ईश्वर दुबे
संपादक - न्यूज़ क्रिएशन
+91 98278-13148
newscreation2017@gmail.com
Shop No f188 first floor akash ganga press complex
Bhilai
व्यायाम सभी को करना चाहिये। इससे हम फिट रहते हैं। अगर आप हर दिन 30 से 40 मिनट व्यायाम करते हैं तो आप बहुत सी बीमारियों से दूर रहते हैं एक सर्वेक्षण में कहा गया है अगर कोई आदमी 70 साल का है और वह हर रोज व्यायाम करता है तो उसकी उम्र बढ़ जाती है और बीमारियों से भी दूर रहता है। स्वस्थ रहने के लिए यह सबसे बड़ा उपाय है।
पौष्टिक भोजन
स्वस्थ रहने के लिए संतुलित आहार की बहुत जरूरत होती है क्योंकि आप जानते हैं ज्यादातर बीमारी गलत आहार से होती है। इसलिए संतुलित आहार को अपनाएं। इसके साथ ही 3 से 5 लीटर पानी पिए। फल और सब्जी भी खाएं, खाने को चबाकर खाएं, रात में कम खाना कम खाएं, किसी भी एक चीज का ज्यादा मात्रा में सेवन ना करें।
सकारात्मक रहें
यह आपके जिंदगी का यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है। लोग इस पर ध्यान कम देते हैं। निराशाजनक माहौल से दूर रहें, सोते समय ना सोचे, कमाई से अधिक खर्च ना करें, किसी से झूठा वादा ना करें, जिसको आप पूरा ना कर सके, बिना मतलब का कुछ ना सोचें हैं। अच्छे लोगों से मिले हैं और उसे दोस्त करें खूब हंसे और दूसरे को हंसाने की कोशिश करें। दिमाग का सीधा रिश्ता दिल से होता है अगर आप तनाव में रहते हैं तो आपका ब्लड प्रेशर बढ़ता है जिस से बहुत सारी बीमारियां होती हैं जैसे हार्ट अटैक आदि। अपने लाइफ स्टाइल को ठीक करें जल्दी सोए और जल्दी जगे! चिंता, क्रोध, शोक, शक और दूसरों से अधिक उम्मीद न करें।
अच्छी नींद
वैज्ञानिक मानते हैं कि नींद सबसे बड़ी दवा है आप गौर कीजिए जब आप काम करके बहुत ज्यादा थक जाते हैं। अगर आप गहरी नींद से सोते हैं तो सुबह अपने आप को तरोताजा पाते हैं। इसीलिए कहा जाता है अच्छी नींद का होना बहुत जरुरी है! कम नींद होना या ज्यादा नींद का होना इसका सीधा प्रभाव स्वास्थ्य पड़ता है। वैज्ञानिक अध्ययन से पाया गया है कि 8 घंटा से ज्यादा और 6 घंटे से कम नहीं सोना चाहिए। सोते समय सोचना नहीं चाहिए जिससे आपका नींद खराब होता है और आप सही सोच भी नहीं पाते हैं क्योंकि आप थके हुए होते हैं।
इलाज करवाने में देरी ना करें
लोग अपनी बीमारियों को डालने की कोशिश करता है या फिर अपनी बीमारियों को झूठलाता है कि मुझे यह बीमारी नहीं है इसका चयन स्वयं करें। डॉक्टरी सलाह अवश्य लें समय रहते अगर आप डॉक्टर से मिलते हैं तो आप का इलाज कम खर्च में जल्दी हो जाता है।
विश्व स्वास्थ संगठन के अनुसार आप हर रोज पांच अलग रंग का फल खाएं। संडे हो या मंडे हर दिन एक अंडे कम से कम खाएं। साफ पानी तीन से 5 मीटर हर दिन पीने की कोशिश करें। दूध का इस्तेमाल करें चाय पीने में दूध का इस्तेमाल होना इसे दूध का सेवन नहीं माना जाता है दूध पिए हैं या धूप से बना हुआ खाना खाएं।
खुश रहने के बहाने खोजें
सिर्फ अपने आपको कामनाएं वयस्त रखना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। आप काम भी करें साथ ही साथ खुश रहने के लिए अलग-अलग तरीकों को अपनाएं जैसे खेल कूद में भाग लेना, फिल्म देखना, अपने मनपसंद दोस्त से मिलना, घूमने जाना, मजाकिया आदत रखना, और मनपसंद खाना खाना आदि।
अपनाएं साफ सफाई
स्वस्थ रहने के लिए हाइजीन का होना बहुत जरूरी है सिर्फ अपने आप को साफ करना बहुत बड़ी बात नहीं है। आप जो समान इस्तेमाल करते हैं उसका भी साफ होना उतना ही जरुरी है और जहां पर आपका खाना पकता है उसका भी साफ होना जरूरी है।
सेब रखेगा सेहतमंद :
सेब खाना सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है। कुछ लोग सेब को छिलकर खाना पंसद करते है लेकिन इससे सेब के सारे जरूरी न्यूट्रिन निकल जाते है। सेब को छिलकर खाने की बजाएं छिलके समेत खाने से आपकी कई बीमारियां दूर हो सकती है और यह खाने में भी टेस्टी लगता है। आइए जानते है सेब को छिलके समेत खाने से शरीर को क्या फायदे होते है।
ब्लड शुगर
डायबिटिज का समस्यां वाले लोगों को सेब छिलके समेत खाना चाहिए। इसे ऐसे खाने से शुगर कंट्रोल में रहती है।
ब्रेन सेल
सेब को बिना छिले खाने से आपके ब्रेन सेल डैमेज नहीं होते है। इसके अलावा इसे ऐसे खाने से दिमाग भी तेज होता है।
आंखों में कैटरेक्ट
सेब का छिलका आपको आंखों में होने वाली कैटरेक्ट की बीमारी से बचाता है। नियमित सेब खाने से आपको यह बीमारी नहीं होती है।
पित्ते की पत्थरी
फाइबर के गुणों से भरपूर सेब का छिलका पित्त की थैली में जमा कॉलेस्ट्रोल को कम करके आपको स्टोन प्रॉब्लम से बचाता है।
दातों में सड़न
सेब का छिलका दातों में कैवटी को होने से रोकता है। इसके अलावा प्रैग्नेंसी में इसका सेवन करने से खून की कमी पूरी होती है।
कैंसर
कैल्शियम, इंजाइम, एंटी ऑक्सीडेंट और प्लेविनाइड के गुणों से भरपूर सेब का छिलका मोटापे को दूर करने के साथ-साथ लीवर, ब्रेस्ट और कोलोन कैंसर से बचाता है।
स्वस्थ रहने के लिए हरड़ का प्रयोग नियमित करना चाहिए। शास्त्र में इसकी सात जातियां बतायी गयी है। विजया, रोहिणी, पूतना, अमृता, अभया, जीवंती और चैतकी। व्यावहारिक दृष्टिकोण से तीन प्रकार की होती है। छोटी हर्रे, पीली हर्रे और बड़ी हर्रे। यह तीनों एक ही वृक्ष के फल है। यह कॉम्ब्रेटेसी परिवार का पौधा है। इसका उपयोगी भाग फल है।
इसका वृक्ष विशाल लगभग 80-100 फीट ऊंचा होता है। फूल छोटा, सफेद या पीले रंग का होता है। फल एक से डेढ़ इंच लंबा अंडाकार, पृष्ठ भाग पर पांच रेखाओं से युक्त, कच्चा में हरा, पकने पर धूसर पीला रंग का हो जाता है़। प्रत्येक फल में एक बीज होता है़। पके हुए फलों का संग्रहण अप्रैल-मई माह में करना चाहिए।
यह कफ वात व पित जनित रोगों में उपयोगी है। पाचन शक्ति बढ़ती है़। खांसी, सांस, कुष्ठ, बवासीर, पुराना ज्वर, मलेरिया, गैस, अपच, प्यास, त्वचा रोग, पेशाब की जलन, आंखों के रोग, दस्त, पीलिया आदि में लाभदायक है। खट्टेपन से वात रोगों को दूर करती है। चटपटेपन से पित रोग और कसैलेपन से कफ का नाश करती है। इसका सेवन बरसात में सेंधा नमक के साथ, जोड़ों में मिश्री के साथ, हेमंत ऋतु में सोंठ के साथ, बसंत ऋतु में शहद के साथ, गर्मी में गुड़ के साथ करना चाहिए।
खाना खाने से पहले इसे लेने से भूख बढ़ती है़। बाद में खाने से खाना आसानी से पचता है़
छोटी हर्रे का चूर्ण लगभग चार से छह ग्राम रात में भोजन करने के एक से दो घंटे बाद पानी के साथ प्रयोग करने से कब्ज की समस्या दूर होती है़।
इसका चूर्ण गुड़ व गिलोथ के काढ़े के साथ प्रयोग करने से गठिया में आराम मिलता है़।
इसे तंबाकू की तरह चिलम में रखकर पीने से सांस की समस्या दूर होती है़
मुख व गले के रोगों में इसका काढ़ा बना कर कुल्ला किया जाता है़।
इसका चूर्ण दो ग्राम गुड़ के साथ खाना चाहिए़। छोटी हर्रे को सुपारी की तरह छोटा-छोटा टुकड़ा कर लें और दिन में खाना खाने के बाद लगभग एक टुकड़े को मुंह में डाल कर अच्छी तरह से चबाना चाहिए़। इसके नियमित प्रयोग से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है़।
ट्रेंड रिपोर्ट :
लोगों को सर्जरी के बाद रिकवरी के लिए छुटि्टयां नहीं लेनी पड़ रहीं
क्लीनिक्स का दावा, सर्जरी की मांग में 500% तक उछाल आया
कोरोनाकाल में दुनियाभर में कई लोगों ने आपदा को अवसर को बदल दिया। बेंगलुरु से ब्रिटेन तक के लोग वर्क फ्रॉम होम और मास्क का फायदा उठाकर खुद को बेहतर बनाने की सर्जरी करवा रहे हैं।
ब्रिटेन में थुलथुल लोग पेट कम करवाने, लिपोसक्शन जैसी सर्जरी करवा रहे हैं। इसके दो फायदे हैं। पहला, उन्हें अतिरिक्त छुट्टियां नहीं लेनी पड़ रही हैं और वे वर्क फ्रॉम होम करते हुए रिकवर हो जा रहे हैं। दूसरा, वे सर्जरी को सहकर्मियों से भी छुपा सकते हैं। क्लीनिक्स का दावा है कि उनके यहां होने वाली कुछ सर्जरी की मांग में 500% का उछाल आया है।
अगले 9 माह तक के लिए एडवांस बुकिंग
ब्रिटिश एसोसिएशन ऑफ एस्थेटिक प्लास्टिक सर्जंस के काउंसिल मेंबर डैन मार्श के मुताबिक, उनके अगले नौ माह के सभी स्लॉट बुक हैं। पॉल मॉल कॉस्मेटिक्स के मुताबिक, लिपोसक्शन के बारे में पूछताछ लॉकडाउन के पहले के मुकाबले दोगुनी हुई है। पेट कम करवाने की पूछताछ 40% बढ़ी है। पुरुष सीने पर चर्बी हटवाने की सर्जरी करवा रहे हैं। इसकी मांग 115% बढ़ी है। ब्रेस्ट रिडक्शन के बारे में पूछताछ 520%, तो ब्रेस्ट ऑग्मेन्टेशन के बारे में 110% बढ़ी है।
दूसरी तरफ, दक्षिण कोरिया में महामारी के दौरान भी युवतियों में नोज सर्जरी का ट्रेंड बढ़ा है। वजह, वे मान रही हैं कि इस साल वैक्सीन लग गई तो मास्क उतर जाएगा। इसलिए अभी सर्जरी फायदेमंद हैं, ताकि मास्क के नीचे नाक के निशान छुप जाएं। मालूम हो, दक्षिण कोरिया को कॉस्मेटिक सर्जरी की वैश्विक राजधानी कहा जाता है।
भारत में पहले एक हफ्ते में तीन सर्जरी
भारत भी इससे अछूता नहीं है। बेंगलुरु के निजी हॉस्पिटल के डॉ. वेप्पालापति के मुताबिक दिसंबर तक हम एक हफ्ते में तीन सर्जरी कर रहे थे। 1 जनवरी के बाद रोज तीन सर्जरी कर रहे हैं। हेयर ट्रांसप्लांट, राइनोप्लास्टी, बॉडी स्कल्पटिंग, फैट रिडक्शन के साथ ही बोटॉक्स, फिलर और फेशियल मेकओवर की भी भारी डिमांड है।
सर्जरी कराने से पहले इनका जोखिम भी समझ लीजिए
राइनोप्लास्टी: नाक को खूबसूरत बनाने के लिए
नाक की खूबसूरती के लिएइस कॉस्मेटिक सर्जरी का इस्तेमाल नाक को सही शेप देने के लिए किया जाता है। अमूमन चेहरे के अनुपात में नाक बड़ी दिखाई देना, अधिक चपटी होना या नथूने बड़े होने जैसी स्थिति होने पर राइनोप्लास्टी की जाती है। इस सर्जरी में 3-4 घंटे लग सकते हैं। अधिक समय लगने पर एक-दो दिन के लिए अस्पताल में रुकना पड़ सकता है। एक्सपर्ट इसे 20 साल की उम्र के बाद ही कराने की सलाह देते हैं। इसमें करीब 1.5 से 2.5 लाख रुपए का खर्च आता है।
सावधानी : धूप से जाने से बचें और कम से कम 4 घंटे आराम करें। सोते समय सिर ऊपर रखें और नाक की जगह मुंह से सांस लें, इसके अलावा बात कम करें और भारी सामान उठाने से बचें। सर्जन की बातों को सावधानी से फॉलो करें।
जोखिम: सर्जरी के चार हफ्ते बाद स्थिति नॉर्मल हो जाती है लेकिन कुछ मामलों में नाक में आई सूजन को खत्म होने में ज्यादा समय लग सकता है। सर्जरी के निशान रह सकते हैं और ब्लीडिंग हो सकती है।
लिपोसक्शन: शरीर के खास हिस्से की चर्बी को कम करते हैं
शरीर के खास हिस्सों की चर्बी घटाकर कर देते हैं शेपशरीर के कुछ हिस्से जैसे हाथ, जांघ, कमर में चर्बी अधिक जम जाती है। कई बार लड़कों के सीने पर अधिक उभार होने को हटाने के लिए ये सर्जरी की जाती है। बॉडी की एक्स्ट्रा को हटाकर फिगर को बेहतर शेप में लाया जाता है। इसमें 1.50 से दो लाख का खर्च आता है।
सावधानी: आराम करें और अधिक मूवमेंट से बचें। डॉक्टरी सलाह से कुछ दिन एक्सरसाइज न करें और पानी की कमी न होने दें। 6-7 दिन तक प्रेशर गारमेंट पहनें ताकि बॉडी शेप में आ सके।
जोखिम: शरीर में आने वाली सूजन को खत्म होने में एक से डेढ़ महीना लग सकता है। त्वचा लटक सकती है और ब्लीडिंग का खतरा रहता है। दर्द भी रह सकता है।
फेसलिफ्ट: चेहरे की झुर्रियां हटाने के लिए
चेहरे की झुर्रियों को हटाकर खूबसूरत दिखने के लिएइस सर्जरी का इस्तेमाल चेहरे की झुर्रियों को हटाने के लिए किया जाता है। इसके लिए चेहरे की स्किन को स्ट्रेच पर झुर्रियों को हटाया जाता है। इस सर्जरी में 2-3 घंटे लगते हैं। 8-10 साल तक इसका असर रहता है। इस सर्जरी की मदद से आंखों के पास, ठोडी या मुंह के पास लटकी स्किन को टाइट किया जाता है। इस सर्जरी में 2.5 से 3 लाख रुपए लगते हैं।
सावधानी: सर्जरी के बाद कोई भी काम झुककर न करें। भारी वजन उठाने से बचें क्योंकि इससे चेहरे पर भी खिंचाव आता है। छींकते समय सावधानी बरतें और कुछ दिन तक वर्कआउट न करें।
जोखिम: चेहरे पर सूजन आ सकती है। कुछ मामलों में ब्लीडिंग या इंफेक्शन का खतरा रहता है। दर्द भी हो सकता है।
ब्लेफारोप्लास्टी: आईब्रो को आर्च शेप देने के लिए
आर्च शेप आईब्रो के लिएइस सर्जरी का इस्तेमाल ज्यादातर महिलाएं ही करती हैं। इसमें लटकी हुईं आईब्रो को ऊपर कर शेप में लाया जाता है जिससे आप जवां दिखते हैं। इसके अलावा लटकी हुई स्किन को भी ठीक किया जाता है। इसमें 70 हजार से 1 लाख रुपए तक का खर्च आता है।
सावधानी: सर्जरी वाले हिस्से को छुएं नहीं और न हीं रगड़ें। धूप से खुद को बचाएं और कम से कम दो हफ्तों तक लेंस न लगाएं।
जोखिम : सूरज की रोशनी सेंसेटिव हो सकती है। इसके अलावा आंखें ड्राई हो सकती हैं।
ब्रेस्ट एन्हेंसमेंट : ब्रेस्ट को शेप देने के लिए
इसे ब्रेस्ट ऑग्मेंटेशन या बूब जॉब भी कहते हैं। इसमें ब्रेस्ट को टाइट और बड़ा करके सही आकार दिया जाता है। इस सर्जरी को कई तरह किया जाता है। इसमें अलग-अलग तरह के इंप्लांट्स जैसे सिलीकॉन या सैलाइन ब्रेस्ट इंप्लांट्स या फैट का इस्तेमाल होता है। इसमें 2-3 घंटे लगते हैं और करीब 1-2 लाख रुपए तक खर्च आता है।
सावधानी : दो माह से भारी वजन उठाने के लिए मना किया जाता है। इसके अलावा सर्जरी को सफल बनाने के लिए स्पोर्ट ब्रा पहनने की सलाह दी जाती है। दर्द और संक्रमण से बचाने के लिए कुछ दवाएं दी जाती हैं। सूजन होने पर डॉक्टरी सलाह लें।
जोखिम : ब्रेस्ट में गांठ का खतरा रहता है, टेस्ट कराकर पता लगा सकती हैं। कुछ मामलों में इस सर्जरी को 2-3 माह में दोबारा कराना पड़ सकता है। ब्रेस्ट में दर्द हो सकता है या इंप्लांट्स के लीक होने का खतरा रहता है।
सेहत की बगिया :
पिप्पली का पौधा हृदय रोगियों और पेट की समस्याओं में फायदा पहुंचाता है
लेमनग्रास संक्रमण से बचाता है और ब्रह्मी दिमाग तेज करता है
आयुर्वेद में ऐसे कई पौधे बताए गए हैं जिनकी पत्तियों और जड़ों से कई तरह की बीमारियों का इलाज किया जाता है। इनमें से कुछ पौधों को घर के गार्डन में उगा सकते हैं। इन्हें लगाना भी आसान है और अधिक देखभाल की जरूरत भी नहीं होती। नए साल में अपने बगीचे में ऐसे पौधे भी लगाएं जो आपको रोगों से बचाएं। बागवानी विशेषज्ञ आशीष कुमार बता रहे हैं, घर के बगीचे में औषधीय पौधे कैसे लगाएं, इन्हें कैसे इस्तेमाल करें और ये कितनी तरह से फायदा पहुंचाते हैं...
ब्राह्मी
ब्राह्मी : दिमाग तेज करती है और बच्चों में एकाग्रता बढ़ाती है
कैसे लगाएं : इसका पौधा जमीन पर फैलकर बड़ा होता है, यह आसानी से किसी भी मिट्टी में लग जाता है।
कैसे मिलेगा फायदा : इसकी 4-5 पत्तियों को सुबह खाली पेट चबाकर, पानी पिएं। रस निकालकर भी ले सकते हैं। इसकी तासीर ठंडी होती है इसलिए सर्दी में पत्तियों के रस को काली मिर्च के साथ लें।
फायदे : ब्राह्मी दिमाग के लिए अधिक फायदेमंद है। बच्चों में एकाग्रता की कमी और बड़ी उम्र में भूलने की बीमारी में इसकी पत्तियों को चबाकर खाते हैं तो फायदा होता है।
गिलोय
गिलोय : डेंगू-चिकनगुनिया के मरीजों के लिए फायदेमंद
कैसे लगाएं : गिलोय बेल है.जो कटिंग से हर तरह की मिट्टी में लग जाती है।
कैसे मिलेगा फायदा : गिलोय बेल की डालियां कूटकर पानी में उबालकर पी सकते हैं। जिन्हें डायबिटीज नहीं है, वे इसमें थोड़ा शहद डालकर भी पी सकते हैं।
फायदे : गिलोय रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाने वाली औषधि है। ऐसे लोग जिन्हें बार-बार जुकाम होता है, उनके लिए फायदेमंद है। सांस के रोग, आर्थराइटिस, डेंगू या चिकनगुनिया, मधुमेह में फायदा मिलता है।
कालमेघ
कालमेघ : यह कैंसर और संक्रमण से बचाता है
कैसे लगाएं : यह आसानी से बीज या कटिंग से गमले या क्यारी में लग जाता है।
कैसे मिलेगा फायदा : बुखार और खराश होने पर इसकी पत्तियों की चाय या जूस बनाकर पी सकते हैं लेकिन ध्यान रहे कि यह नीम से सौ गुना अधिक कड़वा होता है, इसलिए इसे 'किंग ऑफ बिटर' के नाम से भी जानते हैं।
फायदे : यह संक्रमण, बैक्टीरिया, कैंसर और सूजन से बचाता है। डायबिटीज के रोगियों के लिए भी यह फायदेमंद है। इसीलिए इसको कोविड-19 संक्रमण से लड़ने में मददगार भी कहा जा रहा है। दवाइयों में इसके प्रयोग भी किए जा रहे हैं। यह हैजा, दमा, ज्वर, मधुमेह, हाई ब्लड प्रेशर, खांसी, गले में छाले और पाइल्स में फायदेमंद है।
पिप्पली
पिप्पली : यह हृदय रोगियों और पेट की समस्याओं में फायदेमंद
कैसे लगाएं : पिप्पली का पौधा कटिंग या बीज रोप करके लगा सकते हैं।
कैसे मिलेगा फायदा : पिप्पली को लॉन्ग पेपर भी कहते हैं। इसमें लम्बे फल लगते हैं, जिनका चूर्ण बनाकर सेवन किया जाता है। उसी तरह जड़ को सुखाकर भी इसका चूर्ण लिया जा सकता है।
फायदे : यह दिल के रोगों में फायदेमंद है। इसके फल के एक ग्राम चूर्ण को शहद के साथ खाली पेट लेने पर दिल के रोगों में राहत मिलती है। इसी तरह पेट के रोगों के लिए भी यह चूर्ण फायदेमंद है।
अश्वगंधा
अश्वगंधा : खांसी और अस्थमा में राहत देता है, इम्युनिटी बढ़ाता है
कैसे लगाएं : इसका पौधा बीज की मदद से गमले या क्यारी में लगाया जाता है।
कैसे मिलेगा फायदा : इसकी जड़ों का पाउडर खांसी और अस्थमा से राहत दिलाता है। पत्तियों की चाय बनाकर पी सकते हैं। दूध में एक चम्मच अश्वगंधा की जड़ का पाउडर मिलाकर पीने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
फायदे : अश्वगंधा शरीर की काम करने की क्षमता को बढ़ाता है। इसके पत्तों को रेग्युलर खाते हैं और प्राणायाम करते हैं तो मोटापा कम किया जा सकता है।
वन तुलसी
वन तुलसी : सिरदर्द, गले की खराश और बुखार में फायदा करती है
कैसे लगाएं : इसको बीज या कलम से बड़े गमले में लगा सकते हैं लेकिन क्यारी में बेहतर उगती है।
कैसे मिलेगा फायदा : इसकी पत्तियों से मसाला चाय बना सकते हैं। चाय बनाते वक्त इसकी कुछ पत्तियां साथ में डालने से चाय भी कड़क बनेगी। रसोई में मौजूद मसालों की तरह वन तुलसी का उपयोग कर सकते हैं। इसकी दो-तीन पत्तियां मसालों के साथ पीसकर उपयोग कर सकते हैं।
फायदे : वन तुलसी की पत्तियां इन्फ्लुएंजा के इलाज, सिरदर्द, गले की खराश, खांसी और बुखार में फायदा पहुंचाती हैं।
लेमनग्रास
लेमनग्रास : इसकी चाय पिएं, संक्रमण से बचे रहेंगे
कैसे लगाएं : इसे नींबूघास भी कहते हैं। इसे छोटे गमले या क्यारी में लगा सकते हैं।
कैसे मिलेगा फायदा: इसकी पत्तियां लेमन टी बनाने में इस्तेमाल कर सकते हैं। गर्म पानी में अजवाइन और लेमनग्रास की कुछ पत्तियां डालकर उबाल लें। इसे दो मिनट तक रखें और फिर हल्दी डालकर अच्छी तरह से मिलाकर पिएं।
फायदे: इसमें एंटीऑक्सीडेंट्स और बैक्टीरिया को खत्म करने वाली खूबियां हैं जो कई प्रकार के इंफेक्शन से बचाता है। इस घास में विटामिन-ए और सी, फोलेट, फोलिक एसिड, मैग्नीशियम, जिंक, कॉपर, आयरन, पोटेशियम, फॉस्फोरस, कैल्शियम और मैगनीज़ होते हैं।
इस समय कोरोना वायरस के डर के साथ-साथ होने वाले संक्रमणों का खतरा भी मंडरा रहा है। ऐसे में च्यवनप्राश की मदद से आप अपने की इम्युनिटी को बढ़ा सकते हैं।च्यवनप्राश में बहुत घटक द्रव्य होते हैं जो बल्य ,रसायन के साथ पौष्टिकता से भरपूर होते हैं ,पर बाजार में मिलने वाले च्यवनप्राश में शहद का उपयोग का होता हैं जिससे बहुत से लोग इसका उपयोग करने से वंचित होना पड़ता हैं। यदि यह रसायन शहद आदि अन्य अभक्ष्य पदार्थों से रहित हो तो बहुत अच्छा होगा। इसके उपयोग में घटक अपने हिसाब से भी डाल सकते हैं
कोरोना को हराने का एक ही तरीका है और वो है इम्युनिटी बढ़ाना। इम्यून सिस्टम को मजबूत करने में च्यवनप्राश भी बहुत फायदेमंद होता है। बच्चों की इम्युनिटी वयस्कों की तुलना में कम होती है इसलिए कोरोना काल में बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए आपको ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी।
इम्युनिटी पॉवर बढ़ाने के लिए आप घर पर ही च्यवनप्राश बना सकते हैं। यहां हम आपको घर पर च्यवनप्राश बनाने की विधि के बारे में बता रहे हैं जिससे इम्युनिटी बढ़ेगी।
च्यवनप्राश बनाने में 40 मिनट का समय लगेगा और ये च्यवनप्राश आप 10 महीने से लेकर अधिक उम्र के वयस्कों को खिला सकते हैं।
च्यवनप्राश बनाने के लिए आपको आधा किलो आंवला, एक कप गुड़, 5 चम्मच घी, मुट्ठीभर किशमिश (बिना बीज के) और 11 से 12 मुलायम खजूर (बिना बीज के) जरूरत होगी।
मसाले के लिए 6 से 8 हरी इलायची, 9 से 10 काली मिर्च के दाने, एक चम्मच दालचीनी पाउडर, एक चम्मच सौंफ,तीन-चार केसर के टुकड़े, आधा चक्र फूल (स्टार अनीस), एक चम्मच जीरा और 8 से 9 लौंग लें।इस सामग्री से आप 100 ग्राम च्यवनप्राश बना सकते हैं।
च्यवनप्राश बनाने का तरीका बताएं
सबसे पहले आंवले को धो लें और तेज आंच पर प्रेशर कुकर में दो सीटी लगाकर आंवले को उबाल लें। ठंडा होने पर पानी को एक कटोरे में छान लें और उसमें किशमिश और खजूर डालकर 10 मिनट तक छोड़ दें।
इसके बाद आांवले, किशमिश और खजूर को मिक्सी में पीसकर पेस्ट तैयार कर लें। अब एक पैन लें और उसमें थोड़ा घी डालकर आंवले का पेस्ट डालें। इसे 10 मिनट तक पकाएं, जब तक कि घी अलग न होने लगे।
इसके बाद पेस्ट में गुड़ डालकर 5 मिनट तक पकाएं। अब मसाले डाल दे। अगर स्वाद मीठे की बजाय खट्टा लग रहा है तो थोड़ा और गुड़ डाल दें।
अब धीमी आंच पर इसे थोड़ा चिपचिपा होने तक पकने दें। इसके बाद इसे ठंडा कर लें और फिर एयर टाइट कंटेनर में भर कर फ्रिज में रख दें।
दिन में किसी भी समय या एक गिलास दूध के साथ एक चम्मच च्यवनप्राश खाएं। वैसे च्यवनप्राश खाने का सही समय सुबह नाश्ते से पहले और रात को खाने से पहले होता है। सुबह एक गिलास गुनगुने दूध के साथ च्यवनप्राश खिलाएं और रात को एक कप गुनगुने दूध के साथ एक चम्मच च्यवनप्राश खिला सकते हैं।
फ्रिज में रखने पर ये च्यवनप्राश दो महीने तक चल सकता है। चूंकि, आपने च्यवनप्राश में गुड़ डाला है इसलिए मिठास बढ़ाने के लिए शहद का इस्तेमाल न करें।
ये च्यवनप्राश बच्चों/वयस्कों के लिए इम्युनिटी बढ़ाने का काम करेगा। इससे सब बैक्टीरियल और फंगल संक्रमण से बचे रहेंगें। इसके सेवन से पाचन दुरुस्त रहेगा। कब्ज़ दूर करने के लिए गुनगुने पानी के साथ एक चम्मच च्यवनप्राश खिलाएं।
इसके अलावा च्यवनप्राश में मौजूद जरूरी पोषक तत्व याददाश्त को तेज करते हैं। च्यवनप्राश के नियमित सेवन से मस्तिष्क के कार्यों में सुधार आता है। इससे सबको एनर्जी भी मिलती है।
आजकल यह बहुत महंगा होता हैं जिसे सामान्य वर्ग नहीं उपयोग कर सकता हैं/पता हैं ,ऊपरी पद्धति से आप सुगमता से अहिंसात्मक चयवनप्राश बना सकते हैं जो सस्ता ,सुगम और शुद्ध होगा
अगर आप स्वस्थ रहने और खूबसूरत दिखने, वजन कम करने और शरीर से टॉक्सिन को बाहर निकालने के लिए डिटॉक्स डाइट का इस्तेमाल करते हैं तो थोड़ा संभल जाएं। विशेषज्ञों के अनुसार डिटॉक्स क्लीनजेंस न केवल बेअसर होती हैं बल्कि खतरनाक भी साबित हो सकती हैं। डिटॉक्सिंग के कई साइट इफेक्ट हैं। डिटॉक्सिंग डाइट और खासकर कोलोनिक्स से डिहाइड्रेशन, यहां तक कि किडनी तक खराब हो सकती है। ।कई जाने मानें डिटॉक्स के तरीकों में कॉफी एनिमा और 3 दिन की एप्पल साइडर वेलेगर डाइट शामिल हैं।
डिटॉक्सिफिकेशन के कई तरीके
अधिकतर सेलिब्रिटीज फिट रहने के लिए लेमेन डिटॉक्स डाइट लेना पसंद करते हैं। 10 दिन की इस डाइट में खाने की जगह लेमन जूस, वॉटर, सेइन पीपर और मैपे सीरप। इससे शरीर के टॉक्सिन हार निकलते हैं, वजन कम होता है चेहरा और बाल चमकते हैं।
एप्पल साइडर वेनेगर में डिटॉक्स के तरीके में 3 दिन तक केवल खाने से पहले दो चम्मच एप्पल साइडर वेनेगर को पानी में गोलकर पिया जाता है। इससे लोगों को बीक कम लगती हैं और वजन कम होता है। इसके अलावा कच्चा खाने वाली डिटॉक्स डाइट में केले, नट्स, बीज, सूखे मेवे नारियल एवोकेडो ऑलिव ऑयल का इस्तेमाल किया जाता है।
बड़ी आंत अर्थात कोलोन शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है। बड़ी आंत के अस्तर से निकलने वाला श्लेष्मा मल को आगे जाने के लिए चिकना बनाता है। कोलोन से टॉक्सिक पदार्थ निकालने वाले तरीकों में कॉफी एनिमा शामिल है। इससे किडनी और लीवर के टॉक्सिक बाहर निकलते हैं। लैक्साटिव्स: इस तरीके में एक चबाई जा सकने वाली गोली खिलाई जाती है जो मल को पतला करती है और आंतें की गति को बढ़ाती है।
कब्ज की स्थिति में डॉक्टर्स कोलोनिक्स को लेने की सलाह देते हैं लेकिन अधिकतर लोग कोलोन को क्लींज करने के लिए इन डिटॉक्स तरीकों का इस्तेमाल करने लगे हैं। लैक्साटिव्स दूसरी डिटॉक्स डाइट से ज्यादा खतरनाक है। इसमें आंतों के मूवमेंट्स को बढ़ाया जाता है। इससे डायरिया, चक्कर आना, किडनी का खराब होना और कमजोरी जैसे दुष्परिणाम हो सकते हैं। कॉफी एनिमा की बात करें तो जिसमें गर्म कॉफी आंत में इंजेक्ट की जाती है इससे आंते खराब हो सकती है आंतों में छेद भी हो सकते हैं
अधिकतर डिटॉक्सेज का लंबे समय तक कोई फायदा नहीं होता। उन्होंने बताया कि शरीर का हर हिस्सा खुद अपने आप उसे डिटॉक्स करने की क्षमता रखता है। गेस्ट्रोइंटेस्टाइनल सिस्टम और किडनी लीवर को टॉक्सिन बाहर निकालते हैं। जब लीवर के लिए गेस्ट्रोइंटेस्टाइनल वेस्टेज बाहर निकालता है तो कोलोनिक्स लेना बेकार है। किडनी भी ब्लड से यूरिन के जरिए टॉक्सिन बाहर निकलती है। अगर किडनी अपना काम नहीं कर रही तो इसके लिए डायलसिस की जरूरत है न कि एप्पल साइडर वेनेगर की। डॉक्टर लॉरेन का मानना है कि अधिकतर लोग डिटॉक्स कराने के बाद अच्छा महसूस करते हैं क्योंकि उनके शरीर में टॉक्सिन नहीं रहते। इसकी जगह पर लोगों को प्रोसेस्ड फूड जिसमें अधिक मात्रा में सोडियम, फैट और शुगर हो खाने से बचना चाहिए।
आम तौर पर दोपहर का खाना खाने के बाद ज्यादतर लोगों को नींद आने लगती है। इस कारण काम भी प्रभावित होता है अब एक अध्ययन के बाद इसके कारणों का पता चला है। अध्ययन में बताया गया है कि दोपहर का खाना खाने के बाद दिमाग के काम करने की क्षमता धीमी हो जाती है। अध्ययन में शामिल लोगों ने इस बात की पुष्टि की है कि ग्लूकोज और शुगर के सेवन के बाद किसी कार्य में उनके ध्यान और प्रतिक्रिया में कमी आ जाती है।
अध्ययन में शामिल कुछ लोगों ने जहां ग्लूकोज और शुगर का सेवन किया। वहीं कुछ लोगों ने फ्रक्टोज और आर्टिफिशल स्वीट चीजों का सेवन किया जिसके बाद देखा गया कि फ्रक्टोज का सेवन करने वाले लोगों के मुकाबले ग्लूकोज और शुगर के सेवन करने वाले लोगों का उनके काम में ध्यान नहीं लग रहा था। साथ ही किसी चीज पर उनकी प्रतिक्रिया देने की क्षमता में भी कमी देखी गई।
हालांकि, इससे पहले एक अध्यान में यह कहा गया था कि ग्लूकोज के सेवन से चीजों को याद रखने की क्षमता में सुधार आता है लेकिन नये अध्ययन ने इस बात को गलत साबित कर दिया है। 'इस अध्ययन में लगभग 49 लोगों को शामिल किया गया है। इन सभी लोगों ने स्वीट ड्रिंक का सेवन किया जिसमें ग्लूकोज, सुक्रोज, फ्रक्टोज शामिल थे। इसके सेवन के बाद उन्हें सवाल हल करने के लिए दिये गये। परिणामों में सामने आया कि जिन लोगों ने ग्लूकोज और सुक्रोज का सेवन किया, उन्होंने उन लोगों के मुकाबले परीक्षा में बहुत खराब प्रदर्शन किया जिन्होंने फ्रुक्टोज का सेवन किया था।
आंखों का हमें विशेष ध्यान रखना चाहिये। आंखों के पर्दे की सूजन से रोशनी जा सकती है इसलिए इसे गंभीरता से लेते हुए तत्काल उपचार करना चाहिये। पर्दे की सूजन को मैक्युलर इडिमा कहते हैं। इसमें रेटिना के केंद्र वाले भाग, जिसे मैक्युला कहा जाता है, में फ्लुएड यानी तरल का जमाव हो जाता है। रेटिना हमारी आंखों का सबसे महत्वपूर्ण भाग होता है, जो कोशिकाओं की एक संवेदनशील परत होती है। मैक्युला रेटिना का वह भाग होता है, जो हमें दूर की वस्तुओं और रंगों को देखने में सहायता करता है। जब रेटिना में तरल पदार्थ अधिक हो जाता है और रेटिना में सूजन आ जाती है तो मैक्युलर इडिमा की समस्या हो जाती है। अगर मैक्युलर इडिमा का उपचार न कराया जाए तो दृष्टि संबंधी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं या आंखों की रोशनी भी जा सकती है।
क्या हैं लक्षण
शुरुआत में मैक्युलर इडिमा के कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं, न ही इसके कारण आंखों में दर्द होता है। जब सूजन बढ़ जाती है और रक्त नलिकाओं में ब्लॉकेज होने लगती है, तब चीजें धुंधली दिखाई देने लगती हैं। सूजन जितनी व्यापक, मोटी और गंभीर होगी, उतना ही अधिक धुंधला और अस्पष्ट दिखाई देगा। अगर ऐसे लक्ष्ण दिखायी दें तो तत्काल डॉक्टर से संपर्क करें।
आंखों के आगे अंधेरा छा जाना।
चीजें हिलती हुई दिखाई देना।
पढ़ने में कठिनाई होना।
चीजों के वास्तविक रंग न दिखाई देना।
दृष्टि विकृत हो जाना। सीधी रेखाएं,टेढ़ी दिखाई देना।
आंखों के पर्दे का तेज रोशनी के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हो जाना।
अधिकतर में यह समस्या केवल एक आंख में होती है, इसलिए लक्षण गंभीर होने पर ही इनका पता लग पाता है। वैसे जिन्हें एक आंख में यह समस्या होती है, उनमें दूसरी आंख में इसके होने की आशंका 50 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।
इस रोग के कारण
रक्त वाहिनियों से संबंधित रोग (नसों में अवरोध /रुकावट)।
उम्र का बढ़ना (एज रिलेटेड मैक्युलर डिजनरेशन)।
वंशानुगत रोग (रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा)।
आंख में ट्यूमर हो जाना।
मैक्युला में छेद हो जाना।
रेडिएशन के कारण रेटिना की महीन शिराओं में अवरोध।
आंख में गंभीर चोट लग जाना।
आंखों की सर्जरी, जैसे मोतियाबिंद, ग्लुकोमा या रेटिना संबंधी मामलों में हुई सर्जरी।
कैसे होती है जांच
विजुअल एक्युटी टेस्ट : मैक्युलर इडिमा के कारण दृष्टि को पहुंची क्षति को जांचने के लिए यह टेस्ट किया जाता है।
ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्रॉफी : ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्रॉफी में विशेष रोशनियों और कैमरे का इस्तेमाल कर रेटिना की मोटाई मापी जाती है। यह जांच मैक्युला की सूजन को निर्धारित करने में भी उपयोगी है।
एम्सलर ग्रिड : एम्सलर ग्रिड दृष्टि में हुए मामूली बदलावों की भी पहचान कर सकता है। इसके द्वारा सेंट्रल विजन को मापा जाता है।
डाइलेटेड आई एक्जाम : इसमें पूरे रेटिना की जांच की जाती है। इसमें लीकेज करने वाली रक्त नलिकाओं या सिस्ट का भी पता लगाया जाता है। फ्लोरेसीन एंजियोग्राम : फ्लोरेसीन एंजियोग्राम में रेटिना की फोटो ली जाती है। यह टेस्ट नेत्र रोग विशेषज्ञ को रेटिना को पहुंचे नुकसान को पहचानने में सहायता करता है।
क्या हैं उपचार
एक बार जब यह समस्या हो जाए तो इसके कारणों का उपचार करना भी जरूरी है। इसमें मैक्युला और उसके आसपास असामान्य रक्त वाहिकाओं से तरल के अत्यधिक रिसाव को ठीक किया जाता है। मैक्युलर इडिमा के उपचार में दवाएं, लेजर और सर्जरी प्रभावी होते हैं, पर इंट्राविट्रियल इंजेक्शन (आईवीआई) सबसे प्रचलित है। यदि मैक्युलर इडिमा एक ही जगह पर है तो फोकल लेजर किया जा सकता है।
आई ड्रॉप्स : एंटी-इनफ्लेमेटरी ड्रॉप्स द्वारा रेटिना की मामूली सूजन को कम किया जा सकता है। आंखों की सर्जरी के पश्चात डॉक्टर द्वारा सुझाई आई ड्रॉप्स नियत समय पर डालने से भी मैक्युलर इडिमा की आशंका कम हो जाती है।
फोकल लेजर ट्रीटमेंट : इसके द्वारा मैक्युला की सूजन कम करने का प्रयास किया जाता है। लेजर सर्जरी में कई सूक्ष्म लेजर पल्सेस मैक्युला के आसपास उन क्षेत्रों में डाली जाती हैं, जहां से तरल का रिसाव हो रहा है। इस उपचार के द्वारा इन रक्त नलिकाओं को सील करने का प्रयास किया जाता है। अधिकतर मामलों में फोकल लेजर ट्रीटमेंट के पश्चात दृष्टि में सुधार आ जाता है।
सर्जरी : मैक्युलर इडिमा के उपचार के लिए की जाने वाली सर्जरी को विटरेक्टोमी कहते हैं। इसके द्वारा मैक्युला पर जमे हुए फ्लूइड को निकाल लिया जाता है। इससे लक्षणों में आराम मिलता है। आईवीआई : आईवीआई डे केयर प्रक्रिया है, जो टॉपिकल एनेस्थीसिया की मदद से की जाती है, जिसमें दवा की बहुत थोड़ी मात्रा को छोटी सुई के द्वारा आंखों के अंदर डाला जा सकता है। इंजेक्शन लगाने में सामान्यता कोई दर्द नहीं होता है। आईवीआई को एक प्रशिक्षित रेटिना विशेषज्ञ के द्वारा कराना चाहिए, जो उपचार को प्रभावी तरीके से कर सके और संभावित जटिलताओं को कम कर सके। अगर मैक्युलर इडिमा का कारण ग्लुकोमा या मोतियाबिंद है तो इनका उपचार भी जरूरी है।
रोकथाम को जानें
मैक्युलर इडिमा के मामले बढ़ने का सबसे बड़ा कारण है असंतुलित जीवनशैली। इसके कारण डायबिटीज और उच्च रक्तदाब के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। इन्हें नियंत्रित करके काफी हद तक इन बीमारियों से बचा जा सकता है।
धूम्रपान न करें, क्योंकि इससे मैक्युला क्षतिग्रस्त होता है।
रोजाना कम से कम 30 मिनट व्यायाम जरूर करें।
नियमित रूप से आंखों का व्यायाम करें।
आंखों को चोट आदि लगने से बचाएं।
संतुलित और पोषक भोजन का सेवन करें, जो विटामिन ए और एंटी-ऑक्सीडेंट्स से भरपूर हो।
डायबिटीज (मधुमेह) के मरीजों को कई बार मीठा खाने का मन करता है। ऐसे में जब चीनी खाना बिल्कुल मना हो, तो लोग ऐसे विकल्पों की तलाश करते हैं जिसमें चीनी की मात्रा कम हो पर उसका स्वाद मीठा हो। ऐसे में गुड़ को चीनी के बेहतर विकल्प के तौर पर देखा जाता है। गुड़ को खाने के सेहत से जुड़े कई फायदे भी हैं परन्तु स्वास्थ्य के लिहाज से मधुमेह रोगियों के लिए यह ठीक नहीं है।
गुड़, मिठास का पारंपरिक रूप है। गन्ने के रस को उबालने पर गुड़ बनता है। चीनी की तुलना में गुड़ कम संशोधित होता है लिहाजा इसमें पोटैशियम, आयरन और कैल्शियम जैसे जरूरी पोषक तत्व मौजूद रहते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अगर किसी व्यक्ति का शुगर लेवल हाई है, तब भी वह गुड़ खा सकता है। गुड़ का भूरा रंग, देखने में भले ही हेल्थी लगे लेकिन मधुमेह के मरीजों के लिए गुड़, एक बेहतर विकल्प नहीं है। गुड़ में मौजूद आयरन की वजह से यह ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस और ब्लड प्रेशर से लड़ने में मदद करता है लेकिन अगर आप डायबिटिक हैं, तो गुड़ से खुद को कोसों दूर रखें।
गुड़ में चीनी की मात्रा बहुत होती है। गुड़, पोषक तत्वों से भरपूर स्वीटनर है। चीनी के इस विकल्प में 65 से 85 फीसदी तक सुक्रोज पाया जाता है। यही वजह है कि डायबिटीज के मरीजों के लिए गुड़ खाना मना होता है क्योंकि इसमें चीनी की मात्रा बहुत ज्यादा होती है।
चीनी खाने से शरीर में ग्लूकोज लेवल में जो अंतर आता है और असर पड़ता है ठीक वैसा ही असर गुड़ खाने पर भी होता है। कुछ लोगों का मानना है कि अगर वे चीनी की जगह गुड़ का इस्तेमाल करते हैं, तो ब्लड शुगर लेवल को मेनटेन रखने में मदद मिलेगी लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं होता। गुड़ में सुक्रोज होता है इसलिए इसके सेवन से ब्लड शुगर लेव में बढ़ोतरी होने लगती है। इसका मतलब है कि चीनी के किसी भी फॉर्म की तरह गुड़ भी मधुमेह के रोगियों के लिए हानिकारक है। हालांकि जिन लोगों को मधुमेह नहीं है, वे चीनी की जगह गुड़ का इस्तेमाल कर सकते हैं क्योंकि यह एक अच्छा विकल्प है।
आयुर्वेद भी यही कहता है कि डायबिटीज यानी मधुमेह के रोगियों को गुड़ नहीं खाना चाहिए। फेफड़ों के इंफेक्शन, खराब गला, माइग्रेन और अस्थमा के इलाज में आयुर्वेद, गुड़ का इस्तेमाल करता है लेकिन इलाज की इस प्राचीन पद्धति में भी मधुमेह के रोगियों के लिए गुड़ खाने की मनाही है।
जॉर्डन में अहान खान ने रखा सभी का पेट भरने वाला दुनिया का पहला फ्रिज, अमीर-गरीब सभी यहां से ले सकते हैं भरपेट खाना
यह हर वर्ग के भूखे लोगों का पेट भरता है। इसमें खाना कभी खत्म नहीं होता। जब भी खाना खत्म होने लगता है तो कोई न कोई आकर इसे भर जाता है
यह फ्रिज कभी खाली नहीं रहता। सभी की सेवा करने वाला यह फ्रिज 24 घंटे भोजन लेता और देता रहता है
जॉर्डन में एक सड़क वुमनसंग स्ट्रीट के किनारे रखा नीले रंग का फ्रिज इंटरनेट पर खूब वायरल हो रहा है। इसका कारण है यह हर वर्ग के भूखे लोगों का पेट भरता है। इसमें खाना कभी खत्म नहीं होता। जब भी खाना खत्म होने लगता है तो कोई न कोई आकर इसे भर जाता है। असल में एक स्पोर्ट्स फाउंडेशन के संस्थापक अहान खान ने जरूरतमंदों का पेट भरने के लिए यह फ्रिज रख मुफ्त में खाना देने की सेवा शुरू की है।
हॉकी अकादमी के बाहर स्थित नीले फ्रिज में नूडल्स, बिस्कुट, भोजन, अंडे, फल यहां तक कि मोजे और तौलिए के पैकेट रखे होते हैं। अमीर-गरीब किसी भी व्यक्ति को इन चीजों की जरूरत होती है, वो यहां से बिना पैसे दिए ये सामान ले सकता है। अहान खान ने बताया कि एक फिल्म में इस तरह का दृश्य देखने के बाद उन्होंने ऐसा करने का फैसला लिया।
उन्होंने दूसरे लोगों को ये बताया कि अगर आपके पास जरूरत से ज्यादा खाना है तो आप उसे यहां जरूरतमंदों के लिए रख सकते हैं। जिन लोगों को वास्तव में भोजन की जरूरत है, वे बिना संकोच जब चाहे फ्रिज से ले सकते हैं। इसके बाद से यह फ्रिज कभी खाली नहीं रहता। सभी की सेवा करने वाला यह फ्रिज 24 घंटे भोजन लेता और देता रहता है।
हार्ट से लेकर ब्रेन तक ब्लड सर्कुलेशन सामान्य न रहने पर उंगलियां ठिठुरती हैं, डिप्रेशन के मामले सामने आते हैं
सर्दियां आते ही हम ठिठुरने लगते हैं। स्किन ड्राय होने लगती है। मसल्स सिकुड़ने लगती है। हार्ट अटैक के मामले बढ़ जाते हैं। बदलाव सिर्फ इतना ही नहीं है, शरीर में ब्लड का सर्कुलेशन धीमा हो जाता है। जैसे-जैसे बाहर का तापमान गिरता है, शरीर में ये बदलाव दिखने शुरू हो जाते हैं।
शरीर में ये बदलाव क्यों होते हैं, सर्दी शुरू होते ही बीमारियों का खतरा क्यों बढ़ता है और इस बदलाव के बुरे असर से खुद को कैसे बचाएं? जानिए इन सभी सवालों के जवाब...
3 सवाल जो बताएंगे, शरीर में कौन-कौन से बदलाव होते हैं
1. सर्दियों में क्यों नहीं बढ़ता वजन?
ठंड के दिनों में शरीर का मेटाबॉलिज्म बढ़ जाता है। आसान भाषा में समझें तो शरीर थोड़ा तेजी से काम करने लगता है। शरीर गर्म रहता है। खाना जल्दी पचता है। कैलोरीज ज्यादा बर्न होती हैं। इसलिए सर्दियों में वजन नहीं बढ़ता। ध्यान रखें कि यहां वजन की बात सामान्य खानपान के लिए लागू हो रही है। अगर आप हाई कैलोरी फूड लेते हैं तो चर्बी घटाने के लिए एक्सरसाइज करना जरूरी है।
2. जाड़े में उंगलियां ठिठुर क्यों जाती हैं?
उंगलियों के फूलने और सिकुड़ने का कनेक्शन भी मौसम से है। तापमान कम होने पर शरीर के अलग-अलग हिस्सों में ब्लड पहुंचाने वाली नसें खुद को सिकोड़कर शरीर को गर्म रखने की कोशिश करती हैं। ऐसा होने पर ब्लड सर्कुलेशन घटता है। इसलिए हाथ-पैरों की उंगलियां ठिठुरी हुई दिखाई देती हैं और ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है।
धमनियां सिकुड़ने के कारण ब्रेन तक ब्लड पहुंचने में अड़चन आती है, इसलिए सिरदर्द के मामले भी इसी मौसम में सबसे ज्यादा सामने आते हैं।
3. हार्ट अटैक बढ़ने के मामले भी इसी मौसम में सबसे ज्यादा क्यों?
सर्दियों में धमनियां सिकुड़ने का असर हार्ट पर भी पड़ता है। ऐसा होने पर हार्ट तक पहुंचने वाले ब्लड और ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। यह हार्ट अटैक की वजह बनता है। हार्ट शरीर में टेम्प्रेचर को मेंटन करने का काम भी करता है। सर्दियों में हार्ट पर लोड ज्यादा बढ़ने के कारण हार्ट मसल्स डैमेज भी हो सकती हैं।
शरीर के इन हिस्सों पर सर्दी का असर ज्यादा
सर्दियों में सिर्फ हार्ट अटैक ही नहीं, डिप्रेशन का खतरा भी बढ़ता है। वैज्ञानिक भाषा में इस डिप्रेशन को सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर कहते हैं। इसके मामले सर्दियों की शुरुआत में सामने आने शुरू हो जाते हैं।
तापमान जितना ज्यादा नीचे गिरता है, उसका असर ब्रेन और ब्लड सर्कुलेशन पर पड़ता है। नतीजा सिरदर्द, अस्थमा अटैक के मामले भी सामने आते हैं। हवा में नमी घटने पर ड्रायनेस बढ़ती है। इसके अलावा स्किन पर रैशेज और एग्जिमा की समस्याएं बढ़ती हैं।
अब बात सर्दी में बचाव की, ये 3 बातें ध्यान रखें
खानपान: मक्का, बाजरा, गुड़ और मूंगफली को डाइट में शामिल करें
सर्दियों में अपने खानपान में मक्का, ज्वार, बाजरा और रागी को शामिल करें। ये गर्म तासीर वाला खानपान है जो सर्दी के साइडइफेक्ट से भी बचाता है। खाने में बहुत ज्यादा घी का इस्तेमाल करने से बचें। तिल, मूंगफली और गुड़ से बनी चीजें खा सकते हैं। इनमें आयरन अच्छी मात्रा में पाया जाता है। अलग-अलग तरह की सब्जियों से तैयार सूप को डाइट में शामिल करें। इसे गर्म ही खाएं। ये कई तरह के पोषक तत्वों की कमी पूरी करते हैं। खाने में फलियों वाली सब्जियां, हरी सब्जियां, मछली और अंडे को शामिल करें। काली मिर्च, इलायची जैसे मसालों का इस्तेमाल करें।
रहन-सहन: रोजाना धूप में 20 मिनट बैठें और 8-10 गिलास पानी पिएं
बिना गर्म कपड़ों के बाहर न जाएं ताकि ब्लड सर्कुलेशन नॉर्मल बना रहे। नहाने के बाद शरीर पर नारियल तेल लगाएं, ये नमी को बरकरार रखेगा। ड्रायनेस और रैशेज से बचाव कर सकेंगे। मौसम कोई भी हो, रोजाना 8 से 10 गिलास पानी पीना जरूरी है। यह शरीर से जहरीले तत्वों (टॉक्सिंस) को बाहर निकालने में मदद करता है। रोजाना सुबह की धूप में 20 मिनट जरूर बैठें। इससे विटामिन-डी की कमी पूरी होगी जो इम्युनिटी को बढ़ाने में मदद करेगी।
एक्सरसाइज: खुले में वर्कआउट करने से बचें, सुबह की वॉक पर न जाएं
सर्दी में सुबह की वॉक से बचें। सुबह 10 बजे के बाद वॉक या वर्कआउट करना बेहतर विकल्प है। इससे शरीर में गर्माहट बनी रहती है। रोजाना 30 मिनट की एक्सरसाइज कर सकते हैं। इसकी शुरुआत हाथ, कमर और गर्दन के मूवमेंट से करें। खुले में वर्कआउट करने से बचें। एक्सरसाइज करने के तुरंत बाद खुले में न जाएं।
एक्सपर्ट डॉ. किरन गुप्ता, आयुर्वेद एक्सपर्ट और डायटीशियन
अपेन्डिसाइटिस किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन यह अकसर 10 से 30 वर्ष की उम्र के बीच होता है। यह महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक आम है। यदि इसे बिना उपचार किए छोड़ दिया जाए तो इसमें मवाद या पस बन जाता है, जिसे अपेंडिक्यूलर लम्प कहा जाता है। ऐसी स्थिति में तुरंत ऑपरेशन करने की आवश्यकता होती है। इस दौरान अगर समय पर ऑपरेशन ना किया जाए तो लम्प फट सकता है और संक्रमण पूरे पेट में फैलने की आशंका बढ़ सकती है। यह रोगी के लिए बहुत गंभीर और कभी-कभी घातक हो सकता है, इसलिए इसके बारे में जानकारी भी जरूरी हो जाती है।
अपेंडिक्स में किसी प्रकार की बाधा अपेन्डिसाइटिस को जन्म देती है। यह बाधा आंशिक या फिर पूर्ण रूप से हो सकती है। पूर्ण बाधा आने पर आपातकालीन सर्जरी जरूरी हो जाती है। अपेंडिक्स में यह अवरोध अकसर मल के जमा होने के कारण होता है। इसके लिए बढ़े हुए लिम्फोइड, कीड़े, आघात और ट्यूमर जैसे अन्य कारण भी जिम्मेदार हो सकते हैं।आँतों में भोजन के कुछ कण जाने के कारण अपेंडिक्स में समस्या आ जाती हैं। फलों के बीज अपेंडिक्स में फंस जाते हैं इसके कारण अपेंडिक्स पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता हैं
लक्षणों की न करें अनदेखी
अपेन्डिसाइटिस होने पर रोगी को शुरुआत में पेट में दर्द होता है। यह दर्द नाभि के ऊपरी हिस्से से शुरू होता है और धीरे-धीरे नाभि के चारों तरफ महसूस होता है। अंत में यह शरीर की दाईं तरफ के लोअर अब्डोमन में जा ठहरता है।पेट दर्द के साथ उलटियां होना।अधिक संक्रमण होने पर बुखार होना। बुखार के साथ-साथ पेट दर्द और एक या दो बार उल्टी की स्थिति भी देखने को मिलती है।भूख में कमी आना।दस्त होन गैस पास करने में परेशानी आना।72 घंटे के भीतर ही इसकी सर्जरी करनी बेहद आवश्यक है।
कैसे करें निदान
सबसे पहले रक्त जांच के माध्यम से पता लगाया जाता है कि व्यक्ति अपेन्डिसाइटिस से ग्रस्त है या नहीं। यदि व्यक्ति को अपेन्डिसाइटिस की समस्या होती है तो व्यक्ति में टीएलसी(टोटल ल्यूकोसाइट काउंट) की मात्रा में वृद्धि पायी जाती है।
इस रोग का पता करने के लिए रोगी का फिजिकल टेस्ट किया जाता है। इस दौरान पेट के निचले दाहिने क्वाड्रन्ट में पीड़ा को देखा जाता है। अगर रोगी महिला गर्भवती है तो दर्द में वृद्धि हो सकती है।
अपेन्डिसाइटिस का निदान करने के लिए कोई एक टेस्ट नहीं है। शुरुआत में इसका पता करने के लिए सीबीसी यानी कंप्लीट ब्लड काउंट टेस्ट कराया जाता है। इसके माध्यम से पुष्टि की जाती है कि कहीं बैक्टीरियल इन्फेक्शन तो नहीं है। बैक्टीरियल संक्रमण अकसर अपेन्डिसाइटिस के साथ-साथ चलता है।
इसके अलावा दूसरी अन्य स्थितियों का पता करने के लिए कुछ दूसरे टेस्ट भी किये जाते हैं।
यूरानिलिसिस के माध्यम से पेशाब पथ में संक्रमण या फिर किडनी स्टोन का पता लगाया जाता है।
पेल्विक यानी पेडू के परीक्षण से सुनिश्चित किया जाता है कि रोगी को प्रजनन से संबंधित कोई परेशानी तो नहीं है। इसके माध्यम से पेडू से संबंधित अन्य संक्रमण का भी पता लगाया जा सकता है।
प्रेग्नेंसी टेस्ट द्वारा संदिग्ध अस्थानिक गर्भावस्था के बारे में मालूम किया जाता है।
एब्डोमिनल इमेजिंग से पेट में फोड़ा या अन्य समस्याओं का पता लगाया जा सकता है। इसके लिए एक्सरे, अल्ट्रासाउंड या सीटी स्केन किया जाता है।
छाती का एक्सरे कर लोअर लोब निमोनिया का पता लगाया जा सकता है। कभी-कभी इसमें भी अपेन्डिसाइटिस के समान लक्षण होते हैं।
क्या है इसका उपचार
अपेन्डिसाइटिस के लिए उपचार भिन्न हैं। हालांकि ज्यादातर मामलों में सर्जरी आवश्यक होती है, जो कि समस्या पता लगने के 72 घंटों के भीतर करानी आवश्यक है। सर्जरी कैसी होगी, यह केस के विवरण पर भी निर्भर होता है। यदि किसी रोगी को फोड़ा है, लेकिन यह फटा नहीं है तो रोगी को एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं। बाद में त्वचा में ट्यूब का प्रयोग करके फोडे़ को हटा दिया जाता है। फोडे़ का उपचार करने के बाद सर्जरी के माध्यम से अपेंडिक्स को निकाल दिया जाता है।
यदि रोगी का फोड़ा या अपेंडिक्स फट गया है तो तुरंत सर्जरी की जाती है। अपेंडिक्स हटाने के लिए की जाने वाली इस सर्जरी को ऐपन्डिक्टमी के नाम से जाना जाता है। इसे ओपन सर्जरी सा फिर लेप्रोस्कोपी के माध्यम से किया जाता है। लेप्रोस्कोपी कम आक्रामक है और रिकवरी टाइम को भी कम करती है, लेकिन रोगी को फोड़ा या पेरिटनाइटिस है तो ओपन सर्जरी जरूरी हो जाती है।
यदि पेट में दर्द हल्का है और डायग्नोस्टिक टेस्ट सामान्य हैं तो अपेन्डिसाइटिस का बिना सर्जरी किये उपचार किया जा सकता है। ऐसे केस बहुत ही कम देखने को मिलते हैं। इस स्थिति में रोगी के उपचार प्लान में एंटीबायोटिक्स और तरल आहार को शामिल किया जा सकता है, जब तक रोगी के लक्षण का हल ना हो जाए। परन्तु किसी भी लक्षण की अनदेखी किए बिना डॉक्टर की सलाह बेहद जरूरी है। सर्जरी करने के बाद व्यक्ति को उच्च फाइबरयुक्त भोजन लेने की सलाह दी जाती है, ताकि मलत्याग प्रक्रिया दुरुस्त रहे।
फाइबर के बेहतर स्रोत--- मक्का, दाल, फल ,रेशेदार, सब्जियां, ब्राउन ब्रेड, सूखे मेवे, गेहूँ के आटे से बनी रोटियां ,ब्राउन राइस ,मटर।
ओटमील।
घरेलू तरीकों से पाएं निजात
अपेंडिक्स के दर्द का इलाज तुरंत करना जरूरी होता है। यदि इसका इलाज न किया जाए तो अपेंडिक्स फट भी सकता है और इसमें बहुत तेज दर्द होता है जो कि असहनीय होता है।
जब अपेंडिक्स में सूजन आ जाए तो अपेंडिसाइटिस की समस्या पैदा हो जाती है। अपेंडिसाइटिस एक दीर्घकालिक स्थिति है जिसका अगर इलाज न किया जाए तो बहुत तेज दर्द हो सकता है। वैसे तो अपेंडिक्स का दर्द बहुत तेज होता है और इसे तुरंत इलाज की जरूरत होती है लेकिन फिर भी आप कुछ घरेलू तरीकों की मदद से गंभीर स्थिति पैदा होने से पहले ही अपेंडिक्स में सूजन को कम कर सकते हैं।
अरंडी का तेल
अरंडी के तेल में रिसिनोलिक एसिड होता है जिसमें दर्द निवारक और सूजन-रोधी गुण होते हैं। एक मुलायम कपड़ा लें और उसे दो चम्मच अरंडी के तेल में डुबोकर कुछ मिनटों के लिए प्रभावित हिस्से पर लगाएं। दिन में दो बार ऐसा करें।
एप्पल साइडर विनेगर
इसमें सूजन-रोधी गुण होते हैं। एक गिलास गर्म पानी में एप्पल साइडर विनेगर डालकर घूंट-घूंट कर के पिएं। दर्द से छुटकारा पाने के लिए रोज इसका सेवन करने से लाभ होगा।
छाछ
छाछ पाचन में सुधार कर किसी भी तरह के संक्रमण से लड़ने के लिए प्रोबायेटिक बनाती है। दिन में एक बार एक लीटर छाछ जरूर पिएं। आप छाछ में जीरा, अदरक, पुदीना भी मिलाकर पी सकते हैं।
बेकिंग सोड़ा
इसमें एंटी-इंफ्लामेट्री गुण होते हैं। ये पाचन तंत्र को आराम देता है और अपेंडिसाइटिस के दर्द को कम करता है। एक गिलास पानी में एक चम्मच बेकिंग सोडा मिलाकर तुरंत पी लें। जब भी दर्द हो इसका सेवन करें।
लहसुन
लहसुन में सूजन-रोधी और माइक्रोबियल-रोधी गुण होते हैं। इसके सूजन-रोधी गुण दर्द को कम कर सकते हैं जबकि माइक्रोबियल-रोधी तत्व हानिकारक बैक्टीरिया, फंगस, वायरस और परजीवियों को खत्म कर सकते हैं। लहसुन की एक-दो कलियां लें और उन्हें कूटकर पानी के साथ निगल लें।
ग्रीन टी
ग्रीन टी में एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लामेट्री गुण होते हैं। इससे काफी हद तक दर्द से राहत मिल सकती है। एक कप गर्म पानी में ग्रीन टी का एग बैग डालें और कुछ मिनट बाद स्वदानुसार शहद डालकर मिक्स कर लें। गर्म ही इस चाय का सेवन करें। दिन में दो बार इसका सेवन करें।
इसमें बचाव के साथ रोग होने पर तत्काल इलाज़ जरूरी हैं।
केसर का इस्तेमाल वैसे तो पकवानों में खुशबू बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसके अलावा औषधीय गुणों से भरपूर केसर का सेवन कई स्वास्थ्य समस्याओं को भी दूर करता है। विटामिन ए, फोलिक एसिड, पोटेशियम, कैल्शियम, मैंगनीज, सेलेनियम, जिंक और मैग्नीशियम से भरपूर केसर अवसाद को तो दूर करता ही है साथ ही यह कैंसर और दिल की बीमारियों को भी आस-पास फटकने नहीं देता।
कैंसर से बचाव
केसर में मौजूद क्रोकिन नामक वॉटर सॉल्यूबल कैरोटिन होता है, जोकि कैंसर सेल्स को बढ़ने से रोकता है। एक शोध के मुताबिक केसर का सेवन कैंसर से बचाने में सहायक होता है।
दिल के लिए फायदेमंद
इसका सेवन धमनियों और रक्त कोशिकाओं को स्वस्थ बनाए रखता है, जोकि दिल के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है।
अस्थमा से बचाव
बदलते मौसम में अस्थमा की बीमारी से पीड़ित लोगों को सबसे ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ता है। ऐसे में रोजाना केसर वाला दूध पीएं से ऐसे रोगियों को आराम मिलता है।
अवसाद
इसमें मौजूद न्यूरोट्रांसमीटर डोपामाइन, सेरोटोनिन और नॉरपेनेफ्रिन दिमाग को प्रभावित करते है, जिससे आपका मूड़ अच्छा रहता है और अवसाद की परेशानी दूर होती है।
आंखों की रोशनी होती है तेज
बच्चों से लेकर बड़ों तक, आजकल हर कोई आंखों के कमजोर होने से परेशान है। ऐसे में रोजाना केसर का सेवन आंखों की रोशनी तेज करने में मदद करेगा।
बायरल बुखार
एक गिलास गर्म दूध में केसर और शहद मिलाकर पीने से वायरल बुखार, सर्दी-खांसी और जुकाम के साथ ही सर्दियों में होने वाली बीमारियों से भी राहत मिलती है।
जुकाम
जुकाम की समस्या दूर करने के लिए केसर का सेवन फायदेमंद होता है। इसके लिए दूध में केसर मिलाकर पिएं या माथे पर केसर के पेस्ट को लगाएं।
पाचन क्रिया करता है ठीक
केसर में एंटीऑक्सीडेंट और एंटीइंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो पाचन की समस्या को दूर करके बेहतर बनाने में मदद करती है।