ईश्वर दुबे
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Bhilai
बालों को लंबा कैसे करें और हेयर फॉल रोकने का तरीका जानने के लिए पढ़ें ये आर्टिकल...

बालों की समस्या (हेयर प्रॉबल्म्स) एक गंभीर समस्या है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. अगर आप भी हेयर फॉल, कमजोर व बेजान बालों की समस्या से परेशान हैं, तो हम आपके लिए एक खास नुस्खा बताने जा रहे हैं. दरअसल, बालों को लंबा और मजबूत बनाने के लिए चावल और मेथी का इस्तेमाल किया जा सकता है. जिससे आपका घने और लंबे बाल पाने का सपना साकार हो सकता है.
Strong Hair Tips: लंबे और मजूबत बालों के लिए कैसे इस्तेमाल करें चावल और मेथी
बालों को मजबूत बनाने के लिए आपको चावल और मेथी के पानी से बाल धोने हैं. जिसके लिए निम्नलिखित विधि अपनाएं :-
आप रात में 250 मिलीलीटर पानी में 3 चम्मच मेथी के दाने भिगोकर रख दें.
सुबह के समय आधा कप सफेद चावल में एक कप पानी मिलाकर 2 से 3 घंटे तक रख दें.
इसके बाद दो अलग-अलग बर्तन में चावल और पानी व मेथी और पानी को गैस पर रख दीजिए.
धीमी आंच पर दोनों ही चीजों को 5 से 7 मिनट तक पकाएं.
इसके बाद चावल और मेथी के पानी को एक ही बर्तन में छान लें और एक दिन के लिए ऐसे ही रखा रहने दें.
एक दिन बाद अपने बालों को गुनगुने पानी से अच्छी तरह धो लें. अब चावल और मेथी के पानी को बालों के सिरे और जड़ों पर लगाकर 5 से 10 मिनट तक मसाज करें.
इसके बाद आप शॉवर कैप पहन लीजिए और 15 से 20 मिनट बाद गुनगुने पानी से बालों को धो लीजिए.
बालों के लिए चावल और मेथी के फायदे
चावल और मेथी के दाने बिल्कुल प्राकृतिक हैं, जो कि रसोई में आसानी से उपलब्ध हो जाएंगे. मजबूत बालों के लिए चावल और मेथी के पानी इस्तेमाल करने से हेयर फॉल की समस्या कम होती है. आइए चावल और मेथी के फायदे जान लेते हैं.
बालों के लिए चावल काफी फायदेमंद है. क्योंकि इसमें बालों के लिए जरूरी प्रोटीन की मात्रा होती है. इसके साथ ही इसमें कार्बोहाइड्रेट्स, फेरुलिक एसिड, विटामिन ए, सी, डी और विटामिन ई भी होता है. जो बालों को मजबूत बनाने के साथ मुलायम और रेशमी बनाता है.
बालों के लिए मेथी भी कम लाभकारी नहीं है. यह बालों की ग्रोथ बढ़ाने में असरदार है. क्योंकि, मेथी के दानों में फॉलिक एसिड, पोटैशियम, प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन और विटामिन ए, के, सी होता है. जो बालों को पोषण देकर डैमेज होने से बचाता है.
यहां दी गई जानकारी किसी भी चिकित्सीय सलाह का विकल्प नहीं है. यह सिर्फ शिक्षित करने के उद्देश्य से दी जा रही है.
कई बार ऐसा होता है कि हम पल भर में खुश हो जाते हैं और थोड़ी ही देर में गुस्सा, झुंझलाहट और एक दम से उदासी से घिरा महसूस करते हैं. ऐसी स्थिति को ही मूड स्विंग कहा जाता है. यह समस्या किसी को भी हो सकती है. लेकिन आमतौर पर महिलाओं में पीरियड के दौरान, प्रेगनेंसी, मेनोपॉज आदि के दौरान अधिक देखने को मिलता है. आमतौर पर हम इस समस्या को सीरियसली नहीं लेते और इसका असर हमारे व्यक्तिगत संबंधों पर पड़ने लगता है. यही नहीं, इसका प्रभाव हमारे काम काज और दफ्तर के परफॉरमेंस पर भी दिखने लगता है. ऐसे में अगर आप भी किसी बात को लेकर जरूरत से ज्यादा रिएक्ट करने लगे हैं तो तो हम आपकी इस समस्या को दूर करे का यहां उपाय बताते हैं.
मूड स्विंग को न लें हल्के में
हेल्थ शॉट्स के मुताबिक, अगर जल्दी जल्द मूड स्विंग हो रहा है तो यह सामान्य नहीं है. ऐसे में शालीमार बाग मैक्स हॉस्पिटल में न्यूरो साइंसेज, प्रिंसिपल कंसल्टेंट डॉ शैलेश जैन ने बताया कि अगर जल्दी जल्दी मूड स्विंग हो तो मेडिकल टर्म में इसे बायोलॉजिकल डिसऑर्डर माना जाता है. ऐसे में लोगों को अपने दोस्तों या परिवार की मदद लेनी चाहिए.
मूड स्विंग के लक्षण
थका हुआ महसूस करना, नींद न आना, बेहद चिड़चिड़ा स्वभाव, गुस्सा, अत्याधिक दुखी रहना, काम में मन न लगना, कॉन्फिडेंस में कमी, एकदम भूख लगना, अनियमित पीरियड्स, ब्रीदिंग प्रॉब्लम.
ऐसे करें मूड स्विंग को कंट्रोल
1.हेल्दी डाइट
आपकी डाइट में वह सभी न्यूट्रिएंट्स होनी चाहिए जो आपके लिए जरूरी है. आपको जंक फूड का कम सेवन करना चाहिए] साथ ही अधिक नमकीन या अधिक मीठा और मसालेदार भोजन भी नहीं करना चाहिए. फलों और हरी सब्जी का खूब सेवन करें.
2.करें व्यायाम
अगर आप नियमित योगा, मेडिटेशन और कसरत आदि करते हैं तो आपके हॉर्मोन संतुलन को बेहतर रखना आसान होगा. ऐसा होने से आपका मूड भी ठीक रहेगा.
3.नींद पूरी लें
8 घंटे की नींद हर किसी के लिए जरूरी है. ऐसे में रात को जल्दी साएं और सुबह उठें. रात को लाइट ऑन कर ना साएं. अगर आप बेहतर तरीके से नींद पूरी करेंगे तो आप खुश भी महसूस करेंगे और आपका गुड हार्मोन ‘एंडोर्फिन भी बैलेंस रहेगा.
4.भरपूर पानी जरूरी
दिन में कम से कम 2 लीटर पानी हर किसी को पीना चाहिए. यदि आपका शरीर हाइड्रेट रहेगा तो आप किसी भी तरह की परेशानियों को बेहतर तरीके से ठीक करने में सक्षम रहेंगे.
5.सकारात्मक माहौल में रहें
आप किसी भी प्रकार की नेगेटिविटी से खुद को बचाएं और सकारात्मक सोच वाले लोगों के साथ रहें. इससे आप खुद को खुश रख पाएंगे.
नई दिल्ली। इम्युनिटी बढाने में मदद करे विटामिन c. पानी में घुलनशील विटामिन C नींबू और संतरे, स्ट्रॉबेरी, कीवी फल, बेल मिर्च, ब्रोकोली, केल और पालक सहित कई फलों और सब्जियों में पाया जाता है। जबकि आमतौर पर यह सलाह दी जाती है कि आप विटामिन सी का सेवन खाद्य पदार्थों से करें। बहुत से लोग अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए सप्लीमेंट्स की ओर रुख करते हैं। इसके अलावा, कई बार डॉक्टर्स भी विटामिन सी की गोली या कैप्सूल लेने की सलाह देते हैं।
तो, आइये जान लेते हैं कि यह हमारे स्वास्थ्य के लिए कितने फायदेमंद हैं
1. ह्रदय रोग के जोखिम को कम करे
विटामिन सी एक शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट है, जो आपके शरीर की प्राकृतिक सुरक्षा को मजबूत कर सकता है। फिर चाहे आप इसे कैप्सूल के रूप में लें या प्राकृतिक तौर पर। यह एक मजबूत एंटीऑक्सीडेंट है जो आपके रक्त में एंटीऑक्सीडेंट के स्तर को बढ़ा सकता है। यह हृदय रोग जैसी गंभीर बीमारियों के जोखिम को कम करने में मदद कर सकता है।
एनसीबीआई के अध्ययन से पता चलता है कि अधिक विटामिन सी का सेवन करने से आपके रक्त में एंटीऑक्सीडेंट का स्तर 30% तक बढ़ सकता है। यह शरीर की प्राकृतिक सुरक्षा को सूजन से लड़ने में मदद करता है।
2. हाई ब्लड प्रेशर को कम करे
विटामिन सी के सप्लीमेंट स्वस्थ लोगों और उच्च रक्तचाप से पीड़ित, दोनों लोगों में उच्च रक्तचाप को कम करने में मदद करती है। नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इनफार्मेशन के अनुसार उच्च रक्तचाप वाले वयस्कों में, विटामिन सी की खुराक ने सिस्टोलिक रक्तचाप को 4.9 mmHg और डायस्टोलिक रक्तचाप को 1.7 mmHg, औसतन कम कर दिया।
3. आयरन को अवशेषित करने में मदद करे
अगर आप अपने आहर में पर्याप्त विटामिन सी नहीं ले पा रहीं हैं, तो आपके लिए गोलियां या कैप्सूल लेना फायदेमंद हो सकता है।
विटामिन सी की गोलियां आयरन के अवशोषण को बेहतर बनाने में मदद कर सकती है। विटामिन सी खराब अवशोषित आयरन को परिवर्तित करने में सहायता करता है। यह आयरन डेफिशियेंसी के जोखिम को भी कम कर सकती हैं।
4. इम्युनिटी बूस्टर भी हैं विटामिन C की गोलियां
सफेद रक्त कोशिकाओं को अधिक प्रभावी ढंग से कार्य करने, आपकी त्वचा की रक्षा प्रणाली को मजबूत करने और घावों को तेजी से भरने में मददगार है विटामिन सी। यहां तक कि इम्युनिटी बढ़ाने के लिए कोविड – 19 के मरीजों को भी विटामिन C सप्लीमेंट लेने कि सलाह दी जाती है।
5. त्वचा, नाखून और बालों के लिए भी फायदेमंद हैं विटामिन-C कैप्सूल
शरीर में कोलेजन बनाने के लिए विटामिन C की आवश्यकता होती है, जो शरीर के चारों ओर संयोजी ऊतक में पाया जाता है। कोलेजन के उत्पादन के लिए पर्याप्त विटामिन सी का स्तर आवश्यक है। कोलेजन शरीर में मौजूद एक प्रकार का प्रोटीन है, जो हमारे बालों, त्वचा और नाखूनों में पाए जाने वाले संयोजी ऊतकों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
क्लिनिकल, कॉस्मेटिक और इन्वेस्टिगेशनल डर्मेटोलॉजी में सितंबर 2015 में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि त्वचा पर विटामिन सी लगाने से कोलेजन उत्पादन में वृद्धि हुई।
ध्यान रहे, विटामिन सी की गोली या कैप्सूल लेने से पहले डॉक्टर की सलाह ज़रूर लें!
नई दिल्ली। गर्भाव्स्था के दौरान खानपान का खास ख्याल रखना पड़ता है। मां के खाने से गर्भ में पल रहा बच्चा सीधे तौर पर प्रभावित होता है, इसलिए डॉक्टर्स खानपान में संयम बरतने की सलाह देते हैं।
कच्चा पपीता : इसमें मिनरल्स, कैल्शियम, फाइबर, फ्लेवोनॉइड और कैरोटेनॉयड होता है। यह कोलोन कैंसर से बचाता है पर फिर भी प्रेग्नेंसी में इसे खाने से मना किया जाता है क्योंकि गर्भाव्स्था में पपीता खाने से मिसकैरिज यानी गर्भपात का खतरा रहता है दरअसल, पपीता उन महिलाओं को खाने की सलाह दी जाती है जिनका पीरियड्स समय पर नहीं होता पपीता में लेटेक्स होता है जो यूटेराइन कॉनट्रैक्शन शुरू कर देता है. इसकी वजह से गर्भाव्स्था में समय से पहले ही लेबर पेन शुरू हो सकता है और गर्भपात हो सकता है।
ज्यादा नमक : गर्भाव्स्था के दौरान जरूरत से ज्यादा नमक का सेवन ना करें हालांकि सामान्य तौर पर भी डॉक्टर्स कम नमक खाने की सलाह देते हैं। इससे दिल की बीमारियों का खरा बढ़ जाता है लेकिन गर्भाव्स्था में न केवल ब्लड प्रेशर बढ़ता है, बल्कि चेहरा, हाथ, पैर आदि में सूजन आ सकता है।
चाइनीज फूड : इसमें एमएसजी होता है। यानी मोनो सोडियम गूलामेट, जो बच्चे के विकास के लिए हानिकारक है और इसके चलते काई बार जन्म के बाद भी बच्चे में डिफेक्ट्स दिख सकते हैं। इसमें मौजूद सोया सॉस में नमक की भारी मात्रा होती है, जो हाई ब्लड प्रेशर का कारण बन सकती है।
कच्चा अंडा : गर्भाव्स्था के दौरान कच्चा अंडा न खाने की सलाह दी जाती है। दरअसल, अंडे में सालमोनेला बैक्टीरियम होता है, जिसके कारण फूड प्वॉयजनिंग हो सकता है। गर्भाव्स्था के दौरान महिलाओं की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है। इसलिए इस बैक्टीरिया के कारण वो फूड प्वॉयजनिंग की शिकार हो सकती हैं। यहां तक कि सालमोनेला बैक्टीरियम गर्भ में पल रहे बच्चे को सीधे तौर पर प्रभावित करता है। गर्भवती महिला को इससे उल्टी, दस्त, पेट में दर्द, सिर में दर्द, बुखार आदि हो सकता है.
आर्टिफिशियल स्वीटनर व फ्रोजेन फूड : पोषक तत्वों के मामले में फ्रोजेन फूड बिल्कुल ठीक नहीं होते। इसमें विटामिन सी, विटामिन बी1, बी2 और विटामिन ए नहीं होते. फलों और सब्जियों को ताजा खाया जाए तो ही अच्छा होता है. ये बात भी मायने रखती है कि फ्रोजेन फूड को किस तरह से रखा गया है। गर्भाव्स्था में यह फूड प्वॉयजनिंग की वजह भी बन सकता है।
कोलेस्ट्रॉल एक तरह का वसायुक्त तत्व है, जिसका उत्पादन लिवर करता है। यह कोशिकाओं की दीवारों, नर्वस सिस्टम के सुरक्षा कवच और हॉर्मोस के निर्माण में अहम भूमिका निभाता है। यह प्रोटीन के साथ मिलकर लिपोप्रोटीन बनाता है, जो फैट को खून में घुलने से रोकता है। हमारे शरीर में दो तरह के कोलेस्ट्रॉल होते हैं-एचडीएल (हाई डेंसिटी लिपोप्रोटीन, अच्छा कोलेस्ट्रॉल) और एलडीएल (लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन, बुरा कोलेस्ट्रॉल)। एचडीएल यानी अच्छा कोलेस्ट्रॉल काफी हल्का होता है और यह ब्लड वेसेल्स में जमे फैट को अपने साथ बहा ले जाता है। बुरा कोलेस्ट्रॉल यानी एलडीएल ज्यादा चिपचिपा और गाढ़ा होता है।
अगर इसकी मात्रा अधिक हो तो यह ब्लड वेसेल्स और आर्टरी में की दीवारों पर जम जाता है, जिससे खून के बहाव में रुकावट आती है। इसके बढने से हार्ट अटैक, हाई ब्लडप्रेशर और ओबेसिटी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। कोलेस्ट्रॉल की जांच के लिए लिपिड प्रोफाइल नामक ब्लड टेस्ट कराया जाता है। किसी स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में कुल कोलेस्ट्रॉल की मात्रा 200 मिग्रा./डीएल से कम, एचडीएल 60 मिग्रा./डीएल से अधिक और एलडीएल 100 मिग्रा./डीएल से कम होना चाहिए। आज हम आपको खराब कोलेस्ट्रॉल कम करने और अच्छा कोलेस्ट्रॉल बढ़ाने के तरीके बता रहे हैं।
भागदौड भरी जिंदगी में फास्ट फूड और जंक फूड लोगों का सबसे पसंदीदा खाना हो गया है। समय की कमी की वजह से लोग इसका अधिक मात्रा में सेवन करते हैं। फास्ट फूड में कोलेस्ट्राल की अधिक मात्रा होती है। फास्ट फूड से दूर रह कर कोलेस्ट्राल की मात्रा कम की जा सकती है।
मीठी चीजें कम खाएं
शुगर का कम से कम उपयोग करें। यह मोटापा घटाने में भी आपकी मदद करेगा।यदि आपको खराब कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम करना है तो अखरोट और बादाम जैसी सूखी मेवा खूब खाएं। इससे रक्त में कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम होता है। ह्रदय संबंधी बीमारियों के खतरे को कम करने और रक्त में लिपिड (वसा व कोलेस्ट्रॉल) का स्तर कम करने की अखरोट, बादाम व मूंगफली जैसी सूखी मेवा की पोषण संबंधी अद्वितीय विशेषताओं के चलते इन पर ज्यादा अध्ययन किया जा रहा है। इस तरह की सूखी मेवा में पौधों के प्रोटीन, वसा (खासकर असंतृप्त वसा अम्ल), खाने योग्य रेशे, खनिज, विटामिन और एंटीऑक्सिडेंट्स और फाइटोस्टीरॉइड्स जैसे अन्य यौगिकों की मात्रा अधिक होती है।
कोलेस्ट्रालयुक्त खाना न खाएं
जिन खाद्य पदार्थों में कोलेस्ट्राल की मात्रा अधिक हो उनका सेवन ना करें। अंडा, दूध, मांस, मछली और चाकलेट में सबसे ज्यादा मात्रा में कोलेस्ट्राल पाया जाता है। अंडे के पीले भाग में सबसे ज्यादा मात्रा में कोलेस्ट्राल पाया जाता है। ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर के दौरान इन खाद्य पदार्थों का सेवन करने से बचें।
कैसे बढ़ाएं गुड कोलेस्ट्रॉल
मोटापा और एलडीएल दोनों साथ-साथ होते हैं। लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं कि आपको कमर तोड़ व्यायाम करना होगा। आप रोज थोड़ी कसरत और अपने खान-पान में सुधार कर बढ़े वजन को धीरे-धीरे काबू कर सकते हैं। विटामिन-बी उच्च घनत्व वाले लिपोप्रोटीन को बढ़ाने में सहायक होता है। विटामिन-बी 5 की 300 मिलीग्राम पूरक से भी आप अपने एचडीएल कोलेस्ट्रॉल को बढ़ा सकता है लेकिन ध्यान रहे कि इसके कुछ दुष्प्रभाव जैसे कि जिगर की क्षति आदि भी हो सकते हैं, इसलिए कोई भी सप्लीमेंट या विटामिन लेने से पूर्व एक बार डॉक्टर से अवश्य सलाह लें। रोज लगभग तीस मिनट टहलने भर से आप अपना एचडीएल काफी बढ़ा सकते हैं।
जिस तरह से जीभ अच्छे स्वाद का पता देती है उसी तरह ये अच्छे स्वास्थ्य का भी पता बता सकती है। हमारी जीभ का रंग देखकर हमारे स्वास्थ्य के बारे में बहुत कुछ बताया सकता है। अलग-अलग बीमारियों के लक्षणों के साथ हमारे जीभ का रंग भी बदलता रहता है। आप भी अपनी जबान का रंग देखकर रोगों के बारे में जानकारी ले सकते हैं।
सफेद छाले या लाल घाव
अगर जीभ पर सफेद छाले हो गए हैं या गहरे लाल रंग के छोटे-छोटे घाव दिख रहे हैं तो ये पेट की गड़बड़ी का संकेत है। हमारी जबान का सीधा संबंध हमारे पेट से है इसलिए पाचन की गड़बड़ी का परिणाम कई बार हमारे जीभ पर लाल और सफेद छालों के रूप में दिखता है। इसके अलावा ये हार्पीज नाम की गंभीर बीमारी का संकेत भी हो सकता है। इसलिए अगर ये छाले सामान्य उपचार से या अपने से एक सप्ताह तक ठीक नहीं हो रहे हैं तो डॉक्टर से संपर्क करें।
सफेद पर्त आ जाना
जीभ पर सफेद रंग की झीनी पर्त आम बात है और ये जीभ के स्वस्थ होने का लक्षण है। ये एक तरह की फफूंद होती है जिसे कैंडिडा कहते हैं और इससे जबान को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है। लेकिन अगर ये रंग हल्का पीला हो जाए या इसकी पर्त मोटी हो जाए तो ये यीस्ट इंफेक्शन के लक्षण हैं। इसमें कैंडिडा ज्यादा मात्रा में प्रोड्यूस हो जाती है। कई बार एंटीबॉयोटिक दवाओं के ज्यादा इस्तेमाल से भी जबान पर ये पर्त जमने लगती है। असल में एंटीबायोटिक दवाओं से बैक्टीरिया मर जाते हैं लेकिन यीस्ट रह जाते हैं और वो शरीर में बैक्टीरिया की जगह लेने लगते हैं इसलिए ये पर्त जबान पर आ जाती है। कई बार ये रोग प्रतिरोधक प्रणाली की कमजोरी से भी होता है।
लाल रंग के छाले जैसे उभार
जीभ के नीचे या ऊपर लाल रंग के उभार कैंसर का संकेत हो सकते हैं। इन उभारों की शक्ल जबान पर होने वाले छालों जैसी ही होती है लेकिन ये उनसे थोड़ा बड़े होते हैं। इसके अलावा मुंह से सामान्य छाले ज्यादा से ज्यादा दो सप्ताह में खुद ही ठीक हो जाते हैं। अगर ये छालेनुमा उभार दो सप्ताह तक नहीं ठीक होते तो आपको बिना देरी किये डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। कई बार इन उभारों में आपको दर्द या कोई अन्य समस्या नहीं होती है फिर भी डॉक्टर से संपर्क करें। कई बार कैंसर जैसे गंभीर रोग शुरुआती स्टेज में शारीरिक तकलीफ नहीं देते हैं।
जीभ का ज्यादा लाल या मुलायम हो जाना
अगर आप की जबान का रंग गहरा लाल( स्ट्रॉबेरी रेड) हो गया है या ये बहुत मुलायम महसूस हो रही है, तो ये शरीर में विटामिन बी12 या आयरन की कमी का संकेत है। ऐसी स्थिति में कई बार गरम लिक्विड पीने या नमक, मिर्च वाला खाना खाने से मुंह में तेज दर्द होता है। वेजिटेरियन लोगों में अक्सर विटामिन बी12 की कमी होती है क्योंकि ये ज्यादातर मांस में पाया जाता है।
भूरे या काले रेशे
जीभ पर भूरे या काले रेशे देखने में जरूर खराब लगते हैं या ये किसी गंभीर बीमारी का संकेत लग सकते हैं लेकिन डॉक्टरों के अनुसार इसमें कोई चिंता की बात नहीं है। असल में हमारी जीभ पर छोटे-छोटे उभार होते हैं जिन्हें पैपिला कहा जाता है। आमतौर पर ये खाना चबाने या पानी पीने के दौरान टूटते रहते हैं इसलिए हमें पता नहीं चलता है। लेकिन कई बार ये उभार उम्र के साथ बढ़ते जाते हैं। इन्हीं पर बैक्टीरिया जम जाने के कारण जीभ का रंग भूरा या काला दिखने लगता है। इससे शरीर को कोई गंभीर नुक्सान तो नहीं होता लेकिन कई बार इसकी वजह से सांसों से बदबू आने लगती है या खानों का स्वाद कम मिल पाता है। इसे न जमने देने के लिए आपको रोज ब्रश से दांत साफ करने के साथ-साथ टंग क्लीनर से जीभ भी साफ करनी चाहिए।
सिकुड़न या रेखाएं
जीभ में गहरी रेखाएं दिखना आपकी बढ़ती उम्र की निशानी है। कई बार इन रेखाओं के गड्ढों में में खाया जाने वाला पदार्थ भर जाता है और निकल नहीं पाता, जिससे मुंह का इंफेक्शन हो जाता है और कई बार खाने-पीने में भी परेशानी होने लगती है। इससे बचने के लिए आपको पर्याप्त पानी पीना चाहिए और रोज मुंह की अच्छे से सफाई करनी चाहिए।
खून में हीमोग्लोबिन या रेड ब्लड सेल्स की कमी को एनीमिया कहते हैं। कई बार शरीर रेड ब्लड सेल्स या हीमोग्लोबिन बना नहीं पाता और कई बार ज्यादा खून बह जाने से शरीर में इनकी कमी हो जाती है। एनीमिया को एक तरह की बीमारी माना जाता है। ये बीमारी ज्यादातर महिलाओ को होती है और उनमें इसकी एक मुख्य वजह मासिक धर्म होता है। आमतौर पर पुरुषों में 100 मिली ग्राम खून में 13.5 ग्राम से कम हीमोग्लोबिन और महिलाओं में 100 मिली ग्राम खून में 12 ग्राम से कम हीमोग्लोबिन हो तो इसे एनीमिया की स्थिति कहते हैं। कई बार एनीमिया के मरीजों में बाहर से कोई लक्षण नहीं नजर आते या हल्के-फुल्के लक्षण नजर आते हैं जिन्हें लोग नजरअंदाज कर देते हैं। खून की सीबीसी जांच द्वारा इस बीमारी का आसानी से पता लगाया जा सकता है।
एनीमिया का कारण
एनीमिया का सबसे बड़ा कारण शरीर में आयरन की कमी है। एक सामान्य व्यक्ति के शरीर में 3-5 ग्राम आयरन होता है। शरीर में इसकी मात्रा कम होने पर खून कम बन पाता है और एनीमिया हो जाता है। कई बार ज्यादा मात्रा में खून बह जाना भी एनीमिया का कारण बनता है। इसके अलावा शरीर में कैल्शियम की अधिकता से भी एनीमिया हो सकता है इसलिए कैल्शियम वाले खाद्य पदार्थों का बहुत अधिक सेवन भी शरीर के लिए खतरनाक है।
एनीमिया से बचाव
एनीमिया से बचाव के लिए आपको अपनी जीवनशैली में थोड़ा परिवर्तन करना पड़ेगा। एनीमिया मुख्यतः शरीर में खून की कमी ही है इसलिए इससे बचाव के लिए ऐसे आहार का सेवन करना चाहिए जिससे शरीर में खून की मात्रा बढ़े जैसे- चुकंदर, गाजर, पालक, टमाटर, बथुआ और अन्य हरी सब्जियां। हरी सब्जियों के साथ-साथ काले चने और गुड़ में भी आयरन भरपूर होता है। रोजाना सुबह भीगे हुए काले चने गुड़ के साथ खाने से एनीमिया जल्द खत्म हो जाता है। इसके अलावा अगर आप सब्जी बनाने के लिए लोहे की कड़ाही का इस्तेमाल करते हैं तो इससे भी शरीर में आयरन की कमी दूर होती है। शरीर में आयरन की ज्यादा कमी होने पर आप चिकित्सक की सलाह से आयरन की गोलियां भी ले सकते हैं।
एनीमिया के लक्षण
काम के दौरान जल्दी थक जाना
दिनभर कमजोरी महसूस होना
त्वचा पीली पड़ना
सीढ़ी चढ़ते हुए चक्कर आ जाना
सीने और सिर में दर्द होना
तलवों और हथेलियों का ठंडा हो जाना
खाने में नमक का अंदाजा बहुत जरूरी है. अगर नमक कम हो जाए तो खाने का स्वाद फीका हो जाता है, लेकिन अगर नमक ज्यादा हो जाए तो खाने के स्वाद ही खराब हो जाता है. खाने में नमक ज्यादा होने पर गृहणी का सिरदर्द बढ़ने लगता है. ऐसे में अगर कोई मेहमान आ जाए या कोई ऐसी सब्जी बनी हो जिसे बनाने में काफी मेहनत लगती है और उसमें नमक ज्यादा हो जाए तो आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है. किचन हैक्स में आज हम आपको खाने में नमक ज्यादा होने पर बैलेंस करने का तरीका बता रहे हैं.
1- भुना बेसन- अगर सब्जी में नमक ज्यादा पड़ जाए तो घबराने की जरूरत नहीं है. आप सब्जी में थोड़ा भुना हुआ बेसन मिला दें. इससे नमक कम हो जाएगा. आप ग्रेवी और सूखी दोनों तरह की सब्जियों में भुना बेसन मिला सकते हैं.
2- आटे की गोलियां- सब्जी में नमक कम करने का दूसरा तरीका है कि आप आटे की गोलियां बनाकर डाल दें. इससे खाने में नमक कम हो जाएगा. ध्यान रखें कि खाना सर्व करने से पहले आटे की गोलियां निकाल दें.
3- उबला आलू- अगर रसेदार सब्जी या दाल में नमक ज्यादा हो जाता है तो आप उबला हुआ आलू (Boiled Potato) मिला सकते हैं. इससे खाने में नमक की मात्रा कम हो जाएगी और सब्जी, दाल की ग्रेवी भी गाढ़ी हो जाएगी.
4- नींबू का रस- ज्यादा नमक को बैलेंस करने के लिए आप नींबू का रस भी मिला सकते हैं. जिस चीज में नमक ज्यादा हो जाए, थोड़ा नींबू का रस डाल दें. इससे खाने का स्वाद भी खराब नहीं होगा और नमक भी कम हो जाएगा.
5- ब्रेड डाल दें- सब्जी या दाल में नमक ज्यादा होने पर आप ब्रेड का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. आप ब्रेड के 1-2 स्लाइस डालकर 10 मिनट के लिए छोड़ दें. इससे सब्जी का स्वाद भी खराब नहीं होगा और नमक भी कम हो जाएगा.
माइग्रेन के दौरान आप जो कष्टदायी दर्द अनुभव करते हैं, वो सचमुच नर्वस है. गंभीर सिरदर्द और प्रेडिक्शन से ज्यादा समय तक रह सकते हैं. माइग्रेन को ठीक करने के लिए कोई एक खास इलाज नहीं है, लेकिन कुछ जीवनशैली की आदतें और एक स्वस्थ आहार इन सिरदर्द को दूर रखने में मदद कर सकता है.
यहां कुछ फूड आइटम्स हैं जो माइग्रेन को ट्रिगर करते हैं जबकि दूसरे फूड आइटम्स हैं जो उन्हें रोकने में मदद कर सकते हैं. ये फूड आइटम्स आपके माइग्रेन को स्थायी रूप से दूर नहीं करेंगे, लेकिन ये निश्चित रूप से दर्द से निपटने और इसे कम प्रभावी रखने में मदद करेंगे. माइग्रेन एक न्यूरोलॉजिकल स्थिति है जिसे जीन से देखा जा सकता है या तनाव और हार्मोन जैसे अन्य कारक हो सकते हैं.
अगर आप माइग्रेन से पीड़ित हैं तो ये ऐसे फूड आइटम्स हैं जिन्हें आपको अपने आहार में शामिल करना चाहिए.
सैल्मन
ओमेगा-3 फैटी एसिड वाली फैटी फिश माइग्रेन से पीड़ित लोगों के लिए बेहद फायदेमंद होती है. ये माइग्रेन की घटना को कम करने में मदद करता है.
नट्स
मेवे मैग्नीशियम और दूसरे महत्वपूर्ण पोषक तत्वों और न्यूट्रिएंट्स से भरे होते हैं जो आपके शरीर के साथ-साथ माइग्रेन के इलाज में भी महत्वपूर्ण होते हैं. नट्स का सेवन आप हेल्दी स्नैक आइटम के रूप में कर सकते हैं. उन्हें हमेशा संभाल कर रखें या अपने बैग में रखें. बादाम, काजू, अखरोट और कद्दू के बीज जैसे मेवे अच्छे ऑप्शन्स हैं.
पालक
माइग्रेन के लिए हरी और पत्तेदार सब्जियां खास तौर से अच्छी होती हैं. उनके कई हेल्थ बेनेफिट्स हैं और पालक फोलिक एसिड और विटामिन बी के साथ-साथ मैग्नीशियम का एक अच्छा सोर्स है. ये माइग्रेन से लड़ने में मदद करते हैं.
जई का दलिया
अपने ब्लड शुगर के लेवल को कंट्रोल और नियमित रखने के लिए, दलिया वास्तव में मदद करता है. ये माइग्रेन से पीड़ित लोगों के लिए फायदेमंद होते हैं. आप अपने नियमित अनाज के कटोरे के साथ नाश्ते के रूप में दलिया खा सकते हैं और इसमें ताजे फल मिला सकते हैं.
पानी
अपने माइग्रेन के लिए सबसे अच्छे उपाय के रूप में पानी का इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा करें. माइग्रेन के सिरदर्द से निपटने के लिए खुद को हाइड्रेट रखना बहुत ही जरूरी है. रोजाना कम से कम 8-10 गिलास पानी पीना जरूरी है.
माइग्रेन और सिरदर्द की समस्या आए दिन लोग झेलते रहते हैं. आज तकरीबन-तकरीबन लोगों को ये समस्या है ही लेकिन इसका अगर सही समय पर इलाज किया गया तो ये आसानी से ठीक हो सकते हैं और अगर नहीं किया तो इसके गंभीर परिणाम भी भुगतने पड़ते हैं.
आमतौर पर हर घर की रसोई में मिलने वाला अदरक गले और पेट के लिए बेहद फायदेमंद होता है। अदरक का सेवन हाजमे को ठीक रखता है पर अदरक के टुकड़े के साथ थोड़ा सा नमक मिलाने से इसका फायदा दोगुना हो जाता है और कफ या बलगम की समस्या से तत्काल राहत मिलती है।
अदरक, श्वास नली के संकुचन में हो परेशानी से तो निजात दिलाता ही है, जिससे सूखी खांसी से निपटने में भी मदद मिलती है। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट गले और सांस लेने वाली नली में जमा टॉक्सिन को साफ करता है और कफ को बाहर निकालता है। यही नहीं अदरक में ऐसे गुण भी पाए जाते हैं, जो अस्थमा और ब्रोंकाइटिस को दूर करने में लाभदायक होते हैं। यदि अदरक में नमक मिला दिया जाए तो इसकी ताकत दोगुनी बढ़ जाती है क्योंकि नमक गले में फसे म्यूकस को निकालने में तेजी से मदद भी करता है और बैक्टीरियल ग्रोथ को भी रोकता है।
अदरक और नमक
अदरक को छील कर धो लें और छोटे टुकड़ों में काटें। फिर उस पर थोड़ा सा नमक छिड़के। अब इसे चबाएं और इसका रस निगल लें। उसके बाद शहद चाटना ना भूलें जिससे इसका स्वाद गायब हो जाए। अदरक और नमक को एक साथ चबाने से बहुत ज्यादा असर होता है। इसका स्वाद बहुत कसैला होता है इसलिए बहुत से लोग इस तरह इसे नहीं खा पाते इसलिये आप चाहें तो इसका काढ़ा बनाकर भी पी सकते हैं।
अदरक का काढा
इसे बनाने के लिये एक गिलास खौलते हुए पानी में थोड़े से अदरक के टुकड़े डालें और नमक मिलाएं। फिर पानी को आधा हो जाने तक खौलाएं और गैस बंद कर दें। फिर इसे छान कर रख लें और जब यह पीने लायक ठंडा हो जाए तब इसे पी लें। इससे आपका कफ, बलगम, खांसी और जुकाम आदि से तो राहत मिलेगी ही और पेट भी साफ रहेगा जिससे आप से सभी तरह की बीमारियां कोसों दूर रहेंगी।
गंजेपन से होता है बचाव
खाने पीने मे लापरवाही और बदलते मौसम के चलते कम उम्र में ही बाल झड़ने की समस्या आजकल आम बात है। युवाओं के लिए यह परेशानी एक गंभीर समस्या बनती जा रही हैं।
अगर आप भी ऐसी ही किसी परेशानी से ग्रस्त हैं तो अदरक का ये नुस्खा आपकी मदद कर सकता है।
अगर आप बाल घने करने के लिए कई तेल और दवा खाकर देख चुके हैं तो इसे भी आजमा कर देखिए।
अदरक एक एंटी बैक्टीरियल औषधि माना जाता है। अदरक एंटी ऑक्सीडेंट्स से भरपूर होने की वजह से इसके प्राकृतिक गुण बालों को झड़ने से भी रोकते हैं। गंजेपन की समस्या से निजात पाने के लिए आप अदरक के रस को नींबू के रस में मिलाकर बालों में लगाएं। ऐसा करने से बालों से डैंड्रफ की समस्या भी दूर होगी और बाल झड़ने बंद हो जाएंगे।
बालों में अदरक लगाते समय हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि इसके रस का एसिडिक नेचर होने की वजह से ये आपके बालों में रुखापन कर सकता है इसलिए अदरक का रस लगाने के बाद हमेशा अपने बालों को अच्छी तरह से धोना चाहिए।
कैंसर एक ऐसी जानलेवा बीमारी है जिसका इलाज बेहद ही मुश्किल और दर्दनाक है। कई तरह के कैंसर ऐसे भी होते हैं, जिनका कोई इलाज ही नहीं है। इसीलिए शुरुआत में ही लक्ष्णों को पहचानकर अगर हम डॉक्टर के पास जायें तो कैंसर की रोकथाम की जा सकती है। इसके लिए आपको थोड़ा सतर्क और जागरुक रहना पड़ेगा। अगर आपको कोई भी दिक्कत बार-बार होती है, तो इसे हल्के से नहीं लेते हुए अपने डॉक्टर से ज़रूर संपर्क करें। ये हैं कैंसर की शुरुआत भी हो सकती है।
अगर आपको अक्सर सांस लेने में दिक्कत होती है और सांस लेते वक्त आवाज़ भी सुनाई देती है, तो यह फेफडे के कैंसर की शुरुआत के संकेत हो सकते हैं।
सीने में दर्द और लंबी खांसी
कैंसर के कई मरीज़ बाजू और सीने में दर्द की शिकायत करते हैं। ये ट्यूमर और रक्त कैंसर (ल्यूकेमिया) का संकेत हो सकता है।
बार-बार संक्रमण और बुखार
ल्यूकेमिया के शुरुआती दिनों में मरीज़ को बार-बार इंफेक्शन और बुखार होता है। ऐसा इसीलिए, क्योंकि शरीर में सफेद रक्त कणों की गिनती सामान्य नहीं रहती। इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति भी प्रभावित होती है ऐसे में बुखार और संक्रमण बार -बार होने लगता है।
गले का कैंसर होने पर मरीज़ को खाना निगलने में दिक्कत होती है।
बांहों के नीचे या गर्दन पर सूजन
लिम्फ नोड्स बीन्स की शेप में ग्लैंड्स होते हैं। कैंसर के शुरू होने पर यह सूज सकते हैं और अंडरआर्म के नीचे या गर्दन पर देखे जा सकते हैं।
चोट लगना और खून निकलना
ल्यूकेमिया के कारण लाल रक्त कण और प्लेटलेट्स में बदलाव हो सकता है, जिससे रक्त स्राव (ब्लीडिंग) का भी खतरा बढ़ जाता है।
हमेशा थकान रहना
जब शरीर ज़रूरत से ज़्यादा काम करता है, तब तो थकान होती ही है, पर थकान का हमेशा रहना भी कैंसर का संकेत हो सकता है।
पेट के निचले हिस्से में दर्द
कैंसर की शुरुआत में पेट के निचले हिस्से में दर्द रहता है और पेट फूला-फूला भी रहता है। यह ओवेरियन कैंसर का संकेत हो सकता है।
पेट का फूलना और वज़न बढ़ना
अगर आपका पेट अक्सर फूला रहता है और आप बिना किसी वजह के फूलते जा रहे हो, तो यह भी ओवेरियन कैंसर के लक्षण हो सकते हैं।
पीठ के निचले हिस्से में दर्द
कैंसर की शुरुआत में पीठ के निचले हिस्से में अक्सर दर्द रहता है। यह ब्रेस्ट ट्यूमर का भी लक्षण हो सकता है या लिवर कैंसर का भी। इसीलिए, अगर आपको अक्सर इस जगह दर्द रहती है, तो तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
पानी में विटामिन बी3 डालने से आंख की रोशनी कम होने की बीमारी ( ग्लॉकोम) के खतरे को कम किया जा सकता है। इससे आंखें स्वस्थ रहती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार इलाज के लिए आंखों में बार-बार ड्रॉप्स डालना महंगा पड़ता है। वहीं, पानी में विटामिन बी3 डालकर पीना सुरक्षित और सस्ता तरीका है। बुज़ुर्गों के लिए हर रोज़ आंखों में दवाई डालना मुश्किल हो सकता है। ऐसे में यह उपचार उनके लिए आसान है। पूरी दुनिया में करीब 80 मिलियन लोग ग्लॉकोम से पीड़ित हैं और आईड्राप्स पर निर्भर रहते हैं। यह बीमारी आंखों में एक्सट्रा प्रेशर के कारण होती है, क्योंकि इसमें नर्व्स डैमेज हो जाती हैं। फैमिली हिस्ट्री या डायबिटीज़ के कारण, ग्लॉकोम होने का रिस्क बढ़ जाता है। इसका ट्रीटमेंट आईड्रॉप्स हैं, जो सभी को सूट नहीं करते, और आंखों में जलन भी पैदा करते हैं। गंभीर मामलों में मरीज़ की सर्जरी या लेज़र थेरेपी करनी पड़ती है।
ग्लॉकोम के लक्षण
आंख में दर्द, उल्टी, आंख का लाल होना आदि। अचानक से आंख की रोशनी कम होना भी इस बीमारी का संकेत है।
वैसे तो इस बीमारी को ठीक करना मुश्किल है, लेकिन कुछ तरीके अपनाने से ऐसा ज़रूर हो सकता है कि आंखों की रोशनी ज़्यादा कम न हो। इसके लिए पहले तो इस बीमारी को पहले स्टेज में ही पकड़ लेना ज़रूरी है, क्योंकि इसमें रोशनी कम होने की प्रक्रिया बेहद धीमी रहती है। आंखों में दबाव को कम करने के प्राकृतिक तरीके।
अपनी जीवनशैली में कुछ ऐसे बदलाव करके जिनसे की आपका ब्लड प्रेशर कम हो, आंखों के दबाव को भी कम करता है। इस उपचार का कोई साइड इफेक्ट नहीं है।
अपने इंसुलिन लेवल को कम करें।
जैसे आपका इंसुलिन का स्तर बढ़ता है, यह आपके रक्तचाप का कारण बनता है, और इससे आपकी आंखों पर दबाव भी बढ़ता है। समय के साथ आपका शरीर इंसुलिन प्रतिरोधी बन जाता है। यह उन लोगों को ज़्यादा होता है, जो डायबिटीज़, मोटापा और हाई ब्लड प्रेशर के मरीज़ हैं।
इसका समाधान यह है कि आपको अपनी डाइट में चीनी और अनाज कम करना होगा। अगर आपको ग्लॉकोम है या इसके बारे में चिंतित हैं, तो आप ये सब खाने से बचें
ब्रेड, पास्ता, चावल, अनाज और आलू।
नियमित रूप से व्यायाम करें: इंसुलिन के स्तर को कम करने का सबसे प्रभावी तरीका है व्यायाम, जैसे- एरोबिक्स और स्ट्रेंथ ट्रेनिंग। इससे इंसुलिन लेवल कंट्रोल में रहता है और आंखों की रोशनी भी बचाई जा सकती है।
ओमेगा -3 फैट सप्लीमेंट: इसे लेने से भी इस बीमारी को दूर रखा जा सकता है। डीएचए नामक ओमेगा -3 फैट आंखों के स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छा है। यह आंखों की रोशनी नहीं जाने देता। डीएएच सहित ओमेगा -3 फैट, मछली में पाए जाते हैं, लेकिन विशेषज्ञ मछली न खाने की राय देते हैं। उनके मुताबिक इस फैटी एसिड का सबसे अच्छा स्रोत है क्रिल ऑयल।
हरी सब्जियां खाएं: ल्यूटिन और ज़ेकैक्थिन से आंखों की रोशनी बढ़ती है। ल्यूटिन हरी, पत्तेदार सब्जियों में विशेष रूप से बड़ी मात्रा में पाया जाता है। यह एंटी-ऑक्सीडेंट है और आंखों के सेल्स को खराब होने से बचाता है।
साग, पालक, ब्रोकोली, स्प्राउट्स और अंडे के पीले भाग में भी ल्यूटिन होता है लेकिन ध्यान रहे कि ल्यूटिन ऑयल में घुलता है। इसलिए इन हरी सब्ज़ियों के साथ थोड़ा ऑयल या बटर खाना भी ज़रूरी है।
अंडे का पीला भाग न्यूट्रिएंट्स से भरपूर होता है, लेकिन इसे पकाते ही इसके सारे पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं। इसलिए एक्सपर्ट्स सनी साइड अप खाने की सलाह देते हैं। ट्रांस फैट से बचें ट्रांस फैट को भी अपनी डाइट में कम करें। इससे भी आंखों की रोशनी जाने का खतरा बढ़ सकता है। ट्रांस फैट पैकेज्ड फूड्स, बेक्ड फूड्स और फ्राइड फूड्स में पाया जाता है।
तनावपूर्ण और तेज रफ्तार जिंदगी ने लोगों में ब्लड प्रेशर (रक्तचाप) की यह समस्याएं पैदा की हैं। विशेषज्ञों की मानें तो जितना घातक हाई ब्लड प्रेशर होता है उतना ही नुकसानदेह लो ब्लड प्रेशर भी होता है। लो ब्लड प्रेशर की स्थिति वह होती है कि जिसमें रक्तवाहिनियों में खून का दबाव काफी कम हो जाता है। सामान्य रूप से 90/60 एमएम एचजी को लो ब्लड प्रेशर की स्थिति माना जाता है। अगर आप भी ब्लड प्रेशर की समस्या से जूझ रहे हैं तो आपके लिए कुछ आहार हैं जिससे आप इस पर काबू पा सकते हैं।
जटामानसी
जटामानसी नामक एक आयुर्वेदिक औषधि भी लो ब्लड प्रेशर का निदान करने में मददगार है। जटामानसी का कपूर और दालचीनी के साथ मिश्रण बनाकर सेवन कर सकते हैं। इसके अलावा जटामानसी के अर्क (पानी के साथ उबालकर) को पीने से भी लो ब्लड प्रेशर की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। एप्सम नमक (मैग्नीशियम सल्फेट) से स्नान लो ब्लड प्रेशर को ठीक करने का सबसे सरलतम इलाज है। इसके लिए पानी में करीब आधा किलो एप्सम नमक मिलाएं और करीब आधा घंटा पानी में बैठें। बेहतर होगा कि सोने के पहले यह स्नान करें।
सूखे मेवे
50 ग्राम देशी चने व 10 ग्राम किशमिश को रात में 100 ग्राम पानी में किसी भी कांच के बर्तन में रख दें। सुबह चनों को किशमिश के साथ अच्छी तरह से चबा-चबाकर खाएं और पानी पी लें। यदि देशी चने न मिल पाएं तो सिर्फ किशमिश ही लें। इस विधि से कुछ ही सप्ताह में ब्लेड प्रेशर सामान्य हो सकता है। रात को बादाम की 3-4 गिरी पानी में भिगों दें और सुबह उनका छिलका उतारकर कर 15 ग्राम मक्खन और मिश्री के साथ मिलाकर बादाम-गिरी को खाने से लो ब्लड प्रेशर नष्ट होता है। प्रतिदिन आंवले या सेब के मुरब्बे का सेवन लो ब्लेड प्रेशर में बहुत उपयोगी होता है।
भोजन में बढ़ाएं पोषक तत्वों की मात्रा
प्रोटीन, विटामिन बी और सी लो ब्लड प्रेशर को ठीक रखने में मददगार साबित होते हैं। ये पोषक तत्व एड्रीनल ग्रंथि से निकलने वाले हार्मोनों के स्राव में वृद्धि कर लो ब्लड प्रेशर को तेजी से सामान्य करते हैं।लो ब्लड प्रेशर को दूर करने के लिए ताजे फलों का सेवन करें। दिन में करीब तीन से चार बार फलों का सेवन करना फायदेमंद रहेगा। जितना संभव हो सके, लो ब्लड प्रेशर के मरीज दूध का सेवन करें। लो ब्लड प्रेशर को सामान्य रखने में बीट रुट का रस काफी कारगर होता है। जिन्हें लो ब्लड प्रेशर की समस्या है उन्हें रोजाना दो बार बीट रुट का रस पीना चाहिए। हफ्ते भर में आप अपने ब्लड प्रेशर में सुधार पाएंगे। लो ब्लड प्रेशर मरीजों के लिए पैदल चलना, साइकिल चलाना और तैरना जैसी कसरतें फायदेमंद साबित होती हैं। इन सबके अलावा सबसे जरूरी यह है कि व्यक्ति तनाव और काम की अधिकता से बचें।
शरीर के बेहतर विकास के लिए प्रोटीन का भरपूर मात्रा में सेवन करें। प्रोटीन की कमी से शरीर में कई प्रकार के रोग लग जाते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि शरीर के अच्छे विकास के लिए प्रोटीन के सेवन पर जरूर ध्यान देना चाहिए पर इसकी अधिकता भी नुकसान देह है, इसलिए सही मात्रा लेना जरुरी है।
प्रोटीन युक्त आहार का कितनी मात्रा में सेवन करना चाहिए, इसे जानने के कई तरीके हैं। आजकल फिटनेस एप्लिकेशन मौजूद हैं, जो आपको प्रोटीन के सेवन की मात्रा संबंधी जानकारी दे सकते हैं।
प्रोटीन का सेवन करने का संबंध स्वस्थ व संतुलित आहार के सेवन से हैं। आहार विशेषज्ञ का कहना है कि प्रोटीन एक बेहद जरूरी अवयव है, जिसका सेवन सभी के लिए जरूरी है, क्योंकि यह शरीर के उत्तकों की मरम्मत करने और उनका पुनर्निमाण करने में सहायक होता है, जबकि प्रोटीन का बहुत ज्यादा सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी साबित हो सकता है।
प्रोटीन के सेवन के साथ ही अन्य पोषक तत्वों के सेवन पर भी ध्यान दें, जो आमतौर पर शरीर को सक्रिय बनाए रखने के लिए जरूरी होते हैं।
प्रोटीन युक्त आहार का बहुत ज्यादा मात्रा में सेवन करने से वजन बढ़ने की संभावना होती है, इसलिए संतुलित मात्रा में ही इसका सेवन करें।
बहुत ज्यादा प्रोटीन युक्त आहार लेने से पाचन में दिक्कत हो सकती है, जिससे कब्ज और डायरिया जैसी समस्या का सामना करना पड़ सकता है।