ईश्वर दुबे
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Bhilai
अक्सर लोगों को कमर में अकड़न, पीठ और जोड़ों में दर्द की शिकायत रहती है और वे इसे नजरअंदाज कर देते हैं पर ऐसा करना आपकी सेहत के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
अगर जोड़ों के दर्द के कारण आपकी रात में तीन-चार बजे आपकी नींद खुल जाती है और आप असहज महसूस करते हैं, तो डॉक्टर से सलाह लीजिए क्योंकि आपको स्पांडिलाइटिस की शिकायत हो सकती है। स्पांडिलाइटिस से हृदय, फेफड़े और आंत समेत शरीर के कई अंग प्रभावित हो सकते हैं।
स्पांडिलाइटिस को नजरंदाज करने से गंभीर रोगों का खतरा पैदा हो सकता है। इससे बड़ी आंत में सूजन यानी कोलाइटिस हो सकता है और आंखों में संक्रमण हो सकता है। स्पांडिलाइटिस एक प्रकार का गठिया रोग है। इसमें कमर से दर्द शुरू होता है और पीठ और गर्दन में अकड़न के अलावा शरीर के निचले हिस्से जांघ, घुटना व टखनों में दर्द होता है। रीढ़ की हड्डी में अकड़न बनी रही है। स्पांडिलाइटिस में जोड़ों में इन्फ्लेमेशन यानी सूजन और जलन के कारण तेज दर्द होता है।
वहीं नौजवानों में स्पांडिलाइटिस की शिकायत ज्यादा होती है। आमतौर पर 45 से कम उम्र के पुरुषों और महिलाओं में स्पांडिलाइटिस की शिकायत रहती है।
एंकिलोसिंग स्पांडिलाइटिस गठिया का एक सामान्य प्रकार है जिसमें रीढ़ की हड्डी प्रभावित होती है और कशेरूक में गंभीर पीड़ा होती है जिससे बेचैनी महसूस होती है। इसमें कंधों, कुल्हों, पसलियों, एड़ियों और हाथों व पैरों के जोड़ों में दर्द होता है। इससे आखें, फेफड़े, और हृदय भी प्रभावित होते हैं।
बच्चों में जुवेनाइल स्पांडिलोअर्थ्राइटिस होता है जोकि 16 साल से कम उम्र के बच्चों में पाया जाता है और यह वयस्क होने तक तकलीफ देता है। इसमें शरीर के निचले हिस्से के जोड़ों में दर्द व सूजन की शिकायत रहती है। जांघ, कुल्हे, घुटना और टखनों में दर्द होता है। इससे रीढ़, आंखें, त्वचा और आंत को भी खतरा पैदा होता है। थकान और आलस्य का अनुभव होता है।
स्पांडिलाइटिस मुख्य रूप से जेनेटिक म्युटेशन के कारण होता है। एचएलए-बी जीन शरीर के प्रतिरोधी तंत्र को वाइरस और बैक्टीरिया के हमले की पहचान करने में मदद करता है लेकिन जब जीन खास म्युटेशन में होता है तो उसका स्वस्थ प्रोटीन संभावित खतरों की पहचान नहीं कर पाता है और यह प्रतिरोधी क्षमता शरीर की हड्डियों और जोड़ों को निशाना बनाता है, जो स्पांडिलाटिस का कारण होता है हालांकि अब तक इसके सही कारणों का पता नहीं चल पाया है।
उन्होंने कहा कि जब जोड़ों में दर्द की शिकायत हो तो उसकी जांच करवानी चाहिए क्योंकि इससे उम्र बढ़ने पर और तकलीफ बढ़ती है।
एचएलए-बी 27 जांच करवाने से स्पांडिलाइटिस का पता चलता है। एचएलए-बी 27 एक प्रकार का जीन है जिसका पता खून की जांच से चलता है। इसमें खून का सैंपल लेकर लैब में जांच की जाती है। इसके अलावा एमआरआई से भी स्पांडिलाइटिस का पता चलता है.
स्पांडिलाइटिस का पता चलने पर इसका इलाज आसान हो जाता है। ज्यादातार मामलों का इलाज दवाई और फिजियोथेरेपी से हो जाता है। वहीं कुछ ही गंभीर व दुर्लभ मामलों में सर्जरी की जरूरत पड़ती है।
फिजियोथेरेपी का चलन आजकल बढ़ता जा रहा है। कई प्रकार की बीमारियों का उपचार इससे हो रहा है। घुटनों, पीठ या कमर में दर्द जैसे कई रोगों से बचने या निपटने के लिए बिना दवा खाए फिजियोथेरेपी के जरिये असरदार इलाज कराया जा सकता है।मौजूदा समय में अधिकांश लोग दवाइयों से बचने के लिए फिजियोथेरेपी की ओर रुख कर रहे हैं, क्योंकि यह न केवल कम खर्चीला होता है, बल्कि इसके दुष्प्रभाव की आशंका न के बराबर होती है।
मांसपेशियों को सक्रिय करने का तरीका है फिजियोथेरेपी
प्रशिक्षित फिजियोथेरेपिस्ट द्वारा व्यायाम के जरिए शरीर की मांसपेशियों को सही अनुपात में सक्रिय करने की विधा फिजियोथेरेपी कहलाती है। इसे हिंदी में भौतिक चिकित्सा पद्धति कहा जाता है। घंटों लगातार कुर्सी पर वक्त बिताने, गलत मुद्रा में बैठने और व्यायाम या खेल के दौरान अंदरूनी खिंचाव या जख्मों की हीलिंग के लिए फिजियोथेरेपिस्ट की सेवा लेने की सलाह खुद चिकित्सक भी देते हैं!
विशेजषज्ञों का कहना है कि सबसे पहले यह बताना जरूरी है कि केवल रोगी ही नहीं, बल्कि स्वस्थ्य लोग भी ठीक रहने के लिए फिजियोथेरेपिस्ट की सलाह ले सकते हैं। मौजूदा समय में फिजियोथेरेपी काफी लोकप्रिय हुई है। इसकी लोकप्रियता और भरोसे का कारण यह भी है कि बाकी इलाज पद्धतियों से अलग फिजियोथेरेपी उच्च पेशेवर लोग ही करते हैं।
अस्थमा और फ्रैक्चर पीड़ितों के अतिरिक्त गर्भवतियों को भी फिजियोथेरेपी की सलाह दी जाती है। लगभग देश के हर बड़े अस्पताल में फिजियोथेरेपी की जाती है। वहीं, बुजुर्गों, मरीजों और कामकाजी लोगों के लिए घर तक फिजियोथैरेपी की सेवा पहुंचाने का भी चलन बढ़ा है। इसकी खास बात है कि फिजियोथेरेपिस्ट मरीज पर व्यक्तिगत तौर पर ध्यान देता है जो किसी हॉस्पिटल या क्लीनिक में संभव नहीं है। पेशवरों की निगरानी में व्यायाम कार्यक्रमों के चलन ने भी घर पर उपलब्ध होने वाली फिजियोथेरेपी सेवा की लोकप्रियता बढ़ा दी है।
सत्र पूरे करें
आपको फिजियोथेरेपी का लंबे समय तक फायदा मिले तो इसके सभी सत्र पूरे किए जाने जरूरी हैं। फिजियोथेरेपी शुरू करने से पहले उसकी अवधि की जानकारी ले लेनी चाहिए।
मशरूम काफी लोकप्रिय सब्जी है, जो बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, सभी की पसंदीदा है। इसमें और सब्जियों की तुलना में अधिक पोषक तत्व पाए जाते हैं। मशरूम में लाइसिन नामक अमीनो अम्ल अधिक मात्रा में होता है, जबकि गेहूं, चावल आदि अनाजों में इसकी मात्रा बहुत कम होती है। यह अमीनो अम्ल मानव के सन्तुलित भोजन के लिए आवश्यक होता है। मशरूम में मौजूद एंटी ऑक्सीडेंट हमें फ्री रेडिकल्स से बचाता है। यह एक प्राकृतिक एंटीबायोटिक है, जो माइक्रोबियल और अन्य फंगल संक्रमण को ठीक करता है।
मशरूम के फायदे
यह ब्लड प्रैशर जैसी बीमारी को भी नियंत्रित करने में मदद करता है। जो लोग इस बीमारी से परेशान हैं, उन्हें मशरूम का सेवन अवश्य करना चाहिए।
कार्बोहाइड्रेट की पर्याप्त मात्रा होने के कारण यह कब्ज, अपचन, अति अम्लीयता सहित पेट के विभिन्न विकारों को दूर करता है, साथ ही शरीर में कोलेस्ट्रॉल एवं शर्करा के अवशोषण को कम करता है।
मशरूम वह सब कुछ देगा, जो डायबिटीज रोगी को चाहिए। इसमें विटामिन, मिनरल और फाइबर होता है। इसमें फैट, कार्बोहाइड्रेट और शुगर भी नहीं होती, जो डायबिटीज रोगी के लिए जानलेवा है। यह शरीर में इन्सुलिन का निर्माण करता है।
इसमें लीन प्रोटीन होता है, जो वजन घटाने में बड़ा कारगर होता है। मोटापा कम करने वालों को प्रोटीन डाइट पर रहने को बोला जाता है, जिसमें मशरूम खाना अच्छा माना जाता है।
इसमें सोडियम सॉल्ट नहीं पाया जाता, जिस कारण मोटापे, गुर्दे तथा हृदयघात रोगियों के लिए आदर्श आहार है। हृदय रोगियों के लिए कोलेस्ट्रॉल, वसा एवं सोडियम सॉल्ट सबसे अधिक हानिकारक पदार्थ होते हैं।
मशरूम में लौह तत्व यूं तो कम मात्रा में पाया जाता है, लेकिन मौजूद होने के कारण रक्त में हीमोग्लोबिन के स्तर को बनाये रखता है। इसमें बहुमूल्य फॉलिक एसिड की उपलब्धता होती है, जो केवल मांसाहारी खाद्य पदार्थों से प्राप्त होता है। लौह तत्व एवं फॉलिक एसिड के कारण यह रक्त की कमी की शिकार अधिकांश ग्रामीण महिलाओं एवं बच्चों के लिए सर्वोत्तम आहार है।
मोदी ने कहा कि भविष्य की जरूरतों के लिए देश को आज तैयार करना गवर्नेंस का अहम दायित्व है। लेकिन कुछ दशक पहले जब शहरीकरण का असर और प्रभाव बिल्कुल साफ था उस समय अलग ही रवैया देश ने देखा।
नयी दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को दिल्ली मेट्रो की ‘मेजेंटा लाइन’ पर भारत की पहली चालक रहित मेट्रो का उद्घाटन किया। इसके साथ ही ‘एयरपोर्ट एक्सप्रेस लाइन’ पर ‘नेशनल कॉमन मोबिलिटी कार्ड’ सेवा भी शुरू की। सरकार ने कहा है कि चालक रहित ट्रेनें पूरी तरह से स्वचालित होंगी। उसने बताया कि 2021 के मध्य तक ‘पिंक लाइन’ पर मजलिस पार्क और शिव विहार के बीच चालक रहित मेट्रो सेवा की शुरुआत की जाएगी।
मोदी ने कहा कि भविष्य की जरूरतों के लिए देश को आज तैयार करना गवर्नेंस का अहम दायित्व है। लेकिन कुछ दशक पहले जब शहरीकरण का असर और प्रभाव बिल्कुल साफ था उस समय अलग ही रवैया देश ने देखा। देश की जरूरतों को लेकर उतना ध्यान नहीं था, आधे-अधूरे मन से काम होता था, भ्रम की स्थिति बनी रहती थी। 2014 में सिर्फ 5 शहरों में मेट्रो रेल थी। आज 18 शहरों में मेट्रो रेल की सेवा है। वर्ष 2025 तक हम इसे 25 से ज़्यादा शहरों तक विस्तार देने वाले हैं, साल 2014 में देश में सिर्फ 248 किलोमीटर मेट्रो लाइन्स आपरेशनल थीं। आज ये करीब तीन गुनी यानी सात सौ किलोमीटर से ज़्यादा है।
प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा कि इन नवाचारों से दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अन्य शहरों के निवासियों के लिए सुखद परिवहन और अनुकूल यातायात के एक नए युग का सूत्रपात होगा। दिल्ली में ‘एयरपोर्ट एक्सप्रेस लाइन’ पर ‘नेशनल कॉमन मोबिलिटी कार्ड’ सेवा पूरी तरह से शुरू होने से देश के किसी भी भाग से जारी किए गए ‘रुपे-डेबिट कार्ड’ का इस्तेमाल यात्रा के लिए किया जा सकता है। यह सुविधा दिल्ली मेट्रो के समूचे नेटवर्क पर 2022 तक उपलब्ध कराई जाएगी।
किसानों को संबोधित करते हुए नकवी ने कहा कि गांवों, किसानों और गरीब लोगों का सशक्तिकरण मोदी सरकार की प्राथमिकता है। नकवी का संबोधन किसानों पर पहुंच बनाने की भाजपा की राष्ट्रव्यापी अभियान का हिस्सा था।
रामपुर(उप्र)। भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने शुक्रवार को कहा कि मोदी सरकार किसानों के संरक्षण और संवर्धन के लिए प्रतिबद्ध है और पार्टी की सरकार में कृषि क्षेत्र में कोई कमीशन, कटौती और भ्रष्टाचार नहीं है। किसानों को संबोधित करते हुए नकवी ने कहा कि गांवों, किसानों और गरीब लोगों का सशक्तिकरण मोदी सरकार की प्राथमिकता है। नकवी का संबोधन किसानों पर पहुंच बनाने की भाजपा की राष्ट्रव्यापी अभियान का हिस्सा था।
नकवी ने यह संबोधन ऐसे दिन दिया जिस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नौ करोड़ से अधिक किसानों को 18,000 करोड़ रुपये हस्तांतरित किए और उन्हें संबोधित किया। नकवी ने कहा कि कुछ राजनीतिक दल, जिन्हें लोगों ने पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया है, सरकार द्वारा लाए गए ऐतिहासिक कृषि सुधार कानूनों को पचा नहीं पा रहे हैं और किसानों में भय पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं।
मैरी क्रिसमस:अपनेपन का अहसास कराने के लिए पॉपुलर हो रहे पर्सनल टच वाले गिफ्ट्स आइटम्स, खुशियां बांटने आया वॉक करने वाला सांता क्लॉज
क्रिसमस पर कोविड के डर से बच्चों को अपने साथ चर्च नहीं ले जाना चाहते हैं और किसी पब्लिक गेदरिंग से भी बच रहे हैं तो उन्हें टेलीस्कोप गिफ्ट करें
लोगों में इम्यूनिटी बूस्टर्स को लेकर बढ़े क्रेज को देखते हुए इस बार मार्केट में कुकीज और चॉकलेट हैम्पर्स के ऐसे कई पैक्स आए हैं जिन्हें आप ले सकते हैं
यह पूरा साल लोगों ने अपने घरों में कैद होकर बिताया है। दोस्तों से दूर, रिश्तेदारों से दूर तो क्रिसमस पर यह ध्यान जरूर रखें कि गिफ्ट ऐसा हो, जो आपके लिए उनके खास होने का अहसास करा सके। यही वजह है कि मार्केट में इस बार सेंटा क्लॉज और चॉकलेट्स से अलग पर्सनल टच वाले गिफ्ट्स खासे पॉपुलर हो रहे हैं। इन गिफ्ट में अपनेपन का अहसास भी है और यह बिना कुछ बोले यह भी कह जाते हैं कि हमें आपकी फिक्र है इसलिए अपना ख्याल रखें।
वॉक करता सेंटा
अक्सर आपने खड़े हुए सेंटा क्लॉज का स्टैच्यू देखा होगा, लेकिन इस बार इस स्टैच्यू में अपग्रेडेशन करते हुए इसमें इलेक्ट्रॉनिक मशीन फिट की गई है। ताकि सेंटा एक स्थान से दूसरे स्थान तक मैरी क्रिसमस की आवाज करता हुआ जा सके। यह आइटम सबसे ज्यादा आकर्षण में है।
टी-लाइट कैंडल्स वाले गिफ्ट्स
लॉकडाउन के बाद से लेकर अभी तक लोगों का काफी वक्त किचन एक्सपेरिमेंट्स में बीता है। अगर, आप किसी किचन लवर के लिए गिफ्ट सिलेक्ट कर रहे हैं तो खास कोटेशन और नाम लिखा हुआ वुडन चॉपिंग बोर्ड उन्हें गिफ्ट कर सकते हैं। यह अहसास दिलाएगा कि आपको सामने वाले की पसंद का बखूबी अंदाजा है।
हेल्दी गिफ्ट हैंपर
लोगों में इम्यूनिटी बूस्टर्स को लेकर बढ़े क्रेज को देखते हुए इस बार मार्केट में कुकीज और चॉकलेट हैम्पर्स के ऐसे कई पैक्स आए हैं, जिसमें दालचीनी, अदरक, काली मिर्च और कई तरह के गरम मसालों वाली कुकीज और चॉकलेट्स का कॉम्बिनेशन दिया गया है। 500 से लेकर 2000 की रेंज में उपलब्ध इन गिफ्ट हैम्पर्स को भी चुन सकते हैं।
बच्चों के लिए टेलीस्कोप
क्रिसमस पर कोविड के डर से बच्चों को अपने साथ चर्च नहीं ले जाना चाहते हैं और किसी पब्लिक गेदरिंग से भी बच रहे हैं तो उन्हें टेलीस्कोप गिफ्ट करें। घर की बालकनी या छत पर क्रिसमस डेकोरेशन करें और बच्चों के साथ इस टेलीस्कोप से तारों को नजदीक से देखें। मेटल के साथ वुडन जैसे कई वैरिएंट में उपलब्ध हैं। इस पर बच्चे का नाम भी लिखवा सकते हैं।
मुंहासे होना आम समस्या है और इससे छुटकारा पाने के लिए अधिकांश युवतियां टूथपेस्ट, नींबू आदि लगाती है, जो त्वचा को नुकसान भी पहुंचा सकते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि मुंहासा प्रभावित हिस्से को छूना भी नहीं चाहिए.
कई बार आंतरिक असंतुलन खासकर हार्मोन की वजह से मुंहासे निकलते हैं। आंतरिक समस्या से मुंहासे होने पर रक्त की जांच व अल्ट्रासाउंड से पता चल जाता है। मुंहासों से बचने के लिए संतुलित व स्वास्थ्यपरक आहार जैसे फलों, सब्जियों का सेवन करें।
कई लोगों का मानना होता है कि मुंहासे त्वचा के अधिक तैलीय होने के कारण निकलते हैं और वे कठोर साबुन या स्क्रब का इस्तेमाल करना शुरू कर देते हैं। सच्चाई यह है कि ज्यादा ड्राई स्किन मुंहासों को और बढ़ावा दे सकते हैं।
स्क्रब से मुंहासों में सूजन व लालिमापन आने की संभावन बढ़ जाती है और चेहरे में जलन महसूस हो सकती है।
मुंहासों के उपचार में तीन से लेकर छह महीने तक का समय लग सकता है। लोग अपना धैर्य खोने लगते हैं और नींबू, टूथपेस्ट या लहसुन का इस्तेमाल करते हैं, जो मुंहासों वाली त्वचा को और नुकसान पहुंचा सकते हैं।
चेहरे को रोजाना दो-तीन बार धोएं, अगर त्वचा में पर्याप्त मात्रा में मॉइश्चराइजर है तो फिर यह अपना ऑयल बाहर नहीं निकालता है, ऐसे में मुंहासे होने की संभावना नहीं होती है।
अपनी त्वचा को नियमित रूप से मॉइश्चराइज करें, जिससे त्वचा में नमी बनी रहे, अगर बारिश हो रही हो तो नॉन-वाटर बेस्ड मॉइश्चराइजर का इस्तेमाल करें, जिससे भीगने पर भी मॉइश्चराइजर त्वचा से पूरी तरह से नहीं निकले।
बैक्टीरिया को दूर रखने के लिए चेहरे पर कुछ क्रीम आदि लगाते समय अपने हाथ जरूर धो लें। प्रभावित हिस्से को लगातार छूने से बैक्टीरिया के फैलने की संभावना होती है, जिससे और मुंहासे निकल सकते हैं।
टी (चाय) ट्री तेल जीवाणु रोधी और एंटी फंगल होता है और यह तैलीय त्वचा के लिए उपयुक्त होता है। मुंहासों से बचने के लिए इस तेल का इस्तेमाल किया जा सकता है।
आजकल युवा महिलाओं में भी स्तन कैंसर के मामले सामने आ रहे हैं। कई बार इसका पता देर में चलता है जिससे वह लाइलाज हो जाता है पर 3डी मैमोग्राफी युवा महिलाओं में स्तन कैंसर को पकड़ने में कारगर नजर आ रहा है।
स्तन कैंसर के बढ़ते मामलों में युवा महिलाएं भी इसकी चपेट में आ रही हैं। ऐसे में 3डी मैमोग्राफी युवा महिलाओं विशेषज्ञों के अनुसार 'स्तन कैंसर क्यों हो रहा है, इसके कारणों का हालांकि अभी पता नहीं लग पाया है, लेकिन यह तय है कि जितनी जल्दी इसका पता लगाया जाता है, ठीक होने के अवसर उतने ही बढ़ जाते हैं।
परंपरागत तौर पर मैमोग्राफी 2 डायमेंशनल ही होती है, जो ब्लैक एंड व्हाइट एक्सरे फिल्म पर परिणाम देती है।है. इसके साथ ही इन्हें कंप्यूटर स्क्रीन पर भी देखा जा सकता है। वहीं 3डी मैमोग्राम में ब्रेस्ट की कई तस्वीरें विभिन्न एंगलों से ली जाती हैं, ताकि एक स्पष्ट और अधिक आयाम की छवि तैयार की जा सके।
इस तरह के मैमोग्राम की जरूरत इसलिए है, क्योंकि युवावस्था में युवतियों के स्तन के ऊतक काफी घने होते हैं और सामान्य मैमोग्राम में कैंसर की गठान का पता नहीं लग पाता है। 3डी मैमोग्राम से तैयार किए गए चित्र में स्तन के टिश्यू के बीच छिपी कैंसर की गठान को भी पकड़ा जा सकता है।
3डी मैमोग्राम के और कई फायदे हैं, जैसे कि ब्रेस्ट कैंसर की गठान का जल्द से जल्द पता लगाकर उसका इलाज करना ही मैमोग्राम का मुख्य उद्देश्य है। इसके लिए 3डी इमेजिंग को काफी कारगर माना जाता है।
3डी मैमोग्राम की तस्वीरों और सीटी स्कैनिंग में काफी समानता है और इसमें मरीज को परंपरागत मैमोग्राफी की तुलना में काफी कम मात्रा में रेडिएशन का सामना करना पड़ता है।
40 से अधिक उम्र वाली महिलाएं करायें मैमोग्राफी
चालीस साल की उम्र के आसपास पहुंच रहीं महिलाओं को हर साल मैमोग्राफी करने की सलाह दी जाती रही है लेकिन अब उन्हें 3-डी इमेजिंग तकनीक का सहारा लेना चाहिए। इस तकनीक का फायदा हर उम्र की महिलाओं को मिल सकता है, लेकिन युवावस्था में कैंसर की गठान यदि पकड़ में आ जाती है तो उसका कारगर इलाज करके जान बचाई जी सकती है।
इसलिए होती है खास 3डी तकनीक
दरअसल, 3डी मैमोग्राफी करने का तरीका बिल्कुल 2डी मैमोग्राफी की ही तरह होता है। इसमें महिला के स्तन को एक्सरे प्लेट और ट्यूबहेड के बीच रखकर कई एंगल से अनेक तस्वीरें ली जाती हैं। इस तरह की तस्वीरों को स्लाइसेस कहा जाता है। इतने बारीक अंतर से स्तन के फोटो स्लाइसेस बनाए जाते हैं कि छोटी से छोटी कैंसर की गठान भी दिखाई देने लगती है।
सामाजिक कार्यकर्ता और बलोच स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन की अध्यक्ष करीमा बलोच ने साल 2016 में रक्षाबंधन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना भाई बताया था और राखी भेजी थी।
पाकिस्तान के अत्याचारों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता करीमा बलोच कनाडा में मृत पाई गई हैं। खबर लिखे जाने तक करीमा बलोच की मौत कैसे हुई है, इसकी कोई जानकारी नहीं मिली है। बता दें कि करीमा बलोच रविवार से लापता थीं फिर अचानक कनाडा में उनका मृत शरीर पाया गया।
प्रधानमंत्री मोदी को बताया था अपना भाई
सामाजिक कार्यकर्ता और बलोच स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन की अध्यक्ष करीमा बलोच ने साल 2016 में रक्षाबंधन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना भाई बताया था और राखी भेजी थी। इसके साथ ही उन्होंने एक भावुक वीडियो भी साझा किया था। जिसमें उन्होंने कहा था कि मैं एक बहन के तौर पर आपसे कुछ कहना चाहती हूं। बलूचिस्तान में कई भाई लापता हैं और कई भाई तो पाकिस्तानी सेना के हाथों मारे गए हैं। आज भी बहनें अपने लापता भाईयों की राह देख रही हैं। हम आपसे ये कहना चाहते हैं कि बलूचिस्तान की बहनें आपको अपना भाई मानती हैं। आप बलोच नरसंहार, युद्ध अपराध और मानवाधिकार हनन के खिलाफ अंतराष्ट्रीय मंचों अपनी बलोच बहनों की आवाज बनें।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक करीमा बलोच रविवार शाम को लापता हो गई थीं जिसके बाद से पुलिस उनकी तलाश कर रही थी। बताया जा रहा है कि रविवार को करीमा बलोच को अंतिम बार एक अंजाम व्यक्ति के साथ जाते हुए देखा गया था।
पाकिस्तानी सेना के खिलाफ बुलंद की थी आवाज
करीमा बलोच ने संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तानी सरकार और सेना द्वारा बलूचिस्तान में किए जा रहे अत्याचारों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की थी। ऐसे में बलोच की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत के बाद पाकिस्तानी सरकार, सेना और वहां की खुफिया एजेंसी आईएसआई पर संदेश जताया जा रहा है। हालांकि, अभी कुछ कह पाना मुमकिन नहीं है।
100 प्रेरणादायक महिलाओं में थी शामिल
करीमा बलोच को साल 2016 में 100 प्रेरणादायक और प्रभावशाली महिलाओं की सूची में शामिल किया गया था। करीमा बलूच बलूचिस्तान की जानी मानी हस्तियों में से एक थीं। जो लगातार बलूचिस्तान में पाकिस्तान द्वारा किए जा रहे अत्याचारों को प्रमुखता से उठाती थीं। करीब साल भर पहले दिए गए एक साक्षात्कार में करीमा बलोच ने पाकिस्तान पर बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों को छीनकर बलूच के लोगों को प्रताड़ित करने के भी आरोप लगाए थे।
जायफल (न्यूटमैग) एक सदाबहार वृक्ष है, जो इण्डोनेशिया के मोलुकास द्वीप में पाया जाता है। इसका इस्तेमाल ज्यादातर भारतीय घरों में छोटे बच्चों के लिए किया जाता है, ताकि उनके द्वारा खाए जाने वाले खाने को आसानी से पचाया जा सके। दक्षिण भारत के कुछ घरों में इसका इस्तेमाल मसाले के तौर पर किया जाता है। इसका वानस्पतिक नाम मिरिस्टिका फ्रैगरैंस है। इसकी लगभग 80 जातियां हैं, जो भारत, आस्ट्रेलिया और प्रशांत महासागर के द्वीपों में पाई जाती हैं।
जायफल का उपयोग आमतौर पर कई प्रकार की स्वास्थ्य स्थितियों के लिए किया जाता है:
अनिद्रा या नींद न आने की समस्या को दूर करने में यह काफी लाभकारी होता है। इसका लाभ लेने के लिए सोने से पहले एक गिलास गर्म दूध में चुटकी भर इसका पाउडर मिलकार पीने से फायदा मिलता है।
गठिया की समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है। गठिया होने के कई कारण भी होते हैं। गठिया होने पर प्रभावित जगह पर इसके तेल से मालिश करना चाहिए या जायफल का सेवन करना चाहिए। जायफल में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो गठिया के दर्द और सूजन से राहत दिलाने में मदद कर सकते हैं।
दांतों में कैविटी की समस्या होने पर इससे उनका उपचार किया जा सकता है। इसमें एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं, जो मुंह के स्वास्थ्य और दांतों की सड़न की समस्या को दूर कर सकते हैं।
कैंसर से घरेलू बचाव के तौर पर इसका सेवन किया जा सकता है। जायफल का एसेंशियल ऑयल एक एंटीऑक्सीडेंट के रूप में कार्य करता है। जो कैंसर की रोकथाम के लिए मददगार हो सकता है। इसके अलावा, इसमें मौजूद एंटी-माइक्रोबियल पेट के कैंसर से भी बचाव करते हैं।
पाचन विकारों का इलाज (दस्त, मतली, पेट में ऐंठन और दर्द, आंतों की गैस)
इसमें ऐसे रसायन होते हैं, जो केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित कर सकते हैं। जायफल पर हाल ही में हुए शोध के मुताबिक, यह शरीर में पैदा होने वाले बैक्टीरिया और कवक को भी मार सकता है। इस हर्बल सप्लीमेंट की खुराक हर मरीज के लिए अलग हो सकती है। आपके द्वारा ली जाने वाली खुराक आपकी उम्र, स्वास्थ्य और अन्य कई चीजों पर निर्भर करती है। हर्बल सप्लीमेंट हमेशा सुरक्षित नहीं होते हैं। ।
अगर आप गर्भवती हैं या फिर शिशु को स्तनपान करवा रही हैं, तो इसका सेवन करने से पहले एक बार डॉक्टर से सलाह अवश्य लें। ऐसा इसलिए है कि गर्भावस्था में महिला को खानपान का ध्यान रखना जरूरी है, ऐसे में अगर जायफल का सेवन किया जाए, तो कई बार यह नुकसानदायक साबित हो सकता है। इसलिए एक बार डॉक्टर से सलाह अवश्य लें।
अगर आपको किसी तरह की एलर्जी या दवाई से नुकसान है, तो जायफल का सेवन बिना डॉक्टर के सुझाव के न करें।
आपको कोई अन्य बीमारी, विकार या कोई चिकित्सीय उपचार चल रहा है तो इसका सेवन न करें।
यदि आपको किसी तरह के खाने, जानवर या सामान से एलर्जी है, तो जायफल का सेवन करने से बचना चाहिए।
120 मिलीग्राम या उससे अधिक जायफल की खुराक रोजाना लंबे समय तक लेने से मतिभ्रम और अन्य मानसिक दुष्प्रभाव हो सकते हैं।चक्कर आना, अनियमित धड़कन, दिमाग की क्षति और मृत्यु तक हो सकती है।
लिवर के लिए- शोधकर्ताओं के मुताबिक, अधिक मात्रा में जायफल का इस्तेमाल करने से पहले एक बार डॉक्टर से सलाह जरूर लीजिए। लिवर की दवाओं के साथ अगर जायफल का इस्तेमाल किया जाए, तो यह दवाओं को बेसर कर सकता है। जायफल के साथ अगर लिवर की दवाएं ली जाएं, तो इसके कई तरह के दुष्प्रभाव हो सकते हैं, इसलिए इसका सेवन करने से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर लीजिए।
लिवर की बीमारी में ली जाने वाली इन दवाओं में क्लोरजोक्साजोन, थियोफिलाइन, बुफ़्यूरोल, क्लोजापाइन (क्लोजारिल), साइक्लोबेनजाप्रिन (फ्लेक्सेरिल), फ्लुवोक्सामाइन (ल्यूवोक्स), हेलोपरिडोल (हल्डोल), इमीप्रामीन (टॉफ़्रेनिल), मैक्सिलम, मैक्सिकन ), पेंटाजोसिन (टैल्विन), प्रोप्रानोलोल (इंडेरल), टैक्राइन (कॉग्नेक्स), थियोफिलाइन, जाइलुटोन (जायलो), जोलमिट्रिप्टन (जोमिग) शामिल हैं।
जायफल निम्नलिखित रूपों में उपलब्ध हो सकता है:
जायफल का पाउडर
मैंगोस्टीन एक फल है। जिसका वैज्ञानिक नाम गार्सिनिया मैंगोस्टाना है। यह एक उष्णकटिबंधीय फल है जिसका स्वाद थोड़ा खट्टा-मीठा होता है। मैंगोस्टीन को फलों की रानी भी कहा जाता है। यह बैंगनी रंग का होता है। इसे दूसरे नामों से भी जाना जाता है। हिंदी में इसे मैंगोस्टीन कहा जाता है। तेलुगु में ‘इवारुममिडी’ कहते हैं, बंगाली में ‘काओ', मलयालम में ‘कट्टम्पी', कन्नड़ में ‘मुरुगला हन्नू’, गुजराती में ‘कोकम’ के नाम से जाना जाता है। मैंगस्टीन सेहत के लिहाज से अच्छा फल है। इसमें सभी प्रकार के पोषक तत्व और खनिज पदार्थ पाए जाते है। मैंगोस्टीन ब्लड प्रेशर, कैंसर को रोकने और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। इसके फल के साथ पपड़ी, टहनी और छाल का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है।
यह फल मुख्य रूप से दक्षिण पूर्व एशिया और भारत मे केरला राज्य मे पाया जाता है। इसका पेड़ 6 मीटर से लेकर 25 मीटर तक लंबा हो सकता है। इसके फल का इस्तेमाल मिठाई बनाने के लिए भी किया जाता है।
मैंगोस्टीन में टैनिन पाया जाता है। टैनिन डायरिया के इलाज में काम आता है। वहीं, इसमें जैनथोंस पाया जाता है, जिसमें एंटीबायोटिक, एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं। इसलिए इसका प्रयोग यूरेनरी ट्रैक इंफेक्शन के इलाज में भी किया जाता है। पारंपरिक चिकित्सा में इस पौधे के अनेक भागो का इस्तेमाल किया जाता है। जो स्किन इंफेक्शन, घाव, पेचिश, टीबी, कैंसर, गठिया रोग और आंत से जुड़ी समस्याओं के इलाज में मददगार होता है। इसके साथ ही, इस फल का इस्तेमाल इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने और मेंटल हेल्थ को बेहतर बनाने के लिए भी किया जाता है।
इसके अलावा, कुछ लोग इस फल को सीधा स्किन से जुड़ी समस्याओं जैसे एग्जिमां के लिए भी इस्तेमाल करते हैं। आमतौर पर इसका इस्तेमाल मिठाई बनाने और जाम बनाने के लिए किया जाता है। हालांकि, आप इसका इस्तेमाल हेल्थ ड्रिंक के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है। इससे बनाए गए जूस को मार्केट में जैंगो जूस के नाम से बेचा जाता है। कुछ मार्केटर्स का दावा है कि जैंगो जूस दस्त, मासिक धर्म की समस्याओं, मूत्र पथ के संक्रमण, टीबी और अन्य कई प्रकार का इलाज कर सकता है।
इस फल के रस, प्यूरी या छाल का इस्तेमाल कैंसर के उपचार के लिए प्रभावी होता है। हालांकि ये शरीर के अंदर कैसे काम करता है, इसकी कोई वैज्ञानिक पुष्टि नहीं है। इसके अलावा मैंगोस्टीन में पोषक तत्वों की भरमार है। एक कप मैंगोस्टीन में ये पोषक तत्व पाए जाते हैं।
कैलोरी : १४३ कार्बोहाइड्रेट : 35 ग्राम फाइबर : 3.5 ग्राम फैट : 1 ग्राम प्रोटीन की मात्रा : 1 ग्राम विटामिन-सी : विटामिन-बी9 : 15 फीसदी आरडीआई विटामिन-बी1 : 7फीसदी आरडीआई विटामिन-बी 2 : 6 फीसदी आरडीआई
मैगनीज : 10 फीसदी आरडीआई कॉपर : 7फीसदी आरडीआई मैग्नीशियम : 6फीसदी आरडीआई
मैंगोस्टीन का उपयोग कई तरह के रोगों में किया जाता है। इसमें सबसे ज्यादा एंटी-ऑक्सीडेंट पाए जाते हैं। इसमें प्राकृतिक रूप से पॉलीफेनोल पाया जाता है जो जैंथोन के नाम से जाना जाता है। मैंगोस्टीन में जेन्थोन्स-एल्फा मैंगोस्टीन और गामा मैंगोस्टीन होते हैं। ये तनाव को कम करने के काम आता है। ये एंटीऑक्सीडेंट शरीर को कई प्रकार के इंफेक्शन से बचाते हैं। साथ ही हृदय रोग, सर्दी और कैंसर का रिस्क कम करने में मदद करता है। इसके अलावा मैंगस्टन इन समस्याओं के लिए भी फायदेमंद होता है :पेचिश डायरियायूरेनरी ट्रैक इंफेक्शन सूजाक थ्रश एक्जिमा पीरियड्स में अनियमितता अल्जाइमर रोग , मसूड़ों संबंधी समस्या
मैंगोस्टीन हर जगह नहीं मिलता है। यह एक मौसमी फल है और यह सिर्फ गर्मियों में होता है। इसलिए इसकी उपलब्धता काफी सीमित है। आपके इसे विशेष एशियाई बाजारों से खरीद सकते हैं। ये जमे हुए या डिब्बे में बंद रूपों में भी बाजार में मौजूद है। मैंगस्टन का छिलका चिकना और गहरे बैंगनी रंग का होता है। जो खाने योग्य नहीं होता है। इसे आप चाकू के जरिए आसानी से हटा सकते हैं। इसके अंदर सफेद और रसदार गूदा होता है। आप गूदे का सेवन कर सकते हैं।
मैंगोस्टीन का उपयोग करना पूरी तरह सुरक्षित है। बस इसे गर्भवती महिला और कुछ विशेष दवाओं का सेवन करने वालों को खाने से बचना चाहिए। इसके अलावा, ज्यादा मात्रा में इस फल का सेवन करने से आपको पाचन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। कुछ लोगों को मैंगोस्टीन से एलर्जी भी हो सकती है। वहीं, गर्भवती महिलाओं द्वारा सेवन करने से भ्रूण को नुकसान पहुंच सकता है। इसलिए अगर आप इस फल का सेवन कर रहे हैं तो अपने डॉक्टर या हर्बलिस्ट ले बात जरूर कर लें।
मैंगोस्टीन का हर उम्र के लोगों के लिए सुरक्षित है। लेकिन, इसका मतलब ये नहीं है कि इसका सेवन ज्यादा से ज्यादा खाया जाए। निश्चित मात्रा का सेवन आपके लिए पूरी तरह से सुरक्षित है।
मैंगोस्टीन का अधिक सेवन करने से कुछ साइड इफेक्ट्स भी सामने आए हैं :पाचन संबंधी समस्याएं ,दस्त या पेट दर्द की समस्या
रक्त के थक्के बनने की प्रक्रिया को धीमा कर सकते हैं
मैंगस्टीन में एंटीऑक्सीडेंट पाया जाता है। यदि आप कीमोथेरेपी ले रहे हैं तो दवाओं के साथ इसका सेवन आपके शरीर पर प्रभाव डाल सकता है। इसके अलावा, हिस्टामिन रोधी दवाओं के साथ इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए।
मैंगोस्टीन की खुराक के बारे में कोई खास वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं है। लेकिन, इसका सेवन उम्र, स्वास्थ्य स्थिति आदि के आधार पर करना चाहिए। इसलिए आप अपने डॉक्टर या हर्बलिस्ट से बात कर के ही मैंगोस्टीन का सेवन करें।
मैंगोस्टीन निम्न रूपों में उपलब्ध हैःजूस, फल ,डिब्बे में बंद टुकड़े
किडनी हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है जो सभी विषैले तत्वों को बाहर निकालती है। वहीं अगर किडनी में संक्रमण होने लगे तो शरीर बीमार होने लगता है, किडनी अगर फेल हो जाए जान भी जा सकती है। ऐसे में किडनी ट्रांसप्लांट ही एकमात्र विकल्प रहता है। इसलिए किडनी को सुरक्षित रखने के लिए हमे कुछ सावधानियां बरतनी चाहिये।
आमतौर पर डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और मोटापे की वजह से किडनी फेल होने का खतरा रहता है। ऐसे में इस बीमारी से बचने के लिए सावधानी सबसे ज्यादा जरूरी है। किडनी को दुरुस्त रखने के लिए स्वास्थ्य विशेषज्ञ पांच चीजों से बचने की सलाह देते हैं, जो कि काफी उपयोगी है।
विशेषज्ञों ने कहा कि किडनी फेल होने की स्थिति में डायलिसिस और किडनी प्रत्यारोपण की स्थिति न आए इसलिए यह जरूरी है कि किडनी को लेकर शुरू से ही सावधानी बरती जाए। विशेषज्ञों के अनुसार, नमक, चीनी, तनाव , धुम्रपान और सुस्त जीवन शैली के कारण किडनी को काफी नुकसान पहुंचता है। इसलिए इन सभी चीजों से दूर रहने का प्रयास करें
किडनी की बीमारी अंतिम चरण में पहुंच जाए यानी वह काम करना बंद कर दे तो डायलिसिस और प्रत्यारोपण जैसे इलाज बेहद महंगे पड़ते हैं। इसलिए संतुलित जीवनशैली के जरिये किडनी को रोगों से बचा कर रखना ही सबसे सही रास्ता है।
हमारे शरीर में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं हमारे कान। जीवनशैली ने हमारे शरीर के अन्य अंगों की तरह कानों को भी प्रभावित किया है। अधिक तेज स्वर में संगीत सुनने, ईयरफोन पर घंटों गाने सुनने और कहीं लाउडस्पीकर, डी जे आदि के पास से गुजरने के कारण कान की बाहरी परत क्षतिग्रस्त हो जाती है। इस कारण सुनने की क्षमता कम हो जाती है। कानों की समस्याएं युवाओं में अधिक देखी जा रही हैं। इनमें सबसे खतरनाक बीमारी है बहरापन।
तैरते समय रहें सावधान
स्विमिंग पूल में बालों को ही नहीं, कानों को भी नुकसान होता है। पूल में पानी को साफ रखने के लिए क्लोरीन का प्रयोग किया जाता है, जो कानों में चला जाता है। इससे कानों में दर्द होना या तरल पदार्थ बहने की समस्या हो सकती है। इससे बचने के लिए ईयर प्लग का इस्तेमाल करना जरूरी है।
शोर-शराबे से दूरी
मशीनों, फैक्ट्रियों और खासतौर पर ऑटोमोबाइल से निकलने वाले शोर के कारण वातावरण में ध्वनि प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है। इस कारण सुनने की क्षमता कम हो रही है।
कान में संक्रमण के कारण
कान में संक्रमण की समस्या भी हो सकती है। कान में आसानी से तरल पदार्थ प्रवेश कर सकता है। कानों में संक्रमण के कारण खसरा आदि बीमारियां हो सकती हैं। इनसे सुनने की क्षमता प्रभावित होती है। इसलिए जब भी कान में तरल पदार्थ चला जाये तो कानों को अच्छे से साफ जरूर करें।
चोट लगने के कारण
अगर कान में किसी तरह की चोट लग गई है तो इस कारण भी सुनने की क्षमता कम हो जाती है। वाहन चलाते समय कोई दुर्घटना होने से भी कान में अचानक तेज दर्द हो तो कान के पर्दे की जांच जरूरी हो जाती है।
सावधानी
कभी-कभी तो बहरापन इतना ज्यादा गंभीर हो जाता है कि रोगी को अपनी जान से हाथ भी धोना पड़ सकता है। सड़क पर चलते समय बहरेपन की वजह से ज्यादा हादसे होते हैं, क्योंकि गाड़ियों की आवाज ना सुनाई देने के कारण ऐसे व्यक्ति हासदे की चपेट में आ जाते हैं। इसलिए समय रहते किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाएं।
क्या हैं उपाय
संक्रमण की वजह से सुनने की क्षमता में कमी आई है तो इसे दवा से ठीक किया जा सकता है।
अगर पर्दे को नुकसान हो गया है तो सर्जरी करानी पड़ती है। कई बार पर्दा क्षतिग्रस्त होने पर दवाओं से भी इलाज हो जाता है।
नसों में आई किसी कमी की वजह से सुनने की क्षमता में कमी आए तो उस नुकसान की भरपाई नहीं हो सकती। इस कमी को पूरा करने के लिए हिर्यंरग एड का ही इस्तेमाल करना होता है। हिर्यंरग एड फौरन राहत देता है और समस्या को बढ़ने से भी रोकता है।
सुनने की क्षमता में कमी जन्मजात भी हो सकती है। इसलिए जन्म के समय ही बच्चे की सुनने की क्षमता की जांच होनी चाहिए। इससे सुनने की क्षमता को लेकर बच्चे का समय पर उपचार हो जाता है।
नियमित जांच
अगर कान की कोई समस्या नहीं है तो आंखों की तरह कानों की नियमित जांच की जरूरत नहीं होती।
कुछ डॉक्टर मानते हैं कि अगर आपकी उम्र 30 से 45 साल के बीच है तो दो साल में एक बार कानों की जांच करा लेनी चाहिए।
50 साल की उम्र के आसपास कान की नसें कमजोर होने की शिकायत हो सकती है। इसलिए 50 साल के बाद साल में एक बार कानों का चेकअप करा लें।
अगर आप बुढ़ापे में भूलने की बीमारी से परेशान होना नहीं चाहते तो अभी से ही कुछ अच्छे शौक पालना शुरू कर दीजिए। वैज्ञानिकों ने एक शोध में पाया है कि जवानी में किताबें पढ़ना, खेलना और आपसी मेलजोल की आदतों से बुढ़ापे में भी दिमाग शक्तिशाली बना रहता है। इससे डिमेंशिया का जोखिम भी कम होता है।
ब्रिटेन के कैंब्रिज विश्वविद्यालय के अध्ययन में पाया कि उम्र के साथ-साथ दिमाग का आकार भी छोटा होता जाता है, लेकिन कुछ लोगों की स्मरण शक्ति और आईक्यू उम्र बढ़ने के बावजूद अच्छी बनी रहती है। शोधकर्ताओं का मानना है कि युवावस्था में दिमाग को ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करने से वह आगे भी लचीला बना रहता है। ‘न्यूरोबायोलॉजी ऑफ एजिंग जर्नल’ में प्रकाशित इस अध्ययन से जुड़े डॉक्टर डेनिस चान का कहना है, ‘हमारा दिमाग कुछ हार्डवेयर के साथ ही शुरुआत करता है, लेकिन इसे ज्यादा अधिक मजबूत बनाया जा सकता है। इसे संज्ञानात्मक रिजर्व कहा जाता है।’ उनका कहना है कि 35 से 65 साल के बीच आप जो कुछ करते हैं, उससे 65 की उम्र के बाद डिमेंशिया का जोखिम कम या ज्यादा होता है।
205 लोगों के दिमाग का अध्ययन किया :
शोधकर्ताओं ने 66 से 88 साल की उम्र के 205 लोगों के दिमाग का एमआरआई किया। इसके बाद उनका आईक्यू टेस्ट लिया गया और उनके शौक के बारे में पूछा गया। उनके शौक को बौद्धिक, शारीरिक और सामाजिक गतिविधियों की तीन श्रेणियों में बांटा गया। शोध में पाया गया कि जवानी में की गई गतिविधियों से बाद में उनका आईक्यू निर्धारित हुआ। उन्होंने यह भी पाया कि जो लोग शुरुआत में ज्यादा गतिविधियों में लगे रहे, वे अपने आईक्यू को बरकरार रखने के लिए अपने दिमाग के आकार पर कम निर्भर थे।
ज्यादा चुनौतीपूर्ण काम आईक्यू के लिए अच्छा :
इससे पहले अन्य शोध में पाया गया था कि जो लोग शिक्षा में ज्यादा समय बिताते हैं या फिर ज्यादा चुनौतीपूर्ण काम करते हैं, उनका आईक्यू ज्यादा बेहतर होता है। इन लोगों में बाद में डिमेंशिया का खतरा भी कम होता है। डॉक्टर चान इस अध्ययन से काफी उत्साहित हैं। उनका कहना है कि हर कोई अपनी गतिविधियों को बढ़ा सकता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या काम करते हैं या कहां रहते हैं। परिजनों से बात करना या किताब पढ़ने में कुछ खर्च नहीं होता। यह सब आदतें आपके लिए अच्छी हैं।