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स्वस्थ शरीर और स्वस्थ रहने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है लीवर का स्वस्थ रहना. लीवर हमारे शरीर का एक अहम हिस्सा है, जो हमारे शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करता है. आपको बता दें कि लीवर को स्वस्थ रख के हम कई बीमारियों से भी बचे रहते हैं. लीवर कार्बोहाइड्रेट को स्टोर करने से लेकर प्रोटीन बनाने, पोषक तत्वों को अवशोषित करने और यहां तक कि पित्त बनाने में भी लीवर की अहम भूमिका होती है. अगर हमारे लीवर में कोई कमी आ जाती है. तो हमारे शरीर के बाकी अंगों पर भी नुकसान होना शुरू हो जाता है. लीवर पूरे शरीर को डिटॉक्स करता है, लीवर शरीर के विषैले पदार्थों को बाहर निकालने का भी काम करता है. लीवर को हेल्दी रखने के लिए सबसे जरूरी है हेल्दी डाइट. आपको बता दें कि लीवर हेल्दी रखा जा सकता है वो भी डाइट में कुछ चीजों को शामिल करके. तो चलिए आज हम आपको ऐसे फूड्स के बारे में बता रहे हैं जो आपके लीवर को हेल्दी रख सकते हैं.

लंदन । ताजा अध्ययन के मुताबिक बिल्लियों में पाया जाने वाला एक परजीवी इंसानों में कैंसर का कारण का बन रहा है जो बिल्लियों से फैलता है लेकिन मांस के जरिए इंसानों में संक्रमण लाता है। इसलिए वैज्ञानिकों ने बिल्ली पालने वालों को विशेष रूप से सावधान रहने को कहा है। वैज्ञानिक काफी समय पहले से टी गोंडी नाम के परजीवी को लेकर भ्रमित थे। वे ठीक तरह से समझ नहीं पा रहे थे कि इसकी स्कीजोफ्रेनिया सहित मानसिक बुखार में क्या भूमिका है।
सौ से अधिक अध्ययनों से यह पता नहीं चल सका है कि परजीवी मानसिक बीमारी से कोई संबंध है। लेकिन इस अध्ययन ने कुछ अलग ही बातें पर रोशनी डाली है। टी गोंडी न तो कोई बैक्टीरिया है और ना ही वायरस। यह एक कोशिकीय सूक्ष्यजीवी है जो उस परजीवी का दूर का संबंधी है जो मलेरिया फैलाता है। बिल्लियों में टी गोंडी परजीवी से टैक्सोप्लास्मोसिस बीमारी होती है। यह परजीवी बिल्लियों के शरीर में कुतरने वाले जानवरों, पक्षियों और दूसरे जानवर खाने से आता है। आंकलन बताते हैं कि अमेरिका में 40 प्रतिशत बिल्लियां संक्रमित हैं। इनमें से ज्यादातर में संक्रमण के लक्षण लेकिन। यदि परजीवी लीवर या नर्वस सिस्टम तक पहुंच गया तो वे पीलिया और अंधेपन जैसी बीमारी भी विकसित कर सकते हैं और उनके बर्ताव तक में बदलाव देखा जाता है। संक्रमण के पहले कुछ सप्ताह में बिल्लियां अपने आसपास मलत्याग द्वारा लाखों परजीवी के अंडे रोज पैदा करने लगती हैं इससे कुछ लोगों में तो घरेलू बिल्लियों से सीधे टोक्सोप्लास्मोसिस संक्रमण आ जाता है, बहुत से लोगों में यह बिल्लियों या उनके मल के पानी और मिट्टी में मिलने से होता है जहां ये परजीवी एक साल तक जिंदा रह सकते हैं। वैसे तो अमेरिका में 11 प्रतिशत लोग ही टी गोंडी से संक्रमित हैं, लेकिन यह दर उन इलाकों में बहुत ज्यादा है जहां लोग कच्चा मांस ज्यादा खाते हैं या जहां साफ सफाई ठीक नहीं है।
यूरोप और अमेरिका में तो कई जगह यह दर 90 प्रतिशत से ज्यादा है। स्वस्थ लोगों में टेक्सोप्लास्मोसिस फ्लू जैसी बीमारी पैदा करता है या फिर किसी तरह के लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। लेकिन कई बार कमजोर प्रतिरोधी तंत्र वालों लोगों में यह घातक होकर जानलेवा हो जाता है। एंटीबायोटिक संक्रमण का इलाज कर सकते हैं, लेकिन दवाइयां परजीवियों से पूरी तरह से मुक्त नहीं कर पाती है।ऐसे में सवाल यह है कि वैज्ञानिक आखिरी इस सबको मानसिक बीमारी से क्यों जोड़ रहे हैं। जिन कुतरने वाले जीवों से संक्रमण फैल रहा है। बिल्लियों के मूत्र को सूंघ नहीं पाते और उनके खतरे को नहीं भाप पाते हैं और बिल्लियों के शिकार हो जाते हैं।
वैज्ञानिकों को लगता है कि टी गोंडी दिमाग में गांठ बनाकर उसकी काम करने में बदलाव ला देते हैं। इससे जोखिम लेने वाली प्रवृत्ति बढ़ाने वाले तत्व जोपामाइन का स्तर भी बढ़ने लगता है।यही परजीवी इंसानी न्यूरोन में भी गांठें बनाता है। जो बढ़ने के बाद इंसानों में दिमागी जलन, डिमेंटिया और साइकोसिस जैसे खतरनाक स्थितियां तक पैदा कर सकता है। मालूम हो ‎कि आमतौर पर बिल्लियां इंसान को नुकसान नहीं पहुंचाती। बिल्ली का मांस भी लोग नहीं खाते जिससे कोई बीमारी बिल्लियों से फैलती हो। लेकिन ताजा शोध इससे कुछ अलग ही बात कह रहा है।

विज्ञान एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) ने 40 संस्थानों में किए गए अखिल भारतीय सीरोसर्वे के आधार पर धूम्रपान करने वालों और शाकाहारियों में कोरोना संक्रमण का खतरा कम होने का संकेत दिया है।

सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि ‘ओ’ रक्त समूह वाले लोग संक्रमण के प्रति कम संवेदनशील हो सकते हैं, जबकि ‘बी’ और ‘एबी’ रक्त समूह वाले लोग अधिक जोखिम में हो सकते हैं। सीएसआईआर ने सार्स-कोव-2 के प्रति एंटीबॉडी की मौजूदगी का आकलन करने के अपने अध्ययन के लिए प्रयोगशालाओं में काम करने वाले 10427 वयस्कों और उनके परिवार के सदस्यों के स्वैच्छिक आधार पर नमूने लिए।

सीएसआईआर-इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (आईजीआईबी), दिल्ली की ओर से संचालित अध्ययन में कहा गया है कि 1058 (10.14 प्रतिशत) प्रतिभागियों में सार्स-कोव-2 से लड़ने वाले एंटीबॉडी मौजूद थे।

शोधकर्ता शांतनु सेनगुप्ता ने कहा कि नमूनों में से 346 सीरो पॉजिटिव व्यक्तियों की तीन महीने के बाद की गई जांच में पता चला कि उनमें सार्स-कोव-2 के एंटीबॉडी तो मौजूद थे, लेकिन वायरस को बेअसर करने के लिए प्लाज्मा गतिविधि में गिरावट देखी गई।

35 व्यक्तियों के छह महीने में दोबारा नमूने लिए जाने पर एंटीबॉडी के स्तर में तीन महीने की तुलना में गिरावट नजर आई, जबकि बेअसर करने वाली एंटीबॉडी का स्तर स्थिर देखा गया। हालांकि, सामान्य एंटीबॉडी के साथ ही बेअसर करने वाले एंटीबॉडी का स्तर जरूरत से अधिक था।

अध्ययन-
-सीएसआईआर ने 40 संस्थानों में सीरो सर्वे के आधार पर किया दावा।
-वायरस को बेअसर करने के लिए प्लाज्मा गतिविधि में गिरावट मिली।

घर बैठे-बैठे घटा सकते हैं कई किलो वजन, बस दबाने होंगे शरीर के ये खास बिंदु
Acupressure Points for Weight Loss: बढ़ते वजन से छुटकारा पाने के लिए अगर आप योगा, एक्सरसाइज, वॉक और जॉगिंग जैसे सभी विकल्प अपनाकर थक चुके हैं तो अब एक्यूप्रेशर की मदद लेकर देखिए। मोटापा घटाने और बढ़ते वजन को कम करने में एक्यूप्रेशर बेहद कमाल की भूमिका निभाता है। दरअसल, व्यक्ति के शरीर में कुछ खास बिंदु होते हैं जिन्हें दबाने से बड़ी आसानी से कई किलो वजन कम किया जा सकता है। आइए जानते हैं कौन से हैं वो खास बिंदु।

नाभि के नीचे बिंदु-
नाभि के 1 इंच नीचे एक बिंदु होता है। इस बिंदु को दो अंगुलियों से 2 मिनट के लिए दबाएं या मालिश करें। ऐसा करने से न केवल गैस दूर होती है बल्कि पाचन शक्ति बेहतर होती है।

कोहनी के पास स्थित बिंदु-
कोहनी के पास स्थित बिंदु को अगर दबाया जाए तो न सिर्फ शरीर का तापमान नियंत्रित होता है बल्कि यह मोटापे को कम करने में भी मदद करता है। रोजाना 1 मिनट तक नियमित रूप से इस बिंदु को दबाने से शरीर की गर्मी और जरूरत से ज्यादा पानी निकालने में भी मदद मिलती है।

नाक और होंठ के बीच में बना बिंदु-
नाक और होंठ के बीच में स्थित बिंदु को दबाने से ना सिर्फ तनाव दूर होता है बल्कि इससे मोटापे की समस्या भी दूर होती है। इस बिंदु को दबाने से तनाव संबंधित हॉर्मोन भी संतुलित रहते हैं।

कान के बीच में स्थित बिंदु-
कान के बीच में स्थित बिंदु को एक्यूप्रेशर में केंद्र बिंदु भी कहा जाता है। इस बिंदु को अपनी अंगुली की मदद से 1 या 2 मिनट तक दबाने से आप अपने बढ़ते वजन को कम कर सकते हैं। इस बिंदु पर जब दबाव पड़ता है तो व्यक्ति की भूख भी नियंत्रित होती है।

किशोर होते बच्चों का ध्यान रखते समय आपको विशेष सावधानियां बरतनी चाहिये। इसका कारण है कि अब आपका बच्चा बड़ा हो रहा है और अपने तरीके से रहना चाह रहा है। ऐसे में उसे सही और गलत की पहचाना कराने की जिम्मेदारी आपके पास है पर कई बार देखा गया है कि बचपन में समझदार और सुलझा हुआ हमारा बच्चा किशोर उम्र का होते-होते इतना अजीबो-गरीब व्यवहार करने लगता है।
आप कई बार सबकुछ संभालने की कोशिश करते हैं पर हालात आपके मुताबिक सुधर नहीं पाते। किशोर होते की उम्र में आपका बच्चा खुद को आजाद समझने लगता है। इस उम्र में बच्चे अपने खुद के निर्णय लेना चाहते हैं।
आपको अगर अपने बच्चे के साथ बेहतर रिश्ता बनाना है तो आपको अपने बच्चे को ठीक से समझना होगा। उनकी भावनाओं को आपको ध्यान में रखना होगा। आपका बच्चा इस उम्र में खुद पर निर्भर होना चाहता है। ऐसे में आपको भी अपने बच्चे को थोड़ा समय देना चाहिए।
बच्चों में अचानक आए बदलाव पर ऐसे नजर रखें
इस उम्र में अक्सर ऐसा होता है कि बच्चे आपकी कोई भी सलाह नहीं लेना चाहते। ये बुरा जरूर लगता है पर इस वक्त आपको बड़ी समझदारी दिखानी होगी। अपने बच्चे को वक्त दें जब तक वो सही रास्ते पर है। अगर आपको लगे कि आपका बच्चा किसी गलत दिशा में जा रहा है तो तुरंत उसे सामने बिठाकर बात करिए।
इस उम्र में बच्चे अपने खाने-पीने, कपड़े, दोस्तों से लेकर सोने का समय तक स्वयं तय करना चाहते है। ऐसे समय में अपने बच्चे को कुछ बातों के निर्णय खुद लेने दे। कुछ बातों पर उन्हें प्यार से समझाएं कि फैसले लेने में आपका साथ कितना जरूरी है।
आपका बच्चा गलत आदतों का शिकार भी हो सकता है। उसे शराब, सिगरेट जैसी गलत आदत की लत भी लग सकती है। तो ऐसे में जरूरी है कि आप उन्हें आजादी तो दे पर मर्यादा के अंदर। बाहर घूमने, देर रात घर आने जैसी बातों पर एक कड़ा नियम जरूर बनाएं। उसे अपनी जिंदगी में आजादी तो दे पर अपनी पूरी देख-रेख में।
इस उम्र में अक्सर आपका और आपके बच्चे का विचार एक जैसा नहीं होता। तो ऐसे में जरूरी है कि आप उन्हें किसी बात के लिए गलत तरीके से जबरदस्ती न करें।ध्यान से उनकी बात सुनें और उन्हें दोनों पहलुओं पर सोचने को कहें। उन्हें समझाने की कोशिश करें कि आप क्यों सही है और वो क्यों गलत। यह बात ध्यान रखें कि वे अब छोटे बच्चे नहीं है जिन पर आप अपनी मर्जी थोप सकें। उन्हें केवल तार्किक और भावनात्मक लगाव के साथ ही आप अपनी बातें समझा सकते हैं।
मां-बाप बच्चे के सबसे पहले टीचर होते हैं। अगर आपका बच्चा गलत भी है तो भी आप उसे गुस्से में आकर नजरअंदाज न करें। उन पर अपनी नजर हमेशा बनाएं रखे। ऐसा करने से आप अपने बच्चे पर नजर भी बनाए रखेंगे और आपका रिश्ता भी खराब नहीं होगा।

Indian Dal Tadka Recipe: अक्सर उबली हुई दाल का स्वाद बढ़ाने के लिए लोग उसमें हींग और जीरे का तड़का लगाते हैं। उबली हुई दाल में लगाया गया यह साधारण सा तड़का उसका स्वाद और सुगंध कई गुना बढ़ा देता है। लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं ढाबा -स्टाइल दाल तड़का। यह तड़का न सिर्फ दाल का स्वाद बढ़ाता है बल्कि इसका तरीका भी बेहद आसान है। तो देर किस बात की, आइए जानते हैं कैसे बनाएं स्वादिष्ट दाल तड़का।

ढाबा -स्टाइल तड़का-
इस तरह के तड़के में जीरा, हींग, धनिया पाउडर, लाल मिर्च पाउडर के साथ प्याज, टमाटर, अदरक, लहसुन और हरी मिर्च को पहले पकाया जाता है। इसके बाद इसमें उबली हुई दाल को मिला दिया जाता है। अब दाल में ऊपर से मक्खन या घी के साथ कुछ ताजा कटा हुआ धनिया पत्तों को डालने से दाल का स्वाद बढ़ जाता है।

सरल कलोंजी तड़का-
सरल कलोंजी तड़का में कलोंजी, लाल मिर्च और टमाटर को सरसों के तेल में पकाकर उबली हुई दाल में डाला जाता है।

गर्भस्थ शिशु को कैंसर से बचाएगा पालक, हेल्दी बच्चे के लिए जानें क्या करें डाइट में शामिल

गर्भावस्था में प्रोटीन से भरपूर आहार, मसलन दाल, बींस, पालक, अंडा और चिकन न खाने वाली महिलाएं अपने होने वाले बच्चे को प्रोस्टेट कैंसर के प्रति ज्यादा संवेदनशील बनाती हैं।

‘जर्नल ऑफ गेरेंटोलॉजी’ में छपे एक अमेरिकी अध्ययन में यह दावा किया गया है। शोधकर्ताओं के मुताबिक प्रोटीन गर्भस्थ शिशु में टेस्टॉस्टेरॉन और ऑइस्ट्रोजन हार्मोन का स्तर संतुलित रखता है।

विभिन्न अध्ययन में पुरुषों के प्रोस्टेट में कैंसर को जन्म देने वाले ट्यूमर के पनपने के लिए टेस्टॉस्टेरॉन हार्मोन की कमी को मुख्य रूप से जिम्मेदार ठहराया गया है।

डार्क सर्कल्स कैसे गायब हो,

डार्क सर्कल्स क्यों होते हैं
आंख के नीचे होने वाले काले घेरों की वजह जानने के लिए पहले आपको उनके रंग को पहचानना होगा। आपको बता दें कि अगर आंख के नीचे के इन घेरों का रंग थोड़ा नीला या हरा है, तो ये आपकी आंख के नीचे की स्किन के पतला पड़ जाने के कारण ऐसा है। आनुवंशिक कारणों से, आंखों के नीचे की स्किन पतली पड़ जाती है या पारदर्शी हो जाती है। स्किन के पारदर्शी होने की वजह से आंखों के नीचे की रक्तवाहिका नजर आने लगती हैं और इसकी वजह से आंखों के नीचे नीले या हरे रंग के घेरे दिखाई आने लगते हैं और इन्हें ही हम डार्क सर्कल कहते हैं।

नींद न आने की वजह से आंखों में थकावट के साथ डार्क सर्कल होना सबसे बड़ी समस्या है। डार्क सर्कल्स की बजह से आकी सुंदरता न सिर्फ कुछ कम लगने लगती है बल्कि इससे आपकी आंखें भी सेहतमंद नहीं रहती। ऐसे में हम आपको बताने जा रहे हैं डार्क सर्कल क्यों होते हैं और इनसे मुक्ति पाने के नेचुरल उपाय-

हल्दी का मिक्सचर करेगा डार्क सर्कल
इसके लिए 2 चम्मच हल्दी पाउडर में 1 चम्मच दही और नींबू के रस की कुछ बूंदें डालें। इस मिश्रण को अच्छी तरह से मिक्स करें और फिर पेस्ट बनाकर आंखों के आसपास मौजूद डार्क सर्कल्स पर अच्छी तरह से लगा लें। करीब 15-20 मिनट के लिए इस पेस्ट को लगा रहने दें और फिर नॉर्मल पानी से वॉश कर लें। बेहतर नतीजों के लिए हल्दी के इस पेस्ट को हर दिन सोने से पहले लगाएं और फिर देखें डार्क सर्कल्स कैसे गायब हो जाएंगे।

ये नुस्खे भी आएंगे काम
-ऑरेंज जूस में ग्लिसरीन मिलाएं और डार्क सर्कल पर लगाकर 20 मिनट के लिए छोड़ दें और फिर पानी से धो लें। हफ्ते में 3 बार ये नुस्खा अपनाएं।
-टमाटर के जूस को आंखों के आसपास लगाएं और 20 मिनट तक लगा रहने दें, फिर पानी से धो लें।
-खीरे के जूस को हर दिन डार्क सर्कल्स पर लगाएं और 15 मिनट बाद सादे पानी से धो लें। डार्क सर्कल्स कम हो जाएंगे।
-विटामिन ई से भरपूर बादाम का तेल भी डार्क सर्कल्स दूर करने में आपकी मदद कर सकता है।

नई दिल्ली । भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास के अनुसंधानकर्ताओं ने पाया है कि सांस रोकने से कोविड-19 संक्रमण होने का खतरा बढ़ सकता है। अनुसंधानकर्ताओं ने पता लगाने के लिए प्रयोगशाला में सांस लेने की आवृत्ति का एक मॉडल तैयार किया कि कैसे वायरस वाली छोटी बूंद के प्रवाह की दर फेफड़ों में इसके जमा होना निर्धारित करती है।अनुसंधानकर्ताओं के दल के अनुसार उन्होंने प्रयोगशाला में सांस लेने की आवृत्ति का मॉडल तैयार कर पाया कि सांस लेने की कम आवृत्ति वायरस की उपस्थिति के समय को बढ़ाती है जिससे इसके जमा होने की संभावना बढ़ जाती है। इसके परिणामस्वरूप संक्रमण होता है। इसके अलावा, फेफड़े की संरचना का किसी व्यक्ति के कोविड-19 के प्रति संवेदनशीलता पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। आईआईटी-मद्रास के ‘डिपार्टमेंट ऑफ एप्लाइड मैकेनिक्स के प्रोफेसर महेश पंचागानुला ने कहा, हमारे अध्ययन से पता चला है कि कण कैसे गहरे फेफड़ों में पहुंचते हैं और कैसे वहां जमा होते हैं। प्रोफेसर पंचागानुला ने कहा कि उन्होंने पाया है कि सांस रोककर रखने और कम सांस लेने की दर से फेफड़ों में वायरस के जमने की संभावना बढ़ सकती है। इस अध्ययन से श्वसन संक्रमण के लिए बेहतर चिकित्सा और दवाओं के विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ है। टीम के अन्य सदस्यों में आईआईटी मद्रास के अनुसंधानकर्ता अर्नब कुमार मलिक और सौमल्या मुखर्जी शामिल थे।

नई दिल्ली । डॉक्टरों की मानें तो इस बात का ध्यान रखना बहुत ही जरूरी है कि हम क्या खा रहे हैं और कैसे खा रहे हैं। यह तो सबको मालूम है कि प्रोसेस्ड फूड हेल्थ के लिए बिल्कुल अच्छा नहीं होता और हमें इसे कम से कम खाने की कोशिश करनी चाहिए। जानकारी के मुताबिक कई लोग प्रोसेस्ड फूड खाना काफी पसंद करते हैं जिनमें पिज्जा, बर्गर, शुगर युक्त स्नैक्स, केक आदि शामिल हैं। जानकारी के मुताबिक शुगर और प्रिजरवेटिव्स युक्त इन अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड्स को खाने से हार्ट संबंधी रोगों का खतरा बढ़ रहा है। सिर्फ इतना ही नहीं इनका सेवन करने से समय से पहले मौत की संभावना भी बनी रहती है।
एक रिपोर्ट के अनुसार इटली के वैज्ञा‎निकों के एक ग्रुप ने 35 वर्ष और उससे अधिक उम्र के 24,325 पुरुष और महिलाओं की लाइफस्टाइल को 10 साल तक फॉलो किया और कुछ आंकड़े इकट्ठा किए। इसमें उन पुरुष और महिलाओं की खाने की आदतें और हेल्थ का विवरण मौजूद था। इस रिपोर्ट से पता चला कि जिन लोगों ने अधिक मात्रा में अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड्स का सेवन किया था उनमें कार्डियोवास्कुलर रोग, हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा अधिक दिखाई दिया, जबकि प्रोसेस्ड फूड का सेवन न करने वालों में यह खतरा कम था। जिन प्रतिभागियों ने अधिक अनहेल्दी खाना खाया, उन्हें अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड के रूप में अपने दैनिक कैलोरी का कम से कम 15 प्रतिशत ही प्राप्त हुआ। प्रोसेस्ड फूड का सेवन करने पर एक दिन में 300 से 1250 कैलोरी शरीर इनटेक करता है। यह हॉट डॉग, कैंडी बार, सोडा और इस तरह के दो से आठ सर्विंग्स के बराबर ही है। इस प्रकार, उस श्रेणी के लोगों को अपने दूसरे साथियों की तुलना में हृदय रोग से मरने की संभावना 58 प्रतिशत अधिक थी, जो कम से कम अल्ट्रा प्रोसेस्ड भोजन का सेवन करते थे। उनमें स्ट्रोक या एक अन्य प्रकार के सेरेब्रोवास्कुलर रोग से मरने की संभावना 52 प्रतिशत अधिक थी।
पहले से किए गए अध्ययनों में भी यह पता चला है कि अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड अधिक स्वादिष्ट होते हैं, जिससे लोगों को अधिक भूख लगती है। वहीं अधिक खाना खाने से वजन बढ़ने की संभावना भी बनी रहती है। एक्सपर्टस की माने तो आज के समय में सबसे ज्यादा जरूरी शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहना है। खुद को हेल्दी रखने के लिए एक अच्छी लाइफस्टाइल और हेल्दी फूड्स का सेवन बहुत ही जरूरी हैं। जिन चीजों का हम सेवन करते हैं वह न केवल हमें हेल्दी और फिट रखते हैं बल्कि हमें हर काम को सही तरीके से करने के लिए सक्षम भी बनाते हैं।

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