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राजनीति

राजनीति (6705)

दिल्ली : पिछले 18 सालों में पहली बार ऐसा हुआ जब लोकसभा में आधी रात तक चर्चा हुई. रेलवे की अनुदान मांगों पर चर्चा रात में करीब 12 बजे तक चली. इस चर्चा के दौरान विपक्ष के संसद सदस्य भी मौजूद रहे.

लोकसभा ने गुरुवार को वर्ष 2019-20 के लिए रेल मंत्रालय के नियंत्रणाधीन अनुदानों की मांगों पर देर रात तक बैठकर चर्चा पूरी की. निचले सदन में रात्रि 11 बजकर 58 मिनट तक चर्चा हुई और करीब 100 सदस्यों ने इसमें हिस्सा लिया तथा अपने अपने क्षेत्रों से जुड़े विषयों को उठाया .

मध्यरात्रि तक संसद में कामकाज चलने के बाद रेल राज्यमंत्री सुरेश चन्नबसप्पा अंगदी ने कहा कि 'रेलवे एक परिवार की तरह है जो सभी को एक साथ लेकर चलता है और सभी को संतुष्ट करता है. सभी सदस्यों के अच्छे सुझाव मिलते हैं. पीएम मोदी के आने के बाद से रेलवे बदल गया है. वाजपेयी जी ने सड़कों के लिए बहुत कुछ किया, मोदी जी रेलवे के लिए कर रहे हैं.'

विडियो- टी.एम्.सी.सांसद नें फूटबाल खेलते हुए, प्रधानमंत्री से की गुज़ारिश विडियो देखें 

संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने देर रात तक सदन की कार्यवाही चलाने की पहल के लिए लोकसभा अध्यक्ष के प्रति आभार प्रकट किया. उन्होंने कहा कि यह करीब 18 वर्षों में पहली बार ऐसी घटना है कि सदन ने देर रात तक इस तरह से बैठकर चर्चा की.

चर्चा के दौरान कांग्रेस सहित विभिन्न विपक्षी दलों ने सरकार पर आरोप लगाया कि आम बजट में रेलवे में सार्वजनिक-निजी साझेदारी (पीपीपी), निगमीकरण और विनिवेश पर जोर देने की आड़ में इसे निजीकरण के रास्ते पर ले जाया जा रहा है. विपक्ष ने सरकार को घेरते हुए कहा कि सरकार को बड़े वादे करने की बजाय रेलवे की वित्तीय स्थिति सुधारना चाहिए तथा सुविधा, सुरक्षा एवं सामाजिक जवाबदेही का निर्वहन सुनिश्चित करना चाहिए.

सत्तारूढ़ बीजेपी ने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि रेलवे रोजाना नए प्रतिमान और कीर्तिमान गढ़ रहा है तथा पिछले पांच वर्षों में सफाई, सुगमता, सुविधाएं, समय की बचत और सुरक्षा आदि हर क्षेत्र में सुधार हुआ है. अब सरकार का जोर रेलवे में वित्तीय अनुशासन लाने पर है.

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छत्तीसगढ़ में मंत्रियों के अलावा इन नेताओं को मिलेगी लालबत्ती

  • मुंबई के पवाई इलाके के होटल रेनेसां में रुके हैं, सभी विधायक
  • सुप्रीम कार्ट के आदेश के बाद,
  • विमान से बंगलुरु रवाना होंगे
  • 6 बजे सरे बागी विधायक मिलेंगे, विधानसभा अध्यक्ष से

मुंबई : बागी विधायकों से मिलने पर अड़े कर्नाटक सरकार के संकटमोचक डी. के. शिवकुमार को मुंबई पुलिस ने हिरासत में ले लिया. बता दें कि शिवकुमार बागी कांग्रेसी विधायकों से मिलनें की जिद पर अड़े हुए थे, लेकिन उन्हें नहीं मिलने दिया गया, उनके खिलाफ कार्यकर्ताओं नें शिवकुमार वापिस जाओ के नारे भी लगातार लगते रहे, उन्होंने कहा, 'मैं अपने खिलाफ नारेबाजी से नहीं डरता. सुरक्षा के खतरे के कारण अंदर जाने नहीं दिया जा रहा। मैं महाराष्ट्र सरकार का बहुत सम्मान करता हूं. मेरे पास हथियार नहीं हैं।' वह भारी बारिश के बीच होटल के बाहर विधायकों से मिलने का इंतजार कर रहे थे. लेकिन, बागी विधायकों ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया.

वहीं, कर्नाटक राजभवन के बाहर प्रदर्शन कर रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद को भी पुलिस ने हिरासत में ले लिया. कांग्रेस नेता के.सी. वेणुगोपाल ने कहा कि कल सुप्रीम कोर्ट में बागी विधायकों की याचिका पर कांग्रेस की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी वकील होंगे.

ऐसा भी होता है-

जहां एक तरफ कर्नाटक गठबंधन की सरकार में जे.डी.एस. और कांग्रेस में नए नए नाटक हो रहे हैं वहीँ दूसरी ओर भाजपा भी रोज़ नए नये आरोप प्रत्यारोप लगा रही है. बता दें की मुंबई के एक आलिशान होटल में जहां सभी बागी विधायक रुके हुए हैं, उस होटल के बाहर कर्नाटक के वरिष्ट कांग्रेसी नेता, डी. के. शिवकुमार को विधायकों से मिलने के लिए भारी बारिश में होटल के बाहर ही बहुत देर तक इंतज़ार करना पड़ा, उन्हें होटल के बाहर ही रोक दिया गया था.

जे.डी.एस. के वरिष्ट नेता डी.के. शिवकुमार नें बताया की उन्होनें उस होटल में अपने और जे. डी. एस. के अन्य विधायकों के लिए होटल बुक करवाया था, मगर उन्हें अन्दर जानें नहीं दिया गया. शिवकुमार ने कहा कि पुलिस उन्हें कह रही है कि उनके नाम से कोई कमरा बुक नहीं है लेकिन मंत्री ने जोर दिया कि उन्होंने होटल में अपने नाम से एक कमरा बुक कराया था। वहीँ दूसरी ओर मंगलवार आधी रात में 12 बागी कांग्रेसी विधायकों में से 10 नें पुलिस को पत्र लिखकर मुम्बई पुलिस से सुरक्षा मांगी है. उन्होनें अपने पत्र में जान का खतरा होनें की बात कही है और डी. के. शिवकुमार को होटल में न आने देने की दरख्वास्त की बात लिखी है.

अब सुप्रीम कार्ट के आदेश के बाद सारे विधायकों को शाम 6 बजे विधानसभा अध्यक्ष रमेश कुमार से मिलना है

 

बंगलुरु * कर्नाटक एच. डी. कुमारस्वामी की सरकार गिरता देख, सोनिया गांधी नें कमर कास ली है. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सोनिया गाँधी नें मामले की गंभीरता को देखते हुए, कांग्रेस के दो केन्द्रीय नेताओं को बेंगलुरु भेजा है.

कर्नाटक में जे.डी.एस. और कांग्रेस की गठबंधन पर संकट आ गया, जब वह लगातार विधायकों नें इस्तीफों का दौर शुरू कर दिया. हालाँकि विधानसभा के अध्यक्ष रमेश कुमार नें अब तक विधायकों द्वारा दिए इस्तीफे पर कोई फैसला नहीं लिया है, पर कांग्रेस पार्टी नें अपनी तरफ से मामले को गंभीरता से लेते हुए, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) चेयरपर्सन सोनिया गाँधी नें पार्टी के दो बड़े नेता गुलाम नबी आज़ाद और बी. के. हरिप्रसाद को कर्णाटक तलब किया है.

कांग्रेस की तरफ से ये दोनों नेता कर्णाटक में इस्तीफे का मसला हल करेंगे. के. सी. वेणुगोपाल नें गुलाम नबी आज़ाद के आने के बारे में जानकारी दी कि ‘मैंने ही उन्हें यहाँ बुलाया है, क्योकि यहाँ उनकी बहुत ज़रूरत है. इस मसले को वे सम्हाल सकते है”

मामला दरअसल ये था कि मंगलवार को कर्नाटक के 13 विधायकों नें विधानसभा अध्यक्ष रमेश कुमार के समक्ष अचानक ही इस्तीफा भेजा, उन 13 बागी विधायकों में से 10 कांग्रेसी विधायक थे. विधायकों के इस्तीफे के कारण कर्नाटक में कांग्रेस और जे. डी. एस. का गठबंधन तुत्नें के कयास लगाए जा रहे हैं. अगर औसा होता है, तो सीटों के आधार पर वहां भाजपा की सरकार बनना तय माना जा रहा है.

मंगलवार को ही कांग्रेस नें विधायक दल की बैठक बुलाई थी इसमें कांग्रेस के 10 विधायक नहीं पहुंचे थे. एनी सभी विधायक वहां मौजूद थे. अनुपस्थित 10 विधायकों नें ही इस्तीफा देने की पेशकश की थी.

लेकिन अब तक विधानसभा अध्यक्ष रमेश कुमार नें यही कहा है कि उनके पास अब तक एक बी विधायक का इस्तीफा नहीं पहुंचा है.

इस मामले में शुरू से ही कांग्रेस की तरफ से बयान दिया जा रहा है कि बागी विधायकों की वजह से कर्नाटक सरकार को कोई नुक्सान नहीं होगा.

जब कोई राजा युद्ध पर निकलता है तो युद्ध के पहले मैदान में आनेवाले छोटे-बड़े सभी राज्यों को अपने साथ मिला लेता है। अपनी ताकत बढ़ाता है, अपनी सेना की शक्ति बढ़ाता है और घोड़े की लगाम कसकर मैदान मारता है उसके बाद उसी मजबूती से सिंहासन पर बैठकर राजपाट चलाता है। मोदी सरकार का कामकाज भी ऐसे ही विजयी सम्राट की तरह शुरू है। देशवासियों को इसका अनुभव वित्तमंत्री निर्मला सीतारामन द्वारा शुक्रवार को पेश किए गए पहले बजट से आ गया होगा। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का यह पहला बजट है। किसी भी सरकार द्वारा जीत के बाद जिस गंभीरता से बजट पेश किया जाना चाहिए उसी वास्तविक पद्धति से और आगामी ५ सालों की दिशा तय करनेवाला यह बजट है। पहली महिला वित्तमंत्री निर्मला सीतारामन के सवा दो घंटे के बजटीय भाषण का स्वागत करते हुए आय और व्यय के विवरण में जो कड़ी मेहनत की उसकी भी तारीफ की जानी चाहिए। हालांकि ऐसी मेहनत करते हुए पेट्रोल, डीजल और एक्साइज ड्यूटी में एक रुपए की बढ़ोत्तरी कर महंगाई की आग में तेल डालना आवश्यक था क्या? ऐसा सवाल उठ सकता है। लेकिन पेट्रोल और डीजल पर १०-२० प्रकार के भारी-भरकम टैक्स से तिजोरी में आनेवाले पैसों पर से सरकार अधिकार छोड़ने को तैयार नहीं। मतलब जनता को चुनाव के पहले और चुनाव के बाद के बजट का फर्क समझ लेना चाहिए। चुनाव के पहले मतों का विचार करना अपरिहार्य होता है और चुनाव के बाद बजट में देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने का प्रयास किया जाता है। चुनाव के दौरान की गई असंख्य घोषणाओं की पूर्ति के लिए जो प्रचंड राशि की आवश्यकता होती है उसका इंतजाम पहले बजट के माध्यम से ही किया जाता है। वित्तमंत्री ने मध्यमवर्गीय परिवारों को नई सहूलियतें भले ही न दी हों लेकिन दो से सात करोड़ की वार्षिक आयवाले पूंजीपतियों पर अधिभार लगाकर तिजोरी भरने का चालाकी भरा काम किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा समय-समय पर घोषित कई महत्वाकांक्षी योजनाएं, खेती और उद्योग क्षेत्र के साथ ही मूलभूत सुविधाओं की परियोजनाएं और अन्य आश्वासनों को पूर्ण करने के लिए जो प्रचंड राशि लगनी है, उसके लिए वित्त मंत्री ने आर्थिक व्यवस्था कर ही ली। लेकिन उसके लिए आवश्यक राजस्व सरकार की तिजोरी में वैâसे आएगा, इसका भी खयाल रखा। आईटी रिटर्न भरने के लिए पैन कार्ड की आवश्यकता को वित्तमंत्री ने रद्द कर दिया है। उसके बदले आधार कार्ड के माध्यम से आईटी रिटर्न भरा जा सकेगा। करदाताओं के लिए ये आसान काम हुआ है। पानी और गैस के लिए नेशनल ग्रिड, २०२२ तक देश के हर गांव में बिजली और निचले स्तर तक हर बेघर को घर की घोषणा कर वित्तमंत्री थमी नहीं बल्कि उसके लिए बड़ी राशि की व्यवस्था भी की। ‘स्वच्छ भारत’ योजना के अंतर्गत विगत ५ वर्षों में सरकार ने ९.६० करोड़ शौचालय बनाए और कार्यों की गति को देखते हुए अक्टूबर, २०१९ के बाद देश में कोई भी खुले में शौच नहीं करेगा, ऐसा भी वित्तमंत्री ने कहा है। देश की महिलाओं के लिए ये बहुत बड़ी राहत की बात है। प्रधानमंत्री मोदी ने २०१६ में देश के किसानों की आय दोगुनी करने की घोषणा की थी। उसी को जोड़ते हुए वित्तमंत्री ने किसानों को ऊर्जा दाता बनाने का संकल्प व्यक्त किया है। आय पर आधारित संकल्प से लेकर तमाम योजनाओं का लाभ किसानों को मिलेगा। इसके बावजूद किसानों की आत्महत्याओं का दौर आज भी क्यों नहीं थमा इसका कारण भी सरकार को ढूंढ़ना ही पड़ेगा। ‘जलशक्ति मंत्रालय’ द्वारा २०२४ तक देश के हर गांव तक पाइप लाइन द्वारा शुद्ध पानी पहुंचाने की घोषणा इस बजट की सबसे बड़ी विशेषता है। इसे अमल में लाया गया तो पानी के लिए ग्रामीण जनता में मची हाहाकार हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी। १६ नवंबर, १९४७ से लेकर आज तक कुल ८८ बजट देश के विविध वित्त मंत्रियों ने पेश किए हैं। उसमें इस बार का नया ‘बहीखाता’ बढ़ गया है। बजट का नाम बदलने में कोई आपत्ति नहीं लेकिन देश के ८९वें बजट में भी बिजली, सड़क और पानी जैसी मूलभूत आवश्यकताओं के आसपास बजट के घूमने को क्या कहेंगे? सरकार की योजना २०२५ तक देश की अर्थव्यवस्था को ५ ट्रिलियन डॉलर्स तक ले जाने की है। तब तक ये मूलभूत समस्याएं हमेशा के लिए समाप्त हो चुकी होंगी, ऐसी आशा की किरण अवश्य दिखाई दे रही है।

देश की पहली पूर्णकालिक महिला वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 5 जुलाई को संसद में नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला बजट पेश किया। इस बजट में सरकार के आगामी पांच सालों का विजन साफ दिखा। इस बजट में उच्च आय वर्ग के लोगों पर अतिरिक्त टैक्स का बोझ लगाया गया तो वहीं आयकर नियमों में कई बड़े बदलाव किए गए। हालांकि मध्यम आय वर्ग के लोगों को इस बजट से थोड़ी निराशा हाथ लग सकती है, क्योंकि इनकम टैक्स स्लैब में कोई बदलाव नहीं किया गया है। इस बजट में प्रधानमंत्री के डिजिटल और न्यू इंडिया के सपने पर फोकस किया गया है। आइए जानते हैं कि इस बजट में इनकम टैक्स समेत अन्य क्षेत्रों में क्या बड़े बदलाव हुए हैं। साथ ही आम जनता को किस तरह से राहत दी गई है।
 नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले बजट के महत्वपूर्ण बिंदू-
 - पिछले पांच सालों में प्रत्यक्ष कर संग्रह 6 लाख करोड़ से बढ़कर 11 लाख करोड़ रुपये हो गया।
- 400 करोड़ रुपये के सालाना टर्नओवर वाली कंपनियों पर कॉर्पोरेट टैक्स दर 25 प्रतिशत कर दी गई है। पहले यह दर 250 करोड़ रुपये के टर्नओवर वाली कंपनियों पर ही लागू थी। देश की करीब 99 फीसदी कंपनियों का टर्नओवर 400 करोड़ रुपये से कम हैं और उन्हें इसका फायदा मिलेगा।
 - इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने के लिए लिए गए कर्ज के ब्याज पर 1.5 लाख रुपये तक की अतिरिक्त टैक्स छूट मिलेगी।
- स्टार्टअप कंपनियों के मूल्यांकन नियमों को आसान बनाया गया है और स्क्रूटनी प्रक्रिया को भी उदार किया गया है।
- 45 लाख रुपये तक के अफोर्डेबल हाउसिंग लोन के ब्याज पर 1.5 लाख रुपये तक की अतिरिक्त टैक्स छूट दी गई है। वर्तमान में इस तरह के लोन के ब्याज पर 2 लाख रुपये की टैक्स छूट पहले से मिल रही है।
- नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियों को भी अब बैंकों की तरह एनपीए (नॉन परफ़ॉर्मिंग असेट) के तहत डूबे पैसों का भुगतान किया जाएगा।
- विदेशों में स्थित बैंक शाखाओं और अंतरराष्ट्रीय फाइनेंशियल सर्विस सेंटर (IFSC) को इनकम टैक्स के सेक्शन 80LA के तहत आयकर में छूट दी जाएगी।
 - पैन कार्ड की जगह आधार कार्ड का इस्तेमाल कर सकेंगे। इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने के दौरान आयकर दाता के पास यदि पैन नहीं है तो वह आधार के जरिए आईटीआर फाइल कर सकेगा।  
- जिन आयकरदाताओं की सैलेरी, कैपिटल गेन और अन्य स्रोतों से आय है, उन्हें पूर्व में जमा किए गए टैक्स पर रिटर्न मिलेगा।
- सरकार द्वारा इस वित्त वर्ष में ई-स्क्रूटनी शुरू की जाएगी। जिसमें असेसिंग ऑफिसर की पहचान को गुप्त रखा जाएगा।
- डिजिटल भुगतान और नकद रहित लेनदेन को बढ़ावा देने के लिए बैंक अकाउंट से 1 करोड़ रुपये से ज्यादा की निकासी पर 2 प्रतिशत टीडीएस लगेगा।

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक ऐसे राजनेता हुए जिनके जीवन का अधिकांश भाग शिक्षा, साहित्य, विज्ञान प्रसार तथा औद्योगिकीकरण का समर्पित रहा। लेकिन राष्ट्रीय घटनाक्रम ने कुछ ऐसी करवटें बदलीं कि वे कश्मीर की शेष भारत के साथ एकता और अखंडता के नाते ही ज्यादा जाने गए।
उनका जन्म 6 जुलाई 1901 कोलकाता में हुआ था। उनके परिवार में अधिकांश सदस्य अक्सर अपने पूर्वजों के ग्रीष्मकालीन बंगले (वर्तमान झारखंड में देवघर के पास मधुपुर) में छुट्टियां के लिए जाते थे। बचपन में श्यामा प्रसाद भी लंबे समय की छुट्टियों में मधुपुर जाते थे और उनका पूरा परिवार ही देशभक्ति और अध्यात्म को समर्पित था। उनके दादा गंगाप्रसाद मुखोपध्याय बंगाल के पहले ऐसे साहित्यकार थे जिन्होंने सम्पूर्ण रामायण का बंगला में अनुवाद किया जो काफी प्रसिद्ध हुआ। उनके पिता आशुतोष मुखर्जी विश्व प्रसिद्ध गणितज्ञ माने गए जिनकी गणित पर शोध अनेक विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती थी। वे कोलकाता विश्वविद्यालय के कुलपति भी नामांकित हुए थे तथा उनकी विद्वत्ता और सम्पूर्ण बंगाल में एक उच्च स्थान के कारण बांग्ला समाज में उनकी कीर्ति बहुत फैली।
 श्यामा प्रसाद के घर में बांग्ला के प्रति गहरी भक्ति थी। उन्होंने प्रथम श्रेणी में प्रथम रहकर बीए पास किया। गोल्ड मेडल जीता। पर पिता ने कहा कि एमए बांग्ला भाषा में करो। श्यामा प्रसाद ने अंग्रेजी की बजाए बांग्ला में एमए किया और उसमें भी प्रथम श्रेणी में प्रथम रहे। वे भारतीय भाषाओं को अंग्रेजी से बेहतर स्थान दिलाने के लिए हमेशा प्रयास करते थे।
वे 23 वर्ष की आयु में ही कलकत्ता विश्वविद्यालय के बोर्ड के फैलो निर्वाचित हुए। 1926 में वे बैरिस्टरी की पढ़ाई के लिए लंदन गए और 1927 में बैरिस्टर बनकर लौटे। पर उन्होंने कभी वकालत को अपना व्यवसाय नहीं बनाया। 1934 में वे तत्कालीन भारत के सबसे बड़े कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति चुने गए तथा 1938 तक अर्थात दो कार्यकाल इस पद पर निभाए। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय को नया रूप दिया- पहली बार बांग्ला भाषा में दीक्षांत भाषण कराया जो उनके आमंत्रण पर कवि गुरू रवींद्र नाथ ठाकुर ने दिया। बंगलौर में इंस्टीट्यूट ऑफ सांइस के भी अध्यक्ष थे। वहां उनका परिचय एक प्रो. डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णनन से हुआ। उनकी प्रतिभा से प्रभावित श्यामा प्रसाद ने राधाकृष्णनन को कलकत्ता विश्वविद्यालय बुला लिया और यहां से डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णनन का वास्तविक स्वरूप निखरा जिसके लिए वे सदैव डॉ. श्यामा प्रसाद के कृतज्ञ रहे।
 श्यामा बाबू ने कलकत्ता विश्वविद्यालय में कृषि की शिक्षा प्रारंभ की और कृषि में डिप्लोमा कोर्स प्रतिष्ठित किया। विशेष रूप से युवतियों की शिक्षा के लिए उन्होंने स्थानीय सहयोगियों से दान लेकर विशेष छात्रवृत्तियां प्रारंभ कीं। उनके नेतृत्व में कलकत्ता विश्वविद्यालय देश का ऐसा पहला विश्वविद्यालय बना जहां शिक्षक प्रशिक्षण विभाग खुला तथा चीनी और तिब्बती अध्ययन केंद्र खुले। उन्होंने अपने पिता आशुतोष मुखर्जी के नाम पर भारतीय ललित कला संग्रहालय स्थापित किया और केंद्रीय ग्रंथागार बनवाया जहां शोध और अध्ययन की आधुनिकतम सुविधाएं थीं। यही नहीं उन्होंने भारत में पहली बार बांग्ला, हिंदी और उर्दू माध्यम में बीए के पाठ्यक्रम आरंभ किए तथा बांग्ला में विज्ञान विषय पढ़ाने के लिए वैज्ञानिक शब्दों का बांग्ला भाषा में शब्दकोश निकलवाया। विज्ञान की शिक्षा का समाज के विकास में क्या उपयोग होना चाहिए इसके लिए उन्होंने एप्लाईड केमिस्ट्री विभाग खोला ताकि विश्वविद्यालयीन शिक्षा को सीधे औद्योगिकीकरण से जोड़ा जा सके।
उन्हें महाबोधि सोसायटी बोधगया का अध्यक्ष चुना गया। जब बुद्ध के पवित्र अवशेष तत्कालीन बर्मा से उथांट लेकर बोधगया आए तो उन अवशेषों को डा़ॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने ग्रहण किया था।
 1943 के भयंकर बंगाल अकाल में 30 लाख से अधिक भारतीय भूख से मारे गए थे। यह चर्चिल की कुटिल नीतियों के कारण मानव निर्मित आकाल था। उस समय श्यामा प्रसाद ने बहुत विराट स्तर पर राहत कार्य आयोजित किए। उन्होंने बंगाल के अकाल पर जो आर्थिक कारणों के विश्लेषण करते हुए प्रबंध लिखा वह अनेक प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों के शोध का हिस्सा बना। श्री अरविंद के निर्वाण के पश्चात श्री मां ने श्री अरविंद विश्वविद्यालय की कल्पना की और उसका प्रथम कुलपति डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को नामांकित किया।
 डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की वर्तमान बांग्लादेश और तत्कालीन पूर्वी बंगाल के महान राष्ट्रीय कवि काजी नजरूल इस्लाम से गहरी मित्रता थी। जब नजरूल इस्लाम बीमार पड़े तो श्यामा बाबू उन्हें कोलकाता अपने घर ले आए जहां वह 6 महीने उनके घर पर रहकर स्वास्थ्य लाभ करते रहे। बाद में ढाका पहुंच कर काजी नजरूल इस्लाम ने श्यामा बाबू को जो कृतज्ञता का लंबा पत्र लिखा वह बंगला साहित्य की धरोहर माना जाता है।
 डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी पत्रकार और संपादक भी थे तथा उन्होंने 1944 में अंग्रेजी दैनिक 'दि नेशलिस्ट' प्रारम्भ किया। वे हिंदू महासभा के अध्यक्ष रहे और देश भर के प्रखर राष्ट्रीय विचारों का प्रसार किया। लेकिन इस आंधी में उनकी विद्वत्ता और उनके गहरे ज्ञान के कारण देश के सभी प्रमुख केंद्रीय विश्वविद्यालय उन्हें दीक्षांत भाषण के लिए आमंत्रित करते थे। बहुत कम लोग यह जानते होंगे कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने पटना विश्वविद्यालय, आगरा और मैसूर विश्वविद्यालय सहित देश के शिखरस्थ 22 विश्वविद्यालयों में दीक्षांत भाषण दिए हैं। उनका अंतिम दीक्षांत भाषण 1948 में दिल्ली विश्वविद्यालय में हुआ था।
उनकी ज्ञान संपदा, अकादमिक कैरियर कश्मीर आंदोलन के समान ही विराट और महत्वपूर्ण है। आशा की जानी चाहिए कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी के पदचिन्हों पर चलने की घोषणा करने वाली सरकार देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के शिक्षा संबंधी विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए श्यामा प्रसाद पीठ एवं श्यामा प्रसाद विचार अध्ययन केंद्र स्थापित करेगी।
 -तरूण विजय
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व राज्यसभा सांसद हैं।)

बंगलुरु कर्नाटक में राजनीति के गलियारे में इस्तीफों की राजनीति खेली जा रही है, कोई इसे ऑपरेशन लोटस (कमल) कह रहा है तो कोई अपना निजी फैसला, मामला कुछ ये है कि शनिवार को कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर के 14 विधायकों ने पद से इस्तीफा दे दिया. अब तक 11 विधायकों के इस्तीफे विधानसभा स्पीकर रमेश कुमार की मेज पर हैं. पहले खबर थी कि इस्तीफा देने वाले 14 में से 10 विधायक स्पेशल फ्लाइट से गोवा रवाना हुए है लेकिन बाद में पता चला की सभी विधायक मुंबई चले गए हैं. विधायकों के इस कदम के बाद मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी की सरकार खतरे में दिखाई दे रही है और सरकार गठन को बेताब बीजेपी के लिए रास्ता आसान होता नजर आ रहा है. रमेश कुमार ने कहा कि वह इन इस्तीफों पर मंगलवार को फैसला करेंगे. खबर है कि स्पीकर के पास 3 और इस्तीफे पहुंचें हैं लेकिन इसकी आधिकारिक जानकारी नहीं दी गयी है.

जेडीएस नेता और पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा ने इस पूरे घटनाक्रम पर कोई टिप्पणी करने ही मना कर दिया तो वहीं कांग्रेस की कर्नाटक इकाई के राज्य प्रभारी केसी वेणुगोपाल, बेंगलुरु पहुंचे और वहां कांग्रेस के विधायकों से मुलाकात की. खबर है कि कांग्रेस के विधायकों को शनिवार-रविवार की दरम्यानी रात स्पेशल फ्लाइट से किसी दूसरे राज्य में भेज दिया जाएगा.

आंकड़ों की सच्चाई क्या कहती है

शनिवार को हुए इस्तीफों से पहले कर्नाटक में कुल 224 विधानसभा सीटें हैं, बहुमत के लिए 113 विधायक चाहिए. फिलहाल बीजेपी के 105 विधायक हैं. जबकि कांग्रेस के पास 80 और जेडीएस के पास 37 विधायक हैं. इस तरह से दोनों के पास कुल 117 विधायक हैं. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और निर्दलीय विधायक भी गठबंधन का समर्थन कर रहे हैं.

पिछले दिनों कांग्रेस के दो विधायकों के इस्तीफा देने और एक विधायक को निष्कासित किए जाने के बाद कांग्रेस के विधायकों की संख्या 77 रह गई है. कांग्रेस-जेडीएस की संख्या 114 रह गई है. वहीं, बीजेपी पहले से ही दावा कर रही है कि कांग्रेस के 6 और जेडीएस के 2 विधायकों का गुप्त रूप से समर्थन मिला हुआ है, जो जल्द ही इस्तीफा देंगे.

बीजेपी प्रदेश में सरकार बनाने के लिए लगातार दावे कर रही है. जेडीएस-कांग्रेस के विधायकों के इस्तीफे से कुमारस्वामी की मुश्किलें बढ़ रही हैं, लेकिन बीजेपी अभी सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है. क्योकि बीजेपी के पास अपनी 105 सीटें हैं ऐसे में उन्हें सिर्फ 1 विधायक की जरूरत है. अगर सभी विधायकों के इस्तीफे स्वीकार कर लिए जाते हैं तो एक ओर जहां बीजेपी के लिए सरकार बनाने के मौका बढ़ जाएगा वहीं कांग्रेस-जेडीएस की सरकार गिर जाएगी.

राहुल गाँधी नें एक पात्र जारी कर, अपने इस्तीफे के फैसले को सार्वजनिक कर दिया है. इसके साथ ही सोशल मीडिया साइट्स में भी उन्होनें अपने इस्तीफे की बात सार्वजनिक की, जिससे सोशल मीडिया में काफी प्रतिक्रिया मिल रही है. कांग्रेस के सभी बड़े नेता बा भी राहुल को मनाने में लगे हुए हैं. राहुल गाँधी नें जो पत्र जरी किया है, उसमें उन्होनें कहा कि-

 

 

 

“मैं अब कांग्रेस अध्यक्ष नहीं हूँ” : राहुल गाँधी

“एक महीने पहले ही हो जाना था चुनाव” : राहुल गाँधी

“CWC जल्द से जल्द बैठक बुलाकर फैसला ले” : राहुल गाँधी

“हफ्ते भर में चुन लिया जाएगा पार्टी अध्यक्ष” : सूत्र

राहुल नें ट्वीटर पर भी ट्वीट किया : “कांग्रेस की सेवा करना मेरे लिए सम्मान की बात रही, जिसके मूल्य और आदर्श हमारे खुबसूरत राष्ट्र के जीवन दाई रक्त का काम करते रहें है. मेरे ऊपर अपने देश और संगठन के बेहद आभार और और प्यार का क़र्ज़ है. जय हिन्द.”

 

अब जब की साफ़ हो गया है कि राहुल गाँधी को तमाम कांग्रेसी नेताओं से मनावाने के बाद भी राहुल अपने इस्तीफे पर कायम है, तो आपको बताते चले की कांग्रेस का जो नियमावली कहती है, कि अब कांग्रेस के जो सबसे वरिष्ट नेता या जनरल सेक्रेटरी (महासचिव) होंगे, वो  कांग्रेस के कार्यकारिणी अध्यक्ष होंगे. यानि मोतीलाल वोरा इस वक़्त सबसे वरिष्ट हैं, और वे ही अगली कांग्रेस कार्य समिति की बैठक बुलाएँगे, जिसमें नए अध्यक्ष के बारे में जो भी दिशा निर्देश है, दिए जाएँगे.

अन्य कांग्रेसी नेताओं नें राहुल गाँधी के इस्तीफे के विषय में क्या कहा-

"कार्यकारी समिति की बैठक में सब नें अनुरोध किया कि राहुल गाँधी का इस्तीफा नामंजूर कर लिया जाए, लेकिन वे नहीं माने. अभी कांग्रेस को राहुल गाँधी के नेत्रित्व की बहुत ज़रुरत है, राहुल गाँधी जी 2017 से कांग्रेस अध्यक्ष बनें और उन्होनें कांग्रेस को लगातार सभी प्रदेशों में मजबूती देने का कार्य किया" मोतीलाल वोरा 

"राहुल गाँधी जी से देश के कार्यकर्ताओं नें आग्रह किया है, कि अपना इस्तीफा वापिस ले-ले, और अध्यक्ष के रूप में दुबारा कांग्रेस पार्टी का नेत्रित्व करें. क्योकि जो संघर्ष उन्होनें किया है, वो सभी लोग जानते हैं, आगे आने वाले चुनावों में राहुल गाँधी जी की नेत्रित्व की बहुत ज़रूरत है" सचिन पायलट  (डिप्टी सी. एम्. राजस्थान)

वहीँ भाजपा नेत्री स्मृति ईरानी से जब पत्रकारों नें पुछा की राहुल गाँधी नें अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है, आपकी क्या प्रतिक्रिया है, तो स्मृति ईरानी जी ने बस मुस्कुराते हुए जय श्री राम कहा.

इन सब बातों के क्या मतलब हो सकते हैं, ये तो समय ही बताएगा. लेकिन अभी राहुल के इस्तीफे ने कांग्रेस को हिला कर रख दिया है.

भारतीय जनता पार्टी की संसदीय दल की बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह कह कर सबको चौंका दिया कि अमर्यादित अथवा अहंकारी आचरण करने वाला व्यक्ति चाहे किसी का भी बेटा हो उसे पार्टी से निकाल देना चाहिए। उन्होंने यह बात इंदौर-तीन से विधायक और बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश विजयवर्गीय को लेकर कही। दरअसल पिछले दिनों आकाश विजयवर्गीय ने इंदौर नगर निगम के कर्मचारी पर बल्ला चला दिया था। नगर निगम कर्मचारी उस समय बरसात के दौरान जर्जर हो रही इमारत को तोड़ने के लिए नगर निगम अमले के साथ था। नगर निगम के इस कार्मचारी पर आकाश विजयवर्गीय द्वारा बल्ला चलाए जाने की घटना मोबाईल में कैद हो गई और सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल गई। जिसके बाद आकाश विजयवर्गीय पर एफआईआर दर्ज हुई और उन्हें जेल की हवा खानी पड़ी लेकिन भोपाल स्थित विशेष कोर्ट ने उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया।
इंदौर में हुई घटना के बाद मध्य प्रदेश के दमोह में भारतीय जनता युवा मोर्चा कार्यकर्ता सरकारी दफ्तर में बल्ला लेकर पहुँच गया और अपनी यह तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल कर दी यही नहीं सतना जिला पंचायत दफ्तर में जिला पंचायत सीईओ पर बीजेपी कार्यकर्ताओं सहित जिला पंचायत अध्यक्ष ने जमकर मारपीट की। इंदौर में हुई घटना के बाद बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने अपने विधायक बेटे के बचाव में जमकर बयानबाजी की। इस दौरान कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि उनका बेटा कच्चा खिलाड़ी है। कैलाश विजयवर्गीय ने पूरी घटना पर कहा है कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। मुझे लगता है कि दोनों तरफ से बुरा व्यवहार किया गया। कच्चे खिलाड़ी हैं आकाश जी भी और नगर निगम कमिश्नर। यह कोई बहुत बड़ा मुद्दा नहीं है लेकिन इसे बड़ा बना दिया गया। 
 
लेकिन भोपाल जिला कोर्ट में विशेष अदालत से मिली जमानत के बाद विधायक आकाश विजयवर्गीय के शहर में होर्डिंग तथा पोस्टर लग गए और उनकी रिहाई की खुशी में कार्यकर्ताओं ने हर्ष फायर भी किए। आकाश विजयवर्गीय ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो जारी कर इस पूरी घटना की सीबीआई जाँच करवाने की माँग भी की। यही नहीं उन्होंने मध्य प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री सज्जन सिंह वर्मा पर आरोप लगाते हुए इस घटना के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया और सीएम कमलनाथ से सीबीआई जाँच की माँग करवाने का आग्रह किया।
 
आकाश विजयवर्गीय के जानने वालों की बात करें तो उनका साफ तौर पर कहना है कि आकाश विजयवर्गीय बहुत सीधे साधे व्यक्ति हैं। यही नहीं अपने विधानसभा क्षेत्र में लोगों के हर दुख दर्द में शामिल होने वाले विधायक के रूप में उन्हें देखा जाता है। टीवी और मीडिया रिपोर्टों में भी आकाश विजयवर्गीय को लेकर इंदौर की जनता ने भी उनका समर्थन किया था। सीधे सौम्य व्यक्तित्व के चलते आकाश विजयवर्गीय को बहुत से लोग पसंद करते हैं। लेकिन नगर निगम कर्मचारी के साथ हुए विवाद के बाद उनकी छवि को कहीं न कहीं बट्टा लगा है।
जबकि राजनीति के चतुर खिलाड़ी के रूप में विधायक आकाश विजयवर्गीय के पिता और बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की छवि एक तेज तर्रार नेता के रूप में पहचानी जाती है। हरियाणा और बंगाल में प्रभारी रहते उन्होंने बीजेपी को आप्रत्याशित जीत दिलाई है। यही नहीं इंदौर शहर में उनका एक अलग ही रूतबा देखने को मिलता है। शायद इंदौर में एक कहावत इसीलिए प्रसिद्ध है कि इंदौर में ताई और भाई दोनों की चलती है। ताई यानि लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष सुमित्रा महाजन और भाई यानि कैलाश विजयवर्गीय। लोकसभा चुनाव में टिकिट न मिलने से सुमित्रा ताई की राजनीतिक जमीन कहीं न कहीं जाती रही है लेकिन वर्तमान दौर में भाई यानि कैलाश विजयवर्गीय की राजनीतिक जमीन इस लोकसभा चुनाव में उतनी ही मजबूत हुई है। यही कारण है कि उन्होंने अपने विधायक बेटे आकाश विजयवर्गीय को कच्चा खिलाड़ी बताया।
 
-दिनेश शुक्ल
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर दोनों सदनों में चर्चा शुरू हुई। यह पहली बार नहीं बल्कि संसद में यह बरसों की परम्परा है। अभिभाषण पर चर्चा में दोनों सदनों में सत्ता पक्ष और विपक्ष के सदस्य भाग लेते हैं। इस बार भाजपा नीत एनडीए भारी मतों से जीतकर आया। सन् 2019 के जनादेश में एक नहीं अनेक सन्देश सभी के लिए थे। जो समझना चाहे, वह समझे, जो नहीं समझना चाहते वह नहीं समझे। हम वर्षों से संसद में राष्ट्रपति अभिभाषण पर चर्चा सुन रहे हैं और भाग भी लेते रहे। इन दो दिनों की बहस में जो कुछ देखने को मिला उससे लगता है कि विपक्ष जनादेश से कोई सबक नहीं लेना चाहता है। उलटे वह पूरी तरह से जनता को दोषी मान रहे हैं और अपनी बहस के भाषणों में कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल भी उसी रास्ते पर चल रहे हैं।
 
लोकसभा और राज्यसभा में दो दिन से राष्ट्रपति अभिभाषण पर चर्चा चल रही थी। हम सत्ता और विपक्ष के नेताओं को बहुत ध्यान से सुन रहे थे। सदन के माध्यम से दोनों सदनों को देश भी सुन रहा था। देश का 'विवेक' और देश के 'जन का विवेक' सामान्य नहीं होता है। वह बहुत ही असामान्य होता है। हम लाख सोचें कि हमारा विवेक सबसे अच्छा है पर सच्चाई यह है कि जनतंत्र में 'जन विवेक' ही सबसे बड़ा विवेक होता है। परसों 25 जून था। 25 जून सन् 1975 को देश में कांग्रेस ने आपातकाल लागू किया था। इस दौरान देश की जनता अपने घर में भी जोर से नहीं बोल सकती थी। जब आपातकाल के बाद सन् 1977 में लोकसभा चुनाव हुआ तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तक चुनाव हार गयीं। जनतंत्र में जनविवेक का इससे बड़ा उदाहरण कहीं देखने को नहीं मिला।
 
लोकसभा में पहली बार आये ओडिशा के सांसद, राज्यमंत्री प्रताप चन्द्र सारंगी ने अभिभाषण पर प्रारंभिक चर्चा शुरू की। सादा जीवन और उच्च विचारों पर सदैव चलने वाले सारंगी ने अभिभाषण में कही गयी बातों पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने अपने भाषण में विनम्रता से राष्ट्रपति के अभिभाषण पर अपने विचार रखे। उन्होंने सदन को बताया कि भाजपा को और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह जनादेश क्यों और कैसे मिला। भाजपा की जीत के कारणों पर भी बड़ी विनम्रता से विषय रखा। गत पांच वर्षों में देश के विकास की भी चर्चा की। वहीं राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का समर्थन किया।  
 
एक आदिवासी युवा डॉ. हिना विजय गावित (महाराष्ट्र) जब बोल रही थीं तो लग रहा था कि भारत का जनतंत्र बहुत परिपक्व हो गया है और आज़ादी के बाद अब सुदूर आदिवासी इलाकों में भी मोदी सरकार की योजनाएं सिर्फ पहुंच ही नहीं गयी है बल्कि धरती पर उसका प्रभाव भी दिखाई दे रहा है। डॉ. हिना जब अपने संसदीय क्षेत्र का वर्णन कर रही थीं तो लग रहा था कि भारत का गरीब अब विकास की ओर जाना चाहता है और वह गरीबी पर रोने के बजाय इसे दूर करने की दिशा में सरकार के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना चाहता है।
 
दूसरी तरफ जब कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल के नेता बोलने के लिए खड़े हुए तो ऐसा लग रहा था कि 'रस्सी जल गयी पर अभी ऐंठन नहीं गयी'। उलटे वे ऐसा जता रहे थे कि भारत की परिपक्व जनता ने बहुत बड़ी गलती कर दी। कांग्रेस के नेताओं के मन में जनादेश को सम्मान करने का साहस उनके राष्ट्रपति के अभिभाषण के चर्चा में दिए गए भाषणों में नहीं देखा गया। आज स्थिति यह है कि लोग देखना चाहते हैं कि जनादेश के बाद विपक्षी दल खासकर कांग्रेस, बसपा और सपा में कुछ समझ आई होगी। पर वह सब देखने को नहीं मिला। हताश और निराश विपक्ष जनादेश को स्वीकारने में भी हिचकिचा रहा है। कमोबेश सभी विपक्षी दलों की स्थिति जस की तस थी।
राज्यसभा की तरफ नजर डालें तो देखेंगे कि वहां पर भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने अपनी प्रस्तावना में साफ़ तौर पर कहा कि हमने जन-जन के लिए जो काम किया उसी के आधार पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश में जन-जन का सहयोग मिला। नड्डा जी ने साफ़ तौर पर कहा कि देश ने नरेंद्र मोदी के साथ चलने का रास्ता तय किया। अपने 50 मिनट के भाषण में उन्होंने जनादेश मिलने के कारणों पर भी प्रभावी प्रकाश डाला। उनके भाषण में सच्चाई थी। उत्साह था, उन्माद नहीं। ख़ुशी थी, पर अभिमान नहीं। नड्डाजी ने प्रस्ताव का समर्थन किया। श्रीमती सम्पतिया उइके जो मध्य प्रदेश के मंडला आदिवासी क्षेत्र से आती हैं, उन्होंने भी अपने भाषण में बताया कि गरीबों के लिए मोदी सरकार ने क्या-क्या किया। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि अब मोदीजी की सरकार शब्दों से गरीबों के लिए नहीं बल्कि पूरी तरह अपने आचरण से गरीबों के लिए जी रही है।
 
संपतिया उइके ने कहा कि आज गांवों में गरीबों, आदिवासियों और अनुसूचित जाति के परिवारों में नई आशा जगी है। उन्हें विश्वास होने लगा है कि उन्हें भी आवास मिलेगा। 'अपना घर' का सपना पूरा होगा। 'गैस चूल्हे' के लिए उनका नाम भी जुड़ेगा। पानी का संकट भी दूर होगा। ईलाज और दवाई के अभाव में अब गरीब मौत के मुंह में नहीं जाएगा। गांव-गांव में नरेंद्र मोदी की गरीबों के लिए चल रही योजनाओं ने उनकी जिंदगी में एक नई रोशनी प्रदान की है। हर गांव के गरीबों की जुबान पर नरेंद्र मोदी का नाम पहुंच चुका है। उन्होंने कहा कि गरीबों ने अब मान लिया है कि नरेंद्र मोदी की सरकार गरीबों की सरकार है। 
 
वहीं कांग्रेस के राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आज़ाद ने अभिभाषण पर बोलते हुए जो कुछ कहा, उससे यह बात भी साफ़ हो रही थी कि कांग्रेस जनता पर बहुत गुस्सा है। उन्हें लग रहा था कि जनादेश तो सदैव कांग्रेस को ही मिलना चाहिए। उनके भाषण में दुःख कम बल्कि जनता के खिलाफ अधिक रोष दिख रहा था। वहीं उनके चेहरे पर यह झलक रहा था कि इस जनादेश को वे पचा नहीं पा रहे हैं। विपक्ष का नेता कहते हुए आज भी देश के सामने पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का नाम सामने आता है। आज जब अटलजी की तुलना में विपक्षी दलों के नेताओं को तराजू पर रखती है 'तराजू' सस्वतः शर्मिन्दा हो जाता है।
  
कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों के नेताओं ने जो भाषण दिया वह जाहिर कर रहा था कि उन्हें भारत की जनता के जनविवेक पर शंका है। सच्चाई यही है कि आज भी कांग्रेस सहित सपा-बसपा आत्म मंथन करने के बजाय अपना गुस्सा जनता पर दिखा रहे हैं। शायद ये भूल जाते हैं कि जनतंत्र में जनादेश को स्वीकार करना पड़ता है न कि जनता को गाली देना होता है। गुलाम नबी आजाद जैसे अनुभवी नेता भाजपा के बारे में जो कुछ कह रहे थे, उससे लग रहा था कि वे भारत की जनता को 72 वर्ष की आज़ादी के बाद भी अपरिपक्व मानते हैं। यही कारण है कि आज जनता के बीच कांग्रेस सिमटती जा रही है। 
लोकसभा में तो और भी गजब हो गया। कांग्रेस के विपक्ष के नवनियुक्त नेता को अपने भाषण पर पहले ही दिन प्रधानमंत्री से माफ़ी मांगनी पड़ी। इन दो दिनों में यह बात धीरे-धीरे सामने आ रही है कि विपक्ष न तो नकारात्मक और न ही सकारात्मक विरोध कर पा रहा है। वह पूरी तरह देश की जनता को दोषी मान रहा है। जो विपक्षी दल जनादेश का सम्मान न कर सके, उसका भविष्य में देश की जनता कैसे सम्मान करेगी। ऐसे सवाल अभी भी सेंट्रल हॉल में गूंज रहे हैं। सेंट्रल हॉल में सभी कांग्रेस समर्थकों की यही पीड़ा है कि कांग्रेस इस हालत के बाद भी सुधरना नहीं चाहती है।  
 
हर क्षण-हर पल भारत के लिए जीना है
       
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष को आह्वान किया। उन्होंने कहा कि चुनाव हो गए। जो आपको कहना था, और जो हमें कहना था, हम सभी ने कहा। अब आज हम सभी का दायित्व है कि भारत के विकास में हम सभी एक साथ खड़े हों। विकास भारत का होना है न कि किसी राजनैतिक दल का। उन्होंने कहा कि विपक्ष हमें आगाह करे। हम उनके एक-एक शब्द को देश हित में ग्राह्य करेंगे।
 
उन्होंने आगे कहा कि विपक्ष की भूमिका उन्हें तय करनी है। लेकिन भारत की एक सौ तीस करोड़ जनता यानि उसके लिए सत्ता और विपक्ष दोनों जिम्मेदार है। मोदीजी ने स्पष्ट कहा कि जनादेश के मायने हमारे लिए, फूलमाला, स्वागत या सत्कार कराना नहीं है। हमें हर पल हर क्षण जनता की सेवा करनी है। उन्होंने कहा कि हमारे पिछले पांच वर्षों के जनविकास कार्यों पर मुहर लगाकर भारत की जनता ने पुन: उससे अधिक काम करने की जिम्मेदारी सौंपी है।
 
श्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि हमें ऊंची उड़ान भरनी है पर जमीन से नहीं कटना है। हमारी हर उड़ान जमीन के लोगों के विचार के लिए होगी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के मित्र कह रहे थे कि हम बहुत ऊंचाई पर हैं लेकिन आपके पैर जमीन से उखड़ गए हैं और आप अब जमीन से उठे नहीं बल्कि पूरी तरह कट गए हैं। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि आप इससे भी ऊंची ऊंचाई पर जाएं। उन्होंने देश को आश्वस्त किया कि नए भारत के निर्माण में वे अब आगे बढ़ेंगे और उन्हें पूरे देश का और सदन में विपक्ष का सह्योग चाहिए।
 
-प्रभात झा 
(सांसद व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष- भाजपा)

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