राजनीति

राजनीति (6705)

नई दिल्ली. देश में हो रहे छात्रों के विरोध, नागरिकता कानून, एनआरसी और मौजूदा राजनीतिक हालात पर चर्चा के लिए विपक्षी पार्टियां सोमवार को 2 बजे बैठक करेंगी। इसमें बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और बसपा प्रमुख मायावती शामिल नहीं होंगी। आम आदमी पार्टी ने भी मीटिंग में शामिल न होने का ऐलान किया है।
ममता बनर्जी ने पिछले हफ्ते ट्रेड यूनियन की स्ट्राइक के दौरान वामदलों और तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के बीच हुई झड़पों की वजह से घोषणा की थी कि वह विपक्षी बैठक में शामिल नहीं होंगी। उन्होंने कहा था कि मैंने ही विपक्ष को बैठक का विचार दिया। राज्य में जो हुआ, इसकी वजह से मेरे लिए अब बैठक में शामिल होना संभव नहीं है। एनआरसी-सीएए के खिलाफ सबसे पहले मैंने आंदोलन शुरू किया। सीएए-एनआरसी के नाम पर वामपंथी और कांग्रेस जो कर रहे हैं, वह आंदोलन नहीं, बल्कि बर्बरता है।
मायावती ने प्रियंका की पीड़ित परिवारों से मुलाकात को ड्रामा बताया था
मायावती ने भी हाल ही में राजस्थान में कोटा के एक अस्पताल में बच्चों की मौत के आंकड़ों को लेकर सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा पर हमला किया था। उन्होंने कहा था कि अगर कांग्रेस महासचिव बच्चों को खोने वाली माताओं से मिलने के लिए कोटा नहीं जाएंगी, तो उत्तर प्रदेश में पीड़ित परिवारों के साथ उनकी मुलाकात को राजनीतिक हित और ड्रामा ही माना जाएगा।
सोनिया ने सीएए को विभाजनकारी कानून बताया था
कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी ने शनिवार को नागरिकता कानून को एक भेदभावपूर्ण और विभाजनकारी कानून करार दिया था, जिसका उद्देश्य लोगों को धार्मिक आधार पर बांटना है। पार्टी ने सीएए को तत्काल वापस लेने और एनपीआर की प्रक्रिया को रोकने की मांग की थी।
कई मुख्यमंत्रियों ने कहा- वे अपने राज्यों में सीएए-एनआरसी लागू नहीं करेंगे
पिछले महीने सीएए को लेकर विरोध कर रहे दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों पर पुलिस ने कार्रवाई की थी। इसके बाद देशभर के यूनिवर्सिटी में प्रदर्शन शुरू हो गए थे। इसमें राजनीतिक दल भी शामिल हो गए थे। भाजपा ने सीएए को लेकर कांग्रेस पर लोगों को गुमराह करने का आरोप लगाया है। ममता बनर्जी और कांग्रेस शासित राज्यों में कई मुख्यमंत्रियों ने कहा है कि वे अपने राज्यों में सीएए या एनआरसी की अनुमति नहीं देंगे। उधर, केरल के विधानसभा में सीएए को राज्य में पारित नहीं किए जाने संबंधी प्रस्ताव भी पास किया गया था।

नई दिल्ली. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का कार्यकाल पिछली जनवरी में ही समाप्त हो गया था. लोकसभा चुनाव को करीब देख शाह से पद पर बने रहने को कहा गया था. आम चुनाव और इसके बाद शाह के बतौर गृह मंत्री मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद जेपी नड्डा कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए थे. अब चर्चा है कि जेपी नड्डा ही पार्टी के अगले अध्यक्ष होंगे. वह फरवरी में पार्टी की बागडोर संभाल सकते हैं.
सूत्रों के अनुसार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर जेपी नड्डा की ताजपोशी 19 फरवरी को होगी. माना जा रहा है कि 19 फरवरी तक भाजपा की 80 फीसदी से अधिक राज्य इकाइयों के चुनाव की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी. इसके बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होगा. सूत्रों की मानें तो जेपी नड्डा का 11वां अध्यक्ष बनना तय माना जा रहा है.
गौरतलब है कि इस समय भाजपा में संगठन के चुनाव चल रहे हैं. पार्टी के संविधान के मुताबिक 50 फीसदी से अधिक राज्य इकाइयों के चुनाव हो जाने के बाद ही राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का चुनाव कराया जा सकता है. बता दें कि जेपी नड्डा छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय हैं. वे छात्र जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े और संगठन में विभिन्न पदों पर भी रहे.
नड्डा पहली बार साल 1993 में हिमाचल प्रदेश की विधानसभा के सदस्य चुने गए थे. इसके बाद वे प्रदेश सरकार में मंत्री भी रहे और सांसद रहते केंद्र सरकार में भी मंत्री बने. नड्डा मोदी सरकार में भी स्वास्थ्य जैसा महत्वपूर्ण विभाग संभाल चुके हैं. अमित शाह के मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद उन्हें पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया और शाह राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर बने रहे, लेकिन कई राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में अपना पुराना प्रदर्शन बरकरार नहीं रख पाई.
भाजपा को हाल ही में हुए झारखंड के विधानसभा चुनाव में हार मिली, वहीं महाराष्ट्र की सत्ता भी हाथ से फिसल गई. हरियाणा में भी पार्टी को सीटों का नुकसान उठाना पड़ा और जोड़- तोड़ कर सरकार बनी. पार्टी के प्रदर्शन में आई इस गिरावट के पीछे पूर्णकालिक अध्यक्ष की कमी और शाह का ध्यान मंत्रिपरिषद की जिम्मेदारी की ओर बंट जाने को भी वजह माना जाता रहा है.

संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को लेकर हो रहे प्रदर्शनों और उसके कारण विभिन्न विश्वविद्यालयों में हो रही हिंसा के मद्देनजर सोमवार को विपक्षी दलों की बैठक बुलाई गई है। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने वाम मोर्चा सहित सभी विपक्षी दलों की बैठक बुलाई है। माना जा रहा है कि इस बैठक में तृणमूल कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) संभवत: हिस्सा नहीं लेगी।बसपा सूत्रों ने बताया कि पार्टी संभवत: बैठक में किसी प्रतिनिधि को नहीं भेजेगी। सूत्रों ने बताया कि कांग्रेस के साथ बसपा के मतभेद को इस कदम का कारण बताया जा रहा है। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले ही इस बैठक में आने से स्पष्ट इनकार कर चुकी हैं। सीएए के खिलाफ जब विपक्षी दल राष्ट्रपति के पास गए थे, उस वक्त भी बसपा उनके साथ नहीं थी। हालांकि पार्टी ने बाद में इस मुद्दे को लेकर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से भेंट की थी।

मायावती ने बताया- बैठक से क्यों किया किनारा
मायावती ने ट्वीट कर कहा कि जैसा कि विदित है कि राजस्थान कांग्रेसी सरकार को बसपा का बाहर से समर्थन दिये जाने पर भी, इन्होंने दूसरी बार वहां बसपा के विधायकों को तोड़कर उन्हें अपनी पार्टी में शामिल करा लिया है जो यह पूर्णतया विश्वासघाती है। ऐसे में कांग्रेस के नेतृत्व में आज विपक्ष की बुलाई गई बैठक में बसपा का शामिल होना, यह राजस्थान में पार्टी के लोगों का मनोबल गिराने वाला होगा। इसलिए बसपा इनकी इस बैठक में शामिल नहीं होगी।

उन्होंने कहा कि वैसे भी बसपा सीएए और एनआरसी आदि के विरोध में है। केन्द्र सरकार से पुन अपील है कि वह इस विभाजनकारी व असंवैधानिक कानून को वापिस ले। साथ ही, जेएनयू व अन्य शिक्षण संस्थानों में भी छात्रों का राजनीतिकरण करना यह अति-दुर्भाग्यपूर्ण है।

बैठक में आम आदमी पार्टी भी नहीं होगी शामिल
नागरिकता कानून और सीएए पर बुलाई गई विपक्ष की बैठक से आम आदमी पार्टी ने भी किनारा कर लिया है। पार्टी सूत्रों के अनुसार, कोई भी नेता इस बैठक में हिस्सा नहीं लेगा।

विपक्षी एकजुटता में फूट
वहीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गुरुवार को साफ शब्दों में कहा था कि अगर जरुरत पड़ी तो वह अकेले लड़ेंगी। सदन में ही उन्होंने विश्वविद्यालय परिसरों में हिंसा और सीएए के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा 13 जनवरी को बुलाई गई विपक्षी दलों की बैठक के बहिष्कार की घोषणा भी की।

बनर्जी बुधवार को ट्रेड यूनियनों के बंद के दौरान राज्य में वामपंथी और कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा की गई कथित हिंसा से भी नाराज हैं। बंद केंद्र सरकार की गलत आर्थिक नीतियों, संशोधित नागरिकता कानून और पूरे देश में प्रस्तावित एनआरसी के विरोध में आहूत किया गया था। हालांकि, कांग्रेस का कहना है कि बनर्जी को विपक्ष की बैठक में आने का न्योता दिया गया था, लेकिन आना, नहीं आना उन पर निर्भर करता है।

ममता के किसी फैसले की जानकारी नहीं: कांग्रेस
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा, ‘मुझे ममता बनर्जी के किसी फैसले की जानकारी नहीं है। जहां तक मुझे पता है, कांग्रेस पार्टी ने सीएए और एनआरसी के खिलाफ संसद के भीतर और बाहर आवाज उठाई है और विपक्षी नेताओं को 13 जनवरी की बैठक में आने का न्योता दिया है। वह आएंगी या नहीं इस पर मैं कुछ नहीं कह सकता।’

ट्रेड यूनियनों के 24 घंटे के राष्ट्रव्यापी बंद के दौरान पश्चिम बंगाल में हिंसा और आगजनी की घटनाएं हुईं। प्रदर्शनकारियों ने रेल और सड़क यातायात बाधित करने करने का भी प्रयास किया।

बनर्जी ने कहा कि वामपंथियों और कांग्रेस के दोहरे मानदंड को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। विधानसभा द्वारा सीएए के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किए जाने के बाद बनर्जी ने कहा, ‘मैंने नई दिल्ली में 13 जनवरी को सोनिया गांधी द्वारा बुलाई गई बैठक का बहिष्कार करने का निर्णय लिया है क्योंकि मैं वाम और कांग्रेस द्वारा कल (बुधवार) पश्चिम बंगाल में की गई हिंसा का समर्थन नहीं करती हूं।’ उन्होंने कहा कि चूंकि सदन सितंबर, 2019 में ही पूरे देश में प्रस्तावित एनआरसी के खिलाफ प्रस्ताव पारित कर चुका है ऐसे में नए सिरे से प्रस्ताव लाने की जरूरत नहीं है।

कांग्रेस और वामपंथियों की ओर से दबाव बनाए जाने पर उन्होंने कहा, ‘आप लोग पश्चिम बंगाल में एक नीति अपनाते हैं और दिल्ली में एकदम विपरीत नीति अपनाते हैं। मैं आपके साथ नहीं जुड़ना चाहती। अगर जरुरत पड़ी तो मैं अकेले लड़ने को तैयार हूं।’

पटना. जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने सीएए और एनआरसी का लगातार विरोध करने के लिए राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को धन्यवाद दिया है। पीके ने ट्वीट कर लिखा कि सीएए और एनआरसी को स्वीकार नहीं करने के लिए मैं कांग्रेस नेतृत्व को धन्यवाद देता हूं। साथ ही सभी को यह आश्वस्त करता हूं कि बिहार में सीएए और एनआरसी लागू नहीं होगा।
बता दें कि एनडीए के अंदर प्रशांत किशोर ऐसे पहले नेता हैं जिन्होंने नागरिकता संशोधन कानून की मुखालफत की थी। जदयू द्वारा संसद में इस बिल के समर्थन के बावजूद पीके इसके खिलाफ लगातार आवाज उठाते रहे। हालांकि, नीतीश से मुलाकात के बाद सीएए पर उनके तेवर नर्म पड़ गए लेकिन उन्होंने एनआरसी का विरोध करना जारी रखा। रविवार को एक बार फिर पीके ने अपने ट्वीट में सीएए का जिक्र किया है। प्रशांत किशोर एनआरसी पर लगातार केंद्र सरकार को घेरने में जुटे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी साफ कर चुके हैं कि वे बिहार में एनआरसी लागू नहीं करेंगे। जदयू महासचिव केसी त्यागी ने कहा है कि जिस तरह देशभर में सीएए और एनआरसी का विरोध हो रहा है, ऐसे में भाजपा को जल्द एनडीए की बैठक बुलानी चाहिए।

नईदिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारों के नाम तय करने के लिए भाजपा की शनिवार सायं प्रदेश कार्यालय पर चुनाव समिति की बैठक हुई, जिसमें सभी 70 विधानसभा सीटों के लिए उम्मीदवारों के नामों पर चर्चा हुई।
कमेटी ने स्क्रीनिंग कर हर सीट पर दो-दो मजबूत दावेदारों की लिस्ट तैयार की है। इसमें से वरीयता क्रम में नामों को रखते हुए सूची केंद्रीय चुनाव समिति को जाएगी, जिसके बाद पार्टी उम्मीदवारों की लिस्ट घोषित करेगी।
राज्य चुनाव समिति की बैठक में केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, डॉ. हर्षवर्धन, केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्याम जाजू, प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी, राष्ट्रीय महासचिव अनिल जैन, संगठन मंत्री सिद्धार्थन प्रमुख रूप से मौजूद रहे।
भाजपा सूत्रों ने बताया कि 13 या 14 जनवरी को भाजपा के राष्ट्रीय कार्यालय पर केंद्रीय चुनाव समिति और संसदीय बोर्ड की बैठक होगी। जिसमें राज्य चुनाव समति की ओर से भेजे गए उम्मीदवारों के नाम पर मुहर लगने के बाद रणनीति के हिसाब से पार्टी संबंधित तिथियों पर सूची जारी करेगी।
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सीएए के विरोध पर बोले पीएम
कोलकाता। आज स्वामी विवेकानंद की जयंती है। इसे राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर पर मनाया जाता है। वहीं, इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोलकाता में हुगली नदी के किनारे स्थित रामकृष्ण मिशन के मुख्यालय बेलूर मठ में मौजूद हैं। पीएम मोदी बेलूर मठ में छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि मैं पिश्चिम बंगाल सरकार का आभारी हूं, जिन्होंने प्रोटोकॉल तोड़कर बेलूर मठ में राम बिताने का मौका दिया। उन्होंने कहा कि मेरा अतीत बेलूर मठ से जुड़ा है। बेलूर मठ में मुझे सिखाया गया कि जनसेवा ही प्रभु सेवा है। पीएम मोदी ने कहा कि बेलूर मठ की धरती पर आना मेरे लिए तीर्थयात्रा करने जैसा है। उन्होंने कहा कि पिछली बार जब यहां आया था तो गुरुजी, स्वामी आत्मआस्थानंद जी के आशीर्वचन लेकर गया था। आज वो शारीरिक रूप से हमारे बीच विद्यमान नहीं हैं। लेकिन उनका काम, उनका दिखाया मार्ग, रामकृष्ण मिशन के रूप में सदा हमारा मार्ग प्रशस्त करता रहेगा।
गौरतलब है कि पीएम मोदी शनिवार शाम कोलकाता पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने पोर्ट ट्रस्ट की 150वीं सालगिरह के कार्यक्रम में हिस्सा लिया था।
बेलूर मठ में बोलते हुए पीएम मोदी ने कहा इस देश के युवाओं से भारत को ही नहीं दुनिया को भी बड़ी अपेक्षाएं हैं। नागरिकता कानून पर बोलते हुए पीएम मोदी ने कहा, भारत सरकार ने रातों रात कोई कानून नहीं बनाया है। किसी भी देश का कोई भी व्यक्ति जो भारत से आस्था रखता है वह भारत की नागरिक हो सकता है। पीएम मोदी ने कहा कि नागरिकता एक्ट किसी भी नागरिकता छीनता नहीं बल्कि नागरिकता देता है। उन्होंने कहा नागरिकता कानून को लेकर कुछ युवा गलतफहमी का शिकार हैं। युवाओं के मन में कुछ लोग भ्रम पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। पीएम मोदी ने कहा, हमने नागरिकता कानून का सरल किया।
बता दें कि हावड़ा जिले के बेलूर में स्थित इस मठ की स्थापना स्वामी विवेकानंद ने 1 मई 1897 में की थी। इस मठ को बनाने का उद्देश्य उन साधुओं-संन्यासियों को संगठित करना था जो रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं में गहरी आस्था रखते थे। इन साधुओं और संन्यासियों का काम था कि वह रामकृष्ण परमहंस के उपदेशों को जनसाधारण तक पहुंचाए और गरीब, दुखी और कमजोर लोगों की नि:स्वार्थ भाग से सेवा कर सकें। इस मठ में स्वामी विवेकानंद और उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस की स्मृति संजो कर रखी गई है।
गौरतलब है कि बेलूर मठ के स्वामी जी मुलाकात के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट करते हुए लिखा, मैं काफी उत्साहित हूं कि आज और कल का दिन मैं बंगाल में बिताऊंगा। मुझे रामकृष्ण मिशन में समय व्यतीत करते हुए खुशी हो रही है वो भी तब जब हम स्वामी विवेकानंद की जयंती मना रहे हैं। बेलूर मठ हमेशा से ही मेरे लिए काफी खास रहा है।
इसके बाद उन्होंने एक और ट्वीट कर रामकृष्ण मिशन के पूर्व अध्यक्ष स्वामी आत्मास्थानंद जी महाराज को याद किया। उन्होंने कहा-एक शून्यता होगी। जिस व्यक्ति ने मुझे जन सेवा ही प्रभु सेवा की सीख दी, वे स्वामी आत्मास्थानंद जी महाराज वहां नहीं होंगे। रामकृष्ण मिशन में उनकी उपस्थिति न होना अकल्पनीय है।
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 में हुआ था। स्वामी विवेकानन्द वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था।
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नई दिल्ली,महाराष्ट्र के नए पर्यावरण, पर्यटन और प्रोटोकॉल मंत्री आदित्य ठाकरे ने शनिवार को स्कूलों में छात्रों को विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के बारे में पढ़ाने के लिए भाजपा के अभियान पर सवाल उठाया। युवा शिवसेना नेता ने कानून के बारे में "जागरूकता फैलाने और सही गलत सूचना देने" के लिए मुंबई के माटुंगा इलाके के कुछ स्कूलों का दौरा करने किया था। इसके एक दिन बाद देश भर में विरोध प्रदर्शनों को हवा देने वाले सीएए कानून पर ट्वीट किया। आदित्य ठाकरे ने यह भी सुझाव दिया कि भारतीय जनता पार्टी या किसी अन्य राजनीतिक नेता को छात्रों की शिक्षा के लिए योगदान करने के लिए क्या करना चाहिए।

 आदित्य ठाकरे ने ट्वीट किया कि- 'स्कूलों में एक कानून को लेकर अभियान हास्यास्पद है। इस तरह के राजनीतिक प्रचार की आवश्यकता नहीं है, अगर कोई गलत इरादे नहीं है? स्कूलों का राजनीतिकरण बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए अगर राजनेता स्कूलों में बोलना चाहते हैं, तो लैंगिक समानता, हेलमेट, स्वच्छता पर बोलें! बता दें कि भाजपा सीएए के प्रावधानों के बारे में संदेह को दूर करने के लिए सभी रास्ते अपना रही है और एक डोर-टू-डोर अभियान शुरू चला रही है जो तीन करोड़ परिवारों तक अधिनियम के बारे में धारणाओं को स्पष्ट करेगा। शिवसेना ने लोकसभा में नागरिकता (संशोधन) विधेयक का समर्थन किया था, लेकिन पिछले साल दिसंबर में संसद में पेश होने पर नए कानून के लिए मतदान करने से परहेज करके राज्यसभा में यू-टर्न ले लिया।

मेरठ,उत्तर प्रदेश से तीन दशक से सत्ता से दूर कांग्रेस अच्छे दिन हासिल करने के लिए बेताब है। संगठन को मजबूती देने के लिए पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी सियासी गुगली फेंकने का कोई मौका नहीं गंवा रही हैं। वह जनता को पार्टी से जोड़ने के लिए अपने तरकश से हर तीर निकाल रही हैं। सीएए (नागरिकता संशोधन कानून) और एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) को लेकर गरम माहौल के बीच प्रियंका लगातार इस मुद्दे को लेकर यूपी में प्रभावितों से मिल रही हैं। उनकी आर्थिक मदद कर रही हैं। यही नहीं उनको साथ खड़े होने का भरोसा दे रही हैं। अब एक कदम आगे बढ़कर प्रियंका ने कहना शुरू कर दिया है कि 2022 में यूपी में कांग्रेस की सरकार सत्ता में आई तो वह सीएए और एनआरसी लागू नहीं होने देंगी।
सियासी जानकारों का मानना है कि कांग्रेस और प्रियंका की यह कोशिश छिटक गए जनाधार को हासिल करने खासकर मुस्लिमों को रिझाने की है। कांग्रेस का मत है कि अगर मुस्लिम उनके साथ जुड़ गया तब दलित और ब्राह्मण का जुड़ना आसान हो जाएगा। इसीलिए प्रियंका गांधी कानून व्यवस्था से लेकर प्रदेश के हर ज्वलंत मुद्दे पर जातीय बंधन को तोड़कर पहुंच रही हैं। वक्त-वक्त पर वह आवाज उठाने की कोशिश रही हैं। पार्टी नेताओं को जनता से जुड़े मुद्दे को लेकर सड़क पर उतरने का लगातार टारगेट भी सौंप रही हैं।

संगठन को धार देने की भी कोशिशें तेज
कांग्रेस महासचिव ने सांगठनिक ढांचे में बदलाव किया। पहले यूपी की जंबो कमिटी को खत्म कर जुझारू और जोशीले चंद युवाओं के हाथ में यूपी की कमान दी। उसके बाद जिला और शहर अध्यक्ष के पदों पर पचास साल से कम उम्र के नेताओं की ताजपोशी की। प्रदेश उपाध्यक्ष (वेस्ट यूपी प्रभारी) पंकज मलिक का कहना है कि अब जिला और कमिटियों को छोटा कर दिया गया है। शहर कमिटी में 21 और जिला कमिटी में 31 लोग रहेंगे। जनता के मुद्दों को लेकर कैसे लड़ाई लड़नी है, कैसे संगठन को चलाना है इसके लिए जिलाध्यक्षों को ट्रेनिंग दी जाएगी।


पार्टी लगातार जनता से जुड़ने में जुटी है। इसी के साथ महिलाओं को जोड़ने के लिए हर कमिटी में कम से कम तीन महिलाओं को रखना अनिवार्य कर दिया है। महिलाओं को बराबरी महसूस कराने के लिए पार्टी के कार्यक्रमों के मंचों पर भी हर हाल मे जगह देना अनिवार्य किया है। कांग्रेस की प्रदेश महासचिव शबाना खंडेलवाल के मुताबिक महिलाओं को पार्टी मुख्यधारा में ला रही है। बुजुर्ग नेताओं के अनुभव का फायदा लेने के लिए उनको भी कार्यक्रमों में बुलाने को कहा गया है।

कार्यकर्ताओं के बीच कम्युनिकेशन गैप दूर कर रहीं प्रियंका
सूत्रों के मुताबिक, लोकसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद समीक्षा बैठकों में सामने आया है कि आम चुनाव में हार का प्रमुख कारण पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच कम्युनिकेशन गैप होना रहा है। लिहाजा इसे दूर किया जाना जरूरी है। इसके बाद प्रियंका गांधी लगातार कई कई जिलों के नेताओं से दिल्ली और लखनऊ में लगातर मिल रही हैं। आगे की रणनीति पर राय-मशविरा कर रही हैं।

नई दिल्ली. कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने शुक्रवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को बेबस मुख्यमंत्री बताया। उन्होंने कहा- केजरीवाल जेएनयू हिंसा में घायल हुए छात्रों से मिलने भी नहीं जा पाए। थरूर ने केजरीवाल पर नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ मजबूती से न खड़े होने का आरोप भी लगाया।
थरूर ने कहा- केजरीवाल शायद चाहते हैं कि नागरिकता संशोधन कानून के विरोधी और समर्थक दोनों ही उनकी तरफ रहें, इसलिए उन्होंने इस मामले पर मजबूत स्टैंड नहीं लिया। यदि वे इस मामले पर कुछ बोल ही नहीं सकते तो आखिर लोगों को किस आधार पर केजरीवाल को वोट देना चाहिए।
केजरीवाल ने कभी शीला दीक्षित को बेबस बताया था- थरूर
थरूर ने दावा किया कि केजरीवाल ने कभी दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को बेबस मुख्यमंत्री बताया था। अब उन्हें खुद अपना ट्वीट पढ़ना चाहिए। क्या लोग ऐसा मजबूर मुख्यमंत्री चाहते हैं, जब उनके बच्चों को लाठीचार्ज का सामना करना पड़े तो मुख्यमंत्री उनसे मिलने भी न जाए।
‘केजरीवाल किसके आदेश सुन रहे हैं’
थरूर ने कहा- मैं नहीं जानता कि केजरीवाल किसके आदेश सुन रहे हैं। आखिर आपको किसने कहा कि छात्रों के साथ हुई हिंसा के खिलाफ न बोले, उनसे न मिले या फिर नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ स्पष्ट स्टैंड न लें? आप तो मुख्यमंत्री हैं। कोई दूसरा नहीं है जो आपको आदेश दे।
पुलिस ने जेएनयू में कोई कार्रवाई नहीं की- केजरीवाल
5 जनवरी को जेएनयू कैंपस में नकाबपोशों हमलावरों ने छात्रों-शिक्षकों पर रॉड और पत्थरों से हमला कर दिया था, जिसमें 30 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। दिल्ली पुलिस ने शुक्रवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस मामले में छात्रसंघ अध्यक्ष आइशी घोष समेत 9 छात्रों की पहचान उजागर की थी। वहीं, केजरीवाल ने जेएनयू हिंसा पर कहा था कि पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की क्योंकि उन्हें केंद्र से आदेश था कि हस्तक्षेप न करें।

हैदराबाद,हैदराबाद से सांसद और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि देश की 41 फीसदी संपत्ति सवर्णों के पास है जो कि उनकी आबादी का दोगुना है। ओवैसी ने यह भी कहा कि मुस्लिमों की आबादी 12 फीसदी है लेकिन उनकी संपत्ति मात्र 8 फीसदी है। ओवैसी ने आगे कहा कि आखिर यह पैसा कहां लगाया जाता है। इस पैसों को राजनीतिक दल का संरक्षण मिला हुआ है क्योंकि उन्हें चुनाव लड़ना होता है। ओवैसी ने एक इवेंट में चुनावी चंदे का मुद्दा उठाते हुए चुनाव आयोग से एनजीओ और कॉर्पोरेट द्वारा दिए जाने वाले डोनेशन पर बैन की मांग की।
ओवैसी ने एक इवेंट में कहा, 'एक प्रयोगसिद्ध डेटा कहता है कि हिंदू सवर्णों के पास देश की कुल 41 फीसदी संपत्ति है जो उनकी जनसंख्या 22.28 फीसदी से दोगुनी है। इसके बाद धन का अगला बड़ा हिस्सा ओबीसी समुदाय के पास है, जिनके पास 31 फीसदी संपप्ति जो कि उनकी आबादी 35. 66 फीसदी से कम है।'
'आखिर कहां लगाया जाता है पैसा?'
ओवैसी ने आगे कहा, 'मुस्लिमों के पास सिर्फ 8 फीसदी संपत्ति है जबकि उनकी जनसंख्या करीब 12 फीसदी है। वहीं एससी और एसटी के पास महज 11.3 फीसदी संपत्ति है जबकि उनकी जनसंख्या 27 फीसदी है।' ओवैसी ने आगे सवाल पूछते हुए कहा, 'यह पैसा कहां लगाया जाता है? पैसा कहीं और होता है जहां राजनीतिक दलों का सरंक्षण है क्योंकि उन्हें चुनाव लड़ना होता है।'
'इलेक्टॉरल बॉन्ड रहस्य है'
ओवैसी ने चुनावी चंदे पर सवाल दागते हए कहा, 'एमएनसी, कॉर्पोरेट और एनजीओ से मिलने वाले चंदे के जारी रहने से भारतीय लोकतंत्र एक रोज बुरा दौर देखेगा जब राजनीतिक दल सिर्फ कागज पर होंगे और कोई विशेष पूरी पार्टी को चला रहा होगा। उन्होंने आगे कहा, 'कोई एमएनसी और एनजीओ किसी पार्टी को चंदा क्यों देगा? पूरा इलेक्टॉरल बॉन्ड रहस्य है। देश को पता ही नहीं है कि कौन किसे पैसा दे रहा है।'

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