ईश्वर दुबे
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Bhilai
अयोध्या. रविवार को यहां होने वाली धर्म सभा से पहले विश्व हिंदू परिषद ने कहा है कि यह हमारी अाखिरी बैठक होगी। इसके बाद और सभाएं या प्रदर्शन नहीं होंगे। न ही किसी को समझाया जाएगा। सीधे मंदिर निर्माण होगा। विहिप के संगठन सचिव भोलेंद्र ने कहा, ‘‘हमने पहले 1950 से 1985 तक 35 साल अदालती फैसले का इंतजार किया। इसके बाद 1985 से 2010 तक का समय हाईकोर्ट को फैसला देने में लग गया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने त्वरित सुनवाई की अर्जी दो मिनट में ठुकरा दी। दुर्भाग्य है कि 33 साल से रामलला टेंट में हैं। अब और इंतजार नहीं होगा।’’ इस बीच, शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे शनिवार सुबह मुंबई से अयोध्या के लिए रवाना हो गए। उनकी पार्टी के कार्यकर्ता भी 2 स्पेशल ट्रेनों से अयोध्या पहुंच रहे हैं। उद्धव शनिवार को लक्ष्मण किले में संतों से मुलाकात करेंगे। शाम को सरयू आरती में शामिल होंगे। रविवार सुबह रामलला के दर्शन का कार्यक्रम है।
राम मंदिर के लिए धर्म सभा को पहली बार संघ का खुला समर्थन
रविवार को अयोध्या में धर्म सभा बुलाई गई है। विश्व हिंदू परिषद और कई हिंदू संगठन इसका हिस्सा हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पहली बार इसे ना केवल खुला समर्थन दिया है, बल्कि प्रबंधन का जिम्मा भी संभाला है। राम मंदिर को लेकर 1992 के बाद एक बार फिर अयोध्या में हिंदू संगठनों का जमावड़ा हुआ है। सियासत गर्म है, लेकिन अयोध्या शांत नजर आती है। राम मंदिर विवाद से जुड़े लोग कहते हैं- हमें डर नहीं है। 1992 जैसा कुछ दिखाई नहीं देता।
24-25 नवंबर के लिए क्या हैं हिंदू संगठनों की तैयारियां?
शिवसेना: उद्धव 2 बजे लक्ष्मण किला में संत आशीर्वाद सम्मेलन में शामिल होंगे। यहां राम जन्मभूमि न्यास अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास, भाजपा सांसद लल्लू सिंह, भाजपा विधायक वेद प्रकाश गुप्ता को भी बुलाया गया है। 2 विशेष ट्रेनें शिवसैनिकों को लेकर पहुंचेंगी। इनमें करीब 4 हजार शिवसैनिकों के आने की उम्मीद है। उद्धव की रैली को प्रशासन ने अनुमति नहीं दी है।
रविवार को धर्म सभा की तैयारियां पूरी हो गई हैं। भक्तमाल बगिया में होने कार्यक्रम का प्रबंधन इस बार संघ देख रहा है, विहिप सहयोग कर रही है। 100 बीघे के इस आयोजन स्थल पर देशभर से करीब 2 लाख लोगों के आने का अनुमान है। इनमें साधु, संत, विहिप-भाजपा-संघ के कार्यकर्ता होंगे। हालांकि, सभा के मंच पर साधु-संत बैठेंगे, कोई राजनेता नहीं।
प्रशासन ने क्या इंतजाम किए?
अयोध्या और आस-पास के जिलों की पुलिस बुलाई गई है। 70 हजार जवानों की तैनाती की गई है।
पीएसी की 48 कंपनियां, आरएएफ की 5 कंपनियां भी अयोध्या में रहेंगी। एटीएस कमांडो भी तैनात किए गए हैं।
पूरी अयोध्या पर ड्रोन कैमरों से नजर रखी जाएगी। खुफिया विभाग के अफसर और उनकी टीमें पहले से ही एक्शन में आ चुकी हैं।
शिवसेना, विहिप, संघ और हिंदू संगठनों का जमावड़ा क्यों?
वरिष्ठ पत्रकार रतन मणि लाल और संजय भटनागर कहते हैं- शिवसेना के लिए राम मंदिर मुद्दा टेस्ट है। वह महाराष्ट्र से बाहर भी निकलना चाहती है। मंदिर मुद्दे पर शिवसेना ने बढ़त हासिल कर ली तो 2019 के चुनावों में भाजपा के सामने शर्तें रखने की स्थिति में होगी। बाल ठाकरे के निधन के बाद अब तक भाजपा ने शिवसेना के मुद्दे उठाए भी और बढ़त भी हासिल की।
दोनों ने कहा- जहां तक बात धर्म सभा की है, तो ये भाजपा के लिए परीक्षा की तरह है। भाजपा यह देखना चाह रही है कि मंदिर मुद्दे में कितना दम है। 2019 चुनाव में ये कितना असर डालेगा और 5 राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव के नतीजे भी यह बता देंगे कि मंदिर मुद्दा और धर्म सभा का क्या असर रहा।
शिवसेना ने कहा- विहिप से टकराव नहीं
शिवसेना सांसद संजय राउत ने उद्धव के दौरे से एक दिन पहले कहा- शिवसैनिक अयोध्या आ रहे हैं, लेकिन भक्तों के तौर पर। उद्धव भी आ रहे हैं। हमारा विहिप और संघ से कोई टकराव नहीं है। बस, हमें धर्म सभा की जानकारी पहले से नहीं थी। हमारे मकसद में अंतर नहीं है, बस कार्यक्रम की तारीखें अलग हैं। विहिप के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंपत राय ने कहा- हम संजय राउत के बयान से सहमत हैं। शिवसेना से टकराव जैसी कोई चीज नहीं है।
अयोध्यावासियों का क्या कहना है?
तुलसी वाटिका के सामने भगवानों के पोस्टरों की दुकान लगाने वाले शाह आलम ने कहा- हमारी तो कमाई ही राम से है। हमें रामभक्तों से कोई डर नहीं। उन्हीं के साथी जुबेर का कहना है कि यहां के लोगों से कोई डर नहीं। बाहरी लोगों से डर लगता है, जो राम के दर्शन नहीं.. राजनीति करने आते हैं।
बाबरी मस्जिद के पक्षकार हाजी महबूब ने कहा कि 1992 में हम अयोध्या में थे। अभी उस तरह का माहौल नहीं है। डर जैसी कोई बात नहीं है। अयोध्या में मुस्लिम उतने ही सुरक्षित हैं, जितना कि हिंदू। राम जन्मभूमि-बाबरी विवाद में मुस्लिम पक्षकार इकबाल अंसारी ने अपनी सुरक्षा बढ़ाए जाने पर कहा- दूसरे मुस्लिमों को भी सुरक्षा दी जानी चाहिए। राम मंदिर पर सियासत गरमाने के बीच शुक्रवार को कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर करीब 6 लाख श्रद्धालुओं ने अयोध्या में स्नान किया। अयोध्या की मस्जिदों में नमाज भी पढ़ी गई। अयोध्या वैसी ही थी, जैसी आम दिनों में रहती है। स्नान के बाद लोगों ने हनुमानगढ़ी में दर्शन किए और फिर राम लला के दर्शनों को गए। भीड़ की वजह से जगह-जगह बैरिकेडिंग की गई है, लेकिन लोगों से पूछने पर उन्होंने कहा- डर जैसी कोई बात नहीं है।
नई दिल्ली. तेलंगाना में मतदान की तारीख नजदीक आने के साथ साथ एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर तेज होता जा रहा है। तमाम राजनीतिक दल एक दूसरे पर तीखे हमले बोल रहे हैं। एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने आज भारतीय जनता पार्टी पर गाय के नाम पर राजनीति करने का आरोप लगाते हुए जमकर हमला बोला। ओवैसी ने कहा, भाजपा ने तेलंगाना चुनाव को लेकर अपने घोषणापत्र में कहा है कि वह लोगों में 1 लाख गायें बांटेगी। क्या वे एक गाय मुझे भी देंगे? मैं वादा करता हूं कि मैं उसे पूरे सम्मान के साथ रखूंगा। लेकिन सवाल है कि क्या वो मुझे गाय देंगे? ये कोई हंसने वाली बात नहीं है, इस बारे में जरा सोचिए। के चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश के बाद छह सितंबर को 119 सदस्यीय विधानसभा भंग कर दी गई थी, जिस कारण चुनाव समय से पूर्व कराए जा रहे हैं। यहां कांग्रेस-टीडीपी और कुछ अन्य छोटे दल मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। कार्यवाहक मुख्यमंत्री और टीआरएस प्रमुख के चंद्रशेखर राव के मेडक जिले में गजवेल विधानसभा सीट से 14 नवंबर को नामांकन पत्र दाखिल करने की उम्मीद है। टीआरएस ने पहले ही 107 विधानसभा सीटों के लिये अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। इनमें से 105 उम्मीदवारों की घोषणा विधानसभा भंग किए जाने के कुछ ही समय बाद कर दी गई थी और पार्टी ने अपना चुनाव प्रचार शुरू कर दिया था।
नई दिल्ली. भारत और मोरक्को ने एक समझौते पर दस्तखत किए हैं। इस समझौते के तहत दोनों देश आपराधिक मामलों में एक दूसरे की सहायता करने और जरूरत पड़ने पर कानूनी मदद प्रदान करेंगे। गृह मंत्रालय ने इस बात की जानकारी दी। भारत की ओर से केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू और मोरक्को की ओर से न्याय मंत्री मोहम्मद औजर ने आपराधिक मामलों में आपसी कानूनी सहयोग पर समझौता किया।
गृह मंत्रालय के बयान में कहा गया कि समझौते से मोरक्को के साथ द्विपक्षीय सहयोग मजबूत होगा। अपराधों की रोकथाम, जांच और मुकदमे के लिए कानूनी ढांचा तैयार करने में मदद मिलने के साथ ही आतंकवादी कृत्यों को वित्तीय मदद का पता लगाने, रोकने और इसे जब्त करने में सहायता भी मिलेगी। बयान में कहा गया है कि दोनों मंत्रियों ने संगठित अपराध और आतंकवाद से पैदा होने वाली चुनातियों का संयुक्त तौर पर मुकाबला करने के प्रति संकल्प जताया ।
लखनऊ. उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार राम की नगरी अयोध्या और कृष्ण की नगरी मथुरा को तीर्थ स्थान घोषित कर वहां मांस-मदिरा की बिक्री तथा सेवन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने पर गंभीरता से विचार कर रही है । उप्र सरकार के प्रवक्ता और प्रदेश के ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने सोमवार को 'भाषा' से विशेष बातचीत में कहा 'साधु संतों और करोड़ों भक्तों की मांग थी कि राम और कृष्ण की नगरी में मांस-मदिरा की बिक्री और सेवन पर प्रतिबंध लगाया जाये । उनकी मांग का सम्मान करते हुये प्रदेश सरकार अयोध्या की चौदह कोसी परिक्रमा के आसपास के इलाके और मथुरा में भगवान कृष्ण के जन्म स्थान के आसपास के इलाके को तीर्थ स्थान घोषित करने की योजना पर काम कर रही है। जब ये दोनों स्थान तीर्थ स्थान घोषित हो जायेंगे तो यहां स्वत: ही मांस-मदिरा की बिक्री पर प्रतिबंध लग जायेगा । बिना तीर्थ स्थान घोषित किये इन दोनों स्थानों पर मांस-मदिरा पर प्रतिबंध लगाना संभव नही है ।'
उन्होंने कहा 'अयोध्या और मथुरा में मांस-मदिरा पर प्रतिबंध की मांग को सरकार ने गंभीरता से लिया है और इन दोनों जगहों को तीर्थ स्थान घोषित करने की योजना पर काम किया जा रहा है।’’ ऊर्जा मंत्री ने कहा कि अयोध्या में चौदह कोसी परिक्रमा का इलाका, मथुरा में भगवान कृष्ण के जन्म स्थान के आसपास के इलाके को तीर्थ स्थान घोषित कर यहां पर मांस-मदिरा पर प्रतिबंध लगाये जाने की योजना है ।
इंदिरा गांधी एक अजीम शख्यियत थीं। उनके भीतर गजब की राजनीतिक दूरदर्शिता थी। लालबहादुर शास्त्री के बाद प्रधानमंत्री बनीं इंदिरा को शुरू में 'गूंगी गुड़िया' की उपाधि दी गई थी, लेकिन 1966 से 1977 और 1980 से 1984 के दौरान प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा ने अपने साहसी फैसलों के कारण साबित कर दिया कि वे एक बुलंद शख्यिसत की मालिक हैं।
इंदिरा गांधी ने परिणामों की परवाह किए बिना कई बार ऐसे साहसी फैसले लिए, जिनका पूरे देश को लाभ मिला और उनके कुछ ऐसे भी निर्णय रहे जिनका उन्हें राजनीतिक खामियाजा भुगतना पड़ा लेकिन उनके प्रशंसक और विरोधी, सभी यह मानते हैं कि वे कभी फैसले लेने में पीछे नहीं रहती थीं। जनता की नब्ज समझने की उनमें विलक्षण क्षमता थी।
प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू की पुत्री इंदिरा का जन्म इलाहाबाद में 19 नवंबर 1917 को हुआ। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उन्होंने अपनी वानर सेना बनाई और सेनानियों के साथ काम किया। जब वे लंदन के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ रही थीं तो वहां आजादी समर्थक ‘इंडिया लीग’ की सदस्य बनीं।
भारत लौटने पर उनका विवाह फिरोज गांधी से हुआ। वर्ष 1959 में ही उन्हें कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया। नेहरू के निधन के बाद जब लालबहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने तो इंदिरा ने उनके अनुरोध पर चुनाव लड़ा और सूचना तथा प्रसारण मंत्री बनीं।
उनके समकालीन नेताओं के अनुसार बैंकों का राष्ट्रीयकरण, पूर्व रजवाड़ों के प्रिवीपर्स समाप्त करना, कांग्रेस सिंडिकेट से विरोध मोल लेना, बांग्लादेश के गठन में मदद देना और अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को राजनयिक दांव-पेंच में मात देने जैसे तमाम कदम इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व में मौजूद निडरता के परिचायक थे।
साथ ही आपातकाल की घोषणा, लोकनायक जयप्रकाश नारायण तथा प्रमुख विपक्षी नेताओं को जेल में डालना, ऑपरेशन ब्लू स्टार जैसे कुछ निर्णयों के कारण उन्हें काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। उड़ीसा में एक जनसभा में गांधी पर भीड़ ने पथराव किया। एक पत्थर उनकी नाक पर लगा और खून बहने लगा।
इस घटना के बावजूद इंदिरा गांधी का हौसला कम नहीं हुआ। वे वापस दिल्ली आईं। नाक का उपचार करवाया और तीन चार दिन बाद वे अपनी चोटिल नाक के साथ फिर चुनाव प्रचार के लिए उड़ीसा पहुंच गईं। उनके इस हौसलों के कारण कांग्रेस को उड़ीसा के चुनाव में काफी लाभ मिला।
एक और वाकया 1973 का है। इंदिराजी कांग्रेस कार्यकर्ताओं के एक सम्मेलन में भाग लेने इलाहाबाद आईं थीं। उनकी सभा के दौरान विपक्षी नेताओं ने जबर्दस्त विरोध प्रदर्शन किया और उन्हें काले झंडे दिखाए गए। लेकिन उस जबर्दस्त विरोध प्रदर्शन से इंदिराजी के चेहरे पर कोई शिकन नहीं आई।
अपने संबोधन में विरोधियों को शांत करते हुए उन्होंने सबसे पहले कहा कि ‘मैं जानती हूं कि आप यहां इसलिए हैं क्योंकि जनता को कुछ तकलीफें हैं, लेकिन हमारी सरकार इस दिशा में काम कर रही है। इंदिराजी खामियाजे की परवाह किए बगैर फैसले करती थीं।
आपातकाल लगाने का काफी विरोध हुआ और उन्हें नुकसान उठाना पड़ा लेकिन चुनाव में वे फिर चुनकर आईं। ऐसा चमत्कार सिर्फ वे ही कर सकती थीं। इंदिरा की राजनीतिक छवि को आपातकाल की वजह से गहरा धक्का लगा। इसी का नतीजा रहा कि 1977 में देश की जनता ने उन्हें नकार दिया, हालांकि कुछ वर्षों बाद ही फिर से सत्ता में उनकी वापसी हुई।
उनके लिए 1980 का दशक खालिस्तानी आतंकवाद के रूप में बड़ी चुनौती लेकर आया। ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद वे सिख अलगाववादियों के निशाने पर थीं। 31 अक्टूबर 1984 को उनके दो सिख अंगरक्षकों ने ही उनकी हत्या कर दी। गरीबी मुक्त भारत इंदिरा का एक सपना था। जो आज भी साकार नहीं हो पाया है।