ईश्वर दुबे
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मुंबई. महाराष्ट्र में नई सरकार के गठन के बावजूद सियासी घमासान अभी थमा नहीं है. शनिवार को सुबह से लेकर शाम तक हुए तमाम ड्रामे के बाद शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने रात में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया. आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई है. इस बीच शिवसेना नेता संजय राउत ने देवेंद्र फडणवीस के शपथग्रहण पर तंज कसा है. वहीं, कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने अजित पवार के बहाने सुप्रिया सुले को बधाई दी है.
बता दें कि शनिवार सुबह देवेंद्र फडणवीस ने सीएम और एनसीपी के नेता अजित पवार ने डेप्युटी सीएम पद की शपथ ली तो महाराष्ट्र समेत पूरे देश की राजनीति में भूचाल सा आ गया. देर शाम तक ड्रामा चला और रात में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने रात में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाने के महाराष्ट्र के राज्यपाल के फैसले को रद्द करने का अनुरोध किया. साथ ही, विधायकों की खरीद-फरोख्त को रोकने के लिए तुरंत शक्ति परीक्षण कराने का भी अनुरोध किया है.
इधर, दिग्विजय सिंह ने अपने ट्वीट में अजित पवार को निशाने पर लिया. साथ ही उन्होंने शरद पवार की बेटी को अग्रिम भविष्य की शुभकामनाएं भी दे दीं. उन्होंने लिखा, एनसीपी के 54 में से 53 विधायक शरद पवार जी के साथ रहेंगे. अजित पवार अकेले रह जाएंगे. शरद पवार के उत्तराधिकारी की समस्या भी हल हो गई. बधाई सुप्रिया! वहीं, शिवसेना नेता संजय राउत ने अपने ट्वीट में लिखा, एक्सिडेंटल शपथग्रहण!
मुंबई. महाराष्ट्र की सियासत में शनिवार के दिन की शुरुआत नाटकीय रही. देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अजित पवार के उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद शुरू हुआ सियासी घमासान पूरे दिन चला. चंद घंटों में तस्वीर ऐसी बदली कि मुख्यमंत्री की कुर्सी के काफी करीब नजर आ रहे जो उद्धव शिवसैनिकों का सपना पूरा होने और शनिवार के दिन नई सरकार की तस्वीर साफ होने की बात कर रहे थे, उनके चेहरे पर तनाव साफ नजर आने लगा. एनसीपी के भाजपा के साथ जाने और सरकार गठन से सकते में आई शिवसेना सक्रिय हुई तो शरद पवार ने भी उद्धव के साथ साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर उन्हें यह भरोसा दिलाया कि यह अजित का निजी फैसला है. एनसीपी उद्धव और शिवसेना के साथ है. पवार ने शिवसेना का पावर रिचार्ज किया तो उद्धव भी सक्रिय हो गए.
उद्धव ने राज्यपाल के फैसले को देश की सर्वोच्च अदालत में चुनौती दी तो साथ ही सरकार गठन के बाद निराश अपने विधायकों और कार्यकर्ताओं का मनोबल भी बढ़ाया. एक तरफ पवार अपने विधायकों को एकजुट करने के लिए वाईबी सेंटर में बैठक कर रहे थे, तो दूसरी तरफ उद्धव ने भी होटल ललित में अपने विधायकों के साथ दो-दो बार बैठक की और यह विश्वास दिलाया कि सरकार तो शिवसेना ही बनाएगी.
उद्धव ने विधायकों से पूछा- डर तो नहीं
शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे ने अपने विधायकों से यह भी पूछा कि वह डर तो नहीं रहे. विधायकों ने इसके जवाब में 'नहीं' कहने के साथ ही अपने नेता को यह आश्वस्त भी किया कि वे सभी एकजुट हैं और उनके साथ हैं. विधायक वही करेंगे, जो वह कहेंगे. उद्धव ने विधायकों का उत्साह बढ़ाते हुए कहा कि हालात बदले हैं, लेकिन इससे हम पर प्रभाव नहीं पड़ेगा. शिवसेना ने इसके बाद सभी विधायकों से मुंबई में ही रहने को कहा है.
देर रात तक बैठक, सुबह बदल गई तस्वीर
शुक्रवार देर रात तक शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की गठबंधन सरकार और उद्धव ठाकरे का मुख्यमंत्री बनना तय माना जा रहा था. तीनों दलों के नेताओं की बैठक में अजित पवार भी मौजूद थे, लेकिन जब शनिवार सुबह हुई तब तस्वीर बदल गई.
आधी रात को राज्यपाल ने राष्ट्रपति शासन हटाने की सिफारिश कर दी. सूर्योदय के साथ ही कैबिनेट ने राज्यपाल की सिफारिश को मंजूरी दे दी और सुबह के नौ बजे से पहले ही देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली.
मुंबई, अजित पवार द्वारा शरद पवार के खिलाफ बगावत कर भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली। राजनीति के जानकारों के लिए यह अनहोनी नहीं है। इस बात का अंदेशा लोकसभा चुनाव के दौरान ही लोगों को हो गया था कि महाराष्ट्र के चर्चित राजनीतिक घरानों में से एक पवार परिवार में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा। यही वजह है कि अजित पवार की बगावत के बाद शरद पवार को जनता के सामने आकर यह कहना पड़ा यह सिर्फ अजित पवार का निजी फैसला है पार्टी का फैसला नहीं है।
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, महाराष्ट्र के सबसे ताकतवर राजनीतिक परिवार में यह पूरी लड़ाई लंबे समय तक मराठा राजनीति के दिग्गज रहे शरद पवार के राजनीतिक उत्तराधिकारी को लेकर है। शरद पवार करीब 80 साल के हो गए हैं। उनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता है। शरद पवार की बेटी सुप्रीया सुले और अजित पवार के बीच राजनीतिक उत्तराधिकार को लेकर काफी दिनों से शह और मात का खेल चल रहा है। इस साल हुए लोकसभा चुनाव में परिवार के बीच चल रहा यह ‘वॉर’ खुलकर सामने आ गया था।
लोकसभा चुनाव के दौरान राकांपा प्रमुख शरद पवार ने ऐलान किया था कि वह मावल सीट से चुनाव लड़ेंगे। इसी लोकसभा सीट से बाद में अजित पवार के बेटे पार्थ पवार ने भी चुनाव लड़ने का दावा ठोक दिया। मावल सीट के लिए अजित पवार ने दबाव डाला, तो शरद पवार पीछे हट गए और उन्होंने कहा कि ‘अगली पीढ़ी’ को मौका दिया जाएगा। अजित पवार के बेटे पार्थ ने इस सीट से चुनाव लड़ा और उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद शरद पवार ने अपने एक दूसरे भतीजे को ज्यादा तरजीह देना शुरू कर दिया।
ऐसे बढ़ीं दूरियां
इसी बीच सुप्रिया सुले बनाम अजित पवार की लड़ाई और बढ़ गई। सुप्रिया सुले अपने पिता के संसदीय क्षेत्र बारामती से सांसद हैं और अजित पवार बारामती विधानसभा सीट से विधायक हैं। इस साल अक्टूबर में अजित पवार ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया तो राजनीतिक गलियारों में पिछले काफी समय से चल रहे परिवार में चल रहे मतभेद के कयास को बल मिल गया। परिवार के इस कलह को ईडी के नोटिस से जोड़कर भी देखा जा रहा है।
माना जा रहा है कि अजित पवार ने राजनीतिक उत्तराधिकार को लेकर शरद पवार से मिली उपेक्षा के कारण भाजपा के साथ जाने का फैसला लिया है। दरअसल, एक वक्त ऐसा था जब लगभग यह तय माना जाने लगा था कि अजित पवार ही शरद पवार के राजनीतिक उत्तराधिकारी होंगे, लेकिन बाद में कहानी ने इतने ट्विस्ट लिए कि अजित को अपने हाथ से बाजी निकलती दिखने लगी है।
2006 से बदला गेम
वर्ष 2006 पहले सुप्रिया सुले की एंट्री हुई और उन्होंने अपने को अच्छे से स्थापित भी कर लिया। इसके बाद अजित पवार के दूसरे चाचा का परिवार भी पॉलिटिक्स में आ गया। अजित अपने पुत्र को स्थापित भी नहीं कर पाए थे कि दूसरे चाचा के पौत्र ने अपना दावा ठोक दिया। अजित को लगने लगा कि शरद पवार दूसरे चाचा के परिवार यानी रोहित पवार को ज्यादा तव्वजो दे रहे हैं। राकांपा ने लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र की भाजपा-शिवसेना सरकार के खिलाफ यात्रा निकाली थी, लेकिन उसका नेतृत्व अजित पवार को सौंपने के बजाय शरद पवार ने पार्टी के दो दूसरे नेताओं को दिया। बताया जाता है कि यहीं से अजित के दिल में यह बात पक्के तौर पर घर कर गई कि उन्हें किनारे लगाने की कोशिश हो रही है।
अजित पवार भी दांव के उस्ताद हैं
अजित पवार राजनीति के कोई नए खिलाड़ी तो हैं नहीं, लिहाजा उन्होंने अपना दांव चलने के लिए ऐसा मौका चुना, जब राकांपा, शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाने जा रही थी। इससे पहले शरद पवार ने उत्तराधिकार के इस विवाद को सुलझाने के लिए सुप्रिया सुले को केंद्र और अजित पवार को महाराष्ट्र का जिम्मा दिया था, लेकिन वह अपनी बात से पलट गए। बाद में शरद पवार ने राष्ट्रवादी युवती कांग्रेस लॉन्च किया और सुप्रिया को इसका चीफ बनाया। इससे राज्य में यह अटकलें तेज हो गईं कि शरद पवार अजित पवार की जगह पर अपनी बेटी को आगे बढ़ा रहे हैं। इन्हीं सबके बीच अजित पवार ने अपने चाचा को शिवसेना के साथ जाता देख एनसीपी को तोड़ भाजपा से हाथ मिला लिया।
चंडीगढ़: राज्यसभा सांसद और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ विनय सहस्त्रबुद्धे ने महाराष्ट्र सरकार गठित होने के मामले में दावा किया है कि अजित पवार के साथ मिल कर भाजपा पांच साल स्थिर सरकार देगी. उन्होंने यह भी कहा कि फ्लोर टेस्ट में भी वो सफल रहेंगे. डाक्टर विनय सहस्त्रबुद्धे चंडीगढ़ में थे. उन्होंने शिव सेना पर निशाना साधते हुए कहा कि वोट देवेंद्र फडणवीस और और नरेंद्र मोदी के नाम पर हासिल किये और गले किसी और को लगाया. डाक्टर सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि महाराष्ट्र में अनैसर्गिक गठबंधन स्थापित करके की कोशिश की गई.
उद्धव ठाकरे पर निशाना साधते हुए डॉकटर सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि उन्होंने असमजंस की स्थिति में लिए गए फैसले का उनको पछतावा हो रहा होगा. उन्होंने नसीहत दी कि जूनियर पार्टी को मुख्य मंत्री पद की लालसा नहीं रखनी चाहिए. उन्होंने कहा है कि भाजपा जहां भी जूनियर पार्टी की भूमिका में होती है वहां मुख्य मंत्री पद की लालसा नहीं करती.
पंजाब में शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन का हवाला देते हुए डॉक्टर सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि पंजाब में हमने अकाली दल के साथ गठबंधन में सरकार बनाई मगर जूनियर पार्टी होने के नाते मुख्य मंत्री पद की मांग नहीं की. सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार बनना पहले से तय था क्योंकि भाजपा ने अधिक सीटों पर चुनाव लड़ा था.
उन्होंने कहा कि गठबंधन में पहले ही भाजपा का मुख्यमंत्री बनना तय था पर शिवसेना अन्य पार्टियों के साथ मिलकर सरकार बनाना चाहते थे जोकि सुडो पॉलिटिक्स के तहत हो नहीं पाया और भाजपा ने सुबह-सुबह सरकार बना ली उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया है चलती रहती है कांग्रेस ने भी तो अपनी राज में इमरजेंसी के समय ऐसे बहुत से काम किए थे तो एक आधा काम तो बीजेपी भी कर ही सकती है.
उन्होंने कहा विपक्ष में अभी कड़वाहट है इसलिए वह लोटस की बात कर रही है अगर फ्लोर टेस्ट की नौबत आती है तो बीजेपी वह भी पार कर जाएगी.
महाराष्ट्र के सियासी घटनाक्रम में अचानक हुए बदलाव से राजनीतिक दल सकते में हैं। शिवसेना के प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद संजय राउत ने एक बार फिर महाराष्ट्र गठन पर निशाना साधा है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के शपथ ग्रहण पर तंज कसते हुए उन्होंने ट्वीट कर कहा इसे 'एक्सीडेंटल शपथग्रहण !' बताया।
राउत को इस ट्वीट के बाद एनसीपी के प्रवक्ता नवाब मलिक ने कहा कि 'ये इश्क़ नहीं आसां इतना ही समझ लीजे , इक आग का दरिया है और डूब के जाना है । जिगर .'।
वहीं, इससे पहले भी संजय राउत ने फडणवीस के शपथ ग्रहण पर तंज करते हुए मराठी में ट्वीट किया था कि यह शपथ समारोह था या अंतिम संस्कार। गौरतलब हो कि शनिवार सुबह करीब आठ बजे भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने राज्य के मुख्यमंत्री और एनसीपी नेता अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी।
इससे पहले राउत ने आरोप लगाया था कि अजित पवार ने राज्य के लोगों और छत्रपति शिवाजी की पीठ पर वार किया है। संजय राउत ने कहा था कि हमें कुछ ऐसे घटनाक्रमों को लेकर अंदेशा हो रहा था, क्योंकि हमारी इतनी अहम बैठकों के दौरान अजित पवार ने हमारी आंखों में देख कर कभी बात नहीं की थी। यहां तक कि शरद पवार ने भी उनके भतीजे (अजित पवार) द्वारा अक्तूबर के चुनावों से ठीक पहले अचानक विधानसभा सीट छोड़ने पर संदेह व्यक्त किया था।
राउत ने अजित पवार पर शरद पवार जैसे वरिष्ठ नेता को धोखा देने और उन्हें अंधकार में रखने का आरोप लगाया। उन्होंने आगे कहा कि अजित पवार शुक्रवार को बहुत देर तक शिवसेना-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के नेताओं के साथ रहे और सब कुछ सामान्य दिखा।
जनादेश के साथ विश्वासघात यह कुछ जम नहीं रहा क्योंकि जनता ने तो भाजपा-शिवसेना गठबंधन और एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन को वोट दिए थे। ऐसे में अगर उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बन जाते तो क्या यह जनादेश का अपमान नहीं होता। इतना ही नहीं कांग्रेस के खिलाफ चुनावों में बड़ी-बड़ी बातें करने वाली क्या शिवसेना पूर्णता अपने जनता को दिए अपने वादे भूल पाती ?
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे 24 अक्टूबर को घोषित होने के करीब एक महीने बाद प्रदेश को उसका मुखिया मिल गया है। यह मुखिया वही है जिसे प्रदेश की जनता ने चुना था, बस फर्क इतना है कि जनता ने भाजपा और शिवसेना गठबंधन को स्पष्ट बहुमत दिया था लेकिन सत्ता के लोभ में शिवसेना ने भाजपा का साथ छोड़ दिया और नई राह तलाशने की कोशिशों में जुट गई और यहां भाजपा ने चुप्पी साध ली।
महीने भर चले सियासी ड्रामे में रोजाना शिवसेना की तरफ से एकाद बयान भाजपा के खिलाफ आ जाते थे लेकिन भाजपा ने अपनी मर्यादा नहीं तोड़ी और बस यही कहा कि प्रदेश को एक स्थिर सरकार सिर्फ हम ही दे सकते हैं। बस उन्हें जरूरत थी 40 विधायकों की।
एक तरफ शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस का भरोसा जीतने में जुटी थी और बाला साहेब को दिया हुआ वादा पूरा करने में। शिवसेना चाहती थी कि एक शिवसैनिक ही प्रदेश का मुखिया बने लेकिन एनसीपी और कांग्रेस ने कहा कि हम उद्धव ठाकरे के नाम पर अपनी सहमति जता सकते हैं किसी और के नाम पर नहीं। ऐसे में बैठकों का दौर शुरु हुआ और तय भी हो गया कि एनसीपी और कांग्रेस सरकार बनाने में शिवसेना की मदद करेगी।
कांग्रेस को नहीं था एनसीपी पर भरोसा
शरद पवार की रग-रग से वाकिफ कांग्रेस का मानना था कि एनसीपी उसे एक बार फिर से धोखा दे सकती है क्योंकि राष्ट्रपति शासन लागू होने से पहले जब समर्थन वाली चिट्ठी राज्यपाल को सौंपनी थी तो एनसीपी ने थोड़ा और समय मांगा। एनसीपी नेताओं की मानें तो पवार ने ऐसा इसलिए किया कि प्रदेश को एक स्थिर सरकार दे सकें। कांग्रेस ने भी भरोसा कर लिया और शिवसेना के साथ कॉमन मिनिमम प्रोग्राम पर चर्चा शुरू हो गई।
कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के तहत तीनों दलों के बीच एक फॉर्मूला भी तय हो गया और आपसी सहमति भी बन गई कि उद्धव ठाकरे ही मुख्यमंत्री बनेंगे। लेकिन भारतीय राजनीति में सबसे बड़ा उलटफेर हो गया और देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली और उपमुख्यमंत्री शरद पवार के भतीजे अजीत पवार बन गए। जिसके बाद कांग्रेस ने इसे जनादेश के साथ विश्वासघात बताया।
जनादेश के साथ विश्वासघात यह कुछ जम नहीं रहा क्योंकि जनता ने तो भाजपा-शिवसेना गठबंधन और एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन को वोट दिए थे। ऐसे में अगर उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बन जाते तो क्या यह जनादेश का अपमान नहीं होता। इतना ही नहीं कांग्रेस के खिलाफ चुनावों में बड़ी-बड़ी बातें करने वाली क्या शिवसेना पूर्णता अपने जनता को दिए अपने वादे भूल पाती ? और क्या कांग्रेस वीर सावरकर को भारत रत्न दिए जाने की बात स्वीकार लेती ? यह सभी सवाल बेहद अहम हैं लेकिन अभी जो सवाल सबसे ज्यादा जरूरी है वह ये हैं कि क्या एनसीपी टूट गई ?
पवार जी तुस्सी ग्रेट हो
जैसे ही महाराष्ट्र में अजीत पवार के उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेने की खबर आई वैसे ही कांग्रेस नेता थोड़ा भ्रमित हो गए। अभिषेक मनु सिंघवी ने ट्विटर पर लिखा कि महाराष्ट्र के बारे में पढ़कर हैरान हूं। पहले लगा कि यह फर्जी खबर है। निजी तौर पर बोल रहा हूं कि तीनों पार्टियों की बातचीत तीन दिन से ज्यादा नहीं चलनी चाहिए थी। यह बहुत लंबी चली। मौका दिया गया तो फायदा उठाने वालों ने इसे तुरंत लपक लिया।
लेकिन सिंघवी साहब यह भूल गए कि पार्टी के वरिष्ठ नेता ही शिवसेना के साथ सरकार बनाने के पक्ष में नहीं थे। वो तो विधायकों द्वारा सरकार बनाए जाने की बात कही जाने के बाद आलानेताओं ने इस ओर विचार किया। इस बीच सिंघवी ने अजीत पवार तो तंज कस दिया और कहा कि पवार जी तुस्सी ग्रेट हो। अगर यही सही है तो आश्चर्यजनक है। अभी यकीन नहीं है।
तो क्या सिंघवी साहब भूल गए कि अजीत पवार भी उसी परिवार का खून हैं जिसे आप लोगों ने पार्टी से निष्कासित किया था।
शरद पवार पर भारी पड़ गए अजीत
अजीत पवार उपमुख्यमंत्री बन गए लेकिन क्या इस बारे में शरद पवार को कोई जानकारी नहीं थी। यह कहना थोड़ा अजीब लग रहा है। क्योंकि शीतकालीन सत्र की शुरुआत के पहले दिन ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बातों-बातों में एनसीपी की तारीफ कर दी और फिर बाद में शरद पवार ने संसद भवन में ही प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की थी। हालांकि इस मुलाकात को किसानों की समस्याओं पर आधारित बताई गई थी। फिर क्या था कांग्रेस ने भी सवाल खड़ा कर दिया कि अगर किसानों के ही मुद्दे पर था तो हमें भी साथ ले चलते।
वैसे राजनीति और क्रिकेट में कुछ भी मुमकिन है। ऐसा नितिन गडकरी ने कहा था और गडकरी के पवार परिवार के साथ रिश्ते कैसे हैं यह किसी से भी नहीं छिपा है। हालांकि पवार साहब ने उस पूरे गेम से खुद को अलग करते हुए बयान भी दे दिया और कहा कि महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए भाजपा को समर्थन देने का अजित पवार का फैसला उनका व्यक्तिगत निर्णय है। यह एनसीपी का फैसला नहीं है। हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हम इस फैसले का समर्थन नहीं करते।
अनुराग गुप्ता
मुंबई. महाराष्ट्र में अब भाजपा गठबंधन की सरकार है। शनिवार सुबह 7:30 बजे मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ राकांपा नेता अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इसके बाद अजित पवार ने कहा कि किसानों की समस्याओं का हल निकालने के लिए हमने भाजपा के साथ गठबंधन किया है। उन्होंने कहा, "नतीजे आने के बाद से कोई पार्टी सरकार नहीं बना पा रही थी, महाराष्ट्र किसानों की समस्याओं समेत कई परेशानियों से जूझ रहा था। इसलिए हमने स्थिर सरकार बनाने का फैसला किया।" कहा जा रहा है कि अजित राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के 30 विधायकों के साथ भाजपा के साथ आ गए हैं। उधर, पार्टी नेता सुप्रिया सुले ने वॉट्सऐप पर कहा, इससे पार्टी और परिवार में बंटवारा हो गया।
उधर, राकांपा प्रमुख शरद पवार ने कहा कि भाजपा को समर्थन देना अजित पवार का अपना व्यक्तिगत फैसला है। यह राकांपा का फैसला नहीं है। हम यह साफ कर देना चाहते हैं कि हम अजित के फैसले का समर्थन नहीं करते हैं। उधर, देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि शिवसेना ने जनादेश का अपमान किया और राज्य को खिचड़ी सरकार की जरूरत नहीं थी। उन्होंने कहा, ‘‘हमने चुनाव जीता था और शिवसेना पीछे हट गई। महाराष्ट्र को स्थिर शासन की जरूरत थी। इसलिए हम साथ आए हैं। हम राज्य को एक स्थिर सरकार देंगे।’’
सुप्रिया सुले ने कहा- पहले इतना ठगा कभी महसूस नहीं किया
सुप्रिया सुले ने शनिवार सुबह दो बार अपना वॉट्सऐप स्टेटस बदला। पहले में लिखा- परिवार और पार्टी टूट गई। दूसरे में लिखा- 'जीवन में किस पर भरोसा करें, मैंने खुद को इतना ठगा हुआ पहले कभी महसूस नहीं किया... जिसे इतना प्यार किया, बचाव किया, बदले में देखो क्या मिला।'
सुप्रिया सुले ने दूसरा वॉट्सऐप स्टेटस 11:12 बजे बदला।
संजय राउत ने कहा, वे कल बैठक में नजरें नहीं मिला रहे थे
शिवसेना सांसद और नेता संजय राउत ने कहा, "कल 9 बजे तक ये महाशय (अजित पवार) हमारे साथ बैठे थे, बाद में अचानक से गायब हो गए। वे नजर मिलाकर नहीं बोल रहे थे, जो व्यापक पाप करने जैसा है। उनकी नजर जैसे झुकती थी, वैसे झुकी नजरों से बात कर रहे थे।" राज्य में सरकार बनाने के लिए शिवसेना, कांग्रेस और राकांपा के नेताओं की शुक्रवार को मुंबई में बैठक हुई थी, इसमें शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे, राकांपा प्रमुख शरद पवार, नेता अजित पवार और कांग्रेस के बड़े नेता शामिल थे।
नई दिल्ली : महाराष्ट्र में नाटकीय घटनाक्रम के तहत राज्यपाल बीएस कोश्यारी ने शनिवार सुबह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता देवेंद्र फडणवीस को राज्य के मुख्यमंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) नेता अजीत पवार को उप मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई. दोनों नेताओं ने आज सुबह लगभग आठ बजे यहां राजभवन में एक कार्यक्रम में शपथ ली. इस दौरान भाजपा और राकांपा के नेताओं के साथ-साथ अन्य सरकारी अधिकारी मौजूद थे.
इसके तुरंत बाद, फडणवीस ने कहा कि राज्यपाल उन्हें पत्र देकर निर्देश देंगे कि सदन में नई सरकार के लिए कब बहुमत सिद्ध करना होगा. उन्होंने कहा कि मंत्रिमंडल विस्तार बाद में होगा.
राज्य में एनसीपी के अजित पवार के सहयोग से सरकार बनने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भी फडणवीस और पवार को बधाई दी. उन्होंने कहा, श्री देवेंद्र फडणवीस जी को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और श्री अजित पवार को प्रदेश के उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने पर हार्दिक बधाई. मुझे विश्वास है कि यह सरकार महाराष्ट्र के विकास और कल्याण के प्रति निरंतर कटिबद्ध रहेगी और प्रदेश में प्रगति के नये मापदंड स्थापित करेगी.
वहीं, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी उन्हें बधाई दी. उन्होंने कहा, 'श्री देवेंद्र फडणवीस, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री अजीत दादा पवार को बधाई. आपके नेतृत्व में, मुझे विश्वास है कि महाराष्ट्र का विकास रथ तेजी से आगे बढ़ेगा'.
उनसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने ट्वीट करते हुए CM फडणवीस और उप-मुख्यमंत्री अजीत पवार को बधाई दी. उन्होंने लिखा कि, 'महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने पर देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) जी को और अजित पवार (Ajit Pawar) जी को बधाई. मुझे विश्वास है कि वे महाराष्ट्र के उज्ज्वल भविष्य के लिए लगन से काम करेंगे.'
नई दिल्ली । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में प्रश्नकाल के दौरान कुछ कैबिनेट मंत्रियों की अनुपस्थिति को लेकर कथित तौर पर नाराजगी जताई है। सरकार के आंतरिक सूत्रों से यह जानकारी मिली। प्रधानमंत्री ने बुधवार शाम को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक के बाद संसद के दोनों सदनों में प्रश्नकाल के दौरान कैबिनेट मंत्रियों की अनुपस्थिति का संज्ञान लिया। सूत्रों ने कहा कि प्रधानमंत्री के अनुसार विशेषकर प्रश्नकाल के दौरान मंत्रियों को संसद में उपस्थित रहना आवश्यक है। प्रधानमंत्री ने कहा कि प्रश्नकाल संसदीय कार्यवाही का महत्वपूर्ण अंग है क्योंकि उस दौरान सरकार को जनहित में लिए गए अपने फैसलों को सामने रखने का मौका मिलता है। प्रश्नकाल के दौरान कैबिनेट मंत्री और राज्यमंत्री मौखिक रूप से सदस्यों द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देते हैं और उन्हें विभिन्न मुद्दों पर सरकार का मत प्रकट करने का अवसर मिलता है। ऐसा बताया जा रहा है कि उन्होंने मंत्रियों से कहा कि प्रश्नकाल एक अवसर होता है जब सरकार लोकहित में उठाए गए कदमों की जानकारी देश को देती है। उल्लेखनीय है कि प्रश्नकाल के दौरान कैबिनेट मंत्री और राज्य मंत्री विभिन्न सवालों का खुद जवाब देते हैं और साथ ही सरकार को विभिन्न मुद्दों पर अपनी राय जाहिर करने का अवसर भी मिलता है। बता दें कि इससे पहले प्रदूषण मामले पर संसद की स्टैंडिंग कमिटी की बैठक से कई सांसद नदारद रहे थे, जिसपर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सांसदों की खिंचाई की थी। बैठक से नदारद रहने वालों में सत्तारूढ़ बीजेपी के भी सांसद थे।
मुंबई: महाराष्ट्र (Maharashtra) में बीजेपी (BJP) सरकार के गठन के बाद शरद पवार (Sharad Pawar) ने एक प्रेस कॉन्फ्रेस में कहा है कि यह सुबह ही पता चल गया था कि कोई दूसरा सरकार बनाने जा रहा है. उन्होंने कहा कि इतनी सुबह राज्यपाल शपथ ग्रहण के लिए तैयार हो गए यह अपने आप में अजूबा है. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनके साथ शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) भी मौजूद है. शरद पवार ने कहा कि हम बीजेपी के सख्त खिलाफ है. उन्होंने फिर दोहराया कि अजित पवार ने खुद बीजेपी को समर्थन देने का फैसला किया. उन्होंने कहा कि बागी विधायकों पर जो कार्रवाई हमें करनी है वह हम करेंगे.
शरद पवार ने कहा कि कुछ विधायकों को सुबह अजित पवार ले गए जबकि इन विधायकों को यह अंदाजा नहीं था कि उन्हें किस लिए ले जा जाया जा रहा है. इस कॉन्फ्रेंस के दौरान कुछ एनसीपी विधायकों ने अपनी बात भी रखी.
बता दें महाराष्ट्र की राजनीति में शनिवार सुबह वह हुआ जिसकी किसी ने कल्पना तक नहीं की थी. शुक्रवार रात तक जहां कांग्रेस-एनसीपी और शिवसेना की सरकार बनने बनती दिख रही थी लेकिन जब सुबह देश के लोग उठे तो उन्होंने देवेंद्र फडणवीस को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और एनसीपी नेता अजित पवार को डिप्टी सीएम का पद की शपथ लेते हुए देखा.
सरकार बनने के बाद शरद पवार ने ट्वीट कर यह कहा कि अजित पवार का बीजेपी को समर्थन देने का फैसला उनका निजी फैसला है. शरद पवार ने कहा, 'अजित पवार का बीजेपी को सरकार बनाने के लिए समर्थन देने का फैसला उनका निजी फैसला है, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का इससे कोई संबंध नहीं है. हम यह साफ करना चाहते हैं कि हम उनके इस फैसले का न तो समर्थन करते हैं और न ही सहमति देते हैं.'
शिवसेना सांसद संजय राउत ने शनिवार को आरोप लगाया कि राज्य के नए उप-मुख्यमंत्री अजीत पवार ने राज्य के लोगों और छत्रपति शिवाजी की पीठ पर वार किया है. राउत ने कहा, "हमें कुछ ऐसे घटनाक्रमों को लेकर अंदेशा था, क्योंकि हमारी इतनी गंभीर बैठकों के दौरान अजीत पवार ने हमारी आंखों में देख कर कभी बात नहीं की थी.'
पुडुचेरी,पुडुचेरी में योजनाओं के लागू करने के लिए कभी राज्य तो कभी केंद्रशासित राज्य के तौर पर व्यवहार किए जाने से नाराज मुख्यमंत्री वी. नारायणसामी ने कहा है कि इससे बेहतर तो पुडुचेरी को 'ट्रांसजेंडर' ही घोषित कर दिया जाए।
गुरुवार को एक कार्यक्रम में भाग लेने आए सीएम नारायणसामी ने कहा, 'केंद्र द्वारा पोषित जीएसटी सहित अन्य योजनाओं के लिए केंद्र सरकार अपनी सुविधानुसार पुडुचेरी को राज्य के तौर पर ट्रीट करती है। लेकिन कई अन्य कार्यक्रमों के लिए पुडुचेरी के साथ केंद्रशासित राज्य जैसा व्यवहार किया जाता है।'
केंद्र सरकार के इस दोहरे रवैये से नाराज नारायणसामी ने कहा, 'हम ना तो यहां हैं और ना वहां। इसलिए हमारा केंद्र सरकार से निवेदन है कि पुडुचेरी को 'ट्रांसजेंडर' घोषित कर दिया जाए। हम एक अनिश्चित और जोखिम भरी स्थिति में हैं। केंद्र हमारे साथ भेदभाव कर रही है और प्रशासन को कई सारी रुकावटों का सामना करना पड़ रहा है।'
सीएम ने गवर्नर किरण बेदी को बताया था तानाशाह
सीएम नारायणसामी ने दो दिन पहले विवादित टिप्पणी करते हुए केंद्र शासित प्रदेश की उपराज्यपाल किरण बेदी को तानाशाह बताया था। नारायणसामी ने बेदी की आलोचना करते हुए कहा, 'वह एक तानाशाह की तरह काम कर रही हैं और जर्मन तानाशाह ऐडॉल्फ हिटलर की बहन लगती हैं। वह मंत्रिमंडल के हर फैसले में बाधा बनकर खड़ी हो जाती हैं।
सीएम ने बेदी पर केंद्र सरकार की तमाम योजनाओं को राज्य तक पहुंचने से रोकने का आरोप लगाया था। मुख्यमंत्री ने कहा, 'जब भी मुझे बेदी की ओर से हमारे फैसलों को नामंजूर करने से जुड़ी फाइलें मिलती हैं तो मेरा खून खौल उठता है और मैं झुंझला जाता हूं।' नारायणसामी ने कहा था कि केंद्र ने उनके प्रदेश में एक दानव को बैठा दिया है, जो प्रदेश के विकास के लिए केंद्र सरकार की ओर से होने वाले फंड्स के आवंटन को रोक रही हैं।
नई दिल्ली/मुंबई,महाराष्ट्र में चुनाव नतीजों के ऐलान के करीब एक महीने बाद नई सरकार की तस्वीर अब करीब-करीब साफ हो चुकी है। एनसीपी और कांग्रेस के बीच पिछले 2 दिनों तक चले मंथन के बाद शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाने पर सहमति बन चुकी है। सूत्रों के मुताबिक, सूबे में मुख्यमंत्री शिवसेना का होगा। इसके अलावा 2 डेप्युटी सीएम होंगे जो एनसीपी और कांग्रेस से होंगे। हालांकि, एनसीपी का जोर रोटेशनल सीएम पर है यानी पार्टी शिवसेना के बाद ढाई साल तक अपना मुख्यमंत्री चाहती है। हालांकि, 2 डेप्युटी सीएम की सूरत में शिवसेना का जोर पूरे 5 साल तक के लिए सीएम पद पर होगा। स्पीकर पद कांग्रेस के पास जा सकता है लेकिन एनसीपी की भी इस पद पर नजर है। आज मुंबई में शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के बीच इन मुद्दों पर भी सहमति बन सकती है। सबकुछ सही रहा तो सोमवार को महाराष्ट्र में नई सरकार का गठन हो सकता है।
अजीत पवार और थोराट डेप्युटी सीएम?
सूत्रों के मुताबिक अगर एनसीपी ढाई-ढाई साल तक के सीएम फॉर्म्युले पर जोर नहीं देती है तो कांग्रेस के साथ-साथ उसे भी डेप्युटी सीएम का पद मिल सकता है। इस तरह 2 डेप्युटी सीएम पर सहमति बन सकती है। एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार पार्टी की तरफ से डेप्युटी सीएम के लिए अपने भतीजे अजीत पवार का नाम आगे बढ़ा सकते हैं। अजीत पहले भी एनसीपी-कांग्रेस की सरकार के दौरान 2009 से 2014 तक डेप्युटी सीएम रहे थे। वैसे, शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले को अपने पिता की राजनीतिक विरासत का वारिस माना जाता है। इस लिहाज से वह भी डेप्युटी सीएम की रेस में शामिल हैं। कांग्रेस की तरफ से महाराष्ट्र यूनिट के अध्यक्ष बालासाहेब थोराट डेप्युटी सीएम पद के लिए दावेदार बनकर उभर रहे हैं।
यह है पावर-शेयरिंग फॉर्म्युला
सीएम पोस्ट के लिए शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे का नाम आगे आया है। कांग्रेस और एनसीपी भी चाहते हैं कि उद्धव खुद ही यह जिम्मेदारी संभाले। वहीं डेप्युटी सीएम पद के लिए एनसीपी की ओर से अजीत पवार और कांग्रेस की ओर से बालासाहेब थोराट का नाम आगे चल रहा है। मंत्रिपरिषद में 16-15-12 का फॉर्म्युला सामने आ रहा है यानी शिवसेना के 16 मंत्री हो सकते हैं। एनसीपी के 15 और कांग्रेस के खाते में 12 मंत्री पद आ सकते हैं।
ढाई-ढाई साल के सीएम के पक्ष में एनसीपी
एनसीपी ढाई-ढाई साल के सीएम के पक्ष में है यानी शुरुआती ढाई साल तक शिवसेना का सीएम हो और आखिरी ढाई साल तक के लिए एनसीपी का सीएम हो। एनसीपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां चाहती हैं कि सीएम पद खुद उद्धव ठाकरे संभाले। वैसे बीजेपी के साथ सीएम पोस्ट पर रस्साकशी के दौरान शिवसेना उद्धव के बेटे आदित्य ठाकरे के नाम को इस टॉप पोस्ट के लिए आगे कर रही थी। 2 डेप्युटी सीएम पर अगर सहमति बनती है तो शायद ही शिवसेना सीएम पोस्ट को शेयर करने के लिए राजी हो। ऐसी सूरत में एनसीपी और कांग्रेस अहम मंत्रालयों को अपने पास चाहेंगी। सरकार गठन को लेकर चल रही चर्चाओं से वाकिफ कुछ नेताओं ने बताया कि गृह, वित्त या राजस्व मंत्रालय गैर-शिवसेना पार्टियों यानी एनसीपी और कांग्रेस को मिले, इसकी चर्चा है। अतीत में कांग्रेस-एनसीपी और बीजेपी-शिवसेना दोनों ही गठबंधन सरकारों के दौरान डेप्युटी सीएम के पास ही गृह मंत्रालय रहा था।
नई दिल्ली: लोकसभा में गुरुवार को मथुरा व दिल्ली में बंदरों के आतंक का मुद्दा गूंजा. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सांसद व बॉलीवुड अभिनेत्री हेमा मालिनी ने बंदरों की समस्या को महत्वपूर्ण बताया. उन्होंने दावा किया कि उनके निर्वाचन क्षेत्र में कई लोगों की इससे मौत हो गई है. उन्होंने इस मुद्दे पर सरकार से ध्यान देने की मांग की. लोकसभा में शून्यकाल के दौरान बंदरों के संकट के मुद्दे को उठाए जाने पर विभिन्न दलों के नेता एक मत थे. उन्होंने इस समस्या को खतरनाक व गंभीर बताया और संकट से निपटने के लिए सरकार से कार्रवाई की मांग की.
बंदरों के मुद्दे को उठाते हुए हेमा मालिनी ने कहा कि उनके निर्वाचन क्षेत्र मथुरा व वृंदावन के इलाके में बंदरों के हमले की वजह से बहुत से लोग मारे गए हैं. हेमा मालिनी ने कहा, "बंदरों के प्राकृतिक आवास में कमी आई है और जब वे खाने की तलाश में आवासीय क्षेत्रों में आते हैं तो, वृंदावन के लोगों को उनसे सख्ती से निपटने को मजबूर होना पड़ता है. तीर्थयात्री बंदरों को तले हुए भोजन कचौड़ी व समोसा देते हैं, जिससे वे बीमार पड़ते हैं."
लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के सदस्य चिराग पासवान ने हेमा के विचार से सहमति जताई और सदन को सूचित किया कि लुटियंस दिल्ली में भी इसका गंभीर संकट है. पासवान ने कहा, "वहां बंदरों का आतंक है. दिल्ली के लुटियंस क्षेत्र में बंदरों के भय के कारण बच्चे बगीचों में नहीं बैठ सकते."
तृणमूल कांग्रेस के सांसद सुदीप बंद्योपाध्याय ने बताया कि कैसे मथुरा की यात्रा के दौरान बंदर ने उनका चश्मा छीन लिया था और बंदर को 'फ्रूटी' दिए जाने के बाद उन्हें चश्मा वापस मिला था. बंद्योपाध्याय ने कहा कि इलाके में लोगों से अपने चश्मे को पॉकेट में रखने का नोटिस लगाया गया है. सांसद ने कहा कि हालात बहुत खतरनाक है और इस मुद्दे से निपटने के लिए सरकार को उचित उपाय करना चाहिए.
नई दिल्ली । दिल्ली में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने बड़ा सियासी दांव चल दिया है। मोदी कैबिनेट की बुधवार को हुई बैठक में अवैध कॉलोनियों को रेग्युलराइज करने के विधेयक को मंजूरी दे दी गई। अब ये विधेयक संसद के दोनों सदनों में मंजूरी के लिए जाएगा। अवैध कॉलोनियों को रेग्युलराइज करने की मांग कई सालों से उठ रही थी, जिसे पूरा करके भाजपा ने अपनी पहली सियासी चाल चल दी है, जिसका असर विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा। मोदी कैबिनेट के इस फैसले से केजरीवाल सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। दरअसल, आम आदमी पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव शिक्षा और स्वास्थ्य के मसले पर लडऩा चाह रही है, जिसे लेकर उसने काफी काम किया। वह चाहे सरकारी स्कूलों को मॉर्डन बनाने का काम हो या फिर मोहल्ला क्लीनिक खोलना। आम आदमी पार्टी के नेता इन क्षेत्रों में किए अपने कामों पर ही फोकस करते हैं इसके साथ ही दिल्ली में 200 किलोवॉट तक बिजली भी मुफ्त कर दी गई, लेकिन चुनाव से दो महीने पहले भाजपा ने अवैध कॉलोनियों को रेग्युलराइज करने का फैसला करके लोगों को बड़ी राहत दे दी और दिल्ली के वोटर्स के लिए एक अहम मुद्दे पर बाजी मार ली।
मोदी ने की थी अवैध कॉलोनियों में रहने वालों से मुलाकात
इससे पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने आवास पर आरडब्ल्यूए ऑफिस होल्डर्स के साथ-साथ अनियमित कॉलोनियों में रहने वाले लोगों से मुलाकात की थी। इस मुलाकात के दौरान पीएम मोदी ने कहा था कि आप लंबे समय से एक अनिश्चितता के माहौल में रहे। कई सरकारों ने इस दिशा में काम किया, लेकिन आधे-अधूरे मन से। हमारी सरकार 2014 में आई, तब से हम दिल्ली में रहने वाले लोगों की मुश्किल का हल निकालने के लिए तरीके खोज रहे थे।
अवैध कॉलोनी में रहने वाले लोगों को मिलेंगे ये फायदे
मोदी कैबिनेट ने अवैध कॉलोनियों को नियमित करने के विधेयक पर मुहर लगा दी। अब संसद में बिल पास होने के बाद कॉलोनियों में रहने वाले लोगों को उनकी जमीन का मालिकाना हक मिलेगा। इसके साथ ही सरकार ने दिल्ली भूमि सुधार अधिनियम की धारा 81 के सभी मामलों को वापस लेने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। साथ ही 79 गांवों के शहरीकरण को भी ग्रीन सिग्नल दे दिया गया।