राजनीति

राजनीति (6705)

मुंबई। एक बार फिर शिवसेना ने अपने मुखपत्र 'सामना' के संपादकीय के जरिए बीजेपी पर निशाना साधा है. शिवसेना ने कहा, देश में राजनैतिक परिदृश्य तेजी से बदला है. खासकर पिछले दो सालों में इसमें बहुत बड़ा बदलाव आया है. 71 फीसदी भूभाग का सत्तासुख भोगनेवाली पार्टी अब महज 40 फीसदी पर सिमट चुकी है. संपादकीय में लिखा, 'न केवल महाराष्ट्र बल्कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे महत्वपूर्ण प्रदेश अब भारतीय जनता पार्टी के पास नहीं हैं. हरियाणा में भले ही भाजपा ने चुनाव बाद गठबंधन का सौदा कर सरकार बचा ली हो पर स्वीकार्यता के मामले में उसे हर मोर्चे पर नाकामयाबी ही हाथ लगी है. इसी कड़ी में अब झटका देने की बारी झारखंड की नजर आ रही है.' वहां जारी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर तस्वीर साफ है कि इस बार झारखंड की जनता भी सत्ता के अहंकार को जोर का झटका, जोर से ही देगी. हालांकि भाजपा ने चुनाव जीतने के लिए वहां पूरी ताकत झोंक दी है. प्रधानमंत्री मोदी से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह तक मैदान में कूद पड़े हैं पर मैदान में उन्हें सुनने को भीड़ नहीं जुट रही. संपादकीय में लिखा, अभी पिछले गुरुवार को ही अमित शाह चतरा और गढ़वा गए थे प्रचार करने. पर दुर्भाग्य से वहां उन्हें सुनने लोग ही नहीं जुटे. इस पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने खासी नाराजगी भी जताई, पर शायद यह नाराजगी जताने में वे देरी कर गए हैं. समय रहते अपनी सरकार पर उन्होंने यह नाराजगी जताई होती तो शायद आज यह नौबत नहीं आती. वर्ष 2000 में झारखंड राज्य गठन से आज तक ज्यादातर वहां सत्ता भाजपा या उसके समर्थन से ही रही है. तब भी विकास के मामले में झारखंड हमेशा ‘कुपोषित’ ही बना रहा. आदिवासी संस्कृति और संपत्ति वाले प्राकृतिक संसाधनों के धनी इस राज्य में आज तक गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा, बीमारू स्वास्थ्य सेवाएं, संगठित अपराध और अराजकता का बोलबाला रहा. वहां के आदिवासियों का जीवन अभावग्रस्त और कर्जग्रस्त ही बना रहा. वहां के आदिवासी-किसानों के लिए आज भी जल, जंगल और जमीन ही जमीनी मुद्दा हैं. वो सत्ताधारी भाजपा से इसी पर सवाल भी पूछ रहे हैं. वो केंद्र के ‘राष्ट्रीय पराक्रम’ को ज्यादा तवज्जो नहीं देते, उन्हें ‘अपनी’ सरकार की स्थानीय नीति क्या है, इससे सरोकार है. इसी पर वे सत्ताधारी भाजपा से जवाब चाहते हैं.
- विकास के झुनझुने के शोर ने दबा दी है जरूरत की आवाज
झारखंड की ताजा चुनावी तस्वीर देखकर लगता भी है कि वहां की जनता का जो संघर्ष अट्ठारहवीं शताब्दी से चला आ रहा था, वो आज भी जारी है. उन्हें खुद की ‘सरकार’ तो मिली पर जल-जंगल-जमीन और अपने प्राकृतिक संसाधनों का अधिकार नहीं मिल पाया. इससे उन्हें अब भी बेदखल किया जा रहा है. विकास के झुनझुने के शोर ने उनके जरूरत की आवाज दबा दी है. जंगल-पेड़ कट गए पर उन्हें क्यों रोटी-रोजगार नहीं मिला? आज जनता इसी का जवाब चाहती है. इसी पर वो सवाल भी उठा रही है. अलबत्ता, यह चुनाव ही वहां के किसान-आदिवासियों की अस्मिता, स्वायत्तता, संस्कृति और संपत्ति को बचाने का समर है.

मुंबई. मुंबई के धारावी में करीब 400 शिवसेना कार्यकर्ताओं ने पार्टी छोड़कर बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर ली है. यह शिवसेना के लिए बड़ा झटका है. बताया जा रहा है कि ये सभी कार्यकर्ता शिवसेना के कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने से खासे नाराज हैं. कार्यकर्ताओं का कहना है कि शिवसेना ने भ्रष्ट और विरोधी दलों से हाथ मिलाया है. 

बीजेपी में शामिल होने वाले एक कार्यकर्ता रमेश नाडार ने बताया कि पार्टी के 400 कार्यकर्ताओं ने बीजेपी जॉइन की है क्योंकि शिवसेना के भ्रष्ट और हिंदू विरोधी दलों से हाथ मिलाने से वे खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. कार्यकर्ताओं ने शिवसेना पर सिर्फ सरकार बनाने के लिए महाविकास आघाड़ी में शामिल होने का आरोप लगाया.

नाडार ने यह भी बताया कि कई और कार्यकर्ता भी हैं जो शिवसेना से नाराज हैं. उनका कहना है कि पिछले सात साल से वे एनसीपी और कांग्रेस के खिलाफ लड़ रहे थे. चुनाव के दौरान उन्होंने लोगों के घर-घर जाकर वोट मांगे थे लेकिन अब वे उनसे कैसे चेहरा मिला पाएंगे जिनसे उन्होंने ईमानदार सरकार बनाने के लिए वोट मांगे थे.

नई दिल्ली. पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह के 1984 के सिख दंगे पर दिए बयान को लेकर नरसिम्हा राव का परिवार बेहद नाराज़ है. राव के पोते एनवी सुभाष ने कहा है कि मनमोहन सिंह को तुरंत बिना शर्त माफी मांगनी चाहिए. डॉक्टर सिंह ने कल कहा था कि अगर तत्कालीन गृह मंत्री पीवी नरसिम्हा राव  ने इंद्र कुमार गुजराल की सलाह मानी होती, तो दिल्ली में सिख नरसंहार को टाला जा सकता था. पूर्व प्रधानमंत्री ने ये बातें गुजराल की 100वीं जयंती पर आयोजित एक समारोह में कहीं.

एनवी सुभाष ने कहा कि वो मनमोहन सिंह के बयान से बेहद आहत हैं. उन्होंने कहा कि अगर वो नरसिम्हा राव को इस दंगे के लिए ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं तो उन्हें इसके लिए राजीव गांधी को भी दोषी ठहराना चाहिए. उन्होंने आगे कहा, अगर वो सिख दंगे से आहत थे तो उन्हें नरसिम्हा राव की कैबिनेट में शामिल नहीं होना चाहिए था. हम लोग चाह रहे हैं कि मनमोहन सिंह अपने बयान के लिए बिना शर्त हमारे परिवार से माफी मांगे.

पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने कहा, दिल्‍ली में जब 84 के सिख दंगे हो रहे थे, गुजराल जी उस समय के गृह मंत्री नरसिम्हा राव के पास गए. उन्‍होंने राव से कहा कि हालात बेहद गंभीर है और सरकार को जल्द से जल्द सेना को बुलाने की जरूरत है, लेकिन तत्कालीन सरकार ने गुजराल की सलाह पर गौर नहीं किया. 1984 में इंदिरा गांधी की उनके अंगरक्षकों ने हत्या कर दी थी. इसके बाद देश के कई शहरों में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे थे.  देश भर में 3 हज़ार से ज़्यादा लोग मारे गए थे. अकेले दिल्ली में 2 हज़ार से ज़्यादा लोगों की जान गई थी. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भीड़ सड़कों पर उतर आई और खून के बदले खून का नारा लगा रही थी.

नई दिल्ली. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय रेलवे की कमाई 10 साल के निचले स्तर पर पहुंच गई है। रेलवे का परिचालन अनुपात (ऑपरेटिंग रेशियो) वित्त वर्ष 2017-18 में 98.44 प्रतिशत पर पहुंच गया है, जिसका मतलब यह है कि रेलवे को 100 रुपये कमाने के लिए 98.44 रुपये खर्च करने पड़े हैं। रेलमंत्री पीयूष गोयल ने इसके लिए सातवें वेतन आयोग की वजह से सैलरी और पेंशन पर बढ़े खर्च और सामाजिक दायित्वों पर लग रहे पैसों को जिम्मेदार बताया है।
रेलमंत्री पीयूष गोयल ने बुधवार को लोकसभा में दिए लिखित जवाब में कहा कि सातवां वेतन आयोग लागू होने के बाद से रेलवे कर्मचारियों के वेतन और पेंशन पर 22 हजार करोड़ रुपये अधिक खर्च कर रहा है, जिससे वित्तीय स्वास्थ्य पर असर पड़ा है। गोयल ने यह भी कहा कि नई लाइनों के निर्माण और सामाजिक दायित्वों के तहत अलाभकारी इलाकों में भी ट्रेन चलाने में भी इसके फंड का बड़ा हिस्सा खर्च हो जाता है।
प्रश्नकाल में रेलमंत्री ने कहा, '7वें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद से रेलवे कर्मचारियों की सैलरी और पेंशन पर 22 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च हो रहा है। ऑपरेटिंग लॉस में इसका योगदान है।' मंत्री ने कहा कि रेलवे साफ-सफाई, उपनगरीय ट्रेन चालने और गेज बदलाव पर भी काफी खर्च कर रहा है। उन्होंने कहा, 'इन सबका खर्च है और इसका रेलवे पर असर पड़ता है।'
गोयल ने कहा, 'जब हम पूरे पिक्चर को देखते हैं, सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करना और सामाजिक दायित्व के तहत ट्रेनों को चलाने से ऑपरेटिंग रेशियो एक साल में 15 पर्सेंट नीचे चला जाता है।' रेलमंत्री ने कहा, 'समय आ गया है कि हम सामाजिक दायित्वों पर खर्च और लाभकारी सेक्टर्स के लिए बजट को अलग करने की संभावना तलाशें।'

देश में प्याज की कीमतों ने आम आदमी के बजट को बिगाड़ कर रख दिया है। इसकी कीमतों पर अंकुश लगाने के सरकारी प्रयास विफल होते हुए दिखाई दे रहे हैं। इस मुद्दे पर विपक्ष सरकार पर सवाल खड़े कर रहा है। वहीं बुधवार को संसद में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि वह इतना लहसुन, प्याज नहीं खाती हैं। वह इस तरह के परिवार से आती हैं जहां ज्यादा प्याज-लहुसन का मतलब नहीं है। उनके इस बयान पर सदन में काफी ठहाके लगे।लोकसभा में प्याज खाने को लेकर कुछ सदस्यों के सवालों के जवाब में निर्मला ने कहा, 'मैं इतना लहुसन, प्याज नहीं खाती हूं जी। मैं ऐसे परिवार से आती हूं जहां प्याज से मतलब नहीं रखते।' महाराष्ट्र के बारामती से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की सांसद सुप्रिया सुले के सवालों का जवाब देने के लिए वित्त मंत्री खड़ी हुई थीं। उसी दौरान कुछ सदस्यों ने सवाल किया कि क्या आप प्याज खाती हैं। सदस्यों के इस सवाल पर उन्होंने यह जवाब दिया।
 
इससे पहले सांसद सुले ने एनपीए और प्याज के किसानों का मुद्दा उठाया था। उन्होंने कहा, 'मैं सरकार से प्याज को लेकर एक छोटा सा सवाल करना चाहती हूं। सरकार मिस्र से प्याज मंगवा रही है, प्याज की व्यवस्था कर रही है। मैं सरकार के इस कदम की सराहना करती हूं। मैं महाराष्ट्र से आती हूं जहां बड़े पैमाने पर प्याज की पैदावार होती है लेकिन मैं पूछना चाहती हूं कि आखिर प्याज का उत्पादन क्यों गिरा? छोटे किसान प्याज का उत्पादन करते हैं और उन्हें बचाने की जरुरत है।'

बता दें कि प्याज के आयात से देश के किसान प्रभावित होंगे और सुले इसे लेकर ही सवाल कर रही थीं। एनसीपी सांसद के सवाल के बाद सीतारमण जवाब देने के लिए खड़ी हुईं। उसी समय उनसे प्याज खाने को लेकर सवाल किया गया। वित्त मंत्री ने अपने प्याज खाने पर जवाब देने के बाद प्याज के किसानों के लिए सरकार की नीतियों को लेकर जानकारी दी।

ममता सरकार द्वारा विधानसभा की कार्यवाही अचानक स्थगित किए जाने के बाद राज्यपाल जगदीप धनखड़ गुरुवार को विधानसभा पहुंचे। राज्यपाल जब यहां पहुंचे तो सचिवालय का फाटक नंबर एक बंद था, जिसको लेकर राज्यपाल थोड़ी देर के लिए असहज नजर आए। राज्यपाल ने पूछा कि फाटक बंद क्यों है? विधानसभा स्थगित होने का मतलब सदन बंद होना नहीं है।
हालांकि कुछ देर बाद राज्यपाल दूसरे गेट से विधानसभा के अंदर पहुंचे। उन्होंने कहा कि जब मैं यहां आया था तो राज्यपाल और अन्य वीवीआइपी लोगों के लिए गेट बंद था, लेकिन मैं दूसरे गेट के माध्यम से अंदर गया जो खुला हुआ था। विधानसभा सचिवालय पूरे साल खोला जाता है, विधानसभा सत्र में नहीं होने का मतलब यह नहीं है कि सचिवालय बंद है।
राज्यपाल धनखड़ ने कहा कि मेरा उद्देश्य इस ऐतिहासिक इमारत को देखना, पुस्तकालय का दौरा करना है। राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने कहा कि मैं यहां यह देखने के लिए हूं कि संविधान का सम्मान किया जाए।
गौरतलब है कि ममता सरकार द्वारा विधानसभा की कार्यवाही अचानक स्थगित होने का आरोप राज्यपाल जगदीप धनखड़ पर लगाए जाने के बाद उन्होंने कहा था कि न तो वह 'रबड़ स्टांप हैं और न ही पोस्ट ऑफिस' हैं।
सत्तारूढ़ पार्टी और राज्यपाल के बीच गतिरोध उस समय और भी निचले स्तर पर पहुंच गया जब विधानसभा अध्यक्ष विमान बनर्जी ने मंगलवार को सदन को दो दिनों के लिए स्थगित कर दिया क्योंकि विधानसभा में जो विधेयक पेश होने थे, उसे अब तक राज्यपाल से मंजूरी नहीं मिली थी जो अनिवार्य था।

नई दिल्ली । भाजपा ने विभिन्न राज्यों में प्रदेश अध्यक्ष के चुनावों के लिए केंद्रीय चुनाव पर्यवेक्षकों के नाम तय कर दिए हैं। यूपी में राष्ट्रीय महासचिव भूपेंद्र यादव और मंगल पांडे, बिहार में केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलौत और महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष विजया राहटकर और उत्तराखंड में उपाध्यक्ष शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल को पर्यवेक्षक बनाया गया है। इन प्रदेशों में इसी माह प्रदेश अध्यक्षों के चुनाव होने हैं। विधानसभा चुनावों के चलते झारखंड-दिल्ली में फिलहाल प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव नहीं होना है। भाजपा के संगठन चुनावों की प्रक्रिया इसी माह पूरी हेानी है। प्रदेशों के चुनाव पूरे होने के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव जनवरी के पहले पखवाड़े में होने की संभावना है ताकि मकर संक्रांति के बाद उत्तरायण आते ही वह कार्यभार संभाल सके। अधिकांश राज्यों में जिला समितियों का चुनाव चल रहा है और इसके बाद प्रदेश अध्यक्षों का चुनाव होना है। इन चुनावों में किसी तरह का घमासान न हो इसके लिए पार्टी ने वरिष्ठ नेताओं को पर्यवेक्षक नियुक्त किया है। पियूष गोयल को चंडीगढ़, धर्मेंद्र प्रधान को असम, रविशंकर प्रसाद को गुजरात, रमेश पोखरियाल निशंक को हिमाचल प्रदेश, राम माधव को कर्नाटक, मुख्तार अब्बास नकवी को मध्य प्रदेश,ओम माथुर को महाराष्ट्र, कैलाश विजयवर्गीय को तमिलनाडु और गजेंद्र सिंह शेखावत को हरियाणा का पर्यवेक्षक बनाया गया है।

नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर मोदी कैबिनेट की बैठक संसद भवन के एनक्सी बिल्डिंग में शुरू हो चुकी है। आज ही इस बिल को केंद्रीय कैबिनेट मंजूरी दे सकती है। सरकार शीतकालीन सत्र में ही इस बिल को पारित करवाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। हालांकि एनआरसी के बाद नागरिकता संशोधन विधेयक के कई प्रावधानों को लेकर विपक्ष पुरजोर विरोध करने की तैयारी में लगा हुआ है।
इस बिल को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह संसद में पेश करेंगे। माना जा रहा है कि कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल इस बिल का विरोध करेंगे। इससे संसद के दोनों सदनों में हंगामे के आसार बनते दिखाई दे रहे हैं।
दिल्ली की अनधिकृत कालोनियों को नियमित करने का विधेयक राज्यसभा में आज होगा पेश
आवासन एवं शहरी विकास राज्यमंत्री हरदीप सिंह पुरी दिल्ली की 1700 से अधिक अनधिकृत कालोनियों को नियमित कर इनमें स्थानीय निवासियों को संपत्ति का मालिकाना हक़ देने वाला विधेयक बुधवार को राज्यसभा में पेश करेंगे।
राज्यसभा की संशोधित कार्यसूची के अनुसार पुरी ‘राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र दिल्ली (अप्राधिकृत कालोनी निवासी संपत्ति अधिकार मान्यता) विधेयक 2019’ को उच्च सदन में चर्चा और पारित कराने के लिये पेश करेंगे।
उल्लेखनीय है कि दिल्ली की 1731 अनधिकृत कालोनियों को नियमित करने वाले इस विधेयक को लोकसभा पिछले सप्ताह मंज़ूरी दे चुकी है।
क्या है नागरिकता कानून जिसे बदलना चाहती है सरकार
पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च (PRS Legislative Research) के अनुसार, नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 को 19 जुलाई 2016 को लोकसभा में पहली बार पेश किया गया था। 12 अगस्त 2016 को इसे संयुक्त संसदीय समिति को सौंप दिया गया था। समिति ने इस साल जनवरी में इस पर अपनी रिपोर्ट दी है।
अगर यह विधेयक पास हो जाता है, तो अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के सभी गैरकानूनी प्रवासी हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई भारतीय नागरिकता के योग्य हो जाएंगे। इसके अलावा इन तीन देशों के सभी छह धर्मों के लोगों को भारतीय नागरिकता पाने के नियम में भी छूट दी जाएगी। ऐसे सभी प्रवासी जो छह साल से भारत में रह रहे होंगे, उन्हें यहां की नागरिकता मिल सकेगी। पहले यह समय सीमा 11 साल थी।
विधेयक पर क्यों है विवाद?
इस विधेयक में गैरकानूनी प्रवासियों के लिए नागरिकता पाने का आधार उनके धर्म को बनाया गया है। इसी प्रस्ताव पर विवाद छिड़ा है। क्योंकि अगर ऐसा होता है तो यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा, जिसमें समानता के अधिकार की बात कही गई है।

नई दिल्‍ली. अपने भविष्य के राजनीतिक कदम के बारे में अटकलों पर चुप्पी तोड़ते हुए, भाजपा नेता पंकजा मुंडे ने मंगलवार को कहा कि वह पार्टी नहीं छोड़ रही हैं. मुंडे ने एक दिन पहले ट्विटर परिचय से भाजपा शब्द हटा लिया था मुंडे ने रविवार शाम महाराष्ट्र में बदले राजनीतिक परिदृश्य के मद्देनजर फेसबुक पर अपनी भावी यात्रा के संबंध में एक पोस्ट करने के साथ ही राजनीति में उनके अगले कदम को लेकर अटकलों का बाजार गर्म कर दिया था.

उन्होंने सोमवार को अपने ट्विटर बायो से भाजपा और अपने राजनीतिक सफर का विवरण हटाकर अफवाहों को और बल दे दिया था. महाराष्ट्र में शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस ने मिलकर गठबंधन में सरकार बनाया है. पंकजा ने संवाददाताओं से कहा, मैं पार्टी नहीं छोड़ रही हूं. दलबदल मेरे खून में नहीं है.

भाजपा के दिवंगत नेता गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा ने उन अफवाहों का भी खंडन किया, जिनमें कहा गया था कि उनके ट्विटर परिचय से भाजपा को हटाने का मकसद अपनी पार्टी पर दबाव बनाना था. मंगलवार को पंकजा ने दक्षिण मुंबई के मालाबार हिल स्थित अपने आवास पर भाजपा के वरिष्ठ नेता विनोद तावड़े, राम शिंदे और विधायक बबनराव लोणीकर से मुलाकात की. पंकजा ने अभी तक भाजपा की अगुवाई वाली पिछली सरकार में मंत्री के रूप में उन्हें आवंटित आधिकारिक आवास खाली नहीं किया है. तावड़े ने कहा, रविवार को उनके फेसबुक पोस्ट का विरोधियों ने गलत मतलब निकाला, इसलिए वह बहुत आहत थीं. उन्होंने खुद मुझे बताया कि वह पार्टी से नाखुश नहीं हैं.

इससे पहले दिन में, पंकजा ने अपने फेसबुक पेज पर भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की और साथ में ‘कमल’ (भाजपा का चिह्न) की एक तस्वीर पोस्ट की. पंकजा के फेसबुक अकाउंट के अबाउट सेक्शन में उनका राजनीतिक संबंध अब भी भाजपा के साथ ही दिख रहा है. पंकजा ने मराठी में लिखी फेसबुक पोस्ट में कहा था, राज्य में बदले राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए यह सोचने और निर्णय लेने की आवश्यकता है कि आगे क्या किया जाए. मुझे स्वयं से बात करने के लिए आठ से 10 दिन की आवश्यकता है. मौजूदा राजनीतिक बदलावों की पृष्ठभूमि में भावी यात्रा पर फैसला किए जाने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा था, अब क्या करना है? कौन सा मार्ग चुनना है? हम लोगों को क्या दे सकते हैं? हमारी ताकत क्या है? लोगों की अपेक्षाएं क्या हैं? मैं इन सभी पहलुओं पर विचार करूंगी और आपके सामने 12 दिसंबर को आऊंगी.

नई दिल्ली. संसद के शीतकालीन सत्र में कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने मंगलवार को प्याज की बढ़ती कीमतों, अर्थव्यवस्था और बेरोजगारी के मुद्दे पर लोकसभा में हंगामा किया। भाजपा ने कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पर सोमवार को की गईं टिप्पणियों पर माफी की मांग की।
भाजपा सांसद पूनम महाजन ने कहा- कल सभी सदस्य तेलंगाना में डॉक्टर की हत्या और दुष्कर्म की घटना को लेकर साथ खड़े थे, लेकिन कुछ देर बाद जिनके नाम में धीर है, ऐसे अधीर रंजन जी के धीर का बांध टूट गया। उन्होंने सीतारमण पर टिप्पणी की, बहुत बुरा हुआ। निर्बल तो आप हैं दादा (चौधरी) कि एक ही परिवार की महिला के लिए आप खड़े हैं और उसी के सम्मान और सुरक्षा के लिए लड़ रहे हैं। दरअसल, अधीर रंजन चौधरी ने निर्मला सीतारमण को निर्बला कहा था।
सरकार ने बलवंत सिंह राजौना की सजा नहीं बदली है: शाह
अमित शाह ने लोकसभा में कहा- पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारे बलवंत सिंह राजौना की मौत की सजा बदली नहीं गई है। सांसद इस संबंध में मीडिया में आ रही खबरों पर यकीन न करें। यह मुद्दा बेअंत सिंह के पोते और सांसद रावनीत सिंह बिट्‌टू ने प्रश्न काल में उठाया गया था। मीडिया में कुछ दिनों से गृह मंत्रालय द्वारा राजौना की सजा बदलने संबंधी निर्देश पंजाब सरकार को भेजे जाने की खबरें आ रही थीं। गृह मंत्री शाह राज्यसभा में एसपीजी संशोधन विधेयक 2019 भी पेश करेंगे। यह बिल 27 नवंबर को लोकसभा में पास हो चुका है।
दुष्कर्म के दोषियों को आजीवन जेल में रखें: हेमा मालिनी
तेलंगाना समेत अन्य राज्यों में दुष्कर्म की घटनाओं और महिला अपराध को लेकर भी संसद में दूसरे दिन भी चर्चा जारी है। भाजपा सांसद हेमा मालिनी ने लोकसभा में कहा- दुष्कर्मियों को हमेशा जेल में रखा जाना चाहिए। विपक्ष ने सोमवार को दुष्कर्म के दोषियों को सजा देने के लिए कड़ा कानून लाने की मांग की थी।

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