ईश्वर दुबे
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कानपुर । कानपुर शहर की दस में से सिर्फ तीन विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतदाता इनके नतीजों पर असर डाल सकते हैं। वर्ष 1951-2017 तक हुए कुल 17 चुनावों में 174 प्रत्याशी सभी सीटों पर जीते हैं जिसमें मुस्लिम प्रत्याशियों की संख्या मात्र 16 (9.2 प्रतिशत) है। ऐसे में सभी दलों की निगाहें इनके रुख पर टिकी हैं। ओवैसी फैक्टर को लेकर भी इनकी चिंता कम नहीं है। मुस्लिम मतदाताओं की संख्या कैंट और सीसामऊ में अधिक है। इस तबके का रुझान जिस दल की ओर भी एकतरफा हो जाता है, उसकी सीट यकीनी हो जाती है। हालांकि आर्यनगर सीट में ऐसा नहीं है लेकिन इस विधानसभा में मजबूती से लड़ने वाले पर इनके हाथ रखने से उसकी जीत सुनिश्चित होती रही है। इस ट्रेंड का फायदा हर दल उठाना चाहता है और इसी को आधार मानकर प्रत्याशी घोषित करता रहा है। ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के सदर असदउद्दीन ओवैसी चुनाव से पहले दो बार शहर में रैली कर चुके हैं। फिलहाल सभी सीटों से दावेदारों से आवेदन मांगे गए हैं। कैंट सीट से पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हाजी शौकत भी दावेदार हैं। ऐसे में अन्य दलों के प्रत्याशियों की चिंता यह है कि अगर नुकसान हुआ तो भरपाई कहां से करेंगे। पर इस फैक्टर से एक दल मन ही मन खुश भी है, क्योंकि यह जितना काम करेगा उससे उतनी ही दिशा उसके पक्ष में जाएगा।
चंडीगढ़ | पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के बीच मतभेद बढ़ते जा रहे हैं, क्योंकि पार्टी ने सीएम के भाई को टिकट देने से इनकार कर दिया है। इसके बाद उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया है। मनोहर सिंह ने रविवार को फतेहगढ़ साहिब जिले के बस्सी पठाना से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरने की घोषणा की, जहां कांग्रेस ने अपने मौजूदा विधायक गुरप्रीत सिंह जीपी को बरकरार रखा है।
दरअसल, मुख्यमंत्री अपने भाई को पार्टी का टिकट दिलाने की पैरवी कर रहे थे, जिन्होंने पिछले साल दिसंबर में खरड़ के सिविल अस्पताल से वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी के पद से चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा दे दिया था।
पार्टी के 'एक परिवार, एक टिकट' के नियम के कारण उनके दावे को स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर दिया गया था।
यह भी पता चला है कि सिद्धू चन्नी के भाई को पार्टी की उम्मीदवारी आवंटित करने के पक्ष में नहीं थे और मनोहर ने सार्वजनिक रूप से टिकट के लिए दावा करने के बावजूद मौजूदा विधायक के पक्ष में एक रैली की।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने आईएएनएस को बताया कि चुनाव से पहले पार्टी आलाकमान चन्नी और सिद्धू के बीच शांति बनाने की कोशिश कर रहा है, दोनों नेताओं के बीच मतभेद बढ़ रहे हैं और चन्नी के परिजनों को टिकट न देने से यह और भी बढ़ जाएगा।
टिकट नहीं दिए जाने से नाराज मनोहर ने मीडिया से कहा कि वह अपने भाई (चन्नी) से सुबह (रविवार) मिले और उनसे कहा कि वह चुनाव लड़ेंगे।
उन्होंने कहा, "मेरा चुनाव लड़ने का फैसला जनता की आकांक्षाओं के अनुरूप है।"
नई दिल्ली । गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने रविवार को कहा कि भारतीय जनता पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व दिवंगत मुख्यमंत्री और रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के बेटे उत्पल पर्रिकर के संपर्क में है और इस मुद्दे को जल्द ही सुलझा लिया जाएगा।
श्री सावंत ने आईएएनएस से बातचीत में कहा कि केंद्रीय नेतृत्व उत्पल पर्रिकर की अपने पिता के निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा से अवगत है और उनके संपर्क में हैं।
उन्होंने कहा, उत्पल पंजिम विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाहते हैं और केंद्रीय नेतृत्व इसके बारे में पूरी तरह से अवगत है। वह उत्पल के संपर्क में हैं और वे इसका समाधान निकालेंगे।
उत्पल पर्रिकर के भाजपा टिकट वितरण प्रक्रिया के आरोपों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा: वह (उत्पल) ऐसे काल्पनिक मुद्दे उठा रहे हैं जिनका कोई अस्तित्व नहीं है और मुझे विश्वास है कि इसे हल कर लिया जाएगा।
उन्होंने संकेत दिया कि उत्पल पर्रिकर को विश्वास में लेकर पार्टी नेतृत्व इस मसले का समाधान कर लेगा। उन्होंने यह भी कहा कि गोवा भाजपा में कोई असंतोष नहीं है और जो लोग हाल के दिनों में पार्टी छोड़ चुके हैं ये वही लोग है जिन्होंने अपने परिजनों के लिए टिकट की मांग की थी । इसे ठुकराए जाने के बाद ही वे पार्टी छोड़कर गए है। इसमें उनके कैबिनेट सहयोगी भी शामिल हैं।
श्री सावंत ने कहा पार्टी में कोई असहमति नहीं है। मेरे सहयोगी माइकल लोबो ने पार्टी छोड़ दी है। भारतीय जनता पार्टी 'राष्ट्र पहले', 'राज्य पहले', 'लोग पहले' की नीति में विश्वास करती है लेकिन लोबो के लिए यह 'पत्नी पहले' है। वह (लोबो) अपनी पत्नी के लिए टिकट चाहते थे और भाजपा केवल एक परिवार को बढ़ावा देने के इस दर्शन में विश्वास नहीं करती है। उन्होंने पार्टी छोड़ दी और इसका हमारी चुनावी संभावना पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है।
गौरतलब है कि 40 सदस्यीय गोवा विधानसभा के लिए मतदान 14 फरवरी को होगा और मतगणना 10 मार्च को होगी।
पटना | भाजपा की बिहार इकाई के अध्यक्ष संजय जायसवाल ने रविवार को नालंदा शराब त्रासदी को लेकर नीतीश कुमार सरकार की आलोचना की, जिसमें 11 लोगों की मौत हो गई थी। उन्होंने वरिष्ठ प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों पर राज्य में शराब के कारोबार में शामिल होने का आरोप लगाया। जायसवाल ने एक फेसबुक पोस्ट में कहा कि इसके लिए वरिष्ठ अधिकारी जिम्मेदार हैं और उन्हें गिरफ्तार किया जाना चाहिए।
12 जनवरी को जदयू के प्रवक्ता अभिषेक झा ने कहा था कि संजय जायसवाल बिहार में शराबबंदी की आलोचना कर रहे हैं।
झा ने ट्वीट किया था, "मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि यह उनका निजी स्टैंड है या उनकी पार्टी का। संजय जायसवाल को इसे स्पष्ट करना चाहिए।"
झा के ट्वीट का जवाब देते हुए जायसवाल ने कहा, "मैं वहां उन परिवारों को सांत्वना देने गया था जिनके सदस्यों ने जहरीली शराब के सेवन से अपनी जान गंवा दी थी। क्या पीड़ित परिवार को सांत्वना देना अपराध है?"
जायसवाल ने कहा, "क्या नीतीश कुमार सरकार नालंदा शराब त्रासदी में मारे गए पीड़ितों के परिवार के सदस्यों को जेल भेज देगी?"
जायसवाल ने कहा, "यदि आप नालंदा में शराबबंदी लागू करना चाहते हैं, तो सार्वजनिक रूप से गलत बयान देने वाले वरिष्ठ अधिकारियों को गिरफ्तार करें। पीड़ितों की मौत जहरीली शराब से हुई और नालंदा के जिलाधिकारी शशांक शुभंकर और अन्य अधिकारियों ने दावा किया कि पीड़ितों को मधुमेह, रक्तचाप जैसी अन्य बीमारियां थी। इस तरह के बयान अधिकारियों और शराब माफियाओं के साथ संबंध स्थापित करने और अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए पर्याप्त हैं।"
"दूसरे अपराधी पुलिस अधिकारी हैं। वे अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में शराब के संचालन के बारे में जानते थे। उन्हें बिहार के शराब निषेध कानून के प्रावधान के अनुसार 10 साल की जेल होनी चाहिए।"
जायसवाल ने कहा, "दुर्भाग्य से, ऐसी घटनाओं के बाद इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारियों से नीचे के पुलिस अधिकारियों को 2 महीने के लिए निलंबित किया जा रहा है और फिर अन्य पुलिस थानों में तैनात किया जा रहा है। इस तरह के एक गलत व्यवहार के कारण, वे अपना अवैध काम जारी रखते हैं।"
"तीसरे अपराधी माफिया हैं जो शराब के संचालन में शामिल हैं। उन्हें गिरफ्तार करना बहुत आसान है अगर हम पुलिस अधिकारियों से पुलिस शैली में पूछताछ करते हैं। शराब निर्माताओं और उपभोक्ताओं को दंडित किया जाना चाहिए लेकिन वे हाइड्रा के समान हैं। अगर आप इसे खत्म करना चाहते हैं, तो आपको वरिष्ठ अधिकारियों, पुलिस और शराब माफियाओं की गठजोड़ तोड़ देनी चाहिए।"
अपर्णा की ओर से इसको लेकर अभी तक कोई जवाब नहीं आया है। बता दें कि, अपर्णा मुलायम सिंह यादव के छोटे बेटे प्रतीक यादव की पत्नी हैं। वहीं बुधवार को अपर्णा के पिता भी भाजपा में शामिल हो गए हैं और इसलिए यह उम्मीद लगाई जा रही है कि बेटी भी भाजपा में शामिल हो जाएगी।
यूपी चुनाव 2022: समाजवादी पार्टी को बड़ा झटका लगने वाला है। बता दें कि, मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू आपर्णा यादव आज यानि की रविवार को भाजपा में शामिल हो सकती हैं। सूत्रों के मुताबिक, अपर्णा बीजेपी में जाने का पूरा मूड बना चुकी हैं और आसान है कि आज ही वह भाजपा में शामिल हो जाएंगी। हालांकि, अपर्णा की ओर से इसको लेकर अभी तक कोई जवाब नहीं आया है। बता दें कि, अपर्णा मुलायम सिंह यादव के छोटे बेटे प्रतीक यादव की पत्नी हैं। वहीं बुधवार को अपर्णा के पिता भी भाजपा में शामिल हो गए हैं और इसलिए यह उम्मीद लगाई जा रही है कि बेटी भी भाजपा में शामिल हो जाएगी।
भाजपा के ब्रजक्षेत्र के अध्यक्ष रजनीकांत महेश्वरी ने रामवीर उपाध्याय को उनके आवास पर पार्टी की सदस्यता दिलाई। इस दौरान उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा वर्चुअल माध्यम से मौजूद रहे और उनका पार्टी में स्वागत किया। दरअसल, रामवीर उपाध्याय लंबे समय से बसपा के निलंबित चल रहे थे। ऐसे में उन्होंने चुनावों से ठीक पहले पार्टी बदलने का निर्णय लिया।
लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आयाराम-नयाराम की राजनीति जोरो पर चल रही है। इसी बीच बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को छोड़कर पांच बार के विधायक एवं पूर्व मंत्री रामवीर उपाध्याय ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का दामन थाम लिया है। रामवीर उपाध्याय हाथरस जिले के सादाबाद क्षेत्र से विधानसभा के सदस्य हैं। आपको बता दें कि भाजपा के ब्रजक्षेत्र के अध्यक्ष रजनीकांत महेश्वरी ने रामवीर उपाध्याय को उनके आवास पर पार्टी की सदस्यता दिलाई। इस दौरान उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा वर्चुअल माध्यम से मौजूद रहे और उनका पार्टी में स्वागत किया। दरअसल, रामवीर उपाध्याय लंबे समय से बसपा के निलंबित चल रहे थे। ऐसे में उन्होंने चुनावों से ठीक पहले पार्टी बदलने का निर्णय लिया।
रामवीर उपाध्याय की पत्नी सीमा और बेटे चिराग पहले से ही भाजपा में हैं और उनके पार्टी में शामिल हो जाने के बाद आगरा-अलीगढ़ मंडल के समीकरण बदल सकते हैं। माना जा रहा है कि रामवीर उपाध्याय ब्राह्मण बहुत सीटों पर भाजपा के वोटबैंक को बढ़ाने का काम करेंगे। अस्वस्थ चल रहे रामवीर उपाध्याय ढाई दशक तक बसपा में रहे हैं। पेशे से वकील रामवीर उपाध्याय ने पहली बार साल 1996 में बसपा के टिकट पर चुनाव जीता था। जिसके बाद मायावती ने उनका कद बढ़ाते हुए साल 1997 में उन्हें अपनी सरकार में परिवहन और ऊर्जा मंत्री बनाया था।
बसपा-भाजपा गठबंधन की साल 1997 की कल्याण सिंह सरकार में भी रामवीर उपाध्याय को यही मंत्रीपद सौंपा गया था। इसके बाद लगातार वो विधानसभा पहुंचते रहे। साल 2002, 2007, 2012 और 2017 में विधानसभा के सदस्य रहे। उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने बताया कि रामवीर उपाध्याय का ब्राह्मण समाज में खासा प्रभाव हैं। ऐसे में जब राष्ट्रविरोधी ताकतें एकत्रित हो रही हैं तो उन्हें सबक सिखाने का रामवीर उपाध्याय ने फैसला किया।
अस्वस्थ्य हैं रामवीर उपाध्याय
भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने के बाद रामवीर उपाध्याय ने कोई बयान जारी नहीं किया। क्योंकि वो लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे हैं। जब उनके आवास पर रजनीकांत महेश्वरी पहुंचे तो रामवीर उपाध्याय के बेटे चिराग उन्हें व्हीलचेयर से लाते हुए दिखाई दिए। हालांकि, रामवीर उपाध्याय के शामिल होने पर भाजपा को लगता है कि ब्रजक्षेत्र के कई नेता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर सकते हैं।
भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी मनीष दीक्षित ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली प्रदेश सरकार में जो गरीब कल्याण और लोक कल्याण के कार्य हुए हैं, उससे लोगों का भरोसा बढ़ा है और इसलिए बड़ी संख्या में दूसरे दलों के लोग भाजपा में शामिल हो रहे हैं। ऐसे में रामवीर उपाध्याय के भाजपा में आने से पार्टी को मजबूती मिली है।
देहरादून. उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा बड़ी संख्या में अपने सिटिंग विधायकों का टिकट काटकर नए चेहरे को टिकट दे सकती है। भाजपा सत्ता विरोधी लहर को भांपकर यह रणनीति अपनाने पर विचार कर रही है। हालांकि भाजपा ने अभी तक अपने उम्मीदवारों की सूची जारी नहीं की है।
भाजपा के नेताओं का मानना है कि सिटिंग विधायकों का टिकट कर जनता के असंतोष से पार पाया जा सकता है। राज्य के भाजपा नेताओं के अनुसार पिछले पांच वर्षों में भाजपा सरकार के द्वारा किए गए काम लोगों के सामने है। इसलिए अब सारा ध्यान इसपर है कि पार्टी किस तरह से टिकट का वितरण करती है और ख़राब प्रदर्शन करने वाले कितने विधायकों का टिकट काटती है।
पार्टी नेताओं का मानना है कि जिस तरह से पांच सालों में तीन बार मुख्यमंत्री बदला गया और जनता के ऊपर इसका सीधा प्रभाव पड़ा, उसी तरह पुराने विधायकों की जगह नए उम्मीदवार को लड़ाकर इस बार के विधानसभा चुनाव में जनता के मूड को बदला जा सकता है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस बार भाजपा करीब अपने 12 से अधिक विधायकों के टिकट काट सकती है। माना जा रहा है कि इसी वजह से अभी तक भाजपा ने उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान नहीं किया है।
बता दें कि उत्तराखंड में भाजपा ने पांच साल में तीन मुख्यमंत्री बनाए। चुनाव जीतने के बाद सबसे पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया। उसके बाद पिछले साल मार्च महीने में त्रिवेंद्र रावत को हटाकर तीरथ रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया। तीरथ सिंह रावत चार ही महीने मुख्यमंत्री रहे और उनके बाद पुष्कर सिंह धामी को राज्य की कमान सौंपी गई गई। पिछले दिनों उत्तरखंड के दौरे पर आए केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने तीन मुख्यमंत्री बनाए जाने के फैसले पर कहा कि यह पार्टी का आंतरिक मामला है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हमारे मुख्यमंत्री में कोई कमी थी। बड़ी पार्टी में कई चीजों को देखकर फैसले लेने पड़ते हैं।
गौरतलब है कि उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के लिए 14 फरवरी को मतदान कराया जाएगा और 10 मार्च को मतगणना होगी। उत्तराखंड विधानसभा का कार्यकाल 23 मार्च को समाप्त हो रहा है। बता दें कि पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को कुल 70 सीटों में से 57 सीट पर जीत हासिल हुई थी।
लखनऊ. रविवार को कानपुर के पूर्व पुलिस आयुक्त और आईपीएस अधिकारी असीम अरुण भाजपा में शामिल हो गए। प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने उन्हें पार्टी में शामिल कराया। इस दौरान अनुराग ठाकुर ने जेल में बंद सपा नेता आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम का नाम लेकर समाजवादी पार्टी पर निशाना साधा और कहा कि दंगाई सपा में जाते हैं।
असीम अरुण के भाजपा में शामिल होने के दौरान केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि सपा में वो जाते हैं जो दंगा करते हैं, भाजपा में वो शामिल होते हैं जो दंगाईयों को पकड़ते हैं। सपा के समाजवाद का यही असली खेल, प्रत्याशी को या तो बेल या फिर जेल। आगे उन्होंने कहा कि सपा ने अपने जो उम्मीदवार घोषित किए हैं, उनमें से एक नाहिद हसन जेल में है और उनका दूसरा एमएलए अब्दुल्ला आजम बेल पर है। जेल और बेल का खेल ही समाजवादी पार्टी का असली खेल है।
अखिलेश यादव ने कहा कि जनता अपना मन बना चुकी है। इस बार समाजवादी पार्टी की सरकार बनेगी। समाजवादी गठबंधन के साथ 80 फ़ीसदी जनता है। इसके साथ ही अखिलेश यादव ने यह भी कहा कि आप भाजपा का कोई नेता समाजवादी पार्टी में शामिल नहीं होगा।
उत्तर प्रदेश चुनाव को ध्यान में रखते हुए पार्टियों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर लगातार चल रहा है। इसी कड़ी में आज भाजपा की पहली सूची आ गई। भाजपा ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर शहर से उम्मीदवार बताया है। इसी को लेकर अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री पर तंज कसा है। अखिलेश ने कहा कि मुख्यमंत्री योगी को अब गोरखपुर में ही रहना पड़ेगा। भाजपा ने पहले ही मुख्यमंत्री योगी को उनके घर गोरखपुर भेज दिया है। अखिलेश यादव ने कहा कि कभी कहते थे मथुरा से लड़ेंगे, कभी अयोध्या से तो कभी प्रयागराज से लड़ने की बात करते थे। मुझे इस बात की खुशी है कि BJP ने उन्हें (योगी आदित्यनाथ) अपने घर भेज दिया। अब मुझे लगता है कि गोरखपुर में ही उन्हें रहना पड़ेगा अब वहां से वापस आने की ज़रूरत नहीं है।
अखिलेश यादव ने कहा कि जनता अपना मन बना चुकी है। इस बार समाजवादी पार्टी की सरकार बनेगी। समाजवादी गठबंधन के साथ 80 फ़ीसदी जनता है। इसके साथ ही अखिलेश यादव ने यह भी कहा कि आप भाजपा का कोई नेता समाजवादी पार्टी में शामिल नहीं होगा। अखिलेश यादव ने दावा किया कि हम पॉजिटिव पॉलिटिक्स करते हैं नेगेटिव नहीं करते हैं। अखिलेश यादव ने दावा किया कि जल्द ही उनकी पार्टी का मैनिफेस्टो आएगा। उन्होंने कहा कि हमारा मेनिफेस्टो प्रोग्रेसिव होगा। बीजेपी पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा कि यह पार्टी हिट विकेट हो चुकी है। उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश हर वर्ग के लोगों को जोड़ने की है।हमने अपनी पार्टी की कई सीटों पर टिकटों का त्याग करके गठबंधन किया है।
अखिलेश ने दावा किया कि गोरखपुर की सभी सीटों पर समाजवादी पार्टी जीतेगी। त्याग करके हमने गठबंधन किया है। बिजली को लेकर अखिलेश यादव ने योगी सरकार पर जबरदस्त तरीके से प्रहार किया। उन्होंने कहा कि जितने भी बिजली कारखाने समाजवादी पार्टी की सरकार में बन रहे थे वह अभी भी पूरे नहीं हुए हैं। इसके साथ ही अखिलेश यादव ने अपने कार्यकर्ताओं से कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन करने के लिए कहा। भीम आर्मी से गठबंधन पर उन्होंने कहा कि समजवादी पार्टी से उन्होंने (भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद) जो भी बात की मैंने उनकी बात मानी और रामपुर मनिहरन और गाज़ियाबाद वाली सीटें उनको दी। उन्होंने किसी से फोन पर बात करने के बाद मुझको बताया कि वह चुनाव साथ में नहीं लड़ सकते।
ओबीसी समाज को साथ लाने के लिए बीजेपी अपने काउंटर प्लान को लेकर एक्टिव हो गई है। ओबीसी विधायकों के पलायन से हो रहे डैमेज को कंट्रोल करने की जिम्मेदारी ओबीसी मोर्चा को दी गई है।
बीते चीन-चार दिनों से उत्तर प्रदेश से एक के बाद एक इस्तीफे की खबर आ रही है। इस्तीफा देने वाले ज्यादातर नेता पिछड़ी जातियों से हैं। ऐन चुनाव से पहले उनका एक साथ बीजेपी को छोड़कर समाजवादी पार्टी की तरफ जाना जाहिर तौर पर योगी सरकार के लिए एक बड़ा झटका है। वो बीजेपी जो लगातार सबका साथ सबका विकास, सबका विश्वास की बात करती रही उस बीजेपी से एक खास तबके के लोग ये इल्जाम लगाते हुए निकल जाएं कि पार्टी में कोई पिछड़ों, दलितों और वंचितों की बात कोई सुनता नहीं है। ऐसे में अब ओबीसी समाज को साथ लाने के लिए बीजेपी अपने काउंटर प्लान को लेकर एक्टिव हो गई है। ओबीसी विधायकों के पलायन से हो रहे डैमेज को कंट्रोल करने की जिम्मेदारी ओबीसी मोर्चा को दी गई है।
ओबीसी मोर्चा को दी गई जिम्मेदारी
बीजेपी के ओबीसी मोर्चा ने इसके लिए एक खास तरह की रणनीति बनाई है। मोर्चा की तरफ से सोशल मीडिया और छोटे ग्रप्स के जरिये बीजेपी के विधायकों के पार्टी छोड़ने के पीछे की मंशा बता रहे हैं। जो पार्टी छोड़कर जा रहे हैं वो पिछड़े समाज के लिए कुछ करने के लिए नहीं बल्कि अपने पर्सनल एजेंडे के तहत जा रहे हैं। उनका पर्सनल एजेंडा है जिसके तहत वो बीजेपी में शोषण की बात कर रहे हैं।
यूपी का जातिय समीकरण
सवर्ण- 17-19 %
दलित- 21 %
मुस्लिम- 19 %
ओबीसी- 42 %
केशव मौर्य को आगे करेगी
पिछड़े समुदाय से संबंधित नेताओं के पार्टी छोड़ सपा की ओर रुख किए जाने के बाद माहौल को दुरुस्त करने के लिए बीजेपी ने गैर-यादव ओबीसी नेता के तौर पर डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, अपना दल (एस) की अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल और निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद जैसे नेताओं को आगे करके मैदान में मोर्चा संभालने की रणनीति बनाई है। दिल्ली में बीजेपी कोर कमेटी की बैठक के बाद केशव प्रसाद मौर्य ही पत्रकारों को संबोधित करने के लिए आगे आए थे।
स्वतंत्र देव सिंह ने ट्विटर पर चलाया अभियान
उत्तर प्रदेश के योगी मंत्रिमंडल की बात करें तो 23 मंत्री पिछड़ी जातियों से आते हैं। इसमें जाट, सैनी, कुशवाहा, यादव, राजभर, बिंद हैं। ये सभी मंत्री अलग-अलग इलाकों से आते हैं। जबकि अगर दलित मंत्रियों की बात की जाए तो इनकी संख्या भी अच्छी-खासी है। यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह दोनों ओबीसी समुदाय से आते हैं। स्वतंत्र देव सिंह ने तो ट्विटर पर ये अभियान भी छेड़ रखा है कि उनकी सरकार ने ओबीसी को क्या और कितना दिया ।
संघमित्रा मौर्य आगे लिखती हैं कि सांसद बनने से पहले मैं सामाजिक कार्यों में व्यस्त थी। सांसद बनने के बाद अपनी जिम्मेदारियों का संसद में निर्वहन कर रही हूं और आगे भी करती रहूंगी। आपके हक के लिए लड़ने में कभी भी पीछे नहीं रहूंगी।
उत्तर प्रदेश चुनाव को लेकर राजनीतिक हलचल तेज है। उत्तर प्रदेश भाजपा में उथल-पुथल भी जारी है। इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यही है कि स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य भाजपा छोड़ देंगी? माना जा रहा था कि जिस तरीके से स्वामी प्रसाद मौर्य ने भाजपा का दामन छोड़ा और समाजवादी पार्टी में शामिल हुए, ठीक उसी तरह उनकी बेटी संघमित्रा मौर्य भी भाजपा से बाय-बाय कह देंगी। इन तमाम सवालों के बीच संघमित्रा मौर्य ने फेसबुक पोस्ट के जरिए अपनी बात रखी है। अपने पोस्ट में संघमित्रा मौर्य ने पिता स्वामी प्रसाद मौर्य को अपना हीरो बताया है। संघमित्रा मौर्य ने इस बात को भी साफ कर दिया कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में काम करते रहेंगी।अपने फेसबुक पोस्ट में संघमित्रा मौर्य ने लिखा कि मैं कुछ मांगू और पूरा ना हो, ऐसा तो हालात नहीं। मैं पुकारूं और पापा ना सुने, इतने भी हम दूर नहीं। इसके साथ ही उन्होंने लिखा कि पिता और बेटी का रिश्ता दुनिया का सबसे मजबूत रिश्ता है। मैं देश के प्रधानमंत्री आदरणीय नरेंद्र मोदी जी के मुझे बेटी के रूप में मेरे पिता से मांगे हुए वचन से बंधी हुई हूं। अपने पोस्ट में संघमित्रा मौर्य ने आगे लिखा कि सोशल मीडिया पर जब अशोभनीय शब्द पढ़ती हैं तब ऐसा नहीं है कि जवाब नहीं दे सकती, ऐसा भी नहीं है कि फैसला नहीं ले सकती। लेकिन तभी आदरणीय नरेंद्र मोदी जी के द्वारा पिता से बोले गए शब्द कि 'मौर्य जी यह बेटी अब हमारी बेटी है यह बेटी हम ने ले ली' गूंज जाते हैं।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले यह उम्मीद लगायी जा रही थी कि उत्तर प्रदेश की भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने वाली है लेकिन भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर ने शनिवार को घोषणा की कि उनकी पार्टी समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ गठबंधन नहीं करेगी।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले यह उम्मीद लगायी जा रही थी कि उत्तर प्रदेश की भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने वाली है लेकिन भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर ने शनिवार को घोषणा की कि उनकी पार्टी समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ गठबंधन नहीं करेगी। चंद्रशेखर ने ऐलान किया है कि वह किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं कर रहे हैं वह राज्य में अकेले के दम पर लड़ाई लड़ेंगे। चंद्रशेखर ने समाजवादी पार्टी से किसी भी तरह का गठबंधन न करने के ऐलान के दौरान चंद्रशेखर ने अखिलेश यादव पर जोरदार हमला बोला और कहा कि अखिलेश ने दलितों का अपमान किया है। दलित किसी की दया के मोहताज नहीं है। वह अपनी लड़ाई अकेले दम पर लड़ेंगे। उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव दलितों को गंभीरता से नहीं लेते है। उन्होंने बार बार पार्टी को बुलाया लेकिन सही तरीके से मांगों को गंभीरता से नहीं लिया और आखिर में मुझे लगा कि अखिलेश यादव को चुनाव में दलितों की जरूरत नहीं हैं।
आपको बता दें कि आटकलें यह कि भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर सकते हैं। समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव और चंद्रशेखर आजाद शनिवार को दोपहर 12.30 बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले थे लेकिन सुबह चंद्रशेखर ने ऐलान किया कि वह अकेले ही पीसी करेंगे। इस दौरान ही अखिलेश यादव के साथ किसी भी तरह का कोई गठंबंधन नहीं करने का ऐलान किया।
पिछले लगातार कुछ समय से चल रही अखिलेश यादव के साथ मुलाकात पर चंद्रशेखर आज़ाद ने कहा था कि "गठबंधन की पुष्टि हो गई है। इसलिए मैं वहां जा रहा हूं [प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए]। मैं सुबह 10 बजे प्रेस को बताऊंगा कि किन शर्तों पर सब कुछ तय किया गया है। आजाद ने सपा के साथ सीट बंटवारे के समझौते के बारे में ब्योरा देने से भी परहेज किया।
हालांकि, पुलिस ने आजाद को उनके लखनऊ कार्यालय में कोविड -19 प्रतिबंध और धारा 144 के मद्देनजर प्रेस कॉन्फ्रेंस करने से इनकार कर दिया था। पुलिस ने कहा कि उन्होंने इस संबंध में पहले पार्टी को नोटिस जारी किया था लेकिन पार्टी ने इसे नजरअंदाज कर दिया। बाद में पार्टी को पुलिस से बात करने के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस करने की इजाजत दी गई।
दिल्ली के भाजपा हेड क्वार्टर में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री और उत्तर प्रदेश के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि हमारी सरकार सभी को साथ लेकर चलेगी। सबका साथ, सबका विकास ही हमारा प्रयास है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में गरीब कल्याण के लिए एक नई विश्वास आज देश में सामने आई है।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टियों ने अपने उम्मीदवारों की सूची जारी करने की शुरुआत कर दी है। इसी कड़ी में सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी ने अपनी पहली सूची जारी की। दिल्ली के भाजपा हेड क्वार्टर में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री और उत्तर प्रदेश के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि हमारी सरकार सभी को साथ लेकर चलेगी। सबका साथ, सबका विकास ही हमारा प्रयास है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में गरीब कल्याण के लिए एक नई विश्वास आज देश में सामने आई है। उन्होंने कहा कि देश की जनता का विश्वास भाजपा पर है और एक बार फिर से पार्टी उत्तर प्रदेश में चुनाव जीतेगी। आज कुल 107 सीटों पर नामों का ऐलान हुआ। धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि 107 में से 83 सीटों पर भाजपा के विधायक थे लेकिन सिर्फ 63 विधायकों को ही फिर से उम्मीदवार बनाया गया है। जिन 20 लोगों को टिकट नहीं दिया गया है उन्हें संगठन के काम में लगाया गया है जबकि 21 नए प्रत्याशियों को शामिल किया गया है।
धर्मेंद्र प्रधान ने अपने संबोधन में बताया कि पहले चरण के 58 सीटों में से 57 सीटों के लिए उम्मीदवार जबकि दूसरे चरण के 55 में से 48 सीटों के लिए भी उम्मीदवारों के नाम की घोषणा हो गई। बाकी के नामों पर चर्चा पार्लियामेंट्री बोर्ड कर चुकी है और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा को इसकी जिम्मेदारी दे दी गई है। अपने ऐलान में धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि योगी आदित्यनाथ गोरखपुर शहर से चुनावी मैदान में उतरेंगे जबकि केशव प्रसाद मौर्य प्रयागराज जिले के सिराथू सीट से चुनावी मैदान में उतरेंगे। बाकी नामों की घोषणा करते हुए पार्टी महासचिव अरुण सिंह ने बताया कि नोएडा से पंकज सिंह उम्मीदवार होंगे। अतरौली से संदीप सिंह को फिर से टिकट दिया गया है। साहिबाबाद से सुनील शर्मा चुनावी मैदान में होंगे जबकि मथुरा से श्रीकांत शर्मा एक बार फिर से चुनाव लड़ेंगे। जेवर से धीरेंद्र सिंह को पार्टी ने टिकट दिया है। बेबी रानी मौर्य को आगरा ग्रामीण से टिकट दिया गया है। गाजियाबाद से अतुल गर्ग के प्रत्याशी होंगे। आगरा कैंट से डॉक्टर जी एस धर्मेश को टिकट दिया गया है। आगरा दक्षिण से योगेंद्र उपाध्याय चुनावी मैदान में होंगे।
दूसरे चरण में बेहट से नरेश सैनी को टिकट दिया गया है। सहारनपुर नगर से राजीव गुंबर को टिकट दिया गया है। सहारनपुर से जगपाल सिंह को टिकट दिया गया है। देवबंद से बृजेश सिंह रावत चुनावी मैदान में होंगे। नजीमाबाद से कुंवर भारतेंदु सिंह को टिकट दिया गया है। नगीना से डॉक्टर जसवंत को टिकट दिया गया है। धामपुर से अशोक कुमार राणा को टिकट दिया गया है। धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि योगी जी की सरकार ने पिछले 5 साल में गुंडाराज, भ्रष्टाचारियों, माफियों पर नकेल कसने का काम किया है। बेटियां रात में भी निडर होकर घूम सकती हैं। मैं दावे से कह सकता हूं कि योगी जी ने यूपी को दंगामुक्त राज्य बनाकर दिया है। आज यूपी में मेडिकल कॉलेज खुल रहे हैं, एक्सप्रेस-वे बन रहे हैं। जो यूपी एक समय में बीमारू राज्य के रूप में जाना जाता था, आज वही यूपी देश में विकास के रूप में नंबर-1 बनकर ऊभरा है।
नई दिल्ली । उ.प्र. विधान सभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने 125 उम्मीदवारों की पहली सूची घोषित कर दी है। इसमें 40 फीसदी युवा और 40 फीसदी महिलाओं को टिकट देकर कांग्रेस ने अन्य राजनैतिक दलों के सामने दबाब बनाने का काम कर दिया है। उ.प्र. में कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है। पिछले 35 सालों से उ.प्र. में कांग्रेस संगठनात्मक रुप से कमजोर होती चली गई। 2022 के विधान सभा चुनाव के लिए प्रियंका गांधी ने कांग्रेस की बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने में बड़ी मेहनत की है।
'मैं लड़की हूं लड़ सकती हूं' के नारे तथा युवाओं को कांग्रेस से जोड़कर नया संगठन बनाने का जो प्रयास प्रियंका गांधी ने किया है। वह उ.प्र. में सफल होता दिख रहा है। पहली सूची में जो 125 उम्मीदवारों की जो सूची जारी की है। उसमें प्रियंका ने जो बोला था वह करके दिखा भी दिया है। कांग्रेस की वर्तमान स्थिति में यह संभव था। प्रियंका की सक्रियता ने यूपी में कांग्रेस को एक प्रभावी न्यूज़ मेकर तो बना ही दिया है। मीडिया में अब उन महिलाओं की भी भरपूर चर्चा है जिन्हें प्रियंका ने स्त्री अस्मिता की योद्धा के तौर चुनावी मैदान में उतारा है।
वहीं सपा के लिए उ. प्र. चुनाव में बेहतर समीकरण होते भी मुसीबतें बढ़ती ही जा रही हैं। सपा के साथ गठबंधन करने के लिए क्षेत्रीय दलों की होड़ लगी है। सपा को सीटों के बंटवारे में काफी नुकसान होने की संभावना बन रही है। भाजपा में मंत्री भगदड़ का लाभ सपा को मिल रहा है। टिकट बंटवारे में असंतोष के चलते सपा में भी जिन्हें टिकट नहीं मिलेगी। वह कांग्रेस का दामन थाम सकते है।
उ.प्र. में पिछले 6 माहों में प्रियंका गांधी और कांग्रेस ने आम जनता के बीच कांग्रेस की नई पहचान बनाते हुए संगठन खड़ा करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। नेहरू-गांधी परिवार की पूरी पीढ़ी के रूप में प्रियंका गांधी की लोकप्रियता चरम पर है। पिछले माहों में संगठन और कार्यकर्ताओं की नई फौज कांग्रेस से जुड़ी है। उ.प्र. विधानसभा के चुनाव में भाजपा-सपा और कांग्रेस ही मुख्य दौड़ में शामिल दिख रही है। इस चुनाव में बसपा को सबसे बड़ा नुकसान होता दिख रहा है। बसपा प्रमुख मायावती की चुप्पी ने उन्हें भाजपा की बी टीम बना दिया है। दलित उनसे दूर होता जा रहा है। उ.प्र. के प्रमुख परिणाम आश्चर्यजनक होंगे। कांग्रेस भी अब उत्तरप्रदेश की रजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका में आगे बढ़ तो रही है।