिल रही है।
- नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियों को भी अब बैंकों की तरह एनपीए (नॉन परफ़ॉर्मिंग असेट) के तहत डूबे पैसों का भुगतान किया जाएगा।
- विदेशों में स्थित बैंक शाखाओं और अंतरराष्ट्रीय फाइनेंशियल सर्विस सेंटर (IFSC) को इनकम टैक्स के सेक्शन 80LA के तहत आयकर में छूट दी जाएगी।
- पैन कार्ड की जगह आधार कार्ड का इस्तेमाल कर सकेंगे। इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने के दौरान आयकर दाता के पास यदि पैन नहीं है तो वह आधार के जरिए आईटीआर फाइल कर सकेगा।
- जिन आयकरदाताओं की सैलेरी, कैपिटल गेन और अन्य स्रोतों से आय है, उन्हें पूर्व में जमा किए गए टैक्स पर रिटर्न मिलेगा।
- सरकार द्वारा इस वित्त वर्ष में ई-स्क्रूटनी शुरू की जाएगी। जिसमें असेसिंग ऑफिसर की पहचान को गुप्त रखा जाएगा।
- डिजिटल भुगतान और नकद रहित लेनदेन को बढ़ावा देने के लिए बैंक अकाउंट से 1 करोड़ रुपये से ज्यादा की निकासी पर 2 प्रतिशत टीडीएस लगेगा।
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक ऐसे राजनेता हुए जिनके जीवन का अधिकांश भाग शिक्षा, साहित्य, विज्ञान प्रसार तथा औद्योगिकीकरण का समर्पित रहा। लेकिन राष्ट्रीय घटनाक्रम ने कुछ ऐसी करवटें बदलीं कि वे कश्मीर की शेष भारत के साथ एकता और अखंडता के नाते ही ज्यादा जाने गए।
उनका जन्म 6 जुलाई 1901 कोलकाता में हुआ था। उनके परिवार में अधिकांश सदस्य अक्सर अपने पूर्वजों के ग्रीष्मकालीन बंगले (वर्तमान झारखंड में देवघर के पास मधुपुर) में छुट्टियां के लिए जाते थे। बचपन में श्यामा प्रसाद भी लंबे समय की छुट्टियों में मधुपुर जाते थे और उनका पूरा परिवार ही देशभक्ति और अध्यात्म को समर्पित था। उनके दादा गंगाप्रसाद मुखोपध्याय बंगाल के पहले ऐसे साहित्यकार थे जिन्होंने सम्पूर्ण रामायण का बंगला में अनुवाद किया जो काफी प्रसिद्ध हुआ। उनके पिता आशुतोष मुखर्जी विश्व प्रसिद्ध गणितज्ञ माने गए जिनकी गणित पर शोध अनेक विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती थी। वे कोलकाता विश्वविद्यालय के कुलपति भी नामांकित हुए थे तथा उनकी विद्वत्ता और सम्पूर्ण बंगाल में एक उच्च स्थान के कारण बांग्ला समाज में उनकी कीर्ति बहुत फैली।
श्यामा प्रसाद के घर में बांग्ला के प्रति गहरी भक्ति थी। उन्होंने प्रथम श्रेणी में प्रथम रहकर बीए पास किया। गोल्ड मेडल जीता। पर पिता ने कहा कि एमए बांग्ला भाषा में करो। श्यामा प्रसाद ने अंग्रेजी की बजाए बांग्ला में एमए किया और उसमें भी प्रथम श्रेणी में प्रथम रहे। वे भारतीय भाषाओं को अंग्रेजी से बेहतर स्थान दिलाने के लिए हमेशा प्रयास करते थे।
वे 23 वर्ष की आयु में ही कलकत्ता विश्वविद्यालय के बोर्ड के फैलो निर्वाचित हुए। 1926 में वे बैरिस्टरी की पढ़ाई के लिए लंदन गए और 1927 में बैरिस्टर बनकर लौटे। पर उन्होंने कभी वकालत को अपना व्यवसाय नहीं बनाया। 1934 में वे तत्कालीन भारत के सबसे बड़े कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति चुने गए तथा 1938 तक अर्थात दो कार्यकाल इस पद पर निभाए। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय को नया रूप दिया- पहली बार बांग्ला भाषा में दीक्षांत भाषण कराया जो उनके आमंत्रण पर कवि गुरू रवींद्र नाथ ठाकुर ने दिया। बंगलौर में इंस्टीट्यूट ऑफ सांइस के भी अध्यक्ष थे। वहां उनका परिचय एक प्रो. डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णनन से हुआ। उनकी प्रतिभा से प्रभावित श्यामा प्रसाद ने राधाकृष्णनन को कलकत्ता विश्वविद्यालय बुला लिया और यहां से डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णनन का वास्तविक स्वरूप निखरा जिसके लिए वे सदैव डॉ. श्यामा प्रसाद के कृतज्ञ रहे।
श्यामा बाबू ने कलकत्ता विश्वविद्यालय में कृषि की शिक्षा प्रारंभ की और कृषि में डिप्लोमा कोर्स प्रतिष्ठित किया। विशेष रूप से युवतियों की शिक्षा के लिए उन्होंने स्थानीय सहयोगियों से दान लेकर विशेष छात्रवृत्तियां प्रारंभ कीं। उनके नेतृत्व में कलकत्ता विश्वविद्यालय देश का ऐसा पहला विश्वविद्यालय बना जहां शिक्षक प्रशिक्षण विभाग खुला तथा चीनी और तिब्बती अध्ययन केंद्र खुले। उन्होंने अपने पिता आशुतोष मुखर्जी के नाम पर भारतीय ललित कला संग्रहालय स्थापित किया और केंद्रीय ग्रंथागार बनवाया जहां शोध और अध्ययन की आधुनिकतम सुविधाएं थीं। यही नहीं उन्होंने भारत में पहली बार बांग्ला, हिंदी और उर्दू माध्यम में बीए के पाठ्यक्रम आरंभ किए तथा बांग्ला में विज्ञान विषय पढ़ाने के लिए वैज्ञानिक शब्दों का बांग्ला भाषा में शब्दकोश निकलवाया। विज्ञान की शिक्षा का समाज के विकास में क्या उपयोग होना चाहिए इसके लिए उन्होंने एप्लाईड केमिस्ट्री विभाग खोला ताकि विश्वविद्यालयीन शिक्षा को सीधे औद्योगिकीकरण से जोड़ा जा सके।
उन्हें महाबोधि सोसायटी बोधगया का अध्यक्ष चुना गया। जब बुद्ध के पवित्र अवशेष तत्कालीन बर्मा से उथांट लेकर बोधगया आए तो उन अवशेषों को डा़ॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने ग्रहण किया था।
1943 के भयंकर बंगाल अकाल में 30 लाख से अधिक भारतीय भूख से मारे गए थे। यह चर्चिल की कुटिल नीतियों के कारण मानव निर्मित आकाल था। उस समय श्यामा प्रसाद ने बहुत विराट स्तर पर राहत कार्य आयोजित किए। उन्होंने बंगाल के अकाल पर जो आर्थिक कारणों के विश्लेषण करते हुए प्रबंध लिखा वह अनेक प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों के शोध का हिस्सा बना। श्री अरविंद के निर्वाण के पश्चात श्री मां ने श्री अरविंद विश्वविद्यालय की कल्पना की और उसका प्रथम कुलपति डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को नामांकित किया।
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की वर्तमान बांग्लादेश और तत्कालीन पूर्वी बंगाल के महान राष्ट्रीय कवि काजी नजरूल इस्लाम से गहरी मित्रता थी। जब नजरूल इस्लाम बीमार पड़े तो श्यामा बाबू उन्हें कोलकाता अपने घर ले आए जहां वह 6 महीने उनके घर पर रहकर स्वास्थ्य लाभ करते रहे। बाद में ढाका पहुंच कर काजी नजरूल इस्लाम ने श्यामा बाबू को जो कृतज्ञता का लंबा पत्र लिखा वह बंगला साहित्य की धरोहर माना जाता है।
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी पत्रकार और संपादक भी थे तथा उन्होंने 1944 में अंग्रेजी दैनिक 'दि नेशलिस्ट' प्रारम्भ किया। वे हिंदू महासभा के अध्यक्ष रहे और देश भर के प्रखर राष्ट्रीय विचारों का प्रसार किया। लेकिन इस आंधी में उनकी विद्वत्ता और उनके गहरे ज्ञान के कारण देश के सभी प्रमुख केंद्रीय विश्वविद्यालय उन्हें दीक्षांत भाषण के लिए आमंत्रित करते थे। बहुत कम लोग यह जानते होंगे कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने पटना विश्वविद्यालय, आगरा और मैसूर विश्वविद्यालय सहित देश के शिखरस्थ 22 विश्वविद्यालयों में दीक्षांत भाषण दिए हैं। उनका अंतिम दीक्षांत भाषण 1948 में दिल्ली विश्वविद्यालय में हुआ था।
उनकी ज्ञान संपदा, अकादमिक कैरियर कश्मीर आंदोलन के समान ही विराट और महत्वपूर्ण है। आशा की जानी चाहिए कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी के पदचिन्हों पर चलने की घोषणा करने वाली सरकार देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के शिक्षा संबंधी विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए श्यामा प्रसाद पीठ एवं श्यामा प्रसाद विचार अध्ययन केंद्र स्थापित करेगी।
-तरूण विजय
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व राज्यसभा सांसद हैं।)
बंगलुरु कर्नाटक में राजनीति के गलियारे में इस्तीफों की राजनीति खेली जा रही है, कोई इसे ऑपरेशन लोटस (कमल) कह रहा है तो कोई अपना निजी फैसला, मामला कुछ ये है कि शनिवार को कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर के 14 विधायकों ने पद से इस्तीफा दे दिया. अब तक 11 विधायकों के इस्तीफे विधानसभा स्पीकर रमेश कुमार की मेज पर हैं. पहले खबर थी कि इस्तीफा देने वाले 14 में से 10 विधायक स्पेशल फ्लाइट से गोवा रवाना हुए है लेकिन बाद में पता चला की सभी विधायक मुंबई चले गए हैं. विधायकों के इस कदम के बाद मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी की सरकार खतरे में दिखाई दे रही है और सरकार गठन को बेताब बीजेपी के लिए रास्ता आसान होता नजर आ रहा है. रमेश कुमार ने कहा कि वह इन इस्तीफों पर मंगलवार को फैसला करेंगे. खबर है कि स्पीकर के पास 3 और इस्तीफे पहुंचें हैं लेकिन इसकी आधिकारिक जानकारी नहीं दी गयी है.
जेडीएस नेता और पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा ने इस पूरे घटनाक्रम पर कोई टिप्पणी करने ही मना कर दिया तो वहीं कांग्रेस की कर्नाटक इकाई के राज्य प्रभारी केसी वेणुगोपाल, बेंगलुरु पहुंचे और वहां कांग्रेस के विधायकों से मुलाकात की. खबर है कि कांग्रेस के विधायकों को शनिवार-रविवार की दरम्यानी रात स्पेशल फ्लाइट से किसी दूसरे राज्य में भेज दिया जाएगा.
आंकड़ों की सच्चाई क्या कहती है
शनिवार को हुए इस्तीफों से पहले कर्नाटक में कुल 224 विधानसभा सीटें हैं, बहुमत के लिए 113 विधायक चाहिए. फिलहाल बीजेपी के 105 विधायक हैं. जबकि कांग्रेस के पास 80 और जेडीएस के पास 37 विधायक हैं. इस तरह से दोनों के पास कुल 117 विधायक हैं. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और निर्दलीय विधायक भी गठबंधन का समर्थन कर रहे हैं.
पिछले दिनों कांग्रेस के दो विधायकों के इस्तीफा देने और एक विधायक को निष्कासित किए जाने के बाद कांग्रेस के विधायकों की संख्या 77 रह गई है. कांग्रेस-जेडीएस की संख्या 114 रह गई है. वहीं, बीजेपी पहले से ही दावा कर रही है कि कांग्रेस के 6 और जेडीएस के 2 विधायकों का गुप्त रूप से समर्थन मिला हुआ है, जो जल्द ही इस्तीफा देंगे.
बीजेपी प्रदेश में सरकार बनाने के लिए लगातार दावे कर रही है. जेडीएस-कांग्रेस के विधायकों के इस्तीफे से कुमारस्वामी की मुश्किलें बढ़ रही हैं, लेकिन बीजेपी अभी सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है. क्योकि बीजेपी के पास अपनी 105 सीटें हैं ऐसे में उन्हें सिर्फ 1 विधायक की जरूरत है. अगर सभी विधायकों के इस्तीफे स्वीकार कर लिए जाते हैं तो एक ओर जहां बीजेपी के लिए सरकार बनाने के मौका बढ़ जाएगा वहीं कांग्रेस-जेडीएस की सरकार गिर जाएगी.
राहुल गाँधी नें एक पात्र जारी कर, अपने इस्तीफे के फैसले को सार्वजनिक कर दिया है. इसके साथ ही सोशल मीडिया साइट्स में भी उन्होनें अपने इस्तीफे की बात सार्वजनिक की, जिससे सोशल मीडिया में काफी प्रतिक्रिया मिल रही है. कांग्रेस के सभी बड़े नेता बा भी राहुल को मनाने में लगे हुए हैं. राहुल गाँधी नें जो पत्र जरी किया है, उसमें उन्होनें कहा कि-
It is an honour for me to serve the Congress Party, whose values and ideals have served as the lifeblood of our beautiful nation.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) July 3, 2019
I owe the country and my organisation a debt of tremendous gratitude and love.
Jai Hind ?? pic.twitter.com/WWGYt5YG4V
“मैं अब कांग्रेस अध्यक्ष नहीं हूँ” : राहुल गाँधी
“एक महीने पहले ही हो जाना था चुनाव” : राहुल गाँधी
“CWC जल्द से जल्द बैठक बुलाकर फैसला ले” : राहुल गाँधी
“हफ्ते भर में चुन लिया जाएगा पार्टी अध्यक्ष” : सूत्र
राहुल नें ट्वीटर पर भी ट्वीट किया : “कांग्रेस की सेवा करना मेरे लिए सम्मान की बात रही, जिसके मूल्य और आदर्श हमारे खुबसूरत राष्ट्र के जीवन दाई रक्त का काम करते रहें है. मेरे ऊपर अपने देश और संगठन के बेहद आभार और और प्यार का क़र्ज़ है. जय हिन्द.”
अब जब की साफ़ हो गया है कि राहुल गाँधी को तमाम कांग्रेसी नेताओं से मनावाने के बाद भी राहुल अपने इस्तीफे पर कायम है, तो आपको बताते चले की कांग्रेस का जो नियमावली कहती है, कि अब कांग्रेस के जो सबसे वरिष्ट नेता या जनरल सेक्रेटरी (महासचिव) होंगे, वो कांग्रेस के कार्यकारिणी अध्यक्ष होंगे. यानि मोतीलाल वोरा इस वक़्त सबसे वरिष्ट हैं, और वे ही अगली कांग्रेस कार्य समिति की बैठक बुलाएँगे, जिसमें नए अध्यक्ष के बारे में जो भी दिशा निर्देश है, दिए जाएँगे.
अन्य कांग्रेसी नेताओं नें राहुल गाँधी के इस्तीफे के विषय में क्या कहा-
"कार्यकारी समिति की बैठक में सब नें अनुरोध किया कि राहुल गाँधी का इस्तीफा नामंजूर कर लिया जाए, लेकिन वे नहीं माने. अभी कांग्रेस को राहुल गाँधी के नेत्रित्व की बहुत ज़रुरत है, राहुल गाँधी जी 2017 से कांग्रेस अध्यक्ष बनें और उन्होनें कांग्रेस को लगातार सभी प्रदेशों में मजबूती देने का कार्य किया" मोतीलाल वोरा
"राहुल गाँधी जी से देश के कार्यकर्ताओं नें आग्रह किया है, कि अपना इस्तीफा वापिस ले-ले, और अध्यक्ष के रूप में दुबारा कांग्रेस पार्टी का नेत्रित्व करें. क्योकि जो संघर्ष उन्होनें किया है, वो सभी लोग जानते हैं, आगे आने वाले चुनावों में राहुल गाँधी जी की नेत्रित्व की बहुत ज़रूरत है" सचिन पायलट (डिप्टी सी. एम्. राजस्थान)
वहीँ भाजपा नेत्री स्मृति ईरानी से जब पत्रकारों नें पुछा की राहुल गाँधी नें अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है, आपकी क्या प्रतिक्रिया है, तो स्मृति ईरानी जी ने बस मुस्कुराते हुए जय श्री राम कहा.
इन सब बातों के क्या मतलब हो सकते हैं, ये तो समय ही बताएगा. लेकिन अभी राहुल के इस्तीफे ने कांग्रेस को हिला कर रख दिया है.
जयप्रकाश नारायण की जनसभा के चंद घंटों बाद ही भारतीय आजादी के बाद का सबसे मनहूस क्षण आया जब गैरकानूनी तरीके से अपनी सत्ता को बचाने के लिए संवैधानिक मान-मर्यादाओं को कुचलते हुए देश पर आपातकाल थोप दिया गया।
देहात में एक कहावत है 'जात भी गवाई और भात भी ना मिला'। कहने का मतलब यह है कि सब कुछ गवाने के बाद भी कुछ हासिल ना होना और शायद इसी बात की अनुभूति उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव कर रहे होंगे। 23 मई 2019 से पहले तरह-तरह के दांवे करने वाले अखिलेश अपनी चुनावी हार पर चुप्पी साधे हुए हैं और उनकी सहयोगी रहीं बसपा प्रमुख मायावती उन पर हमलावर हैं। उत्तर प्रदेश में जब बुआ-बबुआ की जो़ड़ी बनी थी तब राजनीतिक पंडित यह दावा करने लगे थे कि यह जो़ड़ी कम से कम 50 सीट जीतने में कामयाब होगी। पर ऐसा हुआ नहीं। सपा-बसपा महज 15 सीट जीतने में ही कामयाब रहीं। हालांकि यह किसी ने नहीं सोचा था कि गठबंधन परिणाम आने के कुछ दिन बात ही खत्म हो जाएगा। इसकी शुरूआत मायावती ने ही कर दी। सबसे पहले तो उन्होंने उपचुनाव अकेले लड़ने का फैसला किया और उसके बाद धीरे-धीरे अखिलेश और उनकी पार्टी पर हमले करने लगीं।