ईश्वर दुबे
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Bhilai
देश और दुनिया में कोरोना महामारी का सबसे ज्यादा असर शिक्षा के क्षेत्र पर पड़ा है। इस समस्या के बीच उच्च शिक्षा से जुड़े छात्रों को कैसे रूबरू कराया जाए। इसको लेकर मोदी सरकार ने लॉन्ग टर्म योजना तैयार की है। केंद्र सरकार ने इसके लिए डिजिटल यूनिवर्सिटी बनाने की योजना तैयार की है।
व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के बारे में तो आप सभी जानते हैं। यह एक वर्चुअल वर्ल्ड है, जहाँ पर लोग एक अलग ही लेवल की पढ़ाई पढ़ रहे है, वहां पर पढ़ाने के लिए कोई डिग्री की आवश्यकता नही होती, कोई भी किसी को पढ़ा सकता है, वहां एडमीशन लेने के लिए बस एक ही शर्त है कि आपके पास एक ऐसा फोन होना चाहिए जिसमें व्हाट्सएप चलता हो। इस यूनिवर्सिटी ने न जाने हर साल कितने लोगों को किसी भी विषय का महाज्ञानी बना दिया। इसने फेक ज्ञान के जरिये डिजिटल एजुकेशन का नजाक बनाकर रख दिया। ऐसे में अब देश में पहली सरकारी डिजिटल यूनिवर्सिटी खुलने जा रही है। देश और दुनिया में कोरोना महामारी का सबसे ज्यादा असर शिक्षा के क्षेत्र पर पड़ा है। इस समस्या के बीच उच्च शिक्षा से जुड़े छात्रों को कैसे रूबरू कराया जाए। इसको लेकर मोदी सरकार ने लॉन्ग टर्म योजना तैयार की है। केंद्र सरकार ने इसके लिए डिजिटल यूनिवर्सिटी बनाने की योजना तैयार की है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट 2022 में डिजिटल यूनिवर्सिटी के गठन का ऐलान किया है। डिजिटल यूनिवर्सिटी के गठन का ऐलान करते हुए सीतारमण ने कहा कि इसका निर्माण हब एंड स्पोक मॉडल के आधार पर किया जाएगा। ऐसे में आपको बताते हैं कि आखिर क्या होती है डिजिटल यूनिवर्सिटी, क्या हैं इसके फायदे, छात्रों को इससे कैसे लाभ पहुंचाया जाएगा, देश और दुनिया में कहां हैं डिजिटल यूनिवर्सिटी?
क्या होती है डिजिटल यूनिवर्सिटी?
ये एक ऐसी यूनिवर्सिटी होती है जो छात्रों को कई तरह के कोर्स और डिग्रियों की पढ़ाई पूरी तरह ऑनलाइन तरीके से कराती है। डिजिटल यूनिवर्सिटी एक डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर और ट्रेनिंग उपलब्ध कराने के लिए देश की अन्य केंद्रीय यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर काम करेगी। वित्त मंत्री ने ये साफ नहीं किया है कि डिजिटल यूनिवर्सिटी में किस तरह के कोर्स पढ़ाए जाएंगे। माना जा रहा है कि इसमें टेक्नलॉजी समेत कई कोर्स की ऑनलाइन पढ़ाई कराई जा सकेगी। इसका सबसे ज्यादा फायदा ये होगा कि देश के दूर दराज क्षेत्रों में मौजूद छात्रों को भी वर्ल्ड क्लास शिक्षा मिल पाएगी। डिजिटल यूनिवर्सिटी में देश की टॉप यूनिवर्सिटी को जोड़ने की योजना है। इससे छात्रों को एक ही प्लेटफॉर्म के जरिये कई टॉप यूनिवर्सिटी के कोर्स करने का मौका मिल जाएगा। इस यूनिवर्सिटी से किसी भी छात्र को किसी शहर में गए बिना अपने घर बैठे ही उस शहर की टॉप यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने का सपना पूरा होगा।
डिजिटल विश्वविद्यालय क्यों स्थापित किया जा रहा है?
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के अनुसार देश में बच्चे कोविड -19 के कारण स्कूलों में नहीं जा पाए हैं। सीतारमण ने कहा कि स्कूलों के महामारी की वजह से बंद होने के कारण, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति और अन्य कमजोर वर्गों के बच्चों ने लगभग दो साल की औपचारिक शिक्षा खो दी है। उन्होंने यह भी कहा कि अधिकांश प्रभावित बच्चे सरकारी स्कूलों से थे और केंद्र पूरक शिक्षण प्रदान करने और शिक्षा वितरण के लिए एक लचीला तंत्र बनाने की आवश्यकता को चिन्हित करता है।
क्या हैं इसके फायदे
डिजिटल यूनिवर्सिटी में कैंपस होता है। जहां टीचर्स स्टाफ होते हैं। इस कैंपस के जरिये ही अलग-अलग जगहों पर मौजूद छात्रों को अलग-अलग कोर्स की ऑनलाइन शिक्षा उपलब्ध कराई जाएगी। देश में पहले डिजिटल यूनिवर्सिटी केरल के टेक्नोसिटी में फरवरी 2021 में ही खुल गई थी। इसकी स्थापना दो दशक पुराने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेन टेक्नॉलजी एंड मैनेजमेंट केरल को अपग्रेड करके की गई। केरल की ये यूनिवर्सिटी पोस्ट ग्रैजुएट प्रोग्राम और कई तरह के डिजिटल टेक्नलॉजी के क्षेत्रों में रिसर्च कोर्स उपलब्ध कराती है। वहीं देश की दूसरी डिजिटल यूनिवर्सिटी की स्थापना राजस्थान के जोधपुर में की जा रही है।
छात्रों को इससे कैसे लाभ
सीधे शब्दों में कहे तो हब एंड स्पोक मॉडल का मतलब है कि आपने एक मैसेज क्रिएट किया और फिर उसे एक ही बार में अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर शेयर किया। इसमें मैसेज हब हुआ और प्लेटफॉर्म स्पोक। यूनिवर्सिटी में पाठ्यक्रम विभिन्न भारतीय भाषाओं और आईसीटी प्रारूपों में उपलब्ध कराया जाएगा। इससे सभी राज्य कक्षा 1 से 12 तक क्षेत्रीय भाषाओं में पूरक शिक्षा प्रदान करने में सक्षम होंगे। देश की सर्वश्रेष्ठ प्राइवेट यूनिवर्सिटी एक हब और स्पोक नेटवर्क के रूप में इससे कोलैबोरेट करेंगे।
देश और दुनिया में कहां हैं
दुनिया में कई यूनिवर्सिटी डिजिटल प्रोग्राम डिग्रीयां उपलब्ध करा रही हैं। हालांकि दुनिया में पूरी तरह डिजिटल यूनिवर्सिटी के तौर पर काम करने वाली कोई भी यूनिवर्सिटी नहीं है। लेकिन कई टॉप यूनिवर्सिटी हैं जो पूरी तरह से कई ऑनलाइन कोर्सज कराती हैं। लेकिन ये यूनिवर्सिटी ऑफलाइन शिक्षा यानी कैंपस में पढ़ाई के साथ-साथ ऑनलाइन कोर्स भी कराती हैं।
डिजिटल यूनिवर्सिटी में कौन-कौन से कोर्स ऑफर किए जा रहे हैं?
स्कूल ऑफ कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग
स्कूल ऑफ डिजीटल साइंस, स्कूल ऑफ इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम
स्कूल ऑफ इंफार्मेटिक
स्कूल ऑफ डिजिटल ह्यूमैनिटी
लिबरल आर्ट, कवरिंग साइंस, टेक्नॉ लजी एंड ह्यूमैनिटी
-अभिनय आकाश
कोरोना महामारी के काल में लागू किए गए देशव्यापी लॉकडाउन के चलते बहुत विपरीत रूप से प्रभावित हुए छोटे छोटे व्यापारियों एवं एमएसएमई इकाईयों को बचाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने एक आपात ऋण गारंटी योजना लागू की थी।
भारत में एमएसएमई क्षेत्र कृषि के बाद दूसरा सबसे बड़ा रोजगार उपलब्ध कराने वाला क्षेत्र माना जाता है। एमएसएमई क्षेत्र में करीब 11 करोड़ लोगों को रोजगार प्राप्त होता है। एमएसएमई क्षेत्र का देश के सकल घरेलू उत्पाद में 30 प्रतिशत और देश के निर्यात में 48 प्रतिशत का योगदान रहता है। भारत में 6.3 करोड़ एमएसएमई इकाईयां कार्यरत हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में एमएसएमई क्षेत्र के महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए वित्तीय वर्ष 2022-23 के आम बजट में इस क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिया गया है।
कोरोना महामारी के काल में लागू किए गए देशव्यापी लॉकडाउन के चलते बहुत विपरीत रूप से प्रभावित हुए छोटे छोटे व्यापारियों एवं एमएसएमई इकाईयों को बचाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने एक आपात ऋण गारंटी योजना लागू की थी। इस योजना के अंतर्गत बैकों को यह निर्देश दिए गए थे कि छोटे व्यापारियों एवं एमएसएमई इकाईयों को उनका व्यापार पुनः खड़ा करने के उद्देश्य से उन्हें पूर्व में स्वीकृत ऋणराशि का 20 प्रतिशत, अतिरिक्त ऋण के रूप में प्रदान किया जाय एवं इस राशि की गारंटी केंद्र सरकार द्वारा उक्त योजना के अंतर्गत प्रदान की जाएगी। बैंकों को इस योजना के अंतर्गत 4.5 लाख करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत करने का लक्ष्य प्रदान किया गया था। ऋण के रूप में प्रदान की गई अतिरिक्त सहायता की राशि से देश में लाखों उद्यमों को तबाह होने से बचा लिया गया है। भारतीय स्टेट बैंक द्वारा जारी एक प्रतिवेदन में यह बताया गया है कि उक्त योजना द्वारा न केवल 13.5 लाख एमएसएमई इकाईयों को कोरोना महामारी के दौर में बंद होने से बचाया गया है बल्कि 1.5 करोड़ लोगों को बेरोजगार होने से भी बचा लिया गया है। इसी प्रकार एमएसएमई के 1.8 लाख करोड़ रुपए की राशि के खातों को विभिन्न बैंकों में गैर निष्पादनकारी आस्तियों में परिवर्तिति होने से भी बचा लिया गया है। उक्त राशि एमएसएमई इकाईयों को प्रदान किए गए कुल ऋण का 14 प्रतिशत है। इस योजना के अंतर्गत बैंकों द्वारा प्रदान की गई कुल ऋणराशि में से 93.7 फीसदी राशि सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम इकाईयों को प्रदान की गई है। छोटे व्यवसायी (किराना दुकानदारों सहित), फुड प्रोसेसिंग इकाईयों एवं कपड़ा निर्माण इकाईयों को भी इस योजना का सबसे अधिक लाभ मिला है। गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु एवं उत्तर प्रदेश में कार्यरत एमएसएमई इकाईयों ने इस योजना का सबसे अधिक लाभ उठाया है।
उक्त योजना की अवधि 31 मार्च 2022 को समाप्त होने जा रही थी परंतु चूंकि एमएसएमई क्षेत्र में कार्यरत हासपीटलिटी उद्योग से सबंधित इकाईयां व्यापार के मामले में अभी भी कोरोना महामारी के पूर्व के स्तर को प्राप्त नहीं कर पाईं हैं अतः आपात ऋण गारंटी योजना की अवधि को 31 मार्च 2023 की अवधि तक बढ़ा दिया गया है। साथ ही, वितीय वर्ष 2022-23 के आम बजट में यह घोषणा भी की गई है कि एमएसएमई क्षेत्र की इकाईयों को 50,000 करोड़ रुपए की राशि का अतिरिक्त ऋण भी उक्त योजना के अंतर्गत बैंकों द्वारा स्वीकृत किया जाएगा। इसके अलावा भी एमएसएमई इकाईयों की पूंजी सम्बंधी कमी को दूर करने के लिए इन इकाईयों को 2 लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त ऋण बैंकों द्वारा सीजीटीएमएसई गारंटी योजना के अंतर्गत उपलब्ध कराया जाएगा। अब छोटे व्यापारियों एवं एमएसएमई इकाईयों को उक्त योजना के अंतर्गत बैंकों से अतिरिक्त सहायता की राशि 31 मार्च 2023 की अवधि तक उपलब्ध होती रहेगी।
केंद्र सरकार द्वारा लागू की गई आपात ऋण गारंटी योजना चूंकि बहुत सफल रही है अतः इस योजना के अच्छे बिंदुओं को बैंकों में पिछले लगभग दो दशकों से चल रही इसी प्रकार की सीजीटीएमएसई योजना में शामिल किये जाने पर विचार किया जाएगा। वर्तमान में सीजीटीएमएसई योजना का लाभ विभिन्न बैंकों द्वारा अपने बहुत कम हितग्राहियों को दिया जा रहा है।
कुछ समय पूर्व तक भारत सुरक्षा उत्पादों का लगभग 100 प्रतिशत आयात करता था परंतु अब कई सुरक्षा उत्पादों का भारत में ही निर्माण किया जाने लगा है। इस वर्ष के बजट में यह प्रावधान किया गया है कि सुरक्षा उत्पादों की कुल जरूरत का 68 प्रतिशत भाग देश में ही निर्माण कर रही सुरक्षा उत्पादक इकाईयों से खरीदा जाय। इससे देश में नए नए उद्योगों को स्थापित करने में मदद मिलेगी, रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित होंगे एवं विदेशी मुद्रा की बचत भी की जा सकेगी। इस प्रकार भारत सुरक्षा उत्पादों के निर्माण के क्षेत्र में शीघ्र ही आत्म निर्भरता हासिल कर लेगा। केंद्र सरकार द्वारा आम बजट में की गई उक्त घोषणा का लाभ सुरक्षा उत्पाद के क्षेत्र में कार्यरत कई एमएसएमई इकाईयों को भी मिलेगा।
एमएसएमई क्षेत्र में कार्यरत सेकंडरी स्टील उत्पादक इकाईयों को स्टील स्क्रैप पर लगाने वाली कस्टम ड्यूटी की छूट भी एक और वर्ष के लिए जारी रहेगी। इसका सीधा सीधा लाभ उक्त क्षेत्र में उत्पादन करने वाली एमएसएमई इकाईयों को मिलना जारी रहेगा।
31 जनवरी 2022 को जारी किए गए आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है कि भारत में 61,400 स्टार्टअप स्थापित हो चुके हैं। वित्तीय वर्ष 2022 में देश में 14,000 नए स्टार्टअप प्रारम्भ हुए हैं। देश के 555 जिलों में कम से कम एक स्टार्टअप स्थापित कर लिया गया है। विशेष रूप से पिछले 6 वर्षों के दौरान देश में बड़ी संख्या में नए नए स्टार्टअप, विशेष रूप से सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में, स्थापित किए गए है। इनमें से कई स्टार्टअप एमएसएमई इकाईयों के रूप में प्रारम्भ किया जा रहे है। वित्तीय वर्ष 2022-23 के आम बजट के माध्यम से यह घोषणा की गई है कि इन स्टार्टअप को दी जाने वाली टैक्स सम्बंधी सुविधाएं एक और वर्ष के लिए जारी रहेंगी। साथ ही, ड्रोन शक्ति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से नए स्टार्टअप एमएसएमई क्षेत्र में प्रारम्भ किए जाएंगे। इससे इस क्षेत्र में रोजगार के कई नए अवसर निर्मित होंगे।
इसी प्रकार केंद्र सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष 2022-23 में किए जाने वाले पूंजीगत खर्चों में अधिकतम 35.4 प्रतिशत की वृद्धि की घोषणा करते हुए इसे 7.50 लाख करोड़ रुपए की राशि तक ले जाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। केंद्र सरकार के पूंजीगत खर्चों में हो रही इस आकर्षक वृद्धि के कारण एमएसएमई क्षेत्र में कार्यरत इकाईयों के व्यवसाय में भी वृद्धि दृष्टिगोचर होगी।
केंद्र सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा एमएसएमई क्षेत्र को आसान शर्तों एवं कम ब्याज की दर पर ऋण उपलब्ध कराने हेतु लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। परंतु, एमएसएमई क्षेत्र को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए अभी भी बहुत कुछ किये जाने की आवश्यकता है। एमएसएमई इकाईयों द्वारा निर्मित उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय स्तर का बनाना आवश्यक है एवं इन उत्पादों की लागत भी कम करने की जरूरत है ताकि इनके निर्यात को बढ़ाया जा सके। अन्य विकसित देशों में भी सरकारों द्वारा एमएसएमई इकाईयों की विशेष मदद की जाती है। हमारे देश में सेवा क्षेत्र में कार्यरत इकाईयां तो बहुत आगे आ गईं है परंतु विनिर्माण के क्षेत्र में कार्यरत इकाईयों को अभी भी केंद्र एवं राज्य सरकारों के सहायता की आवश्यकता है। देश के अर्थव्यवस्था में विनिर्माण क्षेत्र का योगदान केवल 14 से 17 प्रतिशत तक ही रहता है इसे बढ़ाकर 25 प्रतिशत किए जाने की आवश्यकता है। हालांकि केंद्र सरकार अब सुरक्षा उत्पादों का भारत में ही निर्माण करने पर लगातार जोर दे रही है अतः इस क्षेत्र में एमएसएमई इकाईयों का योगदान भी बढ़ेगा, ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है। विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा देश में एमएसएमई क्षेत्र के लिए निर्धारित किए गए उत्पादों की न्यूनतम खरीद सम्बंधी नियमों का कठोरता से पालन करना आवश्यक है। साथ ही, इन इकाईयों से खरीदे गए उत्पादों का भुगतान भी निर्धारित समय सीमा में करने से भी एमएसएमई इकाईयों की बहुत सहायता होगी।
- प्रहलाद सबनानी
कर्नाटक के स्कूल और कॉलेज में पहले हिजाब पहने को लेकर सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक प्रदर्शन हुए। बकायदा कैंपेन चलाए गए और अब हिजाब के विरोध में छात्रों के कुछ गुट भगवा के शॉल लेकर आ गए। जिद के साथ कि अगर शिक्षा संस्थानों में हिजाब पहनने की इजाजत देंगे तो गैर मुस्लिम छात्र भगवा शॉल ओढ़कर आएंगे।
कर्नाटक में हिजाब बनाम किताब की जंग अब देश में सियासत का बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। कर्नाटक के स्कूल और कॉलेज में पहले हिजाब पहने को लेकर सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक प्रदर्शन हुए। बकायदा कैंपेन चलाए गए और अब हिजाब के विरोध में छात्रों के कुछ गुट भगवा के शॉल लेकर आ गए। इस जिद के साथ कि अगर शिक्षा संस्थानों में हिजाब पहनने की इजाजत देंगे तो गैर मुस्लिम छात्र भगवा शॉल ओढ़कर आएंगे। हिजाब बनाम किताब की ये जंग किस हद तक बढ़ चुकी है कि अब इसमें राष्ट्रीय नेताओं की भी एंट्री हो गई है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मामले पर कर्नाटक के कुछ कॉलेजों के हिजाब उतारकर आने के आदेश को लेकर निशाना साधते हुए कहा कि छात्रों के हिजाब को उनकी शिक्षा में आड़े आने देकर हम भारत की बेटियों का भविष्य छीन रहे हैं। राहुल ने इसके साथ ही लिखा कि मां सरस्वती सभी को ज्ञान देती हैं। वह भेद नहीं करती। ऐसे में आज आपको बताते हैं कि क्या है पूरा मामला। कर्नाटक में हिजाब से शुरू हुई जंग भगवा वस्त्र तक क्यों पहुंच गई? धार्मिक स्वंत्रता को लेकर क्या कहता है हमारा संविधान।
क्या है पूरा मामला
मामला जनवरी का है, जब कर्नाटक के उडुपी के एक कॉलेज में 6 मुस्लिम छात्राएं क्लासरूम में हिजाब पहनने पर अड़ गई थीं। कॉलेज के प्रिंसिपल रूद्र गौड़ा ने कहा था कि छात्राएं कॉलेज कैंपस में हिजाब पहन सकती हैं, लेकिन क्लासरूम में इसकी इजाजत नहीं है। इसके बाद एक स्टूडेंट की मां ने संविधान के अनुच्छे 14 और 25 का हवाला देकर इसे मौलिक अधिकार का हनन बताते हुए याचिका दायर की थी। इस याचिका पर सुनवाई 8 फरवरी को होनी है। कर्नाटक सरकार ने इस संबंध में उच्च न्यायालय का अगले सप्ताह कोई आदेश आने तक शैक्षणिक संस्थानों से पोशाक संबंधी मौजूदा नियमों का पालन करने को कहा है।
हिजाब बनाम भगवा शॉल
इसके पहले कर्नाटक के एक सरकारी कॉलेज में हिजाब और भगवा शॉल को लेकर विवाद सामने आया था। जब चिकमंगलूर जिले के बालागाडी राजकीय डिग्री कॉलेज में छात्राओं के हिजाब पहनकर आने बैन लगा दिया गया था। इसके बाद कुछ छात्रों ने भगवा स्कार्फ पहनकर कॉलेज आना शुरु कर दिया था। इसी बात को लेकर तनाव पैदा हो गया था। जिसके बाद कॉलेज प्रशासन ने हिजाब और भगवा शॉल दोनों को बैन कर दिया। इसके बाद वहां का महौल शांत हुआ था।
संविधान के तहत धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा कैसे की जाती है?
धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर संविधान सभा में लंबी बहस हुई। आंबेडकर का मानना था कि लोगों के पास इस बात की व्यक्तिगत स्वतंत्रता होनी चाहिए कि वो जिस धर्म को मानना चाहे मानें। अगर वे धर्म को नहीं भी मानना चाहे तो ना माने। यानी भारत की संसद और संविधान इसमें किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं करेगा। लोगों को क्या धार्मिक पद्दति का अनुसरण करनी चाहिए और कौन से धर्म को मानना चाहिए। इसी तरह से भारत एक पंथनिरपेक्ष देश बन गया। जिसे बाद में 42वें संविधान संशोधन के जरिये प्रस्तावना में भी डाला गया। लेकिन 42वां संशोधन नहीं भी होता तब भी एक बात साफ थी कि राज्य का अपना कोई धर्म नहीं होगा। यानी राज्य खुद से किसी धर्म को फॉलो नहीं करेगा। संविधान के तहत लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त है। इसके साथ ही अगर वे किसी भी धर्म में आस्था नहीं रखना चाहते हैं तो इस बात की भी उन्हें स्वतंत्रता है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तक
संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 के बीच में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का जिक्र है। अनुच्छेद 25 के अनुसार जिस भी धर्म को आप मानना चाहते हैं उसके लिए आप पूरी तरह से स्वतंत्र हैं। स्टेट की तरफ से कहा जाता है कि आप जिस भी धर्म को मानना चाहते हैं उसके लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन उसमें कुछ सीमाएं भी निर्धारित की गई हैं। सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता, स्वास्थ्य या फिर इस पूरे प्रावधान के दूसरे पाठ अगर आपके धार्मिक अभ्यास किसी और के मूलभूत अधिकारों को प्रभावित कर रही है तो फिर उस धर्म को फॉलो करने या धार्मिक अभ्यास को करने से रोका जाएगा। ऐसे में भारत में धार्मिक स्वतंत्रता तो है लेकिन इसके अनुसरण की कुछ सीमाएं भी बताई गई हैं। इसके साथ ही सरकार कानून भी बना सकती है। जैसे स्टेट को लगता है कोई मंदिर है या कोई दरगाह जैसी कोई पवित्र जगह है जहां लोग सजदा करते हैं। उदाहरण के लिए अमरनाथ यात्रा की बात करें तो बहुत सारे लोग वहां पर नहीं जा पाते। बर्फिला और पहाड़ियों वाला इलाका है और साथ ही रास्ते भर में खाना-पानी की सप्लाई जरूरी होती है। इसके साथ ही सबसे अहम बिंदु सुरक्षा का है। सरकार उसके लिए सुविधाएं और लाभ देती है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को जाने की इजाजत दी थी। कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को मंदिर में घुसने की इजाजत ना देना संविधान के अनुच्छेद 25 (धर्म की स्वतंत्रता) का उल्लंघन है। लिंग के आधार पर भक्ति (पूजा-पाठ) में भेदभाव नहीं किया जा सकता है। कोर्ट की तरफ से कहा गया था कि आप अपनी धार्मिक अधिकार का अभ्यास कर रहे हैं तो आप किसी दूसरे के मौलिक अधिकारों का अतिक्रमण नहीं कर सकते। बाबा साहेब आंबेडकर का मानना था कि पर्सनल लॉ को ऑर्टिकल में जगह नहीं दी जाए। पर्सनल लॉ को मानने के लिए बहुत सारे लोगों को जबरन मजबूर भी किया जाने लगता है। ऐसी स्थिति में ये बात आ जाती है कि ये व्यक्तिग अधिकार है।
अनुच्छेद 26 क्या कहती है-
अपने धर्म विषयक कार्यों का प्रबंध करने का अधिकार। इसके अतिरिक्त चल और अचल संपत्ति के अर्जन तथा स्वामित्व का अधिकार, ऐसी संपत्ति का कानून के अनुसार प्रशासन करने का अधिकार। अनुच्छेद 26 भी सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य संबंधी अधिकार देता है। यहां पर आपको बता दें कि केरल हाईकोर्ट के समक्ष इस मठ के मुखिया होने के नाते 1970 में दायर एक याचिका में केशवानंद भारती ने अनुच्छेद 26 का हवाला देते हुए मांग की थी कि उन्हें अपनी धार्मिक संपदा का प्रबंधन करने का मूल अधिकार दिलाया जाए।
अनुच्छेद 27 में एक चीज साफ कर दी गई है कि स्टेट जो है वो किसी भी प्रकार का कर नहीं लेगा। यानी कि किसी भी करदाता को कर देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है जिसकी धनराशि किसी विशेष धर्म या धार्मिक संप्रदाय की उन्नति या देखभाल के लिए खर्च की जाती है। स्टेट कि तरफ से किसी भी धर्म के साथ कोई भेदभाव न हो इसलिए कर का प्रावधान ही नहीं रखा गया। उदाहरण:- हज के लिए सरकार द्वारा पैसे दिए जाते थे परन्तु कोई हिन्दू व्यक्ति नहीं चाहता की उसके द्वारा दिया गया कर हज में जाये तो सरकार उससे हज के लिए कर नहीं ले सकती। इसी प्रकार मानसरोवर यात्रा के लिए यदि कोई मुस्लिम व्यक्ति कर नहीं देना चाहता तो उससे सरकार नहीं ले सकती। स्वच्छता सेस, शिक्षा सेस इसके अन्तर्गत नहीं आते क्योंकि यह सबके लिए होता है इसे देना अनिवार्य होता है।
अनुच्छेद 28 में खण्ड (1) के अनुसार किसी भी पूर्णरूप से राज्य द्वारा पोषित शैक्षिक संस्था में धार्मिक शिक्षण नहीं होगा। इसके खण्ड (2) में 'खण्ड (1)' का अपवाद है। इसके अनुसार यह निषेध उन् शैक्षिक संस्थाओं पर लागू नहीं किया जाएगा, जिनकी स्थापना और धन उपलब्धता किसी न्यास के अन्तर्गत हुई हो जिसमें धार्मिक शिक्षण या धार्मिक पूजा की व्यवस्था थी, भले ही ऐसी संस्था का व्यवस्था राज्य करता हो। खण्ड (3) के अनुसार किसी विद्यार्थी को उसकी या उसके अभिभावक की सम्मति के बिना राज्य व्यवस्थित संस्थाओं में धार्मिक क्रियाओं में उपस्थित होने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
कानूनी पक्ष समझें
वैसे तो हिजाब का मुद्दा कई बार अदालत की दहलीज तक पहुंचा है। 2018 में केरल हाईकोर्ट में फातिम तसनीम बनाम केरल सरकार के मामले में हाईकोर्ट की एकल पीठ ने कहा था कि संस्था सामूहिक अधिकारों को याचिकर्ता के व्यक्तिगत अधिकारों पर प्रधानता दी जाएगी। इस मामले में 12 और 8 साल की दो बच्चियां शामिल थी, जिनके पिता चाहते थे कि वे सिर पर स्कार्फ और पूरी आस्तीन की शर्ट पहनें। हालांकि पूरे मामले पर जस्टिस विनोद चंद्रन की बेंच ने अपील को खारिज कर दिया था। इससे इतर साल 2015 में केरल हाईकोर्ट ने सीबीएसई की एक परीक्षा में शामिल होने के लिए दो मुस्लिम छात्राओं को हिजाब और पूरी आस्तीन के कपड़े पहनने की अनुमति दी थी। वायुसेना में मुस्लिम अफसर अंसारी आफताब अहमद को दाढ़ी रखने को लेकर 2008 में वायुसेना से डिस्चार्ज किया गया था। अंसारी ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि भारतीय वायुसेना में धार्मिक आधार पर अफसर दाढ़ी नहीं बढ़ा सकते। नियम अलग हैं और धर्म अलग. दोनों एक-दूसरे में दखल नहीं दे सकते। सशस्त्र बल विनियम, 1964 का विनियम 425, सशस्त्र बलों के कर्मियों द्वारा बालों के विकास को प्रतिबंधित करता है, सिवाय "उन कर्मियों के जिनके धर्म बाल काटने या चेहरे को शेव करने पर रोक लगाता है। अदालत ने अनिवार्य रूप से माना कि दाढ़ी रखना इस्लामी अभ्यास का अनिवार्य हिस्सा नहीं था।
-अभिनय आकाश
पंजाब को जानने वाले बताते हैं कि यहां की राजनीति अकाली दल और कांग्रेस को लेकर दो ध्रुवीय रही है। देश में जनसंघ व उसके बाद भाजपा के उदय के बाद भी यहां का हिन्दू कांग्रेस पर आँखें मून्द कर विश्वास करता रहा है।
पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष चौधरी सुनील कुमार जाखड़ के हिन्दू होने के कारण मुख्यमन्त्री न बन पाने के मलाल पर राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी पर हिन्दू विरोध का ठप्पा लगता दिखने लगा है। साल 2014 के आम चुनावों में कांग्रेस की दुर्दशा के कारणों को जानने के लिए गठित की गई एके एंटोनी जांच कमेटी ने पार्टी की पराजय के कई कारणों में एक वजह यह भी गिनाई थी कि पार्टी की छवि हिन्दू विरोधी बन चुकी है। राष्ट्रीय परिदृश्य में ढूंढने पर कांग्रेस के हिन्दुओं को लेकर किए साम्प्रदायिक आचरण के अनेक उदाहरण मिल जाएंगे परन्तु पंजाब के सन्दर्भ में भी इस तरह के मामलों की कमी नहीं है। प्रसिद्ध लेखक मदनलाल बिरमानी ने अपनी पुस्तक ‘भारत विभाजन का दुखान्त और संघ’ में कांग्रेस की एक हिन्दूघाती घटना का जिक्र किया है। घटना के अनुसार, देश विभाजन के दिनों जब पंजाब में मुस्लिम लीग के हथियारबन्द दंगाईयों का बोलबाला था तो उन दिनों में पण्डित जवाहर लाल नेहरू अमृतसर दौरे पर आए। यहां के हिन्दुओं के शिष्टमण्डल ने उनसे मिल कर हिन्दू-सिख समाज की रक्षा करने व उन्हें आत्मरक्षा के लिए हथियार उपलब्ध करवाने का आग्रह किया। इस पर पण्डित जी कुछ देर मौन रहे फिर जवाब दिया कि ‘अगर उन्होंने हिन्दू-सिखों को हथियार उपलब्ध करवाए तो मुसलमानों को भी ये सुविधा देनी होगी।’ इस पर शिष्टमण्डल के नेता ने कहा कि ‘ठीक है, हमें मरना ही है तो कम से कम इतना करें कि, आप ही हमें मार दें।’ नेहरू जी ने इसका कोई जवाब नहीं दिया।
कांग्रेस की ऐसी ही मानसिकता का शिकार हुए हैं इसी पार्टी के पूर्व पंजाब प्रदेश अध्यक्ष चौधरी सुनील कुमार जाखड़, जिन्होंने दावा किया है कि कैप्टन अमरिन्दर सिंह की विदाई के बाद प्रदेश का मुख्यमन्त्री चुनने के लिए उनको 79 में से 42 विधायकों का साथ था परन्तु उच्चकमान ने 2 विधायकों के समर्थन वाले चरणजीत सिंह चन्नी को राज्य का सूबेदार बना दिया। चौधरी जाखड़ को यह भी मलाल है कि पार्टी उन पर कोई झूठा आरोप लगाकर इनकार कर देती तो भी चलता, परन्तु उनके धर्म के कारण उन्हें अयोग्य समझा गया यह तो देश के संविधान की भावना के खिलाफ कार्य है और हिन्दू समाज का अपमान।
हिन्दू विरोध के आरोपों से घिरी पंजाब कांग्रेस को वर्तमान में कुछ सूझ नहीं रहा है। केवल भारतीय जनता पार्टी ही नहीं प्रश्न पूछ रही बल्कि, वह आम आदमी पार्टी भी साम्प्रदायिक सद्भाव की बातें कर रही है जो दिल्ली में एक सम्प्रदाय विशेष के युवकों द्वारा मारे गए हिन्दू युवक रिंकू शर्मा की मौत पर मुंह पर पैबन्द लगा कर बैठी रही। जिसके पार्षद दिल्ली दंगों के दौरान हिन्दुओं का खून बहाते रहे। कांग्रेस पर हिन्दू विरोध का ठप्पा तो उसी समय चस्पा हो गया था जब कुर्सी की अदला-बदली के दौरान पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने सार्वजनिक तौर पर यह कहना शुरू कर दिया था कि राज्य का मुख्यमन्त्री हिन्दू नहीं हो, परन्तु अब खुद जाखड़ द्वारा इस विषय में प्रश्न उठाए जाने के बाद हिन्दू अस्मिता के जख्म दोबारा गहरे होते दिख रहे हैं।
पंजाब को जानने वाले बताते हैं कि यहां की राजनीति अकाली दल और कांग्रेस को लेकर दो ध्रुवीय रही है। देश में जनसंघ व उसके बाद भाजपा के उदय के बाद भी यहां का हिन्दू कांग्रेस पर आँखें मून्द कर विश्वास करता रहा है। पिछली सदी के सातवें दशक में कांग्रेस के राजनीतिक प्रयोगों से पैदा हुए हालात के बावजूद हिन्दुओं का इसी पार्टी पर भरोसा बना रहा, जो स्वर्गीय बेअन्त सिंह के समय और भी दृढ़ हुआ क्योंकि उन्होंने अपने कार्यकाल में आतंकवाद पर नकेल कसने में गम्भीरता दिखाई थी। पंजाबी हिन्दुओं का कांग्रेस पर विश्वास का ही प्रभाव है कि यहां का हिन्दू समाज देश में बहुसंख्यकों के साथ होने वाले राजनीतिक अन्याय के आरोपों से भी अलिप्त रहा और कांग्रेस की मतपेटी भरता रहा। शायद कहीं न कहीं हिन्दुओं ने मन ही मन में स्वीकार भी कर लिया कि पंजाब के मुख्यमन्त्री की कुर्सी उनके लिए नहीं है, लेकिन अब जाखड़ प्रकरण ने यहां के इस समाज की अंर्तआत्मा को मानो झझकोर के रख दिया है। इसी का परिणाम है कि आज पंचनदी हिन्दू कांग्रेस व इसी तरह साम्प्रदायिक राजनीति करने वाले दलों को लेकर उद्वेलित दिख रहा है। हिन्दू समाज पूछ रहा है कि जब देश का संविधान उसको समानता देता है तो कोई राजनीतिक दल या नेता कौन हैं उसके साथ भेदभाव करने वाले? क्या पंजाब का हिन्दू दूसरी श्रेणी का नागरिक समझ लिया गया है? क्या पंजाब का हिन्दू अयोग्य है या उसमें नेतृत्व क्षमता नहीं? धर्मनिरपेक्षता की राजनीति करने वाली पार्टियां पंजाब के हिन्दुओं के खिलाफ साम्प्रदायिक दृष्टिकोण क्यों रखती हैं?
ऐसा नहीं है कि पंजाब में जगी हिन्दू चेतना से यहां के राजनेता अनभिज्ञ हैं, अगर ऐसा होता तो प्रदेश के सभी दलों के नेता मन्दिरों व तीर्थों में पूजा-अर्चना करने को पंक्तिबद्ध न खड़े होते। प्रदेश में पहली बार देखने को मिल रहा है कि चुनावों से पहले यहां के राजनेता मन्दिर दर्शन कर रहे हैं, अन्यथा इससे पहले तो कोई नेता मन्दिर या हिन्दुओं के किसी कार्यक्रम में चला जाता तो उसे एक खास धर्म का विरोधी करार दिया जाता रहा है। लोग जानते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार का हिस्सा होने के बावजूद पंजाब के अकाली शिक्षा मन्त्री ने केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मन्त्रालय के कार्यक्रम में सरस्वती वन्दना के विरोध में उठे स्वरों में स्वर मिलाए थे। प्रकाश सिंह बादल ने जैन सम्प्रदाय के एक समागम में मुकुट धारण कर लिया तो प्रदेश की राजनीति में तूफान खड़ा हो गया था। राजनेताओं के साथ-साथ पंजाबी मीडिया ने भी बादल के इस कदम की बहुत आलोचना की थी। देश भर में जागृत हुई हिन्दू अस्मिता का असर चाहे देर से ही सही परन्तु अब पंजाब में भी होता दिख रहा है जो न केवल हिन्दू समाज बल्कि समूचे पंजाब, पंजाबी और पंजाबियत के लिए भी शुभ संकेत है।
- राकेश सैन
राहुल जब भी सदन में बोलने खड़े होते हैं तो कोई न कोई विवाद पैदा करते हैं लेकिन इस बार का विवाद कुछ अधिक ही खतरनाक है और अब उन पर कड़ी कार्यवाही का समय आ गया है। राहुल गांधी अब भारात को एक राष्ट्र भी नहीं मान रहे है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपने आप को बहुत चतुर व सक्रिय राजनीतिज्ञ दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। वह हर दिन अपने भाषणों और ट्वीट के माध्यम से अपना अदभुत ज्ञान देने का नया प्रयास करते हुए दिखाई पड़ते हैं। कांग्रेस पार्टी के सभी नेता जो केवल जी हुजूरी के बल पर अपनी राजनैतिक दुकान चला रहे हैं वह उनकी हां में हां ही मिलाते रहते हैं जिसके कारण आज कांग्रेस पूरे देशभर से साफ होने के लिए तत्पर हो गयी है। आने वाले समय में पंजाब कांग्रेस के हाथ से फिसल जायेगा और फिर उसके बाद जिन राज्यों में कांग्रेस की बची खुची सरकारें हैं वह भी चली जायेंगी, लेकिन राहुल गांधी हैं कि मानते नहीं। लगता है, राहुल कांग्रेस को पूरी तरह से डुबाकर ही मानेंगे।
राहुल गांधी या तो एकदम अपरिपक्व नेता हैं या फिर बड़े षड्यंत्रकारी जो सुनियोजित रूप से घातक व विकृत बयानबाजी कर रहे हैं। अब देश की जनता राहुल गांधी की बार-बार होने वाली गुप्त विदेश यात्राओं का सच जानना चाहती है, वह उनके भाषणों की पड़ताल करना चाहती है और उनकी सच्चाई जानकर उन्हें कड़ी सजा देने का भी मन बना रही है।
राहुल जब भी सदन में बोलने खड़े होते हैं तो कोई न कोई विवाद पैदा करते हैं लेकिन इस बार का विवाद कुछ अधिक ही खतरनाक है और अब उन पर कड़ी कार्यवाही का समय आ गया है। राहुल गांधी अब भारात को एक राष्ट्र भी नहीं मान रहे है। उनके कथनों से क्या देशवासी सहमत हो जायेंगे, संभवत: नहीं क्योकि लोग राहुल को एक मूर्ख नेता मान रहे हैं।
संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर लोकसभा में बहस चल रही है जिसमें कांग्रेस की ओर से बोलते राहुल गाँधी ने जो भाषण दिया है उससे पता चल रहा है कि वह कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी व कांग्रेस पार्टी के लिए एक गंभीर लाइलाज बीमारी हो गये हैं और जब-जब कांग्रेस उन्हें रीलांच करने का प्रयास करती है वह फिर से कांग्रेस को ही धड़ाम कर देते हैं।
राहुल गांधी के भाषण से अब देश की जनता व प्रबुद्धवर्ग को केवल हंसी नहीं आती है बल्कि दुःख भी होता है दुख इसलिए होता है क्योकि उनके भाषणों को चीन और पाकिस्तान में बैठे भारत विरोधी शत्रुओं द्वारा पसंद किया जाता है और भारत के अंदर टुकड़े-टुकड़े गैंग व हम लेकर रहेंगे आजादी के नारे लगाने वाले लोगो को भी ये पसंद आता है। राहुल गांधी देश के नहीं लेकिन से टुकडे-टुकड़े गैंग के नायक अवश्य बन चुके हैं।
राहुल के इस बार सदन के भाषण से स्पष्ट है कि वह भारत के प्रति एक विकृत नफरत से भरे हुए हैं जो केवल भारत को बर्बाद होता हुआ और विदेशी सोच का गुलाम बनता हुआ देखना चाहती है। राहुल गांधी का भाषण हल्के में नहीं लिया जा सकता अपितु अब समय आ गया है कि समय रहते हुए उनके खिलाफ संविधान के दायरे में कड़ी कार्यवाही की जाये। राहुल गांधी का संसद में दिया गया भाषण भारतीय संस्कृति, सभ्यता व पहचान के खिलाफ है। राहुल गांधी का भाषण संसदीय मर्यादाओं का भी घोर उल्लंघन है। राहुल गांधी ने सर्वोच्च अदालत व चुनाव आयोग का अपमान किया है और अपने भाषण में उन्होंने पेगासस का भी उल्लेख कर दिया वह भी तब जबकि सुप्रीम कोर्ट की की निगरानी में एक कमेटी पूरे मामले की जांच कर रही है।
राहुल गांधी का भाषण तब और अधिक गंभीर मामला बन जाता है जब वह यह कहते हैं कि मोदी सरकार की विदेश नीति की वजह से चीन और पाकिस्तान एक हो गये और फिर उसके बाद एक अमेरिकी राजनायिक को मैदान में उतरकर कहना पढ़ता है कि वह राहुल गांधी के बयान से कतई सहमत नहीं हो सकते। राहुल गांधी को विदेश नीति पर बोलने से पले अपनी ही पार्टी के बुजुर्ग नेताओं से सलाह लेकर बोलना चाहिए था क्योंकि पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने ही उनको करारा जवाब देते हुए कहाकि चीन और पाकिस्तान के बीच करीबी जवाहर लाल नेहरू के जमाने से है। इतना ही नहीं, नेहरू के समय ही देश की चीन नीति विफल हो गई थी। नटवर सिंह ने कहाकि उन्हें आश्चर्य है कि राहुल गांधी को सही तथ्यों से अवगत नहीं कराया गया।
सदन में राहुल के ताज़ा बयान से यह एक बार फिर से स्पष्ट हो गया है कि क्यों राहुल गांधी जैसे लोग सत्ता से जितना दूर रहेंगे, देश के लिए उतना ही अच्छा रहेगा। राहुल गांधी सदन में चीन पाक दोस्ती पर ही नहीं अपितु देश के अंदर केद्र व राज्य सम्बंधों पर भी बोले वह तो और भी अधिक खतरनाक था। केंद्र व राज्यों पर संबंध के विषय में उनके विचार भारतीय संविधान की मूल आत्मा पर करारा प्रहार है उन्होंने संसद की गरिमा और अधिकारों को तार-तार कर दिया है। राहुल गांधी ने कहा कि केंद्र राज्यों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता और उन्होंने बहुत ही चालाकी के साथ उन सभी राज्यों का अपमान कर डाला है जहां पर कांग्रेस की सरकारे नहीं है। वह अपने भाषण में केरल, राजस्थान की विचारधारा को बहुत अच्छा बता रहे हैं। वह तमिलनाडु की विचारधारा को भी अच्छा बता रहे हैं और फिर पंजाब के किसानों की बहादुरी की प्रशंसा करते हैं। उनके विचार से केवल इन्हीं राज्यों में प्यार है, धर्म है और संस्कृति है। वह कहते है कि केंद्र इन राज्यों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता अर्थात अपने कानूनों को नहीं लाद सकता। राहुल की नजर में भारत एक राष्ट्र नहीं अपितु कई राज्यों का एक समूह है और यही बयान बहुत ही आपत्तिजनक बयान है।
राहुल गांधी के बयान के खिलाफ पूरे भारत में एक वैचारिक तूफान खड़ा होना चाहिए क्योंकि राहुल गांधी वास्तव में भारत की तुलना भूतपूर्व सोवियत संघ की तरह कर रहे हैं जो अपनी गलत वामपंथी नीतियों के कारण कई टुकड़ों में विभक्त हो गया।
राहुल गांधी कह रहे हैं कि केंद्र राज्य में हस्तक्षेप नहीं कर सकता जबकि वास्तविकता यह है कि आज विगत 70 सालों की राजनीति में सबसे अधिक 93 बार राज्यों में हस्तक्षेप उनके स्वर्गीय नाना नेहरू जी से लेकर उनकी दादी श्रीमती इंदिरा गांधी सहित सभी कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों के द्वारा की गयी है।
राहुल गांधी की बात मानें तो देश को आजादी केवल और केवल नेहरू जी की वजह से मिली और उनकी दादी इंदिरा गांधी को 32 गोलियां मारी गईं और उनके पिता राजीव गांधी को विस्फोट से उड़ा दिया गया। उनकी नजर में पूरा राष्ट्र केवल इन्हीं तीन लोगों में समाया हुआ है और इन्हीं से विकसित व पल्लवित हुआ है।
राहुल गांधी भाषण देते समय इतना बहक गये कि उन्होंने कहा कि न्यायपालिका, चुनाव आयोग और पेगासस ये वो माध्यम हैं जिनका इस्तेमाल प्रधनमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने लोगों की आवाज को दबाने के लिए किया। राहुल गांधी के न्यायपालिका पर दिया गया बयान बहुत घातक हैं, विगत सात वर्षो से देश की न्यायपालिका ने कई ने राफेल में घोटाले सहित कई दूसरी जनहित याचिकाओं को सिरे से खारिज कर दिया है जिसके कारण गाँधी परिवार व झूठ पर आधारित जनहित याचिकाओं का काला करोबार करने वाले वकीलों की कमाई पर तुषारापात हो चुका है। पूरे देश ने देखा कि कोरोना काल की आड़ में देश का विकास रोकने के लिए किस प्रकार की विकृत याचिकाएं अदालतों में पेश की जाती रहीं।
वास्तविकता यह है कि देश की न्यायपालिका का सर्वाधिक दुरूपयोग राहुल गांधी की दादी स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने किया था और उन्होंने अपनी कुर्सी को बचाने के लिए और उनकी जासूसी भी की जा रही थी। रही बात जासूसी की तो वह बीमारी भी सर्वाधिक नेहरू जी से लेकर राजीव गांधी तक ही रही थी। राहुल गांधी की दादी श्रीमती इंदिरा गांधी का शासन तो विरोधियों की जासूसी के सहारे ही चल रहा था।
राहुल गांधी अपने बयान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राजा व शहंशाह कह रहे हैं। उनकी यह बात भी मूर्खतापर्ण है क्योंकि राहुल गांधी को यह नहीं पता कि अब भारत ही नहीं अपितु पूरी दुनिया में राजतंत्र इतिहास के पन्ने में ढेर हो चुका है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी सदन में एक वंशवादी राजा की तरह भाषण दे रहे थे और आरोप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लगा रहे थे। वास्तव में राहुल गांधी अपने परिवार व दल के ही राजा हैं और वह उसी तरह का व्यवहार कर रहे हैं जिसे देश की जनता अब नकार चुकी है। राहुल गांधी का सदन में दिया गया भाषण वास्तव में उनकी वंशवादी परंम्परा व तानाशाही मानसिकता का ही दर्शन करा रहा है। देश के अंदर तानाशाही, वंशवादी और चाटुकारिता का सिक्का नेहरू जी से लेकर श्रीमती इंदिरा गांधी तक चलता रहा। इंदिरा गांधी का पराभव न्यायपालिका ने तो राहुल का पतन विधायिका और देश की जनता ने कर दिया है।
- मृत्युंजय दीक्षित
(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। इस लेख से जुड़े सभी दावे या विचार के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है। जरूरी नहीं कि प्रभासाक्षी उनके व्यक्त किए गए विचारों से सहमत हो।)
प्रस्तावना संविधान की आत्मा है और यहां राष्ट्र शब्द साफ साफ लिखा हुआ है इसलिए राहुल अगर भारत को राष्ट्र नही मानते है तो उन्हें बताना चाहिये कि आखिर इन शब्दों का क्या अर्थ है? भारत अगर राष्ट्र नही है तो उन्हें यह भी बताना चाहिये कि महात्मा गांधी को वे राष्ट्रपिता कैसे स्वीकार करते है?
'भारत एक राष्ट्र नही है' लोकसभा में राहुल गांधी का यह बयान उनकी भारत के प्रति समझ को लेकर उठने वाले सवालों और संदेह को फिर प्रमाणित कर गया। जिस संविधान के हवाले से राहुल ने राष्ट्र के रूप में भारत को खारिज किया है वही संविधान राष्ट्रीय एकता और अखंडता के तमाम प्रावधानों एवं आह्वानों से भरा पड़ा है लेकिन राहुल गांधी को शायद इनकी समझ ही नही है। उनका राजनीतिक दुराग्रह राष्ट्र शब्द को लेकर इतना कलुषित हो चुका है कि वे अब राष्ट्र की अवधारणा को ही मानने के लिए तैयार नही है। संविधान के भाग एक में लिखा है 'भारत अर्थात इंडिया, राज्यों का संघ होगा। राहुल गांधी इस विषय को अमेरिकी संघीय व्यवस्था के साथ जोड़कर राष्ट्र अवधारणा को खारिज करने की कोशिश कर रहे थे क्योंकि अमेरिका में फेडरेशन ऑफ स्टेट के तहत राज्यों ने एक अनुबंध कर संयुक्त राज अमेरिका को बनाया है। वहाँ सभी राज्य सम्प्रभु है लेकिन भारत मे ऐसा नही है डॉ बीआर अंबेडकर ने भारत को 'फेडरेशन ऑफ स्टेटस' के स्थान पर 'यूनियन ऑफ स्टेटस' रखने के दो कारण बताए थे पहला भारत अमेरिकी राज्यों के आपसी एग्रीमेंट का कोई फेडरेशन या संघ नही है, दूसरा भारत के किसी राज्य देश से अलग होने का अमेरिका की तरह अधिकार नही है। संविधान के जिस भाग का उल्लेख राहुल गांधी कर रहे है उसी संविधान की प्रस्तावना में लिखा है कि "राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बन्धुता बढ़ाने के लिए...."।
प्रस्तावना संविधान की आत्मा है और यहां राष्ट्र शब्द साफ साफ लिखा हुआ है इसलिए राहुल अगर भारत को राष्ट्र नही मानते है तो उन्हें बताना चाहिये कि आखिर इन शब्दों का क्या अर्थ है? भारत अगर राष्ट्र नही है तो उन्हें यह भी बताना चाहिये कि महात्मा गांधी को वे राष्ट्रपिता कैसे स्वीकार करते है? सच्चाई यह है कि भारत राष्ट्र के रूप में एक कालजयी अवधारणा है। अटल जी ने कहा था कि भारत कोई जमीन का टुकड़ा नही है यह एक जीवित राष्ट्र है, हजारों वर्षों से भारत एक राष्ट्र के रूप में सभ्यता की चेतना का स्थाई तत्व रहा है, इतिहास के किसी भी कालखंड में भारत की राष्ट्रीय अवधारणा तिरोहित नही की जा सकी है। जिस संवैधानिक शब्दावली का सहारा लेकर राहुल भारत को राष्ट्र के तौर पर नकार रहे है उसी संविधान को उनकी दादी ने बंधक बनाकर आपातकाल और प्रस्तावना को बदलने के अक्षम्य पाप कारित किये है। इंदिरा जी के तानाशाह आचरण ने संविधान में जिस सेक्युलरिज्म को स्थापित किया है उसकी दूषित उपज आज संसदीय राजनीति में खरपतवार की तरह खड़ी है। सेक्युलरिज्म की इस राजनीति ने राष्ट्र और राष्ट्रवाद के विरुद्ध एक सशक्त वातावरण खड़ा किया जो राष्ट्र की उस एकता और अखंडता को चोट करता रहा है जिसे संविधान ने सबसे पवित्र माना है।
संसदीय राजनीति में राष्ट्र की स्वीकार्यता के बढ़ते फलक ने राहुल गांधी को राजनीतिक रूप से विपन्न कर दिया है। ताजा बयान यह भी प्रमाणित करता है कि राहुल के नेतृत्व वाली इस पार्टी के लिए उन सभी शब्दों और आग्रहों से नफरत हो चुकी है जो भाजपा और मोदी से किसी भी तरह से संयुक्त है। राष्ट्र की कालजयी और मृत्युंजयी संस्कृति को नकारने के पीछे राहुल की मानसिकता को राजनीतिक दृष्टिकोण से समझने की आवश्यकता भी है। असल में राष्ट्र शब्द के साथ भारत की संस्कृति का अकाट्य संबंध है और राहुल की पूरी राजनीति संस्कृति के उलट ही रही है वे हिन्दू, हिंदुत्व और हिन्दूवादी को लेकर जिस प्रतिक्रियावादी मानसिकता से बातें करते है उसके मूल को समझने का प्रयास करें तो स्पष्ट होता है कि वे उस राष्ट्र तत्व की मार से पीड़ित है जो पिछले कुछ दशकों में भारत की चुनावी राजनीति में राष्ट्रीयता के तौर पर उभरकर आई है। वस्तुतः राष्ट्र और भारत एक ही है, जिसे सेक्युलरिज्म औऱ तुष्टीकरण की राजनीति ने लंबे समय तक अलग अलग बनाये रखा है।
कांग्रेस और राहुल दोनों इस राष्ट्रभाव के आगे लगातार राजनीतिक रूप में पिट रहे है। वे राजनीतिक लाभ के लिए भारत के राष्ट्र स्वरूप को खारिज कर प्रांतवाद और अल्पसंख्यकवाद को जिंदा करना चाह रहे है। लोकसभा में तमिलनाडु, सिक्किम, जम्मू कश्मीर का जिस भाव के साथ उन्होंने जिक्र किया है उसके बहुत ही खतरनाक निहितार्थ है। वे यह सन्देश देने की कोशिश कर रहे है कि राज्यों को केंद्र के प्रति एक अलगाव का रुख अपनाना चाहिए! यह संवैधानिक रूप से भी एक खतरनाक आह्वान है क्योंकि भारत का यूनियन होने का मतलब यह नही है कि कोई राज्य भारत से अलग हो सकता है। जिस भाव से इस बात को उठाया गया है अगर यह प्रांतवाद और अलगाव नही है तो क्या है ? कभी देश की स्वाभाविक शासक रही कांग्रेस की यह वैचारिक कृपणता भारत के संसदीय लोकतंत्र के लिये भी बड़ा खतरा है। बेहतर हो राजस्थान में हिन्दू होने का दावा करने वाले राहुल अपने दत्तात्रेय ब्राह्मण गोत्र पर अमल करते हुए संस्कृति और भारत को भी समझने की कोशिश करें। वस्तुतः राष्ट्र ही वह अमूर्त चेतना है जो हजारों सालों से भारत की विविधवर्णी संस्कृति को एक इकाई के रूप में जीवित रखती है। सरकार और सत्ता तो आती जाती रहती है अटल जी ने इसी लोकसभा में कहा था कि सरकारें आएंगी जायेंगी लेकिन राष्ट्र बना रहना चाहिये। अपनी अगली विदेश यात्रा में राहुल गांधी किसी अंग्रेजी उपन्यास की जगह "जम्बूदीपे भारतबरषे''...को पढ़ने की कोशिश करेंगे तो उन्हें राष्ट्र और भारत शायद समझ आ जाये।
- डॉ अजय खेमरिया
सरकार ने वित्त वर्ष 2023 में पूंजीगत खर्चों में 35.4 फीसदी की बढ़ोतरी का प्रस्ताव रखा है, इससे रोजगार में वृद्धि होगी। यह बहुत बड़ा फैसला है। वित्त मंत्री ने बजट में क्रिप्टोकरंसी पर भी निवेशकों की उलझन दूर कर दी। उन्होंने इससे हुए मुनाफे पर 30 फीसदी टैक्स लगाने का प्रस्ताव रखा।
सशक्त एवं विकसित भारत निर्मित करने, उसे दुनिया की आर्थिक महाशक्ति बनाने और कोरोना महामारी से ध्वस्त हुई अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की दृष्टि से वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा लोकसभा में प्रस्तुत आम बजट इसलिए विशेष रूप से उल्लेखनीय है, क्योंकि मोदी सरकार ने देश के आर्थिक भविष्य को सुधारने पर ध्यान दिया, न कि लोकलुभावन योजनाओं के जरिये प्रशंसा पाने अथवा कोई राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश की है। यह कदम एक ऐसे समय उठाया गया जब राजनीतिक दृष्टि से सबसे अहम राज्य उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के चुनाव होने जा रहे हैं और उन्हें लघु आम चुनाव की भी संज्ञा दी जा रही है। राजनीतिक हितों से ज्यादा देशहित को सामने रखने की यह पहल अनूठी है, प्रेरक है।
कोरोना की संकटकालीन एवं चुनौतीभरी परिस्थितियों में लोककल्याणकारी एवं आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को बल देने वाला यह बजट अभिनन्दनीय एवं सराहनीय है। यह बजट भारत की अर्थव्यवस्था के उन्नयन एवं उम्मीदों को आकार देने की दृष्टि से मील का पत्थर साबित होगा। इसके माध्यम से समाज के भी वर्गों का सर्वांगीण एवं संतुलित विकास सुनिश्चित होगा। इस बजट से भले ही करदाताओं के हाथ में मायूसी लगी हो, टैक्स स्लैब में किसी तरह का बदलाव नहीं हुआ हो, लेकिन इससे देश की अर्थव्यवस्था का जो नक्शा सामने आया है वह इस मायने में उम्मीद की छांव देने वाला है। यह महत्वपूर्ण है कि सरकार ने पूंजीगत व्यय में भारी-भरकम व्यय करने की योजना बनाई उसके साकार होने से अंततः आम आदमी को ही लाभ मिलेगा। इसके साथ-साथ अर्थव्यवस्था को भी गति मिलेगी। अर्थव्यवस्था को गति देने का काम शहरीकरण की उन योजनाओं को आगे बढ़ाने से भी होगा जिनकी प्रावधान बजट में किया गया है। इस बजट में शहर एवं गांवों के संतुलित विकास पर बल दिया है, जो इस बजट की विशेषता है।
सरकार ने वित्त वर्ष 2023 में पूंजीगत खर्चों में 35.4 फीसदी की बढ़ोतरी का प्रस्ताव रखा है, इससे रोजगार में वृद्धि होगी। यह बहुत बड़ा फैसला है। वित्त मंत्री ने बजट में क्रिप्टोकरंसी पर भी निवेशकों की उलझन दूर कर दी। उन्होंने इससे हुए मुनाफे पर 30 फीसदी टैक्स लगाने का प्रस्ताव रखा। वित्त वर्ष 2023 में रिजर्व बैंक डिजिटल करंसी लाएगा, इसका ऐलान भी निर्मला सीतारमण ने किया। इन दोनों बातों से लगता है कि सरकार ने क्रिप्टोकरंसी को एक एसेट तो मान लिया है, लेकिन वह इन्हें बढ़ावा नहीं देना चाहती। यहां तक कि समृद्ध तबके को भी दीर्घकालीन पूंजीगत लाभ के टैक्स पर सरचार्ज घटाकर राहत दी गई है। अस्सी लाख सस्ते घरों के लिये 48 हजार करोड़ का प्रावधान करके निम्न-मध्यम आय वर्ग के लिए हाउसिंग सेक्टर में सौगात दी गई है।
भारत की अर्थव्यवस्था को तीव्र गति देने की दृष्टि से यह बजट कारगर साबित होगा, जिसके दूरगामी सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे, रोजगार के नये अवसर सामने आयेंगे, उत्पाद एवं विकास को तीव्र गति मिलेगी। कोरोना महामारी के कारण चालू वित्त वर्ष में आर्थिक क्षेत्र में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिले, लेकिन इन सब स्थितियों के बावजूद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण इस बजट के माध्यम से देश को स्थिरता की तरफ ले जाते दिखाई पड़ रहे हैं। बजट हर वर्ष आता है। अनेक विचारधाराओं वाले वित्तमंत्रियों ने विगत में कई बजट प्रस्तुत किए। पर हर बजट लोगों की मुसीबतें बढ़ाकर ही जाता रहा है। लेकिन इस बार बजट ने कोरोना महासंकट से बिगड़ी अर्थव्यवस्था में नयी परम्परा के साथ राहत की सांसें दी है तो नया भारत- सशक्त भारत के निर्माण का संकल्प भी व्यक्त किया है। इस बजट में कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल विकास, रेलों का विकास, सड़कों और अन्य बुनियादी ढांचागत क्षेत्रों के विकास के साथ-साथ किसानों, गांवों और गरीबों को ज्यादा तवज्जो दी गयी है। सच्चाई यही है कि जब तक जमीनी विकास नहीं होगा, तब तक आर्थिक विकास की गति सुनिश्चित नहीं की जा सकेगी। इस बार के बजट से हर किसी ने काफी उम्मीदें लगा रखी थीं और उन उम्मीदों पर यह बजट खरा उतरा है। हर बार की तरह इस बार भी शहरों के मध्यमवर्ग एवं नौकरीपेशा लोगों को अवश्य निराशा हुई है। इस बार आम बजट को लेकर उत्सुकता इसलिए और अधिक थी, क्योंकि यह कोरोना महासंकट, पडौसी देशों के लगातार हो रहे हमलों, निस्तेज हुए व्यापार, रोजगार, उद्यम की स्थितियों के बीच प्रस्तुत हुआ है। संभवतः इस बजट को नया भारत निर्मित करने की दिशा में लोक-कल्याणकारी बजट कह सकते हैं। यह बजट वित्तीय अनुशासन स्थापित करने की दिशाओं को भी उद्घाटित करता है। आम बजट न केवल आम आदमी के सपने को साकार करने, आमजन की आकांक्षाओं को आकार देने और देशवासियों की आशाओं को पूर्ण करने वाला है बल्कि यह देश को समृद्ध और शक्तिशाली राष्ट्र बनाने की दिशा में उठाया गया महत्वपूर्ण एवं दूरगामी सोच से जुड़ा कदम है। बजट के सभी प्रावधानों एवं प्रस्तावों में जहां ‘हर हाथ को काम’ का संकल्प साकार होता हुआ दिखाई दे रहा है, वहीं ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ का प्रभाव भी स्पष्ट रूप से उजागर हो रहा है। आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में प्रस्तुत यह बजट निश्चित ही अमृत बजट है। जिसमें भारत के आगामी 25 वर्षों के समग्र एवं बहुमुखी विकास को ध्यान में रखा गया है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आशा के अनुरूप ही बजट का फोकस किसानों, स्वास्थ्य, शिक्षा, शहरी विकास, रोजगार, युवाओं की अपेक्षाओं, विकास और ग्रामीण क्षेत्र पर रखा है। अपने ढांचे में यह पूरे देश का बजट है, एक आदर्श बजट है। इसका ज्यादा जोर सामाजिक विकास पर है। मुश्किल के इस वक्त में भी मोदी सरकार का फोकस किसानों की आय दोगुनी करने, विकास की रफ्तार को बढ़ाने और आम लोगों को सहायता पहुंचाने पर है। अक्सर बजट में राजनीति, वोटनीति तथा अपनी व अपनी सरकार की छवि-वृद्धि करने के प्रयास ही अधिक दिखाई देते है लेकिन इस बार का बजट चुनाव होने के बावजूद राजनीति प्रेरित नहीं है। स्पष्ट है कि सरकार ने चुनावी राजनीतिक हितों के आगे अर्थव्यवस्था को सशक्त करने के दूरगामी लक्ष्य पर न केवल ध्यान केंद्रित किया बल्कि यह भी रेखांकित किया कि उसका उद्देश्य 2047 तक भारत को एक समर्थ-सक्षम देश के रूप में सामने लाना है।
गरीब तबके और ग्रामीण आबादी की बढ़ती बेचैनी को दूर करने की कोशिश इसमें स्पष्ट दिखाई देती है जो इस बजट को सकारात्मकता प्रदान करती है। इस बजट में किसानों की बढ़ती परेशानियों को दूर करने के भी सार्थक प्रयत्न हुए हैं, जिसे मेहरबानी नहीं कहा जाना चाहिए। बजट भाषण में वित्त मंत्री ने न्यूनतम समर्थन मूल्य अर्थात एमएसपी जारी रहने का उल्लेख करते हुए जिस तरह यह रेखांकित किया कि इस मद में 2.37 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, वह यही बताता है कि सरकार ने उस दुष्प्रचार की हवा निकालना आवश्यक समझा जिसके तहत कुछ कथित किसान नेताओं के साथ कई विपक्षी नेता यह झूठ फैलाने में लगे हैं कि यह सरकार एमएसपी खत्म करने का इरादा रखती है। इस पर हैरानी नहीं कि विपक्ष को बजट रास नहीं आया। वह सदैव इसी तरह की नकारात्मक प्रतिक्रिया से लैस दिखता है और यही कारण है कि जनता उसकी आलोचना पर उतना ध्यान नहीं देती जितना उसे देना चाहिए। खेती और किसानों की दशा सुधारना सरकार की प्राथमिकता में होना ही चाहिए, क्योंकि हमारा देश किसान एवं ग्रामीण आबादी की आर्थिक सुदृढ़ता और उनकी क्रय शक्ति बढ़ने से ही आर्थिक महाशक्ति बन सकेगा। और तभी एक आदर्श एवं संतुलित अर्थव्यवस्था का पहिया सही तरह से घूम सकेगा। ग्रामीण अर्थव्यवस्था संवारने की दिशा में इस बजट को मील का पत्थर कहा जा सकता हैं।
इस बजट में जो नयी दिशाएं उद्घाटित हुई है और संतुलित विकास, भ्रष्टाचार उन्मूलन, वित्तीय अनुशासन एवं पारदर्शी शासन व्यवस्था का जो संकेत दिया गया है, सरकार को इन क्षेत्रों में अनुकूल नतीजे हासिल करने पर खासी मेहनत करनी होगी। देश में डिजिटल व्यवस्थाओं को सशक्त एवं प्रभावी बनाने का भी सरकार ने संकल्प व्यक्त किया है।
- ललित गर्ग
वित्तीय वर्ष 2022-23 के आम बजट में कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिया गया है। इस आम बजट में दरअसल कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्र से लेकर उच्च तकनीक एवं पर्यावरण के क्षेत्रों तक में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं।
केंद्रीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन द्वारा दिनांक 1 फरवरी 2022 को देश की संसद में प्रस्तुत किए गए आम बजट में केंद्र सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष 2022-23 में किए जाने वाले पूंजीगत खर्चों में अधिकतम 35.4 प्रतिशत की वृद्धि की घोषणा सबसे आकर्षक घोषणा एवं धरातल पर उठाया गया ठोस कदम कहा जा सकता है। केंद्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए 7.50 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान पूंजीगत खर्चों के लिए किया है जबकि वित्तीय वर्ष 2021-22 में 5.54 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्चों का प्रावधान किया गया था। यह निर्णय इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है कि कोरोना महामारी के बाद से भारतीय अर्थव्यवस्था पर आए दबाव के चलते देश में अभी भी निजी क्षेत्र से पूंजी निवेश बढ़ नहीं पा रहा है। अतः केंद्र सरकार आम नागरिकों को राहत प्रदान करने के उद्देश्य से एवं देश की अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने के उद्देश्य से अपने पूंजीगत खर्चों को लगातार बढ़ा रही है। इससे देश में रोजगार के नए अवसर अच्छी तादाद में निर्मित हो रहे हैं, यही समय की मांग भी है।
सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह भी उभरकर सामने आया है कि उक्त पूंजीगत खर्चों में 35.4 प्रतिशत की वृद्धि के बावजूद वित्तीय संतुलन बनाए रखने का भरपूर प्रयास किया गया है। देश में कोरोना महामारी के कारण वित्तीय वर्ष 2021-22 में वित्तीय घाटा बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद का 6.9 प्रतिशत के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया था जिसे वित्तीय वर्ष 2022-23 में 6.5 प्रतिशत के स्तर पर लाया जा रहा है एवं वित्तीय वर्ष 2025-26 तक 4.5 प्रतिशत के स्तर तक नीचे ले आया जाएगा। जबकि वित्तीय वर्ष 2021-22 के आम बजट में किए गए कुल खर्चों 34.83 लाख करोड़ रुपए के प्रावधान के बाद अब वित्तीय वर्ष 2022-23 के बजट में कुल खर्चों को बढ़ाकर 39.45 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। इसके बावजूद भी वित्तीय घाटे को न केवल नियंत्रित किया गया है बल्कि इसे कम भी किया जा रहा है। वित्तीय घाटे को कम रखने से देश में ब्याज की दरों पर दबाव कम होता है एवं मुद्रा स्फीति की दर भी नियंत्रण में रहती है।
वित्तीय वर्ष 2022-23 के आम बजट में कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिया गया है। इस आम बजट में दरअसल कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्र से लेकर उच्च तकनीक एवं पर्यावरण के क्षेत्रों तक में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में निवासरत लोगों के भूमि सम्बंधी रिकार्ड का डिजिटलीकरण पूरे देश में किया जा रहा है। जीरो बजट खेती, रासायनिक खाद का उपयोग कम कर देशी खाद के उपयोग को बढ़ावा, खाद्य तेल के आयात को कम करने के उद्देश्य से तिलहन की खेती को बढ़ावा, देश में अतिरिक्त कृषि विश्व विद्यालयों को खोलना एवं ग्रामीणों को फल एवं सब्ज़ियों की खेती करने की ओर आकर्षित करने के विशेष प्रयास किए जाने की बात भी इस बजट में की गई है। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कृषि उत्पादों की खरीदी की राशि को वित्तीय वर्ष 2021-22 के 2.37 लाख करोड़ रुपए से बढ़ाकर वित्तीय वर्ष 2022-23 में 2.70 लाख करोड़ रुपए किया गया है। अब कृषि कार्यों की देखरेख ड्रोन के माध्यम से भी की जाएगी। एक जिला एक उत्पाद की अवधारणा को अमली जामा पहनाने की बात भी इस बजट में की गई है, इससे भी ग्रामीण इलाकों में रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित होंगे। छोटे किसानों द्वारा उत्पादित वस्तुओं के लिए ग्रामीण इलाकों तक रेलवे का नेटवर्क विकसित किए जाने के प्रयास भी किए जाएंगे।
ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को कई किलोमीटर तक पैदल चलकर पीने का पानी लाना होता है, केंद्र सरकार द्वारा प्रारम्भ की गई नल से जल योजना के अंतर्गत गांव के प्रत्येक परिवार तक नल का कनेक्शन उपलब्ध कराने के उद्देश्य से इस बजट में 60,000 करोड़ रुपए खर्च करने का प्रावधान किया गया है। प्रधानमंत्री ग्रामीण एवं शहरी आवास योजना के अंतर्गत 80 लाख नए मकान बनाए जाएंगे एवं इसके लिए 48,000 करोड़ रुपए का प्रावधान इस बजट में किया गया है। इससे गरीब वर्ग के परिवारों को अपनी छत नसीब होगी।
कोरोना महामारी के दौरान लागू किए देशव्यापी लॉकडाउन के चलते बहुत विपरीत रूप से प्रभावित हुए व्यापारियों एवं लघु उद्योग को बचाने के लिए केंद्र सरकार ने आपात ऋण गारंटी योजना लागू की थी। छोटे व्यापारियों एवं सूक्ष्म तथा लघु उद्यमियों को इस योजना का बहुत अधिक लाभ मिला है। ऋण के रूप में प्रदान की गई अतिरिक्त सहायता की राशि से इन उद्यमों को तबाह होने से बचा लिया गया है। इस योजना की अवधि 31 मार्च 2022 को समाप्त होने जा रही है परंतु अब इस बजट के माध्यम से इस योजना की अवधि को 31 मार्च 2023 तक के लिए बढ़ा दिया गया है। इससे छोटे व्यापारियों एवं सूक्ष्म एवं लघु उद्यमियों को बैंकों से अतिरिक्त सहायता की राशि उपलब्ध होती रहेगी।
भारत सरकार द्वारा लागू की गई उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना का लाभ अब स्पष्ट तौर पर दिखाई देने लगा है। इस योजना के लागू किए जाने से आगे आने वाले 5 वर्षों के दौरान देश में 13 लाख करोड़ रुपए के विभिन्न उत्पादों का अतिरिक्त उत्पादन किया जा सकेगा एवं रोजगार के 60 लाख नए अवसर निर्मित होंगे। उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना के दायरे में बेटरी एवं पेनल सोलर, 5जी उपकरणों के निर्माण आदि उत्पादों एवं उद्योगों को शामिल कर इसका विस्तार भी किया जा रहा है। इससे भारत के कुछ ही वर्षों में 5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने में मदद मिलेगी।
डीजल एवं पेट्रोल का देश में सबसे अधिक आयात होता है इसे कम करने एवं पर्यावरण के स्तर को सुधारने के उद्देश्य से शहरों में पब्लिक वाहनों के उपयोग, इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग एवं सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा दिए जाने के प्रयास की बात इस बजट में की गई है ताकि देश में पेट्रोल एवं डीजल की खपत को कम किया जा सके। देश में 400 नई भारत वन्दे रेलगाड़ियां चलायी जाएंगी एवं देश में हाईवे के विस्तार के लिए 20,000 करोड़ रुपए का प्रावधान इस बजट में किया गया है।
कुछ समय पूर्व तक भारत सुरक्षा उत्पादों का लगभग 100 प्रतिशत आयात करता था परंतु अब कई सुरक्षा उत्पादों का भारत में ही निर्माण किया जाने लगा है। इस वर्ष के बजट में यह प्रावधान किया गया है कि सुरक्षा उत्पादों की कुल जरूरत का 68 प्रतिशत भाग देश में ही निर्मित सुरक्षा उत्पादों को खरीदा जाय। इससे देश में नए नए उद्योगों को स्थापित करने में मदद मिलेगी, रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित होंगे एवं विदेशी मुद्रा की बचत भी की जा सकेगी। इस प्रकार भारत सुरक्षा उत्पादों में शीघ्र ही आत्म निर्भरता हासिल कर लेगा।
इस वर्ष के बजट में यह भी घोषणा की गई है कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भारत के लिए शीघ्र ही अपनी डिजिटल करंसी जारी की जाएगी। इस आकार की अर्थव्यवस्था वाला देश, अपनी डिजिटल करंसी जारी करने वाला भारत सम्भवतः दुनिया में पहला विकासशील देश बनने जा रहा है।
कोरोना महामारी के दो दौर के बाद देश की अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार हो रहा है यह देश में चलाए गए विश्व के सबसे बड़े टीकाकरण कार्यक्रम की सफलता के चलते एवं केंद्र सरकार द्वारा सही समय पर लिए गए सही निर्णयों के कारण सम्भव हो सका है। वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारत का सकल घरेलू उत्पाद 9.2 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल करने की ओर अग्रसर है एवं वित्तीय वर्ष 2022-23 में 8.5 प्रतिशत के वृद्धि दर हासिल करने की सम्भावना व्यक्त की गई है। इस प्रकार भारत विश्व में सबसे तेज गति से विकास करने वाली अर्थव्यवस्थाओं की सूची में बना रहेगा।
- प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक, भारतीय स्टेट बैंक
के-8, चेतकपुरी कालोनी, झांसी रोड, लश्कर
करणी सेना एक सामाजिक संगठन है। गौ रक्षा, हिंदुत्व और भारतीयता की रक्षा करना हमारा उद्देश्य है। मैं देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सम्मान करता हूँ, क्योंकि उन्होंने पूरे विश्व में हिंदुस्तान का गौरव बढ़ाया है।
करणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष और हरियाणा भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता सूरजपाल अम्मू ने कहा कि भारत सरकार को गौ हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना चाहिए और गौ हत्यारों पर 302 जैसी आपराधिक धाराओं में मुकदमे दर्ज करनी चाहिए। उन्होंने हरियाणा की तर्ज पर पूरे देश में गौ सेवा आयोग का गठन किये जाने की जरूरत पर भी बल दिया। उन्होंने दो टूक लहजे में कहा कि करनी सेना ने ठाना है, गौ हत्यारों को जेल में पहुंचाना है।
सूरजपाल अम्मू गाजियाबाद में करणी सेना की स्थापना के तीन साल पूरे होने के उपलक्ष्य में देश के मशहूर पत्रकार व स्तम्भकार कमलेश पांडेय से देश व समाज के ज्वलंत मसलों पर विशेष बातचीत कर रहे थे।
बातों ही बातों में उन्होंने साफ साफ कह डाला कि केंद्र सरकार और राष्ट्रीय मीडिया को यूपी के कैराना की तरह ही हरियाणा के मेवात में उत्पीड़ित हो रहे हिंदुओं की फिक्र करनी चाहिए। लगे हाथ उन्होंने आरोप लगाया कि राष्ट्रीय मीडिया में तो यूपी के कैराना में हो रहे हिंदुओं के उत्पीड़न और पलायन के मुद्दे को जोर-शोर से उछाला जाता है, लेकिन जब हरियाणा के मेवात में हो रहे हिंदुओं के उत्पीड़न और पलायन की बात आती है तो राष्ट्रीय टीवी चैनल्स और नेशनल अखबारों के द्वारा उसकी घोर उपेक्षा की जाती है। ऐसा किया जाना ठीक नहीं है और हिन्दू समाज को ऐसी मानसिकता वाले दोमुंहे लोगों से सतर्क रहना चाहिए।
यहां प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश:-
सवाल:- गौ सेवा का ख्याल पहली बार आपको कैसे आया। कुछ बताइए?
जवाब:- मैं सोहना, मेवात का रहने वाला हूँ। दर्द भरे दिल से कह रहा हूँ कि हरियाणा में सात साल पहले बीजेपी की खट्टर सरकार के आने से पहले अरावली की पहाड़ियों पर सूर्य की पहली किरण के छींटकने से पहले हजारों हजार गायें कत्ल कर दी जाती थीं। लेकिन जब से वहां पर मनोहर लाल खट्टर की सरकार आई, तब से इस पर लगाम लग पाया। क्योंकि हरियाणा सरकार ने गौ सेवा आयोग का गठन करके इन अवैध गतिविधियों पर लगाम लगाने की पूरी कोशिश की। लेकिन इतना सख्त कानून बन जाने के बावजूद हरियाणा के मेवात और राजस्थान के अरवल व भरतपुर इलाके में गौ हत्याएं जारी हैं। इन्हें रोकने के लिए करणी सेना के कार्यकर्ता जुटे हुए हैं। उन्होंने गौ हत्या पर काबू पाने और गौ हत्यारों को सजा दिलवाने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भी तारीफ की और कहा कि योगी सरकार के सख्त कदमों से यहां पर गौ हत्याएं काबू में आई हैं। ऐसे ही कदम केंद्र सरकार व अन्य राज्यों की सरकारों को भी उठानी चाहिए, ताकि प्राणी मात्र के लिए वरदान समझी जाने वाली गौ माताओं व गौ वंशों की रक्षा सुनिश्चित की जा सके। उन्होंने नारा दिया कि "करणी सेना ने ठाना है, गौ हत्यारों को जेल पहुंचाना है।" उन्होंने कहा कि हमारे कार्यकर्ता गण देश के 22 राज्यों में फैले हुए हैं और गौ हत्या रोकने के लिए हिन्दू समाज के सभी लोगों को जागृत कर रहे हैं।
सवाल:- पद्मावत फ़िल्म का विरोध करके आप राष्ट्रीय चर्चा में आए और हिंदुत्व की बात करके अब भी चर्चा में बने हुए हैं, आगे क्या इरादा है?
जवाब:- हमारा विरोध पद्मावत फ़िल्म से नहीं, बल्कि हमारी आराध्य महारानी पद्मावती से जुड़े ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़ने मरोड़ने को लेकर था। इसलिए पूरे देश के हिंदुओं ने इस बनावटी फ़िल्म का विरोध किया, जिसे एक सशक्त नेतृत्व देने के लिए मैं सामने आया। अभी आंदोलन जोर ही पकड़ रहा था कि हमें 25 जनवरी 2018 को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया। मैं अपनी उस बात पर अटल रहा कि मां पद्मावती ने जो जौहर किया था, वह ऐतिहासिक है, लेकिन उन पर बनी फ़िल्म पद्मावत में कुछ आपत्तिजनक तथ्य थे, क्योंकि तथ्यों को तोड़ा मरोड़ा गया था। ऐसा न किया जाए और इसमें बदलाव किया जाए, यही हमारी मांग थी। उन्होंने कहा कि हिन्दू संस्कृति, हिंदुओं के गौरवशाली इतिहास और भारतीयों की स्थापित पहचान का सम्मान सभी को करना चाहिए। यदि कोई ऐसा नहीं करेगा, उससे छेड़छाड़ करेगा तो हमारी करनी सेना उसका मुंहतोड़ जवाब देगी। उन्होंने देश में सक्रिय हिन्दू विरोधी ताकतों, हिंदुत्व विरोधी मीडिया और हिंदुओं को गाली देने वाले ओवैसी और चंद्रशेखर जैसे नेताओं को आगाह करते हुए कहा कि यदि ये लोग अपनी ओछी हरकतों से बाज नहीं आएंगे तो करनी सेना इनको मुंहतोड़ जवाब देगी। इसके लिए व्यापक रणनीति का खुलासा हम अपने तृतीय स्थापना दिवस पर करेंगे।
सवाल:- आपका राजनीतिक झुकाव किधर है। निर्द्वन्द्व होकर बताइए?
जवाब:- करणी सेना एक सामाजिक संगठन है। गौ रक्षा, हिंदुत्व और भारतीयता की रक्षा करना हमारा उद्देश्य है। मैं देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सम्मान करता हूँ, क्योंकि उन्होंने पूरे विश्व में हिंदुस्तान का गौरव बढ़ाया है। उसी तरह से यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भी सम्मान करता हूँ, क्योंकि उन्होंने हिंदुओं को उनकी ताकत का एहसास करवाया है। उन्होंने स्पष्ट लहजे में कहा कि एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी, समाजवादी पार्टी नेता नाहिद हसन आदि मुस्लिम नेताओं व उनके समर्थकों द्वारा जिस तरह से बीजेपी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, विहिप, करनी सेना आदि के खिलाफ अमर्यादित भाषाओं के प्रयोग किये जा रहे हैं, हिंदुओं खासकर राजपूतों के खिलाफ धमकी भरे अपशब्दों के प्रयोग किये जा रहे हैं, आपत्तिजनक बातें कही जा रही हैं, वह आदर्श आचार संहिता का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन है। इन जैसे उपद्रवियों को काबू में करने के लिए और हिंदु समाज की इज्जत आबरू की रक्षा के लिए हमें गोलबंद होना पड़ेगा। इसलिए हम अपने लोगों को जागरूक कर रहे हैं, ताकि हमारी ही धरती पर हमें कोई दबाने की हिमाकत नहीं करे। हमारी मांग है कि जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू किया जाए और हम दो हमारे दो का कानून सख्ती से लागू किया जाए। इसके लिए हिंदूवादी लोगों को एकजुट होना होगा और जातीय संकीर्णताओं को मिटाना होगा। करणी सेना सिर्फ राजपूत नहीं, बल्कि सभी समाज की बात करती है और इसमें सभी समाज के लोग शामिल हैं।
सवाल:- जनसंख्या नियंत्रण कानून के बारे में आपकी क्या राय है। यह कानून अब तक क्यों नहीं आ पाया?
जवाब:- केंद्र सरकार भारतीय संस्कृति और भारतीयता की हिफाजत के लिए और हिन्दू हितों की रक्षा के वास्ते एक के बाद एक करके कई कानून लागू कर चुकी है। इसलिए मुझे पूरी उम्मीद है कि यह कानून भी अपनी सुविधा के अनुसार नरेंद्र मोदी सरकार अवश्य लाएगी। यह पहली सरकार है जिसने कई घिसे पिटे कानूनों को चरणबद्ध रूप से बदल दिया है, इसलिए हमें पूरा विश्वास है कि सरकार हिंदुओं को नाउम्मीद नहीं करेगी। उन्होंने कहा कि सबको मूलभूत सुविधाएं प्रदान करने के लिए और रोजगार देने के लिए बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित किया जाना बहुत जरूरी है। हमारे मुस्लिम भाई की तालीम ही ऐसी है कि जनसंख्या को बढ़ावा मिलता है। उनकी पाकिस्तान और बांग्लादेश के प्रति भक्ति भी सवालों के घेरे में है। किसी भी भारतीय को मदरसे और मंदिरों में अंतर साफ नजर आएगा। मेरी चिंता मुस्लिम बच्चों को लेकर है। उनकी तालीम यानी शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिससे वो राष्ट्रवादी बनें। आधुनिक ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा हासिल करके आत्मनिर्भर बनें। इस दिशा में उनकी संकुचित सोच बाधक है।
सवाल:- मुस्लिम हितों की रक्षा के लिए पर्सनल लॉ बोर्ड को आप कितना जरूरी मानते हैं? वैसी ही सहूलियत अन्य धर्मावलंबियों को मिलनी चाहिए या नहीं?
जवाब:- भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। इसलिए यहां पर किसी को भी पर्सनल लॉ बोर्ड की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए। केंद्र सरकार से हमारी मांग है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को भी अविलम्ब भंग कर दिया जाना चाहिए। हम उनकी अपनी शिक्षा और अपना सरिया कानून की जिद्द से सहमत नहीं हैं, क्योंकि यह उनके समाज के साथ साथ देश की धर्मनिरपेक्ष सोच के लिए भी बाधक है। उन्होंने कहा कि सड़क या खुले में नमाज अदा करना एक गलत परिपाटी है। विभिन्न राज्य सरकारों को इस पर अविलम्ब रोक लगानी चाहिए। यूपी में चुनाव हो रहे हैं, इसलिए प्रदेश के संवैधानिक मुखिया राज्यपाल से मैं मांग करता हूँ कि सिस्टम के व्यापक हित की पूर्ति के लिए सड़क या खुले में नमाज के ऊपर भी धारा 144 लागू करके कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए। क्योंकि जब हिन्दू अपने किसी भी सामूहिक धार्मिक कृत्य करने से पहले प्रशासनिक इजाजत लेते हैं तो फिर मुस्लिम समाज को भी ऐसा करने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि कोई जहां चाहे वहीं लेट जाए। उन्होंने कहा कि हरियाणा सरकार इसे नियंत्रित कर रही है। यूपी व अन्य सरकारों को भी ऐसा करना चाहिए। क्योंकि कानून सबके लिए बराबर है। करणी सेना मुसलमानों की हिन्दू विरोधी प्रवृत्ति के खिलाफ है। हिंदुस्तान में उनकी दादागिरी नहीं चलने दी जाएगी। उनके खिलाफ हमारा आंदोलन जारी रहेगा। मैं सभी करनी सैनिकों का आह्वान करता हूँ कि जहां कहीं भी देश विरोधी कार्य हों, उसे वहीं पर रोकने के लिए अड़ जाएं, लड़ जाएं और यदि देश हित में मरना जरूरी है तो मर जाएं, पर कहीं भी राष्ट्र विरोधी कार्य नहीं होने दें।
सवाल:- आपका दो सपना क्या है। उसे आप कैसे पूरा करेंगे?
जवाब:- अखंड हिन्दू राष्ट्र ही हमारा सपना है। मेरा दो सपना नहीं है, बल्कि एक ही सपना है। भारत को अविलम्ब हिन्दू राष्ट्र घोषित कर दिया जाना चाहिए। क्योंकि दुनिया में हमारा पड़ोसी देश नेपाल ही एक मात्र हिन्दू राष्ट्र है, जिसे भी धर्मनिरपेक्ष बनाने की पहल की जा रही है। इसलिए भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित कर दिया जाना चाहिए। इसे हम पूरा करके रहेंगे। क्योंकि जब साम्प्रदायिक आधार पर हुए देश विभाजन के बाद हमारे पूर्वजों ने मुसलमानों को उनके सपनों का पाकिस्तान दे ही दिया, उसके बाद उनकी यहां पर कोई जरूरत नहीं थी। लेकिन महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू जैसे नेताओं ने कुछेक मुसलमानों की स्थिति पर तरस खाकर उन्हें यहां रहने की इजाजत दी। इसी का नाजायज फायदा उठाकर आज वह फिर से गोलबंद होकर एक और साम्प्रदायिक विभाजन के लिए हमें ललकारने लगे हैं। उनके कतिपय धर्मगुरुओं और नेताओं के बयानों से इस बात का एहसास भी हिन्दू समाज को हो रहा है। लेकिन इस बार करणी सेना उनको मुंहतोड़ जवाब देगी। हमारे सैनिक सीमा पर उनके नापाक इरादों को पूरा नहीं होने देंगे और हमलोग देश के भीतर उनके नापाक सपनों को कुचल देंगे। इसी उद्देश्य से करनी सेना को सांगठनिक विस्तार दिया जा रहा है। महज 3 वर्ष में ही 22 राज्यों में हमारा मजबूत संगठन खड़ा हो चुका है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान जब मुसलमानों को भी सुरक्षा नहीं दे सका, तब हमने उन्हें सुरक्षा देकर बांग्लादेश बनवाया। वो भी आज पाकिस्तान की भाषा बोल रहे हैं। बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों की अवैध घुसपैठ से हमारे लोगों की सुरक्षा प्रभावित हो रही है। भारत सरकार से हमलोग मांग करते हैं कि अविलम्ब इन्हें देश से बाहर किया जाए, अन्यथा करनी सैनिकों को ही यह कार्य भी करना पड़ेगा। यदि सरकार सहयोग करे तो हमलोग ऐसा करने में भी सक्षम हैं।
सवाल:- आपकी नजर में यूपी के कैराना और हरियाणा के मेवात की घटनाओं में क्या अंतर है। कौन ज्यादा गम्भीर मामला बनता जा रहा है?
जवाब:- जहाँ यूपी के कैराना से मुस्लिम उत्पीड़न के चलते पलायन कर रहे हिंदुओं और उनके घरों व दुकानों पर चस्पां किये गए "फ़ॉर सेल बिल्डिंग एन्ड शॉप" आदि को राष्ट्रीय मीडिया ने काफी तवज्जो दी और जोर शोर से देश-दुनिया के समक्ष उछाला। लेकिन हरियाणा के मेवात के अंदर 210 हिंदुओं के गांवों में से 180 गांव क्रमबद्ध रूप से हिन्दू विहीन कर दिए गए, परन्तु वहां पर चस्पां किये गए "फ़ॉर सेल बिल्डिंग एन्ड शॉप" आदि को राष्ट्रीय मीडिया ने कोई तवज्जो नहीं दी। उसको किसी टीवी चैनल्स ने नहीं प्रसारित किया और न ही कभी इस पर राष्ट्रीय बहस हो पाई। भारत सरकार को भी इसकी उतनी ही चिंता करनी चाहिए, जितनी कि कैराना की दिखी। उन्होंने बताया कि मेवात में अब मात्र 30 गांव हिंदुओं के बच गए हैं। वहां के लोग यदि सबल नहीं होते और करनी सेना सक्रिय नहीं हुई होती तो उनकी भी काफी दुर्गति हुई होती। मेवात उन दिनों भी राष्ट्रीय सुर्खियां नहीं पा सका, जब 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में राम जन्मभूमि विवादास्पद ढांचा को तोड़े जाने की प्रतिक्रिया में मेवात के सारे हिन्दू मंदिर तोड़ डाले गए। उस वक्त हरियाणा के मुख्यमंत्री भजनलाल थे। इसलिए राष्ट्रीय मीडिया से हमारा अनुरोध है कि मेवात में हो रहे हिन्दू उत्पीड़न के बारे में भी देश-दुनिया को बताए। इससे मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में किये जा रहे हिंदुओं के उत्पीड़न से लोग बाकी जगहों पर सजग हो जाएंगे और इनकी बढ़ती तादात को काबू में करने की जुगत बिताएंगे। राष्ट्रीय तालमेल बनाकर ऐसी किसी भी समस्या से निबटेंगे।
सवाल:- एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी के बारे में आपकी क्या राय है, क्योंकि बीजेपी विरोधी दल उसे भाजपा का एजेंट करार दे रहे हैं?
जवाब:- एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी बीजेपी के करीब न तो कभी था, न है और न ही रहेगा। वह पाकिस्तान का एजेंट है, उसकी ही भाषा बोलता है, वह यहां के तथाकथित सेक्यूलर नेताओं की सियासी राह आसान करके पाकिस्तान की चाल को सफल बनाने का एक हथकंडा मात्र है। लेकिन करनी सेना उसके नापाक इरादों को कभी भी सफल नहीं होने देगी। उसके अमर्यादित और आपत्तिजनक बयानों से यूपी का चुनावी माहौल खराब हो रहा है। अन्य राज्यों पर भी उसकी नकारात्मक बयानबाजी का असर हो रहा है। उसकी साम्प्रदायिक सोच भारत के धर्मनिरपेक्ष मिजाज के प्रतिकूल है। यदि वह नहीं सुधरा तो करनी सेना को ही उसे भी सुधारना पड़ेगा। क्योंकि उसकी ऊलजलूल टिप्पणी से हिन्दू समाज और सच्चा भारतीय सभी आहत हैं। चुनाव आयोग को ऐसे लोगों से सख्ती से निबटना चाहिए।
सवाल:- समान नागरिक संहिता को लेकर आपकी क्या राय है। यह कानून सरकार कबतक लागू करेगी और यदि नहीं करेगी तो आप क्या करेंगे?
जवाब:- देश में प्रश्रय पा रहे विभिन्न तरह के वादों से निपटने के लिए समान नागरिक संहिता बदलते वक्त की मांग है। अन्य कानूनों की तरह ही मोदी सरकार इस कानून को भी निश्चय ही लागू करेगी। इसको लेकर हर ओर सरगर्मी है। इस कानून के लागू हो जाने के बाद किसी को भी भारतीयों को भारतीयों से लड़ाने का मौका नहीं मिलेगा। खासकर जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र व लिंग आदि के आधार पर। क्योंकि इसके तहत सभी के लिए एक माकूल व्यवस्था सुनिश्चित की जाएगी, ताकि समस्त भारतीयों का समरूप विकास हो सके। इस कानून को सरकार जब भी लागू करेगी, उसका स्वागत किया जाएगा और यदि नहीं लागू करेगी तो हमलोग उससे गुजारिश करेंगे कि अन्य राष्ट्रवादी कानूनों की तरह ही इस कानून को भी जल्द अमलीजामा पहनाया जाए, ताकि आम व खास सभी भारतीयों का भला हो सके।
सवाल:- चीन द्वारा पैदा की जा रही कतिपय राष्ट्रीय व सीमाई समस्याओं को आप किस नजरिये से देखते हैं। पाकिस्तान के साथ उसका बढ़ता तालमेल हिंदुओं के लिए घातक साबित हो सकता है। क्या आप इससे सहमत हैं?
जवाब:- पाकिस्तान हमारा शत्रु है, लेकिन चीन हमारा नम्बर 1 शत्रु है। वह पाकिस्तान के साथ मिलकर जिस तरह से वैश्विक मंचों पर भारतीय हितों के खिलाफ कार्य कर रहा है, वह हमारे लिए चिंता की बात है। लेकिन उससे भी बढ़कर चिंता करने वाली बात यह है कि लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक भारत की सीमाओं का वह जिस तरह से अतिक्रमण कर रहा है, उसके मद्देनजर उसको मुंहतोड़ जवाब दिया जाना चाहिए और वक्त बे वक्त यह दिया भी जा रहा है। हमारी सेना उससे लड़ने-भिड़ने में सक्षम है। हमारे देश में जो जिन्ना समर्थक हैं, जो पाकिस्तान परस्त हैं, जो चीनी वस्तुओं व उसके कारोबार से प्रेम करते हैं, इनकी स्पष्ट शिनाख्त हमारे प्रशासन को करनी चाहिए और हमें इस बात की छूट मिलनी चाहिए कि देशद्रोही तत्वों से हमलोग देश के भीतर सुलटाएंगे और हमारी सेना सीमाओं पर सुलटाएगी। ऐसा करके ही हमलोग भारत माता की आन बान और शान को सुरक्षित रख सकते हैं।
सवाल:- जम्मू-कश्मीर के हालात से आप कितना संतुष्ट हैं?
जवाब:- जम्मू-कश्मीर से धारा 370 और 35 ए को हटाने पर हमने प्रधानमंत्री का सम्मान किया। अब वहां के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से हमारी मांग है कि वहां से विस्थापित कश्मीरी पंडितों को फिर से वहां पर बसाया जाए। उनकी जमीनों पर हुए अवैध कब्जों को मुक्त करवाकर उन्हें कश्मीरी पंडितों को वापस दिलवाया जाए। इसके अलावा देश विरोधी ताकतों और पाकिस्तान परस्त लोगों को नियंत्रित करने के लिए वहां के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती को जेल में ठूंसा जाए। उन्हें कदापि बाहर नहीं छोड़ा जाए। क्योंकि उनका बाहर रहना देशभक्त नागरिकों के खिलाफ षड्यंत्र करने का उन्हें मौका प्रदान करेगा।
सवाल:- कोरोना काल में एक सामाजिक संगठन के रूप में करनी सेना का क्या योगदान रहा, कुछ बताइए?
जवाब:- कोरोना की पहली लहर में करणी सेना ने 20 लाख लोगों के बीच भोजन वितरित करने जैसा उल्लेखनीय कार्य किया है। गुड़गांव, गाजियाबाद, दिल्ली, जयपुर, बनारस, इंदौर, भोपाल, मुंबई, कोटा, अहमदाबाद के अलावा देश के विभिन्न शहरों में करणी सेना के कार्यकर्ताओं ने जरूरतमंद लोगों के बीच बना बनाया भोजन व राशन वितरण का सराहनीय कार्य किये हैं। वहीं, 10 लाख लोगों को सैनिटाइजर, मास्क, पीपी किट आदि प्रदान किये हैं। हमने द्वितीय लहर में लोगों को कीमती दवाइयां, ऑक्सीजन सिलिंडर व अन्य सुविधाएं भी दिलवाई। जबकि तीसरी लहर में भी कोविड प्रोटोकॉल का अनुपालन करते हुए हर सम्भव सहयोग किया। इस कार्य में कई संस्थाओं और व्यापारिक संगठनों ने सहयोग किया है। ऐसे सभी लोगों को 30 जनवरी 2022 को हमलोग सम्मानित करेंगे। इससे पहले हमलोगों ने वेदांता, गुड़गांव के चिकित्सकों को भी सम्मानित किया है। हमने अपने 3 कार्यकर्ताओं को कोरोना काल में खोया भी है, क्योंकि आमलोगों की सेवा करते करते वो संक्रमित हो गए और उनका संक्रमण इतना ज्यादा बढ़ गया कि तमाम चिकित्सा सुविधाओं के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका। इससे करनी सेना को काफी क्षति भी हुई और अपार दुःख भी महसूस हुआ। हिमाचल प्रदेश में रोटी बैंक चलाने वाले और बूंदी राजस्थान में सक्रिय कार्यकर्ताओं को हमने भले ही खो दिया, लेकिन उनकी स्मृति को जिंदा रखने और समाजसेवा के जज्बे को सलाम करते हुए उनके अभिरुचि वाले विषयों पर भी कार्यक्रम करने का निश्चय किया है, जो सफल रहेगा। टीवी चैनल्स से हमारी प्रार्थना है कि बीमारियों की संक्रामकता की बार बार चर्चा करके पैनिक क्रिएट न करें। इससे आमलोगों में दहशत फैलती है। भारत सरकार व उसके विभिन्न मंत्रालय भी इस मुद्दे को संज्ञान में लें।
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार
आज देश में ग्रामीण विकास को आंकने का पैमाना बदल रहा है एवं अब इसमें विभिन्न क्षेत्रों में आधारभूत ढांचा के विकास पर फोकस बढ़ता नजर आ रहा है। स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा व्यवस्था, रोड, रेल्वे, फिजीकल एवं डिजिटल आधारभूत ढांचा के विकास की भी बात की जाने लगी है।
आज भी देश की लगभग 70 प्रतिशत आबादी ग्रामों में निवास करती हैं इसलिए अक्सर यह कहा जाता है कि भारत गांव में बसता है। यह कहना भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा कि भारत में ग्रामीण विकास का मुद्दा सीधे सीधे देश के विकास से जुड़ा है और भारत में ग्रामीण विकास सबसे अधिक महत्व रखता है। वित्तीय वर्ष 2021-22 के आम बजट में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने के उद्देश्य से गांव, गरीब और किसानों पर फोकस किया गया था। इसमें किसानों की आय बढ़ाने, कृषि बाजारों को उदार बनाने और किसानों को समर्थन देने की बात कही गई थी। इसी प्रकार वित्तीय वर्ष 2022-23 के आम बजट में भी ग्रामीण विकास पर विशेष जोर दिया जाएगा, क्योंकि देश के ग्रामीण क्षेत्रों का विकास करना हम सभी का कर्तव्य बनता है।
कोरोना महामारी के दौरान केवल कृषि क्षेत्र ही एक ऐसा क्षेत्र रहा था जिसने विकास दर हासिल की थी अन्यथा उद्योग एवं सेवा क्षेत्र ने तो ऋणात्मक वृद्धि दर हासिल की थी। कृषि क्षेत्र में 1 प्रतिशत वृद्धि दर अन्य क्षेत्रों में 2 से 3 प्रतिशत की वृद्धि दर के बराबर है क्योंकि भारत में कृषि क्षेत्र प्राथमिक क्षेत्र की श्रेणी में गिना जाता है एवं अन्य क्षेत्र सहायक क्षेत्र की श्रेणी में गिने जाते हैं। जब प्राथमिक क्षेत्र में उत्पादों की मांग मजबूत होगी तभी सहायक क्षेत्रों के विकास में भी गति आएगी। इस दृष्टि से भी ग्रामीण इलाकों पर विशेष फोकस किए जाने की आवश्यकता है।
आज देश में ग्रामीण विकास को आंकने का पैमाना बदल रहा है एवं अब इसमें विभिन्न क्षेत्रों में आधारभूत ढांचा के विकास पर फोकस बढ़ता नजर आ रहा है। स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा व्यवस्था, रोड, रेल्वे, फिजीकल एवं डिजिटल आधारभूत ढांचा के विकास की भी बात की जाने लगी है। उदाहरण के तौर पर नई दिल्ली मुंबई के बीच एक नया राजमार्ग बनाया जाकर आधारभूत ढांचा खड़ा करने के प्रयास किए जा रहे हैं, इससे इसके क्षेत्र में आने वाले कई पिछड़े जिलों के ग्रामीण इलाकों के विकास में तेजी आने की पूरी सम्भावना व्यक्त की जा रही है। आज देश में पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों के विकास पर विशेष फोकस किया जा रहा है। कुल मिलाकर यदि ग्रामीण विकास की सम्भावनाओं को तलाशा जाय तो आज इंटीग्रेटेड रूप से विकास के पैमानों को आंकना होगा। दरअसल भारत में आज भी कई ग्रामीण इलाकों में आधारभूत ढांचा बहुत कम विकसित हो पाया है चाहे वह फिजीकल आधारभूत ढांचा हो, डिजिटल आधारभूत ढांचा हो अथवा स्वास्थ्य सेवाओं एवं शिक्षा व्यवस्था से सबंधित आधारभूत ढांचा हो। हालांकि अब कोरोना महामारी के बाद से देश के ग्रामीण इलाकों में भी आधारभूत ढांचा को तेजी से विस्तारित किए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं। इस प्रकार वित्तीय वर्ष 2022-23 के आम बजट के माध्यम से ग्रामीण इलाकों के आधारभूत ढांचा को विकसित किए जाने के प्रयास तेज किए जाने की भरपूर सम्भावना है।
दूसरे, ग्रामीण इलाकों में निवास कर रहे लोगों की आय केवल कृषि क्षेत्र से नहीं आती है बल्कि उनकी कुल आय का एक बहुत बड़ा भाग इन इलाकों में की जा रही अन्य गतिविधियों से भी आता है। एक अनुमान के अनुसार ग्रामीण इलाकों में 40 प्रतिशत आय कृषि कार्यों से अर्जित की जाती है एवं शेष 60 प्रतिशत आय कृषि के अलावा किया जा रहे अन्य सेवा क्षेत्र एवं कुटीर उद्योग के कार्यों से अर्जित की जाती है। इसलिए ग्रामीण इलाकों में अब कृषि क्षेत्र के अलावा अन्य सेवा क्षेत्रों एवं कुटीर उद्योग के विकास पर भी इस आम बजट के माध्यम से विशेष फोकस किया जाएगा।
तीसरे, भारत में एमजीनरेगा योजना के लागू किए जाने के बाद से ग्रामीण इलाकों में रोजगार के कई नए अवसर निर्मित किए जा रहे हैं एवं इस योजना के अंतर्गत जिन लोगों को रोजगार प्रदाय किया जा रहा है उनके कौशल विकास के बारे में यदि गम्भीरता से विचार किया जाय तो इन लोगों की उत्पादकता में बहुत अधिक वृद्धि की जा सकती है। अतः वित्तीय वर्ष 2022-23 के आम बजट में न केवल एमजीनरेगा योजना के अंतर्गत राशि का आबंटन बढ़ाया जाएगा बल्कि इस योजना के अंतर्गत रोजगार प्रदान किए जाने वाले लोगों के कौशल विकास के सम्बंध में भी योजनाएं बनाई जाएंगी। एमजीनरेगा योजना के अंतर्गत राशि के आबंटन को बढ़ाने से रोजगार के नए अवसर निर्मित होंगे एवं इससे अधिक से अधिक लोगों के हाथों में पैसा आएगा और उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ेगी और अंततः आर्थिक विकास दर में वृद्धि दृष्टिगोचर होगी।
पांचवे, विशेष रूप से भारत में पंचायत व्यवस्था मजबूत होनी चाहिए, क्योंकि हमारे देश की लगभग 70 प्रतिशत आबादी ग्रामों में निवास करती है। स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में पंचायतों का योगदान बहुत महत्वपूर्ण है। इस दृष्टि से पंचायतों के अधिकार बढ़ाए जाने चाहिए। देश में पंचायत बन तो गए हैं किंतु इनके द्वारा किए जाने वाले कार्यों के बहुत अच्छे परिणाम दिखाई नहीं दे रहे हैं। संघीय ढांचे में इनकी महत्ता को बढ़ाया जाना चाहिए। केंद्र, राज्य, जिला प्रशासन के बाद पंचायतों को चौथे ढांचे के रूप में लिया जाना चाहिए। इसके लिए पंचो को भी सशक्त किए जाने की आवश्यकता है। देश के ग्रामीण विकास में पंचायतों से अपेक्षाएं बहुत हैं इसलिए ग्रामीण इलाकों में सभी लोग पंचायतों की तरफ बहुत आशावादी दृष्टि से देखते हैं लेकिन ग्राम पंचायतों अधिकार बहुत कम हैं। ग्राम पंचायतों को इतना सशक्त बना देना चाहिए ताकि इनकी राज्य एवं केंद्र सरकार पर निर्भरता कम से कम हो जाय।
हालांकि भारत में अब सड़कें, स्वास्थ्य, शिक्षा एवं आवास प्रदान किए जाने सम्बंधी मुद्दे ठीक से हल किए जा रहे हैं। स्पष्ट तौर पर बदलाव हो रहा है एवं साफ दिख भी रहा है। प्रधान मंत्री आवास योजना (ग्रामीण) में बहुत अच्छा काम हुआ है। ग्रामीण इलाकों में तो लगभग 100 प्रतिशत मकानों को सम्बंधित व्यक्तियों को आबंटित कर दिया गया है। इसी प्रकार प्रधान मंत्री सड़क योजना में भी बहुत अच्छा काम हुआ है। विशेष रूप से कोरोना महामारी के बाद से ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए फिजीकल आधारभूत ढांचा खड़ा करने के प्रयास प्रारम्भ कर दिए गए हैं। आयुष योजना के अंतर्गत लागू की गई बीमा योजना का लाभ भी स्वास्थ्य सेवाओं हेतु ग्रामीण इलाकों में गरीब वर्ग द्वारा बहुत बड़ी संख्या में सफलता पूर्वक उठाया जा रहा है। “हर घर नल” योजना पर भी तेजी से काम हो रहा है और वर्ष 2025 तक हर घर में नल का कनेक्शन उपलब्ध करा दिया जाएगा ताकि माताओं बहनों को 2 से 3 किलोमीटर दूर तक पीने का जल लाने के लिए नहीं जाना पड़े।
- प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक, भारतीय स्टेट बैंक
के-8, चेतकपुरी कालोनी, झांसी रोड, लश्कर,
ग्वालियर- 474 009
ब तो विश्व प्रसिद्ध नोबेल पुरस्कार भी बहुत ही मामूली लोगों को राजनीतिक गुणा-भाग के आधार पर मिलने लगे हैं तो हमारे इन पद्म पुरस्कारों को कई लोग लेने से ही मना कर देते हैं। इन्हें देने के पीछे यदि राजनीति होती है तो नहीं लेने के पीछे भी राजनीति होती है।
इस बार घोषित पद्म पुरस्कारों पर जमकर वाग्युद्ध चल रहा है। कश्मीर के कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद को पद्मभूषण देने की घोषणा क्या हुई, कांग्रेस पार्टी के अंदर ही संग्राम छिड़ गया है। एक कांग्रेसी नेता ने बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री और कम्युनिस्ट नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य के कंधे पर रखकर अपनी बंदूक दाग दी। भट्टाचार्य को भी भाजपा सरकार ने पद्मभूषण से सम्मानित किया है। उन्होंने यह सम्मान लेने से मना कर दिया। इस पर कांग्रेसी नेता जयराम रमेश ने अपनी टिप्पणी बड़े काव्यात्मक अंदाज़ में कह डाली कि बुद्धदेवजी ‘आजाद’ रहना चाहते हैं, ‘गुलाम’ नहीं बनना चाहते हैं याने उन्होंने अपने वरिष्ठ साथी का नाम लिये बिना ही उनकी धुलाई कर दी।
कई अन्य कांग्रेसी नेता और खुद कांग्रेस पार्टी इस मुद्दे पर चुप है लेकिन कुछ ने आजाद को बधाई भी दी है। यहां असली सवाल यह है कि इन सरकारी सम्मानों का देश में कितना सम्मान है? इसमें शक नहीं है कि जिन्हें भी यह पुरस्कार मिलता है, वे काफी खुश हो जाते हैं लेकिन यदि मेरे किसी अभिन्न मित्र को जब यह मिलता है तो मैं उसे बधाई के साथ—साथ सहानुभूति का पत्र भी भेज देता हूं, क्योंकि इसे पाने के लिए उन्हें बहुत दंड-बैठक लगानी पड़ती है। इस बार दिए गए 128 सम्मानों के लिए लगभग 50 हजार अर्जियां आई थीं। अर्जियों की संख्या यदि 50 हजार थी तो हर अर्जी के लिए कम से कम 10-10 फोन तो आए ही होंगे। इन सम्मानों का लालच इतना बढ़ गया है कि पद्मश्री जैसा सम्मान पाने के लिए लोग लाखों रु. देने को तैयार रहते हैं। समाज के प्रतिष्ठित और कुछ तपस्वी लोग ऐसे नेताओं के आगे नाक रगड़ते रहते हैं, जो उनकी तुलना में पासंग भर भी नहीं होते। इसके अलावा किसी भी उपाधि, पुरस्कार या सम्मान को सम्मानीय तभी समझा जाता है, जब उसके देनेवाले उच्च कोटि के प्रामाणिक लोग होते हैं। अब यह सवाल आप खुद से करें कि पद्म पुरस्कार के निर्णायक लोग कौन होते हैं? नौकरशाह, जो नेताओं के इशारे पर थिरकने के अभ्यस्त हैं, उनके दिए हुए पुरस्कारों की प्रामाणिकता क्या है? इसका अर्थ यह नहीं कि ये सारे पुरस्कार निरर्थक हैं। इनमें से कुछ तो बहुत ही योग्य लोगों को दिए गए हैं।
अब तो विश्व प्रसिद्ध नोबेल पुरस्कार भी बहुत ही मामूली लोगों को राजनीतिक गुणा-भाग के आधार पर मिलने लगे हैं तो हमारे इन पद्म पुरस्कारों को कई लोग लेने से ही मना कर देते हैं। इन्हें देने के पीछे यदि राजनीति होती है तो नहीं लेने के पीछे भी राजनीति होती है। नम्बूदिरिपाद ने तब और भट्टाचार्य ने अब इसीलिए मना किया है। दो बंगाली कलाकारों ने यह कहकर उन्हें लेने से मना कर दिया कि उन्हें यह बहुत देर से दिया जा रहा है। ‘मेनस्ट्रीम’ के संपादक निखिल चक्रवर्ती ने यह सम्मान लेने से मना किया था यह कहकर कि ऐसे सरकारी सम्मानों से पत्रकारों की निष्पक्षता पर कलंक लग सकता है। वैसे गुलाम नबी आजाद पहले विरोधी दल के नेता नहीं है, जिन्हें यह सम्मान मिला है। नरसिंहराव सरकार ने मोरारजी देसाई को भारत रत्न और अटलजी को पद्म विभूषण दिया था। मोदी सरकार ने प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न, शरद पवार को पद्म विभूषण तथा असम व नागालैंड के कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों को भी पद्म पुरस्कार दिए थे। जरुरी यह समझना है कि जो मांग के लिए जाए, वह सम्मान ही क्या है और यह भी कि देनेवाले की अपनी प्रामाणिकता क्या है?
- डॉ. वेदप्रताप वैदिक
पलायन के बाद बात किसानों की कि जाए तो किसानों का रूख अभी अबूझ पहली बनी हुई है। जाट किसान किधर जाएगा,यह सब पता करना चाह रहे हैं। ज्ञातव्य हो कृषि कानूनों का सबसे ज्यादा असर पश्चिमी उप्र में ही नजर आया था।
उत्तर प्रदेश विधान सभा के लिए प्रथम चरण का मतदान 10 फरवरी को होगा। प्रथम चरण में पश्चिमी यूपी के 11 जिलों में मतदान होना है। सभी दलों ने पूरी ताकत झोंक रखी है। अमित शाह, योगी आदित्यनाथ, राजनाथ सिंह, जेपी नड्डा, अखिलेश यादव, जयंत चौधरी से लेकर तमाम छोटे-बड़े नेताओं ने पूरे पश्चिमी यूपी को एक तरह से मथ दिया है। राजनैतिक पंडित और बुद्धिजीवी भली भांति जानते हैं कि पश्चिम से जिस भी राजनैतिक दल की बयार बहेगी, उसका असर दूर तक जाएगा और उसी का बेड़ा पार हो जाएगा। यही कारण है कि सभी ने अपने-अपने तरकश के तीरों को और पैना कर पश्चिमी यूपी में छोड़ दिया है। पहले चरण में 11 जिलों शामली, मुजफ्फरनगर, बागपत, मेरठ, गाजियाबाद, हापुड़, नोएडा, बुलंदशहर, अलीगढ़, मथुरा, और आगरा की 58 सीटों पर मतदान होगा। पहले चरण में शामिल 58 सीटों पर कुल 810 उम्मीदवारों ने नामांकन पत्र दाखिल किये थे, इनमें से 658 नामांकन सही पाये गये। नामांकन पत्रों की जांच में सबसे ज्यादा 19 उम्मीदवार आगरा की बाह सीट पर हैं। इसके बाद 18 उम्मीदवार मुजफ्फरनगर सीट पर तो मथुरा सीट पर 15 उम्मीदवार मैदान में हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में इस क्षेत्र में भाजपा की प्रचंड लहर चली थी। बस पांच सीटें ऐसी रह गई थी जिन पर भाजपा के विजयी रथ को रोक लिया गया था। पहले चरण में जिन जिलो में मतदान होना है वहां जयंत चौधरी और अखिलेश यादव के गठबंधन की भी परीक्षा होगी। जिन जिलों में मतदान होना है उसे रालोद का गढ़ माना जाता है। इन जिलों में रालोद को काफी उम्मीदें भी हैं। सपा के गठबंधन के बाद यदि जाट-मुस्लिम समीकरण कारगर हुआ तो गठबंधन का फायदा हो सकता है।
इस बार प्रथम चरण में कई दिग्गज और बाहुबली नेताओं का भविष्य दांव पर है। दिग्गज नेताओं की बात की जाए तो इसमें मृगांका सिंह (बीजेपी) कैराना, सुरेश राणा (बीजेपी) थानाभवन, संगीत सोम(बीजेपी)सरधना, पंकज सिंह (बीजेपी) नोएडा, पंखुड़ी पाठक (कांग्रेस) नोएडा, अवतार सिंह भड़ाना (आरएलडी) जेवर, संदीप सिंह (बीजेपी) अतरौली, श्रीकांत शर्मा (बीजेपी) मथुरा, बेबी रानी मौर्या (बीजेपी) आगरा ग्रामीण शामिल हैं, वहीं बाहुबली नेताओं में मदन भैया (आरएलडी) लोनी विधानसभा क्षेत्र, अमरपाल शर्मा (सपा) साहिबाबाद विधानसभा क्षेत्र, नाहिद हसन (सपा) कैराना, योगेश वर्मा (सपा) हस्तिनापुर हैं जिनके हारने व जीतने के कई सियासी मायने होगे। 2017 के विधान सभा चुनाव में प्रथम चंरण की 58 सीटों में से जिन 05 सीटो पर गैर भाजपा नेता जीते थे, उसमें कैराना में सपा के नाहिद हसन, मेरठ शहर सीट पर सपा के रफीक अंसारी, छपरौली पर रालोद से सहेंद्र रमाला, धौलाना पर बसपा के असलम चौधरी तथा मांट पर बसपा के श्यामसुंदर शर्मा शामिल थे। इस बार इन सीटों पर जहां भाजपा जीत के लिए पूरी ताकत लगा रही है तो अन्य सीटों पर सपा रालोद गठबंधन समेत अन्य दूसरे दलों ने भी पूरी ताकत झोंक रखी है। बीजेपी हो या फिर रालोद-सपा गठबंधन अथवा कांग्रेस और बसपा सब ने समय-समय पर इस इलाके में कई सियासी प्रयोग किए हैं। 2017 के विधान सभा चुनाव में सबसे पहले कैराना के पूर्व सांसद हुकुम सिंह अब दिवंगत ने पलायन का मुद्दा उठाया था। यह प्रयोग इस कदर रंग लाया कि भाजपा सत्ता में आ गई। हालांकि, कैराना में इस फॉर्मूले का असर उल्टा हुआ और यहां सपा के नाहिद हसन चुनाव जीत गए वह भी तब जबकि भाजपा ने हुकुम सिंह की पुत्री मृगांका सिंह को चुनावी रण में उतारा था। इस बार भी दोनों फिर से आमने-सामने हैं। भाजपा इस बार इसे प्रतिष्ठा की लड़ाई मानकर चल रही है। गृहमंत्री अमित शाह और सीएम योगी आदित्यनाथ खुद पलायन वाले परिवारों से जाकर मिल चुके हैं और कह चुके हैं कि अब वे दिन नहीं रहे। इसका कितना असर हुआ, वह भी यह चुनाव तय करेगा।
पलायन के बाद बात किसानों की कि जाए तो किसानों का रूख अभी अबूझ पहली बनी हुई है। जाट किसान किधर जाएगा, यह सब पता करना चाह रहे हैं। ज्ञातव्य हो कृषि कानूनों का सबसे ज्यादा असर पश्चिमी उप्र में ही नजर आया था। पश्चिमी उप्र के किसान न केवल धरनों में शामिल हुए बल्कि सपा और रालोद गठजोड़ का जनक भी यही आंदोलन बना। अब इन जिलों में किसानों में भी अलग-अलग धड़े बन गए हैं। दोनों अपनी-अपनी बात कह रहे हैं। इस चरण में किसान मजबूती से किसके साथ खड़ा हुआ, उसका संदेश अन्य सीटों तक तेजी से जाएगा। इसे सभी दल गंभीरता से समझ रहे हैं और अपनी तैयारियों को इसी तरह से आकार दे रहे हैं।
इस चुनाव में सभी को डैमेज कंट्रोल करने की बड़ी चुनौती है। भाजपा के पास यहां पाने को ज्यादा कुछ नहीं है, लेकिन खोने को बहुत कुछ है। 58 में से 53 सीटों पर बीजेपी के विधायक हैं। भाजपा के सामने किसान आंदोलन की नाराजगी को दूर करने की चुनौती है। हालांकि, भाजपा कानून-व्यवस्था के मुद्दे को बड़े स्तर पर सामने रख रही है। रालोद-सपा गठबंधन के सामने टिकटों के बंटवारे के बाद कई सीटों पर पैदा हुई रार को खत्म करने की चुनौती है। बसपा के सामने फिर से अपने अस्तित्व को खड़ा करने की चुनौती है। इस बार बसपा अकेले मैदान में जबकि सपा गठबंधन में हैं इसलिए बसपा को अतिरिक्त मेहनत करनी होगी।
- अजय कुमार
कृषि उत्पादों के निर्यात के मामले में अच्छी स्थिति हासिल नहीं की जा सकी है। पिछले 7 वर्षों का कार्यकाल यदि छोड़ दिया जाये तो यह ध्यान में आता है कि इससे पिछले 70 वर्षों में भारत में कृषि क्षेत्र पर उतना ध्यान नहीं दिया जा सका है जितना दिया जाना चाहिए था।
कोरोना महामारी के दौरान केवल कृषि क्षेत्र ही एक ऐसा क्षेत्र रहा था जिसने विकास दर हासिल की थी अन्यथा उद्योग एवं सेवा क्षेत्र ने तो ऋणात्मक वृद्धि दर हासिल की थी। देश की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी आज भी गांवों में निवास कर रही है एवं इस समूह को रोजगार के अवसर मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र ही उपलब्ध करवाता है। भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि उत्पादन का हिस्सा 16 से 18 प्रतिशत के आसपास रहता है एवं अब यह धीमे-धीमे बढ़ रहा है। देश में उद्योगों को प्राथमिक उत्पाद भी कृषि क्षेत्र ही उपलब्ध कराता है। इस प्रकार यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए कि कृषि क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था का मूलभूत आधार है। इसी कारण से कृषि और किसान कल्याण संबंधी योजनाएं हमेशा ही केंद्र सरकार की प्राथमिकता में रही हैं। केंद्र सरकार लगातार प्रयास कर रही है कि देश का किसान आर्थिक रूप से मजबूत एवं सम्पन्न हो। हाल ही के समय में किसानों द्वारा उत्पादित कृषि पदार्थों की लागत बढ़ी है इसका मुख्य कारण डीजल, खाद एवं बीज के दामों में हुई तेज वृद्धि है। उक्त कारणों से कृषि क्षेत्र को वित्तीय वर्ष 2022-23 के बजट से बहुत उम्मीदें हैं।
केंद्र सरकार पिछले कुछ वर्षों से लगातार प्रयास करती रही है कि वर्ष 2022 तक किसानो की आय दुगुनी हो जाए। परंतु पिछले दो वर्षों के दौरान कोरोना महामारी के चलते हालांकि केंद्र सरकार की प्राथमिकताएं कुछ बदली हैं परंतु फिर भी कृषि क्षेत्र की ओर केंद्र सरकार का ध्यान लगातार बना रहा है और धान, गेहूं एवं अन्य कृषि पदार्थों के समर्थन मूल्य में रिकॉर्ड बढ़ोतरी की गई है फिर भी कोरोना महामारी के कारण किसानों की आय दुगनी करने सम्बंधी लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सका है। विश्व में सभी देशों की अर्थव्यवस्थाएं पांच छह साल पीछे पहुंच गईं हैं। लेकिन भारत में ऐसा नहीं हुआ है, कृषि क्षेत्र तो इस काल में भी वृद्धि दर्ज करता रहा है। अब ऐसी उम्मीद की जा रही है कि केंद्र सरकार वित्तीय वर्ष 2022-23 के बजट के माध्यम से कृषि पदार्थों के समर्थन मूल्य योजना पर विशेष घोषणा कर सकती है।
भारतीय किसान यदि परम्परागत कृषि पदार्थों यथा गेहूं एवं धान की खेती से इतर कुछ अन्य पदार्थों यथा फल, सब्जी, तिलहन, दलहन आदि की खेती को बढ़ाता है तो यह किसान एवं देश को कृषि के क्षेत्र में आत्म निर्भर बनाने में मदद कर सकता है। आज देश में खाद्य तेलों की कुल खपत का लगभग 50 प्रतिशत से अधिक हिस्सा आयात करना होता है क्योंकि प्रति व्यक्ति खाद्य तेल का उपयोग देश में बहुत बढ़ा है और इस प्रकार तिलहन की पैदावार को बढ़ाया जाना अत्यंत आवश्यक है। हालांकि इस ओर केंद्र सरकार का ध्यान गया है एवं इस वर्ष रबी के मौसम में देश में तिलहन का बुवाई क्षेत्र काफी बढ़ा है। तिलहन के रकबे में 18.30 लाख हेक्टेयर की भारी बढ़ोतरी हुई है। पिछले वर्ष की समान अवधि में 82.86 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में तिलहन की बुवाई की गई थी जो इस वर्ष बढ़कर 101.16 लाख हेक्टेयर में हुई है। दलहनी फसलों के रकबे में भी 1.47 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की बढ़ोतरी दर्ज हुई है। चने का रकबा तो 4.25 लाख हेक्टेयर से बढ़ा है। पिछले वर्ष की समान अवधि में दलहनी फसलों का रकबा 162.88 लाख हेक्टेयर रहा था जो इस वर्ष बढ़कर 164.35 लाख हेक्टेयर हो गया है।
अब तो देश में कई ऐसे कृषि पदार्थ हैं जिनका देश में कुल खपत की तुलना में बहुत अधिक उत्पादन हो रहा है। अतः इन पदार्थों के निर्यात को आसान बनाए जाने की भी जरूरत है ताकि किसानों को उनकी फसलों के उचित दाम मिल सके एवं इससे उनकी आय में वृद्धि हो सके। इसके लिए कृषि उत्पादों के ग्रेडिंग किए जाने की सख्त आवश्यकता है जिसके चलते छोटे-छोटे किसान भी अपने कृषि उत्पादों का सीधे ही अन्य देशों को निर्यात कर सकते हैं। भारत आज पूरे विश्व को डॉक्टर एवं इंजीनीयर उपलब्ध कराने में पहले नम्बर पर है एवं इस क्षेत्र में भारत प्रतिस्पर्धी बन गया है परंतु कृषि उत्पादों के निर्यात के मामले में यह स्थिति हासिल नहीं की जा सकी है। पिछले 7 वर्षों का कार्यकाल यदि छोड़ दिया जाये तो यह ध्यान में आता है कि इससे पिछले 70 वर्षों में भारत में कृषि क्षेत्र पर उतना ध्यान नहीं दिया जा सका है जितना दिया जाना चाहिए था।
किसानों को कृषि कार्य के लिए आसान शर्तों एवं कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराने की प्रक्रिया को बहुत सरल बना दिया गया है परंतु किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से प्रदान किए गए ऋण खातों में यदि प्रतिवर्ष (अथवा फसल के सायकल के अंतर्गत) पूरी ऋण राशि ब्याज सहित अदा नहीं की जाती है तो इन ऋण खातों को गैर निष्पादनकारी आस्तियों में परिवर्तित कर दिया जाता है एवं इन खातों में ऋण राशि को बढ़ाया नहीं जा सकता है तथा इन ऋणों पर लागू ब्याज की दर भी अधिक हो जाती है। जबकि गैर कृषि ऋण खातों में केवल ब्याज अदा कर दिए जाने पर ही इन खातों को गैर निष्पादनकारी आस्तियों की श्रेणी से बाहर रखा जाता है, अर्थात इन खातों में ऋण राशि वापिस जमा कराना आवश्यक नहीं है। इस प्रकार किसान क्रेडिट कार्ड के सम्बंध में उक्त नियमों को शिथिल बनाए जाने की आवश्यकता है।
देश में कोरोना महामारी के चलते ग्रामीण इलाकों में चूंकि बेरोजगारी की समस्या गम्भीर बनी हुई है अतः केंद्र सरकार को एमजीनरेगा योजना के अंतर्गत रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से बजट 2022-23 में और अधिक राशि का प्रावधान किए जाने की आवश्यकता होगी। एमजीनरेगा योजना के अंतर्गत अधिकतम कृषि कार्य कराए जाने का प्रावधान भी किया जाना चाहिए।
न्यूनतम समर्थन मूल्य वैसे तो लगभग 23/24 फसलों के लिए घोषित किया जाता है लेकिन वास्तव में पिछले 40 वर्षों से केवल पंजाब, हरियाणा एवं चंडीगढ़ आदि क्षेत्रों से ही अधिकतम फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद ली जाती है एवं इस योजना का बहुत अधिक लाभ देश के अन्य भागों के किसानों को नहीं मिल पा रहा है। अतः इस योजना का लाभ किस प्रकार देश के अन्य भागों के किसानों को लगभग सभी प्रकार की फसलों के लिए मिले, इसके लिए भी इस बजट में कुछ नई नीतियों की घोषणा होने की सम्भावना है।
पशुपालन, डेयरी एवं मछली पालन आदि ऐसे क्षेत्र हैं जिन्हें बढ़ावा देकर किसानों की आय में वृद्धि सम्भव है। अतः इन क्षेत्रों के लिए भी बजट में आवंटन बढ़ाए जाने की आवश्यकता है। हमारे देश में कृषि के क्षेत्र में अन्य देशों की तुलना में उत्पादकता बहुत कम है। चीन से यदि हम अपनी तुलना करते हैं तो ध्यान में आता है कि चीन की तुलना में प्रति हेक्टेयर पैदावार 50 प्रतिशत से भी कम है। चीन के अलावा अन्य देशों से भी जब हम धान, कपास, मिर्ची, तिलहन, दलहन, आदि उत्पादों के प्रति हेक्टेयर उत्पादन की तुलना करते हैं तो अपने आप को उत्पादकता की श्रेणी में बहुत नीचे खड़ा पाते हैं। अमेरिका में केवल 2 प्रतिशत आबादी कृषि क्षेत्र में कार्यरत है जबकि भारत में 50 प्रतिशत के आसपास आबादी कृषि क्षेत्र से अपना रोजगार प्राप्त करती है। भारत से कृषि उत्पादों के निर्यात में यदि तेज वृद्धि दर्ज करनी है तो हमें अपनी कृषि उत्पादकता बढ़ानी ही होगी। अतः इस क्षेत्र में बहुत अधिक काम करने की आवश्यकता है।
आज से 25 वर्ष पूर्व एक जाने माने कृषि वैज्ञानिक ने कहा था कि पंजाब में यदि इसी तरह उर्वरकों एवं कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग कर धान की खेती लगातार की जाती रही तो वर्ष 2050 तक पंजाब, राजस्थान की तरह रेगिस्तानी क्षेत्र में परिवर्तित हो जाएगा। अब यह भविष्यवाणी सच साबित होती दिख रही है। अतः भारत में कृषि का विविधीकरण करना अब अत्यंत आवश्यक हो गया है एवं उर्वरकों एवं कीटनाशकों के उपयोग को कम करते हुए गाय के गोबर को खाद के रूप में इस्तेमाल करने को बढ़ावा देना आवश्यक हो गया है। इस प्रकार हम पुरातन भारतीय कृषि पद्धति को अपना कर पूरे विश्व को राह दिखा सकते हैं।
-प्रह्लाद सबनानी
सेवानिवृत्त उप महाप्रबंधक
भारतीय स्टेट बैंक
छोटे व्यापारी और कुछ सेक्टर, जैसे होटल और पर्यटन आज भी संघर्ष करते दिख रहे हैं। यही हाल मध्यवर्ग और उन गरीबों का भी है, जिनके लिये दो वक्त की रोटी जुटाना आज भी महाभारत है या जिनके घरों ने कोरोना की मार झेली है।
केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा लोकसभा में आम बजट प्रस्तुत करने का समय आ रहा है। अगले हफ्ते मंगलवार को प्रस्तुत होने वाले आम बजट में आखिर क्या निकलेगा? सभी की कौतूहल भरी नजरें इस बजट पर टिकी हैं। कोरोना महामारी के विगत दो वर्षों के संकटों एवं आर्थिक असंतुलन से बेहाल सभी हैं, इनकी बेहाली दूर करना एवं एक संतुलित आम बजट की प्रस्तुति वित्त मंत्री की सबसे बड़ी चुनौती है। महंगाई बढ़ी है, बेरोजगारी भी सबसे ऊंचे स्तर पर है, छोटे व्यापारियों के सम्मुख बड़े-बड़े संकट हैं, अमीरी-गरीबी की खाई भी बढ़ी है और गरीब ज्यादा गरीब हुए हैं, उन्हें कैसे राहत दी जाए, कितनी राहत दी जाए? प्रस्तुत होने वाले बजट के सामने इस तरह की बड़ी चुनौतियां हैं कि किस तरह कृषि आधारित बुनियादी ढांचा बनाया जाये, किस तरह रोजगार के नये अवसर सुलभ कराये जायें, किस तरह महंगाई को नियंत्रित किया जाये और सार्वजनिक-निजी साझेदारी को मजबूत बनाने के लिये बड़े निवेश की जरूरत इस बजट में किस तरह से पूरी होती है।
क्या यह बजट गरीबों और किसानों को समृद्ध बनाने के उद्देश्य से ग्रामीण भारत की तस्वीर को बदलने की ओर कदम बढ़ाने वाला होगा? इस बजट में मध्यम वर्ग को कोई राहत मिलेगी और कारोबार की सुगमता एवं जीवन की सहजता कैसे हो सकेगी? ये प्रश्न इस बजट को प्रस्तुत करते हुए खड़े रहने चाहिए। इस बजट में मोदी सरकार का आर्थिक विकास यदि धन के प्रति सम्यक् नजरिया विकसित कर सका तो अनेक समस्याओं से मुक्ति सहज ही मिल सकेगी। आजादी का अमृत महोत्सव मनाते हुए विगत सरकारों की आर्थिक विसंगतियों एवं विषमताओं का दूर करने का लक्ष्य भी बनाना होगा।
बजट का असली मतलब आमदनी और खर्च का हिसाब लगाना और उसे संतुलित करना ही होता है। अक्सर बजट प्रस्तुत करते समय सबसे जटिल होता है कम आमदनी में बजट को सर्वांगीण विकास, समग्र दिशाओं एवं योजनाओं के लिये धन खर्च करने की घोषणाएं करना एवं व्यवस्थाएं करना। चालू वित्त वर्ष के शुरुआती आठ महीनों का जो आंकड़ा जारी हुआ है, उसके हिसाब से चिंता आमदनी की उतनी नहीं है, जितनी इस बात की कि सरकार का खर्च इतना कम क्यों है? मोदी सरकार की जागरूकता एवं चुस्त शासन व्यवस्था का ही परिणाम है कि पूर्व अनुमान से सरकार की आमदनी सभी स्रोतों से करीब 2.25 लाख करोड़ रुपये अधिक है। इसकी सबसे बड़ी वजह टैक्स वसूली में आई तेजी है। पिछले छह महीनों में हर महीने औसतन 1.20 लाख करोड़ रुपये तो सिर्फ जीएसटी से ही आए हैं। इन स्थितियों को देखते हुए कहा जा सकता है कि कारोबार रफ्तार पकड़ रहा है, लोगों में टैक्स देने के प्रति जागरूकता आई है, देश की सबसे बड़ी कंपनियों के नतीजे उत्साहवर्द्धक हैं। कोरोना के बाद से ही इनके मुनाफे में रिकॉर्ड बढ़ोतरी देखने को मिली है और आज भी मिल रही है।
अनुमान से लगभग 30 प्रतिशत अधिक आमदनी एवं आने वाले वर्ष में इसके और अधिक बढ़ने की संभावनाओं को देखते हुए तेज विकास के लिये रोडमैप तैयार करने का वक्त है। यह बजट आम-जन की सहभागिता और उसके व्यापार, उद्यम एवं क्षमताओं की कितनी जमीन तैयार करेगा, कितने रोजगार के नये अवसर सामने आयेंगे, एक संदेहभरा वातावरण लिये हुए है। भारत की वर्तमान अर्थव्यवस्था की बड़ी विसंगति रही कि यहां एक तरफ गरीब है तो दूसरी तरफ अति-अमीर है। इन दोनों के बीच बड़ी खाई है। इनके बीच की दूरियां इस बजट से दूर होना अपेक्षित है। आशा की जाती रही थी कि मोदी सरकार के बजट आर्थिक विसंगतियों को समाप्त करने का माध्यम बनेंगे, आशा तो अभी भी है, लेकिन इस बजट से वह कितनी पूरी होती है, यह एक प्रश्न है।
जीवन के आसपास गुजरते अनुभवों की सत्यता यही है कि मनुष्य धन के बंधनों में घुटा-घुटा जीवन जीता है, जो परिस्थितियों के साथ संघर्ष नहीं, समझौता करवाता है। हर वक्त अपने आपको असुरक्षित-सा महसूस करता है। जिसमें आत्मविश्वास का अभाव अंधेरे में जीना सिखा देता है। जिसके द्वारा महत्त्वाकांक्षाओं का बोझ ढोया जाता है। जिसके लिए न्याय और अधिकार अर्धशून्य बन जाता है। जिससे सफलताएं दूर भागती हैं और जिसमें न उद्देश्य की स्पष्टता होती है और न वहां तक पहुंचने के लिए छलांग भरने की ताकत। आम आदमी से जुड़ी इन जटिल स्थितियों को बदलना सरकार की प्राथमिकता होना चाहिए एवं इसकी आहट इस बजट में सुनाई देनी ही चाहिए।
सरकार चाहे तो देश की तस्वीर बदल सकती है, आम जनता की अपेक्षाओं पर खरी उतर सकती है, जरूरी चीजों पर खर्च कर सकती है या उन पर खर्च की राशि बढ़ा सकती है। सरकार के पास फण्ड की कमी नहीं है, बल्कि इस साल विडम्बना यह है कि सरकार को जितनी राशि खर्च करना था उसका 60 फीसदी हिस्सा भी खर्च नहीं हो पाया है। सुखद संकेत है कि कोरोना महामारी के बावजूद सरकार के पास विभिन्न जनोपयोगी योजनाओं पर खर्च करने के लिये अतिरिक्त आमदनी एवं पूर्व में बजट से कम खर्च करने से बचा फण्ड बहुतायत में है। अभी कोरोना की तीसरी लहर का डर अर्थव्यवस्था के सामने खड़ा है। फिर भी सरकार के हाथ एकदम बंधे हुए तो नहीं हैं।
चहूं ओर आमदनी बढ़ने की सुखद स्थितियों के बीच चिंता बढ़ाने की बात यह है कि सरकार के तमाम दावों के बावजूद वे अर्थशास्त्री सही साबित हो रहे हैं, जो कह रहे थे कि कोरोना के बाद अर्थव्यवस्था में भले सुधार हुआ हो, इसकी सबसे बड़ी विसंगति यह है कि कुछ तबके तेजी से ऊपर जा रहे हैं, वहीं बहुसंख्य आज भी नीचे ही गिरते दिख रहे हैं। यह अमीरी एवं गरीबी की बढ़ी दूरियां सरकार की चिन्ता का कारण होना चाहिए। सरकार की सार्थक पहल हो कि गरीबों को सहारा देने का रास्ता निकाला जाए। अमीरों की अमीरी बढ़ना समस्या नहीं है बल्कि गरीबों की गरीबी बढ़ना बड़ी समस्या है, एक बदनुमा दाग है। इस दाग को धोने के लिये सरकार को कुछ कठोर निर्णय लेने होंगे।
छोटे व्यापारी और कुछ सेक्टर, जैसे होटल और पर्यटन आज भी संघर्ष करते दिख रहे हैं। यही हाल मध्यवर्ग और उन गरीबों का भी है, जिनके लिये दो वक्त की रोटी जुटाना आज भी महाभारत है या जिनके घरों ने कोरोना की मार झेली है। ऐसे वर्गों के लिये सरकार को अपना खजाना खोलना चाहिए। एलआईसी का आईपीओ आ गया, तो एक झटके में एक से डेढ़ लाख करोड़ रुपये तक की रकम सरकार को मिल सकती है। इस आईपीओ को लाने में आ रही दिक्कतों को दूर करना चाहिए। सरकार को रोजगारमूलक योजनाएं बनानी चाहिए, भारत के कुछेक चुनींदें धनाढ्य ही नहीं बल्कि हर आदमी आगे बढ़ता हुआ दिखना चाहिए- तभी सबका साथ सबका विकास उद्घोष सार्थक होगा। ऐसे में, देखना यही है कि सरकार बजट में क्या रुख अपनाती है ?
मोदी सरकार धन के प्रति एक नये नजरिया विकसित करने को तत्पर है। कुछ ऐसी योजनाओं के द्वारा वैभवता को भी सम्यक् बनाने की कोशिश की जानी चाहिए, इसी से नये आर्थिक अभ्युदय संभव है। भारतीय संत मनीषा ने धन के प्रति सम्यक् नजरिये और सम्यक् आजीविका की बात कही है। विडम्बनापूर्ण अर्थव्यवस्थाओं में अर्थ की चिन्ता तो रही है, पर जीवन का कोई मूल्य नहीं रहा। आज हमारे जितने क्रियाकलाप अथवा आजीविका के स्रोत हैं, वे उदरपूर्ति के निमित्त धन प्राप्त करने के लिए नहीं, अपितु बाह्याडंबरों और झूठी प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए ज्यादा हैं। क्या इस तरह की विसंगतिपूर्ण आर्थिक सोच से मुक्ति मिल सकेगी? आज कुछ धनाढ्य लोगों ने अधिकांश साधन अपनी मुट्ठी में बंद कर रखे हैं। इसी से हम घोर विषमता के दुष्चक्र में फंसे हैं।
जमाव अभाव का जनक होता है यानी धन का कुछ हाथों में केन्द्रित होना एक बड़ी समस्या है और इसी से हिंसा, आतंक, विद्रोह, शोषण जैसी स्थितियां पैदा होती हैं। एक तरह से अशांति और अराजकता का मूल कारण सरकार की पोषित गलत आर्थिक नीतियों से पैदा हुए ये चन्द धनाढ्य लोग ही हैं। मोदी सरकार इस दिशा में कोई ठोस निर्णायक भूमिका का निर्माण कर सकी तो उनके नये भारत-सशक्त भारत के निर्माण में ऐसी नवीन आर्थिक नीतियों एवं सोच का बड़ा प्रभाव होगा। यही सोच विकसित करके भारत को दुनिया की आर्थिक महाशक्ति बना सकेंगे।
- ललित गर्ग