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प्रयागराज (इलाहाबाद). कुंभ मेला क्षेत्र में किन्नर अखाड़ा जूना अखाड़े का हिस्सा बना। मौजगिरि आश्रम में शनिवार देर रात तक चली चर्चा और पूजा-पाठ के बाद दोनों अखाड़ों के प्रमुखों ने एक मंच पर आने की हामी भरी। कागजी कार्रवाई के बाद तय हुआ कि किन्नर अखाड़ा वर्तमान स्वरूप में ही जूना अखाड़े का हिस्सा बना रहेगा। दोनों अखाड़े 15 जनवरी को शाही स्नान में मौजूद रहेंगे।
किन्नर अखाड़ा प्रमुख लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने कहा कि इसे अखाड़े में विलय नहीं माना जाए। जूना और किन्नर अखाड़ा एक हुए हैं। हमारे अखाड़े ने जो भी आचार्य महामंडलेश्वर, महामंडलेश्वर और महंत जैसे पद दिए हैं वे बरकरार रहेंगे। हमारा अखाड़ा जूना के सारे नियमों को मानेगा।
करीब 11 घंटे चलेगा 13 अखाड़ों का शाही स्नान
कुंभ का पहला शाही स्नान 15 जनवरी को मकर संक्रांति पर है। प्रशासन ने सभी 13 अखाड़ों के शाही स्नान का वक्त तय कर दिया है। अखाड़ा परिषद के महामंत्री हरि गिरि ने बताया कि परंपरा के मुताबिक, अखाड़ों का जुलूस निकलेगा। सबसे पहले महानिर्वाणी और सबसे अंत में निर्मल अखाड़े का जुलूस निकलेगा। अखाड़ों का शाही स्नान सुबह 5:15 बजे से शुरू होकर शाम 4:20 बजे तक चलेगा।

नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह की 352वीं जयंती पर उनकी याद में सिक्का जारी किया। इस मौके पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी उनके साथ मंच पर मौजूद थे। मोदी ने करतारपुर कॉरिडोर को लेकर केंद्र सरकार की पहल को सराहा। उन्होंने कहा कि अब श्रद्धालु बिना वीजा के गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाशोत्सव में शामिल होने के लिए पाकिस्तान स्थित नरोवाल जा सकेंगे।
प्रधानमंत्री ने कहा, “1947 में हमसे जो चूक हुई थी, यह उसका प्रायश्चित है। हमारे गुरु का सबसे महत्वपूर्ण स्थल सिर्फ कुछ ही किलोमीटर दूर था, लेकिन उसे भी अपने साथ नहीं लिया गया। यह कॉरिडोर उस नुकसान को कम करने का प्रमाण है।” इससे पहले मोदी ने ट्वीट कर गुरु गोबिंद सिंह जी को नमन किया।
मोदी जारी कर चुके हैं डाक टिकट
दो साल पहले भी नरेंद्र मोदी ने पटना में गुरु गोबिंद सिंह की याद में डाक टिकट जारी किया था। पिछले साल 30 दिसंबर को मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में उनके गुरु गोबिंद सिंह के बलिदान और देशप्रेम की तारीफ की थी। गुरु गोबिंद सिंह जब सिखों के धर्मगुरु बने तब उनकी उम्र महज नौ साल थी। वे अध्यात्म के ज्ञानी, योद्धा, कवि और दार्शनिक थे।

नई दिल्ली . हमारे देश में प्रति मिनट करीब 70 हजार कॉल ड्रॉप हो रहे हैं। उपभोक्ताओं की इस परेशानी के बीच हास्यास्पद ये है कि 4जी और 5-जी के जमाने में ट्राई इसके लिए मैन्युअली फोन लगा-लगाकर कॉल ड्रॉप चेक कर रहा है। इसे ड्राइव टेस्ट कह रहे हैं। इसके लिए निजी कंपनी को ठेका दिया गया है।
टीमें शहरों के अलग-अलग हिस्सों जैसे फ्लाइओवर, नदी-नाले, रेलवे लाइन के आसपास जाती हैं और कारों में बैठकर अलग-अलग नंबरों पर फोन लगाती हैं। इनसे मिलने वाली इंटरनेट स्पीड, डेटा डाउनलोड और अपलोड स्पीड जैसी क्वालिटी को दर्ज किया जाता है। मजेदार बात यह है कि जिन नम्बरों पर फोन मिलाए जाते हैं वो भी टेलीकॉम कम्पनियों के बताए हुए होते हैं। दिलचस्प यह है कि कॉल ड्राॅप पकड़ने का यह तरीका दुनिया में कहीं नहीं अपनाया जाता।
2% कॉल ड्रॉप का नियम
नियमों के तहत कॉल ड्राॅप 2% से अधिक नहीं होनी चाहिए और कॉल सेटिंग 95% से अधिक हो। ऐसा न होने पर जुर्माने की व्यवस्था है। लेकिन ड्राइव टेस्ट के डेटा को जुर्माने का आधार भी नहीं बनाया जाता। पिछले एक साल में ही कम से कम 50 शहरों में 15 से 20 हजार किमी के रूट पर कारें चलाकर फोन ऑपरेटरों के मोबाइलों पर कॉल लगाई गईं। ताकि यह जाना जा सके कि जो दावे टेलीकॉम प्रोवाइडर अपनी रिपोर्ट में करते हैं, उनमें कितनी सच्चाई है।
'ऑपरेटरों को आईना दिखाना चाहते हैं'
इस बारे में दैनिक भास्कर ने टेलीकॉम रेग्यूलेटरी अथॉरिटी (ट्राई) के अध्यक्ष आरएस शर्मा से पूछा तो उन्होंने कहा कि टेलीकॉम कम्पनियों से उनके नेटवर्क का अपार डाटा उन्हें टावरों से मिल रहा है। लेकिन, उसकी सत्यता की बारीकी से पड़ताल करना समंदर को छानने के समान है। ट्राई प्रमुख ने कहा कि सैम्पल को पेनल्टी का पैमाना नहीं बनाया जा सकता लेकिन उसके आंकड़ों से हम पारदर्शिता चाहते हैं और ऑपरेटरों को आईना दिखाना चाहते हैं।
'कॉल साइलेंट जोन में चली जाती है'
ड्राइव टेस्ट को हास्यास्पद बताते हुए टेलीकम्युनिकेशन एक्सपर्ट अनिल कुमार कहते हैं कि मोबाइल सेवा ऑपरेटरों ने कॉल ड्राॅप्स दर्ज न होने देने के लिए भी तरीके खोज लिए हैं। कॉल साइलेंट जोन में चली जाती है। कॉल लगाओ तो देर तक चुप्पी रहती है। कुछ देर बाद उस फोन पर नोटिफिकेशन चला जाता है। ये कॉल ड्राॅप्स नार्म्स को चकमा देने के तरीके ही हैं। दुनियाभर में कॉल ड्राॅप्स होते ही नहीं हैं तो वहां इसे जज करने के तरीके भी नहीं हैं।
भारत की निराली समस्या
यह भारत की निराली समस्या है, जो 3जी आने के बाद से शुरू हुई। इसका समाधान ड्राइव टेस्ट नहीं आप्टिकल फाइबर नेटवर्क बिछाने से ही होगा। दूरसंचार राज्यमंत्री मनोज सिन्हा का कहना है कि यह सुझाव अच्छा है। इसके लिए सरकार ट्राई एक्ट में संशोधन पर विचार करेगी। फिलहाल इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने एक स्थगन आदेश दिया हुआ है। फैसला होने पर सरकार उसका पूरा पालन करेगी।

स्वास्थ्य के क्षेत्र की ही चर्चा की जाए। देश में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। इलाज महंगा होने के कारण गरीब आदमी की पहुंच से बहुत दूर है। अनेकों लोग संसाधनों के अभाव में बिना इलाज के ही दम तोड़ जाते हैं।

स्वतंत्रता के पश्चात देश में सरकारों ने आम आदमी को केंद्र में रखकर तमाम जनकल्याणकारी योजनाएं संचालित की और कई नारे दिए। मगर सरकारों की नीति और नियत साफ ना होने के कारण तमाम योजनाएं ढकोसला ही साबित हुई हैं। इन योजनाओं ने आम आदमी के बजाय योजनाकारों को ही लाभ पहुंचाया और उनकी संपन्नता में बढ़ोतरी की। 

स्वास्थ्य के क्षेत्र की ही चर्चा की जाए। देश में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। इलाज महंगा होने के कारण गरीब आदमी की पहुंच से बहुत दूर है। अनेकों लोग संसाधनों के अभाव में बिना इलाज के ही दम तोड़ जाते हैं। गंभीर बीमारियों के उपचार के लिए आम आदमी अपना घर-बार, जमीन, जेवर आदि तक बेच डालता है। देश की विशाल व विविधता भरी जनसंख्या को सस्ता और बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती बनी रही है।
 

इसका प्रमुख कारण यह रहा कि नीति-नियंताओं ने इस चुनौती से निबटने के सरसरी प्रयास ही किए। इस गंभीर समस्या की ओर पहली बार नरेंद्र मोदी सरकार ने ध्यान दिया। मोदी सरकार ने गरीबों को मुफ्त इलाज सुनिश्चित करने के लिए "आयुष्मान भारत- प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना" के रूप में एक क्रांतिकारी पहल की है। यह विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना है। 
 
प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना जिसे आम बोलचाल में "मोदी केयर" बोला जा रहा है, को केंद्रीय कैबिनेट ने 21 मार्च, 2018 को स्वीकृति दी थी। इसे मोदी सरकार की मजबूत संकल्प शक्ति कहना चाहिए कि योजना की स्वीकृति के छह माह के भीतर 23 सितंबर, 2018 को यह पूरे देश में लागू हो गई। मोदी केयर में देश के निर्धन/निर्बल वर्ग के 10 करोड़ से अधिक परिवारों अर्थात् पचास करोड़ की आबादी को प्रतिवर्ष पांच लाख तक का इलाज सरकारी व निजी अस्पतालों में मुफ्त मिलेगा। यानि देश की 40 प्रतिशत जनसंख्या कैशलेस उपचार का लाभ उठाएगी। यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई भी व्यक्ति खासकर महिलाएं, बच्चे व वृद्ध योजना से वंचित न हो जाएं, सरकार ने परिवार के आकार व आयु पर किसी तरह की सीमा निर्धारित नहीं की।
 
मोदी केयर में 1350 से अधिक बीमारियों को शामिल किया गया है। योजना में सर्जरी, डे केयर, दवा, जांच आदि की सुविधा प्रदान की गई है। रोगियों की सुविधा के लिए अस्पतालों में आरोग्य मित्र तैनात किए जा रहे हैं। योजना के अंतर्गत कवर लाभार्थी को पैनल में शामिल किए गए देश के किसी भी सरकारी/निजी अस्पताल में इलाज की अनुमति होगी। योजना की जरूरत व उसके प्रभाव का आकलन करने के लिए यह तथ्य पर्याप्त है कि मोदी केयर के लागू होने के मात्र 100 दिन के भीतर देश भर में 6.85 मरीजों का मुफ्त इलाज किया गया।
 

निष्कर्ष रूप में यह कहना उचित होगा कि मोदी केयर के प्रभावी क्रियान्वयन से देश के स्वास्थ्य परिदृश्य में गुणात्मक परिवर्तन होगा। सामाजिक असंतुलन को समाप्त कर सामाजिक न्याय सुनिश्चित हो सकेगा। दूसरे अर्थों में कहा जाए तो मोदी केयर एक नई सामाजिक क्रांति लाने के लिए इतिहास में दर्ज होगी। हमारे ऋषियों-मुनियों ने "सर्वे भवंतु सुखिन:, सर्वे संतु निरामय:" की जो कल्पना की थी, उसको साकार करने में यह योजना मील का पत्थर साबित होगी। 
 
इसके साथ ही यहां उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार की "अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना" की चर्चा करना प्रासंगिक होगा। टीएसआर सरकार मोदी सरकार से प्रेरणा लेकर एक कदम और आगे बढ़ गई। उत्तराखंड सरकार ने योजना में प्रदेश के सभी वर्गों के नागरिकों को लाभार्थियों की श्रेणी में ले लिया। उत्तराखंड के सभी 23 लाख परिवार इस स्वास्थ्य बीमा में कवर होंगे। यूरोप के कई देशों में सरकार अपने सभी नागरिकों को मुफ्त में स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराती हैं। उसी तर्ज पर उत्तराखंड देश का पहला एकमात्र ऐसा राज्य होगा जो अपने सभी नागरिकों को निःशुल्क स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करेगा।
 
विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले उत्तराखंड में अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना की प्रासंगिकता अधिक है। प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों की पर्याप्त उपलब्धता न होने और निजी अस्पतालों में मंहगे उपचार के कारण आम आदमी को अपने इलाज के लिए मन मसोस कर रह जाना पड़ता था। मगर प्रदेश सरकार ने निर्धन वर्ग के साथ अन्य सभी वर्गों के लोगों को भी एक बड़ी राहत दी है। प्रदेश के सभी नागरिक पांच लाख तक का इलाज 150 से अधिक सरकारी व निजी अस्पतालों में करा सकेंगे। प्रदेश सरकार ने सामान्य बीमारियों में मरीज को पहले सरकारी अस्पताल में भर्ती करने और रेफर करने पर एक निजी अस्पताल में भर्ती करने की सुविधा दी है। इसके विपरीत आपातकालीन मामलों में मरीज को सीधे निजी अस्पताल में भर्ती किया जा सकता है। साथ ही राज्य सरकार ने सरकारी कर्मचारियों को कुछ मासिक अंशदान के साथ असीमित इलाज की सुविधा की सौगात दी है।
 
बहरहाल, राजनीतिक आलोचना-प्रत्यालोचना को छोड़ दिया जाए तो किसी के लिए भी यह नकारना कठिन होगा कि अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना के रूप में टीएसआर सरकार ने अपने समकालीनों के समक्ष एक लंबी लकीर खींच दी है। मुख्यमंत्री ने प्रदेश के प्रत्येक नागरिक को स्वास्थ्य बीमा का कवच देकर न केवल ज्वलंत व जरूरी मुद्दे पर अपनी संवेदनशीलता प्रदर्शित की है, अपितु प्रदेशवासियों खासकर पर्वतीय क्षेत्र के जनमानस को महंगे इलाज की दुश्वारियों से चिंता मुक्त कर दिया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सबके लिए स्वास्थ्य बीमा के रूप में "टीएसआर कवच" एक नए परिवर्तन का कारक बनेगा।
 
-अजेंद्र अजय
(लेखक उत्तराखंड सरकार में मीडिया सलाहकार समिति के उपाध्यक्ष रहे हैं।)

क सुंदर सा घर हो अपना- इस बात का सपना तो बहुत लोग देखते हैं, लेकिन इसे साकार करने के लिए माकूल जुगत बहुत कम लोग ही बिठा पाते हैं। ऐसा इसलिए कि किसी के पास नियमित आय का अभाव होता है तो किसी के पास ऋण जमानत दाता का।

एक सुंदर सा घर हो अपना- इस बात का सपना तो बहुत लोग देखते हैं, लेकिन इसे साकार करने के लिए माकूल जुगत बहुत कम लोग ही बिठा पाते हैं। ऐसा इसलिए कि किसी के पास नियमित आय का अभाव होता है तो किसी के पास ऋण जमानत दाता का। लिहाजा, यदि आप अपने सपनों के घर को वित्तपोषित करने के लिए, एक विश्वसनीय ऋणदाता की तलाश करते हैं और इसके लिए आवेदन जैसे ही जमा करते हैं तो सबसे पहले ऋणदाता आपकी आय, नौकरी की स्थिरता, पुनर्भुगतान क्षमता आदि का मूल्यांकन करता है। इन सबसे सन्तुष्ट होने के बाद ही वह आपकी गृह ऋण याचिका को मंजूरी देता है।
 
अतएव, कहना न होगा कि इस पूरे बंधक वित्त पोषण प्रक्रिया में किसी भी आवेदक के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक यह है कि आप ऋणदाता द्वारा निर्धारित और निर्दिष्ट आय मानदंडों को पूरा कर रहे हैं अथवा नहीं! क्योंकि यदि आपके पास कम आय है तो आपका आवेदन निःसन्देह अस्वीकार किया जा सकता है, जो किसी भी प्रभावित आवेदक के लिए हैरानी की बात होती है। लेकिन इस समस्या का सरल उपाय यह है कि आपको उन्हीं ऋणदाता को आवेदन करना चाहिए, जहां आप गृह ऋण योग्यता सम्बन्धी तमाम मानदंडों को पूरा करते हैं। यदि ऐसा नहीं है तो आप सह-आवेदक के साथ भी आवेदन कर सकते हैं और अपने तथा अपने सह-आवेदक के बीच अपना जोखिम भी अलग कर सकते हैं। इसलिए चिंता मत कीजिये, क्योंकि बैंक बाजार में बहुत सी ऐसी योजनाएं हैं जो आपके गृह ऋण तनाव को हल्का या फिर पूरी तरह से खत्म कर सकती हैं।
 
जानिए क्या है नई होम लोन स्कीम? क्या हैं इसकी प्रमुख बातें


 
इस बारे में हमें सर्वप्रथम उन योजनाओं पर नज़र डालनी चाहिए जहां पर कोई भी जरूरतमंद आवेदक 'नंगे' आय की सुविधा के साथ अपने आवासीय सपनों को पूरा कर सकते हैं। इसलिए यहां पर हम 'आईआईएफएल होम लोन' की एक नई होम लोन स्कीम 'एनएचएलएस' के बारे में यहां बता रहे हैं। दरअसल, यह नई गृह ऋण योजना 'एनएचएलएस' प्रतिस्पर्धी ब्याज दरों पर पर्याप्त वित्त पोषण के साथ आपको आपके सपनों के घरों के निर्माण में औसत भारतीय मध्यम श्रेणी के लोगों को आंतरिक निर्णय शक्ति प्रदान करती है। क्योंकि यह फायदेमंद और रचनात्मक परिवर्तन के साथ एक अभूतपूर्व तरीके से अपरिचित लोगों के जीवन को भी उजागर करेगा और यथोचित मदद करेगा।
 
बताते चलें कि 'एनएचएलएस' के बारे में पांच बेहद महत्वपूर्ण बात निम्नलिखित है- पहला, कोई भी भारतीय नागरिक चाहे वह वेतनभोगी या फिर स्व-नियोजित हो, इस योजना के लिए आवेदन कर सकते हैं। विशेषकर निम्न आय श्रेणी वाले निवासी भारतीय भी इस योजना के लिए आवेदन कर सकते हैं। हालांकि वह इसके लिए पूर्ववत तय नियम और शर्तों के अधीन ही ऐसा कर सकते हैं।
 
दूसरा, यह योजना ऋण धारकों को संरचित आय दस्तावेजों से स्वतंत्रता प्रदान करती है। हलांकि इस योजना के लिए आधार कार्ड जैसे पहचान दस्तावेजों के साथ आय प्रमाण दस्तावेज भी लागू करना आवश्यक है ताकि उच्च आय वाले लोगों की स्वतः छंटनी की जा सके। बावजूद इसके, इस लोन योजना में  दस्तावेज़ीकरण प्रक्रिया बेहद आसान है और हर जरूरतमंद व्यक्ति इसका लाभ सुगमतापूर्वक उठा सकता है।


 
तीसरा, इस योजना के तहत अधिकतम गृह ऋण राशि मात्र 20 लाख रुपये तक ही हो सकती है। वह भी आवास वित्त कंपनी द्वारा पात्रता मूल्यांकन के बाद ही, जो गृह ऋण को अधिकतम 20 वर्षों तक के लिए ही वित्त पोषित कर सकेगा। हालांकि ऐसी दीर्घावधि लोन के लिए दो दशक का समय भी कम नहीं होता है।
 
चतुर्थ, इस प्रकार के लोन के तहत संपत्ति पंजीकरण और गृह ऋण संरचना में सह-आवेदक की भी आवश्यकता होती है, जो हर किसी के घर में आसानी से उपलब्ध हो सकता है। यह नियम इसलिए बनाया गया है कि किसी भी प्रकार की अप्रत्याशित घटना-दुर्घटना की स्थिति परिस्थिति में भी ऋण दाता का हित सुरक्षित रहे और ऋण धारक को भी कोई परेशानी नहीं हो।
 


पांचवां, कोई भी योग्य आवेदक इस योजना के तहत शून्य क्रेडिट इतिहास पर भी आवेदन कर सकता है जो कि एक बहुत बड़ी सहूलियत है। क्योंकि आम तौर पर देखा जाता है कि यदि आपका क्रेडिट स्कोर 650 से नीचे है तो आपके लिए होम लोन लेना कतई संभव नहीं है। इस प्रकार यह ऋण योजना भी हर जरूरतमंद व्यक्ति के हित में है, बशर्ते कि वह उसका फायदा उठाए और अनावश्यक दुरुपयोग न करे।
 
इस तरह से आप बना सकते हैं अपना नया घर, बस करना होगा ये काम
 
यहां पर यह स्पष्ट कर दें कि भारत सरकार का जनहितकारी उद्देश्य उसके प्रगतिशील मिशन '2022 तक सभी के लिए आवास' के तहत कम से कम 2 करोड़ नए घर बनाना है ताकि अपेक्षाकृत कम आय वर्ग वाले लोगों के लिए भी अपना छत सुनिश्चित हो सके। इसलिए एनएचएलएस इस किफायती आवास मिशन का एक पैर है, जो लोगों को अपना घर खरीदने के लिए सशक्त बनाएगा। अमूमन, हमने देखा है कि कम आय होने पर भी यह ऋण कैसे संभव हो सके, इसके लिए गृह ऋण हेतु आवेदन करते समय निम्नलिखित कुछ बिंदुओं को ध्यान में अवश्य रखा जाना चाहिए।
 
प्रथम, जब आप बंधक वित्त पोषण प्रक्रिया के माध्यम से ऋण लेने जा रहे हैं, तो कोई भी अन्य ऋण न जोड़ें। इससे ऋण भुगतान में भी आपको सहूलियत होगी। दूसरा, यदि संभव हो सके तो अपनी मौजूदा देनदारियों को बिल्कुल कम करें, ताकि ऋण दाता के समक्ष कोई उधेड़बुन वाली नौबत नहीं आये। तीसरा, अगर आपको किसी भी चल रहे ऋण के ईएमआई का भुगतान करना है तो समय पर उसका भुगतान करना सुनिश्चित करें। क्योंकि जब आप समय पर अपने किस्तों का भुगतान करेंगे तो अप्रत्यक्ष रूप से आप अपने ही क्रेडिट स्कोर को बढ़ाएंगे। चतुर्थ, किसी भी परिस्थिति में अपना काम या पेशा  बदलने की नहीं सोचें। क्योंकि नौकरी के साथ चिपकने से ही आपकी पुनर्भुगतान क्षमता में बढ़ोत्तरी होगी और ऋणदाता के आत्मविश्वास को भी बढ़ावा मिलेगा। पांचवां, निचले भुगतान को अपने साथ तैयार रखें, क्योंकि इससे आपको चिकनी गृह ऋण प्रसंस्करण में काफी मदद मिलेगी।
 
बहरहाल, इस योजना के तहत प्रस्ताव अस्वीकरण के भी कुछ मानक तय किये गए हैं जो ऋण योग्यता ग्राहक क्रेडिट कंपनी द्वारा अपने क्रेडिट मानदंडों के अनुसार और मूल्यांकन के तदनुरूप ही होगी जो आपको भी पसंद आ सकता हैं। फिर भी सवाल है कि क्या आप गृह ऋण बंधक के छह प्रकार जानते हैं? यदि नहीं तो अविलम्ब जान लीजिए, क्योंकि इससे आपको भी ऋण मिलने में सहूलियत होगी। साथ ही साथ, यह भी समझने की कोशिश कीजिए कि पीएमए सब्सिडी का लाभ उठाने के लिए क्या-क्या आवश्यकताएं हैं? यही नहीं, यह भी जानने की कोशिश कीजिये कि कम सीआईबीआईएल स्कोर के साथ व्यक्तिगत ऋण कैसे प्राप्त किया जा सकता है? क्योंकि ऐसा करके आप अपनी गृह क्रय सम्बन्धी अन्य जरूरतों को भी आसानी से पूरा कर पाएंगे।
 
 
कमलेश पांडे

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि लिव-इन पार्टनर के बीच सहमति से बना शारीरिक संबंध बलात्कार नहीं होता, अगर व्यक्ति अपने नियंत्रण के बाहर की परिस्थितियों के कारण महिला से शादी नहीं कर पाता है। शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र की एक नर्स द्वारा एक डॉक्टर के खिलाफ दर्ज कराई गई प्राथमिकी को खारिज करते हुए यह बात कही। दोनों ‘कुछ समय तक’ लिव-इन पार्टनर थे।

न्यायमूर्ति ए. के. सिकरी और न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर की पीठ ने हाल में दिए गए एक फैसले में कहा, ‘बलात्कार और सहमति से बनाए गए यौन संबंध के बीच स्पष्ट अंतर है। इस तरह के मामलों को अदालत को पूरी सतर्कता से परखना चाहिए कि क्या शिकायतकर्ता वास्तव में पीड़िता से शादी करना चाहता था या उसकी गलत मंशा थी और अपनी यौन इच्छा को पूरा करने के लिए उसने झूठा वादा किया था क्योंकि गलत मंशा या झूठा वादा करना ठगी या धोखा करना होता है।’

पीठ ने यह भी कहा, ‘अगर आरोपी ने पीड़िता के साथ यौन इच्छा की पूर्ति के एकमात्र उद्देश्य से वादा नहीं किया है तो इस तरह का काम बलात्कार नहीं माना जाएगा।’ प्राथमिकी के मुताबिक विधवा महिला चिकित्सक के प्यार में पड़ गई थी और वे साथ-साथ रहने लगे थे। पीठ ने कहा, ‘इस तरह का मामला हो सकता है कि पीड़िता ने प्यार और आरोपी के प्रति लगाव के कारण यौन संबंध बनाए होंगे न कि आरोपी द्वारा पैदा किए गलतफहमी के आधार पर या आरोपी ने चाहते हुए भी ऐसी परिस्थितियों के तहत उससे शादी नहीं की होगी जिस पर उसका नियंत्रण नहीं था। इस तरह के मामलों को अलग तरह से देखा जाना चाहिए।’

अदालत ने कहा कि अगर व्यक्ति की मंशा गलत थी या उसके छिपे इरादे थे तो यह स्पष्ट रूप से बलात्कार का मामला था। मामले के तथ्यों का जिक्र करते हुए अदालत ने कहा कि वे कुछ समय से साथ रह रहे थे और महिला को जब पता चला कि व्यक्ति ने किसी और से शादी कर ली है तो उसने शिकायत दर्ज करा दी। पीठ ने कहा, ‘हमारा मानना है कि अगर शिकायत में लगाए गए आरोपों को उसी रूप में देखें तो आरोपी (डॉक्टर) के खिलाफ मामला नहीं बनता है।’ व्यक्ति ने बंबई उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था जिसने उसके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी थी।

दिल्ली एक ऐसा शहर है जहां पर हर धर्म और संस्कृति के लोग बसे हैं पूर्व से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक। अलग-अलग संस्कृति होने के कारण लोगों के खान-पीने में भी काफी विभिन्नता देखने को मिलती है। कई बार ऐसा होता है कि अलग कल्चर होने के कारण लोगों को अपने टेस्ट का खाना नहीं मिलता और ऐसे में जब वो अपने कल्चर के रेस्टोरेंट या खाने पीने के अड्डे देखते हैं तो काफी प्रभावित होते हैं और वहां खाना खाने के लिए जाते हैं। कई बार खाना अच्छा भी होता है तो कई बार काफी बुरा भी.. बुरा होने के बाद हम रेस्टोरेंट की बुराई करते हुए बाहर आ जाते हैं। आपके टेस्ट की हमें परवाह है इसलिए हम आज आपको कुछ ऐसे रेस्टोरेंट के नाम बताएंगे जहां पर जाकर आपको आपके संस्कृति से जुड़े भोजन का टेस्ट जरूर मिलेगा। तो आइये जानते हैं दिल्ली के कुछ बेस्ट रेस्टोरेंट के बारे में- 
 
वैसे तो सागर रत्ना दिल्ली में कई जगह है लेकिन दिल्ली के डिफेंस कॉलोनी मार्केट में स्थित सागर रत्ना के साउथ इंडियन स्वाद का जवाब नहीं है। यहां पर प्रामाणिक दक्षिण भारतीय भोजन मिलता है। मैसूर मसाला डोसा, दही वड़ा, मक्खन मसाला डोसा, रवा इडली, वेज उत्तपम यहां की विशेषता है। 700 रूपये तक में यहां पर दो लोग भरपेट खाना खा सकते हैं। 
 
समर हाउस कैफे दिल्ली (summer house cafe delhi)
अगर आप पार्टी करने के शौकीन हैं तो हौज़ खास का समर हाउस कैफे आपको काफी पसंद आएगा। रूफटॉप पर बने इस रेस्टोरेंट में रोज म्यूजिकल इवेंट्स होते हैं। खाने में यहां कीमा पाव, पेनी अर्बीआटा, वेफल्स काफी मशहूर हैं। इसके अलावा अगर आप इटेलियन खाने का शौक करते हैं तो यहां की इटेलियन डिश आपको अपना दीवाना बना लेगी। यहां पर 2000 रूपये में दो लोग आराम से काफी कुछ आर्डर कर सकते हैं। 
 
नैवेद्यम (Naivedyam)
नैवेद्यम में जाकर आप दक्षिणी भारत के लिए अपने प्यार को महसूस कर सकते हैं। यहां का शांत माहौल है और स्टाफ भी काफी विनम्रता से बात करता है। 
 
 
मुरथल 

 

दिल्ली के पास एक बेहद ही मनोरंजक जगह है मुरथल। मुरथल में एक पंजाबी-थीम वाले गाँव के स्टाइल में रेस्टोरेंट है जो हवेली नाम से मशहूर है। यह जगह अच्छे पंजाबी भोजन के लिए जानी जाती है। यहां परांठे, दाल मखनी, पुरी चुहल, लस्सी और जलेबी के साथ एक स्वादिष्ट शुद्ध शाकाहारी भोजन का आनंद ले सकते हैं।
 
महाराष्ट्र सदन इंडिया गेट (Maharashtra Sadan)
मराठी भोजन के बारे में सोचते ही सबसे पहले कांदा पोहा, वड़ा पाव और पाव भाजी पर ध्यान अटक जाता है। हालांकि व्यंजनों की विविधता के मामले में इस राज्य का कोई जवाब नहीं है। आसान शब्दों में कहें तो मराठी खाने में आपको स्वाद से भरपूर पारंपरिक व्यंजनों का लुत्फ मिलता है। महाराष्ट्र सदन में आप स्वादिष्ट मराठी भोजन का स्वाद चख सकते हैं।
 
-सुषमा तिवारी

पूर्व केन्द्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी तथा वरिष्ठ अधिवक्त प्रशांत भूषण ने राफेल मुद्दे पर 14 दिसंबर को आए उच्चतम न्यायालय के फैसले की समीक्षा के लिए बुधवार को सर्वोच्च अदालत में पुनर्विचार याचिका दायर की। न्यायालय ने अपने 14 दिसंबर के फैसले में फ्रांस से 36 राफेल विमानों की खरीदी प्रक्रिया में गड़बड़ी का आरोप लगाने वाली सभी जनहित याचिकाओं को खारिज कर दिया था। पुनर्विचार याचिका में तीनों ने आरोप लगाया है कि फैसला ‘‘सरकार की ओर से बिना हस्ताक्षर के सीलबंद लिफाफे में सौंपे गए स्पष्ट रूप से गलत दावों पर आधारित था।’’ उन्होंने याचिका पर सुनवाई खुली अदालत में करने का अनुरोध भी किया है।

 
कांग्रेस का कहना है कि राफेल विमान सौदा फ्रांस के साथ किया गया। इस विमान को अधिक कीमत पर खरीदा गया। यह विमान संप्रग सरकार की तुलना में तीन गुना अधिक कीमत पर खरीदा गया लेकिन सरकार विमान की कीमत क्यों नहीं बता रही है। कांग्रेस का सवाल है कि इस संबंध में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी को अनुबंध क्यों नहीं दिया गया। कांग्रेस का आरोप है कि इसमें 30 हजार करोड़ रूपये का कथित घोटाला हुआ है। इस मामले की संयुक्त संसदीय समिति से जांच करायी जाए।

तिरुवनंतपुरम. केरल के सबरीमाला मंदिर में बुधवार तड़के 50 साल से कम उम्र की दो महिलाओं ने प्रवेश किया। इसके बाद मंदिर का शुद्धिकरण किया गया। मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने महिला श्रद्धालुओं को पूरी सुरक्षा देने के निर्देश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट से सबरीमाला मंदिर में प्रवेश की इजाजत मिलने के लगभग तीन महीने बाद पहली बार महिलाओं ने सबरीमाला में भगवान अयप्पा के दर्शन किए। मंदिर के 800 साल के इतिहास में पहली बार दो महिलाओं ने यहां प्रवेश कर भगवान अयप्पा की पूजा की है।
न्यूज एजेंसी के मुताबिक, मंदिर में प्रवेश करने वाली महिलाओं के नाम बिंदु और कनकदुर्गा हैं। उनकी उम्र 40 से 50 साल के बीच बताई जा रही है। दोनों महिलाएं पुलिसकर्मियों के साथ मंदिर में घुसीं और सुबह 3:45 बजे पूजा-अर्चना की। इन दोनों महिलाओं ने पिछले महीने भी मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश की थी।
दौड़ती हुई मंदिर के अंदर पहुंचीं
दोनों महिलाओं के मंदिर में प्रवेश करने के सीसीटीवी फुटेज सामने आए हैं। वे दौड़ती हुए मंदिर के अंदर जाती नजर आ रही हैं। दोनों महिलाएं उत्तरी केरल की रहने वाली हैं। उनके परिवारों को एहतियातन सुरक्षित जगहों पर शिफ्ट कर दिया गया है। मुख्यमंत्री विजयन ने दोनों महिलाओं के मंदिर में प्रवेश करने की घटना की पुष्टि की। विजय ने कहा कि पहले ये महिलाएं ट्रैकिंग नहीं कर पाई थीं। इस बार वे कामयाब रहीं। बिंदु ने बाद में मीडिया को बताया कि हमने मंगलवार को ही पुलिस से संपर्क साधा था। इसके बाद हमें मदद का आश्वासन दिया गया। वहीं, कनकदुर्गा के भाई भरतन ने कहा कि उनकी बहन पिछले हफ्ते ही किसी काम का बहाना बताकर तिरुवनंतपुरम से निकली थी।
एक दिन पहले महिलाओं ने बनाई थी 620 किमी लंबी श्रृंखला
सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश का विरोध करने वालों के खिलाफ महिलाओं ने मंगलवार को 620 किमी लंबी श्रृंखला बनाई थी। यह श्रृंखला कासरगोड से तिरुवनंतपुरम तक बनाई गई। यह 14 जिलों से होकर गुजरी। साथ ही करीब 150 से अधिक सामाजिक संगठन भी शामिल हुए।
800 साल से चली आ रही प्रथा
28 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर में हर उम्र की महिला को प्रवेश देने की इजाजत दी थी। इस फैसले के खिलाफ केरल के राजपरिवार और मंदिर के मुख्य पुजारियों समेत कई हिंदू संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की थी। हालांकि, अदालत ने सुनवाई से इनकार कर दिया। इससे पहले यहां 10 से 50 साल उम्र की महिला के प्रवेश पर रोक थी। यह प्रथा 800 साल पुरानी है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पूरे राज्यभर में विरोध हुआ।
आदेश के बाद 3 बार खुला मंदिर
आदेश के बाद 16 नवंबर को तीसरी बार मंदिर खोला गया। मंदिर 62 दिनों की पूजा के लिए खुला, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी विरोध के चलते 1 जनवरी तक कोई महिला मंदिर में प्रवेश नहीं कर पाई थी।

मुंबई. अभिनेता, डायलॉग राइटर और स्क्रिप्ट राइटर कादर खान का सोमवार को 81 साल की उम्र में कनाडा में निधन हो गया। वे लंबे समय से बीमार थे और चार महीने से अस्पताल में भर्ती थे। बेटे सरफराज ने उनके निधन की पुष्टि की। कनाडा में ही उन्हें सुपुर्द-ए-खाक किया जाएगा।
अमिताभ बच्चन ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा, ‘"कादर खान प्रतिभा के धनी और फिल्मों के लिए समर्पित कलाकार थे। वे गजब के लेखक थे। मेरी ज्यादातर कामयाब फिल्में उन्हीं ने लिखीं। वे मेरे अजीज दोस्त रहे। वे गणितज्ञ भी थे।'' अमिताभ और कादर ने ‘दो और दो पांच’, ‘अदालत’, ‘मुकद्दर का सिकंदर’, ‘मिस्टर नटवरलाल’, ‘सुहाग’, ‘कुली’, ‘कालिया’, ‘शहंशाह’ और ‘हम’ समेत 21 फिल्मों में साथ बतौर अभिनेता या डायलॉग-स्क्रिप्ट राइटर काम किया था।
डिसऑर्डर से पीड़ित थे
कादर को प्रोग्रेसिव सुप्रान्यूक्लीयर पाल्सी डिसऑर्डर हो गया था। यह शरीर की गति, चलने के दौरान बनने वाले संतुलन, बोलने, निगलने, देखने, मनोदशा और व्यवहार के साथ सोच को प्रभावित करता है। यह डिसऑर्डर मस्तिष्क में नर्व सेल्स के नष्ट होने के कारण होता है। कादर खान पिछले कई साल से कनाडा में ही अपने बेटे-बहू सरफराज और शाइस्ता के साथ रह रहे थे। बीते कुछ वक्त से सांस लेने में तकलीफ के कारण उन्हें वेंटीलेटर पर रखा गया था। 2017 में उनके घुटने की सर्जरी हुई थी। तब से वे ज्यादा देर तक चलने में डरते थे, उन्हें लगता था कि वे गिर जाएंगे।
1973 से की थी फिल्मों में शुरुआत
22 अक्टूबर 1937 को कादर खान काबुल में एक भारतीय-कनाडाई परिवार में पैदा हुए थे। 1973 में उन्होंने यश चोपड़ा की फिल्म ‘दाग’ से करियर की शुरुआत की। 1970 और 80 के दशक में उन्होंने कई फिल्मों के लिए कहानियां लिखीं। स्क्रिप्ट राइटिंग शुरू करने से पहले वे मुंबई के एमएच साबू सिद्दीक इंजीनियरिंग कॉलेज में सिविल इंजीनियरिंग के लेक्चरर थे। परिवार में उनकी पत्नी अजरा और दो बेटे सरफराज और शहनवाज खान हैं।
अमिताभ, जया प्रदा और अमरीश पुरी के साथ फिल्म बनाना चाहते थे
एक इंटरव्यू के दौरान कादर खान ने बताया था, ‘"मैं अमिताभ बच्चन, जया प्रदा और अमरीश पुरी को लेकर फिल्म 'जाहिल' बनाना चाहता था। उसका डायरेक्शन भी मैं खुद ही करना चाहता था, लेकिन खुदा को शायद कुछ और ही मंजूर था। इसी बीच 'कुली' की शूटिंग के दौरान अमिताभ को चोट लग गई। वे महीनों अस्पताल में भर्ती रहे। अमिताभ के अस्पताल से वापस आने के बाद मैं दूसरी फिल्मों में व्यस्त हो गया। अमिताभ भी राजनीति में चले गए। उसके बाद मेरी और अमिताभ की यह फिल्म हमेशा के लिए ठंडे बस्ते में चली गई।’’
1983 में आई फिल्म ‘कुली’ कादर खान के करियर की सुपरहिट फिल्मों में शामिल है। मनमोहन देसाई के बैनर तले बनी इस फिल्म में अमिताभ बच्चन ने मुख्य भूमिका निभाई थी। यह फिल्म सुपरहिट रही थी।
शक्ति कपूर के साथ कादर खान की जोड़ी काफी पसंद की गई। दोनों ने करीब 100 फिल्मों में साथ काम किया। 1982 और 1993 में आई फिल्मों ‘मेरी आवाज सुनो‘ और ‘अंगार’ में बेस्ट डायलॉग के लिए कादर खान को फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला था। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री और सिनेमा में योगदान के लिए उन्हें साल 2013 में साहित्य शिरोमणि पुरस्कार भी मिला था।

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