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मनोरंजन

मनोरंजन (5235)

मुंबई । बॉलीवुड दीवा इलियाना डीक्रूज केवल अपनी फिल्मों के कारण ही नहीं बल्कि अपनी हॉट फोटोज के लिए भी चर्चा में रहती हैं। इलियाना इंस्टाग्राम पर अक्सर अपनी तस्वीरें पोस्ट करती रहती हैं, जिस पर उन्हें उनके फैंस से बेहतरीन कमेंट मिलते रहते हैं। उनके दिवानों में हाल ही में एक नया नाम 'मैं तेरा हीरो में उनके को-स्टार रहे वरुण धवन का जुड़ गया है। इलियाना ने इंस्टाग्राम पर एक बेहद हॉट तस्वीर पोस्ट की, जिसमें उन्हें व्हाइट स्विमसूट में लेटे हुए देखा जा सकता है। इलियाना अपनी तस्वीर शेयर करते हुए कैप्शन दिया, 'वेटिंग फॉर द सन टू कम आउट। वरुण ने इस तस्वीर पर कमेंट में 'थंडर (बिजली कड़कना) का इमोजी पोस्ट किया। दूसरे बी-टॉउनर्स सेलिब्रिटी भी कमेंट करने से खुद को रोक नहीं सके। मलाइका अरोड़ा ने फायर का इमोजी पोस्ट किया। सोशल मीडिया पर काफी ऐक्टिव रहने वाली इलियाना से हाल ही में फॉलोअर्स के साथ चिटचैट सेशन में किसी ने उनसे अमर्यादित सवाल पूछा था, जिसका उन्होंने मुंहतोड़ जवाब दिया।

मुंबई । बालीवुड के विलेन शक्ति कपूर की बिटिया और अभिनेत्री श्रद्धा कपूर का कहना है कि वह असल जिंदगी में कैसी दिख रही हैं, इसकी चिंता उन्हें नहीं रहती हैं। वास्तविकता में दिखावा उनके जीवन का बहुत छोटा हिस्सा है। श्रद्धा इसी हफ्ते रिलीज होने वाली अपनी आगामी फिल्म 'छिछोरे' में दो बहुत अलग किरदार निभाती नजर आएंगी। यहां बता दें कि बॉक्स-ऑफिस पर दो हफ्तों के अंदर ही श्रद्धा की दो फिल्में रिलीज होनी है। जहां तेलुगू सुपरस्टार प्रभास के साथ उनकी फिल्म 'साहो' शुक्रवार को चार भाषाओं में रिलीज हो चुकी है। वहीं अगले सप्ताह नीतेश तिवारी की 'छिछोरे' रिलीज होगी। श्रद्धा ने बताया "दिखावा मेरे पेशे का एक छोटा सा हिस्सा है। यह सभी अभिनेताओं के जीवन में नहीं है। इसलिए मैं इसके साथ काफी सहज हूं। मुझे रंगों और अलग-अलग हेयर स्टाइल आजमाना पसंद है। जब फिल्मों में मेरे किरदारों की बात आती है तो इसके लिए मेकअप एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।" श्रद्धा ने हालांकि कहा कि वह इसके लिए चिंतित नहीं रहती कि वास्तविक जीवन में वह कैसी दिखती हैं। उन्होंने कहा, "मैं वास्तविक जीवन में कैसी दिखती हूं, इसके लिए ज्यादा सचेत नहीं रहती हूं। ऐसे कई दिन होते हैं जब मुझे फुंसी (पिंपल) होती हैं और मेरे बाल खराब होते हैं। इसके अलावा अधिक यात्रा करने के कारण मेरी त्वचा थकी हुई दिखती है। मैं एयरपोर्ट पर उसी तरह से फोटो खींचती हूं और इसके साथ मैं ठीक हूं। फुंसी स्वाभाविक रूप से हो जाती है और हम सभी मानव हैं, न कि प्लास्टिक। कई सौंदर्य और कॉस्मेटिक ब्रांडों का समर्थन करती दिखने वाली अभिनेत्री इसके बाद हंसती हैं। 

वैसे तो जम्मू हमेशा मेरे दिल में बसता है, लेकिन जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद से जम्मू मेरे दिल में ज्यादा बसने लगा है। जम्मू-कश्मीर में जो राजनीतिक बदलाव किए गए हैं, उसके पीछे वहां की स्थिति बेहतर करने का लक्ष्य बताया गया है। देखिए, कुछ चीजें तो कचोटने वाली थीं ही। कुछ लोगों को प्रथम श्रेणी का नागरिक बना दिया गया था, जबकि विशिष्ट भाषा और संस्कृति के बावजूद हम द्वितीय श्रेणी के नागरिक बने रहे। इससे स्वाभाविक ही दुख पहुंचता था। जो वहां पैदा हुआ हो और जिसके मन-मस्तिष्क में अपने पहाड़, अपनी घाटियां, अपनी भाषा और अपनी संस्कृति रची-बसी हो, उसके प्रति उपेक्षा और अलगाव का भाव पैदा हो, तो उसे दुख पहुंचेगा ही। अब कहा जा रहा है कि सबको बराबरी का दर्जा प्रदान करने के लिए यह कदम उठाया गया है। क्या यह वास्तव में संभव है? बराबरी की बातें की जरूर जाती हैं, लेकिन सब बराबर नहीं होते।
 
मैं जम्मू के ऐतिहासिक पुरमंडल गांव में पैदा हुई, जो जम्मू शहर से 40 किलोमीटर दूर शिवालिक की पहाड़ियों और गुप्त गंगा देविका के किनारे बसा एक छोटा-सा गांव  है। मैं पुरमंडल के प्रतिष्ठित राजपुरोहित परिवार से हूं। लोग हमें पहाड़ वाले पंडित कहा करते थे। मेरे पिता पंडित जयदेव शर्मा हिंदी और संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे। मैं जो कुछ भी लिख पाई हूं, वह मेरे पिता की ही देन हैं। हालांकि जब मैं सात साल की थी, तौभी वह चल बसे थे। वर्ष 1947 के दंगे में वह मारे गए थे। मैं भाई-बहनों में सबसे बड़ी थी। पिता की मृत्यु के एक साल बाद जब उनकी बरसी के लिए मेरे ताऊजी हमें गांव ले गए, तो वहां डोगरी लोकगीतों से मेरा साबका पड़ा। वे लोकगीत इतने मधुर और आकर्षित करने वाले थे कि बारह-तेरह साल की छोटी उम्र में मैं डोगरी में कविताएं लिखने लगी थी।

गांव के अद्भुत प्राकृतिक दृश्यों के अलावा डोगरी लोकगीतों ने मुझे कविता लिखने के लिए प्रेरित किया। सच कहूं, तो लोकगीतों के कारण ही मेरा लिखना शुरू हुआ। उस समय डोगरी का जो लोकगीत चल रहा होता, मैं उसमें छंद जोड़ देती। हालांकि कुछ और विषय मेरे मन-मस्तिष्क को मथते रहते और कविता तैयार हो जाती। जैसे समाज में व्याप्त असमानता मुझे बहुत कचोटती थी। मैं अपनी कविताओं में इसके खिलाफ लिखती थी। मैंने कविताओं में अपने को निरंतर मांजने का काम किया। चूंकि मैंने उर्दू साहित्य काफी पढ़ा, तो मेरी कविताओं में आपको इसका प्रभाव दिखेगा। कुल मिलाकर मैंने यह कोशिश की कि मेरी कविताओं पर मेरी मौलिकता की छाप रहे।

 

उस दौर की एक घटना मुझे आज भी खास तौर पर याद है, जिसका जिक्र मैंने आत्मकथा में किया है। पिता की मृत्यु के बाद मां की बाजार कसाबा स्कल, जम्मू में नौकरी लग गई थी। वह वहां पढ़ाती थीं। एक दिन वह रोती हुई घर आई, तो मैंने उनसे पूछा कि क्या हुआ? वह कहने लगीं, इंस्पेक्टर मिसेज ठूसू ने सभी शिक्षकों के साथ-साथ मुझे भी डांटा है। मेरे तन-बदन में आग लग गई। मैं संतानों में सबसे बड़ी थी। मैं उसी समय इंस्पेक्टर के घर पर चली गई। मैंने उन्हें याद दिलाया कि जो आपने भोगा है,  मेरी मां ने उससे कहीं ज्यादा भोगा है। हम तीन बच्चे हैं और मेरी मां महज बाईस साल की औरत है। आपने मेरी मां को डांटा है, लिहाजा वह अब इस स्कूल में कभी नहीं आएगी। इंस्पेक्टर मुझे जानती थीं। वह मुझे बुलाती रह गईं, लेकिन मैं अपना फैसला सुनाकर निकल गई। मां उसके बाद स्कूल नहीं गईं। गनीमत यह थी कि थोड़े दिनों बाद उन्हें पिता की पेंशन मिलने लगी।     

गांव की पहाड़ियां आज भी मुझे याद आती हैं। आज भी जब मैं कविता लिखती हूं, तो मन ही मन पहाड़ियों तक पहुंच जाती हूं। जब छोटी थी, तब मैं ऊपर से नीचे तक पूरा जम्मू शहर घूम लेती थी। जम्मू से इस अनुराग के कारण ही शादी के बाद मैंने अपने पति से जम्मू में एक घर लेने के लिए कहा था। वे दिन कितने खुशनुमा थे। मैं रघुनाथ मंदिर में जाती, तो शहर के सभी साहित्यकारों से मिल लेती। आखिर मेरे परिचितों में ज्यादातर साहित्यिक बिरादरी के लोग ही तो थे। आज का जम्मू वह जम्मू नहीं रह गया है। हालांकि जम्मू मेरा जाना-आना तो लगा ही रहता है। लेकिन अब तो गाड़ी से जाना होता है और लोगों से मेल-मुलाकात का सिलसिला बहुत कम रह गया है।

जम्मू,  कश्मीर और लद्दाख के साथ डोगरी भाषा और संस्कृति की भी चर्चा हो रही है। पूछा यह जा रहा है कि डोगरी भाषा का क्या भविष्य है? लेकिन मेरा यह सवाल है कि दक्षिण भारत क़ी भाषाओं को छोड़ दें, तो शेष दूसरी भाषाओं का क्या भविष्य है। डोगरी भाषा में मेरे अलावा भी लिखने वाले बहुत हैं। लेकिन दुख की बात यह है कि डोगरी में लिखने वाले ज्यादातर साहित्यकार पुरस्कार की ही ज्यादा कामना करते हैं। हालांकि ऐसा सिर्फ डोगरी में नहीं है, दूसरी भाषाओं में भी यही हाल है। लेकिन मेरे लिए यह परिदृश्य बहुत दुखद है।

 

मैं यह कल्पना भी नहीं कर सकती कि कोई सिर्फ पुरस्कार पाने के लिए लिखता है। मुझे तो बहुत जल्दी ही पुरस्कार मिल गया था। मुझे तीस साल की उम्र में ही साहित्य अकादेमी पुरस्कार मिल गया था। तब मुझे समझ में ही नहीं आया था कि यह है क्या। सच कहूं, तो मैंने कभी पुरस्कार पाने की कामना नहीं की। बहुत-से कवि-लेखक ऐसे हैं, जो मेरी तरह सोचते हैं।

जहां तक डोगरी की बात है, तो वह बहुत ही खूबसूरत भाषा है। वर्ष 2015 में डोगरी में लिखी गई आत्मकथा चित्त चेते के लिए जब मुझे सरस्वती सम्मान मिला था, तब मैंने कहा था, यह दुनिया खूबसूरत शब्दों से भरी हुई है, जिनसे कहानी बनती है। इनमें से कुछ मेरी अपनी भाषा डोगरी में है। और मुझे जो सम्मान मिला है, उस पर पूरे डोगरी समुदाय को गर्व है। वैसे मैं बता दूं कि चित्त का अर्थ होता है मन और चेते का मतलब होता है स्मृतियां। डोगरी लोकगीतों से मिली प्रेरणा ने ही मुझे यहां    तक पहुंचाया। मैं डोगरी की बिल्कुल शुरुआती कवयित्री हूं। डोगरी में मैंने कहानियां भी लिखी हैं। शुरुआत में मैं जम्मू और कश्मीर रेडियो में स्टाफ कलाकार के रूप में कार्यरत थी। उसके बाद मैंने दिल्ली रेडियो में डोगरी समाचार वाचिका के रूप में काम किया।      

इधर कुछ लिखने का मन है। लेकिन शरीर के अपने बंधन हैं। हालांकि जब से मैं पैदा हुई हूं, तब से शायद ही मैं कभी ठीक रही हूं। लेकिन जब मैं कागज पर कलम से नहीं लिख पाती, तब भी मन ही मन में लिखती हूं। यह भी एक अच्छा अनुभव है।
 

मुंबई। अभिनेत्री विद्या बालन ने मंगलवार को कहा कि युवा अदाकारों को याद रखना चाहिए कि कोई अवसर इतना बड़ा नहीं हो सकता कि अपनी सुरक्षा से समझौता किया जाए। बालन ने हाल ही में एक साक्षात्कार में कथित तौर पर कुछ साल पहले अपने साथ हुई कास्टिंग काउच की घटना की आपबीती सुनाई थी। पत्रकार और वृत्तचित्र निर्माता मिनी वैद की इसरो पर आई पुस्तक के विमोचन के मौके पर जब विद्या बालन से पूछा गया कि उन नवोदित कलाकारों के लिए उनका क्या संदेश है जिन्हें इसी तरह की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है, इस पर अभिनेत्री ने संवाददाताओं से कहा कि ईमानदारी से कहूं तो मैं इस घटना के बारे में भूल चुकी थी क्योंकि संयोग से कुछ हुआ नहीं था। उन्होंने कहा कि लेकिन उस दिन इंटरव्यू के दौरान मुझे सालों बाद वो घटना याद आ गयी। लेकिन मेरा सौभाग्य था कि मुझे कुछ नहीं हुआ। कोई जबरदस्ती, कोई छेड़छाड़ नहीं हुई। विद्या बालन ने कहा कि मेरा मानना है कि कोई अवसर इतना बड़ा नहीं हो सकता कि आप अपनी सुरक्षा से भी समझौता कर लें। अगर आप अच्छे हैं और खुद पर भरोसा करते हैं तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है।

मुम्बई। सलमान खान ने बॉलीवुड में 31 वर्ष का सफर पूरा करने पर अपने प्रशंसकों का शुक्रिया अदा किया। अभिनेता (53) ने सोशल मीडिया पर अपने बचपन की एक तस्वीर साझा करते हुए लिखा, ‘‘ भारतीय फिल्म जगत का बहुत-बहुत शुक्रिया, उन सभी का जो इस 31 साल के सफर का हिस्सा रहें, विशेषकर मेरे सभी प्रशंसक और मेरे शुभचिंतक, जिन्होंने इस बेहतरीन सफर को मुमकिन बनाया।’’

सलमान ने 1988 में आई फिल्म ‘बीवी हो तो ऐसी’से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की थी। लेकिन बतौर मुख्य अभिनेता उनकी पहली फिल्म 1989 में आई ‘मैनें प्यार किया’ थी। ‘हम आपके हैं कौन ’(1994), ‘करण अर्जुन’ (1995), ‘खामोशी’ (1996), ‘जुड़वां’ (1997), ‘बीवी नंबर-1’ (1999) उनके करियर की हिट फिल्में रहीं।
वहीं पिछले एक दशक में, सलमान ने ‘दबंग’ (2010), ‘रेडी’ (2011), ‘बॉडीगार्ड‘ (2011),  एक था टाइगर’ (2012), ‘किक’ (2014), ‘सुल्तान’ (2016), ‘टाइगर जिंदा है’ (2017), ‘भारत’ (2019) जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्म दे चुके हैं। वहीं अभी वह फिल्म ‘दबंग3’ की शूटिंग में मसरूफ हैं।

मुंबई। कश्मीर पर हुकूमत करने वाली आखिरी हिन्दू महारानी कोटा रानी पर फिल्म बनाई जाएगी। एक प्रेस विज्ञप्ति में मंगलवार को बताया गया है कि इस महत्वाकांक्षी फिल्म को बनाने के लिए रिलायंस एन्टर्टेन्मेंट और फैंटम फिल्म्स ने हाथ मिलाया है। कोटा रानी 13वीं सदी में कश्मीर की शासक थी। वह ऐसे समय में राज्य का नेतृत्व कर रही थी जब बहुत नाटकीय घटनाक्रम हो रहा था। इसके बाद शाह मीर वंश राज्य का पहला विदेशी शासक बना। वह अच्छी प्रशासक और सैन्य रणनीतिकार थी।  फैंटम फिल्म्स की मधु मंटेना ने कहा कि महारानी की कहानी ऐसी है जिसे लोगों को बताया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह हैरत की बात है कि भारतीयों को कोटा रानी जैसी शख्सियत के बारे में जानकारी नहीं है। उनकी जिंदगी काफी नाट्कीय रही और संभवत: वह भारत की सबसे काबिल महिला शासकों में से एक थीं।

News Creation : अक्सर परीक्षा के परिणाम आने के बाद, परीक्षा में अच्छे प्रतिशत न ला पाने या फेल हो जाने के दुख से कई बच्चे बाहर निकल नही पाते और वोकर बैठते हैं। जो न सिर्फ उनके माता-पिता के लिए अभिशाप बन जाता है बल्कि समाज की दशा व दिशा पर बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा देता है। की कहां जा रहे हैं हम? क्या कभी हमने इस बारे में सोचा है?

News Creation : अपनी पिछली फिल्म जीरो के फ्लॉप होने के बाद शाहरुख काफी निराश हुए थे और उन्होंने फिल्मी दुनिया से ब्रेक लेने का फैसला किया. हालांकि अब उनके फैंस के लिए एक खुशखबरी आई है.

News Creation : पिछले काफी समय से दीपिका पादुकोण डिप्रेशन के साथ अपनी लड़ाई पर काफी बोलती रही हैं। हाल में एक मैगजीन से बात करते हुए उन्होंने एक बार फिर इस मुद्दे पर बात की।

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