ईश्वर दुबे
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Bhilai
नई दिल्ली. देश में हो रहे छात्रों के विरोध, नागरिकता कानून, एनआरसी और मौजूदा राजनीतिक हालात पर चर्चा के लिए विपक्षी पार्टियां सोमवार को 2 बजे बैठक करेंगी। इसमें बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और बसपा प्रमुख मायावती शामिल नहीं होंगी। आम आदमी पार्टी ने भी मीटिंग में शामिल न होने का ऐलान किया है।
ममता बनर्जी ने पिछले हफ्ते ट्रेड यूनियन की स्ट्राइक के दौरान वामदलों और तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के बीच हुई झड़पों की वजह से घोषणा की थी कि वह विपक्षी बैठक में शामिल नहीं होंगी। उन्होंने कहा था कि मैंने ही विपक्ष को बैठक का विचार दिया। राज्य में जो हुआ, इसकी वजह से मेरे लिए अब बैठक में शामिल होना संभव नहीं है। एनआरसी-सीएए के खिलाफ सबसे पहले मैंने आंदोलन शुरू किया। सीएए-एनआरसी के नाम पर वामपंथी और कांग्रेस जो कर रहे हैं, वह आंदोलन नहीं, बल्कि बर्बरता है।
मायावती ने प्रियंका की पीड़ित परिवारों से मुलाकात को ड्रामा बताया था
मायावती ने भी हाल ही में राजस्थान में कोटा के एक अस्पताल में बच्चों की मौत के आंकड़ों को लेकर सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा पर हमला किया था। उन्होंने कहा था कि अगर कांग्रेस महासचिव बच्चों को खोने वाली माताओं से मिलने के लिए कोटा नहीं जाएंगी, तो उत्तर प्रदेश में पीड़ित परिवारों के साथ उनकी मुलाकात को राजनीतिक हित और ड्रामा ही माना जाएगा।
सोनिया ने सीएए को विभाजनकारी कानून बताया था
कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी ने शनिवार को नागरिकता कानून को एक भेदभावपूर्ण और विभाजनकारी कानून करार दिया था, जिसका उद्देश्य लोगों को धार्मिक आधार पर बांटना है। पार्टी ने सीएए को तत्काल वापस लेने और एनपीआर की प्रक्रिया को रोकने की मांग की थी।
कई मुख्यमंत्रियों ने कहा- वे अपने राज्यों में सीएए-एनआरसी लागू नहीं करेंगे
पिछले महीने सीएए को लेकर विरोध कर रहे दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों पर पुलिस ने कार्रवाई की थी। इसके बाद देशभर के यूनिवर्सिटी में प्रदर्शन शुरू हो गए थे। इसमें राजनीतिक दल भी शामिल हो गए थे। भाजपा ने सीएए को लेकर कांग्रेस पर लोगों को गुमराह करने का आरोप लगाया है। ममता बनर्जी और कांग्रेस शासित राज्यों में कई मुख्यमंत्रियों ने कहा है कि वे अपने राज्यों में सीएए या एनआरसी की अनुमति नहीं देंगे। उधर, केरल के विधानसभा में सीएए को राज्य में पारित नहीं किए जाने संबंधी प्रस्ताव भी पास किया गया था।
नई दिल्ली. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का कार्यकाल पिछली जनवरी में ही समाप्त हो गया था. लोकसभा चुनाव को करीब देख शाह से पद पर बने रहने को कहा गया था. आम चुनाव और इसके बाद शाह के बतौर गृह मंत्री मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद जेपी नड्डा कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए थे. अब चर्चा है कि जेपी नड्डा ही पार्टी के अगले अध्यक्ष होंगे. वह फरवरी में पार्टी की बागडोर संभाल सकते हैं.
सूत्रों के अनुसार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर जेपी नड्डा की ताजपोशी 19 फरवरी को होगी. माना जा रहा है कि 19 फरवरी तक भाजपा की 80 फीसदी से अधिक राज्य इकाइयों के चुनाव की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी. इसके बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होगा. सूत्रों की मानें तो जेपी नड्डा का 11वां अध्यक्ष बनना तय माना जा रहा है.
गौरतलब है कि इस समय भाजपा में संगठन के चुनाव चल रहे हैं. पार्टी के संविधान के मुताबिक 50 फीसदी से अधिक राज्य इकाइयों के चुनाव हो जाने के बाद ही राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का चुनाव कराया जा सकता है. बता दें कि जेपी नड्डा छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय हैं. वे छात्र जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े और संगठन में विभिन्न पदों पर भी रहे.
नड्डा पहली बार साल 1993 में हिमाचल प्रदेश की विधानसभा के सदस्य चुने गए थे. इसके बाद वे प्रदेश सरकार में मंत्री भी रहे और सांसद रहते केंद्र सरकार में भी मंत्री बने. नड्डा मोदी सरकार में भी स्वास्थ्य जैसा महत्वपूर्ण विभाग संभाल चुके हैं. अमित शाह के मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद उन्हें पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया और शाह राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर बने रहे, लेकिन कई राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में अपना पुराना प्रदर्शन बरकरार नहीं रख पाई.
भाजपा को हाल ही में हुए झारखंड के विधानसभा चुनाव में हार मिली, वहीं महाराष्ट्र की सत्ता भी हाथ से फिसल गई. हरियाणा में भी पार्टी को सीटों का नुकसान उठाना पड़ा और जोड़- तोड़ कर सरकार बनी. पार्टी के प्रदर्शन में आई इस गिरावट के पीछे पूर्णकालिक अध्यक्ष की कमी और शाह का ध्यान मंत्रिपरिषद की जिम्मेदारी की ओर बंट जाने को भी वजह माना जाता रहा है.
संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को लेकर हो रहे प्रदर्शनों और उसके कारण विभिन्न विश्वविद्यालयों में हो रही हिंसा के मद्देनजर सोमवार को विपक्षी दलों की बैठक बुलाई गई है। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने वाम मोर्चा सहित सभी विपक्षी दलों की बैठक बुलाई है। माना जा रहा है कि इस बैठक में तृणमूल कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) संभवत: हिस्सा नहीं लेगी।बसपा सूत्रों ने बताया कि पार्टी संभवत: बैठक में किसी प्रतिनिधि को नहीं भेजेगी। सूत्रों ने बताया कि कांग्रेस के साथ बसपा के मतभेद को इस कदम का कारण बताया जा रहा है। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले ही इस बैठक में आने से स्पष्ट इनकार कर चुकी हैं। सीएए के खिलाफ जब विपक्षी दल राष्ट्रपति के पास गए थे, उस वक्त भी बसपा उनके साथ नहीं थी। हालांकि पार्टी ने बाद में इस मुद्दे को लेकर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से भेंट की थी।
मायावती ने बताया- बैठक से क्यों किया किनारा
मायावती ने ट्वीट कर कहा कि जैसा कि विदित है कि राजस्थान कांग्रेसी सरकार को बसपा का बाहर से समर्थन दिये जाने पर भी, इन्होंने दूसरी बार वहां बसपा के विधायकों को तोड़कर उन्हें अपनी पार्टी में शामिल करा लिया है जो यह पूर्णतया विश्वासघाती है। ऐसे में कांग्रेस के नेतृत्व में आज विपक्ष की बुलाई गई बैठक में बसपा का शामिल होना, यह राजस्थान में पार्टी के लोगों का मनोबल गिराने वाला होगा। इसलिए बसपा इनकी इस बैठक में शामिल नहीं होगी।
उन्होंने कहा कि वैसे भी बसपा सीएए और एनआरसी आदि के विरोध में है। केन्द्र सरकार से पुन अपील है कि वह इस विभाजनकारी व असंवैधानिक कानून को वापिस ले। साथ ही, जेएनयू व अन्य शिक्षण संस्थानों में भी छात्रों का राजनीतिकरण करना यह अति-दुर्भाग्यपूर्ण है।
बैठक में आम आदमी पार्टी भी नहीं होगी शामिल
नागरिकता कानून और सीएए पर बुलाई गई विपक्ष की बैठक से आम आदमी पार्टी ने भी किनारा कर लिया है। पार्टी सूत्रों के अनुसार, कोई भी नेता इस बैठक में हिस्सा नहीं लेगा।
विपक्षी एकजुटता में फूट
वहीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गुरुवार को साफ शब्दों में कहा था कि अगर जरुरत पड़ी तो वह अकेले लड़ेंगी। सदन में ही उन्होंने विश्वविद्यालय परिसरों में हिंसा और सीएए के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा 13 जनवरी को बुलाई गई विपक्षी दलों की बैठक के बहिष्कार की घोषणा भी की।
बनर्जी बुधवार को ट्रेड यूनियनों के बंद के दौरान राज्य में वामपंथी और कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा की गई कथित हिंसा से भी नाराज हैं। बंद केंद्र सरकार की गलत आर्थिक नीतियों, संशोधित नागरिकता कानून और पूरे देश में प्रस्तावित एनआरसी के विरोध में आहूत किया गया था। हालांकि, कांग्रेस का कहना है कि बनर्जी को विपक्ष की बैठक में आने का न्योता दिया गया था, लेकिन आना, नहीं आना उन पर निर्भर करता है।
ममता के किसी फैसले की जानकारी नहीं: कांग्रेस
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा, ‘मुझे ममता बनर्जी के किसी फैसले की जानकारी नहीं है। जहां तक मुझे पता है, कांग्रेस पार्टी ने सीएए और एनआरसी के खिलाफ संसद के भीतर और बाहर आवाज उठाई है और विपक्षी नेताओं को 13 जनवरी की बैठक में आने का न्योता दिया है। वह आएंगी या नहीं इस पर मैं कुछ नहीं कह सकता।’
ट्रेड यूनियनों के 24 घंटे के राष्ट्रव्यापी बंद के दौरान पश्चिम बंगाल में हिंसा और आगजनी की घटनाएं हुईं। प्रदर्शनकारियों ने रेल और सड़क यातायात बाधित करने करने का भी प्रयास किया।
बनर्जी ने कहा कि वामपंथियों और कांग्रेस के दोहरे मानदंड को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। विधानसभा द्वारा सीएए के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किए जाने के बाद बनर्जी ने कहा, ‘मैंने नई दिल्ली में 13 जनवरी को सोनिया गांधी द्वारा बुलाई गई बैठक का बहिष्कार करने का निर्णय लिया है क्योंकि मैं वाम और कांग्रेस द्वारा कल (बुधवार) पश्चिम बंगाल में की गई हिंसा का समर्थन नहीं करती हूं।’ उन्होंने कहा कि चूंकि सदन सितंबर, 2019 में ही पूरे देश में प्रस्तावित एनआरसी के खिलाफ प्रस्ताव पारित कर चुका है ऐसे में नए सिरे से प्रस्ताव लाने की जरूरत नहीं है।
कांग्रेस और वामपंथियों की ओर से दबाव बनाए जाने पर उन्होंने कहा, ‘आप लोग पश्चिम बंगाल में एक नीति अपनाते हैं और दिल्ली में एकदम विपरीत नीति अपनाते हैं। मैं आपके साथ नहीं जुड़ना चाहती। अगर जरुरत पड़ी तो मैं अकेले लड़ने को तैयार हूं।’
पटना. जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने सीएए और एनआरसी का लगातार विरोध करने के लिए राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को धन्यवाद दिया है। पीके ने ट्वीट कर लिखा कि सीएए और एनआरसी को स्वीकार नहीं करने के लिए मैं कांग्रेस नेतृत्व को धन्यवाद देता हूं। साथ ही सभी को यह आश्वस्त करता हूं कि बिहार में सीएए और एनआरसी लागू नहीं होगा।
बता दें कि एनडीए के अंदर प्रशांत किशोर ऐसे पहले नेता हैं जिन्होंने नागरिकता संशोधन कानून की मुखालफत की थी। जदयू द्वारा संसद में इस बिल के समर्थन के बावजूद पीके इसके खिलाफ लगातार आवाज उठाते रहे। हालांकि, नीतीश से मुलाकात के बाद सीएए पर उनके तेवर नर्म पड़ गए लेकिन उन्होंने एनआरसी का विरोध करना जारी रखा। रविवार को एक बार फिर पीके ने अपने ट्वीट में सीएए का जिक्र किया है। प्रशांत किशोर एनआरसी पर लगातार केंद्र सरकार को घेरने में जुटे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी साफ कर चुके हैं कि वे बिहार में एनआरसी लागू नहीं करेंगे। जदयू महासचिव केसी त्यागी ने कहा है कि जिस तरह देशभर में सीएए और एनआरसी का विरोध हो रहा है, ऐसे में भाजपा को जल्द एनडीए की बैठक बुलानी चाहिए।
नईदिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारों के नाम तय करने के लिए भाजपा की शनिवार सायं प्रदेश कार्यालय पर चुनाव समिति की बैठक हुई, जिसमें सभी 70 विधानसभा सीटों के लिए उम्मीदवारों के नामों पर चर्चा हुई।
कमेटी ने स्क्रीनिंग कर हर सीट पर दो-दो मजबूत दावेदारों की लिस्ट तैयार की है। इसमें से वरीयता क्रम में नामों को रखते हुए सूची केंद्रीय चुनाव समिति को जाएगी, जिसके बाद पार्टी उम्मीदवारों की लिस्ट घोषित करेगी।
राज्य चुनाव समिति की बैठक में केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, डॉ. हर्षवर्धन, केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्याम जाजू, प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी, राष्ट्रीय महासचिव अनिल जैन, संगठन मंत्री सिद्धार्थन प्रमुख रूप से मौजूद रहे।
भाजपा सूत्रों ने बताया कि 13 या 14 जनवरी को भाजपा के राष्ट्रीय कार्यालय पर केंद्रीय चुनाव समिति और संसदीय बोर्ड की बैठक होगी। जिसमें राज्य चुनाव समति की ओर से भेजे गए उम्मीदवारों के नाम पर मुहर लगने के बाद रणनीति के हिसाब से पार्टी संबंधित तिथियों पर सूची जारी करेगी।
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सीएए के विरोध पर बोले पीएम
कोलकाता। आज स्वामी विवेकानंद की जयंती है। इसे राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर पर मनाया जाता है। वहीं, इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोलकाता में हुगली नदी के किनारे स्थित रामकृष्ण मिशन के मुख्यालय बेलूर मठ में मौजूद हैं। पीएम मोदी बेलूर मठ में छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि मैं पिश्चिम बंगाल सरकार का आभारी हूं, जिन्होंने प्रोटोकॉल तोड़कर बेलूर मठ में राम बिताने का मौका दिया। उन्होंने कहा कि मेरा अतीत बेलूर मठ से जुड़ा है। बेलूर मठ में मुझे सिखाया गया कि जनसेवा ही प्रभु सेवा है। पीएम मोदी ने कहा कि बेलूर मठ की धरती पर आना मेरे लिए तीर्थयात्रा करने जैसा है। उन्होंने कहा कि पिछली बार जब यहां आया था तो गुरुजी, स्वामी आत्मआस्थानंद जी के आशीर्वचन लेकर गया था। आज वो शारीरिक रूप से हमारे बीच विद्यमान नहीं हैं। लेकिन उनका काम, उनका दिखाया मार्ग, रामकृष्ण मिशन के रूप में सदा हमारा मार्ग प्रशस्त करता रहेगा।
गौरतलब है कि पीएम मोदी शनिवार शाम कोलकाता पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने पोर्ट ट्रस्ट की 150वीं सालगिरह के कार्यक्रम में हिस्सा लिया था।
बेलूर मठ में बोलते हुए पीएम मोदी ने कहा इस देश के युवाओं से भारत को ही नहीं दुनिया को भी बड़ी अपेक्षाएं हैं। नागरिकता कानून पर बोलते हुए पीएम मोदी ने कहा, भारत सरकार ने रातों रात कोई कानून नहीं बनाया है। किसी भी देश का कोई भी व्यक्ति जो भारत से आस्था रखता है वह भारत की नागरिक हो सकता है। पीएम मोदी ने कहा कि नागरिकता एक्ट किसी भी नागरिकता छीनता नहीं बल्कि नागरिकता देता है। उन्होंने कहा नागरिकता कानून को लेकर कुछ युवा गलतफहमी का शिकार हैं। युवाओं के मन में कुछ लोग भ्रम पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। पीएम मोदी ने कहा, हमने नागरिकता कानून का सरल किया।
बता दें कि हावड़ा जिले के बेलूर में स्थित इस मठ की स्थापना स्वामी विवेकानंद ने 1 मई 1897 में की थी। इस मठ को बनाने का उद्देश्य उन साधुओं-संन्यासियों को संगठित करना था जो रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं में गहरी आस्था रखते थे। इन साधुओं और संन्यासियों का काम था कि वह रामकृष्ण परमहंस के उपदेशों को जनसाधारण तक पहुंचाए और गरीब, दुखी और कमजोर लोगों की नि:स्वार्थ भाग से सेवा कर सकें। इस मठ में स्वामी विवेकानंद और उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस की स्मृति संजो कर रखी गई है।
गौरतलब है कि बेलूर मठ के स्वामी जी मुलाकात के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट करते हुए लिखा, मैं काफी उत्साहित हूं कि आज और कल का दिन मैं बंगाल में बिताऊंगा। मुझे रामकृष्ण मिशन में समय व्यतीत करते हुए खुशी हो रही है वो भी तब जब हम स्वामी विवेकानंद की जयंती मना रहे हैं। बेलूर मठ हमेशा से ही मेरे लिए काफी खास रहा है।
इसके बाद उन्होंने एक और ट्वीट कर रामकृष्ण मिशन के पूर्व अध्यक्ष स्वामी आत्मास्थानंद जी महाराज को याद किया। उन्होंने कहा-एक शून्यता होगी। जिस व्यक्ति ने मुझे जन सेवा ही प्रभु सेवा की सीख दी, वे स्वामी आत्मास्थानंद जी महाराज वहां नहीं होंगे। रामकृष्ण मिशन में उनकी उपस्थिति न होना अकल्पनीय है।
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 में हुआ था। स्वामी विवेकानन्द वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था।
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नई दिल्ली,महाराष्ट्र के नए पर्यावरण, पर्यटन और प्रोटोकॉल मंत्री आदित्य ठाकरे ने शनिवार को स्कूलों में छात्रों को विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के बारे में पढ़ाने के लिए भाजपा के अभियान पर सवाल उठाया। युवा शिवसेना नेता ने कानून के बारे में "जागरूकता फैलाने और सही गलत सूचना देने" के लिए मुंबई के माटुंगा इलाके के कुछ स्कूलों का दौरा करने किया था। इसके एक दिन बाद देश भर में विरोध प्रदर्शनों को हवा देने वाले सीएए कानून पर ट्वीट किया। आदित्य ठाकरे ने यह भी सुझाव दिया कि भारतीय जनता पार्टी या किसी अन्य राजनीतिक नेता को छात्रों की शिक्षा के लिए योगदान करने के लिए क्या करना चाहिए।
आदित्य ठाकरे ने ट्वीट किया कि- 'स्कूलों में एक कानून को लेकर अभियान हास्यास्पद है। इस तरह के राजनीतिक प्रचार की आवश्यकता नहीं है, अगर कोई गलत इरादे नहीं है? स्कूलों का राजनीतिकरण बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए अगर राजनेता स्कूलों में बोलना चाहते हैं, तो लैंगिक समानता, हेलमेट, स्वच्छता पर बोलें! बता दें कि भाजपा सीएए के प्रावधानों के बारे में संदेह को दूर करने के लिए सभी रास्ते अपना रही है और एक डोर-टू-डोर अभियान शुरू चला रही है जो तीन करोड़ परिवारों तक अधिनियम के बारे में धारणाओं को स्पष्ट करेगा। शिवसेना ने लोकसभा में नागरिकता (संशोधन) विधेयक का समर्थन किया था, लेकिन पिछले साल दिसंबर में संसद में पेश होने पर नए कानून के लिए मतदान करने से परहेज करके राज्यसभा में यू-टर्न ले लिया।
मेरठ,उत्तर प्रदेश से तीन दशक से सत्ता से दूर कांग्रेस अच्छे दिन हासिल करने के लिए बेताब है। संगठन को मजबूती देने के लिए पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी सियासी गुगली फेंकने का कोई मौका नहीं गंवा रही हैं। वह जनता को पार्टी से जोड़ने के लिए अपने तरकश से हर तीर निकाल रही हैं। सीएए (नागरिकता संशोधन कानून) और एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) को लेकर गरम माहौल के बीच प्रियंका लगातार इस मुद्दे को लेकर यूपी में प्रभावितों से मिल रही हैं। उनकी आर्थिक मदद कर रही हैं। यही नहीं उनको साथ खड़े होने का भरोसा दे रही हैं। अब एक कदम आगे बढ़कर प्रियंका ने कहना शुरू कर दिया है कि 2022 में यूपी में कांग्रेस की सरकार सत्ता में आई तो वह सीएए और एनआरसी लागू नहीं होने देंगी।
सियासी जानकारों का मानना है कि कांग्रेस और प्रियंका की यह कोशिश छिटक गए जनाधार को हासिल करने खासकर मुस्लिमों को रिझाने की है। कांग्रेस का मत है कि अगर मुस्लिम उनके साथ जुड़ गया तब दलित और ब्राह्मण का जुड़ना आसान हो जाएगा। इसीलिए प्रियंका गांधी कानून व्यवस्था से लेकर प्रदेश के हर ज्वलंत मुद्दे पर जातीय बंधन को तोड़कर पहुंच रही हैं। वक्त-वक्त पर वह आवाज उठाने की कोशिश रही हैं। पार्टी नेताओं को जनता से जुड़े मुद्दे को लेकर सड़क पर उतरने का लगातार टारगेट भी सौंप रही हैं।
संगठन को धार देने की भी कोशिशें तेज
कांग्रेस महासचिव ने सांगठनिक ढांचे में बदलाव किया। पहले यूपी की जंबो कमिटी को खत्म कर जुझारू और जोशीले चंद युवाओं के हाथ में यूपी की कमान दी। उसके बाद जिला और शहर अध्यक्ष के पदों पर पचास साल से कम उम्र के नेताओं की ताजपोशी की। प्रदेश उपाध्यक्ष (वेस्ट यूपी प्रभारी) पंकज मलिक का कहना है कि अब जिला और कमिटियों को छोटा कर दिया गया है। शहर कमिटी में 21 और जिला कमिटी में 31 लोग रहेंगे। जनता के मुद्दों को लेकर कैसे लड़ाई लड़नी है, कैसे संगठन को चलाना है इसके लिए जिलाध्यक्षों को ट्रेनिंग दी जाएगी।
पार्टी लगातार जनता से जुड़ने में जुटी है। इसी के साथ महिलाओं को जोड़ने के लिए हर कमिटी में कम से कम तीन महिलाओं को रखना अनिवार्य कर दिया है। महिलाओं को बराबरी महसूस कराने के लिए पार्टी के कार्यक्रमों के मंचों पर भी हर हाल मे जगह देना अनिवार्य किया है। कांग्रेस की प्रदेश महासचिव शबाना खंडेलवाल के मुताबिक महिलाओं को पार्टी मुख्यधारा में ला रही है। बुजुर्ग नेताओं के अनुभव का फायदा लेने के लिए उनको भी कार्यक्रमों में बुलाने को कहा गया है।
कार्यकर्ताओं के बीच कम्युनिकेशन गैप दूर कर रहीं प्रियंका
सूत्रों के मुताबिक, लोकसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद समीक्षा बैठकों में सामने आया है कि आम चुनाव में हार का प्रमुख कारण पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच कम्युनिकेशन गैप होना रहा है। लिहाजा इसे दूर किया जाना जरूरी है। इसके बाद प्रियंका गांधी लगातार कई कई जिलों के नेताओं से दिल्ली और लखनऊ में लगातर मिल रही हैं। आगे की रणनीति पर राय-मशविरा कर रही हैं।
नई दिल्ली. कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने शुक्रवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को बेबस मुख्यमंत्री बताया। उन्होंने कहा- केजरीवाल जेएनयू हिंसा में घायल हुए छात्रों से मिलने भी नहीं जा पाए। थरूर ने केजरीवाल पर नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ मजबूती से न खड़े होने का आरोप भी लगाया।
थरूर ने कहा- केजरीवाल शायद चाहते हैं कि नागरिकता संशोधन कानून के विरोधी और समर्थक दोनों ही उनकी तरफ रहें, इसलिए उन्होंने इस मामले पर मजबूत स्टैंड नहीं लिया। यदि वे इस मामले पर कुछ बोल ही नहीं सकते तो आखिर लोगों को किस आधार पर केजरीवाल को वोट देना चाहिए।
केजरीवाल ने कभी शीला दीक्षित को बेबस बताया था- थरूर
थरूर ने दावा किया कि केजरीवाल ने कभी दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को बेबस मुख्यमंत्री बताया था। अब उन्हें खुद अपना ट्वीट पढ़ना चाहिए। क्या लोग ऐसा मजबूर मुख्यमंत्री चाहते हैं, जब उनके बच्चों को लाठीचार्ज का सामना करना पड़े तो मुख्यमंत्री उनसे मिलने भी न जाए।
‘केजरीवाल किसके आदेश सुन रहे हैं’
थरूर ने कहा- मैं नहीं जानता कि केजरीवाल किसके आदेश सुन रहे हैं। आखिर आपको किसने कहा कि छात्रों के साथ हुई हिंसा के खिलाफ न बोले, उनसे न मिले या फिर नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ स्पष्ट स्टैंड न लें? आप तो मुख्यमंत्री हैं। कोई दूसरा नहीं है जो आपको आदेश दे।
पुलिस ने जेएनयू में कोई कार्रवाई नहीं की- केजरीवाल
5 जनवरी को जेएनयू कैंपस में नकाबपोशों हमलावरों ने छात्रों-शिक्षकों पर रॉड और पत्थरों से हमला कर दिया था, जिसमें 30 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। दिल्ली पुलिस ने शुक्रवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस मामले में छात्रसंघ अध्यक्ष आइशी घोष समेत 9 छात्रों की पहचान उजागर की थी। वहीं, केजरीवाल ने जेएनयू हिंसा पर कहा था कि पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की क्योंकि उन्हें केंद्र से आदेश था कि हस्तक्षेप न करें।
हैदराबाद,हैदराबाद से सांसद और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि देश की 41 फीसदी संपत्ति सवर्णों के पास है जो कि उनकी आबादी का दोगुना है। ओवैसी ने यह भी कहा कि मुस्लिमों की आबादी 12 फीसदी है लेकिन उनकी संपत्ति मात्र 8 फीसदी है। ओवैसी ने आगे कहा कि आखिर यह पैसा कहां लगाया जाता है। इस पैसों को राजनीतिक दल का संरक्षण मिला हुआ है क्योंकि उन्हें चुनाव लड़ना होता है। ओवैसी ने एक इवेंट में चुनावी चंदे का मुद्दा उठाते हुए चुनाव आयोग से एनजीओ और कॉर्पोरेट द्वारा दिए जाने वाले डोनेशन पर बैन की मांग की।
ओवैसी ने एक इवेंट में कहा, 'एक प्रयोगसिद्ध डेटा कहता है कि हिंदू सवर्णों के पास देश की कुल 41 फीसदी संपत्ति है जो उनकी जनसंख्या 22.28 फीसदी से दोगुनी है। इसके बाद धन का अगला बड़ा हिस्सा ओबीसी समुदाय के पास है, जिनके पास 31 फीसदी संपप्ति जो कि उनकी आबादी 35. 66 फीसदी से कम है।'
'आखिर कहां लगाया जाता है पैसा?'
ओवैसी ने आगे कहा, 'मुस्लिमों के पास सिर्फ 8 फीसदी संपत्ति है जबकि उनकी जनसंख्या करीब 12 फीसदी है। वहीं एससी और एसटी के पास महज 11.3 फीसदी संपत्ति है जबकि उनकी जनसंख्या 27 फीसदी है।' ओवैसी ने आगे सवाल पूछते हुए कहा, 'यह पैसा कहां लगाया जाता है? पैसा कहीं और होता है जहां राजनीतिक दलों का सरंक्षण है क्योंकि उन्हें चुनाव लड़ना होता है।'
'इलेक्टॉरल बॉन्ड रहस्य है'
ओवैसी ने चुनावी चंदे पर सवाल दागते हए कहा, 'एमएनसी, कॉर्पोरेट और एनजीओ से मिलने वाले चंदे के जारी रहने से भारतीय लोकतंत्र एक रोज बुरा दौर देखेगा जब राजनीतिक दल सिर्फ कागज पर होंगे और कोई विशेष पूरी पार्टी को चला रहा होगा। उन्होंने आगे कहा, 'कोई एमएनसी और एनजीओ किसी पार्टी को चंदा क्यों देगा? पूरा इलेक्टॉरल बॉन्ड रहस्य है। देश को पता ही नहीं है कि कौन किसे पैसा दे रहा है।'
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार से कोलकाता के दो दिवसीय दौरे पर रहेंगे। इस दौरान वह कोलकाता बंदरगाह ट्रस्ट की 150वीं वर्षगांठ के मौके पर समारोह में शामिल होंगे तथा धरोहर इमारतों को राष्ट्र को समर्पित करेंगे। प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के मुताबिक, शनिवार को प्रधानमंत्री कोलकाता में चार धरोहर इमारतों को राष्ट्र को समर्पित करेंगे। यहां एक कार्यक्रम में वह राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ एक कार्यक्रम में मंच साझा कर सकते हैं।इनमें ओल्ड करेंसी बिल्डिंग, बेल्वेदेरे हाउस, मेटकॉफ हाउस और विक्टोरिया मेमोरियल हाल शामिल है। संस्कृति मंत्रालय ने इनकी मरम्मत और साज-सज्जा का काम किया है। मंत्रालय विभिन्न मेट्रो शहरों में ऐसी प्रसिद्ध इमारतों के आसपास सांस्कृतिक स्थलों का विकास कर रहा है। इसके तहत कोलकाता, दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद और वाराणसी को शामिल किया गया है। शनिवार और रविवार को मोदी पोर्ट ट्रस्ट के कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे।
राजभवन में बैठक भी करेंगे पीएम मोदी
राज्य सचिवालय के एक अधिकारी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी शनिवार को राजभवन में एक बैठक भी करेंगे।
जनसंख्या वृद्धि ने हमारे देश के समक्ष बेरोजगारी, खाद्य समस्या, कुपोषण, प्रति व्यक्ति आय, गरीबी, मकानों की कमी, महंगाई, कृषि विकास में बाधा, बचत एवं पूंजी में कमी, शहरी क्षेत्रों में घनत्व जैसी ढेर सारी समस्याओं को उत्पन्न कर चुका है।
किसी भी देश की वर्तमान स्थिति का आकलन वहां की आर्थिक विकास और जनसंख्या के ही हिसाब से तय किया जाता है। यह दोनों एक राष्ट्र के विकास के सबसे बड़े कारक होते हैं। भारत जैसे देश में जनसंख्या वृद्धि एक खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है। भले ही हम विश्व के सबसे ज्यादा युवा वाला देश होने का दावा करते हैं पर सच यही है कि अब हमारे देश की जनसंख्या यहां की आर्थिक स्थिति को काफी नुकसान पहुंचा रही हैं। जनसंख्या किसी भी देश के विकास के लिए सबसे बड़ा अवरोध पैदा कर सकती है। 2011 के के जनगणना के आंकड़ों के लिहाज से देखें तो हमारे देश की जनसंख्या 121.27 करोड़ हो गई है यानी कि 2001 की जनसंख्या में लगभग 17.7 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा हुआ है। यह इजाफा भारत जैसे विकासशील देश के समक्ष कई समस्याओं और चुनौतियों को भी जन्म देता है। जनसंख्या वृद्धि ने हमारे देश के समक्ष बेरोजगारी, खाद्य समस्या, कुपोषण, प्रति व्यक्ति आय, गरीबी, मकानों की कमी, महंगाई, कृषि विकास में बाधा, बचत एवं पूंजी में कमी, शहरी क्षेत्रों में घनत्व जैसी ढेर सारी समस्याओं को उत्पन्न कर चुका है। हम इन समस्याओं से निपटने की लगातार कोशिश तो कर रहे हैं पर समाधान बहुत कम निकल कर सामने आ रहे हैं।
देश में सबसे ज्यादा चर्चा बेरोजगारी को लेकर है और इसकी सबसे बड़ी वजह जनसंख्या को ही बताया जा रहा है क्योंकि जनसंख्या वृद्धि के कारण देश की पूंजीगत साधनों में कमी हुई है जिससे रोजगार सृजन में व्यवधान उत्पन्न हो रहे हैं। भारत एक कृषि प्रधान देश है और लगातार जनसंख्या वृद्धि के कारण यहां की उपजाऊ जमीनों में कमी देखने को मिल रही है जिससे कि देश की कृषि उत्पादन क्षमता में काफी कमी आई है। यह कमी हमारे आर्थिक नुकसान का एक बहुत बड़ा कारण है। साथ ही साथ कुपोषण की भी समस्या से हम लगातार ग्रसित होते जा रहे हैं। हम हर लोगों तक के मूलभूत सुविधाएं नहीं पहुंचा पा रहे हैं। जनसंख्या वृद्धि शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मानव के विकास के लिए जरूरी चीजों के लिए भी बड़ा घातक है। जनसंख्या वृद्ध हमारी सरकारों के लिए भी काफी संशय वाली स्थिति पैदा करती हैं। सरकार को बिजली, परिवहन, चिकित्सा, जलापूर्ति, भवन निर्माण इत्यादि जैसी सेवाओं के लिए अधिक व्यय करना पड़ता है जिससे कि अन्य क्षेत्र प्रभावित होते रहते है। इस जनसंख्या विस्फोट का असर हमारे देश में दिखने लगा है। हमारी सुविधाएं सिकुड़ने लगी है। दैनिक जीवन लगातार मुश्किलों में ग्रसित होता जा रहा है। सड़क हो, मेट्रो स्टेशन हो या फिर स्टेशन हो या फिर एयरपोर्ट हो, हर जगह हम इस जनसंख्या के नुकसान को देख सकते है।
लोगों को रोटी, कपड़ा और मकान जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। अकेले भारत की जनसंख्या लगभग एक अरब 35 करोड़ के आसपास है जो कि विश्व की जनसंख्या का 17. 50 है। चीन भारत से अत्यधिक बड़ा होने के बावजूद विश्व में उसे देश की जनसंख्या 18.1 प्रतिशत के आसपास है। इतना ही नहीं जनसंख्या विस्फोट की वजह से भ्रष्टाचार, चोरी, अनैतिकता और अराजकता तथा अपराध में भी काफी इजाफा हुआ है। आजादी के समय हमारे देश की जनसंख्या लगभग 35 करोड़ के आसपास थी जो आज 4 गुना ज्यादा बढ़ चुकी है। इस जनसंख्या वृद्धि के लिए कई अनेक कारण जिम्मेदार हैं जैसे कि परिवार नियोजन के कमजोर तरीकें, शिक्षा, स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का अभाव, अंधविश्वास तथा विकासन्मुखी सोच की कमी है।
हालांकि हम इस बात से भी इनकार नहीं कर सकते हैं कि किसी भी राष्ट्र के विकास में जनसंख्या की एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है और सभी संसाधनों में सर्वाधिक शक्तिशाली एवं सबसे महत्वपूर्ण जो ताकत होती है वह मानव संसाधन की ही होती है। लेकिन अतिशय जनसंख्या वृद्धि कहीं ना कहीं एक राष्ट्र की सेहत के लिए ठीक नहीं है। हमें उन उपायों पर सोचना होगा जिससे कि इस जनसंख्या विस्फोट से बचा जा सके। परिवार नियोजन, जागरूकता, विवाह की न्यूनतम आयु में वृद्धि करना, शिक्षा और सेक्स शिक्षा पर जोर देने के अलावा लोगों को राष्ट्र और समाज के प्रति उसके कार्यों का आभास दिलाना भी होगा।
भोपाल,CAA और NRC पर आयोजित संगोष्ठी में भाग लेने भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह के गृह जिला राजगढ़ पहुँचे। यहाँ उन्होंने कांग्रेस पार्टी के साथ राहुल गांधी और दिग्विजय सिंह पर करारा हमला बोला। उन्होंने राहुल गाँधी पर तंज कसते हुए कहा कि कांग्रेस के युवराज को समझ नहीं आ रहा कि वे जेनऊ के नजदीक जाए या फिर जेएनयू के। वहीं उन्होंने दिग्विजय सिंह पर निशाना साधते हुए कहा कि दिग्विजय सिंह आंतकियों से सहानुभूति रखते हैं, उन्हें देशभक्त खटकते हैं।
बृजमोहन अग्रवाल ने कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए कहा कि राष्ट्रहित को ताक में रखकर कांग्रेस राजनीति करती है। उनमें सत्ता की भूख ऐसी है कि देश को आग में झोंकने में भी संकोच नहीं करते। आज पड़ोसी मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान,बांग्लादेश, अफगानिस्तान में धर्म के आधार पर सताये गए हिंदू, बौद्ध, सिक्ख,ईसाई, जैन,पारसी धर्म के अनुयायियों को भारत की नागरिकता प्रदान करने के लिए बने नागरिकता संशोधन कानून पर वे ऐसी ही भूमिका अदा कर रहे है। जबकि लोकतंत्र के मंदिर राज्यसभा और लोकसभा दोनों जगहों से पास होकर यह अधिनियम बना है। उसे लेकर वे योजनाबद्ध ढंग से यह अफवाह उड़ा रहे हैं कि यह कानून मुसलमानों को देश से बाहर कर देगा। सच्चाई से परे कांग्रेस की इस बात को मुस्लिम समुदाय का एक वर्ग बिना जांचे परखे इसे सच मान रहा है।
परंतु कांग्रेसी यह जान ले कि उनकी यह भड़काऊ राजनीति ज्यादा समय तक नहीं चलने वाली। उनके अफवाहों की पोल अब खुलने लगी है। लोग धीरे-धीरे उनसे किनारा करने लगे हैं।
बृजमोहन अग्रवाल ने कहां कि 1947 में भारत देश से विभाजित होकर पाकिस्तान मुस्लिम राष्ट्र बना। इस दौरान पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदुओं की आबादी 23% थी। पाकिस्तान का निर्माण धर्म के आधार पर हुआ इसलिए वहां पर अल्पसंख्यक को पर कट्टरपंथियों ने अत्याचार करना प्रारंभ कर दिया था। पाकिस्तान से फिर बांग्लादेश बना वह भी मुस्लिम राष्ट्र है। यहां भी अल्पसंख्यकों के ऊपर कट्टरपंथियों के अत्याचार होता रहा जो आज भी जारी है। विभाजन के बाद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू और डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद जी यह मानते थे कि भारत में अल्पसंख्यक मुसलमानों के साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं होगा परंतु पाकिस्तान को लेकर उन्हें संदेह था। इसी संदेह के चलते अपने दौर में उन्होंने पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए अपील की थी। नेहरू-लियाकत समझौता इस बात का प्रमाण है। अब जब केंद्र की मोदी सरकार कांग्रेस के उन महापुरुषों की इच्छा को पूरा करने पाकिस्तान, बांग्लादेश,अफगानिस्तान मे धर्म के आधार पर सताए गए लोगों को भारत की नागरिकता दे रही है इसमें लोगों की आपत्ति समझ से परे है। बृजमोहन ने कहा कि इस कानून के तहत दिसंबर 2014 तक जो अल्पसंख्यक हिन्दू,सिक्ख,जैन, बौद्ध,पारसी भारत आ गए हैं उन्हें ही नागरिकता प्रदान की जाएगी।
पाकिस्तान से जब बांग्लादेश अलग हुआ उस वक्त भी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लाखों बांग्लादेशियों को भारत में शरण दिया था। नागरिकता संशोधन कानून का 2003 में पूर्व प्रधानमंत्री सरदार मनमोहन सिंह ने भी समर्थन किया था। बावजूद कांग्रेस का विरोध आश्चर्यजनक व पूर्णता राजनीति से प्रेरित है। इन विरोध को देखकर कोई भी समझ सकता है कि कांग्रेस सिर्फ वोट की राजनीति करती है और भारतीय जनता पार्टी देशहित के लिए।
कांग्रेस के युवराज को समझ नहीं आ रहा है कि वह जनेऊ के नजदीक जाए या जेएनयू के
बृजमोहन अग्रवाल ने राहुल गांधी पर तंज कसते हुए कहा कि कांग्रेस के युवराज कुछ समझ नहीं आ रहा है कि वह जनेऊ के नजदीक जाए या जेएनयू के। उन्हें कोई कहता है कि राजनीति करना है हिंदुओं को साधना है तो जनेऊ पहन लेते है। फिर कभी भाजपा का विरोध करना है तो जेएनयू में के वामपंथियों के साथ खड़े हो जाते है। वे अपनी विचारधारा तय नही कर पाए है। बृजमोहन ने कहा कांग्रेस पार्टी देश को आजाद कराने में अहम भूमिका अदा करने वाली पार्टी है आज इस पार्टी को वामपंथी चला रहे हैं। यह दुर्भाग्यजनक है।
दिग्विजय सिंह पर ली चुटकी
साथ ही उन्होंने कहा कि यह राजगढ़ कांग्रेस के दिग्गज दिग्विजय सिंह जी का गृह जिला है। दिग्विजय सिंह की भाषा समुदायों को भड़काने वाली होती है। ऐसे में जनता तय करे कि उनसे क्षेत्र बदनाम होता है या नाम होता है। अनौपचारिक चर्चा में बृजमोहन ने कहा की दिग्विजय सिंह जी आतंकियों से सहानुभूति रखते है और देशभक्त उन्हें खटकते है।
न्यूयॉर्क. अमेरिका ने कहा है कि वह भारत और रूस के ऐतिहासिक रिश्तों के बावजूद नई दिल्ली पर प्रतिबंध नहीं लगा सकता। विदेश विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने गुरुवार को कहा कि अमेरिका ऐसा रास्ता निकालना चाहता है, जिससे रक्षा मामलों में भारत की रूस पर निर्भरता से कोई फर्क न पड़े और हम दोनों देश साथ काम जारी रखें।
भारत ने दिसंबर 2018 में रूस से एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदने का समझौता किया था। अमेरिका ने उस वक्त भारत को प्रतिबंध लगाने की चेतावनी दी थी। हालांकि, अब तक ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की गई है। अधिकारी ने कहा कि नई दिल्ली ने मॉस्को से समझौता किया है उसका यह मतलब नहीं कि हमने उसे कोई छिपी हुई छूट दो रखी है। हालांकि, प्रतिबंध लगाने से पहले हर मामले को अलग तरह से देखा जाएगा। वॉशिंगटन नहीं चाहता कि भारत की रक्षा क्षमताएं कहीं से भी कमजोर हों।
अफसर ने कहा कि काट्सा के तहत लगने वाले प्रतिबंध किस पर लग रहे हैं, इस पर भी विचार होता है। इस मामले में हमारे पास कई विकल्प मौजूद हैं। इसलिए हम भारत को इन प्रतिबंधों से बचाने के लिए रास्ता निकालना चाहते हैं। अमेरिकी संसद ने 2017 के रक्षा बजट में भारत को प्रमुख रक्षा सहयोगी का दर्जा दिया था।
तुर्की पर हो चुकी कार्रवाई
अफसर ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “आप देख सकते हैं अमेरिका दुश्मनों से समझौता करने वालों पर कैसी कार्रवाई कर रहा है। हमने अपने नाटो पार्टनर तुर्की को भी एस-400 खरीदने के लिए कड़ा संदेश दिया है।” अमेरिका ने हाल ही में रूस से रक्षा समझौता करने के लिए तुर्की को लॉकहीड मार्टिन के एफ-35 फाइटर जेट बेचने पर रोक लगाई थी।
काट्सा कानून के तहत प्रतिबंध लगा सकता है अमेरिका
दरअसल, अमेरिका काट्सा कानून के तहत अपने दुश्मन से हथियार खरीदने वाले देशों पर प्रतिबंध लगा सकता है। इस लिहाज से भारत भी रूस से हथियार खरीदने के लिए प्रतिबंधों के दायरे में आ सकता है, लेकिन अमेरिका और भारत का रक्षा व्यापार बीते समय में काफी बढ़ा है। इसके चलते वह भारत पर प्रतिबंध लगाने से बचना चाहता था।
क्या है एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम?
एस-400 मिसाइल सिस्टम 400 किलोमीटर के दायरे में आने वाली मिसाइलों और पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों को भी खत्म कर देगा। एस-400 डिफेंस सिस्टम एक तरह से मिसाइल शील्ड का काम करेगा, जो पाकिस्तान और चीन की एटमी क्षमता वाली बैलिस्टिक मिसाइलों से भारत को सुरक्षा देगा। यह सिस्टम अमेरिका के सबसे एडवांस्ड फाइटर जेट एफ-35 को भी गिरा सकता है। वहीं, 36 परमाणु क्षमता वाली मिसाइलों को एकसाथ नष्ट कर सकता है। भारत ने सिस्टम के लिए 5 अरब डॉलर में समझौता किया। इसमें से 80 करोड़ की पहली किश्त रूस को दी जा चुकी है।