ईश्वर दुबे
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Bhilai
बजट फ्रेंडली बादाम है मूंगफली
peanut
मूंगफली को बजट फ्रेंडली बादाम कहा जाता है। इसका मतलब यह है कि अगर कोई व्यक्ति बादाम अफोर्ड नहीं कर सकता, तो वो मूंगफली खरीदकर खा सकता है। दोनों में लगभग बराबर ही पोषक तत्व होते हैं। मूंगफली में यह प्रोटीन, कैलोरीज, विटामिन बी, ई तथा के, आयरन, फोलेट, कैल्शियम, नियासिन और जिंक का अच्छा स्त्रोंत है। मुट्ठी भर मूंगफली दूध, घी और सूखे मेवों की आपूर्ति करती है। आइए, जानते हैं फायदे-
मूंगफली के जबरदस्त फायदे-
यह शरीर में गर्मी का संचार करती है, इसलिए इसका सेवन खासतौर पर सर्दियों में किया जाता है। 100 ग्राम कच्ची मूंगफली में एक लीटर दूध के बराबर प्रोटीन होता है। इसमें प्रोटीन की मात्रा 25 प्रतिशत से भी अधिक होती है, जबकि मांस, मछली और अंडों में यह 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होती। मूंगफली के तैयार 250 ग्राम मक्खन से 300 ग्राम पनीर, 2 लीटर दूध या फिर 15 अंडों के बराबर ऊर्जा आसानी से मिल सकती है। यही नहीं, 250 ग्राम भुनी मूंगफली में जितने खनिज और विटामिन मिलते हैं, उतने 250 ग्राम मांस से भी प्राप्त नहीं होते। सर्दियों में त्वचा में सूखापन आने पर मूंगफली के थोड़े से तेल में दूध और गुलाब जल मिलाकर मालिश करके स्नान करने से आराम मिलता है। मूंगफली में प्राकृतिक तेल होने से यह हमारे शरीर में वायु संबंधी बीमारियों को कम करती है।
गर्भावस्था में इतनी मात्रा में करना चाहिए इसका सेवन
-मूंगफली खाने से रक्त में कोलेस्टॉल का लेवल कम होता है। इसमें मोनोसैचुरेटेड वसा होती है, जिसकी वजह से एक दिन में औसतन 67 ग्राम मूंगफली खाने से कुल -कोलेस्टॉल लेवल में 51 फीसदी की कमी आती है। यही नहीं, इससे कम घनत्व वाले बैड कोलेस्टॉल यानी लिपोप्रोटीन कोलेस्टॉल का लेवल 7।4 फीसदी कम होता है। मूंगफली हमारी धमनियों के लिए भी अच्छी होती है।
-मूंगफली में फोलेट की अच्छी मात्रा होती है, जो हमारे हार्मोन्स और फर्टिलिटी को बढ़ाता है। गर्भावस्था के दौरान नियमित रूप से मूंगफली खाने वाली महिलाओं के -बच्चों में जन्म दोष (न्यूरल ट्य़ूब में विकार) नहीं होता। गर्भावस्था में साठ ग्राम मूंगफली रोज खाने से गर्भस्थ शिशु की प्रगति में लाभ होता है। नियमित रूप से कच्ची -मूंगफली खाने से दूध पिलाने वाली माताओं का दूध बढ़ता है।
-मूंगफली में मैंगनीज नामक खनिज तत्व पाया जाता है, जो हमारे शरीर में वसा और कार्बोहाइड्रेट के पाचन, कैल्शियम की सही तरीके से खपत और ब्लड शुगर पर नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
-मूंगफली में मौजूद विटामिन-ई कैंसर और दिल की बीमारियों से बचाता है। इससे मिलने वाले एंजाइम हृदय की उस समय रक्षा करते हैं, जब हम कम ऑक्सीजन वाली ऊंची जगह पर होते हैं।
यूरिक एसिड के बढ़ने का क्या है मतलब और किन लक्षणों से होती है पहचान, जानें कंट्रोल करने के तरीके
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ठंड में कई लोगों के साथ अक्सर ऐसा होता है कि उन्हें टॉयलेट तो लगता है लेकिन जब वो वाशरूम जाते हैं, तो उन्हें मूत्र करने में परेशानी होती है। जिसकी वजह से उनके पेट के निचले हिस्से में दर्द और सूजन भी हो जाती है। इसका एक कारण यह भी होता है कि शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है। आइए, सबसे पहले जानते हैं कि क्या होता है यूरिक एसिड-
क्या होता यूरिक एसिड
यूरिक एसिड शरीर के सेल्स और हमारे आहार से बनता है। शरीर में यूरिक एसिड हमेशा होता है, यह यूरिन के जरिए शरीर से निकलता है। आमतौर पर किडनी यूरिक एसिड को फिल्टर कर देती है और यह टॉयलेट के जरिए शरीर से बाहर निकल जाता है। लेकिन जब शरीर में यूरिक एसिड ज्यादा बनने लगता है या किडनी फिल्टर नहीं कर पाती तो खून में यूरिक एसिड का लेवल बढ़ जाता है। जो हड्डियों के बीच में जमा हो कर दर्द पैदा करता है। यूरिक एसिड के बढ़ने को Hyperuricemia भी कहा जाता है। इससे Gout नाम की बीमारी लग सकती है जिससे जोड़ों में दर्द उठता है। यह आपके खून और यूरिन को काफी एसिडिक भी बना सकता है।
यूरिक एसिड बढ़ने के कारण
-जेनेटिक्स
-गलत डाइट या खान-पान
-रेड मीट, सी फूड, दाल, राजमा, पनीर और चावल जैसे खाने से भी यह बढ़ सकता है।
-अधिक समय तक खली पेट रहना भी एक कारण हो सकता है।
-डायबिटीज के मरीजों को हो सकता है यूरिक एसिड
-मोटापा
-स्ट्रेस
क्या है मुख्य लक्षण
-जोड़ों में दर्द होना। उठने-बैठने में परेशानी होना।
-उंगलियों में सूजन आ जाना
-जोड़ों में गांठ की शिकायत होना
-इसके अलावा पैरों और हाथों की उंगलियों में चुभन वाला दर्द होता है जो कई बार असहनीय हो जाता है। इसमें आदमी ज्यादा जल्दी थक भी जाता है। इसलिए इन -लक्षणों को नजरअंदाज ना करें।
-टॉयलेट करने में परेशानी या इसके तुंरत बाद पेट के आसपास दर्द, जलन।
यूरिक एसिड को कंट्रोल करने का तरीका
-यूरिक एसिड को कंट्रोल करने के लिए फिजिकली फिट रहें। इसके लिए एक्सरसाइज करें, योग करें या सैर पर जाएं।
-यूरिक एसिड को कंट्रोल करने के लिए शरीर में पानी की कमी न होने दें। खूब पानी पिएं।
-यूरिक एसिड को कंट्रोल करना है, तो अपने आहार पर खास ध्यान दें। प्यूरीन प्रोटीन युक्त भोजन को डाइट में शामिल न करें।
-अपने आहार में ज्यादा अंतराल न डालें। हर दो घंटे में कुछ हेल्दी खाते रहें।
-अपने डॉक्टर से बात करें और अपने शरीर की जरूरतों के मुताबिक उनसे सलाह लें।
आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए जरूर खाएं ये 6 चीजें
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आजकल समय से पहले लोगों के आखों की रोशनी कमजोर होने लगी है, क्योंकि बदलती लाइफ स्टाइल के साथ ही हम सभी को कुछ घंटे मोबाइल या कम्यूटर स्क्रीन के सामने रहना होता है। लेकिन यदि हम अपने खान-पान में थोड़ी ध्यान दें तो शायद इस समस्या को बढ़ने से रोका जा सकता है। जानें उन 4 चीजों के बारे में जिनके रोज खाने से आखों की रोशनी दुरुस्त रहती है-
हरी सब्जियां
अपनी डाइट में हरी पत्तेदार सब्जियों को शामिल करें। हरी पत्तेदार सब्जियों में आयरन की भरपूर मात्रा पायी जाती है, जो आंखों के लिए बहुत ही जरूरी है।
गाजर
गाजर का जूस पीना सेहत के लिए तो अच्छा है ही साथ ही आंखों के लिए भी बहुत फायदेमंद है। रोजाना एक गिलास गाजर का जूस पीने से आंखों पर चढ़ा चश्मा तक उतर सकता है।
बादाम का दूध
सप्ताह में कम से कम तीन बार बादाम का दूध पिएं। इसमें विटामिन ई होता है जो कि आंखों में किसी भी बीमारी से लड़ने के लिए फायदेमंद है।
अंडे
अंडे में अमीनो एसिड, प्रोटीन, सल्फर, लैक्टिन, ल्युटिन, सिस्टीन और विटामिन बी2 होता है। विटामिन बी सेल के कार्य करने में महत्वपूण होता है।
मछली
मछली में हाई प्रोटीन होता है। मछली आंखों के अलावा बालों के लिए भी बहुत अच्छी होती है।
सोयाबीन
आप अगर नॉन वेज नहीं खाते, तो आप सोयाबीन खा सकते हैं, यह आपकी आंखों के लिए बहुत फायदेंमंद है।
तो सबसे पहले आपको बता दें कि को भी Co-Win ऐप है? सरकार की ओर से जारी बयान के मुताबिक भारत में कोरोना टीकाकरण की योजना, कार्यान्वयन, निगरानी और मूल्यांकन के लिए Co-Win ऐप विकसित किया गया है। कोरोना वैक्सीन को आम लोगों तक पहुंचाने के लिए इस ऐप की मदद ली जाएगी।
भारत में कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई तेज हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में निर्मित दो कोरोना वैक्सीन को आपातकालीन इस्तेमाल के लिए लॉन्च कर दिया है। एक सिरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की कोविशिल्ड है दूसरी भारत बायोटेक की कोवैक्सीन। इन दोनों टीकों ने भारत के आत्मनिर्भर बनने की राह को और भी मजबूत किया है। कोरोना के टीकाकरण अभियान के पहले चरण में लगभग 3 करोड़ फ्रंटलाइन वॉरियर्स को पहला डोज दिया जाएगा। भारत के इस कदम को लेकर विश्व में हर तरफ वाहवाही हो रही है। माना जा रहा है कि जल्द ही आम लोगों के लिए भी कोरोना वैक्सीन शुरू की जाएगी। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि आम लोगों तक यह वैक्सीन कैसे पहुंचेगी। सरकार इसके लिए तकनीक का इस्तेमाल कर रही है। सरकार ने Co-Win ऐप शुरू किया है जिसके जरिए आम लोग भी आसानी से टीका लगवा सकते हैं। आज हम आपको बताते हैं Co-Win ऐप के बारे में और आखिर यह ऐप आपको टीकाकरण में कैसे मदद करेगा इसके बारे में भी...
तो सबसे पहले आपको बता दें कि को भी Co-Win ऐप है? सरकार की ओर से जारी बयान के मुताबिक भारत में कोरोना टीकाकरण की योजना, कार्यान्वयन, निगरानी और मूल्यांकन के लिए Co-Win ऐप विकसित किया गया है। कोरोना वैक्सीन को आम लोगों तक पहुंचाने के लिए इस ऐप की मदद ली जाएगी। आम लोग इस ऐप पर रजिस्ट्रेशन करवा कर कोरोना का टीका आसानी से ले सकेंगे। इस ऐप पर टीकाकरण केंद्र से लेकर टीका लेने वाले लोगों तक की पूरी सूची होगी। इस ऐप के जरिए टीकाकरण प्रक्रिया की पूरी तरह से ट्रैकिंग की जाएगी। कुल मिलाकर अगर कम शब्दों में कहें तो Co-Win ऐप पर भारत में लगाए जाने वाले टीके को लेकर पूरा लेखा-जोखा रहेगा। Co-WIN ऐप को पांच मॉड्यूल में बांटा गया है। पहला है प्रशासनिक मॉड्यूल, दूसरा रजिस्ट्रेशन मॉड्यूल, तीसरा वैक्सीनेशन मॉड्यूल, चौथा लाभान्वित स्वीकृति मॉड्यूल और पांचवां हैं रिपोर्ट मॉड्यूल।
एक बात स्पष्ट कर दें कि Co-Win ऐप पर रजिस्ट्रेशन के बाद ही आप कोरोना का टीका लगवा सकते हैं। रजिस्ट्रेशन के लिए आपको अपनी आईडी दिखानी होगी। आपको बता दें कि रजिस्ट्रेशन के लिए कोई भी फोटो आईडी का इस्तेमाल किया जा सकता है। आप इन आईडी का इस्तेमाल कर सकते है।
आधार कार्ड,
वोटर आईडी कार्ड
ड्राइविंग लाइसेंस,
पैन कार्ड,
मनरेगा जॉब कार्ड,
पासपोर्ट
पेंशन दस्तावेज फोटो के साथ,
बैंक या डाकघर द्वारा जारी फोटो वाली पासबुक
सांसद, विधायक, एमएलसी द्वारा जारी किए गए आधिकारिक पहचान पत्र
स्वास्थ्य बीमा स्मार्ट कार्ड
सेवा पहचान पत्र
अब आपको यह बताते है कि Co-Win ऐप पर रजिस्ट्रेशन कैसे करा सकते हैं। सबसे पहले आपको गूगल प्ले स्टोर में जाकर Co-Win ऐप डाउनलोड करना होगा। ध्यान रहे कि आपको Co-Win ऐप डाउनलोड करना है। वर्तमान में गूगल प्ले स्टोर पर Co-Win ऐप के ही नाम से कई फर्जी ऐप मौजूद है। ऐसे ऐप को इंस्टॉल करने से बचें। रिपोर्ट के मुताबिक Co-Win ऐप एंड्रॉयड, आईओएस और KaiOS, सभी प्लेटफार्म पर उपलब्ध रहेगा। नोकिया फोन और जिओ फोन इस्तेमाल करने वाले लोग भी Co-Win ऐप डाउनलोड कर सकते हैं।
ऐप को डाउनलोड करने के बाद आपको रजिस्ट्रेशन करना होगा। रजिस्ट्रेशन से पहले Co-Win ऐप पर केंद्र और राज्य सरकार द्वारा जारी गाइडलाइंस बताई जाएगी। रजिस्ट्रेशन के दौरान आपको अपनी फोटो आईडी देनी होगी। बिना फोटो आईडी के रजिस्ट्रेशन नहीं हो पाएगा। रजिस्ट्रेशन के दौरान आपको अपना मोबाइल नंबर भी रजिस्टर्ड करवाना होगा। रजिस्टर्ड मोबाइल पर ही रजिस्ट्रेशन पूरा होने के बाद एक SMS आएगा। इस SMS में वैक्सीनेशन की तारीख, पता और समय बताया जाएगा। आपको यह भी बता दें कि जिस फोटो आईडी के जरिए आपने Co-Win ऐप पर रजिस्ट्रेशन करवाया है उसे टीका लगाते समय भी ले जाना जरूरी है। Co-Win ऐप या फिर मैसेज के जरिए ही आपको डोज की दूसरी तिथि बताई जाएगी।
- अंकित सिंह
किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में न्यायपालिका सबसे अहम होती है और भारतीय संविधान तो एक ऐसी न्यायपालिका की स्थापना करता है जो अपने आप में एकीकृत होने के साथ-साथ स्वतंत्र भी है।
नयी दिल्ली। दुनिया के सबसे बड़े संविधान के तीन मुख्य अंग हैं। जिन्हें न्यायपालिका, कार्यपालिका और व्यवस्थापिका कहते हैं। इन्हीं अंगों के माध्यम से देश को सुचारू ढंग से चलाया जाता है। हालांकि, इन संभी अंगों के अपने अलग-अलग कार्य होते हैं। आज हम अपनी नई सीरीज संविधान को जानें में न्यायपालिका और व्यवस्थापिका के बारे में जानेंगे और यह जानेंगे कि संविधान के तहत इन्हें कौन-कौन सी शक्तियां प्राप्त हैं।
न्यायपालिका
किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में न्यायपालिका सबसे अहम होती है और भारतीय संविधान तो एक ऐसी न्यायपालिका की स्थापना करता है जो अपने आप में एकीकृत होने के साथ-साथ स्वतंत्र भी है। न्यायपालिका का कार्य संविधान के तहत बने कानूनों को पालन करना और अगर कोई कानूनों का उल्लंघन करता है तो उसे दंडित करना है।
भारत की न्याय व्यवस्था में कई स्तर के न्यायालय हैं। सर्वोच्च न्यायालय सबसे ऊपर होता है और इसके नीचे राज्य स्तर पर स्थापित उच्च न्यायालय हैं। उच्च न्यायालय के नीचे (जिला अदालतें और निचली अदालतें) होती हैं। न्यायालयों का प्रमुख उच्चतम न्यायालय का प्रधान न्यायाधीश होता है।
वहीं, सर्वोच्च न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा की गारंटी देता है और संविधान का संरक्षक है। इसलिए न्यायपालिका को स्वतंत्र रखा गया है। न्यायपालिकों में न्यायधीशों के चयन का काम प्रधान न्यायधीश, राष्ट्रपति और राज्य के गवर्नर का होता है। हालांकि, न्यायधीश बनने के लिए कई योग्यताओं का होना अनिवार्य होता है। सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय की नियुक्तियां अलग-अलग ढंग से की जाती हैं।
संविधान में भाग पाँच (संघ) एवं अध्याय 6 (संघ न्यायपालिका) के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय का प्रावधान किया गया है। संविधान में अनुच्छेद 124 से 147 तक सर्वोच्च न्यायालय के संगठन, स्वतंत्रता, अधिकार क्षेत्र, शक्तियों एवं प्रक्रियाओं से संबंधित हैं।
व्यवस्थापिका
व्यवस्थापिका या विधायिका को संसद कहा जाता है। जिसका गठन राष्ट्रपति, लोकसभा और राज्यसभा से मिलकर होता है। इसका उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 79 में है। आपको बता दें कि भारतीय संविधान लोकसभा और राज्यसभा को कुछ अपवादों को छोड़कर कानून निर्माण की शक्तियों में समान अधिकार देता है।
व्यवस्थापिका सरकार का महत्वपूर्ण अंग है और इसका कार्य कानूनों का निर्माण करना, उनमें संशोधन करना तथा उन्हें निरस्त करना है।
राज्यसभा:- राज्यसभा को उच्च सदन भी कहा जाता है। राज्यसभा में सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 होती है लेकिन वर्तमान में यह संख्या 245 है। इनमें से 12 सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा से क्षेत्र से मनोनीत किया जाता है। उच्च सदन के सदस्यों का कार्यकाल 6 साल का होता है। जबकि एक तिहाई सदस्यों का चुनाव दूसरे साल होता है।
लोकसभा:- लोकसभा को निम्न सदन भी कहा जाता है। लोकसभा का गठन वयस्क मतदान के आधार पर प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुने गए जनता के प्रतिनिधियों से होता है। निम्न सदन के सदस्यों की अधिकतम संख्या 552 है। जिसमें से 530 अलग-अलग राज्यों से जबकि 20 संघ राज्य क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं और दो आंग्ल भारतीय समुदाय के सदस्यों को राष्ट्रपति नामित करते हैं।
ऑक्सीजन हमारी जिंदगी का आधार है। शरीर के सभी अंगों को ठीक से काम करने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है। शरीर में यह ऑक्सीजन खून के माध्यम से सभी अंगों तक पहुंचता है। इसलिए खून में अगर ऑक्सीजन की कमी होती है तो इससे शरीर के विभिन्न अंगों के विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके लिए जरूरी है कि हम अपने आहार में ऐसे फलों को शामिल करें जो खून में ऑक्सीजन की मात्रा को बढ़ाने का काम करते हैं।
नींबू और पपीता ऐसे फल हैं जो हमारी किडनी को साफ रखने में मदद करते हैं। विटामिन से भरपूर ये फल हमारे खून में ऑक्सीजन की मात्रा को बढ़ाने में भी सहयक होते हैं। तरबूज में भारी मात्रा में फाइबर पाया जाता है। इसके अलावा इसमें लाइकोपेन, बीटा केरोटिन और विटामिन सी भी भरपूर मात्रा में पाया जाता है। इसका सेवन शरीर में जल की मात्रा को भी संतुलित रखता है।
अंकुरित अनाज फाइबर के भरपूर स्रोत होते हैं। ये रक्त में ऑक्सीजन बढ़ाने के बेहतर विकल्पों के तौर पर भी इस्तेमाल किए जाते हैं। इसके साथ ही साथ एवोकैडो. किशमिश, खजूर अदरक और गाजर भी शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए सबसे उपयुक्त उपचार हैं। इनमें एंटी-ऑक्सीडेंट्स भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं।
ऑर्गेनिक जिलैटिन में कैल्शियम और आयरन की भरपूर मात्रा पाई जाती है। इसमें पर्याप्त मात्रा में फाइबर भी पाया जाता है। यह शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाने का सबसे बेहतरीन उपाय होता है। शतावरी, जलकुम्भी और समुद्री शैवाल भी खून में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाने में काफी मददगार होता है।
इन खाद्यों का सेवन शरीर में रक्त के माध्यम से ऑक्सीजन की आपूर्ति निश्चित करते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा 90 प्रतिशत से कम होने पर यह अंगों पर बुरा प्रभाव डालना शुरू कर देता है। इसकी पूर्ति के लिए आवश्यक खाद्य पदार्थों का नियमित सेवन बेहद जरूरी है।
धूम्रपान से कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बना रहता है। अब एक नये अध्ययन के अनुसार अत्यधिक धूम्रपान के कारण डायबिटीज, फर्टिलिटी में कमी तथा अंधेपन की भी आशंकाएं होती हैं। तंबाकू का ज्यादा मात्रा में सेवन आंखों की रोशनी के लिए काफी नुकसानदेह होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि रक्त में निकोटिन की मात्रा ज्यादा हो जाने पर आंखों के रेटिना पर बुरा असर पड़ता है। इसके अलावा भी इसके आंखों पर कई दुष्प्रभाव होते हैं।
आंखों की सतह पर नमी बनाए रखने के लिए कुछ तत्व जिम्मेदार होते हैं। ये तत्व अत्यधिक धूम्रपान से क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। ऐसे में आंखों की सतह की नमी और गीलापन खत्म हो जाता है। इस वजह से आंखों में खुजली या फिर नजर में धुंधलापन आने की संभावना होती है।
एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि धूम्रपान से मोतियाबिंद भी हो सकता है। एक शोध में यह दावा किया गया है कि तंबाकू खाने वाले लोगों में मोतियाबिंद की संभावना कुछ ज्यादा ही होती है। साथ ही साथ ऐसे लोगों के संपर्क में रहने वाले लोग भी इससे प्रभावित होते हैं।
धूम्रपान की वजह से तंबाकू में मौजूद निकोटिन रेटिना और ऑप्टिकल नसों पर घातक प्रभाव पड़ता है। ऐसे में आंखों को दीर्घकालिक प्रभाव छोड़ने वाली क्षति भी हो सकती है। धूम्रपान करने वाले लोगों को अक्सर मधुमेह और हाई ब्लडप्रेशर की शिकायत होती है। इन बीमारियों में भी आंखों की रोशनी कम हो जाती है।
मांसपेशियों का दर्द हमें कभी न कभी होता ही है। यह एक आम समस्या है पर इसमें लापरवाही कई बार भारी पड़ जाती है। इसमें शरीर में पानी की कमी ना होने दें। शरीर में पानी की कमी से भी पैर की उंगलियों सहित कई अंगों की मांसपेशियों में ऐंठन हो सकती है। खासतौर पर व्यायाम के समय जब पसीना बहुत ज्यादा बहता है, तब खूब पानी पिएं। जब शरीर में पानी की कमी होती है तो अत्यधिक इलेक्ट्रोलाइट्स के कारण मांसपेशियों में ऐंठन होती है। वहीं दूसरी और यदि शरीर ज्यादा हाइड्रेट हो जाए तो भी इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी के कारण मांसपेशियों में ऐंठन हो सकती है। इसलिए हाइड्रेशन को संतुलित रखें। इसके लिए छोटे व्यायाम सत्र में थोड़ा-थोड़ा कर पानी पियें और लंबे व्यायाम सत्र के दौरान डायलूट स्पोर्टस ड्रिक उपयुक्त होता है। आपको दिन में भी थोड़ा-थोड़ा पानी पीते रहने की आदत डालनी चाहिये, खासतौर पर सोने से पहले क्योंकि सोते समय शरीर काफी तरल खोता है।
मिनरल्स की कमी ना होने दें
शरीर में मिनरल्स की कमी बिल्कुल न होने दें। मांसपेशियों में ऐंठन या अचानक दर्द मिनरल्स जिसे कैल्शियम, पोटेशियम और मैग्नीशियम की वजह से होता है। इसलिए हमें रोज जरुरत के हिसाब से कैल्शियम के 1000 मिलीग्राम और पोटेशियम की 4.7 ग्राम मात्रा लेनी चाहिए। विशेषकर मैग्नीशियम 400-420 मिलीग्राम पुरुषों के लिए और 310-320 मिलीग्राम महिलाओं के लिए आवश्यक होता है। केलों में उच्च मात्रा में पोटेशियम होता है, साथ ही कच्चे एवकाडो, भुने आलू, पालक और वसा मुक्त या स्किम्ड दूध भी इसके अच्छे श्रोत होते हैं। आप इन्हें भी अपनी डाइट में शामिल कर सकतें हैं। साथ ही पोटेशियम और कैल्शियम का भी सेवन करें। दोनों मिनरल्स शरीर में तरल पदार्थ बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। इसके लिए पोटेशियम से भरपूर भोजन, जैसे केला, अंडा, और मछली और कैल्शियम के लिए फैट फ्री दूध या दही का सेवन करें।
मालिश करें
पैरों की मांसपेशियों में ऐंठन होने पर उन्हें गर्म पानी में भिगोयें। मालिश करने से शरीर का ब्लड सर्कुलेशन अच्छा होता है। ये मांसपेशियों में ऐंठन से बचने के एककारगर और आसान तरीका है। इससे शरीर की मांसपेशियों को आराम मिलता है और ऐंठन की संभावना कम हो जाती है। मालिश के लिए आप कोई भी तेल प्रयोग कर सकते हैं।
रोज़ व्यायाम और स्ट्रेच करें
रोज़ थोड़ा व्यायाम करें। दिन में रोज़ पैरों और शरीर की स्ट्रेचिंग करें। इससे मांसपेशियों को आराम मिलता है और ऐंठन होने की संभावना भी कम होती है। अगर पैर में ऐंठन रात के समय हो तो पैरों को धीरे से स्ट्रेच करें। इससे आपके पैरों का ब्लड सर्कुलेशन अच्छा होता है और मांसपेशियों में ऐंठन नहीं होती।
अवसाद एक मानसिक समस्या होती है, जो आजकल की आधुनिक जीवनशैली की वजह से तेजी से लोगों को अपना शिकार बनाती जा रही है। तनाव या अवसाद के कई कारण हो सकते हैं। इनके कारणों के आधार पर इनके तमाम इलाज भी ढूंढे जाते हैं। लोगों के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा, अपने सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष, किसी तरह का मानसिक आघात या फिर रिश्तों में किसी भी प्रकार का मनमुटाव, इनमें से कुछ भी अवसाद का कारण हो सकता है। हाल ही में हुए एक शोध में तनाव के एक और कारण की खोज की गई है। इस शोध में यह दावा किया गया है कि इम्यून (रोग प्रतिरोधी ) प्रणाली में गड़बड़ी की वजह से भी अवसाद की समस्या हो सकती है। इस तरह के अवसाद को एंटी-इन्फ्लेमेट्री यानी कि सूजनरोधी दवाओं के इस्तेमाल से सही किया जा सकता है।
अवसाद के इलाज के लिए फिलहाल जिन तरीकों का प्रयोग किया जाता है उनमें दिमाग में मूड-बूस्टर रसायनों तथा सेरोटोनिन की मात्रा को बढ़ाने पर ध्यान दिया जाता है। शोधकारों ने अपने अध्ययन में यह पाया है कि इम्यून सिस्टम के ज्यादा क्रियाशील होने से सारे शरीर में सूजन, निराशा की भावना तथा थकान के लक्षण प्रदर्शित होते हैं। हाल के अध्ययनों से यह बात साफ हुई है कि सूजन का इलाज डिप्रेशन का भी इलाज है। रिसर्चर्स का कहना है कि यह बात स्पष्ट रूप से सही है कि सूजन या फिर जलन की वजह से अवसाद हो सकता है। उन्होंने आगे कहा कि सूजन और अवसाद के बीच गहरा संबंध होता है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि सूजनरोधी दवाओं के इस्तेमाल से डिप्रेशन के दूर होने के दावों का मेडिकल परीक्षण अगले साल से शुरू हो जाएगा। ऐसे में यह बात पूरी तरह से स्पष्ट हो जाएगी कि इन दवाओं के इस्तेमाल से अवसाद का इलाज किया जा सकेगा या नहीं।
आजकल अधिकांश लोग बढ़ते मोटापे से परेशान हैं। इससे उन्हें कई प्रकार के रोग भी हो जाते हैं पर मोटापा कम करना कोई आसान काम नहीं है। अगर आपने ये फैसला कर लिया है की आपको अपना वजन कम करना है तो सबसे पहले आपको अपनी जीवनशैली पर ध्यान देना होगा। वजन कम करने के लिए जो सब से जरुरी है वो है पौष्टिक खान पान, नियमित रूप से व्यायाम और योगा। मोटापा कम करने के घरेलु उपाय भी काफी असरदार रहते हैं।
बहुत से लोग ये सोचते है की कम खाना खायेंगे तो मोटापा और पेट की चर्बी को बढ़ने से रोक सकेंगे पर सच तो ये है की मोटापा कम खाना खाने से नहीं सही तरीके खाने से कम होता है। खाने का ठीक से न पचना वजन बढ़ने का प्रमुख कारण है। पाचन क्रिया जब ठीक न हो तो मोटापा जैसी और भी समस्याऐ पैदा होने लगती है।
घरेलू उपाय के तहर शहद और पानी को उबाल लें और उबलने के बाद इसमें दालचीनी डालें और इसे ढक दें और 15 मिनटों तक आग पर रखें| जब यह मिश्रण ठंडा हो जाए तो इसमें शहद मिला दे इस प्रकार आपकी दालचीनी चाय तैयार होती है|
इस चाय को रोजाना तीन बार सेवन करें सुबह नाश्ते से पहले दोपहर खाने से पहले व रात को सोने से पहले।
इसके साथ आप जब भी पानी पियें तो कोशिश करें के पानी ठंडा ना हो पानी गर्म ही पियें और खाने के साथ में पानी ना पियें। खाने के अंत में एक कप गर्म गर्म चाय के जैसा पानी पियें या ग्रीन टी इस्तेमाल करें पर इसमें चीनी ना डालें, कोशिश करें के बिना चीनी की चाय पी जाए। चीनी मोटापा बढ़ाती है।
गोद में लैपटॉप रखकर काम करने से पड़ता है फर्टिलिटी पर बुरा असर, जानें लैपटॉप इस्तेमाल करने का क्या है सही तरीका
Keeping Laptop On Lap Can Cause Infertility: कोरोनावायरस के चलते वर्क फ्रॉम होम कल्चर काफी बढ़ गया है। जिसकी वजह से अब लोग घंटों अपने लैपटॉप से चिपके हुए नजर आ रहे हैं। पर क्या आप जानते हैं लैपटॉप का घंटों इस्तेमाल आपकी रिप्रोडक्टिव हेल्थ पर भी काफी बुरा असर ड़ाल सकता है? दरअसल गोद में लैपटॉप रखकर काम करने से उससे निकलने वाली हीट व्यक्ति की त्वचा और टिशू को डैमेज करने के साथ इंफर्टिलिटी की समस्या भी पैदा कर सकती है। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि लैपटॉप से ज्यादा नुकसान व्यक्ति को उससे जुड़े वाईफाई से हो रहा है। आइए जानते हैं कैसे।
हाल ही में हुई कुछ स्टडीज की मानें तो लैपटॉप का अधिक इस्तेमाल व्यक्ति में इनफर्टिलिटी की समस्या पैदा कर सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि लैपटॉप को गोद में रखकर काम करने से पुरूषों के रिप्रोडक्टिव ऑर्गन इफैक्ट होते हैं। जिसका सीधा असर उनके स्पर्म काउंट पर पड़ता है।
महिलाओं से ज्यादा पुरूषों को नुकसान-
विशेषज्ञों की मानें तो लैपटॉप की हीट महिलाओं की तुलना में पुरूषों को अधिक नुकसान पहुंचा सकती है। इसका बड़ा कारण उनके शरीर की बनावट है। महिलाओं के शरीर में यूटरस शरीर के भीतर होता है जबकि पुरूषों में टेस्टिकल शरीर के बाहरी हिस्से में होते हैं। जिससे हीट रेडिएशन उनके ज्यादा करीब रहती है। ज्यादा तापमान की वजह से स्पर्म क्वॉलिटी गिर सकती है और फर्टिलिटी में दिक्कत आ सकती है। यही वजह है कि पुरूषों को लैपटॉप इस्तेमाल करते समय महिलाओं की तुलना में अधिक सतर्क रहना चाहिये।
वाईफाई से फैलता है रेडिएशन-
डॉक्टरों की मानें तो लैपटॉप के इस्तेमाल से ज्यादा खतरनाक उससे जुड़ा वाईफाई कनेक्शन है। जिसे आप देर तक लैपटॉप के जरिए काम करते समय खुद पर रखकर इस्तेमाल करते हैं। दरअसल, सभी इंटरनेट डिवाइस रेडियोफ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल करते हैं जो मानव शरीर को बीमार कर सकता है। हॉर्डड्राइव से लो फ्रीक्वेंसी रेडिएशन छोड़ते हैं वहीं ब्लूटूथ कनेक्शन से हाई रेडिएशन बाहर आती है। रेडिएशन की वजह से शुरूआत में व्यक्ति को नींद न आना, सिर में तेज दर्द जैसे लक्षण देखने को मिल सकते हैं।
ऐसे करें लैपटॉप का इस्तेमाल -
-लैपटॉप को पैरों या गोद में रखकर काम की जगह आप उसे टेबल पर रखकर इस्तेमाल करें।
-कुछ लोग लैपटॉप का इस्तेमाल करते समय अपने पैरों को चिपकाकर बैठते हैं जिससे लैपटॉप की रेडिएशन सीधे उनके शरीर पर पड़ती है। ऐसा करने से बचें।
-लैपटॉप पर काम करते समय शील्ड का इस्तेमाल करें। इससे रेडिएशन से बचाव होता है।
-लैपटॉप पर काम करते समय बहुत ज्यादा झुककर काम करने से बचें। इससे आपकी स्पाइन में परेशानी हो सकती है।
-लैपटॉप पर काम करते समय उससे एक उचित दूरी बनाकर काम करें। कोशिश करें कि उसे टेबल पर रखकर ही आप काम करें।
-लैपटॉप के साइड से ज्यादा हीट निकल रही हो या तेज आवाज आ रही हो तो उसका इस्तेमाल बंद कर दें।
-लैपटॉप पर काम करते समय थोड़े-थोड़े समय में अपनी पोजिशन बदलते रहें। ऐसा करने से आपके किसी एक अंग पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा।
नई दिल्ली । देशभर में 16 जनवरी कोरोना के खिलाफ लड़ाई शुरू हो चुकी है। शनिवार को कोरोना वैक्सीनेशन के पहले दिन 19.1 लाख लोगों को वैक्सीन की पहली डोज दी गई। सबसे पहले कोरोना वॉरियर्स और स्वास्थ्यकर्मियों को वैक्सीन दी जा रही है। वैक्सीनेशन अभियान शुरू होने से कोरोना का कहर झेल रहे लोगों में खुशी का माहौल है। स्वास्थ्य और चिकित्सा विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि वैक्सीन लगवाने के बाद भी कोरोना का खतरा टला नहीं है, बल्कि अब और भी ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है।
वैक्सीन लगवाने वालों की एक छोटी सी गलती भी कोरोना को फैलने का मौका दे सकती है। इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के टास्क फोर्स ऑपरेशन ग्रुप फॉर कोविड के हैड डॉ एनके अरोड़ा ने कहा कि किसी भी बीमारी के साथ डर और निश्चिंतता साथ-साथ चलते हैं, अगर बीमारी वायरस के रूप में हो, जो न दिखाई देता है और न पहचान में आता है, बल्कि सिर्फ चपेट में लेता है, तो यह खतरनाक हो जाता है। कोरोना वायरस के साथ भी ऐसा ही है। अगर इससे डरना बंद कर दिया और इसके लिए बरती जाने वाली सावधानियों में ढील बरती तो यह दोगुनी गति से लोगों को चपेट में ले सकता है।
डॉ अरोड़ा ने कहा कि वैक्सीन लगवाने के बाद लोग निश्चित ही कोरोना वायरस के खतरे से सुरक्षित रहेंगे और यह चीज उनके भी दिल-दिमाग में बैठ जाएगी। इस दौरान पूरी संभावना है कि वे लोग कोरोना को लेकर ये गलतियां कर सकते हैं। जैसे मास्क का उपयोग कम करना, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करना, कहीं भी किसी भी चीज को छू लेना और साबुन से हाथ न धोना या सैनेटाइजर का इस्तेमाल न करना। कोरोना वायरस के प्रभाव वाली जगहों से आकर परिवार के साथ घुलना-मिलना, परिवार के बीच में रहकर कोरोना नियमों का पालन न करना, बाहर से सामान लेकर खा लेना आदि। ऐसा करने पर वैक्सीन लेने वाले व्यक्ति को तो कुछ नहीं होगा लेकिन कोरोना वायरस उसके माध्यम से उसके परिवार और सगे-संबंधियों तक तेजी से चला जाएगा। जिसका परिणाम यह होगा कि परिवार कोरोना बीमारी की चपेट में आ जाएगा। इस दौरान कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगों की जान पर भी बन सकती है।
नई दिल्ली । वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद सीएसआईआर ने पूरे देश में करीब अपने 40 संस्थानों के जरिए किए सीरोसर्वे में पाया है कि स्मोकिंग करने वालों और शाकाहारियों में कम सीरो पॉजिटिविटी पाई गई। इसका अर्थ यह है कि इन लोगों में कोरोना वायरस से संक्रमित होने का जोखिम कम हो सकता है। सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि ओ ब्लड ग्रुप वाले लोग संक्रमण के प्रति कम संवेदनशील हो सकते हैं, जबकि 'बी' और 'एबी' ब्लड ग्रुप वाले लोग अधिक जोखिम में हो सकते हैं। सीएसआईआर ने एसएआरएस-सीओवी-2 के प्रति एंटीबॉडी की मौजूदगी का आकलन करने के अपने अध्ययन के लिए अपनी प्रयोगशालाओं या संस्थानों में काम करने वाले 10,427 वयस्क व्यक्तियों और उनके परिवार के सदस्यों के स्वैच्छिक आधार पर नमूने लिए। सीएसआईआर-इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (आईजीआईबी), दिल्ली के अध्ययन में कहा गया है कि 10,427 व्यक्तियों में से 1,058 (10.14 प्रतिशत) में एसएआरएस-सीओवी -2 के प्रति एंटीबॉडी थी। आईजीआईबी में वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्ययन के सह-लेखक शांतनु सेनगुप्ता ने कहा कि नमूनों में से 346 सीरो पॉजिटिव व्यक्तियों की तीन महीने के बाद की गई जांच में पता चला कि उनमें एसएआरएस-सीओवी -2 के प्रति एंटीबॉडी स्तर 'स्थिर से लेकर अधिक था लेकिन वायरस को बेअसर करने के लिए प्लाज्मा गतिविधि में गिरावट देखी गई। उन्होंने कहा कि 35 व्यक्तियों की छह महीने में दोबारा नमूने लिए जाने पर एंटीबॉडी के स्तर में तीन महीने की तुलना में गिरावट जबकि बेअसर करने वाली एंटीबॉडी का स्तर स्थिर देखा गया। हालांकि सामान्य एंटीबॉडी के साथ ही बेअसर करने वाला एंटीबॉडी का स्तर जरूरत से अधिक था। अध्ययन में कहा गया है, हमारा निष्कर्ष कि धूम्रपान करने वालों के सीरो पॉजिटिव होने की संभावना कम है। सामान्य आबादी से पहली रिपोर्ट है और इसका सबूत है कि कोविड-19 के सां संबंधी बीमारी होने के बावजूद धूम्रपान बचावकारी हो सकता है। इस अध्ययन में फ्रांस से दो अध्ययनों और इटली, न्यूयॉर्क और चीन से इसी तरह की रिपोर्टों का हवाला दिया गया है जिसमें धूम्रपान करने वालों के बीच संक्रमण की दर कम बतायी गई थी।
कई लोग बैड कोलेस्ट्रॉल की समस्या से पीड़ित होते हैं. शरीर में हाई कोलेस्ट्रॉल होने के कारण (Causes Of High Cholesterol) कई हैं. कोलेस्ट्रॉल आपके लीवर, मांस, डेयरी और अंडे जैसे पशु उत्पादों को खाने से प्राप्त होने वाला एक मोमी पदार्थ है. कई लोग कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल करने के तरीकों (Ways To Control Cholesterol) के बारे में लगातार सवाल करते हैं. हालांकि आप अपने कोलेस्ट्रॉल लेवल को हेल्दी बनाए रखने के लिए कुछ फूड्स को भी अपना सकते हैं. हेल्दी कोलेस्ट्रॉल के लिए फूड्स (Foods For Healthy Cholesterol) का सेवन काफी लाभकारी हो सकता है. हाई कोलेस्ट्रॉल के लिए घरेलू नुस्खे (Home Remedies For High Cholesterol) भी कारगर हो सकते हैं. अगर आप भोजन से इस पदार्थ का बहुत अधिक सेवन करते हैं, तो आपका लीवर कम कोलेस्ट्रॉल का उत्पादन करेगा. हालांकि, बड़ी मात्रा में संतृप्त वसा, ट्रांस फैट और शर्करा खाने से कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ सकता है. ऐसे में कोलेस्ट्रॉल को कैसे कम करें? (How To Lower Cholesterol) कोलेस्ट्रॉल को कम करने का तरीका क्या है? जैसे सवालों का जवाब तलाशने के लिए आपको यह ध्यान रखना है कि कोलेस्ट्रॉल विभिन्न प्रकार के हैं. जबकि "अच्छा" एचडीएल कोलेस्ट्रॉल आपके स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हो सकता है.उच्च स्तर के "खराब" एलडीएल कोलेस्ट्रॉल, विशेष रूप से ऑक्सीकरण होने पर, हृदय रोग, दिल के दौरे और स्ट्रोक के बढ़ते जोखिम से जुड़ा हुआ है. क्योंकि ये आपके रक्त वाहिकाओं को रोकते हैं. यहां खराब कोलेस्ट्रॉल के लिए डाइट टिप्स (Bad Cholesterol Diet Tips) के बारे में बताया है जिसमें आपको यहां बताए गए 6 तरह के फूड्स को खाने की सलाह दी जाती है. अगर आप हाई कोलेस्ट्रॉल लेवल से परेशान हैं तो आपको इन फूड्स का सेवन आज से ही शुरू कर देना चाहिए.
1. फाइबर का सेवन करें
घुलनशील फाइबर आपके आंत में पित्त के पुनर्विकास को रोककर कोलेस्ट्रॉल को कम कर सकता है, जिससे मल में पित्त का उत्सर्जन होता है. आपका शरीर अधिक पित्त बनाने के लिए रक्तप्रवाह से कोलेस्ट्रॉल खींचता है, इसलिए कोलेस्ट्रॉल लेवल को कम कर सकता है.
2. फलों और सब्जियों को खाएं
फलों और सब्जियों का सेवन एलडीएल कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने का एक आसान तरीका है. अध्ययन बताते हैं कि जो वयस्क प्रत्येक दिन कम से कम चार सर्विंग्स फलों और सब्जियों का सेवन करते हैं, उनमें एलडीएल कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम होता है. फलों और सब्जियों में भी अधिक मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट होते हैं, जो एलडीएल कोलेस्ट्रॉल को आपकी धमनियों में ऑक्सीकरण और प्लाक बनाने से रोकते हैं.
3. हर्ब्स और मसालों का सेवन
जड़ी बूटी और मसाले विटामिन, खनिज और एंटीऑक्सिडेंट के साथ पैक किए गए पोषण संबंधी पावरहाउस हैं. लहसुन, हल्दी और अदरक नियमित रूप से खाने पर कोलेस्ट्रॉल कम करने में मदद मिल सकती है. अगर आप बैड कोलेस्ट्रॉल को कम करना चाहते हैं तो आज से ही इन फूड्स का सेवन शुरू कर दें.
4. कृत्रिम ट्रांस वसा से बचें
जबकि ट्रांस वसा स्वाभाविक रूप से रेड मीट और डेयरी उत्पादों में पाए जाते हैं. ज्यादातर लोगों का मुख्य स्रोत कई रेस्तरां और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में प्रयुक्त कृत्रिम ट्रांस वसा है. कृत्रिम ट्रांस वसा का उत्पादन हाइड्रोजनीकरण द्वारा - या हाइड्रोजन को जोड़ने से होता है. ट्रांस वसा प्राकृतिक संतृप्त वसा का एक सस्ता विकल्प बनाते हैं.
5. कम शुगर खाएं
शुगर का अधिक सेवन आपका कोलेस्ट्रॉल लेवल बढ़ा सकता है और आपके हृदय रोग की समस्या के लिए भी ट्रिगर हो सकता है. जितना संभव हो उतना बिना शुगर के खाद्य पदार्थों का सेवन करें. अगर आप ऐसा करने में सफल रहते हैं आपको हेल्दी कोलेस्ट्रॉल पाने से कोई नहीं रोक सकता है!