ईश्वर दुबे
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Bhilai
17वीं लोकसभा के पहले सत्र के दौरान नवनिर्वाचित सांसदों को पद की शपथ दिलाई जा रही है। यह कार्यक्रम मंगलवार को भी जारी रहेगा। इस दौरान पीएम मोदी, राजनाथ सिंह समेत कई नेताओं ने पद और गोपनीयता की शपथ ली
इसी क्रम में जब स्मृति ईरानी शपथ लेने आईं तो सभी सांसदों ने देर तक मेज थपथपाकर उनका अभिवादन किया। स्मृति ने भी जवाब में सबको हाथ जोड़ धन्यवाद दिया। दरअसल, ईरानी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को अमेठी से हराकर लोकसभा पहुंची हैं।
इसके अलावा पश्चिम बंगाल से चुने गए भाजपा सांसद बाबुल सुप्रियो और देबश्री चौधरी को जब शपथ के लिए पुकारा गया तो भाजपा सदस्यों ने 'जयश्री राम' के नारे लगाए। गौरतलब है कि पिछले दिनों पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सामने कुछ भाजपा कार्यकर्ताओं ने 'जय श्रीराम' के नारे लगाए थे जिस पर उन्होंने नाराजगी जताई थी।
इससे पहले शपथ लेने के लिए जैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम पुकारा गया सभी सदस्यों ने मेजें थपथपाकर उनका स्वागत किया जबकि भाजपा के सदस्यों ने ''मोदी..मोदी'' और 'भारत माता की जय' के नारे लगाये। पीएम मोदी ने सदन के नेता होने के कारण सबसे पहले शपथ ली। उन्होंने अपनी शपथ हिंदी में ली।
प्रधानमंत्री मोदी के बाद कांग्रेस के सदस्य के. सुरेश, बीजद के भृतहरि महताब और भाजपा के ब्रजभूषण शरण सिंह ने शपथ ली। सुरेश और सिंह ने हिंदी तथा महताब में उड़िया में शपथ ली। कार्यवाहक अध्यक्ष वीरेन्द्र कुमार ने पीठासीन अध्यक्षों के जिस पैनल की घोषणा की उसमें ये तीनों सदस्य- के सुरेश, ब्रजभूषण शरण सिंह एवं बी महताब शामिल हैं।
इन तीनों सदस्यों के बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृह मंत्री अमित शाह, सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, रसायन एवं उर्वरक मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा, मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन और स्मृति ईरानी सहित मंत्रिपरिषद के सदस्यों ने भी शपथ ली।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल में साफ कर दिया है कि अब सरकारी योजनाएं परंपरागत तौर-तरीकों से आगे नहीं बढ़ेंगी। सार्वजनिक क्षेत्र में निजी प्रबंधन के फार्मूले लागू होंगे। इसके लिए अमेरिका, ब्रिटेन, संयुक्त अरब अमीरात और चीन जैसे देशों का विकास अनुभव लेकर आगे बढ़ा जाएगा। सरकारी योजनाओं में प्रोजेक्ट का टेंडर जारी होने से लेकर उसके पूरा होने तक, इन सभी प्रक्रियाओं में निजी कंपनियों के तरीके इस्तेमाल होंगे।
रेलवे, निर्माण, आईटी, सड़क परिवहन, पावर, कोल सेक्टर, हेल्थ, शहरी विकास, संचार, माइंस, सिविल एविएशन, डिफेंस और हैवी इंडस्ट्री आदि क्षेत्रों में रियल टाइम कम्युनिकेशन और रियल टाइम डाटा मैनेजमेंट जैसी बातों के पालन कर किसी भी काम को तय समय से पहले और निर्धारित राशि से कम खर्च में पूरा किया जाएगा। शनिवार को हुई नीति आयोग की पांचवीं बैठक में यह प्रोजेक्ट रिपोर्ट सभी राज्यों को सौंपी गई है।
इसमें पीएम मोदी की ओर से कहा गया है कि सरकारी योजनाओं के तय समय पर पूरा न होने के पीछे एक बड़ा कारण उसके प्रबंधन और क्रियान्वयन के तौर-तरीकों में बदलाव नहीं होना है। आज भी अधिकांश सरकारी महकमे पुराने तरीकों पर ही अपना कामकाज करते हैं। चाहे वह निर्माण का क्षेत्र को या आईटी प्रोजेक्ट, निर्धारित समय पर पूरा नहीं हो पाते। रिपोर्ट के मुताबिक, इससे किसी प्रोजेक्ट का खर्च बहुत अधिक बढ़ जाता है।
मौजूदा समय में इस तरह पूरे होते हैं प्रोजेक्ट, खूब होती है लेट-लतीफी
देश में निर्माण क्षेत्र से जुड़े प्रोजेक्ट पूरा होने में सबसे ज्यादा समय लगता है। जैसे, सबसे पहले एक रिपोर्ट तैयार होती है, जिसमें तय खर्च (अधिकतम सीमा) में काम पूरा होने की बात कही जाती है। इसके बाद डीपीआर बनती है। इन सब कार्यों में इतना ज़्यादा फाइल वर्क होता है कि प्रोजेक्ट शुरू होने में ही दो-तीन साल का विलंब हो जाता है। आर्किटेक्ट नियुक्त होने के बाद जो बिड डॉक्युमेंट बनता है, उस पर इंजीनियर अपनी राय देता है। वह कई बार रिपोर्ट को ही गलत ठहरा देता है।
जब ठेकेदार को फाइनल रिपोर्ट मिलती है तो काम शुरू होता है। बीच में कभी जांच तो कभी पेमेंट का इश्यू आ जाता है, इससे काम तय समय पर पूरा नहीं हो पाता। इसमें पावर इश्यू, पब्लिक प्रॉपर्टी है या प्राइवेट, जैसे मामले बाधा बनकर सामने आ जाते हैं। ऐसे मामलों में कई बार कोर्ट स्टे ले लिया जाता है। ये सब बातें न केवल प्रोजेक्ट पूरा होने की तिथि को आगे बढ़ा देती हैं, बल्कि धन भी कई गुना ज्यादा खर्च करना पड़ता है।
मिनिस्ट्री ऑफ स्टेटिस्टिक्स एंड प्रोग्राम इम्प्लमेंटेशन (एमओएसपीआई) की दिसंबर 2018 में जारी रिपोर्ट
-अप्रैल 2014 में 727 में से 282 सरकारी प्रोजेक्ट देरी से पूरे हुए थे।
-दिसंबर 2018 के दौरान 1424 में से 384 प्रोजेक्ट पूरे होने में विलंब हुआ।
-इस विलंब की अहम वजह प्रोजेक्ट प्रबंधन की कमियां रहीं। पारम्परिक तौर-तरीकों के चलते ये प्रोजेक्ट देरी से पूरे हुए। नतीजा, सरकार को भारी आर्थिक चपत लगी।
-रोड ट्रांसपोर्ट एंड हाइवे के 605 प्रोजेक्ट में से 112 देरी से पूरे हुए।
-पावर क्षेत्र के 95 में से 56 प्रोजेक्ट पूरे होने में विलंब हुआ।
-शहरी विकास के 58 में से 23 प्रोजेक्ट देरी से पूरे हुए।
-रेलवे के 367 में से 94 प्रोजेक्ट पूरे होने में देरी हुई।
सरकारी विभागों के काम करने का तौर तरीका अब बदल जाएगा
इसके लिए मोदी सरकार ने एक विस्तृत योजना बनाई है। प्रोजेक्ट मैनेजमेंट को सीनियर सेकेण्डरी स्तर पर पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाएगा। स्नातक स्तर पर इसका पूर्ण कोर्स भी शुरू होगा। डिप्लोमा प्रोग्राम भी प्रारम्भ किया जा रहा है। पीजी कोर्स के लिए यूजीसी और एआईसीटीई से राय ली गई है। इसमें अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के आधार पर प्रोजेक्ट मैनेजमेंट के कोर्स रहेंगे।
फिलहाल सभी सरकारी और प्राइवेट विभागों में प्रोजेक्ट मैनेजमेंट योजना लागू की जा रही है। इसके लिए रेफ्रेशेर कोर्स शुरू होंगे। इसके दायरे में सभी सरकारी विभाग, निगम और बोर्ड आएंगे। ऐसी व्यवस्था की जा रही है कि सभी विभागों को उनके परिसर में ही प्रोजेक्ट मैनेजमेंट का प्रशिक्षण दे दिया जाए। अगर किसी प्रोजेक्ट को जल्द शुरू करना है तो उसके लिए अलग से मापदंड तैयार होंगे। इस कार्य में क्वालिटी कंट्रोल ऑफ इंडिया की मदद ली जाएगी। नेशनल प्रोजेक्ट-प्रोजेक्ट मैनेजमेंट पॉलिसी फ़्रेमवर्क के तहत ये सभी योजनायें पूरी होंगी।
नई दिल्ली। क्या करप्शन खत्म नहीं हो सकता। मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं, हो सकता है। बस थोड़ा सा बदलाव लाना होगा। अपने पहले कार्यकाल के दौरान पीएम मोदी ने भ्रष्टाचार को लेकर अपने रुख को कुछ इस तरह जाहिर कर संकेत दे दिया था कि केंद्र में काबिज मोदी सरकार इसे लेकर जीरो टालरेंस की नीति पर हैं। दूसरे कार्यकाल के शुरूआती दौर में ही इससे एक कदम आगे बढ़ते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक करते हुए आयकर विभाग के 12 वरिष्ठ अधिकारियों की छुट्टी कर दी है। खबरों के अनुसार जिन अधिकारियों पर कार्यवाई हुई है इनमें से कुछ अफसरों पर रिश्वत, जबरन वसूली तो एक पर महिला अफसरों का यौन शोषण करने के गंभीर आरोप लगे थे।
अंग्रेजी अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक आईआरएस अशोक अग्रवाल पर एक बिजनेस मैन से धनउगाही करने के आरोप लगने के बाद भ्रष्टाचार के मामले में उन्हें 1999 से 2014 के बीच निलंबित कर दिया था। इसके अलावा 12 करोड़ रुपये की अवैध संपत्ति अर्जित करने के मामले में भी सीबीआई ने उनके खिलाफ कार्रवाई की थी। इसके अलावा एसके श्रीवास्तव पर दो महिला आईआरएस अफसरों ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। वहीं, होमी राजवंश पर गलत तरीके से चल और अचल संपत्ति अर्जित करने के आरोप लगे थे। अजॉय कुमार सिंह के खिलाफ भी सीबीआई के एंटी करप्शन ब्यूरो ने केस दर्ज किया था। वह अक्टूबर, 2009 में सस्पेंड भी हुए थे। इसी तरह भ्रष्टाचार, आय से अधिक संपत्ति और धनउगाही के आरोप में आलोक कुमार मित्रा, चांदर सेन भारती भी आए। भारती पर आरोप रहा कि उन्होंने ज्ञात साधनों से ज्यादा की संपत्ति अर्जित की। उन पर हवाला से भी पैसे ट्रांसफर करने के आरोप रहे। सूत्रों के मुताबिक, कमिश्नर रैंक के एक अन्य अफसर रविंदर को सीबीआई ने 50 लाख रुपये के साथ गिरफ्तार किया था।
इन अफसरों को कराया गया जबरन रिटायर
अशोक अग्रवाल - ज्वाइंट कमिश्नर
आलोक कुमार मित्रा - कमिश्नर
अरुलप्पा बी - कमिश्नर
बीवी राजेंद्र - कमिश्नर
बिहार के मुख्यमंत्री और जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार अपनी सियासी चाल के लिए एक अलग पहचान रखते हैं। उनकी हर चाल के निशाने पर उनके सियासी दुश्मन तो रहते ही हैं पर हैरानी की बात यह भी है कि वह अपने दोस्तों को भी लपेटे में ले लेते हैं। वह नीतीश कुमार ही थे जिनकी वजह से बिहार में जनता दल का बिखराव हुआ, वह नीतीश कुमार ही थे जिन्होंने सहयोगी होने के बाद भी भाजपा नेता नरेंद्र मोदी को बिहार में नहीं आने दिया था, वह नीतीश ही थे जिन्होंने कभी भाजपा तो कभी राजद को गठबंधन से धक्का दे दिया। किसी को निपटाने की सियासत नीतीश कुमार बड़ी ही आसानी लेकिन चतुराई से करते हैं और अगर यकीन नहीं होता तो शरद यादव या फिर उपेंद्र कुशवाहा से पूछ कर देखिये। 2005 में बिहार की सत्ता में काबिज होते ही नीतीश ने अपनी छवि सुशासन बाबू की बनाई पर यह भी सच है कि वह बार-बार भाजपा को यह अहसास कराते रहते थे कि आप बिहार में हमारी वजह से हो ना कि मैं आपकी वजह से।
गिरिराज सिंह, खबरों की दुनिया में यह नाम हमेशा चर्चाओं में रहता है। अगर खबरें ना मिल रही हों तो यह खबर दे जाते हैं वह भी आपके दरवाजे तक। यही कुछ इनके बारे में नीतीश कुमार भी कह रहे हैं। लोकसभा चुनाव हुए, भाजपा के साथ-साथ गिरिराज सिंह भी जीत गए। फिर इसके बाद नरेंद्र मोदी की सरकार बनी और गिरिराज सिंह मंत्री बन गए। यहां तक तो गिरिराज सिंह के लिए सब कुछ सही चल रहा था पर अचानक मंगलवार को इनके नाम की चर्चा होने लगती है। हमने भी इस चर्चा को जानने की कोशिश की तो पता चला कि उन्होंने कोई ट्वीटर बम फोड़ा है। पढ़ने पर पता चला कि बहुत ही सरल भाषा में बड़ी कठोर बात लिखी गई है। एक बार तो पढ़ने पर यह लगेगा कि सभी त्योहारों को एक ही तरह से मनाने की बात कही गई है पर जैसे इस ट्वीट के साथ लगी तस्वीरें को आप देखेंगे तो इसके असली मतलब तक पहुंच जाएंगे।
चलिए, पहले यह बताते हैं कि आखिर उस ट्वीट में था क्या? "कितनी खूबसूरत तस्वीर होती जब इतनी ही चाहत से नवरात्रि पे फलाहार का आयोजन करते और सुंदर सुदंर फ़ोटो आते??...अपने कर्म धर्म मे हम पिछड़ क्यों जाते और दिखावा में आगे रहते हैं???" यह वही शब्द हैं जो गिरिराज ने लिखे है। मतलब निकालें तो साफ पता चल रहा है कि गिरिराज ने कुछ लोगों को दो धर्मों के त्योहार को समानता के साथ मनाने की हिदायत दी है। गिरिराज अगर धर्म की बात करे तो जाहिर सी बात है उसे कई तरह तरह से देखा जाएगा और उनका इतिहास भी ऐसा करने के लिए मजबूर करता है। बात-बात पर किसी खास धर्म के लोगों को पाकिस्तान भेजने वाले गिरिराज इस बार उन लोगों पर कम और अपने समकक्ष नेताओं पर ज्यादा निशाना साथ रहे थे। इन नेताओं में बिहार के सीएम नीतीश कुमार भी थे। नीतीश से गिरिराज की तकरार बहुत पुरानी है। बिहार में नीतीश पर सबसे ज्यादा हमलावर भाजपा नेताओं की बात करे तो उसमें गिरिराज का नाम सबसे ऊपर आता है।
गिरिराज आज से ही नहीं, मोदी के उदय और नीतीश के भाजपा के साथ तकरार की शुरूआत से ही उन पर हमलावर रहे हैं। उस वक्त भाजपा ने भी गिरिराज को इस काम के लिए आगे कर रखा था। नीतीश के दोबारा NDA में वापसी के बाद भी गिरिराज उन पर हमलावर रहे। गिरिराज और नीतीश का प्रेम उस दिन देखने को मिला जब काफी मान-मनौवल के बाद वह बेगुसराय से चुनाव लड़ने बिहार पहुंचे। दोनों ने एक अच्छी फोटो भी खिचवाई पर उनके चेहरे की मुस्कान बनावटी लग रही थी। खैर, गिरिराज के इस ट्वीट पर बवाल मचना लाजमी था और हुआ भी यही। नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यू हमलावर हो गई। खुद नीतीश ने भी इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वह ऐसा इसलिए करते रहते हैं ताकि खबरों में बने रह सकें। गिरिराज ने ऐसा पहली बार नहीं किया था पर उन्हें उनके ट्वीट के लिए पहली बार अपने पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से फटकार मिली। सवाल यह उठता है कि यह फटकार क्यों? गिरिराज ने तो वही लिखा था जो उनकी पार्टी को सूट करता है। पार्टी पहले उनके बयानों को निजी मानकर किनारा कर लेती थी।
अब हालात बदल गए है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास' के नारे में फिलहाल गिरिराज का यह ट्वीट फिट नहीं बैठ रहा है। दूसरी बात यह है कि बिहार में NDA अभी नाजुक दौर से गुजर रहा है। नीतीश पहले ही मोदी मंत्रिमंडल में शामिल ना होकर भाजपा को अपन कड़े तेवर दिखा चुके हैं। ऐसे में गिरिराज का यह ट्वीट गठबंधन के लिए घातक साबित हो सकता है। बिहार में 2020 में विधानसभा चुनाव होने है और भाजपा को नीतीश की सबसे ज्यादा जरूरत है। यही कारण है कि बिहार भाजपा में नीतीश के सबसे करीबी और उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने भी गिरिराज पर तंज कसा है। उन्होंने कहा कि यह वही लोग हैं जो ना तो होली का भोज देते हैं न ही इफ्तार की पार्टी। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि गिरिराज कितने दिनों तक चुप रह पाते है और उनकी पार्टी उन्हें कितने दिनों तक शांत रख पाती है।
नई दिल्ली। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल को नरेंद्र मोदी सरकार पार्ट 2 में कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया है। डोभाल को यह यह दर्जा राष्ट्र सुरक्षा नीतियों में बेहतर योगदान के लिए दिया गया है। इसके अलावा अजित डोभाल अगले पांच साल तक एनएसए के पद पर बने रहेंगे।
अजीत डोभाल नरेंद्र मोदी के करीबी हैं और काफी भरोसेमंद भी। अजीत डोभाल भारत के सर्वश्रेष्ठ स्पाई में से एक रहे हैं। खुफिया एजेंसी रॉ के अंडर कवर एजेंट के तौर पर डोभाल 6 साल तक पाकिस्तान के लाहौर में एक पाकिस्तानी मुस्लिम बन कर रहे थे। इसके अलावा साल 2005 में एक तेज तर्रार खुफिया अफसर के रूप में स्थापित अजीत डोभाल इंटेलिजेंस ब्यूरो के डायरेक्टर पद से रिटायर हो गए। साल 1989 में अजीत डोभाल ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से चरमपंथियों को निकालने के लिए 'आपरेशन ब्लैक थंडर' का नेतृत्व किया था।
चंद्राणी मुर्मू की उम्र 25 साल 11 महीने, 16 जुलाई को उनका 26वां जन्मदिन
चंद्राणी ने क्योंझर सीट पर भाजपा प्रत्याशी अनंत नायक को 66 हजार वोट से हराया
16 लोकसभा में दुष्यंत चौटाला 26 की उम्र में देश के सबसे युवा सांसद बने थे
नई दिल्ली. ओडिशा की इंजीनियरिंग ग्रेजुएट चंद्राणी मुर्मू (25 साल 11 महीने) 17वीं लोकसभा की सबसे युवा सांसद बनीं। उन्होंने राज्य की आदिवासी बाहुल्य क्योंझर सीट से बीजद के टिकट पर चुनाव लड़ा और दो बार के भाजपा सांसद अनंत नायक के खिलाफ 66,203 वोट से जीत हासिल की। चंद्राणी लोकसभा में अब तक की सबसे युवा महिला सांसद भी होंगी। 16 जुलाई को उनका 26वां जन्मदिन है। उम्मीद है कि इससे पहले वे शपथ ले लेंगी।
चंद्राणी 2017 में भुवनेश्वर के कॉलेज से बीटेक करने के बाद सरकारी नौकरी की तैयारी कर रही थीं। मार्च में चाचा हरमोहन सोरेन ने उनसे चुनाव लड़ने के बारे में पूछा था, तब चंद्राणी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। नौकरी से रिटायर होकर सामाजिक कार्यों में जुटे हरमोहन को लगता था कि भाजपा उम्मीदवार के खिलाफ चंद्राणी योग्य उम्मीदवार हो सकती हैं। इसके लिए उन्होंने बीजद नेताओं से संपर्क किया। 1 अप्रैल को मुख्यमंत्री कार्यालय से मैसेज मिला कि चंद्राणी का टिकट फाइनल हो गया है।
युवाओं के लिए रोजगार चंद्राणी की प्राथमिकता
जीत के बाद चंद्राणी ने कहा था कि वह क्षेत्र के विकास और खासतौर पर युवाओं के रोजगार, महिलाओं और आदिवासियों के मुद्दों को लेकर काम करेंगी। जनता से बड़े-बड़े वादे करने से इतर जमीनी स्तर पर योजनाओं के नतीजों पर ध्यान देंगी। खनिज संपदा के भरपूर होने के बाद भी क्योंझर में चारों और बेरोजगारी फैली हुई है।
अब तक दुष्यंत के नाम था यह रिकॉर्ड
इससे पहले दुष्यंत चौटाला सबसे युवा सांसद चुने गए थे। पिछले लोकसभा चुनाव में 26 की उम्र में उन्होंने हरियाणा की हिसार सीट पर कुलदीप बिश्नोई को 31 हजार वोट से हराया था। इसके बाद उनका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज हुआ था।
तेजस्वी सूर्या भाजपा के सबसे युवा सांसद
नई संसद में पिछली बार से ज्यादा युवा और महिलाएं पहुंची हैं। पहली बार 76 (14.23%) सांसद चुनी गईं। 2014 में इनकी संख्या 61 थी। इसके अलावा 21 से 40 साल के बीच के 59 सांसद हैं। बेंगलुरु साउथ से जीते तेजस्वी सूर्या (28 साल) भाजपा के सबसे युवा सांसद हैं। सूर्या ने कांग्रेस के बीके हरिप्रसाद को तीन लाख से ज्यादा वोट से हराया। दूसरी ओर, इस बार की संसद पिछली बार से ज्यादा पढ़ी-लिखी है। 225 सांसद ग्रेजुएट हैं, सिर्फ 7 जनप्रतिनिधि पांचवीं से कम पढ़े लिखे हैं।
कुत्ते ने जमीन से मिट्टी हटाई तो नवजात का पैर नजर आया, इसके बाद बच्चे को बाहर निकाल लिया गया
बच्चा स्वस्थ, मां गिरफ्तार, उस पर केस चलाने की तैयारी
बैंकॉक. थाईलैंड में एक नवजात की जान बचाने वाले कुत्ते को हीरो करार दिया जा रहा है। बच्चे को एक खेत में दफनाया गया था। मामले की जानकारी होने पर 15 साल की लड़की को अपने जिंदा बच्चे को दफनाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया।
उत्तर-पूर्व थाईलैंड के कोराट में जब 41 साल के उस्सा निसिका खेत पहुंचे तो उनका कुत्ता पिंगपॉन्ग कुछ दूर जाकर खेत के किनारे मिट्टी हटाने लगा। जब वे उस जगह पहुंचे तो मिट्टी के बाहर शिशु का पैर निकल आया। उस्सा ने बच्चे को मिट्टी से निकाला तो वह जिंदा और स्वस्थ लग रहा था। वे बच्चे को सीधे अस्पताल ले गए। उसे किसी तरह की कोई चोट नहीं आई थी। इसके बाद पुलिस को जानकारी दी गई।
सबका हीरो बन गया पिंगपॉन्ग
उस्सा ने बताया- पिंग का जन्म हुआ तब से ही वह मेरे साथ है। वह हमेशा ही अपने काम के प्रति वफादार रहा है। उसके तीन पैर ही काम करते हैं, क्योंकि कार हादसे में उसका एक पिछला पैर टूट गया था। इसके बाद भी वह मेरी पूरी मदद करता है। उसके साथ होने पर मैं अपनी गायों को ठीक से पाल रहा हूं। अब जब उसने बच्चे की जान बचाई है, तो सभी उसके काम को लेकर चकित हैं। वह सबका हीरो बन गया है।
‘डर के चलते बच्चे को दफनाया’
शिकायत मिलने के बाद पुलिस ने शुरुआत पूछताछ स्थानीय लोगों से की, लेकिन कोई जानकारी हाथ नहीं लगी। इस दौरान एक दुकानदार ने बताया कि उसके पास एक किशोरी आई थी, जिसमें बहुत सारी सैनिटरी टॉवेल खरीदी हैं। इसके बाद पुलिस ने गुरुवार को किशोरी को गिरफ्तार कर लिया। किशोरी ने जन्म के कुछ देर बाद ही बच्चे को दफना दिया था। पुलिस को किशोरी ने बताया कि उसे अपने माता-पिता का डर था, इसलिए बच्चे को दफना दिया।
आरोपी किशोरी पर केस चल सकता है
मामले में गिरफ्तारी होने पर किशोरी के माता-पिता ने बच्चे की देखभाल करने की पेशकश की। हालांकि, अधिकारियों और बच्चे के परिजन के बीच सहमति नहीं बन पाई। अधिकारियों ने पुलिस और सरकारी कल्याण विभाग के कर्मचारियों को सुरक्षा की जिम्मेदारी दी है। गवर्नर ने कहा, पुलिस किशोरी पर मुकदमा चलाने की तैयारी कर रही है, लेकिन हमें बच्चे की देखभाल के बारे में भी सोचना है।
यंगून. म्यांमार की जेल में करीब डेढ़ साल से बंद रॉयटर्स समाचार एजेंसी के दो रिपोर्टर को रिहा कर दिया गया है। दोनों को सरकारी गोपनीयता कानून तोड़ने का दोषी पाया गया था। कोर्ट ने उन्हें सात साल की सजा सुनाई थी। बताया जा रहा है कि 17 अप्रैल से शुरू हो रहे म्यांमार के नववर्ष से पहले राष्ट्रपति ने उन्हें माफी दे दी।
न्यूज एजेंसी ने चश्मदीदों के हवाले से बताया कि मंगलवार को वा लोन (33) और क्याव सो (29) को यंगून की जेल से बाहर आते देखा गया। उन्हें सितंबर 2017 में सजा सुनाई गई थी। वे 12 दिसंबर 2017 से जेल में थे।
नववर्ष से पहले राष्ट्रपति कैदियों को माफी देते हैं
म्यांमार के राष्ट्रपति विन मिंट ने अप्रैल में जानकारी दी थी कि बौद्ध नव वर्ष त्यौहार तिंगयान के दौरान मानवीय आधार पर 16 विदेशी कैदियों को माफी दिए जाने की संभावना है। हालांकि, इनमें रॉयटर्स के दोनों पत्रकारों का नाम नहीं था।
रोहिंग्या संकट पर रिपोर्टिंग कर रहे थे
दोनों रिपोर्टर म्यांमार में रोहिंग्या संकट से जुड़ी खबरों पर काम कर रहे थे। सितंबर 2017 में गिरफ्तारी के पहले दोनों ने रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुस्लिमों के खिलाफ सेना के अत्याचार के खिलाफ रिपोर्टिंग की थी। दोनों को उस समय कानून तोड़ने का आरोपी माना गया था जब उनके हाथ कुछ गोपनीय दस्तावेज हाथ लगे थे।
कोलंबो. श्रीलंका के नेगोंबो में स्थानीय सिंहला समुदाय और मुस्लिमों के बीच भिड़ंत हो गई। पुलिस ने सोमवार को इस मामले में दो लोगों को गिरफ्तार किया है। श्रीलंका के सैन्य प्रवक्ता ब्रिगेडियर सुमित अटापट्टू ने बताया कि स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पहले कर्फ्यू लगाया गया था। हालांकि, सुबह ही इसे हटा लिया गया। अफवाहों को रोकने के लिए शहर में सोशल मीडिया साइट्स बैन कर दी गई हैं।
नेगोंबो की चर्च में हुआ था ब्लास्ट
श्रीलंका में 21 अप्रैल को हुए सीरियल ब्लास्ट में आतंकियों ने नेगोंबो के एक चर्च को निशाना बनाया था। हालांकि, धमाकों के बाद दोनों समुदाय में टकराव का यह पहला मामला है। बताया गया है कि अधिकारी शहर में रविवार को स्कूलों को दोबारा खोलने की तैयारी कर रहे थे। इसी बीच सिंहला और मुस्लिमों के बीच टकराव हो गया। उपद्रवियों ने मोटरसाइकिलों और टैक्सियों में तोड़फोड़ की। फिलहाल सरकार ने इलाके में स्पेशल टास्क फोर्स कमांडो तैनात किए हैं। पुलिस इस मामले की जांच में जुटी है।
इमरजेंसी में सुरक्षाबलों को कार्रवाई की पूरी छूट
श्रीलंका सरकार ने सीरियल धमाकों के बाद देश में इमरजेंसी लगा दी थी। करीब 10 हजार सैनिक आतंकी ठिकानों पर छापेमारी में जुटे हैं। अब तक 100 से ज्यादा लोगों को हिरासत में लिया जा चुका है। इसमें पाकिस्तानी नागरिकों का एक समूह भी शामिल है। सुरक्षाबलों और पुलिस को संदिग्धों पर कार्रवाई करने या गिरफ्तार करने की पूरी ताकत दी गई है।
पिछले साल भी हुई थी सामुदायिक हिंसा
पिछले साल भी कैंडी शहर में बौद्ध सिंहला और मुस्लिमों के बीच संघर्ष हुआ था। बौद्ध समुदाय का आरोप था कि मुस्लिम संस्थाएं और इनसे जुड़े लोग जबरन धर्म परिवर्तन करा रहे हैं। दोनों समुदाय के बीच हिंसक भिड़ंत हुई थीं। बाद में सरकार को कर्फ्यू का ऐलान करना पड़ा था।
मुंबई। शिवसेना ने शनिवार को कहा कि राम जन्मभूमि एक भावनात्मक मुद्दा है और इसे मध्यस्थता के जरिये हल नहीं किया जा सकता। पार्टी ने केंद्र से इस मुद्दे पर अध्यादेश लाने और राम मंदिर का निर्माण शुरू करने को कहा है। शिवसेना ने पूछा कि जब राजनेता, शासक और सर्वोच्च न्यायालय अब तक इस मुद्दे को हल नहीं कर सके तो फिर ये तीन मध्यस्थ क्या करेंगे। मध्यस्थता का एक और मौका देते हुए उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एफ एम आई कलीफुल्ला की अध्यक्षता में एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है जो अयोध्या में दशकों पुराने राजनीतिक रूप से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद के संभावित हल की संभावना मध्यस्थता के जरिये तलाशने की कोशिश करेगी।
आध्यात्मिक गुरु और ऑर्ट ऑफ लीविंग फाउंडेशन के संस्थापक श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पांचू भी इस समिति के सदस्य होंगे। शिवसेना ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने राम जन्मभूमि विवाद पर फैसला टाल दिया और अब इस मामले पर फैसला लोकसभा चुनाव के बाद ही होगा। पार्टी ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ में पूछा कि एकमात्र सवाल यह है कि अगर इस मामले का मध्यस्थता से हल हो सकता तो फिर यह विवाद 25 सालों से क्यों चल रहा होता और सैकड़ों लोगों को क्यों अपनी जान गंवानी पड़ती? इसमें कहा गया, “देश के राजनेता, शासक और उच्चतम न्यायालय इस मामले को हल नहीं कर पाए और क्या मध्यस्थ अब ऐसा कर पाएंगे।”
इसमें कहा गया, “अगर इतने सालों में इस मुद्दे पर विरोधी पक्ष मध्यस्थता के लिये तैयार नहीं थे तो अब उच्चतम न्यायालय ऐसा क्यों कर रहा है? अयोध्या सिर्फ जमीन विवाद का मुद्दा नहीं है बल्कि यह भावनात्मक मुद्दा था। ऐसा अनुभव किया जा चुका है कि मध्यस्थता ऐसे संवेदनशील मामलों में कारगर नहीं होती।” ‘सामना’ में उद्धव ठाकरे के नवंबर 2018 के अयोध्या में विवादित स्थल के दौरे का संदर्भ देते हुए कहा गया, “लोग यह चाहते हैं कि केंद्र को एक अध्यादेश लाना चाहिए और राम मंदिर के निर्माण का काम शुरू करना चाहिए। हमनें भी अयोध्या में यही बात कही थी।”
शिवसेना ने पूछा, “जिस तरह कश्मीर राष्ट्रीय पहचान और गर्व का मुद्दा है, राममंदिर भी हिंदू गर्व का मुद्दा है। लेकिन राम हिंदुस्तान में निर्वासन में हैं। अपनी 1500 वर्ग फुट जमीन के लिये, भगवान राम को मध्यस्थों से बात करनी होगी। अब भगवान भी कानूनी विवाद से नहीं बच सकते। इसके लिये किसे जिम्मेदार ठहराया जाए?”
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट की अवमानना मामले में मंगलवार को सीबीआई के पूर्व अंतरिम प्रमुख एम नागेश्वर राव को अदालत की कार्यवाही चलने तक दिनभर वहां बैठे रहने की सजा सुनाई गई। वे विजिटर्स गैलरी में बैठे। उन्होंने लंच भी नहीं किया। दरअसल, शीर्ष अदालत ने बिहार शेल्टर होम मामले की जांच के लिए सीबीआई अफसर एके शर्मा को नियुक्त किया था और राव ने उनका ही तबादला कर दिया था। इस पर कोर्ट ने राव के खिलाफ अवमानना का नोटिस जारी किया था। राव की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सोमवार को हलफनामा दायर करके अदालत से माफी मांगी थी, लेकिन कोर्ट ने राव को बुधवार को खुद पेश होने के लिए कहा।
कोर्ट रूम : राव बार-बार माफी मांगते रहे, लेकिन कोर्ट ने कहा- यह गंभीर मामला
चीफ जस्टिस : नागेश्वर राव को सुप्रीम कोर्ट के पुराने आदेश का पता था, तभी उन्होंने कानूनी विभाग से राय मांगी और कानूनी सलाहकार ने कहा था कि एके शर्मा का ट्रांसफर करने से पहले सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर इजाजत मांगी जाए, लेकिन ऐसा क्यों नहीं किया गया?
अटॉर्नी जनरल : राव ने गलती स्वीकारी है उन्होंने माफी मांगी है।
चीफ जस्टिस : संतुष्ट हुए बगैर और कोर्ट से पूछे बगैर अधिकारी के रिलीव ऑर्डर पर दस्तखत करते हैं यह अवमानना नहीं तो क्या है? राव ने आरके शर्मा को जांच से हटाने का फैसला लेने के बाद सुप्रीम कोर्ट को जानकारी देने की जरूरत तक नहीं समझी। उनका रवैया रहा है कि मुझे जो करना था कर दिया।
अटॉर्नी जनरल : माई लार्ड, प्लीज इनको (राव) माफ कर दीजिए।
चीफ जस्टिस (अटॉर्नी जनरल से पूछा) : अगर हम नागेश्वर राव को दोषी करार देते हैं, तो क्या आप सजा को लेकर जिरह करेंगे?
अटॉर्नी जनरल : जब तक कोर्ट यह तय न कर ले कि नागेश्वर राव ने यह जानबूझकर कर किया है, उन्हें दोषी करार नहीं दिया जाना चाहिए।
चीफ जस्टिस : अगर हम राव की माफी स्वीकार भी कर लेते हैं तो भी इनका करियर रिकॉर्ड दागदार रहेगा, क्योंकि इन्होंने अदालत की अवमानना की है और यह इन्होंने खुद स्वीकार किया है। यह बहुत गंभीर मामला है।
अटॉर्नी जनरल : मी लॉर्ड, इंसान गलतियों का पुतला है। राव को माफ कर दीजिए।
चीफ जस्टिस : अपने 20 साल के करियर में किसी को अवमानना मामले में सजा नहीं सुनाई, लेकिन यह मामला अलग है।
अटॉर्नी जनरल : नागेश्वर राव के 32 साल के करियर का अच्छा ट्रैक रिकॉर्ड रहा है। कोर्ट को उन पर दया दिखानी चाहिए।
चीफ जस्टिस : नागेश्वर राव को अवमानना का दोषी करार दिया जाता है। उन्हें कोर्ट की कार्यवाही चलने तक अदालत में बैठे रहने की सजा सुनाई जाती है। साथ ही उन पर एक लाख रुपए जुर्माना लगाया जाता है। यह रकम एक सप्ताह में जमा करानी होगी।
मुजफ्फरपुर शेल्टर होम मामला क्या है?
पिछले साल मुजफ्फरपुर और पटना के शेल्टर होम में बच्चियों के यौन शोषण की बात सामने आई थी। 28 मई, 2018 को एफआईआर दर्ज हुई। 31 मई को शेल्टर होम से 46 नाबालिग लड़कियों को मुक्त कराया गया। इस मामले में शेल्टर होम के संचालक ब्रजेश ठाकुर, पूर्व महिला एवं बाल विकास मंत्री मंजू ठाकुर समेत 11 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजा जा चुका है। मामले की जांच सीबीआई कर रही है। हाल ही में 7 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को फटकार लगाते हुए केस पटना से दिल्ली के साकेत पास्को कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया।